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मंगलवार, 23 नवंबर 2021

श्री श्यामा काली मन्त्र साधना

श्री श्यामा काली साधना


श्यामा काली साधना से लाभ

अब आप किसी भी संभव या असम्भव कार्य का मन में संकल्प कर, शनिवार के दिन माता काली तस्वीर के समक्ष धूप-दीप जगाकर, एक माला तो वह कार्य चमत्कारिक ढंग से पूर्ण हो जायेगा।

भगवती महाकाली की कई स्वरूपों में साधना की जाती है विशेष तौर पर श्री आद्या शक्ति महाकाली के "श्यामा काली" स्वरूप की साधना करने वाले साधक के हाथ में किसी का भी जीवन व मृत्यु प्रदान करने की क्षमता हो जाती है तथा वह अनेक प्रकार के चमत्कारों को जन्म देने वाला हो जाता है। साधक इस साधना के माध्यम से किसी भी जातक अथवा याचक के भूत भविष्य वर्तमान के विषय में जान सकता है और उसकी कही हुई हर बात सत्य प्रमाणित होती है 


साधना विधि- यह साधना किसी भी अमावस्या की रात्रि में आरम्भ करें। रात्रिकाल ठीक बारह बजे घर के एकान्त कमरे में दक्षिण दिशा में आम लकड़ी से बने सिंहासन स्थापित करें। सिंहासन पर काला वस्त्र बिछा दें और स्वयं भी काला वस्त्र ही धारण करें। सिंहासन के ऊपर माता काली की तस्वीर स्थापित करें। तस्वीर के आगे तांबे के प्लेट में- भगवती श्यामा काली का यंत्र स्थापित करें। इसके पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती और सिंहासन के चारों कोणों में चौमुखी दीपक (तिल के तेल से) जगावें। इसके पश्चात् दाहिने हाथ की अंजुली में जल लेकर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर

शरीर को पवित्र करें। मंत्र समाप्ति के बाद अंजुली का जल अपने शरीर पर छिड़क लें।

शरीर पवित्र करने का मंत्र:- ॐ अपवित्र / पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत पुण्डरी काक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचि ॥ॐ पुण्डरी काक्ष पुनातु ॥

नोट- अब नीचे लिखित मंत्र का 21 बार जप करें

"ॐ गं गणपतये श्री श्यामा काली सिद्धि देहु नमो नमः" । इसके पश्चात् "श्यामा काली यंत्र" पर जल, अक्षत, चन्दन, बिल्वपत्र व पुष्प चढ़ायें। तत्पश्चात् गुरूदेव को नमस्कार करें। 

अब दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग मंत्र परे । 

श्री श्यामा काली विनियोग मंत्र:-

ॐ अस्य श्री श्यामा कालिका मंत्रस्य भैरव ऋषिः, उष्णिक्छंदः, श्यामा कालिका देवता, हीं, बीजं, शक्ति, क्रीं कीलकं मम अभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

नोट- अब "ऋष्यादि न्यास" करन्यास "हृदयादि न्यास" विधि सम्पन्न करें। न्यास करने की विधि महाकाली साधना शीर्षक में वर्णित है।]

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श्री श्यामा काली ऋष्यादि न्यास

ॐ भैरव ऋष्ये नम-सिर स्पर्श करें।
ॐ उष्णिक छंदसे नमः-मुख स्पर्श करें। 
ॐ श्यामा कालिका देवतायै नमः- हृदय स्पर्श करें।
ॐ ह्रीं बीजाय नमः- गुदा का स्पर्श करें। 
ॐ हुं शक्त्ये नमः- दोनों तलवे का स्पर्श करें। 
ॐ क्रीं कीलकाय नमः-नाभि स्पर्श करें।

ॐ बिनियोग नमः- सर्वांग शरीर का स्पर्श करें। । श्यामा काली "करन्यास"

“ॐ क्रां अंगुष्ठाय नमः"-मंत्र बोलकर तर्जनी को मोड़कर अंगूठे की जड़ से जहां मंगल का क्षेत्र है वहां स्पर्श करें

,“ॐ क्रीं तर्जनीभ्यां नमः"-मंत्र उच्चारण करते हुए अंगूठे की नोक से तर्जनी का छोर का स्पर्श करें।

"ॐ कुं मध्यमाभ्यां नमः" -मंत्र उच्चारण करते हुए अंगूठे से मध्यमा के अन्तिम भाग का स्पर्श करें।

“ॐ क्रैं अनामिकाभ्यां नमः"- मंत्रोच्चारण करते हुए अनामिका का स्पर्श करें। 

“ॐ क्रौं कनिष्ठकाभ्यां नमः"- मंत्रोच्चारण करते हुए कनिष्ठका उँगली के अन्तिम भाग के साथ अंगूठे की नोक का स्पर्श करें। 

“ॐ क्रः करतल पृष्टाभ्यां नमः"- यह मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों की हथेलियों

को एक दूसरे के ऊपर नीचे दो बार घुमावें। नोट- अब हृदयादि न्यास क्रिया सम्पन्न करें। पद्मासन की मुद्रा में बांया हाथ

पर रखे हुए दाहिने हाथ की पांचों उँगलियों से निम्नलिखित अंगों का स्पर्श करें श्री श्यामा काली हृदयादि न्यास

घुटनों

ॐ क्रां हृदयाय नमः, 
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा 
ॐ क्रं शिखाये वषट् 
ॐ क्रैं कवचाय हुम, 
ॐ क्रौं नेत्रयोय वौषट,
 ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।

श्री श्यामा काली कवच पाठ

शिरो में कालिका पातु क्रींकार काक्षरी परा। की क्रीं क्रीं मे ललांट च कालिका खड़ग धारिणी। हुं हुं पातु नेत्रयुग्मं ह्रीं ह्रीं पातु श्रुतिं मम । श्यामा कालिके पातु प्राण युग्मं महेश्वरि ॥ क्रीं क्रीं क्रीं रसना पातु हुं हुं पातु कपोलकम् । वदनं शकलं पातु हीं हीं स्वाहा स्वरूपिणी ।। द्वादश विंशत्यक्षरी स्कन्धी महाविद्या सुख प्रदा। खड़ग मुंडधरा काली सर्वांग मभितोऽवतु ।। क्रीं हुं हीं त्र्यक्षरी पातु चामुण्डा हृदय मम । ऐं हुं ॐ ऐं स्तनद्वयं हीं फट् स्वाहा ककुत्स्थलं ॥ अष्टाक्षरी महाविद्या भुजौ पातु सकर्ऋका। क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं करौ पातु षडक्षरी मम॥ क्रीं नाभिमध्य देशं च दक्षिणे कालिके ऽवतु। क्रीं स्वाहा पातुपृष्ठंतु कालिका सा दशाक्षरी ॥ ह्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके हुं हीं पातु कटिद्वयं । काली दशाक्षरी विद्या स्वाहा पातूरूयुग्मकम् ॥ ॐ ह्रीं क्रीं में स्वाहा पातु कालिका जानुनी मम। काली हन्नामविद्येयं चतुषटी फलप्रदा ॥ क्रीं ह्रीं ह्रीं पातु गुल्फं श्यामा कालिका वतु। क्रीं हुं ह्रीं स्वाहा पदं पातु चतुर्दशाक्षरी मम ॥ खड़ग मुण्ड धरा काली वरदा भयहारिणी। विद्याभिः सकलाभिः सा सर्वान्ग मभितोऽवतु ॥ काली कपालिनी कुल्ला कुरूकुल्ला विरोधिनी। विप्र चिंता तथोग्रोग्र प्रभा दीप्ताधनस्विषा । नीला धना बालिका च माता मुद्रामित प्रभा। एता सर्वाः खड़गधरा मुंडमाला विभूषिता ॥ रक्षेतु मां दिक्षुदेवी ब्राह्मणी नारायणी तथा । माहेश्वरी य चामुण्डा कौमारी चौपराजिता । बाराही नारसिंही च स्वश्चामित भूषणा ।रक्षंतु स्वायुधै र्दिक्षु मां विदिक्षु यथा तथा ॥ 

विशेष- अब मातेश्वरी श्यामा काली का हाथ जोड़कर, निम्न करते हुए ध्यान वन्दना पाठ करें।

श्री श्यामा काली ध्यान वन्दना पाठ

गोराशी चतुर्भुजम् । कालिको श्यामा दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥ सान्नि शिर खड्गवा अभयं वरदं चैव दक्षिणोर्ध्व पाणिकाम् ॥ महामेष प्रभो श्यामां तथा चैव दिंगबराम्। कंटवक्त मुंडापताम्॥ कर्णावतं सतानीत शव भयानका। घोर दष्ट्रा करालास्यां पीनोन्नत पयोषराम् ॥ बालार्कमंडलाकारों लोवीन यान्वितम्। शवानां करसंघातेः कृतकांची हसमुखी ।। सुक्क दयगल दरक्त धारा विस्फरतानता। पोररूपा महारौद्री श्मशानालय वासिनिम्। दंतुरो दक्षिणा प्यापि मुक्तलंबक घोळयाम्। शिवामियर रूपाभिश्चतुर्दिश समन्निवताम् ॥ महाकालेन साध्य तुर्दिश समन्विताम्। महाकालेन सार्योध्यमुपविष्टर तातुराम सुख प्रसन्न वदना स्मेरानन सरोरुहाम्। एवं संचितये काली सर्वसिद्धि समुद्रिदाम् ॥

विशेष- अब मातेश्वरी श्यामा काली की सिद्धि हेतु रूद्राक्ष की माला में मंत्र जय आरम्भ करें। ग्यारह माला या 21 माला जप नित्य रात्रि तब तक करते रहे जब तक दो लाख मंत्र जप पूर्ण न हो जाये।

श्री श्यामा काली सिद्धि मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं पमेश्वरि श्यामा कालिके ह्रीं श्रीं क्रीं स्वाहा । 

नोट-मंत्र जप समाप्ति होने वाली रात्रि के दूसरे दिन की रात्रि में आम की लकड़ी पर आग जलाकर उपरोक्त मंत्र उच्चारण करते हुए, हवन सामग्री से दशांश हवन में आहुति डालें। 

तत्पश्चात् माता श्यामा काली की आरती उतारें। 

फिर 5 ब्राह्मण एवं 11 कुमारी कन्यावों को मीठा भोजन करावें। 

इतना करने से आपकी साधना सम्पन्न हो जाएगी।

आपके अपने कर्म आपके हाथों में है जानभूझ कभी भी किसी का बुरा ना करें।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...