।। माता मदानण का चालीसा ।।
।। दोहा।।
चालीसा मैं शुरू करूं करूँ ज्ञान की बात ।
जल में थल में अगन गगन में बस रही मेरी मात।।
।।चौपाई।।
श्री गणेश को सिमर कर।। सरस्वती का ध्यान लगाऊं।
तीन लोक की जननी माता महामाया तेरे गुण को गाऊं।।१।।
आदिशक्ति जग की दाती हम सभ तेरा ध्यान लगावे।
नाम तेरा जपने से माता सब संकट पल में कट जावे।।२।।
नमो मैदानन तू महामाया जग जननि ये खेल रचाया।
जोकोई ध्यावे सच्ची श्रद्धा से आया दूधपूत फल पाया।।३।।
पाप बढ़े जब जब धरती पर धर्म नाश हो जाए भवानी।
तब अवतार नया से लेकर धरती पर तू आए कल्यानी।।४।।
हैं अवतार अनेक जगत में मेरी बुद्धि समझ ना पाए।
तू ही लक्ष्मी तू ही दुर्गा तू ही काली वेश बनाए।।५।।
समय पड़ा जब पाप बढ़ा फिर ले अवतार तू आये।
भिन्न-भिन्न रूपों में मैया जग की नैया पार लगाए।।६।।
तू ही शीतला तू ही कल्याणी तू ही उमा रमा ब्रह्माणी।
कहीं जोतज्वाला की बनगई और तू कहीं बनी मसानी ।।७।।
धन्य मदानन माता मेरी तेरी महिमा किसी ना जानी ।
हे जगदाती कृपा करदो तेरी महिमा किसी न जानी।।८।।
कही बिराजे बने शीतलामसानी कहीं मैदानन माता।
जरग कुराली गुड़गांव में कोई कल्लर कोट मनाता।९।।
शेख फरीद शिष्या तू तेरे नागे गुरु अवधूत।
धन्य धन्य मदानन माता तू तो भांझन को देती पूत।।१०।।
मात कपूरी की लाडली पिता हेमराज की प्यारी।
दो लडुअन पर खुश हो जाए तेरी महिमा न्यारी।।११।।
जय जग की दाती चार दिशा में तेरे नाम का परचा।
जै जैकार मेरी भोली माता बस तेरे नाम का चर्चा।।१२।।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे वो पाप मुक्त हो जाये
संकट पड़े जब कोई भगत पर झटपट आप बचाये।।१३।।
कर्जा दुख और बीमारी तेरे भगत के पास ना आए।
हे जगजननी तू जगदंबा हम सभी तेरा गुण गाए।।१४।।
जिनके वंश की तू कुलदेवी मां वंश को सदा बढ़ाएं।
भूल करे जो भक्त तुम्हारा तुमसे दंड कठिन वो पाए।।१५।।
पूत कपूत करत है गलती फिर फिर तुम्हें मनाएं।
धन्य धन्य मेरी मात मैदानन तू तो मान ही जाये।।१६।।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मैया लगता मेला भारी।
सभ कोई तुमको शीश झुकाते नर होवे या नारी।।१७।।
लड्डू बर्फी पान बताशा लोंग सुपारी भेंट तुम्हारी।
पुत्र हुए पर थान लगावे सन्त भगत को देय पुजारी।।१८।।
जो कोई व्रत करे तुम्हारा मंगलवार करे अग्यारा।
नाम तेरे को जपे भवानी कभी ना पावे वह परेशानी।।१९।।
रूप अनेक धरे तू देवी वेद भी तेरा पार ना पाए।
भिन्न-भिन्न रूपों से माते सब कोई तेरा ध्यान लगावे।।२०।।
भिन्न भिन्न है रूप तुम्हारे भिन्न-भिन्न सब नाम।
धन्य धन्य मेरी माई मदानन पल में बनते काम ।।२१।।
नागे गुरु से विद्या पाई जग का भला करो महामाई।
जो कोई ध्यान तुम्हरो लावे इच्छित फल को वो पावे।।२२।।
शीतला माँ के संग विराजे द्वार तेरे पर मृदंग बाजे।
सन्त भगत तेरे लाडले तू है सब की माता ।२३।।
नित्यप्रति जो शीश झुकावे मीठाजल जो तुम्हे चढ़ावे।
उसके सभ संकट कट जाते रोग कष्ट ना उसे सताते।२४।
जिसपे संकट भारी आवे दो लड्डुओं का भोग चढ़ावे ।
फौरन ही संकट कट जावे भक्त तेरा सदा सुख पावे।।।२५।।
लाल ध्वजा मंदिर पर सोहे ताको देख भक्तन मन मोहे।
श्रद्धासे माँ खुश होजाती भगत की जै जैकार कराती।।२६।।
मात मेरी की महिमा न्यारी पल में काटे संकट भारी ।
श्रद्धाभाव से जोकोई गाता अक्षय दूधपूत फल पाता।।२७।।
संत मुनी नर-नारी आवे ~~~~मंदिर तेरे जोत जलावे ।
विद्या बुद्धि बल और शक्ति सब कोई तेरे दर से पावे।।२८।।
दे वरदान निर्धन को माता तू धनपति कुबेर बनाती।
तेरे दर जो शीश झुकावे उसकी बिगडी भी बनजाती।।२९।।
बुद्धिहीन विद्या को पावे अंधा देखे गूंगा गावे।
रूपहीन की बात सुनाऊं क्या-क्या तेरी महिमा गांऊ।।३०।
निरबंसी का बंस चलादे पत्थर पर भी फूल उगादे।
धन्यधन्य मेरी मातमदानन तेराभगत महिमा को गावे ।।३१।।
पाठ तेरा जो पड़े सुनावे नित्य प्रति तेरी ज्योत लगावे।
उस पर कृपा करो भवानी तुम समान नहीं कोऊ दानी।।३२।।
तेरे नवरात्र चैत्र में आते श्रावण गुप्त फिर अश्वनी मासा।
माघ गुप्त फिर आए अम्बे सब जग तेरे गुण को गाता।।३३।
हम तेरे बच्चे तू जग जननी माता सबका करो कल्याण।
तेरे दर पर सिर को रखा हे जग जननी रखना मेरा मान।।३४।
कितने दानव मार गिराए भक्त संत तेरी महिमा गाये।
अपरंपार तेरी ज्योति भवानी तेरी हो रही जै जैकार।।३५।
धन्य धन्य मेरी मात मैदानन सब के बेड़े पर लगाती ।
गर्दभवाहन जब-जब बैठो भगत को दर्श दिखाती।।३६
तू ही नव दुर्गा तुहि शीतला तू ही ज्वाला रूप दिखाती।
कहीं बने कोमल माँ लक्ष्मी धन वैभव तुहि ले आती।।३७।।
तू रक्तेश्वरी तू ही बसन्ती तुहि मसानी रूप बनाती ।
पाठ करें जो तेरा चालीसा उसको कष्ट से आन बचाती।।३८।।
धन्य-धन्य जी मेरी मात मैदानन जो तेरी कृपा रहे स्वाई।
खेतरपाल मनाऊं मात। मैं हल्दी दूब चढाऊँ ।।३९।।
तू जल थल रही समाई जगजननि तेरी प्रेरणा आई।
तेरा ही बल पाकर मात जी तेरा चालीसा मैंने गाया।।४०।।
जो कोई ये चालीसा पढ़े प्रेम भाव के साथ ।
उसकी सब पीड़ा हरे। मेरी मात मैदानन आप।।४१।।