।।जल मसानी की साधना।।
(जल मसानी की ताकत से कट्टर भूत प्रेत को समाप्त करना।)
क्या आपको पता है जैसे जमीन पर मसानी होती है वैसे ही जल की भी मसानी होती है जिसको जल मसाणी बोला जाता है और यह बहुत शक्तिशाली और जबरदस्त मसानी होती है सभी जल प्रेत जल मसाण जल दैत्य इन्हीं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
लेकिन माता दरियाई काली की दूहाई देने से ये जल्दी ही साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं। जब कोई स्याना ओझा तांत्रिक जो इस इल्म से वाकिफ होता है वो किसी भी कट्टर से कट्टर भूत प्रेत जिन्न खवीस को जब भी उतरेगा तो इन्हें भोग देकर इन्ही की पकड़ में देगा और फिर ये आगे उस शैतान को ख्वाजा खिजर के हवाले उनकी जेल में दे देगी जिसके कारण वो समान यही पकड़ी गई आत्मा दोबारा नही छूट पाएगी फिर न वो आत्मा छूटेगी और ना ही मरीज़ दोबारा परेशान होगा क्योंकि बहुत बार ऐसा देखा गया है बहुत सारे मरीज अपना इलाज अवश्य करवाते है कुछ देर के लिए तो वो ठीक हो जाते हैं किंतु कुछ समय के बाद वो शक्ति दोबारा वापिस आकर मरीज़ को परेशान करती है
तो अगर कोई ऐसे मरीजों का इलाज करता हो तो उसके लिए ये साधना बहूत महत्वपूर्ण है उनके द्वारा किया गया कोई इलाज फेल नही होगा। और दूसरी बात ये है कि इसके फायदे मैं गिनवा नही सकता लेकिन कुछ एक फायदे यहां बताता हूँ।
साधना संपन्न होने के बाद साधक में ऐसी शक्ति आ जाती है जिससे वह किसी भी कट्टर से कट्टर भूत प्रेत और दुष्ट शक्ति को पकड़कर जल मसानी द्वारा ख्वाजा जी की जेल में भेज सकता है और किसी भी दुष्ट तांत्रिक की किसी भी शक्ति को पकड़कर ख्वाजा जी के हवाले कर सकता है वह शक्ति जीवन भर छूटेगी नहीं।
देवी लॉटरी सट्टे के नम्बर साधक को देती है।
साधक को आगम समझ आने लग जाता है ये देवी पीरों फकीरो और अपर देवी देवताओं के दर्शन करवाती हैं।
साधक के दुश्मनों के हालात गए गुजरे फकीरों वाले हो जाते है और अपने अंत को प्राप्त होते हैं।
कोई भी भूत प्रेत बाधा का रोगी साधक के जाते ही चीखने चिल्लाने लग जाता है और उसके ऊपर की अला बला बोलने लग जाती है। और साधक का हर कहा मानने पर बाध्य हो जाती है।
हालांकि इसकी दरियाई काली और जल मसानी के विषय में जानने वाले बहुत कम लोग बचे हैं जो कि एक सुलेमानी काला इल्म है यह साधनायें इस प्रकार की होती है जो कि साबर मंत्रों की भांति बहुत जल्दी ही सिद्ध हो जाती है बल्कि ये कहा जाए कि ये साबर मंत्र का एक स्वरूप है तो गलत नही होगा।
लेकिन अगर किसी गुरु का हाथ साधक के सर पर ना हो तो इस साधना के द्वारा पैदा होने वाली गर्माईश से बहुत जल्दी इनका साधक पागल भी हो सकता है क्योंकि इससे जल्दी ही बहुत ज्यादा ऊर्जा उठती है इसलिए इसको बिना गुरु के झेल पाना मुश्किल होता है।
ये साधनायें ग्रहस्थ साधकों के लिए नही है लेकिन वो जो ग्रहस्थ होते हुये भी तटस्थ हैं और परहितकर कार्यों में लगे रहते हैं उनके लिए ये साधना प्रयुक्त है।
इस साधना की अविधि पूरे 41 दिनों की है।
साधना का समय मध्यरात्रि है ये साधना पूरे 12 बजे से शुरू की जाती है।
ये साधना किसी एकांत निर्जन जन शून्य स्थान पर नदी दरया कुवें अथवा निरंतर बहते जल स्रोत के किनारे काले रंग के वस्त्र धारण कर के ये साधना करें माला काले हक़ीक़ की होनी चाहिए।
पूर्वाभिमुख होकर कुशा आसन पर बैठकर अपना रक्षा घेरा लगाने के बाद की जाती है ।
अपने सामने कुछ जमीन की सफाई कर कर सवा हाथ का चौका गोल लगा लें फिर उसके ऊपर सरसों के तेल का 4 मुंह वाला दिया जलाएं और माता हेतु प्रतिदिन 11 पूड़े 11 गुलगुले एक मीठा पान नारियल पानी वाला एक चुनरी लपेटकर सृंगार एक शराब का पव्वा हलवा 7-7 लौंग इलायची औए सेंट और 2 देसी गुलाब के फूल हनुमान जी वाला सिन्दूर भोग धरें
(हलवा पूड़े और गुलगुले सरसों के तेल गुड़ और गेहूं के आटे से खुद बनाएं।वहां पर गोबर के कंडे की आग पर गुग्गल की धूनी निरंतर जाप समाप्त होने तक चलती रहे। वहां बैठकर 11 माला जाप प्रतिदिन करें
इस साधना को बीच में कभी नही छोड़ना चाहिए वरना किसी बड़े नुकसान का अंदेशा रहता है
साधना के दूसरे तीसरे दिन ही अचानक हवा की हरकत होना साधक को समझ आने लग जाता है और धीरे-धीरे एक-एक दिन बीतने के बाद यह सभी घटनाएं बढ़ती जाती है फिर अलग-अलग प्रकार के डरावने चेहरे और आकृतियां साधक को दिखाई देने लग जाती हैं लेकिन उसकी तरफ नही देखना अपना काम करना है। कमजोर दिल के मरीज या बीमार इसको न करें।
बिस्मिल्लाह रहमान रहीम
जिंदा ख़्वाजा खिज़र सलाम।
अर्ज़ करां मैं तेरा गुलाम।।
जागो हनुमंत। जागो नरसिंह ।।
जागें बावन वीर । छप्पन कल्वे वीर ।।
आन पड़े ख़्वाज़े ख़िज़्र की ।
झट्ट जागो जल की माता मसानी।।
मेरा कारज रास कराणी ।
भूत को, प्रेत को, जिन्न को, खवीस को,
डाकिनी को, चुड़ैल को, मढ़ी को, मसाण को,
कल्वे को, कचील को, लग्गी को, लगाई को,
भेजी की, भिजाई को, बन्न बन्न हत्था हथकड़ी।
पैरीं बेडियां गल्ल विच फन्दा पा।।
जल भैरों थल भैरों खिच्च लिआ।
जागो जल की मात मसानी।।
जो मंगा सो ले ले आणि।
जो जो तेनु देवां बन्न के।
ख़िज़्र सलाम नु दे आनी।
संग चले माँ कालका।
चले खप्पर खेत चलाये।
आन शिव भोलेपार्वती दी।
नौ नाथ चौरासी सिद्धां दी।
आज ख़िज़्र ख़्वाज़े दी।
दुहाई गुरु उस्ताद दी।