****।।। सन्तान प्राप्ति।।।****
जैसे बिना पानी के सागर नहीं हो सकता,बिना जल के मेघ नहीं हो सकता, जैसे राजहंस के बिना मानसरोवर की कल्पना अधूरी है, जैसे नेत्र बिना ज्योति के अर्थहीन है वैसे ही शिशु की किलकारीयों से वंचित आंगन शापित स्थान का आभास करवाता है । इकट्ठा किया गया धन और संसार की सभी खुशियां जब तक आपके संतान ना हो तब तक व्यर्थ है संसार के सभी सुख बिना शिशु के बड़े से बड़े महल को भी सुना कर देता है यह ईश्वर की तरफ से दिया गया एक अमूल्य धन है जिसकी कोई कीमत नहीं।
ये विषय बहुत जटिल है एक लेख के माध्यम से इस विषय को समझा पाना बहुत कठिन है फिर भी इस लेख में मैं आपको बताऊंगा कि अगर किसी स्त्री की कोख बांध दी जाए तो कैसे लक्षण सामान्यतः दिखते हैं उसका निदान क्या है और संतान प्राप्ति के उपाय के हैं ।
।।लक्षण।।
○वर्षो योग्य तक दवा करवाने पर भी संतान सुख की प्राप्ति ना होना।
○दवा करवाने के बाद भी स्त्री का गर्भ धारण न होना।
○पैथोलॉजी रिपोर्ट्स का नार्मल आना। लेकिन फिर भी संतान का ना होना।
○दवा करवाने पर भी मासिक धर्म की अनियमितता ठीक ना होना।
○पति और पत्नी दोनों के स्वस्थ होने पर भी सन्तान का ना प्राप्त होना।
○स्त्री को बार बार एक ही सपना आना और गर्भपात हो जाना।
○स्त्री के अंगों पर भारीपन रहना। पेडू और पेट में बिना किसी कारण के दर्द रहना।
।।।कारण।।।
बहुत से कारन हो सकते है हर केस की अलग कहानी और अलग कारण होते है और उसके इलाज भी अलग अलग जिसके कारण इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लिखकर समझा देना बहुत कठिन है। कुछ मुख्यकारण मैं आपको यहां बताने की कोशिश करता हु।
○शारिरिक अयोग्यता।
○श्राप का दोष।
○ ग्रह की बाधा।
○तंत्र की बाधा।
○ऊपरी बाधा।
○कोख का बन्धन।
शारिरिक बाधा :- जब कोई पीड़ित शारिरिक रूप से इस तरह अस्वस्थ हो जिसके केस को चिकित्सक के लिए एक अलग दृष्टिकोण से देखने की जरूरत हो शारिरिक अयोग्यता की श्रेणी में आता है।
श्राप का दोष:- सभसे ज्यादा केसों में संतान ना होने का कारण यही दोष होता है जब किसी के देवी,देवता, पीर, पितृ रुष्ट हों या किसी भी कारण से इनकी बाधा आये तो इस दोष का निवारण हेतु यत्न करने चाहिए।
ग्रह बाधा:- जब इस दोष से पीड़ित पति पत्नी की
जन्मकुंडली में ग्रह के कारण बनने वाले योग के
कारण संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो
ग्रह बाधा की संज्ञा दी जति है।
तंत्र बाधा:-इस बाधा का सीधा सीधा ये मतलब नही कि पीड़िता को कोख को बांध दिया गया है इसका
तातपर्य ये कि कई बार लापरवाही से चलते हुए
किसी टोने टोटके को लांघ जाने से भी ये बाधा उत्पन्न हो जाती है।
ऊपरी बाधा:- जब कोई विवाहित या अविवाहित
नवयुवती अधिक सुंदर हो तो कुछ नकारात्मक
शक्तियां उनकी ओर आकर्षित हो जाती है और
संतान बाधा उत्पन्न कर देती है जैसे कि जिन्न शैतान ख़बीस भूत प्रेत पिचास चुड़ैल डाकिनी इत्यादि।
कोख बंधन:-तंत्र के षट कर्मो मैं बहुत ही भयानक प्रयोग है लेकिन सारी तंत्र विद्या में ये सबसे घटिया काम है लेकिन षड्यंत्रों से भरे इस संसार में बहुत घटिया से घटिया सोच के लोग मौजूद हैं कोख को बांध देना जितना आसान है उतना ही मुश्किल है
उसे खोलना।इसमें काले जादू द्वारा स्त्री की जनन शक्ति को बांध दिया जाता हैलेकिन परिश्र्मी साधक के लिए कुछ भी असंभव नहीं हो सकता।
।।।उपचार।।।
○शास्त्रिक विधियों से
○तांत्रिक विधियों से
शास्त्रिक विधियों से :- जब उपरोक्त दोषों को हटाया जाता है जैसे कि पुत्रयेष्ठि यज्ञ,संतान गोपाल ,हरिवंश पुराण,दुर्गा सप्तशती या कोई भी पूर्ण शास्त्रिक मर्यादा से किया गया अनुष्ठान जिसमें यजमान ब्राह्मण का पूरा साथ और समय श्रद्धा से दे।फल की प्राप्ति में कोई किंचित मात्र संदेह नहीं रहता।
तांत्रिक विधियों से:-हमारा प्राचीन तंत्र बहुत बृहद और विशाल है वामाचार से सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है लेकिन तंत्र की गहराईयों को समझना बहुत कठिन है इसमेंसे प्रयोग तब सफल होते है जब उन्हें गुप्त रखा जाए। कुछ तांत्रिक ग्रामीण श्रेणी के होते है उनको इस लेख में लिख पाना संभव नहीं है।
विभिन्न विभिन्न कारणों से हुए कुक्षि बन्धनों का अलग अलग प्रकार से इलाज होता जो लंबे समय तक चलता है। सभसे पहले कारण का निवारण किया जाता है तभी ऐसे केसों में संतान सुख संभव हो सकता है।
संतान प्राप्ति का प्रयोग।
अलग अलग केसों में अलग अलग दोषों का उपचार किया जाता है एवं उपचार की पद्धतियां भी विभिन्न होती है। कई केसों में एक बार में ही एक छोटा सा टोटका ही काम कर जाता है और कुछ केसों में एक से अधिक अनुष्ठानों का कई बार भी प्रयोग करने पड़ते है।देश काल और नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत और उसका बल ही निर्धारित करता है कि एक प्रयोग ही काफी है या एक से अधिक बार प्रयत्न करना होगा पहले से सभ कुछ निर्धारित नही होता।
यहां मैं आपके लिए एक षष्ठी देवी माता देवसेना का एक प्रमाणिक दे रहा हूं। निष्ठा एवं श्रद्धा से किया गया प्रयोग एक वर्ष में निःसंतान को संतान की प्राप्ति करवाता है।
****।।।पुत्रदायक षष्ठी देवी की साधना।।।*****
साधक अपने मन के केंद्रीकरण के लिए षष्ठी देवी के चित्र को अपने सामने रखे या किसी वटवृक्ष के नीचे किसी शालिग्राम रखकर या दीवार पर कुंकुम की पुत्तलिका बनाकर उसे देवी मान कर उसका उचित विधि से आवाहन करे फिर विधिवत पूजन पूर्ण निष्ठा और भगति के साथ करें।
फिर देवी का आहवान निम्न मंत्र से करे।
।।आवाह्न मन्त्र।।
श्वेत चम्पक वर्णभा,रत्न भूषण भूषिताम।
पवित्र रूपा परमां, देव सेना परां भजे।।।
ध्यान करने के बाद देवी के मन्त्र का यथासंभव जाप करें ये बात याद रहे जितना जाप आप पहले दिन कर रहे हैं दूसरे दिन उससे कम नही होना चाहिए।
देवी मूल अष्ठक्षरी मन्त्र :- "ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा।"
इस मंत्र के पुरश्चरण की संख्या एक जाप है उसके उपरांत दशांश हवन उसका दशांश तर्पण का दशांश मार्जन और उसका दशांश कुमारी भोजन करवाएं।
और प्रतिदिन निश्चित समय पर संस्कारित रुद्राक्ष की माला से देवी पूजनोउपरांत 11-21-51 बार स्तोत्र का जाप करें।
।।।।षष्ठी देवी स्तोत्र।।।
।।नारायण उवाच।।
स्तोत्रं श्रुणु मुनि श्रेष्ठ।सर्व काम शुभवह्यम् ।
वांछा प्रदं च सर्वेषां, गूढं वेदेशु नारद।।
नमो दैव्यै महा देव्यै सिद्धये शान्ते नमो नमः।
शुभाये देव सेनाये, षष्ठये देवयै नमो नमः।।
वरदायै पुत्रदायै , धनदायै नमो नमः।
सुखदायै मोक्ष दायै षष्ठी देव्यै नमो नमः।।
षष्ठयै षठाँश रूपायै सिद्धायै च नमो नमः।
मायायै सिद्धयोगिनियै षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
तारायै शारदायै च, परा देव्यै नमो नमः।
बालाधिष्ठातृ देव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रतक्षायै स्व भक्तानां,षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
पूज्यायै स्कन्द कांतायै सर्वेषां सर्व कर्मसु।
देव रक्षण कारिणे षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
सिद्ध तत्व स्वरूपयै वन्दितायै नृणां सदा।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
धनँ देहि प्रिया देहि पुत्र देहि सुरेश्वरि।
मानं देहि जयं देहि द्विषो जाहि महेश्वरी।।
धर्म देहि यशो देहि षष्ठीये देव्यै नमो नमः।
देहि भूमि प्रजा देहि विद्या देहि सु पूजिते।।
कल्याङ्म च जयं देहि,षष्ठीयै देव्यै नमो नमः।
।।फ़लश्रुति।।
इति देवि च संस्तुत्य, लेभे पुत्रं प्रिय व्रत।
यशस्विनं च राजेन्द्र:,षष्ठी देव्या प्रसादतः।।
षष्ठी स्तोत्रमिदं ब्राह्मण यः श्रुनोति तु वत्सरम।
अपुत्रो लभते पुत्रं,वरं सुचिर जीवनम् ।।
वर्षमेकं च यो भक्त्या, सम्पूज्दं श्रुनोति च।
सर्वपापद विनिर्मुक्तो महा वंध्या प्रसूयते।।
वीरं पुत्रं सु गुणींन विद्या वंत यशस्विनम।
सु चिरायुष्य वन्त च सुते देवी प्रसादतः।।
काक वंध्या च या नारी मृत वत्स्या च या भवेत।
वर्ष श्रुत्वा लभेत पुत्रं षष्ठी देवी प्रसादतः।।
रोग युक्ते च बाले च पिता माता श्रुनोति चेत।
मासेन मुच्यते बाल:षष्ठी देव्या प्रसादतः।।
।।इति श्री मद्ददेवीभागवते नारद नारायण संवादे षष्ठी स्तोत्रं।।
श्री छठी देवी की कथा
श्रीमद् श्रीमद् देवी भागवत पुराण। नवम स्कंध। अध्याय। 46।
देवऋषि नारद जी ने भगवान नारायण से कहा हे प्रभु भगवती छठी मूल प्रकृति की कला है। मैं इनके अवतार की कथा सुनना चाहता हूं।
भगवान नारायण ने कहा हे मुनि मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण छठी देवी कहलाती हैं। बालकों की यह अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें विष्णु माया और बाल्दा भी कहा जाता है मातृका ओं में यह देवसेना नाम से प्रसिद्ध है।
इन देवी को स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त है। बालकों को दीर्घायु बनाना और उनका पालन पोषण तथा रक्षण करना इनका स्वभाव है। यह सिद्ध योगिनी देवी अपने योग के प्रभाव से बच्चों के पास सदा विराजमान रहती हैं।
हे ब्राह्मण इनका उत्तम इतिहास सुनो पुत्र प्रदान करने वाला यह उपाख्यान मैंने धर्मदेव से सुना है। प्रियव्रत नाम का एक राजा थे उनके पिता का नाम था स्वयंभू मनु के पुत्र थे अतः विवाह नहीं करना चाहते थे तपस्या में। उनकी विशेष रूचि थी किंतु ब्रह्माजी की आज्ञा से उन्होंने विवाह कर लिया विवाह के बाद बहुत समय तक जब उन्हें संतान नहीं हुई तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेष्ठि यज्ञ करवाया राजा की प्रिय व्रत की पत्नी का नाम मालिनी था यज्ञ के बाद मुनि ने उन्हें यज्ञ का प्रसाद खाने को दिया उसके खाने के बाद रानी मालिनी गर्भवती हुई गर्व को 12 वर्षों तक अपने कोख में धारण करें तब स्वर्ण के समान तेजस्वी एक पुत्र का जन्म हुआ परंतु संपूर्ण से संपन्न कुमार मरा हुआ था उसकी आंखें उलट चुकी थी उसे देखकर सारे अंग प्रत्यंग बहुत सुंदर से मरे हुए पुत्र के अशोक के कारण माता मूर्छित हो गई तब हे मुनि राजा प्रियव्रत उस मरे हुए पुत्र को लेकर के श्मशान में गए और उसे एकांत भूमि में पुत्र को छाती से लगाकर के आंखों से आंसू बहाने लगे उस मरे हुए पुत्र को त्यागे बिना ही राजा स्वयं भी मरने को तैयार हो गए क्योंकि घर पुत्र शोक के कारण उन्हें कुछ ज्ञात नहीं रहा। इसी समय एक दिव्य विमान दिखाई पड़ा स्फटिकमणि के समान चमकता हुआ वह विमान मूल्यवान रत्नों से जुड़ा हुआ था उसी पर विराजमान एक अत्यंत सुंदर देवी के दर्शन राजा प्राप्त किए श्वेत चंपा पुष्प के समान उस देवी के वर्ण उज्जवल था।
सदाशिव तरुणाई से शोभा पाने वाली देवी मुस्कुरा रही थी उनके मुख पर प्रसन्नता छाई हुई थी रत्न में आभूषणों से उनकी बड़ी शोभा थी ऐसा जान पड़ता था कि वह मानो मूर्ति माई कृपा ही हूं। देवी के समान विराजमान सामने विराजमान देखकर के राजा ने बालक को भूमि पर रख दिया और बड़े भक्ति भाव से। उसका पूजन और स्तुति की है।
नारद उस समय इस कांड की प्रिय देवी थी अपने तेज से देदीप्यमान थी उनका शांत विग्रह सूर्य के समान चमचमा रहा था उन्हें प्रसन्न देखकर राजा प्रियव्रत ने कहा हे देवी आप कौन हैं?
भगवती ने काहे राजन में ब्रह्मा की मानस कन्या हूं। जगत पर शासन करने वाली देवी का नाम देवसेना है। मैं संपूर्ण मात्र भगवती मूल प्रकृति के प्रकट होने के कारण विश्व में छठी देवी के नाम से प्रसिद्ध है। मेरे पुत्र पुत्र प्रिय पत्नी तथा कर्मशील पुरुषों में उत्तम फल को प्राप्त करते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से पुरुष अनेक पुत्रों का पिता होता है और कुछ लोग पुत्रहीन भी होते है।किसी को मर हुआ पुत्र पैदा होता है और किसी को दीर्घ जीवी यह सब कर्म का ही फल है।
है मुने इस प्रकार कहकर षष्ठी देवी ने बालक को उठ लिया और अपने प्रभाव से उसे पूर्ण जीवित कर दिया।देवी देवसेना उस बालक को लेकर आकाश में ज्ञे को तैयार हो गयी उन्होंने राजा से कहा तुम स्वयंभू मनु के पुत्र हो त्रि लोक में तुम्हारा शासन चलता है तुम सर्वत्र मेरी पूजा करवाओ और स्वयं भी करो तब मैं तुम्हारे कमल के समान मुख वाला मनोहर पुत्र प्रदान करूंगी उसका नाम सुव्रत होगा उसमे सभी हुन होंगे और विवेक शक्ति होगी वह भगवान नारायण का कलावतार और योग होगा तथा उसे पूर्व जन्म की बातें स्मरण होंगी सभी उसका सम्मान करेंगे त्रि लोक में उसके8 कीर्ति फैलेगी इस प्रकार राजा प्रिय व्रत से कह कर भगवती देवसेना ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया राजा ने भी पूजा करने करवाने की बात स्वीकार कर ली और प्रसन्न मन होकर अपने घर लौट आये।
राजा ने सर्वत्र पुत्रप्राप्ति के लिए मांगलिक कार्य आरंभ कर दिए भगवती षष्ठी की पूजा की तब से प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन भगवती षष्ठी का महायोत्सव मनाया जाने लगा।बलको के प्रसव ग्रह मैं छठे दिन इक्कीसवें दिन तथा अन्न प्राशन्न के समय पर यत्नपूर्वक षष्ठीदेवी की पूजा होने लगी सर्वत्र इसका प्रचार हो गया।
हे सुव्रत भगवती षष्ठीदेवी देवसेना का ध्यान पूजन स्तोत्र कौथुम शाखा में कहा गया हूं।शालिग्राम की प्रतिमा कलश या वट वृक्ष मूल या दीवार पर पुत्तलिका बनाकर प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने वाली शुद्ध स्वरूपा षष्ठी देवी का ध्यान कर पाद्य, अर्घ, आचमनीय,गंध,पुष्प, धूफ, दीप, नैवेद्य, इत्यादि उपचारों से उनका पूजन करें फिर भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति और प्रणाम करें।
मन्त्र जाप और इसी प्रकार ध्यान पूजा स्तुति कर महाराज प्रिय व्रत ने षष्ठी देवी की कृपा से यशश्वी पुत्र प्राप्त किया हे ब्राह्मण जो भगवतीषष्ठीदेव्यै के स्तोत्र को एक वर्ष तक पढ़ता या सुनाता है वह यदि अपुत्र है तो दीर्घायु एवं सुंदर पुत्र प्राप्त करता है ।अतीव बंध्या भी माता की कृपा से सुंदर संतान को जन्म देती है और बालकों के सभी रोगों का शमन माँ की कृपा से होता है।