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गुरुवार, 6 जून 2019

सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलन।

*******।।सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलन।*******
पर्वतीउवाच:
देवेश परमानंद भक्तानांभयप्रद,आगमा निगमसचैव बीजं बीजोदयस्था।।१।।
समुदायेंन बीजानां मंत्रो मंत्रस्य संहिता।
ऋशिछ्दादिकम भेदो वैदिकं यामलादिकम।।२।।
धर्मोअधर्मस्था ज्ञानं विज्ञानं च विकल्पनम।
निर्विकल्प विभागेनं तथा छठकर्म सिद्धये।३।।
भुक्ति मुक्ति प्रकारश्च सर्व प्राप्तं प्रसादत:।
कीलणं सार्वमंत्रनां शंसयद ह्रदये वच :।।४।।
इति श्रुत्वा शिवानाथ: पर्वत्या वचनम शुभम।
उवाच परया प्रीत्या मंत्रोतकील्कन शिवाम।।५।।
शिवोवाच।
वरानने ही सर्वस्य व्यक्ताव्यक्ततस्य वस्तुनः।
साक्षीभूय त्वमेवासि जगतस्तु मनोस्थता।।६।।
त्वया पृष्ठटँ वरारोहे तद्व्यामुत्कीलनम।
उद्दीपनम ही मन्त्रस्य सर्वस्योत्कीलन भवेत।७।।
पूरा तव मया भद्रे स्मकर्षण वश्यजा।
मंत्रणा कीलिता सिद्धि: शर्वे ते सप्तकोटिय:।।८।।
तवानुग्रह प्रीतत्वातसिद्धिस्तेषां फलप्रदा।
येनोपायेन भवति तं स्तोत्रं कथ्यामहम।।९।।
श्रुणु भद्रेअत्र सतत मवाभ्याखिलं जगत।
तस्य सिद्धिभवेतिष्ठ मया येषां प्रभावकम।।१०।।
अन्नं पान्नं हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं मया शिवे।
संजीवन्नं च मन्त्रनां तथा दत्यूं परनर्ध्रुवं।।११।।
यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोअपि वा।
अकीला अखिला मंत्रा सत्यं सत्यं ना संशय।।१२।।
ॐ अस्य श्री सर्व यन्त्र तन्त्र मन्त्रणामउत्कीलन मंत्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृति ऋषियेजगतीछन्द: निरंजनो देवता कलीं बीज,ह्रीं शक्ति , ह्रः लौ कीलकम , सप्तकोटि यंत्र मंत्र तंत्र कीलकानाम संजीवन सिद्धिार्थे जपे विनियोग:।
ॐ मूल प्रकृति ऋषिये नमः सिरषि।
ॐ जगतीचछन्दसे नमः मुखे।
ॐ निरंजन देवतायै नमः हृदि।
ॐ क्लीं बीजाय नमःगुह्ये।
ॐ ह्रीं शक्तिये नमः पादयो:।
ॐ ह्रः लौं कीलकाय नमः सर्वांगये।
करन्यास।*****
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रो कनास्तिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्रीं शिरषे स्वाहा।
ॐ ह्रूं शिखायै वौषट।
ॐ ह्रैं कवचाय हूं।
ॐ ह्रो नेत्रत्रयाय फ़ट।
ॐ ब्रह्मा स्वरूपम च  निरंजन तं ज्योति: प्रकाशमनिशं महतो महानन्तम करुणायरूपमतिबोधकरं प्रसन्नाननं दिव्यं स्मरामि सततं मनुजावनाय।।१।। एवं ध्यात्वा स्मरेनित्यं तस्य सिद्धि अस्तु सर्वदा,वांछित फलमाप्नोति मन्त्रसंजीवनं ध्रुवम।।२।।
मन्त्र:-ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व मन्त्र-यन्त्र-तंत्रादिनाम उत्कीलणं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रां षट पंचक्षरणंउत्कीलय उत्कीलय स्वाहा।।
ॐ जूं सर्व मन्त्र तंत्र यंत्राणां संजीवन्नं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं जूं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृ लृ एं ऐं ओं औं अं आ: कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञ टँ ठं डं ढं नं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं हं क्षं मात्राक्षरणां सर्वम उत्कीलणं कुरु स्वाहा।
ॐ सोहं हं सो हं (११ बार), ॐ जूं सों हं हंसः ॐ ॐ(११ बार), ॐ हं जूं हं सं गं (११ बार),सोहं हं सो यं (११ बार),लं(११ बार), ॐ (११ बार),यं (११ बार),ॐ ह्रीं जूं सर्व मन्त्र तन्त्र यंत्रास्तोत्र कवचादिनां सनजीवय संजीवन्नं कुरु कुरु स्वाहा।। ॐ सो हं हं स: जूं संजीवणं स्वाहा।।
ॐ ह्रीं मंत्राक्षराणं उत्कीलय उत्कीलणं कुरू कुरु स्वाहा।
ॐ ॐ प्रणवरूपाय अं आं परमरूपिने।
इं ईं शक्तिस्वरूपाय उं ऊं तेजोमयाय च।१।
ऋ ऋ रंजित दीपताये लृ लृ स्थूल स्वरूपिणे।
एं ऐं वांचा विलासाय ओं औं अं आ: शिवाय च।२।।
कं खं कामलनेत्राये गं घँ गरुड़गामिने ।
ङ चं श्री चंद्र भालाय छं जं जयकराये ते।३।।
झं टँ ठं जय कर्त्रे डं ढं णं तं पराय च।
थं दं धं नं नामस्तसमे पं फं यंत्रमयाय च।।४।।
बं भं मं बलवीर्याये यं रं लं यशसे नमः।
वं शं षं बहुवादाये सं हं लं क्षं स्वरूपिनेे।।५।।
दिशामादित्य रूपाये तेजसे रूप धारिने।
अनन्ताय अनन्ताय नमस्तसमे नमो नमः।।६।।
मातृकाया: प्रकाशाय तुभ्यं तस्मे नमो नमः।
प्राणेशाय क्षीणदाये सं संजीव नमो नमः।।७।।
निरंजनस्य   देवस्य नामकर्म     विधानत:।
त्वया ध्यातँ च शक्तया च तेन संजायते जगत।।८।।
स्तुतःमचिरं ध्यात्वा मयाया ध्वंस हेतवे।
संतुष्ट आ भार्गवाया हैं यशस्वी जायते ही स:।।९।।
ब्राह्मणं चेत्यन्ति विविध सुर नरांस्त्रपयंती प्रमोदाद।
ध्यानेनोद्देपयन्ती निगम जप मनुं षटपदं प्रेरयंती।
सर्वां न देवान जयंती दितिसुतदमनी सापह्नकार मूर्ति-
स्तुभ्यं तस्मै च जाप्यं स्मररचितमनुं मोशय शाप जालात।।१०।।
इदं श्री त्रिपुरास्तोत्रं पठेद भक्त्या तू यो नर:।
सर्वान कामनाप्नोति सर्वशापाद विमुच्येत।।
।।इति श्री सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलनँ सम्पूर्णम।।



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