गुरुवार, 22 जुलाई 2021

उच्छिष्ट चाण्डालिनी मन्त्र सिद्धि

उच्छिष्ट चाण्डालिनी मन्त्र प्रयोग

मन्त्र ये है:-'ऐं ह्रीं क्लीं सौः ऐं ज्येष्ठ मातङ्गि नमामि उच्छष्ट चाण्डालिनि त्रलोक्य वशंकरि स्वाहा ।" 

 इन मन्त्रों की आराधना से सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।

यह सिद्ध महाविद्या सुख, मुक्ति, राज्य तथा सौभाग्य प्रदान करती है।

इस मन्त्र की साधना करने वाला जो-जो सिद्धियाँ चाहता है, वे उसे शीघ्र प्राप्त होती हैं ।
मन्त्र की साधन विधि निम्नानुसार है - साधन विधि :

भोजनोपरान्त बिना आचमन किए मूल मन्त्र से बलि समर्पित करें। 
फिर हृदय में देवी का ध्यान करते हुए अभीष्ट सिद्धि हेतु मन्त्र जप करें।
इसमें उच्छिष्ट द्रव्य की बलि देना हो प्रशस्त है। 
इस साधना में तिथि तथा नक्षत्र आदि के विचार की आवश्यकता भी नहीं होती। 
यह साधना किसीभी समय की जा सकती है तथा इसमें 'न्यास' आदि करने की आवश्यकता भी नहीं है। 
इसके लिए अरि-दोबादि का विचार भी नहीं किया जाता तथा अशौच आदि दोषों के कारण भी इसकी साधना में कोई बाधा नहीं पड़ती। 

अन्य किसी भी नियम का इसमें प्रतिबन्ध नहीं है तथा मन्त्राभ्यासी-साधक के समक्ष कभी किसी प्रकार का विघ्न भी उपस्थित नहीं होता।

ध्यान :

उच्छिष्ट चाण्डालिनी का ध्यान निम्नानुसार करना चाहिए।

शवोपरि समासीनां रक्ताम्बर परिच्छदाम् । रक्तालङ्कार संयुक्तां गुञ्जाहार विभूषिताम् ॥ षोडशाब्दां च युवतीं पीनोन्नत पयोधरामु ! कपाल कर्तृ का हस्तां परां ज्योति: स्वरूपिणीम् ॥

भावार्थ - "भगवती उच्छिष्ट चाण्डालिनी शवासन पर आरुढ़ हैं, वे रक्त वस्त्र तथा रक्तवर्ण आभूषणों से विभूषित हैं। उनके गले में गुञ्जाहार है। वे षोडशवर्षीया नवयुवती, उन्नत उरोजों वाली तथा बाँये हाथ में नर-कपाल तथा दाँये हाथ में कैची धारण करने वाली ज्योतिः स्वरूपा हैं । "

जप एवम हवन 

मन्त्रज्ञ-साधक को पूर्वोक्त प्रकार से देवी का ध्यान करके, उच्छिष्ट-पदार्थ की बलि समर्पित कर, एकाग्रचित्त से जप करना चाहिए । मन्त्र सिद्धि हेतु उच्छिष्ट पदार्थ द्वारा ही हवन भी करना चाहिए। इस मन्त्र के जप से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।

मन्त्र साधन की दूसरी विधि यह है कि साधक पहले सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए होम तथा तर्पण करे। फिर स्थण्डिल में चतुरस्र मण्डल बनाकर, उस मण्डल के मध्य में मूल मन्त्र द्वारा देवी का पूजन करे।

सर्व प्रथम 'मूलं मण्डलाय नमः' - इस मन्त्र द्वारा मण्डल की पूजा फिर अग्निस्वरूपा देवी का ध्यान कर होम करे । 


देवी को अग्निस्वरूपा ध्यान करते हुए दही तथा श्वेत सरसों युक्त चावलों से होम करे। 

इस प्रकार १००० आहुतियों वाला होम करने से राजा वशीभूत होता है। 

मार्जार (बिल्ली) के माँस से होम करने से साधक पारंगत होता है। 

मधुयुक्त छाग-मांस की १००० आहुतियों वाले होम से कुल देवता की सिद्धि होती है ।

विद्या का अभिलाषी शर्करा युक्त खीर से होम करे। इससे वह चौदहों विद्याओं का स्वामी हो जाता है। 

एकाग्र चित्त होकर एक मास तक घृत, मधु तथा शर्करायुक्त बिल्व-पत्रों से होम करने पर वन्ध्या स्त्री को भी चिरंजीवी पुत्र का लाभ होता है । 

मधु युक्त रक्त-बदरी (बेर) के पुष्पों से होम करने से भाग्यहीना नारी भी सौभाग्यवती होती है। 

रजस्वला के वस्त्र के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें खीर तथा मधु से युक्त करके होम करने से तीनों लोक वशीभूत होते हैं ।

यह मन्त्र सभी पापों को नष्ट करता है । इसके उच्चारण मात्र से पाप भस्म हो जाते हैं। 

उच्छिष्ट-दोष के अतिरिक्त अन्य सब प्रकार के पवित्र भावों से ही इस मन्त्र का जप करना चाहिए ।

पुरश्चरण : इस देवता के मन्त्र के पुरश्चरण में जप आदि की संख्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता, तथापि १०००८ की संख्या में मन्त्र जप तथा जप का दशांश हवन करना उचित है ।

यह सिद्ध विद्या है, अतः इसकी सिद्धि के लिए 'पुरश्चरण आदि की कोई आवश्यकता नहीं हैं ।

कलवा वशीकरण।

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