सम्पत्प्रदा भैरवी मन्त्र प्रयोग
शाक्तचारी साधक जो कि संपदा से अपने जीवन को सम्पन्न करना चाहते हो को सम्पत्प्रदा भैरवी की साधना करनी चाहिए ये देवी भी सिद्ध विद्या है और कलयुग में फल देने में सक्षम हैं।ये साधना संपन्न होने के उपरांत साधक के जीवन में धन धान्य समृद्धि और यश प्राप्त होता है।
'सम्पत्प्रदा भैरवी' का मन्त्र प्रयोग निम्नलिखित है ।
मन्त्र:-) "हस्र" हस्क्रीं हस्रौं । "
इसकी पूजा विधि 'त्रिपुर-भैरवी' की भाँति ही है। इनका ध्यान निम्नानुसार हैं
ध्यान
"आताम्रार्क सहस्राभां स्फुटच्चन्द्र कला जटाम् ।
किरीट रत्न विलसच्चित्र विचित्र मौक्तिकाम् ॥
स्रवद्रधिर पकाढ्य मुण्डमाला विराजिताम् ।
नयन त्रय शोभाढ्यां पूर्णेन्दु वदनान्विताम् ॥
मुक्ताहार लता राजत्पीनोन्नतघटस्तनोम् ।
रक्ताम्बर परीधानां यौवनोन्मत्तरूपिणीम् ॥
पुस्तकञ्चाभयं वामे दक्षिणे चाक्ष मालिकाम् ।
वरदानप्रदां नित्यां महासम्पत्प्रदां स्मरेतु ॥ "
भावार्थ - "भगवती सम्पत्प्रदा भैरवी तरुण अरुण के समान उज्ज्वल ताम्रवर्ण की है। इनके ललाट पर चन्द्रमा की कला तथा मस्तक पर जटाएं हैं। रत्नों तथा विलक्षण मोतियों से जटित मुकुट हैं। ये गिरते हुए रुधिर के पच से मुक्त मुण्डमाला धारण किये हैं। इनके तीन नेत्र हैं तथा मुखमण्डल पूर्ण चन्द्रमा की भाँति सुशोभित हैं। इनके घड़े के समान पीनोन्नत स्तनों के ऊपर मोतियों का हार लटक रहा है। ये रक्तवर्ण के वस्त्र धारण किए, यौवनोन्मत्ता हैं। इनकेबांये हाथों में पुस्तक तथा अभय मुद्रा है एवं दांये हाथों में वर मुद्रा तथा जप माला हैं। ये साधक को निरन्तर सम्पत्ति देती रहती है।" उक्त विधि से ध्यान करके त्रिपुराभैरवी की पूजा-पद्धति के अनुसार ही
न्यास तथा पूजादि करें। केवल 'कराङ्ग न्यास' निम्नानुसार करें -
हस्रं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
हस्वल्ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
हस्रौं मध्यमाभ्यां वषट् ।
हस्रौं अनामिकाभ्यां हुं ।
स्क्रीं कनिष्ठाभ्यां वौषट ।
हस्रौं करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
पुरश्चरण
इस मन्त्र के पुरश्चरण में एक लाख जप तथा दशांश होम
करें ।
सिद्ध विद्या होने के कारण इनके पुरश्चरण हेतु एक लाख जप का निर्देश किया गया है ।