जुआ खेलना सामाजिक रूप से एक विकृति मानी जाती है क्योंकि बोला जाता है "जुआ किसी का न हुआ" इसकी यदि आदत लग जाये तो आदमी के कपड़े तक बिक जाते हैं। इसलिए जुआ एक बार खेलो या बार बार एक अभिशाप ही है। मैं इसका व्यक्तिगत रूप से बिल्कुल समर्थन नहीं करता
मुझे कई महीनों से बहुत सारे सज्जन इसके लिए आग्रह कर रहे है तो इसलिए इस यंत्र की साधना दे रहा हूँ।
"गोपनीयता सफलता का मूल सूत्र है"
इस लिए प्रयोग को हमेशा गुप्त ही रखें।
दीवाली के दिन शुभ महूर्त में स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर
अपने घर के देवस्थान या एकांत स्थान में पूर्वाभिमुख होकर पहले देव पूजन करके धूफ दीप प्रज्वलित कर नैवैद्य इत्यादि समर्पित करें।
अपने सामने यन्त्र को किसी पटरी या चौंकी पर रखकर ही बनाएं ।
यन्त्र को बनाते समय बिल्कुल मौन धारण करें। और मन ही मन में दुर्गा नवार्ण मन्त्र पढ़ते रहें।
यन्त्र को भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम द्वारा बनाया जाएगा। सभसे पहले चित्र में दिए गए अनुसार 16 कोष्ठक वाला एक यन्त्र बना कर उसमें बढ़ते क्रम से अंक भरें इसी प्रकार सभी यंत्रों का निर्माण करें।
एक ही बैठक में 108 यंत्रों का निर्माण किया जाएगा और सभी को गेहूं के आटे की गोलियों मैं भरकर चुपचाप जल में प्रवाहित करें।
और वापिस लौट कर एक यन्त्र और तैयार करें उसे सोने,चांदी या तांबे के यंत्र में भरकर उसपर लक्ष्मी जी का पूजन करें और लाल सूत्र में डालकर अपनी बायीं भुजा में धारण करें।
और पहनकर जब जुआ खेलने जाओगे तो निःसंदेह जीतोगे।
क्रिया पूरी होने तक मौन रहें।
यन्त्र धारण करने के बारे में किसी को भी नही बताना चाहिए वरना प्रयोग व्यर्थ चला जायेगा।