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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

अघोरास्त्र मन्त्र साधना से असंभव काम भी संभव।

   
।।अघोरास्त्र मंत्र साधना से असंभव भी संभव।।
○जिसके स्मरण मात्र से मनुष्यों के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं। अघोरास्त्र मंत्र का जप महामारी, राजकीय उपद्रव, प्रेत बाधा, शत्रु बाधा, ग्रह दोष, असामयिक गर्भपात शान्ति हेतु किया जाता है। अघोर मंत्र से क्षुद्र व्याधि जैसे कुष्ठरोग, तपेदिक, कैंसर,पक्षाघात आदि से मार्ग निवृत्ति होती है। जीवन में अकस्मात् उत्पन्न होने वाले अवरोध स्वतः ही विलुप्त हो जाते हैं तथा सर्वाभीष्ट सिद्धि से निवृत्ति होती है। ग्रहपीड़ा का शमन होता है। प्रेतपीड़ा बिल्कुल लुप्त हो जाती है तथा सर्वाभीष्ठ सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।ऐसा तन्त्र शास्त्रों में वर्णित है।

○यह शान्ति गृह रोग आदि को शान्त करने वाली तथा महामारी एवं शत्रु का मर्दन करने वाली है। 

○विघ्न कारक गणों के द्वारा उत्पादित उत्पाद को भी शान्त करती है मनुष्य अघोरास्त्र का जप करे। 

○एक लाख जप करने से ग्रह बाधा आदि का निवारण होता है और तिल से दशांश होम कर दिया जाये तो उत्पातों का नाश होता है। 

○एक लाख जप-होम से दिव्य उत्पात का तथा आधे लक्ष जप-होम से आकाश उत्पाद का नाश होता है 

○घी की एक लाख आहुति देने से भूमि उत्पात के निवारण में सफलता प्राप्त होती है। 

○घृत मिश्रित गुग्गुल के होम से सम्पूर्ण उत्पात आदि का शमन होता है। 

○दूर्वा, अक्षत तथा घी की आहुति देने से सारे रोग दूर होते हैं। 

○केवल घी की एक सहस्र आहुति से बुरे स्वप्न नष्ट हो जाते हैं, इसमें संशय नही है।

○वही आहुति यदि दस हजार की संख्या में दी जाय तो ग्रहदोष का शमन होता है। 

○घृत मिश्रित जौं की दस हजार आहुतियों से विनायक जनित पीड़ा का निवारण होता है। 

○दस हजार घी आहुतियों से तथा गुग्गुल की भी दस हजार आहुतियों से भूत-वेताल आदि की शान्ति होती है। 

○जब वृक्ष आंधी आदि से स्वतः उखड़कर गिर जाय, घर में सर्प का कंकाल हो तथा वन में प्रवेश करना पड़े तो दूर्वा, घी और अक्षत के होम से विघ्न की शान्ति होती है 

○उल्कापात या भूकम्प हो तो तिल और घी से होम करने से कल्याण होता है वृक्षों से रक्त बहे, असमय में फल-फूल लगें, राष्ट्र भंग हो, मारणकर्म हो, जब मनुष्य-पशु आदि के लिए महामारी आ जाय तो तिल मिश्रित घी से अर्थ लक्ष आहुति देनी चाहिए ।

○असमय में गर्भपात हो या जहाँ बालक जन्म लेते ही मर जाता हो तथा जिस घर में विकृत अंग वाले शिशु उत्पन्न होते हों तथा जहाँ समय पूर्ण हाने से पूर्व ही बालक का जन्म होता हो, वहाँ इन सब दोषों केशमन के लिए दस हजार आहुतियां देनी चाहिये। 

○सिद्धि साथन में तिल मिश्रित घी से एक लाख हवन किया जाय तो वह उत्तम है, मध्यम सिद्धि के साधन में अर्थलक्ष और अधम सिद्धि के लिए पचीस हजार आहुति देनी चाहिये। जैसा जप हो , उसके अनुसार ही होम होना चाहिये। इससे संग्राम में विजय प्राप्त होती है 

○न्यासपूर्वक तेजस्वी पंचमुखी शिव का ध्यान करके 'अघोरास्त्र' का जप करना चाहिये।

  

इस मन्त्र अनुष्ठान के पूजन में यह शिव यन्त्र प्रयोग होता है।


○विधि - सर्वप्रथम अपने गुरुदेव से इस मंत्र की दीक्षा लें। जो व्यक्ति बिना गुरूमुख से मंत्र लिए केवल पुस्तकों से पढकर मंत्र जप करता है वह घोर नरक का अधिकारी होता है एवं करोड़ो जप करने पश्चात भी उसे सिद्धि नही मिलती। 

○मन्त्र:- 'ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बन्ध बन्ध घातय घातय हुं फट्'

○यह विद्या बहुत ही उग्र है इसलिए योग्य गुरू के सान्निध्य में ही प्रारम्भ करें

○प्रारम्भिक पूजा करने के पश्चात भगवान शिव के पंचमुखी का निम्नलिखित मंत्रों से पूजन एवं ध्यान करना चाहिये।

○ईशान (ईशान मुख ) यह क्रीड़ा का मुख है। जितने भी मनोरंजन, खेल, विज्ञान आदि हैं, ये सभी शिव के इसी मुख द्वारा संचालित होते हैं। 
○पूजन मंत्र : ॐ ईशानाय नमः । ॐ ईशानः सर्व विद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां बृह्माधिपतिर्ब्रह्मणो अधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम्।

○तत्पुरुष (पूर्व दिशा)यह मुख पूर्व दिशा की ओर है यह तपस्या का मुख है। साधना, पढ़ाई-लिखाई, इच्छा व लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाने वाला प्रत्येक कार्य इसी मुख से संचालित होता है।
○पूजन मंत्र : ॐ तत्पुरुषाय नमः । ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय महि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।

○अघोर (दक्षिण दिशा) यह शिव का रौद्रमुख है संसार में जो युद्ध, आपदाएं, मृत्यु आती हैं, वो सभी शिव के इसी मुख से संचालित होता है। यह न्याय भी करता है और पाप का दंड भी देता है। आपदाशांति के लिए अघोर-उपासना इसीलिए की जाती है। यह शिव का मध्यमुख है।
○पूजन मंत्र : ॐ अघोराय नमः। ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः सर्वतः सर्वसर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रूद्ररूपेभ्यः ।

○वामदेव (पश्चिम मुख ) यह अंहकार का रूप है। हमारे अहंकार, गर्व, प्रेम, मोह, आसक्ति आदि इसी मुख के कारण इस संसार में दिखते हैं।
○पूजन मंत्र : ॐ वामदेवाय नमः। ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बालाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय  नमः ।

○सद्योजात (उत्तर मुख ) यह ज्ञान का मुख है। यह शिव का अतिशालीन रूप है। शिव के इसी रूप की सबसे ज्यादा आराधना होती है।
○सद्योजात (उत्तर मुख ) यह ज्ञान का मुख है। यह शिव का अतिशालीन रूप है। शिव के इसी रूप की सबसे ज्यादा आराधना होती है। पूजन मंत्र : ॐ सद्योजाताय नमः। ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमो भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय ।


○स्नान इत्यादि से निवर्त होकर आचमन करें फिर सीधे हाथ में जल लेकर विनयोग करें -                   विनियोग : ॐ अस्य श्री अघोरास्त्र मंत्रस्य, अघोर ऋषिः, त्रिष्टुप छंदः अघोर रुद्रदेवता, ह ल बीज, स्वराः शक्तिं। सर्वोपद्रव शमनार्थे जपे विनियोगः।

○करन्यासः ह्रीं स्फुर स्फुर अंगुष्ठाभ्याम् नमः             प्रस्फुर प्रस्फुर तर्जनीभ्याम् नमः                             घोर घोर-तर तनुरूप मध्यमाभ्याम् नमः                   चट चट प्रचट प्रचट अनामिकाभ्याम् नमः।                कह कह वम वम कनिष्ठिकाभ्याम् नमः                     बंध बंध घातय घातय हुँ फट् करतलकरपृष्ठाभ्यां

○षडङ्गन्यासः ह्रीं स्फुर स्फुर हृदयाय नमः।              प्रस्फुर प्रस्फुर शिरसे स्वाहा                                   घोर घोर-तर तनुरूप शिखायै वषट्                         चट चट प्रचट प्रचट कवचाय हुम्।                          कह कह वम वम नेत्रत्रयाय वौषट                           बंध बंध घातय घातय हुँ फट् नमःअस्त्राय फट
 
न्यास करने के पश्चात भगवान शिव का ध्यान करें -

○ध्यानम् सजल घनसमाभं भीम दंष्टं त्रिनेतं भुजगधरमघोरं हारक्त वस्त्रान रागाम्। परशु डमरू खडगान् खेटकं वाण चापौ त्रिशिखि नर कपाले विभ्रतं भावयामि ।। अभिचारे ग्रहध्वंसे कृष्णवर्णो भवेद्विभुः वश्ये कुसुम्भसङ्काशो मुक्तौ चन्द्रसमप्रभः

○जल युक्त बादल के समान जिनके शरीर की कान्ति हैं, जिनकी दंष्ट्रा अत्यन्त भयानक है जो तीन नेत्रों से युक्त तथा साँपों को धारण करने वाले हैं - ऐसे रक्त वस्त्र एवं रक्त अङ्गराग से भूषित परशु, डमरू, खङ्ग, खेटक, बाण, चाप, त्रिशुल तथा नर कपाल को धारण करने वाले अघोर का मैं ध्यान करता हूँ ये अघोर प्रभु , मारण तथा ग्रहों के विनाश काल में कृष्ण वर्ण और वश्यकार्य में कुसुम्भ के सदृश तथा मुक्ति कार्य में चन्द्रमा के समान रूप धारण करते हैं।

○अग्नि पूराण के अनुसार अघोर मंत्र का एक लक्ष जप करके दशांश होम करें। साधक रात्रि में, अपामार्ग समिध तिल सरसों एवं पायस से अयुत होम या सहस्त्राहुति देवे तो कृत्या व भूतों का नाश होता

○अघोरास्त्र मंत्र के साथ में नियमित रूप से शिव गायत्री एवं शक्ति मंत्र का जप करना चाहिये । उत्तम फल प्राप्ति के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढाना चाहिये एवं नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र का पाठ करना चाहिये।

○। श्रीनीलकण्ठ अघोरास्त्र स्तोत्रं।। 
○विनियोग:-ॐ अस्य श्री भगवान नीलकण्ठ सदा-शिव-स्तोत्र मंत्रस्य श्री ब्रह्माऋषिः, अनुष्ठप् छन्दः,श्रीनील-कण्ठ सदाशिवो देवता ब्रह्म बीजं, पार्वती शक्तिः , मम समस्त-पाप-क्षयार्थं क्षेम-स्थैर्यायुरारोग्याभि-वृद्धयर्थ मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनाथं च श्रीनील-कण्ठ-सदा-शिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

○ऋष्यादिन्यासः श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि।         अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे।                          श्रीनीलकण्ठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि।      ब्रह्म-बीजाय नमः लिङ्गे।                          पार्वती-शक्त्यै नमः नाभौ।

○मम समस्त पापक्षयार्थ क्षेमस्थायरारोग्याभि-वृद्धयर्थ मोक्षादि चतुर्वगं साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

                              ।। स्तोत्रम् ।।

○ॐ नमो नीलकण्ठाय, श्वेतशरीराय, सालंकारभूषिताय, भुजङ्गपरिकराय, नागयज्ञोपवीताय, अनेकमृत्यु विनाशाय नमः। युग युगान्त कालप्रलय प्रचण्डाय, प्रज्वाल-मुखाय नमः। दंष्ट्राकराल घोररूपाय हूं हूं फट् स्वाहा। ज्वालामुखाय मंत्र करालाय, प्रचण्डार्क सहस्त्रांशु-चण्डाय नमः। कर्पूर मोद-परिमलाङ्गाय नमः। ऊँ ई ई नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि-माणिक्य मुकुट भूषणाय, हन-हन-हन-दहन-दहनाय श्रीअघोरास्त्र मूल मंत्र-ऊँ हां ॐ ह्रीं ॐ हूं स्फुर अघोर-रूपाय रथ रथ तंत्र-तंत्र-चट्-चट्-कह-कह-मद मद-दहन-दाहनाय श्री अघोरास्त्र-मूल-मंत्र-जरा-मरण-भय-हूं-हूं फट्स्वाहा।अनन्ताघोर-ज्वर-मरण-भव-क्षय-कुष्ठ-व्याधि-विनाशाय, शाकिनी-डाकिनी ब्रह्मराक्षस-दैत्य-दानव-बन्धनाय, अपस्मार-भूत-बैताल-डाकिनी-शाकिनीसर्व-ग्रह-विनाशाय, मंत्र-कोटि-प्रकटाय, पर-विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा। आत्म-मंत्र संरक्षणाय नमः। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं नमो भूत-डामरी-ज्वाल-वश-भूतानां-द्वादश-भूतानां त्रयोदश षोडश-प्रेतानां पञ्च-दश-डाकिनी-शाकिनीनां हन हन। दहन-दार-नाथ एकाहिक-द्वयाहिक-त्र्याहिक-चातुर्थिक- पञ्चाहिक-व्याघ्र-पादान्त-वातादिवात-सरिक-कफ- पित्तक-काश-श्र्वास-थ्रलेष्मादिकंदह-दह,छिन्धि-छिन्धि, श्रीमहादेव-निर्मित-स्तंभन-मोहन-वश्याकर्षणोच्चाटन-कीलनोद्वेषण-इति षट् कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा। वात ज्वर, मरण-भय, छिन्न-छिन्न नेह नेह भूतज्वर, प्रेतज्वर, पिशाचज्वर, रात्रिज्वर, शीतज्वर, तापज्वर, बालज्वर, कुमारज्वर, अमितज्वर, दहनज्वर, ब्रह्मज्वर, विष्णुज्वर, रुद्रज्वर, मारीज्वर, प्रवेशज्वर, कामादि-विषम ज्वर, मारी-ज्वर, प्रचण्ड-घराय, प्रमथेश्ववर! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा। ॐ नमो नीलकण्ठाय, दक्षज्वर-ध्वंसनाय, श्रीनीलकण्ठाय नमः।

○फलश्रुति सप्तवारं पठेत् स्तोत्रं, मनसा चिन्तितं जपेत् । तत्सर्वं कार्यसुफलं प्राप्तं, शिवलोकं स गच्छति।।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...