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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

प्रेतत्व से मुक्ति

                      प्रेतत्व से मुक्ति।
अगर आपका कोई अपना प्रेत योनि को हुआ है तो इस लेख को पूरा पढ़े।
मेरा ये दावा है कि अगर आप मेरे इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे तो आपको अपनी समस्या का समाधान अवश्य मिलेगा।
पितृपक्ष के बहुत दिन बीत चुके है लेकिन ये लेख आपके बहुत काम आएगा।
किसी भी जीव के पूर्व कर्म ही उसकी वर्तमान दशा का निर्धारिकर्ण करते हैं।पूर्व के संचित कर्म से मनुष्य अपनी वर्तमान दशा को भोगता है ये बात तो स्पष्ट है।
पूरे जीवन में जो लोग धर्म और राम को कोसते है लेकिन कभी वो अपने मनसा वांचा कर्म गत कार्यों को अनदेखा करते रहते हैं और जिस राम को वे लोग जीवित रहते हुए कोसते है अन्तोगत्वा वही श्री राम का नाम उनके लिए इस संसार रूपी सागर से पार करने का साधन बनता है मनुष्य इतना कृतघ्न है कि अपने अहम के सामने अपने अंत को भी भूल जाता है।
  (मुख्य दो कारणों के कारण ही जीव प्राप्त होता है)
1.जब किसी जीव का कोई संकल्प अधूरा या इच्छा अधूरी  रह जाए।
2.जिस आदमी का अंतिम संस्कार अधूरी विधि से हो या ना हो तो वो भी प्रेतयोनि को प्राप्त करता है।
धर्म की दृष्टि से अगर देखा जयें तो ये एक कटुसत्य है एक आधुनिकीकरण से मनुष्यों को जितना लाभ प्राप्त हुआ है तो उतना ही संस्कृति का विनाश भी हुआ है आज का दौर ऐसा है कि आज तो आदमी को बिजली के यंत्र में जलाया जाने लगा है पर्यावरण की दृष्टि से ये एक अच्छी बात हो सकती है लेकिन अगर शास्त्र मर्यादा की बात की जायें तो
कपालक्रिया ना होने के कारण मृतक का प्रेतयोनि में जाना लगभग तय होता है और ये जो अंतिम संस्कार की विधि है वह किसी भी तरीके से पूरी नहीं मानी जा सकती आप फिर प्रेत बनना तो शत प्रतिशत तय हो जाता है।
कुछ महीनों पहले मुझे आसाम जाने का मौका मिला अंतिम संस्कार क्रिया का भयानक रूप  देखने को मिला यहां रात्रि में भी चिता जला दी जाती है आधी रात को भी ये सभ कुछ मैन अपनी आँखों से देखा कोई मर्यादा नही जो व्यक्ति एक परिवार का एक अभिन्न हिस्सा था आज परिवार जन उसको बिना शास्त्रिक मर्यादा के एक नदी के किनारे आधे जले हुए शव को लाठियों से पीट पीट कर उसकी जली हुई राख को झाड़ रहे थे उसे 2 से 3 बार ऐसे ही लाठी मार मार कर झाड़ा गया अंत में तेज पानी के प्रेशर से नदी में प्रवाहित कर दिया गया  अब जिस मृतक की क्रिया ही गलत हुई वो कैसे प्रेत योनि से मुक्त होगा ।
यह जीव तब तक इस संसार में प्रेतयोनि धारण करके अपने परिवार और घर में ही विचरण करते रहते हैं और परिवार को नाना प्रकार से पीड़ित करते रहते हैं जब तक इनकी आयु पूरी नहीं होती क्योंकि गरुड़ पुराण के मत अनुसार कलयुग में मनुष्य का जीवन काल 120 वर्ष का है लेकिन आजकल के जीवन शैली के अनुरूप मनुष्य का जीवन मात्र 50-60 सालों तक ही सिमट गया है बड़ी विडंबना की बात है तो आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार यह प्रेत तत्व को मृतक जीव प्राप्त होता है
और किस प्रकार से इस का निदान संभव है । और इस विषय के ऊपर विस्तृत जानकारी दी जाएगी अंत में आपको इसके निराकरण और कुछ उपाय भी बताए जाएंगे कि किस प्रकार  प्रेतत्व से जीव को निवृत्त कराया जा सकता है
*(प्रेत पीड़ा के कारण ये समस्याएं होने लगती हैं)***
1.जब स्त्रियों का ऋतुकाल निष्फ़ल हो जाता है.
2.कितनी भी दवा इलाज से वंश की वृद्धि नहीं होती,
3.अल्पायु में किसी परिजन की अकास्मिक मृत्यु हो जाती है.
4.अच्छे भले में विचित्र सी कोई मानसिक या शारिरिक परेशानी महसूस होने लगे तो उसे प्रेत पीडा मानना चाहिए.
5.पीड़ित की अचानक ही आजीविका छिन जाती है,
6.पीड़ित व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है.
7.एकाएक घर में आग लग जाए,बार बार घर में सांप निकलने लगे।
8.घर में नित्य प्रति कलह रहने लगे,
9.बहुत समय से जमा-जमाया व्यापार एकदम नष्ट हो जाय,
10.हर तरफ़ से हानि हो,
11.अच्छी वर्षा होने पर भी कृषि नष्ट हो जाय,या झाड़ खत्म हो जयें फसल में रोग हो जाए।
12.स्त्री अनुकूल न रहे कलेशी हो या बिना किसी बात के मुकदमा कर दे।
13.घर की मुख्य या जवान स्त्री का जिस्म अक्सर भारी रहना खासकर कंधे,या पीठ पर दर्द या वज़न का रहना कईबार सवारी जैसे हालात हो जाते है और बहुत ही ज्यादा गंदे सपने लगातार आना।
14.घर के बच्चों का अक्सर बीमार रहने लगे उनकी शिक्षा और संस्कार बाधित हो तो ये सामान्य लक्षण हैं प्रेत बाधा के।यदि ऐसी पीड़ा घर में होने लगे तो पितरों को प्रेतत्व से मुक्ति कराने के विशेष प्रयास करने चाहिए.
मृतक का मृत्यु के समय दशगात्र पिंडदान और वृषोत्सर्ग कराना परम आवश्यक होता है.
यह कार्य कार्तिक की पूर्णिमा या आश्विन मास के मध्यकाल में करते हैं. यह संस्कार रेवती नक्षत्र से युक्त पुण्य तिथि में भी कर सकते हैं।
अब बात करेंगे इस समस्या के उपचार की रोग के अनुपात में औषधि देनी होगी है तब ही किए गए उपचार से लाभ मिलता है वरना नही सामान्य बात है कि तराज़ू के एक पलड़े मैं यदि 1 किलोग्राम वज़न है तो दूसरे में भी 1 किलोग्राम ही रखना पड़ेगा जब हम लोग कोई पाप करते है तो हमारी बुद्धि काम नहीं करती और एक बहुत छोटे से पाप से भी मनुष्य को पूरे जीवन भरकष्ट भोगना पड़ सकता है आप चाहे लाखो रूपए लगाकर कितना भी बड़ा अनुष्ठान करवा लो तो भी बिना श्रद्धा के सभ कुछ बेकार है ।
***।उपचार।***
1.माता पिता की सेवा करें और उन्हें हमेशा खुश रखें।
2.पित्र संहिता का पाठ करवाएं।
3.पित्र गायित्री से भी बहुत आराम मिलता है।
4.पित्र पक्ष में श्राद्ध कर्म जरूर करें।और पितृपक्ष में संयम से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और मांसाहार से दूर रहें।
5.किसी भी जानकर या संबधी की मृत्यु होने पर पिंडदान और गरुड़पुराण का पाठ वअवश्य करवाएं।
6.नारायण बलि का यज्ञ विधिवत रूप से करवाने से 7.पितृदोष दूर होता है और मृतक जनों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है।
8.शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्रीमद्भागवत पुराण कथा करवाने से पित्र दोष प्रेतबाधा से सदा सर्वदा के लिए मुक्ति मिलती है।
9.जिस घर में भगवद्गीता का पाठ होता है उस घर में प्रेतदोष नही रहता और गर्भगीता के पाठ से प्रेतयोनि से मुक्ति होती है।
10.घर में नित्यप्रति गाय के गोबर के कंडे पर देसी घी की गूगल और बतासे या गुड़ मिलाकर होम देने से पित्र खुश होते है।
11.गाय माता की सेवा या गोदान करने से साधक के सात कुल तर जाते है।
12.ब्राह्मण को या  कुलप्रोहित को दान देने से पित्र प्रसन्न  
होते है। कभी भी अपना कुलप्रोहित ना बदलें।
13.गायित्री यज्ञ और अनुष्ठान भी करवाया जा सकता है।
14.कुलप्रोहित कभी नही बदलना चाहिए। और उनका यथायोग्य दक्षिणा देकर सम्मान करें।
15.भगवान विष्णु की आराधना करने से और एकादशी, त्रयोदसी, या पूर्णिमा का आजीवन व्रत करने से भी पित्र खुश होते हैं।
16.दान करना धर्म संगत है लेकिन उससे पहले आपमे दान से अधिक श्रद्धा होनी चाहिए।
17.प्रति रविवार को या प्रति रात्रि सोने से पहले घर के मुख्य सदस्य द्वारा घर की दक्षिणी दीवार में तिल्ली के तेल का दीपक पितरो की शांति हेतु लगाने से बहुत लाभ मिलता है।
यहां पर मैं आप लोगों से एक साबर मन्त्र की साधना दे रहा हु मैं आशा करता हूँ कि इस साधना से आप को बहुत लाभ होगा इसको मैने बहुत लोगों से ये अनुष्ठान संपन्न करवाया है इससे उनको लाभ भी हुआ है।
जब भी साल में पित्र पक्ष आए या जब भी जरूरत हो तो किसी भी कृष्णपक्ष में प्रथम तिथि से पूर्व ही सभी तैयारियां कर लेनी है और इस साधना को करना है और इससे आपको 15 दिन की की गई साधना से आपको पित्र दोष प्रेतदोष से मुक्ति मिल जाएगी।
मन्त्र:-पित्र ब्रह्मा पित्र विष्णु पित्र देव महेश।पित्र देव कृपा करें काटे सभी क्लेश। धन दौलत बरखा को करू तेरी होम अग्यारी।मेरे कारज सिद्ध करो जै जै कर तुम्हारी।दुहाई सती माता अनसूया की।
ये मन्त्र सरल सक्षम ,जाग्रत और सिद्ध है।
जब भी कभी पितृपक्ष आये तो ब्रह्मचर्य से युक्त हो संयम रखें और प्रतिदिन रात्रि में पूर्वाभिमुख होकर अपने सामने आम के एक पटरे पर सफेद कपडा बिछाकर भगवान विष्णु  का चित्र स्थापित करें और चंदन की माला उनको पहनाएं शुद्ध देसी का दीपक प्रज्वलित करके गणेश और गुरु के सामान्य पूजनोउपरांत पित्र देव का एक पानी वाले नारियल पर सफेद कपड़े लपेटकर उस पर आवाहन करें और उनका पूजन करें पूजन में सफ़ेद रंग की वस्तुओं की प्रधानता होगी कुशा के आसन का ही प्रयोग करें। उपरोक्त मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से 11 माला सुबह 11 माला शाम को जाप करें।सुद्धता का पूर्ण रूप से ध्यान रखें।और लाभ  देखें अमावस्या वाले दिन से एक दिन पहले ब्राह्मण को निमंत्रण दे और अमावस्या की सुबह प्रीति युक्त भोजन बनाएं और ब्राह्मण को भोजन करवाएं साथ में वस्त्र और कुछ धन जितना आपकी समर्थ हो दे और ब्राह्मण को विदा करें फिर जिस चित्र का आपने पूजन किया था उसे अगर आपका व्यापार नही चलता तो उसे कार्यस्थल पर लगा दें और अगर घर में क्लेश होता हो तो घर में लगादें।और लाभ प्राप्त करें।
ये जानकारी मैं अपने वर्षों के अनुभवों के आधार पर इस पोस्ट पे डाल रहा हु ताकि इस विषय के बारे में जन साधारण को लाभ हो।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे व्हाट्सएप नंबर 8194951381 पर संदेश भेज कर प्राप्त कर सकते हैं।

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