।।धनदा लक्ष्मी स्तोत्र।।
○यह स्तोत्र व्यवहारिक रूप से आजमाया हुआ है और दरिद्र नाश करने के लिए इससे बड़ा कोई दिव्यास्त्र नहीं है अगर आपको लक्ष्मी की जरूरत है तो आपको लक्ष्मी की ही उपासना की हो करनी होगी।
○आज के समय में जहां मनुष्य अपनी अभिलाषा पूरी करने के लिए तंत्र-मंत्र और ना जाने कैसी कैसी से साधनाओं से उल्टे सीधे तरीके से लक्ष्मी को आकृष्ट करने की कोशिश करता है।
○फिर भी वह प्रयास सफल नहीं होते अब आपके लिए हम कुछ शास्त्रिक साधनायें ला रहे हैं ताकि आप उनसे कुछ लाभ प्राप्त कर सके और हकीकत में आपको उसका कुछ लाभ हो।
○ यह धनदा लक्ष्मी स्तोत्र रुद्रयामल तंत्र में वर्णित है और ग्यारह हजार बार स्तोत्र पढ़ने से इसका पुरश्चरण हो जाता है उसका मूल पाठ में आपको दे रहा हूं।
○इसको प्रतिदिन 108 बार पढ़ना उचित है और इससे प्राप्त लक्ष्मी चिरस्थाई होती है ऐसा इस स्तोत्र का प्रभाव है।
○ अगर किसी व्यवसाई को बहुत हद तक कोई घाटा पड़ जाए और इतना घाटा पड़ जाएगी उसे दो समय का खाना भी सरलता से उपलब्ध ना हो तो मां लक्ष्मी की उपासना करते हुए ।
○वह इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें उसके सभी अभीष्ट कुछ दिनों के भीतर भीतर उसको प्राप्त होने लग जाएंगे।
○ यह साधना है उन लोगों के लिए है जो शिष्ट शालीन और सबवे हैं और उग्र साधना ही नहीं कर सकते जिनके घर में देवता वैष्णव है और वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हुए जो लोग हैं।
○ एक सकारात्मक शक्ति एक सात्विक शक्ति एक पाराशक्ति उसकी साधना कर कर आप अपने अभीष्ट को पूरा कर सकते हैं वह भी किसी को हानि पहुंचाई बिना बिना किसी तामसिक रिया के।
○ मूल्य स्तोत्र एक बार सही से याद कर लेना और उसे कंठ कर लेना कंठ करने के बाद फिर आपको इतना समय नहीं लगेगा क्योंकि अभ्यास करने में समय जरूर लगता है लेकिन जब वह अभ्यास आपके काम आता है तो उससे ज्यादा खुशी वाली कोई बात नहीं होती।
○ इस साधना में किसी भी तरह के मांस मछली शराब अंडा आया तामसिक भोजन का सर्वथा त्याग करना पड़ता है और फलस्वरूप उसे चिरस्थित लक्ष्मी की प्राप्त होती है।
○ हिंसा क्रोध अनर्गल बातें ब्लॉक गाली बकना यह सब बातों से बहुत अधिक परहेज रखना होता है सादर को अरमान लक्ष्मी की नित्य प्रति पूजा करनी होती है।
○महालक्ष्मी को अपना आराध्य मानकर आपको सप्ताह में एक बार बुधवार या शुक्रवार को उनके प्रति व्रत रखना होता है असाधारण ही रहता है और भोजन शुद्ध सात्विक यही इस स्तोत्र की आवश्यकता होती है।
○ प्रतिदिन प्रातः काल स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर के मां लक्ष्मी की साधारण रूप से पूजा करें पूजन में कमल के फूल की आवश्यकता होती है अगर कमल का फूल आपके पास उपलब्ध ना हो तो आप कोई भी अन्य फूल चढ़ा सकते हैं जैसे गुलाब या गेंदा इत्यादि।
○फिर जो भी आपके पास आसन उपलब्ध हो या कंम्बल का आसन कुशा का आसन किसी रेशमी वस्त्र का आसन या सूती वस्त्र का आसन कोई भी हो पूर्वा विमुख होकर इस स्तोत्र का पाठ करना है।
○ फिर वही सामान्य आसन पर बैठकर पहले गणेश जी का ध्यान करे फिर गुरु और कुलदेवता का ध्यान करें फिर मां लक्ष्मी का आवाहन कर पूजन उपरांत सौ बार स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करें यह शत प्रतिशत प्रमाणित साधना है और शास्त्रिक साधना है यह कभी खाली नहीं जाती।
○ इस स्तोत्र का ग्यारह हजार जाप करने के बाद यह स्तोत्र आपके जीवन में सदा के लिए सिद्ध हो जाएगा फिर नित्य प्रति प्रातः स्नान के उपरांत इसको ग्यारह इक्कीस या इक्कीयावन बार ही पढ़ने से आपको चिर स्थिर लक्ष्मी की ज्ञात अज्ञात साधनों द्वारा अप्रत्याशित रूप से धन की प्राप्त होने लग जाएगी।
**धनदा लक्ष्मी स्तोत्र***
○धनदे धनपे देवि, दान शीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि, प्रार्थयामह्यम।।1।।
○धरामर प्रिये पुण्ये,धन्ये धनद-पूजिते।
सुधनं धार्मिकं देहि,यजमानाय स्त्वरम।।2।।
○रम्ये रुद्रप्रियआपर्णे,रमा रूपे रतिप्रिये।
शिखासख्यमनोमूर्ते! प्रसीद प्रणतेमयी।।3।।
○आरक्त-चरनाम्मभोजे,सिद्धि-सर्वार्थदायिनी।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये,दिव्यमालानुशोभिते।।4।।
○समस्त गुणसंपन्ने सर्वलक्षण लक्षिते।।
शरच्चचंद्रमुखेनीले नील नीरजलोचने।।5।।
○चंचरीक-चमू-चारु-श्रीहार-कुटिलालके।
दिव्ये दिव्यवरे श्रीदे,कलकण्ठरवामृये।।6।।
○हासावलोकनिर्दिव्यैभक्तिचिंतापहारिके।
रूप-लावण्य-तारुण्य-कारूणयगुंबभाजने।।7।।
○ क्वणत-कंकण-मंजीरे,रसलीलाSSकराम्बुजे।
रुद्र-व्यक्क्त महातत्वे धर्माधारे धरालये।।8।।
○प्रयच्छ ममगृहे देवि, धनं धर्मेंक-साधनम।
मात्सत्वं वाSविलम्बेन, ददस्व जगदम्बिके।।9।।
○कृपाब्धे करूणागारे प्रार्थये चाशु सिद्वये।
वसुधे वसुधारूपे वसु-वासव-वंदिते।।10।।
○प्रार्थिते च धनं देहि वरदे वरदा भव।।
ब्रह्मणा ब्रह्मनैः पूज्या,त्वया च शंकरो यथा।।11।।
○श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयि किंकरे।
स्तोत्रं दारिद्रय-कष्टार्त, शमनं सुधन-प्रदम।।12।।
○पार्वतीश प्रसादेन शुरेश किंकरे स्थितम।
मह्यं प्रयच्छ मात्सत्वं त्वामहं शरनं गतः।।13।।
।इति श्री धनदा लक्ष्मी स्तोत्रं।
○चिर स्थिर लक्ष्मी को अपने घर में प्रतिष्ठित करने के लिए इससे बेहतर और कोई स्तोत्र नहीं है।
○इसके पाठ से धन लाभ दरिद्रता नाश सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
○श्री भगवती धनदा लक्ष्मी कामधेनु स्वरूप हैं और सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली हैं।
○ लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा करना अत्यंत स्वाभाविक है किंतु पर्याय देखा जाता है कि उसके लिए उपासना मे श्रम नहीं किया जाता।
○जिस प्रकार उद्योग को करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है उसी प्रकार उपासना में भी पूरी तरह से श्रम होना चाहिए ।
○कलयुग में सिद्ध मंत्रों के जाप और सूत्रों के पाठ से सामान्य लाभ तो तत्काल प्राप्त हो जाता है इसलिए साधक को निराश ना हो करके निरंतर साधना करते रहना चाहिए।
○ इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक के कुल में लक्ष्मी जी स्थिर रूप में स्थित हो जाती हैं। और कभी भी साधक के कुल को छोड़कर नहीं जाती।
○बहने जो घर में बरकत ना होने से परेशान हैं आर और घर में सारा दिन रहती हैं तुलसी पूजन एकादशी का व्रत और इस स्तोत्र के पाठ से चिर स्थित लक्ष्मी को अपने घर में स्थित कर सकती हैं।
○सद्यः धन की प्राप्ति के लिए यह स्तोत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है किसी शिव मंदिर में किसी केले के बगीचे में बिल्व वृक्ष के नीचे या देवी मंदिर में या वहां पर अगर जगह नहीं मिलती तो भी आप अपने घर के एकांत कोने में या प्रांगण में यह साधना कर सकते हैं।
○लेकिन इस साधना को करने के लिए विशेष बात यह है कि इसको सुबह प्रातः काल मे स्नान के उपरांत तुरंत ही कर लिया जाए।
○इस साधना के प्रभाव से सिर्फ 15 दिन में ज्ञात अज्ञात साधनों से आकस्मिक रूप से धन लाभ होने लगता है।
○अपनी तरफ से मैंने इस लेख/वीडियो में पूरी जानकारी डालने की कोशिश की है लेकिन फिर भी अगर कुछ समझ ना आए तो आप मेरे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर व्हाट्सएप संदेश भेज कर दोपहर 11:00 बजे से 1:00 बजे तक संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।