क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र सिद्धि।
इस मंत्र की विधि पूर्वक सिद्धि कर लेने पर आपको धन लाभ ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है और आपके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है अक्षय कीर्ति की प्राप्ति होती है धनधान्य राज्य भोग क्षेत्रपाल भैरव जी की कृपा से प्राप्त होता है बुरी आत्माओं के साए आपके घर से हट जाते हैं और जातक और उसका पूरा परिवार सुखी हो जाता है।
(शास्त्रिक मन्त्र विधान)
सबसे पहले क्षेत्रपालमन्त्र का प्रयोग बताया जा रहा है।
इसका नवाक्षर मन्त्र इस प्रकार है 'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति नवाक्षरो मन्त्रः ।
अस्य विधानम्:-विनियोग अस्य क्षेत्रपालमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः। क्षेत्रपालो देवता क्षं बीजम् लः शक्तिः । सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास
ॐ ब्रह्मऋषये नमः शिरसि ।। १।।
ॐ गायत्रीछन्दसे नमः मुखे ।। २।।
ॐ क्षेत्रपालदेवतायै नमः हृदि ।। ३।।
ॐ क्षं बीजाय नमः गुह्ये ।। ४।।
ॐ लः शक्तये नमः पादयोः । । ५ ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।। ६ ।।
इति ऋष्यादिन्यासः
करन्यास
ॐ क्षां अंगुष्ठाभ्यां नमः || १ ||
ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः || २ ||
ॐ क्षू मध्यमाभ्यां नमः || ३ ||
ॐ क्षै अनामिकाभ्यां नमः || ४ ||
ॐ क्षौ कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।।५।।
ॐ क्षः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।। ६ ।।
इति करन्यासः ।
हृदयादिषडङ्गन्यास :
ॐ क्षां हृदयाय नमः || १||
ॐ क्षीं शिरसे स्वाहा ।। २।।
ॐ क्षं शिखायै वषट् ।। ३।।
ॐ क्षै कवचाय हुम् ।। ४।।
ॐ क्षी नेत्रत्रयाय वौषट् ।। ५ ।।
ॐ क्षः अस्त्राय फट् ।। ६ ।।
इति हृदयादिषडङ्गन्यासः
इस प्रकार न्यास करके ध्यान करे।
अथ ध्यानम् :- ॐ नीलाञ्जनादिनिभूमूर्द्धपिशङ्गकेशं वृत्तोग्रलोचनमुदान्तगदाकपालम् । आशाम्बरं भुजङ्गभूषणमुग्रदंष्ट्रं क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् ।। १।।
इति ध्यात्वा मानसोपचारैः सम्पूजयेत्।
ततः पीठादा रचिते सर्वतोभद्रमण्डलेमण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताः संस्थाप्य ॐ मं मण्डूकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवताभ्यो नमः।' इति सम्पूजयेत् । अस्य पीठशक्त्यादेरभावः।
ततः स्वर्णादिनिर्मितं यन्त्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्ध्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावहनादिपुष्पान्तैरुपचारैः सम्पूज्यावरण पूजां कुर्यात् तद्यथा।
इससे ध्यान करके मानसोपचारों से पूजा करके पीठादि पर रचित सर्वतोभद्रमण्डल में मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताओं की स्थापना करके ॐ मं मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताभ्यो नमः इससे पूजा करे। इसकी पीठशक्तियों आदि का अभाव है। इसके बादस्वर्णादि से निर्मित यन्त्र या मूर्ति को ताम्रपात्र में रखकर घी से उसका अभ्यन करके उस पर दुग्धधारा और जलधारा देकर स्वच्छ वस्त्र से उसे सुखाकर पीठ के बीच संस्थापित करके और प्राणप्रतिष्ठा करके, पुनः ध्यान करके, मूलमन्त्र से मूर्ति की कल्पना करके आवाहनादि से लेकर पुष्पान्त उपचारों से पूजन करके इस प्रकार आवरण पूजा करे
षट्कोण केसरों में आग्नेयादि चारों दिशाओं में और मध्य दिशा में ॐ क्षां हृदयाय नमः । हृदयश्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः।
इति सर्वत्र || १||
श्री शिरसे स्वाहा'। शिरः श्रीपा० ।। २।।
ॐ क्षू शिखायै वषट्। शिखा श्रीपा० || ३ ||
ॐ क्षै कवचाय हुम्। कवच श्रीपा० ।। ४ ।।
ॐ क्षीं नेत्रत्रयाय वौषट् । नेत्रत्रय श्रीपा० ।। ५ ।।
ॐ क्षः अस्त्राय फट् । अस्त्र श्रीपा० ।। ६ ।।
इससे षडङ्गों की पूजा करे। इसके बाद पुष्पाञ्जलि लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण करके :
'ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् || १|| यह पढ़कर और पुष्पाञ्जलि देकर पूजितास्तर्पिताः सन्तु यह कहे। इति
प्रथमावरण ||१||
इसके बाद अष्टदलों में पूज्य और पूजक के अन्तराल में प्राची तथा तदनुसार अन्य दिशाओं की कल्पना करके प्राची क्रम से :
ॐ अग्निलाख्याय नमः। अग्निलाख्यश्रीपा० ।। १।।
ॐ अग्निकेशाय नमः । अग्निकेश श्रीपा०|| २ ||
ॐ करालाय नमः' । करालश्रीपा० ।। ३ ।।
ॐ घण्टारवाय नमः । घण्टारवश्रीपा०|| ४ ||
ॐ महाकोपाय नमः। महाकोप श्रीपा०|| ५||
ॐ पिशिताशनाय नमः पिशिताशन श्रीपा०|| ६ ||
ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः। पिङ्गलाक्ष श्रीपा० ।।७।।
ॐ ऊर्ध्वकेशाय नमः ऊर्ध्वकेशश्रीपा०|८|
इससे आठों की पूजा करके पुष्पा अलि देवे। इसके बाद भूपुर में पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि दश दिक्पालों और वज्रादि आयुधों की पूजा करके बलि दे ।
'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति मन्त्रेण माषभक्तवलिं दत्त्वार्धरात्रे पुनर्बलिं दद्यात् । अस्य पुरश्चरणं लक्षजपः। तत्तदशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं कुर्यात्। एवं कृते क्षेत्रपालः प्रसन्नो भवति ।
तथा च 'लक्षमेकं जपेन्मन्त्रं जुहुयात्तद्दशांशतः। चरुणा घृतसिक्तेन ततः क्षेत्रे समर्चयेत् ।। १।। बलिनानेन सन्तुष्टः क्षेत्रापालः प्रयच्छति। कान्तिमेघाबलारोग्यतेजः पुष्टियशःश्रियः इति क्षेत्रपालनवाक्षरमन्त्रप्रयोगः ।। १।।
'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इस मन्त्र से उड़द और भात की बलि देकर आधी रात को पुनः बलि देवे।
इसका पुरवरण एक लाख जप है। फिर तत्तदशांश से क्रमश: होम, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन करवावें। ऐसा करने पर क्षेत्रपाल प्रसन्न होते हैं। कहा भी गया हैकि एक लाख मन्त्र का जप करे और उसका दशांश चरु और घी से होम करे। इसके बाद पूजन करे। इस बलि से सन्तुष्ट क्षेत्रपाल साधक को अक्षय कान्ति उत्कृष्ट मेधा अतुल बल,आरोग्य, प्रचंड तेज,पुष्टि अत्यंत यश और अक्षय लक्ष्मी देता है।
इति क्षेत्रपाल नवाक्षर मन्त्र सिद्धि प्रयोग समाप्त।