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सोमवार, 24 जून 2019

शीतला माता क्रोध शान्ति

****(((शीतला माता को शांत करने के उपाय)))*****


जिस घर में शीतला माता का प्रकोप हो उस घर में निम्न लिखित उपाय करने से माता शांत को जाती है।
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(((आवश्यक)))विषय को समझने के लिए पूरा लेख पढ़ें।
मैं कोई बहुत बड़ा विद्वान या कोई भयंकर साधु नहीं जो मेरे अनुभव में आया उस ज्ञान को आधार बनाकर आपसे ये बातें सांझा कर रहा हु आशा है मेरे इस प्रयास से आपकी कुछ तो मदद होगी।

चेचक, शीतला,विस्फोटक ज्वर,मोतिझारा,आंत्रज्वर,बुखार के इलावा बहुत सारे और नामों से जाने वाली समस्या है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये आमतौर पर पानी की अशुद्धि से होने वाला रोग है।धार्मिक रूप से रोग हिन्दू देवी शीतला माता से जुड़ा है जो कि आपने भक्त के रोग दूर करने की शक्ति रखती है मंद-मंद ज्वर और कभी तीव्र ज्वर इसमे होता है ये कोई नयी बात नही जीवन काल में प्रत्येक मनुष्य को ये समस्या एक बार तो आती ही है।अगर किसी को शीतला निकले और बुखार के साथ दाने भी निकलें तो ये अच्छी बात है दवा और परहेज करने के बाद रोगी पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है परंतु कई बार ये लक्षण अलग होते है दाने नही दिखाई देते और इस रोग को पहचानना कठिन हो जाता है।परिणामस्वरूप रोग का उचित उपचार नही होता।
आज से कुछ दशक पहले जो बुद्धिमान गृहणियां होती थी इसके लक्षणों को पहचान कर उसका घर में ही उपचार एवम इलाज कर लेती थीं। आज जमाना फ़ास्ट फ़ूड का है ।किसी भी घर की कोई मर्यादा नही बची परहेज आदमी तब करते हैं जब ये मामला बहुत अधिक बिगड़ जाता है कई लोगों को तो दस दस साल के बाद भी पता नही लगता अपने तजुर्बे से बताता हूं मेरे सामने सैकड़ो मामले आये अधिकतर तो ठीक होगये लेकिन कुछ मामले ठीक नही हुए अब मैं आपको बताता हूं कि वो मामले ठीक क्यों नहीं हुए कलयुग ने (बल्कि लोगों ने खुद) लोगों की जीवनशैली को उनकी बौद्धिक क्षमता को नष्ट कर दिया है कि लोग परहेजगारी से काम नही लेते। मांस मदिरा गरिष्ट चटपटा तला भुना हुआ भोजन इस रोग में किसी प्रकार से भी उचित नही लेकिन लोग नही हटते।तो ये तो स्प्ष्ट है कि जब घर में किसी को शीतला का निकासन हो उसे उबला हुआ सुपाच्य और हल्का खाना देना चाहिए।ना कि गरिष्ट और तामसिक ।

ऐसा भोजन शीतला माता के रोगी के लिए श्राप से कम नहीं है मिर्च मसाले वाला तला हुआ भुना हुआ गरिष्ठ और तामसिक भोजन शीतला ग्रस्त रोगी के लिए बहुत ही भयानक होता है इसमें ऐसी चीजें की जो बहुत ठंडी और बहुत गर्म हो से परहेज करना चाहिए अधिकतर लोगों में तो दाने होने के बाद आराम आ जाता है और माता दाने दिखने के बाद या दर्शन देने के बाद वापस हो जाती है लेकिन कई एक रोगी जिनके परिवार का माहौल ऐसा नहीं होता कि जहां माता शीतला के प्रति उचित सदाचारी व्यवहार नही होता तो रुष्ट होकर के रोगी के ऊपर कोप कर देती हैं  पिछले 30 वर्षों में मैंने अनुभव किया है एक बहुत भयानक भूत और पिशाच की तरह ग्रस्त व्यक्ति की तरह उस रोगी के हालात हो जाते हैं और देखने वाले लोग जो ओझा तांत्रिक विद्या गुनिया होते हैं उनको यह चीज समझ नहीं आती।
और इस चीज को समझने के लिए इस देवी को समझने
के लिए बहुत ही ज्यादा तजुर्बा और मां के आशीर्वाद की जरूरत होती है सामान्यत है मैं देखता हूं कि जो शीतला ग्रस्त रोगी हैं उन्हें माता मदानन माता समझ लिया जाता है और शीतला के निमित्त जब पाठ पूजा और उचित व्यवहार नहीं होता तो वह समस्या और बढ़ती जाती है इसके रोगियों में प्राय लक्षण देखने को मिल जाते हैं रोगी छोटी-छोटी बात पर खींझने लग जाता है मंद-मंद बुखार रहता है हाथ पांव में दाह या जलन होती है आग से निकलना प्रतीत होता है शरीर में ऐठन रहेगी और शरीर में दर्द रहेगा स्मृति में कमी आ जाती है और रोगी का बल नष्ट हो जाता है घर में दारिद्रता का वातावरण हो जाता है और क्लेश रहने के  कारण ऐसे घर बहुत उजड़ते हुए मैंने देखे हैं।

इस स्तुति रूपी मन्त्र से बहुत आराम मिलता है।
शीतला त्वं जगतमाता शीतला त्वं जगतपिता शीतला त्वं जगन्नधात्रि शीतलाये नमो नमः।
इसका लगातार जाप करना चाहिए और सभी नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
इस माता को अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ जोड़ देना हाला की अभी भी शोध एवं विचार का विषय है।यहाँ ये याद रखना चाहिए कि शीतला एक अपर देवता है एवं देवताओं के भी वंदनीय है।
ये पूर्णतया शुद्व एव सात्विक देवता है।इस लिए जब किसी को आपके घर में देवी का निकासन हो पूर्णतः शुद्ध एवम सात्विक विचार रखें और शुद्ध एवं सात्विक भोजन करें।
हिंसा काम क्लेश आदिक विचारों से दूर रहें।
शीतला माता सामानतः आढाई घंटे,आधईदिन या एक हफ्ता ग्यारह दिन और अगर बहुत बिगड़ जाए तो 21 दिनों में शांत होजाती है लेकिन अगर परहेज़ ना हो तो फिर पूरी ज़िंदगी भी लोगों को इस समस्या से परेशान होते हुए देखा है।
देवी की आराधना में ही मन की ततपरता सदैव रखें।
बांस के झाड़ू से आंगण नही बुहारना ।कपड़े से साफ करें।
दाल सब्ज़ी को तड़का/छोका नही लगाना चाहिए।
खाने में हल्दी का प्रयोग वर्जित है।
पीट पीट कर या साबुन तेल सुगन्धि युक्त पदार्थों का प्रयोग नही करना चाहिए।
मांस शराब लहसुन प्याज उर्दी मसूर ये सभी चीजें नही खानी चाहिये।याद रखें घर में कोई भी आदमी शराब मांस खाकर नही आना चाहिए।
रोगी के पास ऊंची आवाज में कोई भी ध्वनि वाद्य यंत्र नही बजाना चाहिये।
नीम के पत्ते बिस्तर के नीचे खूब सारे रखें ।
मरीज़ की खटिया के नीचे एक पात्र में पानी भरकर अड़हुल दो फूल डाल कर रात को रखें और फिर सुबह उसे किसी नीम के पेड़ की जड़ में डाल दें।
भूमि पर शयन करें।
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
गुग्गल की देसी घी और बतासा मिलाकर होम दें।
देवी भागवत अथवा दुर्गा सप्तशती दुर्गा नामावली दुर्गाशतनाम दुर्गा चालीसा शीतला चालिसा का पाठ करें।
खिचड़ी का प्रयोग करें या दही चावल का भोजन करें।
जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो सोमवार या शुक्रवार की शाम को चूल्हे को लीप पोतकर गुलगुले,पुए(गुड़ आटा तेल से)पूड़े बनाएं धूफ दीप लौंग इलायची पान फूल माता को अपनी सामर्थ्य के अनुसार चने की दाल भिगो कर दूसरे दिन  सुबह भोर में ही माता को कच्ची लस्सी से स्नान करवाकर चढ़ा दें और माता से शांत होने और अपने स्थान पर ही रहने की प्रार्थना करें।
अगर रोग का ज्यादा प्रकोप हो तो 11₹,सवा किलो गेहूं का आटा,एक नमक की थैली,एक बांस वाला झाड़ू रोगी के ऊपर से 7 बार उतारकर किसी ऊंची जगह पर श्री शीतला माता के नाम से रख दें। ये एक सामान्य परामर्श है इसको करने से पहले विशेषज्ञ से एक बार परामर्श कर लें।
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