गुरुवार, 26 मार्च 2020

वार्ताली देवी साधना

        
            श्री वार्ताली देवी साधना।

एक अद्भुत अनुपम साधना  जोकि बहुत तीव्र शक्ति युक्त होती है  स्वप्नेश्वरी  कर्ण मातंगी  कर्ण पिशाचिनी की भांति  इस  वार्ता ली देवी की साधना के भी बहुत अधिक लाभ हैं अभिप्राय "वार्तालि यानी वार्ता करने वाली देवी" इस शक्ति का सीधा संबंध कुंडलिनी शक्ति की साधना से है ।

इसका साधक साधना संपन्न कर लेने के बाद भूत भविष्य वर्तमान तीनों कानों को जानने वाला त्रिकालदर्शी बन जाता है।
यह साधना भी कर्ण पिशाचिनी कर्ण मातंगी की तरह ही है इसकी साधना वेदोक्त पद्धति साबर मंत्र पद्धति और अघोर मंत्र की पद्धति से की जाती है परंतु वेदोक्त साधना सर्वश्रेष्ठ कही जाती है इसमें मंत्र व तंत्र दोनों का प्रयोग हो सकता है साधना की विधि वार्ता जी देवी का आगे दिया जा रहा यंत्र है इसे स्वर्ण चांदी या ताम्रपत्र पर खुदवा कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें ।
2 ×2 फुट चौड़ा यानी लकड़ी का चौका पट्टा लेकर उसकी एक चौकी बनवाएं यह बनी बनाई भी बाजार से ले सकते हैं उस पर  लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछाकर चावलों से वार्ता ली देविका ताम्रपत्र पर अंकित यंत्र जैसा अष्टदल बनाकर ताम्रपत्र पर अंकित यंत्र जैसा यंत्र बनाकर उस पर ताम्रपत्र पर अंकित वार्ता ली यंत्र स्थापित करें चौकी के चारों कोनों में तेल के चार दिए जलाएं साधक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नहा धोकर स्नान स्नान इत्यादि होकर गुरुवार गणेश की पूजा करने के उपरांत मुख्य पूजा करें साधक लाल रंग के वस्त्रों को धारण करें और आज भी लाल ही रंग का होना चाहिए साधक की दही नहीं और सामने देसी घी का अखंड दीपक जलाकर रखें और अपने भाई और सामने की तरफ एक जल का पात्र रखें।

 सबसे पहले विनियोग पढ़कर दाएं हाथ में जो जल लिया उसे भूमि पर छोड़ दें विनियोग इस प्रकार है 

ॐ अस्य श्री वार्ताली मंत्रस्य पराअम्मबा ऋषय: त्रिषटुप छन्दसे क्रियामय  त्रिकाल देवता ऐं बीजम श्री शक्ति कीलकम अस्मिन श्री वार्ताली मंत्र जपे विनियोग।।

 मंत्र इस प्रकार है :-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पंच-कारस्य स्वाहा।

ऋष्यादि न्यास:-

(१) परांम्बा ऋषये नमः शिरिस।
(२) त्रिष्टुप छन्दसे नमः मुखे।
(३) त्रिकाल देवताभ्यो नमः हृदये।
(४) ऐं बीजाय नमः गुह्ये।
(५) ह्रीं शक्ति नमः नाभौ।
(६) श्री कीलकाय नमः पाठ्यो।
(७) विनियोगाय नमः सर्वांगे।

उपरोक्त न्यास में जिन-जिन अंगो का नाम आया है पांचों उंगलियों को मिलाकर उस स्थान को स्पर्श करें प्रदेशों की नाभि मुख इत्यादि

श्री वार्ताली साधना यंत्र।

○कर न्यास:-

○(१) ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
○(२) ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
○(३) ह्रो मध्यामभ्यां नमः।
○(४) श्री अनामिकाभ्यां नमः।
○(५) पंच कारस्य कनाष्ठिकाभ्यां नमः।
○(६) ॐ ऐं ह्रीं श्री करतल कर पृष्ठभ्यां नमः।

○षडङ्गन्यास:-

○(१) ॐ हृदयाय नमः( पांचों अंगुलियों से ह्रदय को स्पर्श करें )
○(२) ह्रीं शिरसे स्वाहा। ( सिर को स्पर्श करें)
○(३) ह्रीं शिखायै वषट्। (सिखा को स्पर्श करें।)
○(४) श्री कवचाय हूँ। (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
○(५) पंचकरस्य नेत्र त्र्याय वौषट। (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
○(६) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्ट। अपने सिर के ऊपर से दाहिना हाथ घुमाकर चुटकी बजा दें।

○उपरोक्त साधना में काले हकीक की माला से ही साधना की जा सकती है और 21 माला प्रतिदिन नित्य 41 दिनों तक जाप करें।

○जाते समय सामने देसी घी की अखंड ज्योत जलती रहे और चौकी के चारों कोनों पर सरसों के तेल के दीए जलते रहने चाहिये।

○ साधक को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से साधना प्रारंभ करके शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि तक साधना संपन्न करें ।
○दिन में एक समय भोजन मीठा करें  वह भी ठंडा ।

○भूमि पर शयन करें और पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करें

○ प्रसन्न होने पर देवी प्रकट होकर छोटा सा प्रकाश बिंदु रूप करके साधक के हृदय में समा जाती हैं ।

○उस वक्त साधक का सारा शरीर कंपनी झनझन आने लगता है मानव शरीर के अंदर प्रकाश पुंज चम चमा रहा हो बस तभी से साधकों भूत भविष्य वर्तमान पता लगने लगता है ।

○तीनों कालों का तीनों लोकों में घटित हो चुकी घटित हो रही या घटित होने वाली घटनाओं को साधक दूरदर्शन के पर्दे की तरह आसानी से देख सकता है ।

○और सब का भला कर सकता है साधना पूर्ण होने पर सिद्ध हुए ताम्रपत्र को यंत्र को साधक अपनी बाजू या गले में धारण कर सकता है।
○ इस साधना को सोच समझकर शुरू करें और बीच में कभी ना छोड़े।

○ इस साधना को पूर्ण श्रद्धा के साथ करने से आपको सिद्धि का लाभ प्राप्त होगा किंतु बिना गुरु के यह साधना कभी ना करें क्योंकि यह साधना साधकों द्वारा बार-बार अनुरोध करने पर ही यहां पर मैं डाल रहा हूं यह साधनाएं बिना गुरु के नहीं होते क्योंकि इस सिद्धि प्राप्त कर लेने के बाद इस सिद्धि को धारण किए रखना बहुत कठिन होता है वास्तव में वही है कठिन काल होता है इसलिए पहले अपने गुरु से परामर्श करके उन्हें दक्षिणा और सेवा से प्रसन्न करें फिर उनकी आज्ञा लेने के बाद ही इस साधना को करें।

                   ।।इति शुभमस्तु।।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...