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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

श्री झूलेलाल चालीसा।


                   "झूलेलाल चालीसा" 

मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥ 

श्री झूलेलाल चालीसा 
दोहा :-जय जय जय जल देवता,   जय जय ज्योति स्वरूप। अमर उडेरो लाल जय,जय जय श्री झूले लाल अनूप।। 

चौपाई 
रतनलाल रतनाणी नंदन । 
जयति देवकीसुत जगवंदन ॥1।। 

दरियाशाह वरुण अवतारी । 
जय जय लाल साईं सुखकारी ॥2।। 

जय जय होय धर्म की भीरा । 
जिंदा पीर हरे जन पीरा ॥3।। 

संवत दस सौ सात मंझारा ।
चैत्र शुक्ल द्वितिया के वारा ॥4॥ 

ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा । 
प्रभु अवतरे सब मिटे क्लेशा ॥5।। 

सिन्धु वीर ठट्ठा रजधानी । 
मिरखशाह नृप अति अभिमानी ॥6।। 

कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी । 
यवन मलिन मन अत्याचारी ॥7।। 

धर्मान्तरण करे सब केरा । 
दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ॥8॥ 

पिटवाया हाकिम ढिंढोरा । 
हो इस्लाम धर्म चहुँओरा ॥9।। 

सिन्धी प्रजा बहुत घबराई । 
इष्ट देव को टेर लगाई ॥10।। 

वरुण देव पूजे बहुभांति । 
बिन जल अन्न गए दिन राती ॥11।। 

सिंधु तीर तब दिन चालीसा । 
सब घर ध्यान लगाये ईशा ॥12॥ 

गरज उठा नद सिंधू सहसा । 
चारों और उठा नव हरषा ॥13।। 

वरुणदेव ने सुनी पुकारा । 
प्रकटे वरुण मीन असवारा ॥14।। 

दिव्य पुरुष जल ब्रह्म स्वरुपा । 
कर पुस्तक नवरूप अनूपा ॥15।। 

हर्षित हुए सकल नर नारी । 
वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥16॥ 

जय जय कार उठी चहुँओरा । 
गई रात       आई नव भोरा ॥17।। 

मिरख नृपौ जो अत्याचारी । 
नष्ट करूँगा शक्ति सारी ॥18।।
 
दूर अधर्म करन भू भारा । 
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥19।। 

रतनराय रतनाणी आँगन । 
आऊँगा उनका शिशु बनकर ॥20॥

रतनराय घर खुशियां आई ।
अवतारे सब देय बधाई ॥21।। 

घर घर मंगल गीत सुहाए । 
झुलेलाल हरन दुःख आए ॥22।।

मिरखशाह तक चर्चा आई । 
भेजा मंत्रि क्रोध अधिकाई ॥23।। 

मंत्री ने जब बाल निहारा । 
धीरज गया हृदय का सारा ॥24॥ 

देखि मंत्री साईं की लीला । 
अति विचित्र मनमोहनशीला ॥25।। 

बालक दिखा युवा सेनानी ।
 देख मंत्री बुद्धि चकरानी ॥26।।
 
योद्धा रूप दिखे भगवाना । 
मंत्री हुआ विगत अभिमाना ॥27।। 

झुलेलाल तब दिया आदेशा । 
जा तव नऊपति कह संदेशा ॥28॥ 

मिरखशाह कह तजे गुमाना । 
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥29।।

बंद करो नित अत्याचारा ।
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥30।। 

लेकिन मिरखशाह अभिमानी । 
वरुणदेव की बात न मानी ॥31।। 

एक दिवस हो अश्व सवारा । 
झुलेलाल गए दरबारा ॥32॥ 

मिरखशाह ने आज्ञा दे दी । 
झुलेलाल बनाओ बन्दी ॥33।। 

किया स्वरुप वरुण का धारण । 
चारो और हुआ जल प्रलय ॥34।। 

दरबारी तब डूबे उतराये । 
नृप के होश ठिकाने आये ॥35।। 

मिरख शाह तब शरणन आई । 
बोला धन्य धन्य जय साईं ॥36॥ 

वापिस लिया नृप निज आदेशा । 
दूर हुआ सब जन का क्लेशा ॥37।। 

संवत दस सौ बीस मंझारी । 
भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ॥38।। 

भक्तों की हर विपदा व्याधि । 
जल में ली जलदेव समाधि ॥39।। 

जो जन धरे आज भी ध्याना । 
श्रीझूलेलाल करें कल्याणा ॥40॥ 

॥ दोहा ॥ 
यह चालीसा पढ़े जो कोई उसका जीवन सुखमय होई। 
दिन चालीस करे व्रत जोई मनवांछित फल पावै सोई।। ॥ 

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जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।   यहाँ मैं स्...