"बिस्मिल्लाहरहमाननिरहीम,नबीअली दी बंदगी , पंज पीरां दा नूर,अली अली नैरा लाके आजा मेरे हजूर।नियाज़ गुलगुले देवां तेनु देवां भंग पियाला।पीरां विचों पीर देखेया हैदर शेख निराला।माई मशानी भैरो बाबा ,चलदे पंजे पीर। दर्शन दे बाबा हैदर शेख पीर। चले मन्त्र फुरो ,चल हैदर शेख पीर देखां तेरे इल्म दा तमाशा।दुहाई मौला अली दी,दुहाई तेरे पीर दी।"
41 दिनों की साधना है ये पाक साफ होकर करनी है और लोहबान सुलगाना है 5 दीये सरषों के तेल के जलेन है। इतर चढ़ाना 2 मीठे पान और मीठे चावल एव गुलगुले का माथा टेकना सरसों के तेल की होम बतासे से अग्यार करनी है प्रतिदिन हक़ीक़ की माला से 5 माला रोज़ाना जपना है और ज़मीन पे सोना है सरींह ((शिरीष)) के पेड़ की जड़ में शरदाई चढ़ानी है।जब बाबा जी के दर्शन हो जाएं तो उनकी दरगाह पे जाकर माथा टेकना है और चद्दर और बकरा चढ़ाना है।
ये बहुत पहुंचे हुए पीर है साधक पर खुश हो कर उसे भूत भाविष्य वर्तमान बताते है और सवारी आने पर बहुत बड़े बड़े काम साधक के सिद्ध होते है मुरादें पूरी एव मनोवांछित कार्यों में सफलता मिलती है।