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मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

"दौली" जिन्नों की शहज़ादी

🎭 दौली शहज़ादी

दोली शेहज़ादी जिन्नात की बेहद खूबसूरत और रुहानी शक्तियों की मालिक शहज़ादी है। 

इसके अधीन जिन्नातों के बहुत सारे कबीले हैं और तमाम कामों में साधक की मार्गदर्शक और मददगार होती है।

जादू टोना और भूत प्रेत इत्यादि नकारात्मक शक्तियों के द्वारा त्रस्त मरीजों के इलाज में भी आमिल की मदद करती है और मोहब्बत एवं व जुदाई सभी के कामों में भी मदद करती है। 
साधक जब चाहे कहीं भी दूर बैठे बैठे किसी की भी खबर मंगवा सकता है 
इसको प्रसन्न करने के बाद साधक के लिए कोई भी वस्तु को प्राप्त करना असंभव नहीं रहता।

दौली शेहज़ादी की तसख़ीर के इस साधना को करने का तरीका

◆इस साधना को नौ चंदी जुमेरात से रोज़ाना एक सौ एक (101) बार मंतर बाद

◆ नमाज़ इशा तकरीबन रात्रि 10 बजे लकड़ी के तख़्त पोश पर आसान बिछा कर पढ़ा करें। 
 
◆पढ़ने के मकान में दूसरा कोई शख़्स ना आए। 

◆तख़्त पोश पर ही सो जाया करें। 

◆अमल पढ़ने से पहले चारों कुल शरीफ और आयतलकुर्सी पढ़कर अपने इर्द गिर्द हिसार कर लिया करें। 

◆अगरबत्ती रोज़ाना जलाया करें और अपने लिबास को इत्र उद्द ,हिना लगाकर रखें। 

◆लहसन, प्याज़, प्याज़, मूली, गोश्त, अंडा, मछली से परहैज़ करें। 

◆ साधना के दौरान पूरी तरह से ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करें और हमेशा उसी तख़्तपोश पर ही सोएं।

◆साधना के समय ज़लज़ला, आँधी, बारिश, टिड्डी दल, चिमगादड़, भेंस, बिल्लियाँ, सांप और रीछ वगैरा अक्सर नज़र आते हैं। अलावा अज़ीं डरावनी शक्लें भी सामने आती हैं। 

◆कई बार दोली शेहज़ादी के ताबै जिन्नात तख़्त पोश को उठाकर ले जाते हैं। आग में फैंकने या समुंदर में गिराने जैसा है। 

◆ रियाज़त ख़्वाबों में भी ऐसे ही मनाज़िर नज़र आते हैं। आमिल के लिए ज़रूरी है। के बिलकुल ना डरे और रोज़ाना मुकर्रर कर्दा तादाद में अमल पढ़ता रहे। 

◆इक्कीस दिनों के बाद रात खूबसूरत औरतों की शक्ल में दोली शेहज़ादी की कनीज़ें आती हैं जो आमिल को अपनी तरफ रागिब करने की कोशिश करती हैं। मिल के लिए लाज़िम है के अपने शेहवानी ख्यालात पर कंट्रोल रखे। 

◆चालीसवीं या इक्तालीसवीं रात दोली शेहज़ादी शाहाना लिबास मेंअपने ख़िद्दाम जिन्नात और कनीज़ों के हमराह हाज़िर होकर एहदो पैमाँ करेगी। 

◆अगर आमिल/साधक चाहे तो ख़िद्दाम जिन्नात या चंद कनीज़ों को दोली शेहजादी से मांग ले, वो उनको आमिल का मती व फरमाँबरदार बना देगी। 

◆साधक अगर चाहे तो सिर्फ दोली शेहजादी से अपनी दोस्ती का तलबगार रहे। कौलो करार करेगी।

◆दोली शेहज़ादी का आमिल पल भर में मगुरूर हसीनों को राम कर सकता है। 
◆हाज़िरी के वक्त दोबारा हाज़िरी का तरीका भी पूछ लें और तसख़ीरे के बाद भी अमल को रोज़ाना इक्तालीस(41) मर्तबा पढ़ना होगा हमेशा के लिए। 

◆जब भी दोली शेहज़ादी या उसके अता कर्दा खिद्दाम, जिन्नात या कनीज़ों को हाज़िर करेंगे, फौरन हाज़िर होकर आपकी मुआविना होंगी। 

◆दोली शेहज़ादी का आमिल हवा में परवाज़ कर सकता है, पल भन् में जहाँ चाहे जा सकता है, 

◆साधक को वो देशों विदेशों की करवाती है, ये शानदार साधना अमल अपनी मिसाल आप है।

दौली शेहज़ादी का मंतर ये है:

“काला कलवा काली रात। कलवा भेजिया गोरी के पास। गोरी नहीं आई मेरे पास। पई तड़फे दिन ते रात। बैठियाँ बह ना होवे। खिलोतियाँ खिलौना होवे। मेरे बाहिज आराम ना आवे। गोरी नौं कौन कौन लियावे। | हनुमान जत्ती और बैर भाई। आई माई कालकाँ आई कटक चढ़ाई। गोरी नों सिरों फड़ के लियाई। गोरी कीकर सड़े अग में बले। दोहाई व डपेर की। दोहाई नक्श ख़ातिम सुलेमानी। मैं मेहबूब इलाही । इस्लाम बरहक। बदूह हाज़िर। ख़िज़र ख़्वाज ज़ले बहुजूर। सूरत मोहम्मद की सब हाज़िर हुजुर। | उठे शाह फरिश्ता अध्धी रात लिया। वसल व कालुवा। अग्गे हो चले। तू मेरा मुहिब में तेरा मेहबूब। पूछन अपने जमाल से नबी साहब। चले समयाँ रास में। जिन्नों का पीर कहाए के बदूह के सुहूह ज़मान का पूत दौड़ कर आवे। नक्की नक्की जन्नत को कैद कर के लिया। देखे संतरी मेरे इल्म का तमाशा। मंतर का जंतर चले। अग्गे बी बी फातिमा वाह हज़रत अली चढ़े हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा चढ़े इस घड़ी। ववले वाह वाखले वाव ते नू दिल कबूतर हो रहिया। घेरा पड़ा यासीन हैं पुर मुरादतों महीउद्दीन। तेल तेल महाँ का तेल। मथ्थे लगावाँ राजा पर जा पीरीं पानवाँ चंद मारा मुख में सूरज करे रसो। तेग़ मारी महा वली सफ़ाना बोले को।

ये साधना बहुत ही ज्यादा खतरनाक और कठिन है बिना गुरु के इस प्रयोग को करने से धोखा मिलना 100% प्रमाणित है।

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