गणेश-साधना।
श्रीगणेश सभी देवतानों में प्रथम पूज्य हैं। आपके जीवन परिवार कुटुंब परिवार में किसी भी प्रकार की कोई कमी नही होती और जीवन की सभी कमियां दूर होकर समृद्ध जीवन प्राप्त होता है यहां आपको शास्त्रिक साधना दी जा रही है।
श्री गणेश जी का मन्त्र यह है
'ॐ श्रीं ह्रीं क्ली ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनमेवश मानय ठः ठः ।'
साधना विधि - सर्वप्रथम शौच स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत होकर प्राणायाम, सन्ध्यावन्दन यादि की क्रियायें करें। तत्पश्चात् अष्टगन्ध द्वारा भोजपत्र पर गणेश यन्त्र का निर्माण करें।
गणेश यन्त्र का स्वरूप यह है।
अन यन्त्रस्थ केशर में पीठ शक्तियों का पूजन नीचे लिखे अनुसार करना चाहिए ।
'ॐ तीव्रायै नमः ।'
ॐ ज्वालिन्यै नमः ।'
ॐ नन्दाय कमः ।'
'ॐ भोगदाये नमः ।'
'ॐ कामरूपिण्यै नमः ।
'ॐ उग्रायै नमः ।'
ॐ तेजोवत्यैः नमः ।'
'ॐ सत्यायै नमः ।'
ॐ विघ्नाशिन्यै नमः ।'
मध्य में— 'सर्वशक्तिकमलासनाय नमः ।'
दूसरा स्वरूप ये है।
इसके पश्चात् 'ऋष्यादिन्यास' करना चाहिए ।
ऋष्यादिन्यास इस प्रकार करें
'शिरसि गरणक ऋषये नमः ।'
'मुखे निवद्गायत्री च्छन्दसे नमः ।
' हृदिगणपतये देवतायै नमः ।'
इसके पश्चात् कराङ्गन्यास करें ।
करन्यास और अङ्गन्यास निम्नानुसार करना चाहिए।
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लों गं गां प्रङ्गष्ठाभ्यां नमः ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लं यं गीं तज्जंनीम्यां स्वाहा ।'
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं मध्यमाभ्यां वषट्
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं में अनामिकाभ्यां हुम् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं कनिष्ठाभ्यांव्वषट् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौ गं गः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।'
इसी प्रकार हृदयादिये में भी न्यास करना चाहिए। इसके उपरान्त षोडशो पचार क्रम से गणेशजी का पूजन करें।
ध्यान का मन्त्र -
श्री गणेश जी के ध्यान का मन्त्र इस प्रकार है
"एकवन्तं शूर्पकर्णङ्गजवक्त्रञ्च तुर्भुजम् । पाशांकुशधरन्देवम्भोदकाजिव भ्रतङ्करः ॥ रक्तपुष्पमंयामालाकण्ठे हस्ते परांशुभाम् ।
भक्तानांव्वरदं सिद्धि बुद्धिभ्यां सेवितं सदा ।।
सिद्धि बुद्धि प्रदन्नृणान्धर्मार्थकाममोक्षदम् ।
ब्रह्मरुद्र हरीन्द्राद्यैस्मंस्तुतम्परमषिभिः ।।
ध्यानोपरांत क्रमशः आवाहन करें फिर आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, तेल, दुग्ध स्नान, दधि स्नान, घृत-स्नान, मधु-स्नान, शर्करा स्नान, गुड़-स्नान, मधुपर्क शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य, आचमनीय, फल, साचमनीय का उद्धर्त्तनादि, सिन्दूर, ताम्बूल, दक्षिणा माला, दूर्वा, प्रदक्षिणा एवं अरात्र्तिक के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए षोड़सोपचार की पूजन विधि समाप्त करें ।
पुरश्चरण — इस मन्त्र के पुश्चरण में १,२५,००० की संख्या में जप तथा जप का दशांश होम करना चाहिए।
ग्रहण काल में एमन्त्र सिर्फ 110 माला जप ही आपके ली उपयुक्त होगा आपको कुछ ही दिनों में इस का प्रभाव पता चल जाएगा।
उक्त प्रकार से पूजन, आराधन तथा जप करने पर गणेश जी साधक पर प्रसन्न होकर उसे अभिमत प्रदान करते हैं तथा उसके सभी विघ्नों का नाश करते हुए, हर प्रकार से बुद्धिमान, विद्वान एवं ऐश्वर्यशाली बनाते हैं ।
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