शुक्रवार, 27 मार्च 2020

Shoka veer sadhna


Shoka Veer Sadhana.

○There are many times in life when a member in our family gets hindered by ghosts, that time is not a normal time for a human being, it becomes harmless for a person to live.  In such a time man keeps wandering rate by rate for his help and does not get tired due to few hands and often after getting treatment for many years and spending a lot of money, he cannot get relief.

○ The root cause is that no Bhagat or Ojha tantric loves your family member as much as you, many times a case is ignored because the curer does not have enough time to give you a spiritual practice.  This spiritual practice is sattvik and it is also powerful with Shauka Veer.

○I have many such instances in which many people had to become tantric to cure their family member, had to learn the learning, had to do the Siddhi due to their efforts and tireless efforts which no one could solve such cases.  Resolved too and those people also benefited more people and are still doing it.

○ I am going to give you the sadhana of Shoka Veer here for those people, this sadhana is 41 days sadhana.

○ In this, you have to follow the full brahmacharya and the land has to be rested, there is no rest in it.

○It is a thing to remember that in this Shoka Veer Sadhana has been going since the time of King Harishchandra and he also got his achievement.

○ The biggest feature of this practice is that it does not cause disturbance.

○ Chant 5 to 11 garlands of this mantra in the evening everyday from 7 to 8.  Do this continuously for 21 or 41 days with a white hakaik garland.

○ This is an agate practice, in this practice, chant the mantra only after covering the head and take special care of cleanliness, clothes and postures will be white.  Always keep it extra.

○ During sadhana, the mouth of the seeker will be facing towards the east, in front of it, myrrh will continue to light and a lamp will be burning with native ghee and one mustard oil.  And keep a water vessel necessary.

○ After this practice is complete, the seeker can fix the ghost phantom barrier above anyone.  After finishing this work, always keep a white colored pot with you.

○ In secret, the hero or his messenger lives with the seeker and fulfills the wishes of the seeker.  When the spiritual practice is done properly, these brave people also bring the desired thing to the seeker.

○  Normally no one comes in this practice, but still I request to get the master's command before doing this practice, even then start this practice. Normally the seeker does any spiritual practice but the complications that occur later  The seeker does not understand and the seeker is trapped in that trap and life is ruined if it will determine which cultivation you want to do or not.

○During the cultivation period, do not flush anyone nor tell anyone anything.

○By making a fire in the counterpart Havan Kund, make 108 bullets of smoke equivalent to Kabuli gram and keep 216 caped cloves already with you.

○Chant 4 garlands or 10 garlands first then the last

○Each time reading the mantra from the  garland, added cloves and one Put the bullet into the pool of kund.

○Before offering chant, frist offer fire lamp dhoop sweet fruits and flowers and then start chanting.

       mantra:- 
○sau chakra ki baavadi laal motiyan ka haar.  padmani paani neekari lanka kare nihaar. lanka see kot samudar si khaee . chalo chauki raamachandar ki duhai.  kaun kaun veer chale mastaan veer chale shoka veer. sava haath jameen ko sokhant jal sheetal kare. thal ko sokhant kare pavan ko sokhant karen. paani ko sokhant karen agni ko sokhant karen. paleetan ko bhoot pret ko palat karen. apane bairi ko sokhant karen bataoon paramaatma ka chakar chale vahaan nou madan soya karen. nahi to apanee maa ka choosa doodh haraam kare. shabd  saancha pind kaancha phuro maantar ishvarovaacha.

शोका वीर की साधना

           
                 शोका वीर साधना।

○जीवन में कई बार ऐसा समय भी आता है जब हमारे परिवार में किसी सदस्य को भूत प्रेत की बाधा हो जाती है वह समय मनुष्य के लिए आम समय नही होता मनुष्य का जीना हराम हो जाता है। ऐसे समय में मनुष्य अपनी मदद के लिए दर दर भटकता रहता है और कुछ हाथ नहीं लगता थक कर बैठ जाता है और बहुत बार कई-कई साल तक इलाज कराने से और ढेरों पैसा खर्च करने पर भी आराम नहीं आ पाता ।

○मूल कारण ये होता है की कोई भी भगत या ओझा तांत्रिक आपके पारिवारिक सदस्य को आप जितना प्यार नही करता कई बार किसी किसी केस को इस लिए नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है क्योंकि इलाज करने वाले के पास पर्याप्त समय नही होता मैं आपको एक साधना दे रहा हूं यह साधना सात्विक है और इसके साथ साथ शक्तिशाली भी शौका वीर की।

○ मेरे पास ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जिनमें कि अपने परिवारिक सदस्य को ठीक करने के लिए बहुत सारे लोगों को तांत्रिक बनना पड़ा यह विद्या सीखनी पड़ी सिद्धियां करनी पड़ी उनकी वह की गई कोशिश और अथक प्रयास के कारण जिनको कोई हल नहीं कर पाया ऐसे केस भी हल हो गए और उन लोगों ने और लोगों का भी भला किया और अभी भी कर रहे हैं।

○उन लोगों के लिए यहां शोका वीर की साधना मैं आपको देने जा रहा हूं यह साधना 41 दिन की साधना है।

○ इसमें पूर्ण ते ब्रह्माचार्य का पालन करना पड़ता है और भूमि शयन करना पड़ता है बाकी इसमें कोई परहेज नहीं है।

○स्मरण रखने वाली बात यह है इसमें की शोका वीर किस साधना राजा हरिश्चंद्र के जमाने से चली आ रही है और उनको इनकी सिद्धि भी प्राप्त थी।

○ इस साधना की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस मे विघ्न नही आते।

○प्रतिदिन शाम को 7 से 8 इस मंत्र की 5 से 11 माला का जाप करें । सफेद हकीक की माला से ऐसा 21 या 41 दिन तक  लगातार करें।

○ये एक  सुलेमानी साधना है इस साधना में सिर ढककर ही मन्त्र जप करें और सफाई का विशेष ध्यान रखें कपड़े और आसन सफेद रंग के होगे। हमेशा इतर लगाकर रखें।

○साधना काल में साधक का मुंह पूर्व दिशा की ओर रहेगा सामने लोहबान सुलगता रहेगा और एक दीपक देशी घी का और एक सरसों के तेल का जलता रहेगा। और एक जल का पात्र आवश्यक रखें।

○ये साधना सम्पूर्ण हो जाने के बाद साधक किसी के भी ऊपर के भूत प्रेत बाधा को ठीक कर सकता है। इस साधना को सम्पन्न करने के बाद एक सफेद रंग का गमछा हमेशा अपने पास रखें।

○गुप्त रूप से वीर या उसके दूत साधक के साथ ही रहते है और साधक की मनोकामना पूरी करते है। साधना सही स संपन्न होने पर ये वीर इच्छुक वस्तु भी साधक को लाकर देते हैं।

○ सामान्यतः इस साधना में कोई भी नहीं आता लेकिन फिर भी मेरा अनुरोध है इस साधना को करने से पहले गुरु की आज्ञा प्राप्त करें तब भी इस साधना को शुरू करें सामान्यतः साधक किसी भी साधना को कर दो लेता है लेकिन उसके बाद में होने वाली जटिलताएं साधक को समझ नहीं आती और साधक उस जाल में फस कर रह जाता है और जीवन बर्बाद हो जाता है यदि निर्धारित करेगा कि आपको कौन सी साधना करनी है कौन सी नहीं।

○साधना काल के दौरान किसी का भी झाड़ फूँक न करें और ना ही किसी को कुछ बतावे ।

○प्रतिरात्री हवन कुंड में आग बनाकर काबुली चने के बराबर धूफ की 108 गोलियां बना कर और 216 टोपीदार लौंग अपने पास पहले से ही बनाकर रखे।
पहले 4 माला या 10 माला का जाप करें फिर अंतिम     
माला से प्रत्येक बार मन्त्र पढ़ कर जोड़ा लौंग और एक   गोली धूफ की कुंड में डाल दें।

○जाप करने से पहले धूफ दीप फल फूल मिठाई का भोग लगाएं फिर ही जाप शुरू करें।

○एक बात मैं आपको और बताता हूँ कि आसन पर बैठने से पहले आसन जाप 7,11 या 21बार जरूर पढ़ लें आसन मन्त्र के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें https://tantarvriksha.blogspot.com/2019/10/blog-post_63.html?m=1

○मन्त्र को अच्छी तरह से याद कर लें फिर ही अनुष्ठान शुरू करें।

       मन्त्र:- सौ चक्र की बावड़ी लाल मोतियन का हार।
              पद्मनी पानी नीकरी लंका करे निहार।
              लंका सी कोट समुद्र सी खाई ।
              चलो चौकी रामचंद्र की दुहाई।
              कौन कौन वीर चले मस्तान वीर चले शोका                  वीर सवा हाथ जमीन सोखन्त जल शीतल                    करे।थल को सोखन्त करे पवन को सोखन्त                  करें।पानी को सोखन्त करें अग्नि को सोखन्त                करें।पलीतनी को भूत प्रेत को पलट करें।
               अपने बैरी को सोखन्त करें बताऊँ 
               परमात्मा का चक्र चले वहाँ नों मदन सोया                   करें। नही तो अपनी माँ का चूसा दूध हराम                   करे।शब्द साँचा पिंड कांचा फुरो मन्त्र                         ईश्वरोवाचा।




गुरुवार, 26 मार्च 2020

वार्ताली देवी साधना

        
            श्री वार्ताली देवी साधना।

एक अद्भुत अनुपम साधना  जोकि बहुत तीव्र शक्ति युक्त होती है  स्वप्नेश्वरी  कर्ण मातंगी  कर्ण पिशाचिनी की भांति  इस  वार्ता ली देवी की साधना के भी बहुत अधिक लाभ हैं अभिप्राय "वार्तालि यानी वार्ता करने वाली देवी" इस शक्ति का सीधा संबंध कुंडलिनी शक्ति की साधना से है ।

इसका साधक साधना संपन्न कर लेने के बाद भूत भविष्य वर्तमान तीनों कानों को जानने वाला त्रिकालदर्शी बन जाता है।
यह साधना भी कर्ण पिशाचिनी कर्ण मातंगी की तरह ही है इसकी साधना वेदोक्त पद्धति साबर मंत्र पद्धति और अघोर मंत्र की पद्धति से की जाती है परंतु वेदोक्त साधना सर्वश्रेष्ठ कही जाती है इसमें मंत्र व तंत्र दोनों का प्रयोग हो सकता है साधना की विधि वार्ता जी देवी का आगे दिया जा रहा यंत्र है इसे स्वर्ण चांदी या ताम्रपत्र पर खुदवा कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें ।
2 ×2 फुट चौड़ा यानी लकड़ी का चौका पट्टा लेकर उसकी एक चौकी बनवाएं यह बनी बनाई भी बाजार से ले सकते हैं उस पर  लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछाकर चावलों से वार्ता ली देविका ताम्रपत्र पर अंकित यंत्र जैसा अष्टदल बनाकर ताम्रपत्र पर अंकित यंत्र जैसा यंत्र बनाकर उस पर ताम्रपत्र पर अंकित वार्ता ली यंत्र स्थापित करें चौकी के चारों कोनों में तेल के चार दिए जलाएं साधक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नहा धोकर स्नान स्नान इत्यादि होकर गुरुवार गणेश की पूजा करने के उपरांत मुख्य पूजा करें साधक लाल रंग के वस्त्रों को धारण करें और आज भी लाल ही रंग का होना चाहिए साधक की दही नहीं और सामने देसी घी का अखंड दीपक जलाकर रखें और अपने भाई और सामने की तरफ एक जल का पात्र रखें।

 सबसे पहले विनियोग पढ़कर दाएं हाथ में जो जल लिया उसे भूमि पर छोड़ दें विनियोग इस प्रकार है 

ॐ अस्य श्री वार्ताली मंत्रस्य पराअम्मबा ऋषय: त्रिषटुप छन्दसे क्रियामय  त्रिकाल देवता ऐं बीजम श्री शक्ति कीलकम अस्मिन श्री वार्ताली मंत्र जपे विनियोग।।

 मंत्र इस प्रकार है :-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पंच-कारस्य स्वाहा।

ऋष्यादि न्यास:-

(१) परांम्बा ऋषये नमः शिरिस।
(२) त्रिष्टुप छन्दसे नमः मुखे।
(३) त्रिकाल देवताभ्यो नमः हृदये।
(४) ऐं बीजाय नमः गुह्ये।
(५) ह्रीं शक्ति नमः नाभौ।
(६) श्री कीलकाय नमः पाठ्यो।
(७) विनियोगाय नमः सर्वांगे।

उपरोक्त न्यास में जिन-जिन अंगो का नाम आया है पांचों उंगलियों को मिलाकर उस स्थान को स्पर्श करें प्रदेशों की नाभि मुख इत्यादि

श्री वार्ताली साधना यंत्र।

○कर न्यास:-

○(१) ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
○(२) ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
○(३) ह्रो मध्यामभ्यां नमः।
○(४) श्री अनामिकाभ्यां नमः।
○(५) पंच कारस्य कनाष्ठिकाभ्यां नमः।
○(६) ॐ ऐं ह्रीं श्री करतल कर पृष्ठभ्यां नमः।

○षडङ्गन्यास:-

○(१) ॐ हृदयाय नमः( पांचों अंगुलियों से ह्रदय को स्पर्श करें )
○(२) ह्रीं शिरसे स्वाहा। ( सिर को स्पर्श करें)
○(३) ह्रीं शिखायै वषट्। (सिखा को स्पर्श करें।)
○(४) श्री कवचाय हूँ। (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
○(५) पंचकरस्य नेत्र त्र्याय वौषट। (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
○(६) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्ट। अपने सिर के ऊपर से दाहिना हाथ घुमाकर चुटकी बजा दें।

○उपरोक्त साधना में काले हकीक की माला से ही साधना की जा सकती है और 21 माला प्रतिदिन नित्य 41 दिनों तक जाप करें।

○जाते समय सामने देसी घी की अखंड ज्योत जलती रहे और चौकी के चारों कोनों पर सरसों के तेल के दीए जलते रहने चाहिये।

○ साधक को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से साधना प्रारंभ करके शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि तक साधना संपन्न करें ।
○दिन में एक समय भोजन मीठा करें  वह भी ठंडा ।

○भूमि पर शयन करें और पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करें

○ प्रसन्न होने पर देवी प्रकट होकर छोटा सा प्रकाश बिंदु रूप करके साधक के हृदय में समा जाती हैं ।

○उस वक्त साधक का सारा शरीर कंपनी झनझन आने लगता है मानव शरीर के अंदर प्रकाश पुंज चम चमा रहा हो बस तभी से साधकों भूत भविष्य वर्तमान पता लगने लगता है ।

○तीनों कालों का तीनों लोकों में घटित हो चुकी घटित हो रही या घटित होने वाली घटनाओं को साधक दूरदर्शन के पर्दे की तरह आसानी से देख सकता है ।

○और सब का भला कर सकता है साधना पूर्ण होने पर सिद्ध हुए ताम्रपत्र को यंत्र को साधक अपनी बाजू या गले में धारण कर सकता है।
○ इस साधना को सोच समझकर शुरू करें और बीच में कभी ना छोड़े।

○ इस साधना को पूर्ण श्रद्धा के साथ करने से आपको सिद्धि का लाभ प्राप्त होगा किंतु बिना गुरु के यह साधना कभी ना करें क्योंकि यह साधना साधकों द्वारा बार-बार अनुरोध करने पर ही यहां पर मैं डाल रहा हूं यह साधनाएं बिना गुरु के नहीं होते क्योंकि इस सिद्धि प्राप्त कर लेने के बाद इस सिद्धि को धारण किए रखना बहुत कठिन होता है वास्तव में वही है कठिन काल होता है इसलिए पहले अपने गुरु से परामर्श करके उन्हें दक्षिणा और सेवा से प्रसन्न करें फिर उनकी आज्ञा लेने के बाद ही इस साधना को करें।

                   ।।इति शुभमस्तु।।

बुधवार, 25 मार्च 2020

दुर्गा चौतीसा मन्त्र यंत्र साधना

                
                 मां दुर्गा की साधना।
जिसमें आपकी श्रद्धा के अनुसार भगवती के आप को दर्शन भी प्राप्त हो सकते हैं 
((इस समय में भारतवर्ष में एक ला इलाज बीमारी जो कि छुआछूत से फैल रही है कोरोना दस्तक दे चुकी है और इसका इलाज अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा अभी तक खोजा नहीं जा सका।
 इसलिए आपका दायित्व है कि अपने अपने घर पर रहे अपने लिए अपने परिवार के लिए समाज के लिए और पूरे भारतवर्ष के लिए अपने घरों में रहे।
जो जिज्ञासु जन हैं उनके लिए ये एक अवसर है कि एकांत में बैठकर साधना करें समाज के कल्याण के हित को ध्यान में रखकर क्योंकि आपके भी कुछ फर्ज हैं समाज के प्रति जिनका निर्वाहन आपको करना होगा या फिर अगर आप इसका निर्वाहन आज नहीं करते हो तो इंसान की नस्ल का वजूद मिट जाएगा।))

○इस मंत्र के द्वारा आप जनकल्याण तथा परोपकार भी कर सकते है। साधक इस मंत्र के द्वारा किसी भी बाधाग्रस्त व्यक्ति जैसे भूत- प्रेत बाधा, आर्थिक बाधा, बुरी नजर दोष, शारीरिक या मानसिक बाधा इत्यादि को आसानी से मिटा सकता है।
○इस मंत्र से साधक सम्मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उच्चाटन, विद्वेषण इत्यादि प्रयोग भी सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है और उनका तोड़ भी कर सकता है।

○ इस साधना को पूर्ण से संपन्न कर लेने के बाद आपके जीवन और घर परिवार से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाएगी। लेकिन शर्त ये है कि आप मन्त्र का आजीवन 108 बार जाप प्रतिदिन करते रहे।

○साधना को 21 दिन या 41 दिन किया जा सकता है ।

○साधना काल में मांस मछली शराब अंडा तामसिक भोजन का प्रयोग वर्जित है।

○धूप दीप फल फूल जो भी उपलब्ध हो श्रद्धा से चढ़ा देने से आपको पूर्ण फल ही प्राप्त होगा क्योंकि "भक्ति का मूल होता है भाव"।

○प्रतिदिन रात्रिकाल को इस मंत्र की 21 या 51 माला रुद्राक्ष की माला या जो भी माला उपलब्ध हो उस पर आपको करनी है।

○ साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें और भूमि  पर ही सोना चाहिए।

○वस्त्र और आसन साफ-सुथरे और आरामदायक होने चाहिए ताकि मंत्र जपते हुए आपको कोई कठिनाई न हो शोरगुल और भीड़भाड़ से दूर रहें ताकि आपके ध्यान  लगाने में कोई कठिनाई ना हो।

○अपने घर की व्यवस्था ऐसे करें कि आपके घर में धार्मिक वातावरण बना रहे तो आपको अभीष्ट फल प्राप्त होने से कोई रोक नहीं सकता आप जिस भी धर्म से जुड़े हुए हैं उस धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखें और इमो का पालन करें आपको अवश्यमेव लाभ होगा।

○ अनुष्ठान और मंत्रों से उन्हीं भक्तों को लाभ होता है जिनकी सच्ची श्रद्धा विश्वास भक्ति से जुड़ी होती है।

○ सबसे पहले गुरुवार गणेश का चिंतन और पूजन करें उसके बाद अभीष्ट मंत्र की साधना की तरफ बढ़े।

○ इस साधना में भगवती दुर्गा के मंत्र की साधना के साथ साथ यंत्र भी सिद्ध होता है।

○ सातो सती शारदा।।बारह वर्ष कुमार।
        एक माई परमेश्वरी।। चौदह भुवन द्वार।
        दिव्य पक्ष की निर्मली।। तेरह देवी-देव।
        अष्ट भुजी परमेश्वरी।। ग्यारह रुद्र कर सेव।
        सोलह कला संपूर्णा।।तिरलोकी वश करे ।
        दश अवतारा उतरी ।। पांचों रक्षा करें।
        नव नाथ षट्‌-दर्शनी।पन्द्रह तिथि जान।।
        चार युग सुमर के। कर पूर्ण कल्याण।।

         
         ।। चौतीसा यन्त्र इस प्रकार होगा।।।

        ____________________________
        | 07   |    12     |      01  |    14 |
        | ------+-----------+----------+--------|
        |02    |    13    |      08   |    11 |
        |--------+---------+-----------+--------|
        |16     |    03    |     10   |    05 |
        |--------+---------+-----------+--------|
        | 09    |  06     |      15   |    04 |
        -------------------------------------------

○ यंत्र भरने का तारीका इस प्रकार है पहले स्नान इत्यादि से निवर्त होकर साफ भोज पत्र पर 16 खानों का के एक यंत्र का निर्माण करें फिर जैसा मन्त्र में आएगा सातों सती शारदा बोलकर जिस कोष्ठक में 7 अंक लिखा है फिर 12 वर्ष कुमार बोलकर उक्त कोष्ठक के दाहिनी तरफ वाले कोष्ठक मैं 12 का अंक भरें फिर मन्त्र अनुसार क्रमशः अंक भरते हुए 16 कोष्ठकों का यंत्र बन जायेगा।यंत्र के नीचे धारक का नाम लिखे।

○ यंत्र के तैयार हो जाने के बाद यंत्र का षोडशोपचार पूजन करें इस यंत्र में भरे जाने वाले या किसी भी यंत्र में भरे जाने वाले अंक 1 से लेकर के 9 तक जो भरे जाते हैं सभी नवदुर्गा का स्वरूप होते हैं इसलिए यंत्र के प्रति सच्ची श्रद्धा रखें।

○ कुछ जरूरी नियम मैं यहां पर लिखूंगा नहीं किंतु आप को उन मौलिक नियमों का पालन करना होगा तभी इस यंत्र का लाभ आपको मिलेगा सबसे पहले जब आप यंत्र का निर्माण करें सच्ची श्रद्धा से निर्माण करें अष्टगंध की स्याही बनाकर जो कि खुद तैयार की जाए और अनार की कलम से शब्द भोजपत्र या भोजपत्र ना मिलने के अभाव में आप कागज पर जो कि साफ सुथरा हो इस यंत्र का निर्माण कर सकते हैं साथ ही अगर उपरोक्त सामग्री आपके पास उपयुक्त ना हो तो आप लाल रंग की कलम से जिसमें लाल स्याही का प्रयोग होता हो इस यंत्र का निर्माण कागज के ऊपर कर सकते हैं लेकिन यंत्र बनाते हुए यंत्र बनाते हुए नाभि के स्तर से ऊंचा रखा जाए यही यंत्र निर्माण की मर्यादा है।

○यंत्र या मन्त्र के अनुष्ठान से पूर्व सर्व यंत्र मन्त्र तंत्र उत्कीलन स्तोत्र का पाठ कर लिया जाए लिंक नीचे दिया गया है।http://tantarvriksha.blogspot.com/2020/03/blog-post.html

○यंत्र का निर्माण हमेशा एकांत में करें और इसका प्रयोग हमेशा गुप्त रखें तब इस यंत्र के निर्माण से आपको लाभ होगा यंत्र निर्माण के बाद यंत्र के नीचे आवश्यक रूप से धारण करता का नाम अवश्य लिखें और उसे सोने,चांदी या तांबे के ताबीज में मड़वा कर पहनना चाहिए।
○ इस यंत्र को धारण करने वाले यंत्र को धारण करने के बाद आप किसी सौंच वाले स्थान पर ना जाएं जहां किसी शिशु का जन्म हुआ हो या किसी की मृत्यु हुई हो तो वहां 40 दिन तक आप नहीं जा सकते  उसके बाद यदि आपको जाना बहुत आवश्यक हो तो यंत्र को उतारकर किसी अनाज में रख देना चाहिए उसके उपरांत जब आप घर पर आए तो फिर गूगल की धूनी देकर और स्नान करके उस यंत्र को पुनः धारण कर ले।

○यंत्र निर्माण के समय जब आप 16 कोष्टक वाले इस यंत्र का निर्माण करें तब प्रत्येक अंक भरने से पहले पूरे मंत्र का उच्चारण करें और प्रतिदिन 108 यंत्रों का निर्माण करें फिर उनको आटे में भरकर गोलियां बना लें आप 108 गोलियों को मछलियों के लिए जल में प्रवाहित कर दें ऐसा क्रम से आपको 21 दिन या 41 दिन करना है लेकिन मैं आपको 41 दिन करने की ही सलाह दूंगा क्योंकि इससे आपका एक चिल्ला पूरा हो जाता है।

○ साधना काल में आप शुद्ध और सात्विक भोजन का ही आहार करें और राग द्वेष इत्यादि से दूर रहें गुरु और देवी की कृपा के बिना इस यंत्र का सिद्ध होना असंभव है इसलिए सबसे पहले यत्न पूर्वक गुरु को दक्षिणा देकर उनसे इस अनुष्ठान के पूरे होने का आशीर्वाद ले ले तभी आपकी यह साधना सफल होगी।

○उपरोक्त मन्त्र अपने आप में यंत्र निर्माण के रहस्य समेटे हुए है। आपके एक बार सिद्ध कर लेने के बाद आप इसके प्रयोग से दूसरे लोगों को भी लाभ करवा सकते है।

○यन्त्र का निर्माण स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर शुद्ध भोजपत्र पर करना चाहिए।

○ यदि आपने अभी तक गुरु धारण नहीं किया है तो आप किसी विद्वान को अपना गुरु धारण करें और उससे अनुमति मिल जाने के बाद ही आप इस यंत्र का प्रयोग ना करें वरना इष्ट की जगह अनिष्ट होने में नहीं लगता।

○बिना गुरु आज्ञा के इस यंत्र का निर्माण करने वाले किसी भी साधक को होने वाले किसी प्रकार के अनिष्ट या कष्ट का उत्तरदायित्व मेरा नहीं होगा इसलिए सर्वप्रथम अपने गुरु से आज्ञा प्राप्त करें
        
                            इति शुभमस्तु


।सर्वयंत्र मन्त्र तंत्रों उत्कीलन।


*******।।सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलन।*******

*******।।सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलन।*******
पर्वतीउवाच:
देवेश परमानंद भक्तानांभयप्रद,आगमा निगमसचैव बीजं बीजोदयस्था।।१।।
समुदायेंन बीजानां मंत्रो मंत्रस्य संहिता।
ऋशिछ्दादिकम भेदो वैदिकं यामलादिकम।।२।।
धर्मोअधर्मस्था ज्ञानं विज्ञानं च विकल्पनम।
निर्विकल्प विभागेनं तथा छठकर्म सिद्धये।३।।
भुक्ति मुक्ति प्रकारश्च सर्व प्राप्तं प्रसादत:।
कीलणं सार्वमंत्रनां शंसयद ह्रदये वच :।।४।।
इति श्रुत्वा शिवानाथ: पर्वत्या वचनम शुभम।
उवाच परया प्रीत्या मंत्रोतकील्कन शिवाम।।५।।
शिवोवाच।
वरानने ही सर्वस्य व्यक्ताव्यक्ततस्य वस्तुनः।
साक्षीभूय त्वमेवासि जगतस्तु मनोस्थता।।६।।
त्वया पृष्ठटँ वरारोहे तद्व्यामुत्कीलनम।
उद्दीपनम ही मन्त्रस्य सर्वस्योत्कीलन भवेत।७।।
पूरा तव मया भद्रे स्मकर्षण वश्यजा।
मंत्रणा कीलिता सिद्धि: शर्वे ते सप्तकोटिय:।।८।।
तवानुग्रह प्रीतत्वातसिद्धिस्तेषां फलप्रदा।
येनोपायेन भवति तं स्तोत्रं कथ्यामहम।।९।।
श्रुणु भद्रेअत्र सतत मवाभ्याखिलं जगत।
तस्य सिद्धिभवेतिष्ठ मया येषां प्रभावकम।।१०।।
अन्नं पान्नं हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं मया शिवे।
संजीवन्नं च मन्त्रनां तथा दत्यूं परनर्ध्रुवं।।११।।
यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोअपि वा।
अकीला अखिला मंत्रा सत्यं सत्यं ना संशय।।१२।।
ॐ अस्य श्री सर्व यन्त्र तन्त्र मन्त्रणामउत्कीलन मंत्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृति ऋषियेजगतीछन्द: निरंजनो देवता कलीं बीज,ह्रीं शक्ति , ह्रः लौ कीलकम , सप्तकोटि यंत्र मंत्र तंत्र कीलकानाम संजीवन सिद्धिार्थे जपे विनियोग:।
ॐ मूल प्रकृति ऋषिये नमः सिरषि।
ॐ जगतीचछन्दसे नमः मुखे।
ॐ निरंजन देवतायै नमः हृदि।
ॐ क्लीं बीजाय नमःगुह्ये।
ॐ ह्रीं शक्तिये नमः पादयो:।
ॐ ह्रः लौं कीलकाय नमः सर्वांगये।
करन्यास।*****
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रो कनास्तिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्रीं शिरषे स्वाहा।
ॐ ह्रूं शिखायै वौषट।
ॐ ह्रैं कवचाय हूं।
ॐ ह्रो नेत्रत्रयाय फ़ट।
ॐ ब्रह्मा स्वरूपम च निरंजन तं ज्योति: प्रकाशमनिशं महतो महानन्तम करुणायरूपमतिबोधकरं प्रसन्नाननं दिव्यं स्मरामि सततं मनुजावनाय।।१।। एवं ध्यात्वा स्मरेनित्यं तस्य सिद्धि अस्तु सर्वदा,वांछित फलमाप्नोति मन्त्रसंजीवनं ध्रुवम।।२।।
मन्त्र:-ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व मन्त्र-यन्त्र-तंत्रादिनाम उत्कीलणं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रां षट पंचक्षरणंउत्कीलय उत्कीलय स्वाहा।।
ॐ जूं सर्व मन्त्र तंत्र यंत्राणां संजीवन्नं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं जूं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृ लृ एं ऐं ओं औं अं आ: कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञ टँ ठं डं ढं नं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं हं क्षं मात्राक्षरणां सर्वम उत्कीलणं कुरु स्वाहा।


ॐ सोहं हं सो हं (११ बार)

जू सों हं हंसः ॐ ॐ(११ बार), 

ॐ हं जूं हं सं गं (११ बार),

सोहं हं सो यं (११ बार),

लं(११ बार), 

ॐ (११ बार),

यं (११ बार),

ॐ ह्रीं जूं सर्व मन्त्र तन्त्र यंत्रास्तोत्र कवचादिनां सनजीवय संजीवन्नं कुरु कुरु स्वाहा।। ॐ सो हं हं स: जूं संजीवणं स्वाहा।।
ॐ ह्रीं मंत्राक्षराणं उत्कीलय उत्कीलणं कुरू कुरु स्वाहा।
ॐ ॐ प्रणवरूपाय अं आं परमरूपिने।
इं ईं शक्तिस्वरूपाय उं ऊं तेजोमयाय च।१।
ऋ ऋ रंजित दीपताये लृ लृ स्थूल स्वरूपिणे।
एं ऐं वांचा विलासाय ओं औं अं आ: शिवाय च।२।।
कं खं कामलनेत्राये गं घँ गरुड़गामिने ।
ङ चं श्री चंद्र भालाय छं जं जयकराये ते।३।।
झं टँ ठं जय कर्त्रे डं ढं णं तं पराय च।
थं दं धं नं नामस्तसमे पं फं यंत्रमयाय च।।४।।
बं भं मं बलवीर्याये यं रं लं यशसे नमः।
वं शं षं बहुवादाये सं हं लं क्षं स्वरूपिनेे।।५।।
दिशामादित्य रूपाये तेजसे रूप धारिने।
अनन्ताय अनन्ताय नमस्तसमे नमो नमः।।६।।
मातृकाया: प्रकाशाय तुभ्यं तस्मे नमो नमः।
प्राणेशाय क्षीणदाये सं संजीव नमो नमः।।७।।
निरंजनस्य देवस्य नामकर्म विधानत:।
त्वया ध्यातँ च शक्तया च तेन संजायते जगत।।८।।
स्तुतःमचिरं ध्यात्वा मयाया ध्वंस हेतवे।
संतुष्ट आ भार्गवाया हैं यशस्वी जायते ही स:।।९।।
ब्राह्मणं चेत्यन्ति विविध सुर नरांस्त्रपयंती प्रमोदाद।
ध्यानेनोद्देपयन्ती निगम जप मनुं षटपदं प्रेरयंती।
सर्वां न देवान जयंती दितिसुतदमनी सापह्नकार मूर्ति-
स्तुभ्यं तस्मै च जाप्यं स्मररचितमनुं मोशय शाप जालात।।१०।।
इदं श्री त्रिपुरास्तोत्रं पठेद भक्त्या तू यो नर:।
सर्वान कामनाप्नोति सर्वशापाद विमुच्येत।।
।।इति श्री सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलनँ सम्पूर्णम।।

जैसा कि हम सभी को ज्ञात हैं कि हिंदू मंत्र यंत्र और तंत्र सभी भगवान शंकर द्वारा कीलित कर दिए गए थे एवं उनका प्रयोग जो है कलयुग में बुरे कामों के लिए ना हो यही इसका मूल कारण था कि भगवान शंकर को सभी यंत्र मंत्र और तंत्र ओं को क्लिक करना पड़ा धीरे धीरे हिंदू साधकों का सभी शास्त्री सिद्धियां और जितने भी कर्म है उन से विश्वास उठता जा रहा है उसको देखते हुए हम आपके लिए लेकर आए हैं यंत्र मंत्र तंत्र उत्कीलन का यह प्रयोग किसी भी साधना को करने से पहले आप इन इस स्तोत्र का एक बार अनुष्ठान अवश्य करें और फिर देखें आप के अनुष्ठान में कितनी शक्ति आ जाएगी फिर देखें इस का चमत्कार आपका मन नहीं भटके गा एवं साधना में जो आपकी इच्छा है वैसे ही आपको सफलता मिलेगी जिज्ञासु ओं के लिए इस प्रयोग को मैं दे रहा हूं सभी न्यास और विनियोग करना आवश्यक है तभी यह स्तोत्र काम करता है।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

कोख बन्धन और उस्का निदान

            
  ****।।। सन्तान प्राप्ति।।।****
जैसे बिना पानी के सागर नहीं हो सकता,बिना जल के मेघ नहीं हो सकता, जैसे राजहंस के बिना मानसरोवर की कल्पना अधूरी है, जैसे नेत्र बिना ज्योति के अर्थहीन है वैसे ही शिशु की किलकारीयों से वंचित आंगन शापित स्थान का आभास करवाता है । इकट्ठा किया गया धन और संसार की सभी खुशियां जब तक आपके संतान ना हो तब तक व्यर्थ है संसार के सभी सुख बिना शिशु के बड़े से बड़े महल को भी सुना कर देता है यह ईश्वर की तरफ से दिया गया एक अमूल्य धन है जिसकी कोई कीमत नहीं।

ये विषय बहुत जटिल है एक लेख के माध्यम से इस विषय को समझा पाना बहुत कठिन है फिर भी इस लेख में मैं आपको बताऊंगा कि अगर किसी स्त्री की कोख बांध दी जाए तो कैसे लक्षण सामान्यतः दिखते हैं उसका निदान क्या है और संतान प्राप्ति के उपाय के हैं ।
       
                          ।।लक्षण।।

○वर्षो योग्य तक दवा करवाने पर भी संतान सुख की प्राप्ति ना होना।
○दवा करवाने के बाद भी स्त्री का गर्भ धारण न होना।
○पैथोलॉजी रिपोर्ट्स का नार्मल आना। लेकिन फिर भी संतान का ना होना।
○दवा करवाने पर भी मासिक धर्म की अनियमितता ठीक ना होना।
○पति और पत्नी दोनों के स्वस्थ होने पर भी सन्तान का ना प्राप्त होना।
○स्त्री को बार बार एक ही सपना आना और गर्भपात हो जाना।
○स्त्री के अंगों पर भारीपन रहना। पेडू और पेट में बिना किसी कारण के दर्द रहना।

                        ।।।कारण।।।

बहुत से कारन हो सकते है हर केस की अलग कहानी और अलग कारण होते है और उसके इलाज भी अलग अलग जिसके कारण इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लिखकर समझा देना बहुत कठिन है। कुछ मुख्यकारण मैं आपको यहां बताने की कोशिश करता हु।

○शारिरिक अयोग्यता।
○श्राप का दोष।
○ ग्रह की बाधा।
○तंत्र की बाधा।
○ऊपरी बाधा।
○कोख का बन्धन।
      
      शारिरिक बाधा :- जब कोई पीड़ित शारिरिक रूप से इस तरह अस्वस्थ हो जिसके केस को चिकित्सक के लिए एक अलग दृष्टिकोण से देखने की जरूरत हो शारिरिक अयोग्यता की श्रेणी में आता है।

      श्राप का दोष:- सभसे ज्यादा केसों में संतान ना होने का कारण यही दोष होता है जब किसी के देवी,देवता, पीर, पितृ रुष्ट हों या किसी भी कारण से इनकी बाधा आये तो इस दोष का निवारण हेतु यत्न करने चाहिए।

      ग्रह बाधा:- जब इस दोष से पीड़ित पति पत्नी की 
      जन्मकुंडली में ग्रह के कारण बनने वाले योग के  
      कारण संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो   
      ग्रह बाधा की संज्ञा दी जति है।

      तंत्र बाधा:-इस बाधा का सीधा सीधा ये मतलब नही        कि पीड़िता को कोख को बांध दिया गया है इसका  
      तातपर्य ये कि कई बार लापरवाही से चलते हुए 
      किसी टोने टोटके को लांघ जाने से भी ये बाधा              उत्पन्न हो जाती है।

      ऊपरी बाधा:- जब कोई विवाहित या अविवाहित 
      नवयुवती अधिक सुंदर हो तो कुछ नकारात्मक  
      शक्तियां उनकी ओर आकर्षित हो जाती है और 
      संतान बाधा उत्पन्न कर देती है जैसे कि जिन्न शैतान        ख़बीस भूत प्रेत पिचास चुड़ैल डाकिनी इत्यादि।
     
     कोख बंधन:-तंत्र के षट कर्मो मैं बहुत ही भयानक         प्रयोग है लेकिन सारी तंत्र विद्या में ये सबसे घटिया         काम है लेकिन षड्यंत्रों से भरे इस संसार में बहुत           घटिया से घटिया सोच के लोग मौजूद हैं कोख को         बांध देना जितना आसान है उतना ही मुश्किल है 
     उसे खोलना।इसमें काले जादू द्वारा स्त्री की जनन           शक्ति को बांध दिया जाता हैलेकिन परिश्र्मी साधक       के लिए कुछ भी असंभव नहीं हो सकता।

                              ।।।उपचार।।।

○शास्त्रिक विधियों से
○तांत्रिक विधियों से

शास्त्रिक विधियों से :- जब उपरोक्त दोषों को हटाया जाता है जैसे कि पुत्रयेष्ठि यज्ञ,संतान गोपाल ,हरिवंश पुराण,दुर्गा सप्तशती या कोई भी पूर्ण शास्त्रिक मर्यादा से किया गया अनुष्ठान जिसमें यजमान ब्राह्मण का पूरा साथ और समय श्रद्धा से दे।फल की प्राप्ति में कोई किंचित मात्र संदेह नहीं रहता।

तांत्रिक विधियों से:-हमारा प्राचीन तंत्र बहुत बृहद और विशाल है वामाचार से सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है लेकिन तंत्र की गहराईयों को समझना बहुत कठिन है इसमेंसे  प्रयोग तब सफल होते है जब उन्हें गुप्त रखा जाए। कुछ तांत्रिक ग्रामीण श्रेणी के होते है उनको इस लेख में लिख पाना संभव नहीं है।

विभिन्न विभिन्न कारणों से हुए कुक्षि बन्धनों का अलग अलग प्रकार से इलाज होता जो लंबे समय तक चलता है। सभसे पहले कारण का निवारण किया जाता है तभी ऐसे केसों में संतान सुख संभव हो सकता है।

संतान प्राप्ति का प्रयोग।

अलग अलग केसों में अलग अलग दोषों का उपचार किया जाता है एवं उपचार की पद्धतियां भी विभिन्न होती है। कई केसों में एक बार में ही एक छोटा सा टोटका ही काम कर जाता है और कुछ केसों में एक से अधिक अनुष्ठानों का कई बार भी प्रयोग करने पड़ते है।देश काल और नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत और उसका बल ही निर्धारित करता है कि एक प्रयोग ही काफी है या एक से अधिक बार प्रयत्न करना होगा पहले से सभ कुछ निर्धारित नही होता।

यहां मैं आपके लिए एक षष्ठी देवी माता देवसेना का एक प्रमाणिक दे रहा हूं। निष्ठा एवं श्रद्धा से किया गया प्रयोग एक वर्ष में निःसंतान को संतान की प्राप्ति करवाता है।

****।।।पुत्रदायक षष्ठी देवी की साधना।।।*****

साधक अपने मन के केंद्रीकरण के लिए षष्ठी देवी के चित्र को अपने सामने रखे या किसी वटवृक्ष के नीचे किसी शालिग्राम रखकर या दीवार पर कुंकुम की पुत्तलिका बनाकर उसे देवी मान कर उसका उचित विधि से आवाहन करे फिर विधिवत पूजन पूर्ण निष्ठा और भगति के साथ करें।

फिर देवी का आहवान निम्न मंत्र से करे।
           ।।आवाह्न मन्त्र।।
श्वेत चम्पक वर्णभा,रत्न भूषण भूषिताम।
पवित्र रूपा परमां, देव सेना परां भजे।।।

ध्यान करने के बाद देवी के मन्त्र का यथासंभव जाप करें ये बात याद रहे जितना जाप आप पहले दिन कर रहे हैं दूसरे दिन उससे कम नही होना चाहिए।


देवी मूल अष्ठक्षरी मन्त्र   :- "ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा।" 

इस मंत्र के पुरश्चरण की संख्या एक जाप है उसके उपरांत दशांश हवन उसका दशांश तर्पण का दशांश मार्जन और उसका दशांश कुमारी भोजन करवाएं।

और प्रतिदिन निश्चित समय पर संस्कारित रुद्राक्ष की माला से देवी पूजनोउपरांत 11-21-51 बार स्तोत्र का जाप करें।

              ।।।।षष्ठी देवी स्तोत्र।।।
।।नारायण उवाच।।
स्तोत्रं श्रुणु मुनि श्रेष्ठ।सर्व काम शुभवह्यम् ।
वांछा प्रदं च सर्वेषां,        गूढं वेदेशु  नारद।।
नमो दैव्यै महा देव्यै सिद्धये शान्ते नमो नमः।
शुभाये देव सेनाये,   षष्ठये देवयै नमो नमः।।
वरदायै पुत्रदायै ,          धनदायै नमो नमः।
सुखदायै   मोक्ष दायै  षष्ठी देव्यै नमो नमः।।
षष्ठयै षठाँश रूपायै   सिद्धायै च नमो नमः।
मायायै सिद्धयोगिनियै  षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
तारायै शारदायै च,       परा देव्यै नमो नमः।
बालाधिष्ठातृ देव्यै च  षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रतक्षायै स्व भक्तानां,षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
पूज्यायै स्कन्द कांतायै सर्वेषां सर्व कर्मसु।
देव रक्षण कारिणे षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
सिद्ध तत्व स्वरूपयै वन्दितायै नृणां सदा।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
धनँ देहि प्रिया देहि      पुत्र देहि सुरेश्वरि।
मानं देहि जयं देहि द्विषो जाहि महेश्वरी।।
धर्म देहि यशो देहि षष्ठीये देव्यै नमो नमः।
देहि भूमि प्रजा देहि विद्या देहि सु पूजिते।।
कल्याङ्म च जयं देहि,षष्ठीयै देव्यै नमो नमः।
।।फ़लश्रुति।।
इति देवि च संस्तुत्य, लेभे पुत्रं प्रिय व्रत।
यशस्विनं च राजेन्द्र:,षष्ठी देव्या प्रसादतः।।
षष्ठी स्तोत्रमिदं ब्राह्मण यः श्रुनोति तु वत्सरम।
अपुत्रो लभते पुत्रं,वरं सुचिर जीवनम् ।।
वर्षमेकं च यो भक्त्या, सम्पूज्दं श्रुनोति च।
सर्वपापद विनिर्मुक्तो महा वंध्या प्रसूयते।।
वीरं पुत्रं सु गुणींन विद्या वंत यशस्विनम।
सु चिरायुष्य वन्त च सुते देवी प्रसादतः।।
काक वंध्या च या नारी मृत वत्स्या च या भवेत।
वर्ष श्रुत्वा लभेत पुत्रं षष्ठी देवी प्रसादतः।।
रोग युक्ते च बाले च पिता माता श्रुनोति चेत।
मासेन मुच्यते बाल:षष्ठी देव्या प्रसादतः।।

।।इति श्री मद्ददेवीभागवते नारद नारायण संवादे षष्ठी स्तोत्रं।।

श्री छठी देवी की कथा 
श्रीमद् श्रीमद् देवी भागवत पुराण। नवम स्कंध। अध्याय। 46। 
देवऋषि नारद जी ने भगवान नारायण से कहा हे प्रभु भगवती छठी मूल प्रकृति की कला है। मैं इनके अवतार की कथा सुनना चाहता हूं। 
भगवान नारायण ने कहा हे मुनि मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण छठी देवी कहलाती हैं। बालकों की यह अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें विष्णु माया और बाल्दा भी कहा जाता है मातृका ओं में यह देवसेना नाम से प्रसिद्ध है।
इन देवी को स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त है। बालकों को दीर्घायु बनाना और उनका पालन पोषण तथा रक्षण करना इनका स्वभाव है। यह सिद्ध योगिनी देवी अपने योग के प्रभाव से बच्चों के पास सदा विराजमान रहती हैं।
हे ब्राह्मण इनका उत्तम इतिहास सुनो पुत्र प्रदान करने वाला यह उपाख्यान मैंने धर्मदेव से सुना है। प्रियव्रत नाम का एक राजा थे उनके पिता का नाम था स्वयंभू मनु के पुत्र थे अतः विवाह नहीं करना चाहते थे तपस्या में। उनकी विशेष रूचि थी किंतु ब्रह्माजी की आज्ञा से उन्होंने विवाह कर लिया विवाह के बाद बहुत समय तक जब उन्हें संतान नहीं हुई तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेष्ठि यज्ञ करवाया राजा की प्रिय व्रत की पत्नी का नाम मालिनी था यज्ञ के बाद मुनि ने उन्हें यज्ञ का प्रसाद खाने को दिया उसके खाने के बाद रानी मालिनी गर्भवती हुई गर्व को 12 वर्षों तक अपने कोख में धारण करें तब स्वर्ण के समान तेजस्वी एक पुत्र का जन्म हुआ परंतु संपूर्ण से संपन्न कुमार मरा हुआ था उसकी आंखें उलट चुकी थी उसे देखकर सारे अंग प्रत्यंग बहुत सुंदर से मरे हुए पुत्र के अशोक के कारण माता मूर्छित हो गई तब हे मुनि राजा प्रियव्रत उस मरे हुए पुत्र को लेकर के श्मशान में गए और उसे एकांत भूमि में पुत्र को छाती से लगाकर के आंखों से आंसू बहाने लगे उस मरे हुए पुत्र को त्यागे बिना ही राजा स्वयं भी मरने को तैयार हो गए क्योंकि घर पुत्र शोक के कारण उन्हें कुछ ज्ञात नहीं रहा। इसी समय एक दिव्य विमान दिखाई पड़ा स्फटिकमणि के समान चमकता हुआ वह विमान मूल्यवान रत्नों से जुड़ा हुआ था उसी पर विराजमान एक अत्यंत सुंदर देवी के दर्शन राजा प्राप्त किए श्वेत चंपा पुष्प के समान उस देवी के वर्ण उज्जवल था। 
सदाशिव तरुणाई से शोभा पाने वाली देवी मुस्कुरा रही थी उनके मुख पर प्रसन्नता छाई हुई थी रत्न में आभूषणों से उनकी बड़ी शोभा थी ऐसा जान पड़ता था कि वह मानो मूर्ति माई कृपा ही हूं। देवी के समान विराजमान सामने विराजमान देखकर के राजा ने बालक को भूमि पर रख दिया और बड़े भक्ति भाव से। उसका पूजन और स्तुति की है। 
नारद उस समय इस कांड की प्रिय देवी थी अपने तेज से देदीप्यमान थी उनका शांत विग्रह सूर्य के समान चमचमा रहा था उन्हें प्रसन्न देखकर राजा प्रियव्रत ने कहा हे देवी आप कौन हैं? 
भगवती ने काहे राजन में ब्रह्मा की मानस कन्या हूं। जगत पर शासन करने वाली देवी का नाम देवसेना है। मैं संपूर्ण मात्र भगवती मूल प्रकृति के प्रकट होने के कारण विश्व में छठी देवी के नाम से प्रसिद्ध है। मेरे पुत्र पुत्र प्रिय पत्नी तथा कर्मशील पुरुषों में उत्तम फल को प्राप्त करते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से पुरुष अनेक पुत्रों का पिता होता है और कुछ लोग पुत्रहीन भी होते है।किसी को मर हुआ पुत्र पैदा होता है और किसी को दीर्घ जीवी यह सब कर्म का ही फल है।
है मुने इस प्रकार कहकर षष्ठी देवी ने बालक को उठ लिया और अपने प्रभाव से उसे पूर्ण जीवित कर दिया।देवी देवसेना उस बालक को लेकर आकाश में ज्ञे को तैयार हो गयी उन्होंने राजा से कहा तुम स्वयंभू मनु के पुत्र हो त्रि लोक में तुम्हारा शासन चलता है तुम सर्वत्र मेरी पूजा करवाओ और स्वयं भी करो तब मैं तुम्हारे कमल के समान मुख वाला मनोहर पुत्र प्रदान करूंगी उसका नाम सुव्रत होगा उसमे सभी हुन होंगे और विवेक शक्ति होगी वह भगवान नारायण का कलावतार और योग होगा तथा उसे पूर्व जन्म की बातें स्मरण होंगी सभी उसका सम्मान करेंगे त्रि लोक में उसके8 कीर्ति फैलेगी इस प्रकार राजा प्रिय व्रत से कह कर भगवती देवसेना ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया राजा ने भी पूजा करने करवाने की बात स्वीकार कर ली और प्रसन्न मन होकर अपने घर लौट आये।
राजा ने सर्वत्र पुत्रप्राप्ति के लिए मांगलिक कार्य आरंभ कर दिए भगवती षष्ठी की पूजा की तब से प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन भगवती षष्ठी का महायोत्सव मनाया जाने लगा।बलको के प्रसव ग्रह मैं  छठे दिन इक्कीसवें दिन तथा अन्न प्राशन्न के समय पर यत्नपूर्वक षष्ठीदेवी की पूजा होने लगी सर्वत्र इसका प्रचार हो गया।
हे सुव्रत भगवती षष्ठीदेवी देवसेना का ध्यान पूजन स्तोत्र कौथुम शाखा में कहा गया हूं।शालिग्राम की प्रतिमा कलश या वट वृक्ष मूल या दीवार पर पुत्तलिका बनाकर प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने वाली शुद्ध स्वरूपा षष्ठी देवी का ध्यान कर पाद्य, अर्घ, आचमनीय,गंध,पुष्प, धूफ, दीप, नैवेद्य, इत्यादि उपचारों से उनका पूजन करें फिर भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति और प्रणाम करें।

मन्त्र जाप और इसी प्रकार ध्यान पूजा स्तुति कर महाराज प्रिय व्रत ने षष्ठी देवी की कृपा से यशश्वी पुत्र प्राप्त किया हे ब्राह्मण जो भगवतीषष्ठीदेव्यै के स्तोत्र को एक वर्ष तक पढ़ता या सुनाता है वह यदि अपुत्र है तो दीर्घायु एवं सुंदर पुत्र प्राप्त करता है ।अतीव बंध्या भी माता की कृपा से सुंदर संतान को जन्म देती है और बालकों के सभी रोगों का शमन माँ की कृपा से होता है।






गुरुवार, 2 जनवरी 2020

तीसरी आँख को खोलने की साधना।

    
  *।।। तीसरी आँख खोलने का अनुष्ठान ।।।*

○तीसरी आंख को खोलने का एक नायाब और आजमाया हुआ अनुष्ठान में आपको बताने जा रहा हूं साधना के क्षेत्र में यह बहुत ही कीमती अमल है। इसका प्रयोग कभी भी खाली नहीं जाता सादर की अध्यात्मिक शक्ति के आधार पर किसी की तीन, किसी की दस, किसी की पन्द्रह, यह किसी भी कम आध्यात्मिक शक्ति वाले साधक की भी तीसरी आंख ज्यादा से ज्यादा 21 दिन में इससे खुल जाती है।

○आपने इष्ट मंत्र और देवता पर पूरा विश्वास रखें अपने गुरु पर पूरा विश्वास रखें और फिर ही इस प्रयोग को करें इस प्रयोग के लिए गुरु की आज्ञा लेनी परम आवश्यक है बिना गुरु की आज्ञा को आज्ञा से यह करने वाले को गंभीर परिणामों को भुगतना पड़ सकता है उसके लिए हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा।

○अपने गुरुदेव को उचित दक्षिणा देकर संतुष्ट करें फिर ये अनुष्ठान संपन्न करें।

○ यह प्रयोग 21 दिन का है प्रति मध्यरात्रि  2:00 बजे से शुरू करके इस अनुष्ठान को प्रतिरात्रि डेढ़ घंटा किया जाना चाहिए।

○मध्य रात्रि में स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आपको किसी भी सुलभ आसन में बैठ जाना है रीड की हड्डी को सीधा रखते हुए बैठना है मन को शांत करते हुए आंखों को बंद कर लेना है तीसरा नेत्र तब खुलता है जब दोनों नेत्र बंद हो जाते हैं तब तीसरे नेत्र का प्रकाश होता है।

○साफ़ रुई से आपको दो गोलियां (swab)तैयार करनी है जिनमें पिसी हुई काली मिर्च का छिड़काव करना है और हल्का सा पानी मिलाकर जो गोलियां तैयार कर लेनी है दोनों को दोनों कानों में रख लेना है।

○ अब भगवती महामाया का ध्यान करके रुद्राक्ष की  
        माला से आपको ,
       "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॐ ग्लौं हुँ क्लीं जूं सः    
        ज्वालय-ज्वालय, ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं 
        क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं षं फट् स्वाहा"।
        मन्त्र का प्रतिरात्रि 1100 बार जाप करना है।

○ इस मंत्र के लाभ स्वरूप आपको आपके जीवन में घटित होने वाली हर घटना का पहले से ही ज्ञान होना शुरू हो जाता है तथा साधक जिस-जिस वस्तु का चिंतन करता है उसके विषय में सब कुछ जानकारी होने लग जाती है और कोई भी चीज साधक से छिपी नहीं रहती।

○ जाप करते हुए अपने नेत्रों को बंद रखना है और मन को शांत रखकर भगवती के चरणों में समर्पित कर देना है ऐसा करने से आपका तीसरा नेत्र  शीघ्र ही खुल जाएगा और साधक को जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना का और उसके उपाय का पूर्व में ही ज्ञान हो जाएगा।

○साधक के सामने दाएं तरफ दीपक देसी घी का जलता रहना चाहिए साधक के बाई तरफ जल का एक पात्र अवश्य रहना चाहिए।

○साधना करते हुए साधक का समय और स्थान एक ही होना चाहिए तथा उसमें पूरे 21 दिन में कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहिए साधक को संयम से नियम पूर्वक देना चाहिए भूमि पर शयन कम खाना और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।

○इस साधना से प्राप्त हुई शक्ति को अवरोधित कर पाना कठिन है और इससे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह किसी भी पैशाचिक शक्ति से बहुत ही ज्यादा अधिक है। तथा पिशाच इत्यादि सिद्ध कर लेने पर साधक फस जाता है लेकिन इसमें साधक फंसता नहीं है। और साधक को कोई दोष भी नहीं लगता।

○अंत में साधक को नवार्ण मन्त्र से उत्तम औषधियों द्वारा हवन भी करना चाहिए।

○इस साधना से प्राप्त हुई किसी भी शक्ति का प्रकाट्य साधना काल के दौरान नहीं करना चाहिए। और ना ही किसी को बताना चाहिए इसमें साधना काल के दौरान भगवती महामाया आदिशक्ति अलग-अलग रूपों में साधक को दर्शन देती है।

○इस साधना काल में किसी प्रकार के घेरे या सुरक्षा चक्र की आवश्यकता नहीं होती साधना की सफलता के लिए नित्य प्रति दान इत्यादि करना चाहिए।

○ इस साधना काल इस साधना के बाद साधक तीनों कालों का ज्ञाता हो जाता है और भगवती साधक को तीनों कालों का ज्ञान देतीं हैं।

○ देवी संबंधित यह साधना कोई पैसाचिक साधना नहीं है और कोई दोष भी नहीं लगता तो फिर पैसाचिक साधना करने की क्या आवश्यकता है जब देवी के आशीर्वाद से ही आपके सबको काम हो सकते हैं तो कोई भी नीच योनि के देवता की साधना करने की आवश्यकता नहीं है हां शास्त्र मर्यादा के अनुसार आपको देवी या देवता की साधना करने में कुछ समय अवश्य लग सकता है।

○इस साधना में आसन और वस्त्र यदि लाल रंग के हो तो बहुत उत्तम माने जाते हैं।

○इस साधना को करने से पहले सामान्य विधि द्वारा गणेश गुरू और क्षेत्रपाल का पूजन कर लेना चाहिए तथा उनके निमित्त कुछ बली भोग भी दे देना चाहिए।

○यह साधना अब तक गुप्त साधना थी और उत्तम साधकों द्वारा इस साधना को किया गया और इसके परिणाम सकारात्मक निकले कभी भी यह साधना निष्फल नहीं गई इसलिए श्रद्धा और भाव से इस साधना को करने वाले को अभीष्ट की अवश्य ही प्राप्ति होगी।

○ अधिक जानकारी के लिए हमारे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर व्हाट्सएप द्वारा सुबह 11 बजे से दोपहर1 बजे तक संदेश भेजकर संपर्क किया जा सकता है।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...