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सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

सैय्यद बिरहना पीर सम्पूर्ण सिद्धि


।। बिरगहना पीर साधना की साधना ।।


एक ऐसी शक्ति जो साए की तरह आपके साथ रहेगी और जो आपके प्रत्येक काम में  आपका साथ देगी आपको हर मुश्किल का हल मिलेगा आपको बुरे से बुरे समय से निकाल देगी।जो साधक दृढ़ संकल्प वाले हैं जल्दी से हार नही मानते और जो इस साधना को पूरा कर लेंगे उनका हर इक काम ये शक्ति बनाएगी आपके पास कौन आ रहा है कहाँ से आ रहा है उसकी समस्या क्या है उस समस्या का हल क्या है। 

हमेशा,सच्चे साथी की तरह साथ रहने वाले बिरगहना पीर की साधना अत्यन्त सरल है। पन्द्रह दिन की यह साधना करके, साधक, बलिष्ठ देव के समान पीर से कुछ भी काम करा सकता है। 

जिन साथ में गांव के हृदय में सच्ची श्रद्धा और विश्वास है उन्हीं के जीवन में चमत्कार होते हैं और यह चमत्कार लगातार होते रहते हैं आज जितने भी सफल साधक हैं इन्हीं सभी साधनाओं के कारण ही सफल है यह बात अलग है कि जब तक आप अपनी साधना को गोपनीय रखते हैं इतनी देर आप कामयाब रहते हैं और जब आप अपनी गोपनीयता को भंग कर देते हैं उसके साथ ही साथ आप की सिद्धि भी क्षय हो जाती है 

कई साधक इस साधना को 1 दिवसीय साधना भी बताते है हालांकि अगर कोई नया साधक इस साधना के लिए बैठे और उसको सफलता ना मिले तो मन में बहुत निराश होती है इस लिए ये सच जरूर समझ लीजिए कि ये साधना पूरे पंद्रह दिनों की है। एक दिन की समझ कर इसको करने की भूल ना करें।

जिस दिन ये साधना शुरू करनी हो उस दिन होली, दीपावली  दसहरा सूर्य ग्रहण होना चाहिए फिर लगा तार इस साधना को करना चाहिए। कोई भी साधना करो किसी भी ईष्ट की छोटी सी छोटी साधना भी करो लेकिन उससे पहले अपनी सुरक्षा का प्रबंध अवश्य करें क्योंकि जिस स्थान पर आप साधना कर रहे है उस स्थान पर शक्तियों का वास होता है ये जरूरी नहीं कि वो शक्तियां सौम्य हों वे शक्तियां हिंसक भी हो सकती है इस लिए जब भी साधना करें अपने शरीर को मंत्रो द्वारा बांध लें टंकी कोई भी शक्ति आपको कष्ट न पहुंचा सके।

रक्षा मन्त्र:-आयतल कुर्सी कच्छ कुरान अग्गे पिच्छे तू रहमान धड़ रखे खुद सिर रखे सुलेमान अली की दुहाई अली की दुहाई अली की दुहाई।

उक्त मंत्र को 108 बार जपने के बाद अपनी छाती पर 3 बार फूंक मार लें। आपका शरीर बंध जाएगा और कोई भी अज्ञात शक्ति आपको कोई नुकसान नही पहुंच सकेगी।

फिर सिद्धि मंत्र बिरहना पीर का जाप करें

मंत्र:- पीर बिरगहना धुं धुं करे ।
सवा सेर सवा तोसा खाय । 
अस्सी कोस धावा करे।।
 सात सौ कुतल आगे चले ।
 सात सौ कूतल पीछे चले ।।
 छप्पन सौ छुरी चले ।
 बावन सौ वीर चले ।।
 जिसमें गढ़ गजनी का पीर चले ।
 औरों की धंजा उखाड़ता चले ।।
 अपनी धजा टेकता चले ।
 सोते को जगाता चले बैठे को उठाता चले ।।
 हाथों में हथकड़ी गेरे। 
 पैरों में बेड़ी गेरे ।।
 हलाल माही खाये। 
 दिठ करें माही पीठ करे।।
  पहलवान नवी कूं याद करे ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।

साधना विधि- किसी ग्रहणकाल या होली की रात से ही, 
यह साधना प्रारम्भ की जा सकती और इसे बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। 

साधक एकान्त स्थान या एकान्त कमरे में ज़मीन पर स्वा हाथ चिकनी मिट्टी से गोल चौंका लगाये और स्वच्छ कपड़े पहन कर, किसी भी साफ सुथरे आसन पर साधना करें। 
अपने पास साफ पानी का पात्र,चमेली के सेंट, चमेली की अगरबत्ती, चमेली के फूल, हलवा व चमेली की फूलमाला भी रखें। लकड़ी के कोयले पर लोहबान का दखना जाप काल के दौरान चल ता रहेगा।
साधक का मुंह पक्षिम दिशा की और रहे पूरी साधना काल तक, मन्त्र जाप काल के दौरान तेल का दीपक जलाकर रखना अनिवार्य है। 

एक बार मंत्र बोल कर, अपने आसन के सामने, दीपक के पास, चमेली का एक फूल छोड़कर (रखकर) पूजन करें। दीपक की लौ-को हलवे का भोग लगाएं। 

पांच माला काले हकीक की माला से प्रतिदिन जाप करें 15 दिन। 

हर-माला जाप के बाद हलवे का भोग लगावे तथा चमेली का फूल चढ़ावे । बाद में माला को भी दीपक के सामने, अन्य फूलों के पास रख दें। 

इस प्रकार लगातार, बिना नागा के बिरगहना पीर की साधना करता रहे। 

साधना के अन्तिम दिन यानि, पंद्रहवें दिन पीर सशरीर प्रकट होकर साधक के सामने आये तो साधक को चाहिए कि वह बिना किसी भय के, पीर को चमेली की फूल माला पहना देवे तथा उसके हाथों में हलवा (कड़ाह-प्रसाद) भी दे दे। और वचनबंदी कर लें बुलाने का तरीका और कोई निशानी मांग ले  फिर उसी समय से बिरगहना पीर जीवन भर साधक का हम साया बन कर रहेगा।

साधना के नियमः- साधना में, ब्रह्मचर्य का पालन, शुद्धता, गुप्तता, निरन्तरता अनिवार्य है। 

इस साधना को सिर्फ और सिर्फ होली की रात्रि या ग्रहण काल में ही प्रारम्भ किया जा सकता है। अपनी मन-मर्जी से कभी भी नहीं । 

बाकी आगे साधक की मर्ज़ी होती है की वो अपनी समझ बूझ से पीर से आगे क्या और कैसे काम लेता है। 

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...