शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

मैदानन माता जी के व्रत


माता मैदानन के व्रत।

अलग अलग स्थानों पर माता मैदानन की किसी न किसी रूप में पूजा अवश्य ही होती है हमारे  समाज में  देवी के अलग अलग स्वरूपों के व्रत रखे जाते है। सामान्य रूप से आपने देखा होगा कि नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत रखे जाते है वस्तुतः वो एक देवी के निमित नही बल्कि देवी दुर्गा के अलग अलग नौ स्वरूपों के निमित्त रखें जाते है अलग अलग वारों को अलग अलग तिथियों को व्रत धारण करने का अपना अपना अलग महत्व होता है जैसे हनुमानजी और अलग अलग देवताओं और ग्रहों को शांत करने और अपना मनोभिलाषित कार्य सिद्धि के लिए व्रत धारण किये जाते है।

उसी प्रकार से बावन रूपी माता मैदानन की प्रसन्नता हेतु और अपनी मनोभिलाषा पूरी करने की लिए माता जी के भगत माता जी के निमित व्रत धारण करते हैं।

○बावन रूपी माता मैदानन के व्रत को शनिवार या मङ्गलवार को धारण करें।
○व्रत में मन और तन की पवित्रता धारण करें। और हिंसा काम क्रोध त्यागकर माता जी के चरणों में ध्यान रखें।
○सुबह सौच स्नान इत्यादि से निवर्त होकर साफ वस्त्र धारण करें अगर हो सके तो लाल रंग के वस्त्रों का चुनाव करें।
○थोड़ा सा कच्चा ढूध+थोड़ा सा मीठा डालकर (जो आपके पास शुद्ध उप्लब्ध हो) कुछ कच्चे चावल  और एक लीटर जल मिलादें,एक लाल चुन्नी,एक पानी वाला नारियल ,सोलह श्रृंगार,एक लाल ध्वजा, धूफ, दीप,कुछ फूल ,फल ,एक जोड़ा मीठे पान, सात पीस मिठाई के,सात लौंग,सात इलायची, गुड़ की दो भेली,मौली(कलावा) का जोड़ा,अपने साथ ले लें। माता जी के थान पर जाकर सभसे पहले वहां सफाई करें फिर माता जी के थान को कच्ची लस्सी उपरोक्त जो आपने बनाई है से स्नान करवा कर चुनरी ओढ़ा दें फिर ध्वजा नारियल सृंगार चढ़ा दें,दूफ दीप प्रज्वलित कर के फल फूल पान मिठाई और बाकी सामान चढ़ा देंने के उपरांत  हाथ में जल लेकर अपने गुरु और गणेश का ध्यान करते हुए माता जी से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु प्रार्थना करें (यानि माता जी के सामने बोलें की आप किस लिए यह व्रत धारण कर रहे है बोलकर जल भूमि पर गिरा दें इस प्रकार आप व्रत धारण कर लेंगे 
○अपना झूठा न तो किसी को दें ना ही किसी का झूठा खुद खाएं।
○किसी की भी निंदा चुगली ना करें।

○शाम को सायंकाल अगर माता जी के स्थान पर जा सकें तो बहुत उत्तम होगा जाकर माता जी को धूफ दीप अर्पित करें फिर लड्डू बूँदी वाले, हलवा, बतासा, जो भी आपकी शक्ति के अनुसार मिले चढ़ा दें अगर ना जा सकें तो अपने घर पर ही सवा हाथ ज़मीन पर गे के गोबर से लीप पोत कर सफाई करने के बाद सरसों या तिल के तेल का दीया जलाएं गाय के गोबर के कंडे/उपली/चिपरी/पाथी जलाकर आग तैयार करें फिर उसपर सरसों के तेल से होम दें जब होम पर अग्नि चढ़े तो एक लोटा जल लेकर अग्नि के ऊपर से फटाफट 7 बार उल्टा उतार कर घर से बाहर डालकर लोटा वहीं उल्टा रकह दे। फिर अन्य लोटे में जल लेकर 7 बार सीधा उतारें और बहुत थोड़ा सा जल अग्नि पर छिड़क दें अग्नि शुद्ध हो जाने के उपरांत होम में बतासा,लौंग,हवन सामग्री,गुग्गल, मिठाई,शक्कर, चीनी, जो भी शुद्ध अवस्था में आपके पास मौजूद है उसी से तन्मयता से होम करें। फिर रात्रि में थोड़ा सा शुद्ध सात्विक भोजन लें और विश्राम करें। दुसरे दिन सुबह जल्दी उठकर पहले दिन वाली राख जो होम की होगी उसे समेट कर जल प्रवाहित करें फिर दूसरे दिन सामन्य भोजन लें।

○इसी प्रकार 7 ,11,21,31,41,51 व्रत रखे जा सकते है आपकी आस्था रंग लायेगी और आपकी मनोकामना पूरी होगी जब आपके व्रत पूरे हो जाएँ तो अंतिम दिन किसी ब्राह्मण को बुलाकर हवन करवावै  बहुत प्रकार के पकवान बनाएं होम अग्यार के उपरांत हर्ष के साथ माता जी का ध्यान में में धारण किये हुए सात क्वारी कन्याओं का पूजन करें उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन करावै ब्राह्मण और कन्याओं को वस्त्र और दक्षिणा देकर सम्मानित करें और आशीर्वाद लें।

○इसी बीच आपकी जो मनोअभिलाषित इच्छा होगी माता मैदानन की कृपा से अवश्य पूरी होगी।

○व्रत के दौरान आप माता जी के भजन कीर्तन सुने चालीसा दुर्गा सप्तशती का पाठ या माता जी का जो भी पाठ आप करना चाहो कर सकते हो 
○आप दुर्गा नवार्ण मन्त्र ,कुंजिकास्तोत्र का भी पाठ भी कर सकते हैं  नवार्ण मन्त्र:-(ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे )।

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बुधवार, 28 जुलाई 2021

रेकी ध्यान योग।

                            रेकी ध्यान।

मन को पूर्ण मौन मिलना कठिन है। हमारी शोर भरी दुनिया ने हमें सरल और सूक्ष्म अनुभवों से वंचित कर दिया है।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक प्राचीन जापानी प्रथा है जो आपको अपने शरीर में सार्वभौमिक ऊर्जा का एहसास करा सकती है।
इस विधि को रेकी ध्यान कहा जाता हैं। 
                          रेकी क्या है?
1920 के दशक में, मिकाओ उसुई नाम के एक जापानी बौद्ध भिक्षु ने रेकी नामक प्राकृतिक उपचार की एक प्रणाली तैयार की।  

उपचार के प्रति रेकी का दृष्टिकोण अद्वितीय है।  इसमें शरीर में जीवन ऊर्जा को बहाल करने, उसे शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक करने के लिए अपने हाथों का उपयोग करना शामिल है।

'रेकी' शब्द का अर्थ है 'आध्यात्मिक रूप से निर्देशित जीवन शक्ति ऊर्जा।' यह तकनीक चिकित्सक को रेकी प्रक्रिया के बारे में जागरूक और जिम्मेदार होने का आग्रह करती है।

क्योंकि परंपरा दृढ़ता से मानती है कि चिकित्सा के साथ शामिल होने पर उपचार तेज होता है।जिसका कोई यकीन नही कर सकता।

 कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र, मन और शरीर की क्षमताओं के बावजूद रेकी आजमा सकता है।  रेकी की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक रेकी ध्यान है। 


 रेकी ध्यान क्या है?
 रेकी ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आप मौन और शांत मन का अनुभव कर सकते हैं।  रेकी ध्यान ऊर्जा उपचार और प्रेमपूर्ण है।  इसमें आपके ध्यान के अनुभव को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतीक और मंत्र शामिल हैं।  यह पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में उच्च स्थान पर है।


इसके अभ्यास के तरीके को जानने के लिए नीचे देखें।
रेकी ध्यान तकनीक
सिस्टम की सफाई
चक्र बल
हाथों से उपचार
अंतिम विचार

1. सिस्टम की सफाई

 एकांत शांत स्थान पर किसी आसनपर अपनी पीठ सीधी करके आराम से बैठ जाएं या लेट जाएं। 
शांत, रचित और तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।  गहरी साँस लें।  कल्पना करें कि आप सभी खुशियों और अच्छाइयों को अंदर ले रहे हैं, और इस विचार के साथ गहराई से बाहर निकलते हैं कि नकारात्मक भावनाएं, जैसे कि अवसाद, भय और चिंता, आपके सिस्टम से बाहर निकल रहे हैं।  इस तरह से एक-दो बार सांस लें, और देखें कि आपका दिमाग और शरीर किस तरह से इसमें ट्यून करते हैं और आराम करते हैं।


2. चक्र बल
आपके शरीर में सात चक्र हैं, आपकी रीढ़ की हड्डी के आधार से लेकर आपके सिर के शीर्ष तक, जो शरीर के ऊर्जा केंद्र हैं।  प्रत्येक चक्र क्षेत्र में अपना हाथ अपने शरीर के सामने रखें और प्रत्येक स्थिति में कुछ मिनट के लिए अपने शरीर की आवश्यकता के आधार पर पकड़ें।  यदि आपको लगता है कि आपका शरीर हाथ को अधिक समय तक रहने के लिए कह रहा है, तो उसे रहने दें।  अगर आपके शरीर में पर्याप्त हो गया है तो इसे हटा दें।  हाथों से महसूस करना आपके शरीर को जोड़ने और सुनने का सबसे अच्छा तरीका है।जब आप अपने हाथों से अपने शरीर में धुन लगाते हैं, तो कल्पना करें कि ब्रह्मांड की जीवन शक्ति आपके हाथों से आपके शरीर में प्रवेश कर रही है, चक्रों के माध्यम के रूप में।  अपने शरीर को इस ऊर्जा प्रवाह से गूंजते हुए महसूस करें, और गहरी विश्राम और कायाकल्प की स्थिति में जाएं।


 3.हीलिंग-थ्रू-हैंड्स

सबसे पहले अपनी हथेलियों को अपने सिर के ऊपर एक साथ रखें। हाथों को वहीं पकड़ें और अपने शरीर को ध्यान और ध्यान से सुनने की कोशिश करें।  

ऐसा करते समय, गहरी और धीरे-धीरे सांस लें, नकारात्मक को हटा दें और अपने सिस्टम में सकारात्मकता को आत्मसात  करें।आराम करना।  अपने हाथों को माथे पर और फिर अपने सिर के पीछे रखें।  इसके बाद गले के नीचे जाएं और एक हाथ धीरे से उस पर और दूसरा अपनी गर्दन के पीछे रखें।  इसे कुछ देर रुकें और आराम करें।  अब, नीचे जाएं और अपने हाथों को अपने कंधों के पीछे, उंगलियों को नीचे की ओर रखते हुए, अपनी छाती पर अपने दिल को ढँक लें, छाती के निचले हिस्से को पसलियों के पास, अपने पेट पर और फिर पेट के निचले हिस्से पर रखें।  सुनिश्चित करें कि प्रत्येक स्थिति में आप अपने स्पर्श से कोमल हों। 
हाथ तब तक पकड़ें जब तक आपका शरीर इसके लिए न कहे, आराम करें और अगले भाग पर जाएँ। सिर और धड़ के साथ हो जाने के बाद, अपने कूल्हों पर नीचे जाएं और अपने हाथों को अपने दोनों कूल्हों, घुटनों और पैरों पर रखें।  पैरों के लिए, अपनी सुविधा के आधार पर अपने हाथों को या तो उनके ऊपर या नीचे रखें।  प्रत्येक मोड़ पर, अपने शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करें।अनुभव का आनंद लें।

4. अंतिम विचार
अपने हाथों को वापस प्रार्थना की स्थिति में लाएं और उन्हें अपनी छाती के सामने रखें।  अपनी रीढ़ को सीधा करके बैठें और आपका शरीर थोड़ा तना हुआ हो।  सामान्य रूप से सांस लें और अपने शरीर में चल रही ऊर्जा को महसूस करें।  इसे लगभग 3 से 5 मिनट तक करें या जब तक आप इसे करने की आवश्यकता महसूस न करें।  जब आप प्रज्वलित और ऊर्जावान महसूस करते हैं तो उपचार प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
रेकी ध्यान के लाभ
दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने के लिए ये ध्यान रेकी बहुत अधिक लाभ दायक है।
रेकी ध्यान आपके दिमाग को आराम देगा 
आपके तनाव कम करेगा
यह आप के विचारों को स्पष्टता देगा
ध्यान आपकी धारणा और दृश्यता को बढ़ाता है
यह आपकी चेतना को बढ़ाता है और समस्याओं को हल करने की आपकी क्षमता को बेहतर बनाता है
इस तकनीक को व्यापक रूप से कई विकृतियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है
यह सर्जरी के बाद के उपचार के लिए आदर्श है
यह अच्छी नींद में मदद करता है
रेकी ध्यान अन्य उपचार/चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ अच्छा काम करता है
यह तकनीक आपके शरीर में ऊर्जा अवरोधों को दूर करती है, जिससे मुक्त ऊर्जा प्रवाह सक्षम होता है, जिससे आपको एक स्वस्थ शरीर मिलता है
यह एक आत्म-विकास और परिवर्तन उपकरण है

रेकी ध्यान प्रक्रिया में छात्र को अभ्यस्त करने के लिए गुरु को कम से कम 2 से 3 घंटे की आवश्यकता होती है।
याद रखें कि रेकी प्राकृतिक ब्रह्मांडीय उर्जाओं की साधना है ना कि कोई धर्म या सम्प्रदाय है।  

किसी भी धर्म के लोग या जो धर्म को नहीं मानते वे रेकी का अभ्यास कर सकते हैं।  
रेकी चिकित्सक दुनिया भर से हैं और विभिन्न संप्रदायों और प्रथाओं से आते हैं।
 ((रेकी एक जापानी शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है और इसका उच्चारण 'रे की' के रूप में किया जाता है।))

रेकी ध्यान आपके शरीर में ऊर्जा तत्वों को पुनर्स्थापित और संरक्षित करता है।

जिससे आप स्थिर, रचित और स्वस्थ बनते हैं।  यह आपके शरीर में सभी अप्रकाशित तनाव को तोड़ता है और आपके जीवन को खुशहाल और आसान बनाता है। आगे बढ़ें और स्वयं को जानने के लिए ध्यान का प्रयास करें

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

अन्नपूर्णा माता मन्त्र सिद्धि

अन्नपूर्णा भैरवी-मन्त्र प्रयोग


भगवती अन्नपूर्णा को 'अन्नपूर्णेश्वरी देवी' भी कहा जाता है। 

इनका मन्त्र निम्नलिखित हैं

 १.ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्ण स्वाहा । 

उक्त मन्त्रों के जप तथा देवता के पूजन से धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की वृद्धि होती है ।

पूजा विधि

इनका पूजा-क्रम यह है कि सर्वप्रथम सामान्य पूजा-पद्धति के अनुसार

प्रातःकृत्य से पीठ-न्यास तक के कर्म करके, पूर्वादि केशरों में

ॐ वामायै नमः ।
ॐ ज्येष्ठायै नमः ।
ॐ रौद्र्यै नमः ।
ॐ काल्यै नमः ।
ॐ कल-विकरण्यं नमः ।
ॐ बल-विकरण्यै नमः ।
ॐ बल-प्रमथन्यै नमः । 
ॐ सर्व-भूत-दमन्यै नमः ।

मध्य में

ॐ मनोन्मन्यै नमः । 

उक्त प्रकार से न्यास करें फिर इन्हीं के समीप क्रमशः

ॐ जयायै नमः ।
ॐ विजयाय नमः ।
ॐ अजिताय नमः ।
ॐ अपराजिताय नमः । 
ॐ नित्याय नमः ।
ॐ विलासिन्यै नमः ।
ॐ द्रोग्यं नमः ।
ॐ अघोराय नमः ।

मध्य में - ॐ मङ्गलाय नमः । से न्यास करें।

फिर उनके ऊपर

"ह सौः सदाशिव महाप्रेत- पद्मासनाय नमः'

का न्यास करे। फिर निम्नानुसार 'ऋष्यादि न्यास' आदि करें।,

ऋष्यादि न्यास

शिरसि ब्रह्मणे ऋषये नमः ।
मुखे पंक्तिश्छन्दसे नमः । 
हृदि अन्नपूर्णेश्वय भैरव्यं देवताय नमः ।
गुह्यं ह्रीं बीजाय नमः ।
पादयोः श्रीं शक्तये नमः । 
सर्वाङ्ग क्लीं कीलकाय नमः ।

करायास

ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
हं मध्यमाभ्यां नमः ।
ह्रौं अनामिकाभ्यां नमः ।
ह्रौं कनिष्ठाभ्यां नमः ।
हः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।
ह्रां हृदयाय नमः ।
ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ह्र शिखायै वषट् ।
ह्रौं कवचाय हुं ।
ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ह्रः अस्त्राय फट् ।

पद-न्यास

मूर्ध्नि
ॐ नमः ।

नेत्रयोः
ह्रीं नमः, श्रीं नमः ।

कर्णयोः
क्लीं नमः, नमो नमः ।

नसो
भगवति नमः माहेश्वरि नमः ।

मुखे
अन्नपूर्णे नमः ।गुह्य स्वाहा नमः ।

फिर गुह्य से मुध्नि तक क्रमशः इन्हीं मन्त्रों से क्रमशः न्यास करे । इसके पश्चात् प्रारम्भ के चार बीजों का ब्रह्मरन्ध्र, मुख, हृदय तथा मूलाधार में क्रमशः न्यास कर, शेव पाँच बीजों का मध्य, नासिका, कण्ठ, नाभि तथा लिङ्ग में न्यास करें। फिर मूल मन्त्र से 'व्यापक न्यास कर, निम्नानुसार करें ध्यान

ध्यान

"तप्त कांचनवर्णाभां बालेन्दु कृत शेखराम्। नवरत्न प्रभादीप्त मुकुटां कु कुमारुणां ॥ चित्रवस्त्र परीधानां मकराक्षीं त्रिलोचनाम् । सुवर्ण कलाशाकार पीनोन्नत पयोधरां ॥ गो क्षीर धाम धवलं पञ्चवक्त्रं त्रिलोचनाम् । प्रसन्नवदनं शम्भु नीलकण्ठ विराजितम् ।। कपर्दिन्म स्फुरत्सर्पभूषणं कुन्दसन्निभम् । नृत्यन्तमनिशं हृष्टं द्रष्ट्वानन्दमयीं परां ॥ सानन्द मुख लोलाक्षी मेखलाढ्य नितम्बिनीम् । अन्नदानरतां नित्यां भूमि श्रीभ्यामलंकृताम् ॥"

भावार्थ - "भगवती अन्नपूर्णेश्वरी भैरवी के शरीर की कान्ति तप्त-स्वर्ण जैसी है। उनके मस्तक पर बाल-चन्द्र सुशोभित है। उनका मुकुट नवीन रत्नों की चमक से दीप्तिमान है। उनके शरीर का वर्ण कुटुंकुम के समान अरुण है। वे विलक्षण वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके मकर जैसे सुन्दर तीन नेत्र हैं। उनके दोनों स्तन स्वर्ण कलश की भाँति स्थूल तथा उन्नत हैं। ऐसे स्वरूप वाली भगवती भैरवी श्वेतवर्णं वाले, पाँच मुखों वाले, तीन नेत्रों वाले, प्रसन्नामुख, नीलकण्ठ, सर्पों से विभूषित शरीर वाले एवं कुन्द-पुष्प जैसी कान्ति मुक्त शरीर वाले शिवजी को नृत्य करते हुए देख कर अत्यन्त आनन्दित हो रही हैं। देवी के आनन्दित मुख मण्डल में चञ्चल नेत्र सुशोभित हैं। कटि में बंधी मेखला (करधनी) सुशो भित है। वे पृथ्वी तथा लक्ष्मी से अलंकृत नित्य अन्न-दान करने में संलग्न हैं।

करें।

उक्त प्रकार से ध्यान कर, मानसोपचार पूजा करें तथा शंख स्थापित

पूजा-यन्त्र


देवी का पूजा-यन्त्र इस प्रकार तैयार करें

पहले त्रिकोण, उसके बाहर चतुर्दल पद्म, उसके बाहर अष्टदल पद्म, बाहर षोडशदल पद्म तथा अन्त में चतुर्द्वार युक्त भूपुर का निर्माण करें। उसके

उक्त विधि से निर्मित यन्त्र का स्वरूप नीचे प्रदर्शित किया गया है

(अन्नपूर्णा भैरवी पूजन-यन्त्र)

यन्त्रलेखनोपरान्त पीठ-पूजा कर, पुनः ध्यान-आवाहनादि से पञ्च-पुष्पां जलि प्रदान पर्यन्त कर्म कर, आवरण-पूजा आरम्भ करें। यथा

आवरण पूजा

कणिका में, अग्नि, ईशान, नैऋत्व, वायु कोणों में तथा मध्य एवं चारों दिशाओं में क्रमशः "हां हृदयाय नमः" इत्यादि से षडङ्ग-पूजा करें। फिर, त्रिकोण के अग्रभाग में "ॐ हीं नमः शिवाय नमः' - इस मन्त्र द्वारा पूजाकर, वायुकोण में "ॐ नमो भगवते वराह रुपाय भूर्भुवः स्वः पतये भू-पतित्व मे देहि बदापय स्वाहा" - इस मन्त्र से बराहदेव की पूजा करें ।

फिर दक्षिण कोण में नारायण की पूजा कर, दक्षिण तथा वाम भाग में"ॐ ग्लौं श्रीं अन्नं मे देह्यन्नाधिपतये मनान प्रदापय स्वाहा श्रीं ग्लो" - इससे

भूमि तथा श्री की पूजा करें। फिर चतुर्दल पद्म के पूर्व-दल में -

ॐ पर विद्यायै नमः ।
दक्षिण-दल में -

"ह्रीं भुवनेश्वय नमः ।
पश्चिम-दल में -

"श्रीं कमलाय नमः ।
उत्तर-दल में -

"क्लीं सुभगाय नमः ।

से पूजा करें।

फिर अष्टदल पद्म के आठों दलों में पश्चिम दिशा के क्रम से 'ब्राह्म यैनमः' आदि मन्त्रों द्वारा अष्ट मातृकाओं का पूजन करें।

इसके पश्चात् षोडशदल पद्म के पूर्व-दल से आरम्भ कर क्रमश: निम्न लिखित मन्त्रों द्वारा पूजन करें

नं अमृतार्य अन्नपूर्णाय नमः ।
मों मानदाय अन्नपूर्णाय नमः ।
भं तुष्टयं अन्नपूर्णाय नमः ।
गं पुष्ट्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
वं प्रीत्य अन्नपूर्णाय नमः । 
ति रत्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
मां क्रियाय अन्नपूर्णाय नमः ।
हें श्रियं अन्नपूर्णाय नमः ।
एवं सुधाय अन्नपूर्णाय नमः ।
र रात्र्यं अन्नपूर्णाय नमः । 
न्नं ज्योत्स्नायं अन्नपूर्णाय नमः ।
लं हेमवत्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
पूं. छायाय अन्नपूर्णाय नमः ।
पूर्णे पूर्णिमाय अन्नपूर्णाय नमः ।
स्वां नित्याय अन्नपूर्णाय नमः ।
हां अमावस्याय अन्नपूर्णाय नमः |

इसके अनन्तर चतुरस्र में दश दिक्पालों की पूजा कर, धूपादि से विसर्जन तक के कर्म कर, पूजन समाप्त करें।

पुरश्चरण इस मन्त्र के पुरश्चरण में एक लाख जप तथा अन्न से जप का दशांश होम करना चाहिए।

सम्पत्प्रदा भैरवी मन्त्र सिद्धि।

सम्पत्प्रदा भैरवी मन्त्र प्रयोग

शाक्तचारी साधक जो कि संपदा से अपने जीवन को सम्पन्न करना चाहते हो को सम्पत्प्रदा भैरवी की साधना करनी चाहिए ये देवी भी सिद्ध विद्या है और कलयुग में फल देने में सक्षम हैं।ये साधना संपन्न होने के उपरांत साधक के जीवन में धन धान्य समृद्धि और यश प्राप्त होता है।

'सम्पत्प्रदा भैरवी' का मन्त्र प्रयोग निम्नलिखित है ।

मन्त्र:-) "हस्र" हस्क्रीं हस्रौं । "

इसकी पूजा विधि 'त्रिपुर-भैरवी' की भाँति ही है। इनका ध्यान निम्नानुसार हैं

ध्यान

"आताम्रार्क सहस्राभां स्फुटच्चन्द्र कला जटाम् । 
किरीट रत्न विलसच्चित्र विचित्र मौक्तिकाम् ॥ 
स्रवद्रधिर पकाढ्य मुण्डमाला विराजिताम् । 
नयन त्रय शोभाढ्यां पूर्णेन्दु वदनान्विताम् ॥ 
मुक्ताहार लता राजत्पीनोन्नतघटस्तनोम् । 
रक्ताम्बर परीधानां यौवनोन्मत्तरूपिणीम् ॥ 
पुस्तकञ्चाभयं वामे दक्षिणे चाक्ष मालिकाम् ।
वरदानप्रदां नित्यां महासम्पत्प्रदां स्मरेतु ॥ "

भावार्थ - "भगवती सम्पत्प्रदा भैरवी तरुण अरुण के समान उज्ज्वल ताम्रवर्ण की है। इनके ललाट पर चन्द्रमा की कला तथा मस्तक पर जटाएं हैं। रत्नों तथा विलक्षण मोतियों से जटित मुकुट हैं। ये गिरते हुए रुधिर के पच से मुक्त मुण्डमाला धारण किये हैं। इनके तीन नेत्र हैं तथा मुखमण्डल पूर्ण चन्द्रमा की भाँति सुशोभित हैं। इनके घड़े के समान पीनोन्नत स्तनों के ऊपर मोतियों का हार लटक रहा है। ये रक्तवर्ण के वस्त्र धारण किए, यौवनोन्मत्ता हैं। इनकेबांये हाथों में पुस्तक तथा अभय मुद्रा है एवं दांये हाथों में वर मुद्रा तथा जप माला हैं। ये साधक को निरन्तर सम्पत्ति देती रहती है।" उक्त विधि से ध्यान करके त्रिपुराभैरवी की पूजा-पद्धति के अनुसार ही

न्यास तथा पूजादि करें। केवल 'कराङ्ग न्यास' निम्नानुसार करें - 
हस्रं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
 हस्वल्ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । 
हस्रौं मध्यमाभ्यां वषट् । 
हस्रौं अनामिकाभ्यां हुं । 
स्क्रीं कनिष्ठाभ्यां वौषट । 
हस्रौं करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।

पुरश्चरण

इस मन्त्र के पुरश्चरण में एक लाख जप तथा दशांश होम
करें ।
सिद्ध विद्या होने के कारण इनके पुरश्चरण हेतु एक लाख जप का निर्देश किया गया है ।

उच्छिष्ट चाण्डालिनी मन्त्र सिद्धि

उच्छिष्ट चाण्डालिनी मन्त्र प्रयोग

मन्त्र ये है:-'ऐं ह्रीं क्लीं सौः ऐं ज्येष्ठ मातङ्गि नमामि उच्छष्ट चाण्डालिनि त्रलोक्य वशंकरि स्वाहा ।" 

 इन मन्त्रों की आराधना से सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।

यह सिद्ध महाविद्या सुख, मुक्ति, राज्य तथा सौभाग्य प्रदान करती है।

इस मन्त्र की साधना करने वाला जो-जो सिद्धियाँ चाहता है, वे उसे शीघ्र प्राप्त होती हैं ।
मन्त्र की साधन विधि निम्नानुसार है - साधन विधि :

भोजनोपरान्त बिना आचमन किए मूल मन्त्र से बलि समर्पित करें। 
फिर हृदय में देवी का ध्यान करते हुए अभीष्ट सिद्धि हेतु मन्त्र जप करें।
इसमें उच्छिष्ट द्रव्य की बलि देना हो प्रशस्त है। 
इस साधना में तिथि तथा नक्षत्र आदि के विचार की आवश्यकता भी नहीं होती। 
यह साधना किसीभी समय की जा सकती है तथा इसमें 'न्यास' आदि करने की आवश्यकता भी नहीं है। 
इसके लिए अरि-दोबादि का विचार भी नहीं किया जाता तथा अशौच आदि दोषों के कारण भी इसकी साधना में कोई बाधा नहीं पड़ती। 

अन्य किसी भी नियम का इसमें प्रतिबन्ध नहीं है तथा मन्त्राभ्यासी-साधक के समक्ष कभी किसी प्रकार का विघ्न भी उपस्थित नहीं होता।

ध्यान :

उच्छिष्ट चाण्डालिनी का ध्यान निम्नानुसार करना चाहिए।

शवोपरि समासीनां रक्ताम्बर परिच्छदाम् । रक्तालङ्कार संयुक्तां गुञ्जाहार विभूषिताम् ॥ षोडशाब्दां च युवतीं पीनोन्नत पयोधरामु ! कपाल कर्तृ का हस्तां परां ज्योति: स्वरूपिणीम् ॥

भावार्थ - "भगवती उच्छिष्ट चाण्डालिनी शवासन पर आरुढ़ हैं, वे रक्त वस्त्र तथा रक्तवर्ण आभूषणों से विभूषित हैं। उनके गले में गुञ्जाहार है। वे षोडशवर्षीया नवयुवती, उन्नत उरोजों वाली तथा बाँये हाथ में नर-कपाल तथा दाँये हाथ में कैची धारण करने वाली ज्योतिः स्वरूपा हैं । "

जप एवम हवन 

मन्त्रज्ञ-साधक को पूर्वोक्त प्रकार से देवी का ध्यान करके, उच्छिष्ट-पदार्थ की बलि समर्पित कर, एकाग्रचित्त से जप करना चाहिए । मन्त्र सिद्धि हेतु उच्छिष्ट पदार्थ द्वारा ही हवन भी करना चाहिए। इस मन्त्र के जप से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।

मन्त्र साधन की दूसरी विधि यह है कि साधक पहले सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए होम तथा तर्पण करे। फिर स्थण्डिल में चतुरस्र मण्डल बनाकर, उस मण्डल के मध्य में मूल मन्त्र द्वारा देवी का पूजन करे।

सर्व प्रथम 'मूलं मण्डलाय नमः' - इस मन्त्र द्वारा मण्डल की पूजा फिर अग्निस्वरूपा देवी का ध्यान कर होम करे । 


देवी को अग्निस्वरूपा ध्यान करते हुए दही तथा श्वेत सरसों युक्त चावलों से होम करे। 

इस प्रकार १००० आहुतियों वाला होम करने से राजा वशीभूत होता है। 

मार्जार (बिल्ली) के माँस से होम करने से साधक पारंगत होता है। 

मधुयुक्त छाग-मांस की १००० आहुतियों वाले होम से कुल देवता की सिद्धि होती है ।

विद्या का अभिलाषी शर्करा युक्त खीर से होम करे। इससे वह चौदहों विद्याओं का स्वामी हो जाता है। 

एकाग्र चित्त होकर एक मास तक घृत, मधु तथा शर्करायुक्त बिल्व-पत्रों से होम करने पर वन्ध्या स्त्री को भी चिरंजीवी पुत्र का लाभ होता है । 

मधु युक्त रक्त-बदरी (बेर) के पुष्पों से होम करने से भाग्यहीना नारी भी सौभाग्यवती होती है। 

रजस्वला के वस्त्र के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें खीर तथा मधु से युक्त करके होम करने से तीनों लोक वशीभूत होते हैं ।

यह मन्त्र सभी पापों को नष्ट करता है । इसके उच्चारण मात्र से पाप भस्म हो जाते हैं। 

उच्छिष्ट-दोष के अतिरिक्त अन्य सब प्रकार के पवित्र भावों से ही इस मन्त्र का जप करना चाहिए ।

पुरश्चरण : इस देवता के मन्त्र के पुरश्चरण में जप आदि की संख्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता, तथापि १०००८ की संख्या में मन्त्र जप तथा जप का दशांश हवन करना उचित है ।

यह सिद्ध विद्या है, अतः इसकी सिद्धि के लिए 'पुरश्चरण आदि की कोई आवश्यकता नहीं हैं ।

श्री रेणुका देवी सिद्धि


श्री रेणुका देवी मन्त्र सिद्धि प्रयोग

 'रेणुका शबरी विद्या' भी एक सिद्ध विद्या है और  छिन्नमस्ता की भाँति ही होती है । इस मंत्र के सिद्ध हिजाने पर साधक को दूसरी शक्तिशाली सिद्धियां आसानी से प्राप्त हो जाती है।कलयुग में ये विद्या फलदायिनी है।

ये सभी शाक्त साधकों की प्रिय देवी है चाहे अकूत धन प्राप्त करना हो या वाशिकरण करना हो या तंत्र साधना क्षेत्र में प्रवेश प्रवेश करना हो तो ये देवी तोतला यनि त्वरिता देवी की तरह कलयुग में साधक को मनोवांछित सिद्धियां प्रदान करती है। चाहे वह सन्तान प्राप्ति हो या कोई भी मनोकामना पूर्ण अवश्य होती है ये वरदानी देवी है इसकी साधना निष्फल नही होती। मंतर सिद्धि होने के बाद काम्य प्रयोग किये जाते है।


मन्त्र इस प्रकार है "ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं । "

विनियोग

अस्य श्री रेणुका शबरी मन्त्रस्य भैरवऋषि: पंक्ति छन्द: रेणुका शबरी देवता ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ॐ अङ्ग `ष्ठाभ्यां नमः | हृदयाय नमः ।
श्रीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ।
ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट ।
क्रो अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् ।
ऐं कनिष्ठकाभ्यां नमः | नेत्रत्रयाय वौषट् । 
ॐ श्रीं ह्रीं क्रों ऐं करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः । नमः अस्त्राय फट ।
 
ध्यान मन्त्र।

"हेमाद्रिसानावद्याने नानाद्रुममनोहरे ।
रत्नमण्डपमध्यस्थवेदिकायांस्थितां स्मरेत् । 
गुञ्जाफला कल्पितहाररम्यां ।
 श्रुत्योः शिखण्डं शिखिनो वहंतीम् ॥
कोदण्डबाणौ दधतीं करास्यां 
 कटिस्थ वल्कां शबरीं स्मरेयम्।।

भावार्थ - "मेरु शिखर पर अनेक रमणीय वृक्षों के उद्यान में रत्नमण्डप के में वेदिका पर विराजमान देवी का ध्यान करना चाहिए। गुञ्जाफलों द्वारा निर्मित हार से सुशोभित, कानों में मोरपंख के कुण्डल धारण करने वाली दोनों हाथों में धनुष एवं वाण तथा कटि में वल्कल धारण करने वाली शबरी देवी का में ध्यान करता हूँ।"


जप एवं हवन
उक्त प्रकार से ध्यान करके ५ लाख की संख्या में मन्त्र जप करना चाहिए।
विल्ववृक्ष की लकड़ी की प्रज्ज्वलित अग्नि में विल्वफलों से दशांश हवन करना चाहिए

पीठ-पूजा एवं आवरण-पूजा

षट्कोण, अष्टदल एवं भूपुर से सुशोभित यन्त्र पर देवी का पूजन करें। यन्त्र का स्वरूप नीचे प्रदर्शित है

पूर्वोक्त "ॐ आधार शक्तये नमः" से लेकर “ॐ रतिकामाभ्यां नमः" पीठ-पूजन कर, जपा आदि ६ पीठ शक्तियों का पूजन करें। 

फिर उस पाठ पर तक मूल-मन्त्र से विधिवत् रेणुका शवरी देवी का पूजन कर, आवरण-पूजा करें।

ॐ हृदयाय नमः ।
श्रीं शिरसे स्वाहा ।
ह्रीं शिखायै वषट् ।
क्रों कवचाय हुम् ।
ऐं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं अस्त्राय फट् ।

उक्त मन्त्रों से षट्कोण में षडङ्ग पूजा करें। इस प्रकार प्रथम आवरण का पूजन करके द्वितीय आवरण में अष्टदलों में पूर्वादि क्रम से निम्नलिखित मन्त्रों द्वारा हुंकारी आदि शक्तियों का पूजन करें। यथा -

ॐ ह्रु कार्ये नमः ।
ॐ खेचर्यै नमः ।
ॐ चण्डास्याये नमः । 
ॐ छेदन्यै नमः ।
ॐ क्षेपणायै नमः ।
ॐ अस्त्र्यै नमः ।
ॐ ह कार्ये नमः । हु
ॐ क्षेमकार्यै नमः ।

उक्त मन्त्रों द्वारा द्वितीयावरण की पूजा समाप्त करके तृतीय आवरण में भूपुर के भीतर दशों दिशाओं में अपने नाम-मन्त्रों से दिक्पालों का पूजन करें। मथा

ॐ इन्द्राय नमः— -पूर्वे । 
ॐ अग्नेये नमः - --आग्नेये
ॐ यमाय नमः – दक्षिणे । -
ॐ निर्ऋतये नमः— नैऋत्ये । 
ॐ वरुणाय नमः- पश्चिमे ।
ॐ वायवे नमः वायव्ये 
ॐ सोमाय नमः । -उत्तरे ।
ॐ ईशानाय नमः— ऐशान्ये ।
ॐ ब्रह्मणे नमः -- पूर्वेशानयोर्मध्ये | 
ॐ अनन्ताय नमः-नैऋत्यपश्चिमयोर्मध्ये |


इसके पश्चात् चतुर्थ आवरण में भूपुर के बाहर वज्र आदि आयुधों का

निम्नलिखित मन्त्रों से पूजन करें 

ॐ वजाय नमः ।
ॐ शक्तये नमः ।
ॐ दण्डाय नमः ।
ॐ पाशाय नमः ।
ॐ गदायै नमः ।
ॐ पद्माय नमः ।
ॐ खगाय नमः ।
ॐ अङ्कुश शाय नमः ।
ॐ शूलाय नमः ।
ॐ चक्राय नमः ।

उक्त विधि से आवरण-पूजा करके, पुनः देवी का पूजन करें तथा पाँच पुष्पांजलियाँ देकर विधिवत् जप करें । 

काम्य-प्रयोग

मन्त्र जप सम्पूर्ण हो जाने पर काम्य-प्रयोग निम्नानुसार किये जाते हैं ।

१. मल्लिका पुष्पों से हवन करने पर लोग वशीभूत होते हैं ।
 
२. ईख-खण्डों से हवन करने पर धन-लाभ होता है ।

३. पञ्चगव्य से हवन करने पर गो-धन में वृद्धि होती है ।

४. अशोक के फूलों से हवन करने पर पुत्र प्राप्ति होती है।

५. कमल-पुष्पों से हवन करने पर रानी वश में होती है।

 ६. अन्न से हवन करने पर अन्न प्राप्त होता है ।

७ महुए के पुष्प से होम करने पर सभी वांछित कामनाएँ पूर्ण होती हैं । 

कलियुग में यह विद्या शीघ्र सिद्धि देती है ।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

औघड़ मन्त्र सिद्धि


अघोरी मनसाराम की साधना।

अघोरी साधना का नाम सुनकर लोगों के मन में या तो भय व्याप्त होता है या उनके मन में एक नार्किक मलीन साधना के बारे में मानसिक दृष्य चलने लगता है।

ये बात प्रमाणित है कि मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा उसे व्यवहार या संस्कार से नही अपितु उसके धन वैभव से ही होती है सभके जीवन में ईश्वर एक न एक बार समृद्ध होने का अवसर देता है लेकिन कई बार आदमी खुद गलती करता है यो कई बार अपने स्नेही जनों के कारण किसी मुसीबत में पड़ता है।

और भी बहुत सारी धन वैभव प्राप्त करने की साधनायें है जो शास्त्रों में विधिवत रूप से वर्णित है लेकिन ये समय बहुत तीव्रता से चलता है समय कम होने के कारण अक्सर सभी शस्त्रिक साधनायें मर्यादित और विधिवत न होने के कारण फलित ही नही होती।
बहुत सारी मुस्लिम साधनायें भी होती है उनमें बहुत सख़्त नियम और बहुत गहन मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और कई बार उन साधनाओं को कई कई बार दोहराना पड़ता है जिससे बिना मार्गदर्शन और धैर्य के मनुष्य का अमूल्य समय नष्ट होता है और साधना कभी फलित नही होती।
मेरे जीवन में ऐसे बहुत से साधकों से संपर्क हुआ जिनका जीवन धन के अभाव में या भूत प्रेत बाधा के कारण अंत होने के कगार पर था एक अघोरी साधना जिसका कोई भी साधक आज तक निराश नही हुआ हां कई बार आदमी के परिश्र्म या भावना में ही कोई कमी रह जाती है।

वरना इस साधना से साधक का जीवन अवश्य परिवर्तित होता है और साधक समृद्धि की तरफ अग्रसर होता ही है।

अब कोई बोले कि मुझे रातों रात में करोड़पति बनना है तो वो कोरे झूठ के इलावा कुछ नही होगा। हां साधना करने के बाद आपको आभा मण्डल असमान्य रूप से विकसित हो चुका होता है हां अगर आप साधनाकाल पूरा होने तक प्रतीक्षा नही कर सकते तो ये वही बात होगी कि बिल्ली दही ना जमने दे। उतनी प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी ही पड़ेगी।

एक मिंट में जिन्न दो मिनट में परी सिद्ध करने वाले के बारे में क्या बोला जाए। सुनकर ही हंसी आती है कि जो संभव नहीं है झूठ बोलने वाले किस तरह डींगें मारते हैं लेकिन सच सामने आने में समय नही लगता ये बात बिल्कुल सही है ।

असल बात ये है कि अगर आप नए साधक हो तो पहली बार गलती करोगे ही करोगे।  बस उसी चक्कर में बहुत सारे नए साधक उलझ जाते है और एक बार भ्रमित अवश्य होंगे और जब होश आएगा तब बहुत ज्यादा समय बर्बाद हो गया होगा।
अघोरी साधना एक बहुत ही आधिक प्रचंड शक्तिशाली उग्र तामसिक साधना है अघोरी साधना इसको करने से कोई भी इच्छा पूरी ना हो ये हो नही सकता। ये साधना कभी भी व्यर्थ नही जाती।
इस साधना को ग्रहस्ति और त्यागी सभी कर सकते हैं। 

किसी तरह के खाने पीने का कोई परहेज़ नही है।

ये साधना आपको तब करनी चाहिए जब आप के जीवन में रुकावटें खत्म होने का नाम नही लेती एक से एक समस्या आपके जीवन में आती ही रहती है और

धंदे व्यापार में से कोई लाभ नही मिलता।अगर पूरी तरह कंगाली भी आ गयी हो खाने के लाले पड़ गए हों तो ये साधना आपके जीवन को सम्पन्नता को और अग्रसर करती है।

मैं यहाँ पर आपको मनसाराम अघोरी बाबा का एक मन्त्र उसके नियम और विधि देने जा रहा हूं जिसको करने से 50 से ऊपर साधकों का किसी का किसी तरह से फायदा हुआ ही हुआ है।

ये जाने अगर आप बिलकुल नए साधक है तो कुछ चीजों का किसी विद्वान जानकार पता लगा लें कि आपके ग्राम देवी, ग्राम देवता,कुलदेवी,कुलदेवता,इष्ट और पित्र किसी तरह से नाराज तो नही हैं क्या जीवन में कोई भूल या कोई गलती तो नही हुई या किसी का कोई भोग देना तो नही रहता है। या आपके घर में किसी अनजानी शक्ति जिस का आपको पता न हो वास तो नही।

((((ये बातें विशेष तौर पर परीक्षित कर लें फिर ही किसी साधना को शुरू करें।)))

ये अनजान शक्तियां आपका फायदा और नुकसान दोनों तरह का काम कर सकती है।

मनसाराम अघोरी साधना।।

ये साधना 41 दिनों की है।

खाने पीने का कोई परहेज नहीं है अपितु जो भी खाओ 

पीओ पहले अघोरी बाबा को भोग लगाओ।

हां ब्रह्मचर्य व्रत का पालन सख्ती से करें जिनको 

स्वप्नदोष की समस्या है उनको पहले शमशाम की साधना करनी चाहिए क्योंकि जलते हुए मसान के सामने खड़े होने से ये दोष धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।

प्रथम दिन साधना को शुरू करने से पहले एक बार अपने इष्ट पित्र को भोग दे दें फिर हाथ में जल लेकर मनोकामना स्मरण करें और संकल्प लें।

सिर पर काला पटका बांधे और कपड़े काले पहनने है।
भोजन जितनी बार भी करो लेकिन पहला ग्रास अघोरी को समर्पित करना होगा।

जिस दिन जाप शुरू करना हो उस दिन शमशान मैं या चौराहे पर जाकर आपको एक बोतल शराब एक मुर्गा पांच लड्डू लौंग इलायची 11 सफेद फूल अघोरी मंसाराम को दें। और वहाँ से थोड़ी सी मिट्टी किसी कागज में डालकर अपने साथ ले लें।

साधना स्थल का चुनाव करने के बाद आपको दक्षिण दिशा छोड़कर किसी भी दिशा में मुँह कर सकते हैं।
भोग में कच्चे या पके हुए मांस मछली का और शराब देना है।

सफेद मिठाई, सफेद फूल,चंदन की अगरबत्तियां लगानी है और गुग्गल की धूनी देनी है ।

साधना काल में एक सरसों के टेलनक दीया जलता रहे।
कंम्बल का आसन लगाएं।

इस साधना को आप श्मशान चौराहे खाली मैदान या घर की खाली छत पर कर सकते है लेकिन भोग आपको श्मशान घाट,किसी चौराहे,किसी पीपल या वट वृक्ष के नीचे ही देना है।

जल पात्र अवश्य अपने पास में रखें जाप के बाद वो जल दूसरे दिन सुबह किसी पेड़ में डाल दें।

जाप रुद्राक्ष की माला से करें जाप से पहले माला सिद्ध कर लें।

जाप माला सिद्ध करने की विधि प्राप्त करने के लिए वीडियो देखें https://youtu.be/8J9wI7ErsbI

31 माला रोज़ जाप करें तो बहुत अद्धभुत होगा आपको ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में परिणाम मिलने लगेंगे,किसी किसी साधक को ऐसा भी हो सकता है अघोरी वीर परीक्षा लें अक्सर ऐसा नहीं होता
उस अवस्था में साधक को धैर्य से कम लेना चाहिए। 

इस साधना को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए।

भोग मिट्टी के दो पात्र लेकर एक में शराब दूसरे में मीट डाल दें और एक गांजे की चिलम भेंट करें।

जाप के पहले रक्षा मन्त्र पढ़कर अपना शरीर बांध लें और भोग तैयार कर के अपने सामने रखें और 10 माला जाप के उपरांत किसी निर्जन स्थान पर अघोरी 

अघोरी मनसाराम की आत्मा के आवाह्न के पश्चात प्रदान करें और कपूर प्रज्वलित करें फिर वापिस आकर बाकी बचे 21 माला जाप को सम्पन्न करें। इसी प्रकार से प्रतिदिन करें।

मन्त्र:-
ॐ नमो आदेश गुरु को,मनसाराम मरघट बसे
खप्पर में खावे खीर मेरा कारज सिद्ध करो
तो पूजूँ औघड़वीर। दुहाई ईश्वर गौरां की।
श्री दत्त गुरु की दुहाई,चले मन्त्र औघड़ी बांचा
देखूं औघड़वीर मनसाराम तेरे शब्द का तमाशा।


रक्षा मन्त्र:- एक माला प्रयोग से जाप से पहले आपने गुरु महाराज का नाम लेकर इस मंत्र की जपें और अपने सारे शरीर पर फूंक मार लें।

तल्ले घरती ऊपर आसमान तुमको पूजे सकल जहान काली के पूत जोगी अवधूत काशी के कोतवाल,पिंड राखो प्राण,आर पार की विद्या थामो सारे यन्त्र,मन्त्र,थान,रख्खो गोरख जति की आन, आन शंकर पार्वती जी की आन आन आन माता काली की आन।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...