श्री रेणुका देवी मन्त्र सिद्धि प्रयोग
'रेणुका शबरी विद्या' भी एक सिद्ध विद्या है और छिन्नमस्ता की भाँति ही होती है । इस मंत्र के सिद्ध हिजाने पर साधक को दूसरी शक्तिशाली सिद्धियां आसानी से प्राप्त हो जाती है।कलयुग में ये विद्या फलदायिनी है।
ये सभी शाक्त साधकों की प्रिय देवी है चाहे अकूत धन प्राप्त करना हो या वाशिकरण करना हो या तंत्र साधना क्षेत्र में प्रवेश प्रवेश करना हो तो ये देवी तोतला यनि त्वरिता देवी की तरह कलयुग में साधक को मनोवांछित सिद्धियां प्रदान करती है। चाहे वह सन्तान प्राप्ति हो या कोई भी मनोकामना पूर्ण अवश्य होती है ये वरदानी देवी है इसकी साधना निष्फल नही होती। मंतर सिद्धि होने के बाद काम्य प्रयोग किये जाते है।
मन्त्र इस प्रकार है "ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं । "
विनियोग
अस्य श्री रेणुका शबरी मन्त्रस्य भैरवऋषि: पंक्ति छन्द: रेणुका शबरी देवता ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
ॐ अङ्ग `ष्ठाभ्यां नमः | हृदयाय नमः ।
श्रीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ।
ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट ।
क्रो अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् ।
ऐं कनिष्ठकाभ्यां नमः | नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्रों ऐं करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः । नमः अस्त्राय फट ।
ध्यान मन्त्र।
"हेमाद्रिसानावद्याने नानाद्रुममनोहरे ।
रत्नमण्डपमध्यस्थवेदिकायांस्थितां स्मरेत् ।
गुञ्जाफला कल्पितहाररम्यां ।
श्रुत्योः शिखण्डं शिखिनो वहंतीम् ॥
कोदण्डबाणौ दधतीं करास्यां
कटिस्थ वल्कां शबरीं स्मरेयम्।।
भावार्थ - "मेरु शिखर पर अनेक रमणीय वृक्षों के उद्यान में रत्नमण्डप के में वेदिका पर विराजमान देवी का ध्यान करना चाहिए। गुञ्जाफलों द्वारा निर्मित हार से सुशोभित, कानों में मोरपंख के कुण्डल धारण करने वाली दोनों हाथों में धनुष एवं वाण तथा कटि में वल्कल धारण करने वाली शबरी देवी का में ध्यान करता हूँ।"
जप एवं हवन
उक्त प्रकार से ध्यान करके ५ लाख की संख्या में मन्त्र जप करना चाहिए।
विल्ववृक्ष की लकड़ी की प्रज्ज्वलित अग्नि में विल्वफलों से दशांश हवन करना चाहिए
पीठ-पूजा एवं आवरण-पूजा
षट्कोण, अष्टदल एवं भूपुर से सुशोभित यन्त्र पर देवी का पूजन करें। यन्त्र का स्वरूप नीचे प्रदर्शित है
पूर्वोक्त "ॐ आधार शक्तये नमः" से लेकर “ॐ रतिकामाभ्यां नमः" पीठ-पूजन कर, जपा आदि ६ पीठ शक्तियों का पूजन करें।
फिर उस पाठ पर तक मूल-मन्त्र से विधिवत् रेणुका शवरी देवी का पूजन कर, आवरण-पूजा करें।
ॐ हृदयाय नमः ।
श्रीं शिरसे स्वाहा ।
ह्रीं शिखायै वषट् ।
क्रों कवचाय हुम् ।
ऐं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं अस्त्राय फट् ।
उक्त मन्त्रों से षट्कोण में षडङ्ग पूजा करें। इस प्रकार प्रथम आवरण का पूजन करके द्वितीय आवरण में अष्टदलों में पूर्वादि क्रम से निम्नलिखित मन्त्रों द्वारा हुंकारी आदि शक्तियों का पूजन करें। यथा -
ॐ ह्रु कार्ये नमः ।
ॐ खेचर्यै नमः ।
ॐ चण्डास्याये नमः ।
ॐ छेदन्यै नमः ।
ॐ क्षेपणायै नमः ।
ॐ अस्त्र्यै नमः ।
ॐ ह कार्ये नमः । हु
ॐ क्षेमकार्यै नमः ।
उक्त मन्त्रों द्वारा द्वितीयावरण की पूजा समाप्त करके तृतीय आवरण में भूपुर के भीतर दशों दिशाओं में अपने नाम-मन्त्रों से दिक्पालों का पूजन करें। मथा
ॐ इन्द्राय नमः— -पूर्वे ।
ॐ अग्नेये नमः - --आग्नेये
ॐ यमाय नमः – दक्षिणे । -
ॐ निर्ऋतये नमः— नैऋत्ये ।
ॐ वरुणाय नमः- पश्चिमे ।
ॐ वायवे नमः वायव्ये
ॐ सोमाय नमः । -उत्तरे ।
ॐ ईशानाय नमः— ऐशान्ये ।
ॐ ब्रह्मणे नमः -- पूर्वेशानयोर्मध्ये |
ॐ अनन्ताय नमः-नैऋत्यपश्चिमयोर्मध्ये |
इसके पश्चात् चतुर्थ आवरण में भूपुर के बाहर वज्र आदि आयुधों का
निम्नलिखित मन्त्रों से पूजन करें
ॐ वजाय नमः ।
ॐ शक्तये नमः ।
ॐ दण्डाय नमः ।
ॐ पाशाय नमः ।
ॐ गदायै नमः ।
ॐ पद्माय नमः ।
ॐ खगाय नमः ।
ॐ अङ्कुश शाय नमः ।
ॐ शूलाय नमः ।
ॐ चक्राय नमः ।
उक्त विधि से आवरण-पूजा करके, पुनः देवी का पूजन करें तथा पाँच पुष्पांजलियाँ देकर विधिवत् जप करें ।
काम्य-प्रयोग
मन्त्र जप सम्पूर्ण हो जाने पर काम्य-प्रयोग निम्नानुसार किये जाते हैं ।
१. मल्लिका पुष्पों से हवन करने पर लोग वशीभूत होते हैं ।
२. ईख-खण्डों से हवन करने पर धन-लाभ होता है ।
३. पञ्चगव्य से हवन करने पर गो-धन में वृद्धि होती है ।
४. अशोक के फूलों से हवन करने पर पुत्र प्राप्ति होती है।
५. कमल-पुष्पों से हवन करने पर रानी वश में होती है।
६. अन्न से हवन करने पर अन्न प्राप्त होता है ।
७ महुए के पुष्प से होम करने पर सभी वांछित कामनाएँ पूर्ण होती हैं ।
कलियुग में यह विद्या शीघ्र सिद्धि देती है ।