दीये के तांत्रिक प्रयोग। लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
दीये के तांत्रिक प्रयोग। लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

दीपक से मनोकामना पूर्ति।

दीपक के तंत्र प्रयोग
दीपक का सम्बंध प्रकाश से है सूर्य की उपासना इसीलिए की जाती है कि वही हमें प्रकाश देता है। चंद्रमा की पूजा इसीलिए की जाती है। क्योंकि वह प्रकाश देता है। भले ही उसका प्रकाश सूर्य का ही प्रकाश है, किंतु दिखाई तो हमें चंद्रमा से आता प्रकाश है।
जब प्रकाश नही था तब कुछ नहीं था, बस अंधकार ही अंधकार था और यदि कुछ रहा भी होगा तो वह अंधकार के गर्त में गुप्तावस्था, सुप्तावस्था में था। प्रकाश ही वस्तुओं का पदार्थों का जगत का ज्ञान कराता है। अतः प्रकाश ही हमारा ज्ञान है, विवेक है, बुद्धि है, प्रज्ञा है, कुंडलिनी है, जागृत अवस्था है, तेज है | यानी प्रकाश ही सब कुछ है हमारे लिए | इसीलिए हम मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए अपनी उस प्रकाशमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं –
असते मां सद्गमय, तमसो मां ज्योतिर्गमय ।
असत्य से सत्य की ओर और तम (अंधकार) से प्रकाश की ओर जाने की इच्छा प्रत्येक प्राणी को होती है। अंधकार के लिए कोई प्रार्थना नहीं करता। सभी प्रकाश चाहते है इसका का महत्व हमारे जीवन में प्रत्येक क्षण है
निर्गुण निराकार की साधना उपासना करने वाले मात्र इतना ही कहते है - "वह ईश्वर, परमात्मा हमें स्पष्ट रूप से कदापि नहीं दिखता। फिर भी एक प्रकाश हमें त्रिकुटी दिखाई पड़ता है। (पाठक जान लें कि त्रिकुटी व़ह स्थान है जहां दोनों भौहों और नासिका के ऊपर माथे पर टीका लगाया जाता है।) कुछ लोग कहते हैं कि वह ब्रह्म हमारी आत्मा में एक प्रकाश पुंज की तरह दिखता है। अर्थात् ईश्वर प्रकाश रूप में हमारी आत्मा में ही परमात्मा रूप में स्थित है।“
दीपक तंत्र से देवी का आह्वान
शक्ति की उपासना करनेवाले दीपक की ज्योति में ही देवी मां का आह्वान करते हैं। दीपक की ज्योति में ही वह मां भगवती के दर्शन भी करते हैं। इसीलिए मां भगवती को जोतां वाली कहकर पुकारते हैं।
दीपक तंत्र का महत्व
मानव जीवन में जन्म से मृत्यु तक दीपक ज्योति का महत्व है। इसी दीपक ज्योति के विभिन्न आयामों के प्रयोग को तांत्रिक “दीपक तंत्र” के नाम से मान्यता देते हैं। दीपक तंत्र का आशय है कि दीपक की ज्योति का विभिन्न समस्याओं के निवार्णार्थ प्रयोग या स्वयं की मनोकामना पूर्ति के लिए दीपक तंत्र का प्रयोग।
जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक हमारे समाज में, हमारे धर्म में दीपक का प्रयोग होता रहा है और होता रहेगा। घर में कोई भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान या मांगलिक कार्य होते हैं, उन सभी में सर्वप्रथम दीपक की ज्योति को ही प्रज्वलित किया जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त संस्कारों में दीपक जलाया जाता है। दीपक के प्रयोग एवं महत्व को हम सभी जानते हैं।
दीपक का जन्म से संबंध
शिशु के जन्म समय में घी का दीपक प्रसंव गृह में जलता रहना चाहिए। आज बिजली के बल्ब, राड जलते रहते हैं। इनका प्रभाव शिशु के ऊपर अच्छा नहीं पड़ता। शिशु के कक्ष में देशी घी, हो सके तो गाय का घी के दीपक को जलाना चाहिए। दीपक ऐसी जगह रखना चाहिए ताकि शिशु अपनी नन्ही-नन्ही आंखों से दीपक के प्रकाश को देखता रहे। तेज प्रकाश शिशु की आंखों को हानि पहुंचाता है। इतना ही नहीं तेज प्रकाश मनोमस्तिष्क पर भी कुप्रभाव डालता है। यह हानि ज्यों-ज्यों बच्चा बड़ा होगा त्यों-त्यों उसमें स्पष्ट होगी। इस युग में कितने ही बच्चे १० वर्ष से १६ वर्ष की अवस्था में ही नेत्र विकार तथा कम नेत्र ज्योति के शिकार होकर चश्मों का सहारा लेने लगते हैं। गाय के घी का महत्व अन्य पशुओं के घी से अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। क्योकि सनातन मान्यता है कि गाय के रोम-रोम में देवी, देवताओं, तीर्थों, नदियों, पवित्र सरोवरों, सागरों का वास होता है। हिंदू धर्म के अनुसार गाय के शरीर में तैंतीस करोड़ देवता एवं तीर्थ निवास करते हैं। इसीलिए गौ पूजन का विधान है। गौ पूजन करके हम समस्त देवी-देवताओं का पूजन कर लेते हैं।
दीपक का मृत्यु से संबंध
मृत्यु के पूर्व यदि कोई शरीर अचेतावस्था में मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहता है, तो एक दीपक उसके सिरहाने जला देना चाहिए। इससे उसकी आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है और मरनेवाले को मृत्यु का दुःख नहीं होता । मृत्यु के बाद जिस स्थान पर शव रखा जाता या जहां मरनेवाला स्थाई रूप से नित्य निवास करता रहा है वहां फर्श को धोकर गोबर से लीपकर एक दीपक जला देना चाहिए। ऐसा १३ दिनों तक या एक वर्ष तक करना चाहिए। इस प्रकाश का लाभ मरनेवाले के जीव को मिलता है।
जीव शरीर छोड़ने के बाद शीघ्र किसी लोक में नहीं जाता, वह अपने निवास में चारों ओर शून्य में विचरण करता रहता है। १३ दिनों में कई बार वह अपने घर में, अपने कक्ष में अवश्य जाता है। वहां रखा दीपक उसे नयी यात्रा के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, प्रकाश देता है। दीपक का प्रकाश उसकी मोह माया को क्षीणकर आकाश में जाने एवं निरंतर ऊपर उठते रहने की दिशा प्रकाशित करता है। जीव को ईश्वरी ज्योति मिलती है।
श्मशान से लौटकर पीपल के वृक्ष पर एक पात्र में नित्य १० दिनों तक दीपक जलाया जाता है। इसका आशय भी वही है कि जीवात्मा को स्वर्गारोहण में प्रकाश मिलता रहे और वह मृत्यु के बाद की अपनी यात्रा प्रकाश पथ से कर सके। आप कह सकते हैं, सोच सकते हैं कि इतनी शक्तिशाली आत्मा को एक छोटा-सा दीपक अपनी टिमटिमाती ज्योति से कैसे प्रकाश दिखा सकता है। जबकि जीवात्मा को आकाश में निरंतर ऊपर उठने के लिए लाखों-करोड़ों कि०मी० की यात्रा करनी होती है। ऐसा सोचनेवालों को प्रकाश की गति भी जान लेनी चाहिए |
बुरी नजर हटाने में दीपक का उपयोग
किसी शिशु को यदि नजर लग गयी हो तो, सरसों के तेल या देशी घी की चार ज्योति वाले दीपक को थाली में रखकर बालक के सर से उतारें । दाएं से बाएं पांच बार दीपक की थाली को घुमायें और प्रत्येक बार बालक के सामने लाकर उसे दीपक देखने को कहें। ५ बार के बाद दो बार बाएं से दाएं की ओर उसी तरह सर से उतारकर, दिखाकर घर से बाहर चले जायें। दीपक को चौराहे पर रख दें या किसी बाग या सूनसान स्थान पर रख दें। वहीं खड़े रहकर थाली को दीपक के ऊपर उल्टा कुछ दूर से ऐसा करीए कि काजल लग जाये। तब तक मन में कहते रहे – “जो भी नजर, टोना-टोटका लगा हो या जो भी किसी ने किया कराया हो, वह यहीं से विदा हो जाये और अमूक के खुश रहने के लिए प्रसाद रूप में यह काजल दिये जाये “ पीछे घूमे बिना पुनः दीपक की ओर देखें वापस घर आ जाये। थाली में लगा हुआ काजल बालक के बाएं माथे पर हथेली में तथा तलुओं में जरा-जरा लगा दें। ऐसा करने से बालक पर लगी नजर आदि का कष्ट दूर हो जाता है और फिर कभी उस व्यक्ति की नजर नहीं लगती जिसने इस बार लगाया है। इस क्रिया को यदि नज़र लगे रोगी का कोई अपना करें तो उचित होगा एवं शीघ्र लाभ होगा |
रोग को ठीक करने में दीपक का उपयोग
आपके परिवार का कोई भी प्राणी गंभीर रूप से बीमार हो, तो दीपक तंत्र का प्रयोग एक दो बार अवश्य करें। लंबी बीमारी हो तो प्रत्येक रविवार तथा मंगलवार को यह प्रयोग अवश्य करें। बीमार व्यक्ति के पहने हुए कपड़ों में से कुछ धागे निकालकर अलग कर लें। इन्हीं धागों की एक बत्ती बनाकर दीपक में रखकर गाय के घी को डालकर दीपक तैयार करें। दीपक को जलाएं, फिर रोगी व्यक्ति के चारों ओर घुमायें। कुछ देर तक आरती की तरह रोगी की आरती उतारते रहें और अत्यंत दैन्य भाव से देव-देवियों से प्रार्थना करते रहें कि आपके दीपक की ज्योति से तैंतीस कोटिक देवता प्रसन्न होकर आपके प्रिय जन को रोग मुक्त करें। जो लोग अपने रोगी या प्रियजन के प्रति जितनी करूणा श्रद्धा से देवताओं से प्रार्थना करेगा, उसे उतनी ही शीघ्रता से दीपक तंत्र सहायता करेगा। जब रोगी ठीक हो जाये तो जितनी वार, जितने दिन, जितने दीपकों का प्रयोग आपने किया हो उतने ही देशी घी के दीपक किसी शिव मंदिर या दुर्गाजी के मंदिर में अवश्य जलावें ।
धन सम्पन्न होने के लिए दीपक का उपयोग
गाय के घी में फूल बत्ती बनाकर नित्य पूजन स्थल, देवालय एवं धन स्थान पर रखने से सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। दीपक स्थापित करते समय प्रार्थना करनी चाहिए - "हे दीपराज ! आपकी ज्योति जिस प्रकार अंधकार को दूर करती है उसी प्रकार हमारी गरीबी, हमारा अज्ञान दूर करके आप हमें धन-धान्य से परिपूर्ण करें। हमें धन और विद्या दें। हे दीपेश्वर ! जिस प्रकार आपकी ज्योति ऊपर की ओर उठती हुई प्रकाशमान है, उसी प्रकार हमारा जीवन, हमारा परिवार हमारे पुत्र-पौत्र भी निरंतर उन्नति करते रहें। हे दीपेश ! जिस प्रकार आपका प्रकाश सतगामी एवं कल्याणकारी है, उसी प्रकार हमारा जीवन, हमारा परिवार भी सदमार्ग पर चले और हमारा कल्याण हो। हे दीप देवता ! जिस प्रकार ३३ कोटि देवी देवताओं को आप प्रसन्न करते हैं उसी प्रकार हम पर हमारे ईष्ट एवं देवी-देवताओं को अनुकूल बनाकर आनंदित करें ”
दीपक स्थापना के बाद दीपक की पूजा विधिवत चंदन, अक्षत, पुष्प तथा धूप से करनी चाहिए। इससे व्यक्तिगत एवं पारिवारिक लाभ मिलता है। परदेश जाते हुए व्यक्ति की आरती चौमुखे दीपक से करने पर उसे मार्ग की चारों दिशाओं से रक्षा होती है और मार्ग प्रशस्त होता है । युद्ध या किसी विशिष्ट कार्य के लिए जानेवाले की आरती एक ही कपास की बत्ती से करना चाहिए। इससे वह एक लक्ष्य की प्राप्ति में पूर्ण सफलता प्राप्त करता
ग्रह भूत-प्रेत निवारण के लिए।
यह प्रयोग अत्यंत सफल एवं सिद्ध माना गया है। किसी भी शनिवार को आक के पौधे के पास जाकर उससे प्रार्थना करें कि मैं अपने कल्याणार्थ आपके पत्तों को ले जाना चाहता हूँ। आक पौधा मुझे कुछ पत्तियां देने का कष्ट करें। फिर हाथ जोड़कर प्रणाम करें और ११ पत्ते तोड़ लें। चलने से पूर्व फिर प्रणाम करें। इन पत्तों को छाया मे सुखा फिर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का कपास एवं घी मिलाकर कई बत्तियां बनाकर रख लें। दूसरे शनिवार को इस बत्ती का दीपक घर के देवस्थल, पूजा घर या आंगन में जलावें । आप घी में भी आक के पत्ते का चूर्ण डाल सकते हैं और दीपक कर सकते हैं। घर के अन्य प्रकाश बंद कर दें, यानी बिजली के बल्ब, राइ न जलते रहे । इसी दीपक के समक्ष हनुमानजी की स्तुति करें, हनुमान चालीसा, हनुमत् स्तोत्र, हनुमानाष्टक, बजरंग वाण का पाठ करें तथा ११ माला “ॐ हनु हनुमंते नमः” का जाप करें।
आकर्षण में दीपक का महत्व
किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए दीपक तंत्रम का प्रयोग उत्तम होता है। यदि आप स्त्री हैं तो घी का दीपक जलाकर किसी खिड़की या झरोखे में रखे उसकी पूजा करें और मनोरथ कहें। आंचल की ओढ़ ऐसे ढंग से बनाये रहे कि दीपक बुझे नही साथ ही आपका वक्षस्थल भी प्रकाशित होता रहे। बार-बार उस व्यक्ति का नाम लेकर मन-ही-मन पुकारें, जिसे आप आकर्षित करना चाहती हैं। ४१ दिनों तक दीपक तंत्रम् का सहारा लेने पर आपको अनुकूल फल दिखाई पड़ेगा।
यदि आप पुरुष हैं तो माथे पर कोई कपड़ा बांध लें और दीपक की सीध में चेहरा करके अपलक ज्योति को देखते हुए अभीष्ट नर या नारी को बुलावें। मन में ऐसा विश्वास भी रखें वह चाहे जितनी दूर हो लेकिन वह आपकी मानसिक पुकार को सुन रही है। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि जिसका आकर्षण करना है, वह जिस दिशा में रहता है उसी दिशा में दीपक रखा जाये। साथ ही दीपक में फूल बत्ती जलती रहे।
मोहनी मे दीपक का महत्व
आकर्षण की भांति मोहन क्रिया भी की जा सकती है। तीव्र प्रभावशाली मोहन क्रिया के लिये साध्य का नाम फूलों को रखकर एक खुले स्थान पर लिखे, बनाये प्रत्येक फूल के ऊपर छोटे-छोटे चमेली के तेल के दीपक रखें और उनकी पूजा करके उनसे निवेदन करें कि अमुक... को मोहित करा दें।
यदि साध्य का चित्र हो तो उसे सादर से प्रतिष्ठित करके उसके समक्ष एक चमेली के तेल का दीपक जलाकर पूजा करें फिर दीपक से प्रार्थना करें। फिर साध्य व्यक्ति के चित्र को निरन्तर देखते हुये बातें करते रहें, उसे सम्मोहित करें। ११ या २१ दिनों तक नित्य दीपक का सहारा लेने पर अनुकूल फल मिलेगा ।
वशीकरण में दीपक का महत्व
वशीकरण के लिए कई प्रयोग है, किन्तु सबसे अच्छा प्रयोग यह है कि एक तीन इंच लम्बा दो ईंच चौड़ा सफेद भोज पत्र ले लें, उसमें अष्ट गंध की स्याही और चमेली की कलम से साध्य नर या नारी का नाम लिखें। उस नाम के नीचे यह वाक्य लिखें – “इमम् मम वश्यम् कुरु” फिर इसके नीचे अपना नाम लिखें। पहले से शुद्ध कपास से पांच फीट या दो गज का सूत कात लें। सूत मजबूत रहे। उसे चमेली के तेल में भिगोकर रख लें। भोजपत्र पर लिखावट की पूजा करें फिर उसे गोल-गोल बत्ती बना लें। लम्बाई में गोल भोजपत्र की बत्ती पर सूत को ठीक से लपेटते हुये साध्य व्यक्ति का नाम लेकर – “में 'वश्यम् कुरु” जपते रहें। सूत पास-पास ऐसा लपेटें कि पूरी बत्ती सूत से ढक जाय । इस बत्ती को चमेली के सुगंधित तेल में डुबोकर दीपक जलावें। दीपक की पूजा करें और साध्य का नाम लेकर “में वश्यं कुरु” का जाप १०६ बार करें। यह क्रिया गुरु पुष्प से प्रारम्भ करके अगले माह के पुण्य नक्षत्र तक करें। निश्चित है। आपका वशीकरण प्रयोग दीपक के माध्यम से सफल जायगा।
उच्चाटन या विद्वेषण मे दीपक का महत्व
यदि किसी पर दीपक के द्वारा उच्चाटन का प्रयोग करना हो तो भोजपत्र पर गंधक या सिंदूर (पीला असली सिंदूर जो पारे से बनता है) से साध्य का नाम लिखें, उसमें कपास लपेटकर बत्ती बनायें। पूजा करते समय उसके मन को प्रत्येक कार्य से या किसी विशेष कार्य से उच्चाटन करने की प्रार्थना करें। फिर उस बत्ती को नीम के तेल या भंगरा के तेल में डुबोकर दीपक जलावें। ऐसे दीपक को उसी दिशा की ओर रखें, जिधर साध्य व्यक्ति रहता हो । दीपक जलाकर पांच बार मन की बात कहकर तालियां बजाते रहें फिर पीठ दिखाकर लौट आवे। यदि छत पर सुरक्षित स्थान हो, तो ऊपर जाकर यह क्रिया करें और नीचे आ जायें। एक माह निरन्तर करने पर उस व्यक्ति का मानसिक उच्चाटन हो जायेगा ।
स्तम्भन मे दीपक का महत्व
एक फिट व्यास का एक गड़ढा बना लें अथवा एक बड़े मुंह का डिब्बा लें। डिब्बा लोहे का हो, उस पर काला पेण्ट चढ़ा हो। गडढा बना सकें तो ठीक। तीन इंच चौड़ा पांच इंच लम्बा लाल भोजपत्र लें उस पर काली स्याही या धतूरे के रस से एक मानव आकृति बनायें यानि साध्य का चित्र बनायें। उस पर साध्य का नाम, पिता का नाम, गोत्र, निवास स्थान का नाम पता आदि लिखें। उस भोज पत्र पर चित्र पर काले रंग के चावलों या धतूरे के बीजों या राई से मारने जैसे भाव से छिड़कते हुये कहें “अमुकस्य... स्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा” चावल मारने की क्रिया १३ बार करें फिर नीम के तेल में, उस भोजपत्र पर काला कपड़ा लपेट कर बाती बनायें। बाती को तेल में डुबोकर किसी शीशी में खड़ा करें फिर उसे जलाकर ऊपर वाला वाक्य बारम्बार दोहराते हुये दीपक को गड्ढे में रख दें फिर उस पर एक ढक्कन रख दें। सारी क्रिया करते समय“अमुकस्य... स्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा” का जाप करते रहें। ढक्कन लगाकर वापस आ जाय और हाथ-पैर, मुंह ठीक से धो लें। यह क्रिया आर्द्रा नक्षत्र से अगले नक्षत्र तक करें। एक माह में साध्य व्यक्ति की क्रियाओं, गतिविधियों का स्तम्भनं हो जायेगा ।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...