बुधवार, 30 नवंबर 2022

कार्य बाधा नाशक टोटका


जीवन में कई बार इस तरह की बाधाओं मनुष्य का पाला पड़ता है जब मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है आप इस टोटके का प्रयोग करें आपको अवश्य लाभ प्राप्त होगा और इसको करने के बाद आपकी समस्या तुरंत गायब हो जाएगी और आपको आराम महसूस होगा।

बुरे समय में संकटों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए ये टोटका बहुत महत्वपूर्ण एवं विशेष शक्तिशाली टोटका है इसे सैंकड़ो बार अलग अलग लोगों को करवाया गया है और बिल्कुल सही साबित हुआ है इस प्रयोग को अगर सही तरह से किया जाय तो 24 घंटे में ही काम हो जाता है।

इस टोटके में प्रयोग होने वाली सामग्री इस प्रकार है :-
7 अरबी या अरिंड के पत्ते।
7 गुड़+आटे+सरसो के तेल के पूड़े। 
थोड़े से पके हुए मीठे चावल।,
7 मदार (आक) के फूल।,
7 गेंदे के फूल।,
7 लाल सबूत मिर्ची डंडी समेत।,
7 लाल चूड़ियां।,
1 रिबन काला।,
1 चार मुँह वाला आटे का दिया सरसों के तेल का।,
11 अगरबत्तियां।
1 कलावा।,
7 लौंग।,
7 ईलायची छोटी।,
7 सुपारियां।
7 पीस मिक्स मिठाई।,
7 कच्चे कोयले के टुकड़े।,
1 काजल की डिब्बी।,
5 ₹ का पीला सिन्दूर।,
1 मुट्ठी सबूत उरद ।

स्थान :-खाली मैदान में कच्चे चावलों का चौंक बना कर या किसी चौराहे पर पूर्वाभिमुख होकर करना है।

समय:-शाम को 7 बजे से रात्रि 11:45 तक करना है।

वार रवि मंगल अथवा शनिवार

सभी सामान को चुपचाप इकट्ठा करना है चुपचाप ही प्रयोग करना है ज्यादा हल्ला गुल्ला नहीं मचाना और ना ही किसी से फालतू कोई बात करनी है चुपचाप जाना है चुपचाप आना है।

((यह सब ले करके चुपचाप चौक पर जाना है और वहां जाकर सभी सामान पत्ते के ऊपर सजा देना है मध्य में दीपक जलाना और अगरबत्तियां लगाना है और सिन्दूर से पूड़ों पर 7 टिक्के लगाना है पूर्वाभिमुख होकर के आपको बोलना है

 "हे मेरे दुर्भाग्य मैं तुम्हें यही छोड़ा जा रहा हूं मेरा पीछा मत करना"

इतना बोल कर के आपको वहां से चल देना है और कितनी भी कोई आवाज आए या ना आए आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना हाथ पाँव धोकर के घर में आ जाना।


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शिव के मंत्र की विस्तृत जानकारी और साधना।

                महेश्वर का पंचाक्षर मंत्र 

(व्याधिमुक्त, दीर्घायु, बाधित धन अभीष्टों की प्राप्ति हेतु)

मंत्र: ॐ नमः शिवाय।

देवाधिदेव महादेव शिवशंकर का पूजन करना चाहिए। 

उपरांकित मंत्र का 24 लाख जप पूरे हो जाने पर भगवान शंकर समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं अतः सर्वविधि षोडशोपचार से मनोयोग, श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था के साथ करने के उपरान्त 24 हजार मंत्रों द्वारा हवन सम्पन्न करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। 

एक बार मंत्र सिद्ध हो जाए, तो सभी अभीष्टों की संसिद्धि अत्यन्त सुगमता से हो जाती है।

इस मंत्र की सिद्धि के विषय में किये जाने वाले पुरश्चरण की व्याख्या करते हुए विशेष निर्देश दिए गए हैं जो अग्रांकित हैं जिसके लिए मंत्र महेश्वर तंत्र का विस्तृत अध्ययन तथा अनुसरण आवश्यक है। यहाँ हम मंत्र महेश्वर की कतिपय चमत्कारी साधनाओं का उल्लेख करना भी उपयुक्त समझते हैं।

अथ वक्ष्ये महेशस्य मंत्रान् सर्वसमृद्धिदान् यैः पूर्वमृषयः प्राप्ताः शिवसायुज्यमञ्जसा ।।1।।

इसके उपरान्त बाद सम्पूर्ण सिद्धियों के देने वाले महेश्वर के मंत्र को कहता हूँ, जिसका अनुष्ठान करके पूर्वकाल में अनेक महर्षियों ने अनायास ही शिव सायुज्य प्राप्त किया। शिवमंत्रः । ऋष्यादिकथनम्

हृदयं वपरं साक्षि लान्तोऽनन्तान्वितो मरुत् । पञ्चाक्षरो मनुः प्रोक्तस्ताराद्योऽयं षडक्षरः ।। 2 ।।

हृदय (नमः), वपर (श), साक्षि (उसे इकार से संयुक्त करें), लान्त (व) अनन्त (उसे आकार से संयुक्त करें), तदनन्तर मरुत् (य)। इस प्रकार 'नमः शिवाय' यह पञ्चाक्षर शिव का मंत्र निष्पन्न हुआ। यदि इस के आदि में प्रणव (ॐ) का योग कर दें तो 'ॐ नमः शिवाय' यह षडक्षर शिव मंत्र निष्पन्न हुआ है।

षडङ्गन्यासः

वामदेवो मुनिश्छन्दः पंक्तिरीशोऽस्य देवता । षड्भिर्वर्णैः षडङ्गानि कुर्यान्मन्त्रस्य देशिकः ।।3।।

इस महामंत्र के वामदेव ऋषि हैं, पंक्ति छन्द है और ईश्वर देवता हैं। साधक इस मंत्र के छः अक्षरों से षडङ्गन्यास करें।

पशमूर्तिन्यासः मन्त्रवर्णादिका न्यस्येत् पञ्चमूर्त्तीर्यथाक्रमम् तर्जनीमध्ययोरन्त्यानामिकांगुष्ठ के पुनः ।।4।।

पुनः इस मंत्र के आदि वर्णों के क्रम से क्रमानुसार पञ्चमूर्तियों द्वारा हाथों की दोनों तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठा, अनामिका तथा अंगुष्ठों में न्यास करें।

ताः स्युस्तत्पुरुषाघोरसद्योवामेशसंज्ञकाः ।
वक्त्रहृत्पदगुह्येषु निजमूर्धनि ताः पुनः ।5।।

ये पञ्चमूर्तियाँ क्रमशः तत्पुरुष- अघोर सद्योजात वामदेव तथा ईशान संज्ञक हैं। चारों अंगुलियों में न्यास का प्रयोग क्रमशः 'शिं तत्पुरुषमूर्त्यै तर्जनीभ्यां नमः', 'वां अघोरमूर्त्यं मध्यामाभ्यां नमः' इत्यादि प्रकार से करें। इसी प्रकार पञ्चाक्षर मंत्र के एक-एक अक्षर से संयुक्त एक-एक मूर्ति का न्यास मुख, हृदय, पाद गुह्य, तथा सिर प्रदेश में करें।

पञ्चसु ।

प्राग्याम्यवारुणोदीच्यमध्यवक्त्रेषु मन्त्राङ्गानि न्यसेत् पश्चाज्जातियुक्तानि षट् क्रमात् ।। 6 ।।

इसके पश्चात् अपने सिरः प्रदेश में पंचवक्त्रत्व की भावना करते हुए पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तथा मध्य इस प्रकार पाँच मुखों में पूर्वोक्त विधि से न्यास करें। पुनः मंत्र के अंग से तत्तदञ्जलि युक्त षडङ्गन्यास करें। यथा 'ॐ हृत् नं शिर' इत्यादि

कुर्वीत          गोलकन्यासं रक्षायै तदनन्तरम् ।
हृदि वक्त्रेऽसयोऽर्वोः कण्ठे नाभौ द्विपार्श्वयोः ।।7।।

पृष्ठे हृदि ततो मूर्ध्नि वदने नेत्रयोर्नसोः । 
दो: पत्सन्धिषु साग्रेषु विन्यसेत्तदनन्तरम् ।।8।।

शिरोवदनहत्कुक्षिसोरुपादद्वये         पुनः।
हृदि वक्त्राम्बुजे टङ्के मृगाभयवरेष्वथ ।।9।।

इस प्रकार तत्त्वन्यास करने के बाद अपनी रक्षा के लिए दशावृत्ति में किए जाने वाले गोल तथा हृदय में द्वितीयावृत्ति, मूध, मुख, दोनों नेत्र तथा दोनों नासिका में तृतीयावृत्तिः इसके चाट न्यास करें। हृदय, मुख, दो कन्धे और दोनों ऊरु में प्रथमावृत्ति, कण्ठ, नाभि दोनों पाश्व बाहु तथा पैरों में चतुर्थावृत्ति; उनकी सन्धियों में पंचम आवृत्ति; अंगुलियों के मध्य सन्धि में षष्ठावृत्ति; उनके अग्रभाग में सप्तम आवृत्ति से न्यास करें।

वक्त्रांसहत्सपादोरुजठरेषु क्रमान् न्यसेत्
मूलमन्त्रस्य षड्वर्णान् यथावद्देशिकोत्तमः । ।10।।

पुनः सिर, मुख, हृदय, कुक्षि, ऊरु तथा दोनों पैरों में अष्टम आवृत्ति, हृदय, मुख, परशु मृग, अभय तथा वर में नवम आवृत्ति; इसके पश्चात् मुख, कन्धा, हृदय, पाद, ऊरु और जठर में दशमावृत्ति के क्रम से न्यास करें। उत्तम आचार्य इस प्रकार मूल मंत्र मे छः अक्षरों के प्रत्येक वर्ष से उक्त स्थानों में दशावृत्ति युक्त न्यास करें।

मूर्ध्नि भालोदरांसेषु हृदये ताः पुनर्न्यसेत्
पश्चादनेन मन्त्रेण कुर्वीत व्यापकं सुधी ।।11।। 
नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गामृतात्मने। चतुर्मूर्त्तिवपुच्छायाभासिताङ्गाय। शम्भवे
 एवं न्यस्तशरीरोऽसौ चिन्तयेत्पार्वतीपतिम् । ।12 ।

पुनः सिर, भाल, उदर दोनों कन्धे तथा हृदय में पंचमूर्तियों के द्वारा पुनः न्यास करें, आगे

कहे जाने वाले मन्त्र से बुद्धिमान् साधक व्यापक न्यास करें। मन्त्र है- 
'नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गात्मने चतुर्मूर्त्तिवपुच्छाया भासिताङ्गाय शभ्भवे'। 

इस मन्त्र से व्यापक न्यास करके पार्वतीपति शंकर का इस रूप में ध्यान करें। दशावृत्तिमयं गोलकन्यासमाह । तदनन्तरं तत्त्वन्यासानन्तरमित्यर्थः ।

तत्त्वन्यासो यथा-

वक्ष्यतेऽथो शैवतत्त्वन्यासः प्रसादतः परम् ।
पचाक्षरी परायेति तत्त्वनामात्मने नमः ।। 
आवृत्त्या शिवपञ्चाक्षर्यर्णयुक्तं पृथक् सह।
द्वितीयादि क्षादिवर्णैरान्तैराद्यं ध्रवादिकैः (कम्) ।। 
शिवः शक्तिः सदापूर्वः शिव ईश्वर एव च ।


शुद्धविद्या च माया च कालश्च नियतिः कला ।। 
स्मृतोपरागः पुरुषः प्रकृतिर्बुद्ध्यहंकृती । 
मन एतान् हृदि न्यस्येत् श्रोत्रादिषु स्थले तथा । वागाद्यप्यथशब्दादि मूर्धास्योरौ गुदे पदे ।। 
आकाशादीन् न्यसेदेषु वक्ष्यमाणं च पञ्चकम् ।
सदाशिवाद्या आकाशाद्याधिपत्यन्तकाः सङेः । शान्त्यतीताकलाद्यन्ता निवृत्त्याद्याः स्वबीजतः । 
न्यसेत् पादादिशीर्षान्त मूर्धादिचरणान्तिके ।। शान्त्यात्मेशानमूर्धा च ङेयुतश्च सदाशिवः । 
सत्यात्मा तत्त्पुरुषवक्त्रो ङेयुतश्च ईश्वरः ।। नादात्माऽघोरहृदयो डेयुतश्च महेश्वरः । 
बिन्द्वात्माऽथो वामदेवगुह्यो विष्णुश्च ङेयुतश्चः । 
बीजात्मा च सद्योजातपादो ब्रह्मा च ङेयुतश्चः । ईशानाद्यानूर्ध्ववक्त्राद्यान् सदाशिवपूर्वकान् ।। ऊर्ध्वादिपञ्चवक्त्रेषु ङेतानक्षरपूर्वकान् इति ।।

पञ्चमुखशिवध्यानम्

ध्यायेत्रित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् । पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वरूपं निलिखभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।

रजत पर्वत के समान जिनके शरीर का वर्ण सर्वथा श्वेत है, जिनके भाल प्रदेश में द्वितीया का चन्द्रमा आभूषण रूप में विभूषित है, जिनका समस्त अंग रत्न के समान उज्ज्वल है, जिनके हाथ में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा हैं, जो सर्वथा प्रसन्न रहने वाले हैं जो श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवता लोग जिनकी चारों ओर से स्तति कर रहे हैं, व्याघ्र चर्म को धारण किए उन विश्व के आदि, विश्वरूप, निखिल भयहर्ता, पंचमुख तथा त्रिनेत्र महेश्वर का ध्यान करना चाहिए।

उच्छ्रितं दक्षिणाङ्गुष्ठं वामाङ्गुलीर्दक्षिणाभिरङ्गुलीभिश्च
वामाङ्गुष्ठेन बन्धयेत्वेष्टयेत् ।लिङ्गमुद्रेयमाख्याता  शिवसात्रिध्यकारिणी ।। इयं सर्वशेवमन्त्रसाधारणीति ज्ञेयम् ।।  पुरश्चरणादिकथनम्

तत्त्वलक्षं जपेन्मन्त्रं दीक्षितः शैववर्त्मना।
तावत्संख्यासहस्राणि जुहुयात् पायसैः शुभैः।
ततः सिद्धो भवेन्मन्त्रः साधकाभीष्टसिद्धिदः।।

शैव मार्ग के अनुसार दीक्षा लेने के पश्चात् इस मंत्र का 24 लाख जप करें। फिर पायस से च हजार होम करें। तब यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को अभीष्ट सिद्धि प्रदान करता है।

देवं सम्पूज्येतपीठे वामादिनवशक्तिके । 
वामा ज्येष्ठा ततो रौद्री काली कलपदादिका ।।
विकारिण्याह्वया   प्रोक्ता बलाद्या विकरिण्यथ।
बलप्रमथनी            पश्चात्सर्वभूतदमन्यथ ।।

आसनमन्त्र

मनोन्मनीति संप्रोक्ताः शैवपीठस्य शक्तयः ।
नमो भगवते पश्चात्सकलादि वदेत् पुनः ।।
गुणात्मशक्तियुक्तायततोऽनन्तायतत्परम्
योगपीठात्मने भूयोनमस्तारादिको मनुः ।।

तत्पश्चात् वामादि नव शक्तियों से युक्त पीठ पर सदाशिव का पूजन करें। 
1. वामा, 
2. ज्येष्ठा, 
3. रौद्री, 
4. कलपदा, 
5. विकरिणी 
6.छबलविकरिणी, 
7. बलप्रमथिनी, 
8. सर्वभूतदमनी और, 
9. मनोन्मयी- ये शैव पीठ की नवशक्तियाँ हैं। 

'ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनन्ताय योगपीठात्मने नमः' यह कहें।
अमुना मनुना दद्यादासनंगिरिजापतेः । 
मूर्ति मूलेन सङ्कल्प्या तत्राऽऽवाह्य यजेच्छिवम् ।।

ऊपर कहे गए मन्त्र से गिरिजापति को आसन प्रदान करें, मूल मन्त्र पढ़कर मूर्ति की कल्पना करें, तदन्तर उसी में शिव का आवाहन कर पूजा करें।

आवरणदेवताध्यानम्-
कर्णिकायां यजेन्मूर्तीरीशमीशानदिग्गतम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशं दिक्षु तत्पुरुषादिकाः ।।
 
पश्वात् ईशान कोण में शुद्ध स्फटिक के समान ईशान मूर्त्ति की पूजा करें। कर्णिका में चारों दिशाओं में तत्पुरुष, अघोर, सद्योजात और वामदेव की मूर्तियों की पूजा करें।

पीताञ्जनश्वेतरक्ताः प्रधानसदृशायुधाः ।
चतुर्वक्त्रसमायुक्ता यथावत् संप्रपूजयेत् ।।

ऊपर ईशान का रूप शुद्ध स्फटिक समान कह दिया गया है। अब शेष चार मूर्तियों के वर्ण कहते हैं ये मूर्तियाँ क्रमशः पीत, अञ्जन, श्वेत तथा रक्त वर्ण की हैं। सभी के आयुध प्रधान के सदृश हैं। सभी चार मुखों से युक्त हैं, उनकी प्रणव से युक्त मन्त्र वर्णों से यथाविधि पूजा करें।

कोणेष्वर्च्याः निवृत्त्याद्यास्तेजोरूपाः कलाः क्रमात् । 
अङ्गानि केसरस्थान विद्येशान् पत्रगान् यजेत् । ।

इसके उपरांत कर्णिकाओं के चारों कोणों में तेजःस्वरूप चार कलाओं की निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या और शान्ति की पूजा करें। ईशान में शान्त्यतीता की पूजा करें। केशरों पर अंगों की तथा पत्रों पर विद्येश्वरों की पूजा करें।

अनन्तं     सूक्ष्मनामानं शिवोत्तममनन्तरम् ।
एक नेत्रमेकरुद्रं  त्रिनेत्रं         तदनन्तरम् ।।
पश्चाच्छ्रीकण्ठनामानं  शिखण्डिनमनन्तरम्
रक्तपीतसितारक्तकृष्ण रक्ताञ्जनासितान्

अनन्त, सूक्ष्म, शिवोत्तम, एकनेत्र, एकरुद्र, त्रिनेत्र, श्रीकण्ठ एवं शिखण्डी ये विद्येशों के नाम हैं। इनका वर्ण क्रमशः रक्त, पीत, सित, रक्त, कृष्ण रक्त, अंजन एवं श्वेत है।

किरीटार्पितबालेन्दून् पद्मस्थिातान् भूषणान्वितान् ।
त्रिनेत्रान्        शूलवज्रास्त्रचापहस्तान् मनोहरान् ।।

इन सभी की किरीट में बालेन्दु विराजमान हैं, सभी पद्म पर आसीन हैं और भूषणों से भूषित एवं त्रिनेत्र हैं। सभी अपने हाथों में शूल, वज्र, बाण और धनुष लिए हुए हैं और समस्त की आकृतियाँ मनोहर हैं।

उत्तरादि यजेत्पश्चादुमां          चण्डेश्वरं पुनः।
ततो        नन्दिमहाकालौ गणेशवृषभौ पुनः ।।
अथ भृङ्गरीटिं स्कन्दमेतान् पद्मासनस्थितान् । स्वर्णतोयारुणश्याममुक्तेन्दुसितपाटलान् ।।। 

इसके उपरान्त उत्तर के क्रम से उमा, चण्डेश्वर नन्दी, महाकाल, गणेश, वृषभ, भृङ्गरीटि और स्कन्द इन आठों विद्येश्वरों की आठों दिशाओं में पूजा करें। ये सभी पद्मासन पर स्थित हैं इनके शरीर के वर्ण सुवर्ण, जल, अरुण, श्याम, मुक्ता, चन्द्रमा श्वेत और पाटल (रक्त) हैं।

इन्द्रादयस्ततः पूज्याः वज्राद्यायुधसंयुताः ।
इत्थं संपूजयेद्देवं सहस्रं नित्यशो जपेत् ।।

तत्पश्चात् वज्रादि आयुधों से संयुक्त इन्द्रादि इस दिग्पाला की पूजा करें। इस प्रकार आवरण सहित देवाधिदेव की पूजा करें और नित्य प्रति इच्छित उक्त मन्त्र का जप करें। 

सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नुयाद्वाञ्छितां श्रियम् ।
द्विसहस्रं     जपेद्रोगान् मुच्यते नात्र संशयः ।।

फलश्रुति-

ऐसा करने से सुधी साधक सभी पापों से मुक्त हो जाता है, इच्छित श्री प्राप्त करता है। 

यदि उपरोक्त विधि से पूजा कर दो सहस्र नित्य जप करे तो साधक रोगमुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।

त्रिसहस्रं     जपेन्मन्त्रं दीर्घमायुरवाप्नुयात् ।
सहस्रवृद्ध्या प्रजपन् सर्वान् कामानवाप्नुयात् ।।
आज्यान्वितैस्तिलैः शुद्धैर्जुहुयाल्लक्षमादरात् ।
उत्पातजनितान् क्लेशान्नाशयेन्त्राऽत्र संशयः ।
शतलक्षं जपेत्साक्षाच्छिवो भवति मानवः   ।।

यदि तीन सहस्र नित्य जप करे तो दीर्घ आयु प्राप्त करता है। चार सहस्र जप करे तो सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध कर लेता है। यदि इस मन्त्र से घृत मिश्रित शुद्ध तिलों द्वारा भक्तिपूर्वक एक लाख जप करे तो साधक दिव्य भौम अन्तरिक्षजन्य उत्पातों को विनष्ट कर देता है, इसमें संशय नहीं है। यदि इस मन्त्र का एक करोड़ जप करें तो वह मनुष्य साक्षात् शिव हो जाता है।

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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

बगलामुखी मन्त्र साधना।

 बगुलामुखी मन्त्र से करें शत्रुओं का नाश।
आज का समय भौतिक वाद का समय है और इस में अपने सुख संसाधनों का दिखावा करने वाले अधिक है उसी कारण से आज के युग में लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि दूसरे की सफलता से दुखी हैं। 

ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए दसमहाविद्याओ में प्रमुख माता बगलामुखी  महाविद्या देवी मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। आज इन्हीं माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। 

ये देवी अपने भगतों के अशुभ समय का निवारण कर नई चेतनता का संचार करती हैं। ऐसी माता के बारे में मैं आपको माता बगलामुखी की प्रसन्नता के लिए इनकी मन्त्र साधना बता रहा हूं। 

मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मैं माता बगलामुखी की जो साधना आपसे बताने जा रहा हूं अगर आप उसका तनिक भी अनुसरण करते हैं तो माता आप पर कृपा जरूर करेंगी।

लेकिन पाठक भाइयों ध्यान रहे। 
इनकी साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और विश्वास असीम हो तभी मां की कृपा दृष्टि आप पर पड़ेगी। इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। 

सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्ट भी पहुंचा सकता है। 

माता की यही आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में निश्चित सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रु स्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। 

साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी, लेकिन ध्यान रहे इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।

गृहस्थ भाइयों के लिये मैं माता की साधना का सरल उपाय बता रहा हूं। आप इसे करके शीघ्र फल प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी देवी-देवता का अनुष्ठान (साधना) आरम्भ करने बैठे तो सर्वप्रथम शुभ मुर्हूत, शुभ दिन, शुभ स्थान, स्वच्छ वस्त्र, नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शांत चित्त, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। 

याद रहे अगर आप अति निर्धन हो तो केवल पीले पुष्प, पीले वस्त्र, हल्दी की 108 दाने की माला और दीप जलाकर माता की प्रतिमा, यंत्र आदि रखकर शुद्ध आसन कम्बल, कुशा या मृगचर्य जो भी हो उस पर बैठकर माता की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। 

माता बगलामुखी की आराधना के लिये जब सामग्री आदि इकट्ठा करके शुद्ध आसन पर बैठें उत्तराभिमुख और दो बातों का ध्यान रखें, पहला तो यह कि सिद्धासन या पद्मासन हो, जप करते समय पैर के तलुओं और गुह्य स्थानों को न छुएं शरीर गला और सिर सम स्थित होना चाहिए। 

इसके पश्चात गंगाजल से छिड़काव कर (स्वयं पर) यह मंत्र पढें- 

अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपिवा, य: स्मरेत, पुण्डरी काक्षं स बाह्य अभ्यांतर: शुचि:। 

उसके बाद इस मंत्र से दाहिने हाथ से आचमन करें-
ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:। अन्त में ऊं हृषीकेशाय नम: कहके हाथ धो लेना चाहिये। 

इसके बाद गायत्री मंत्र पढ़ते हुए तीन बार प्राणायाम करें। फिर अपनी चोटी बांधे और तिलक लगायें। 

अब पूजा दीप प्रज्जवलित करें। फिर विघ्नविनाशक गणपति का ध्यान करें।

 याद रहे ध्यान अथवा मंत्र सम्बंधित देवी-देवता का टेलीफोन नंबर है। जैसे अलग अलग व्यक्ति का फोन नम्बर होता है वैसे ही हर शक्ति का आह्वान करने के लिए ध्यान मन्त्र होता है। जैसे ही आप मंत्र का उच्चारण करेंगे, उस देवी-देवता के पास आपकी पुकार तुरंत पहुंच जायेगी। इसलिये मंत्र शुद्ध पढऩा चाहिये। मंत्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा। इसीलिए उच्चारण पर विशेष ध्यान रखें। 


अब आप गणेश जी के बाद सभी देवी-देवादि कुल, वास्तु, नवग्रह और ईष्ट देवी-देवतादि को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए कष्ट का निवारण कर शत्रुओं का संहार करने वाली बगलामुखी का विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें-

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि: त्रिष्टुप्छन्द: बगलामुखी देवता, ह्लींबीजम् स्वाहा शक्ति: ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: 

(अब जल भूमि पर नीचे गिरा दें)। 

अब माता का ध्यान करें, याद रहे सारी पूजा में हल्दी और पीला पुष्प अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
ध्यान-
मध्ये सुधाब्धि मणि मण्डप रत्न वेद्यां,
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं,
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥

अपने हाथ में पीले पुष्प लेकर उपरोक्त ध्यान का शुद्ध उच्चारण करते हुए माता का ध्यान करें। 

उसके बाद यह मंत्र जाप करें। साधक ध्यान दें, अगर पूजा मैं ज्यादा विस्तार से बताऊंगा तो आप भ्रमित हो सकते हैं। परंतु श्रद्धा-विश्वास से इतना ही करेंगे जितना कहा जा रहा है तो भी उतना ही लाभ मिलेगा। 

जैसे विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने से जो फल मिलता है वही ऊं नमोऽभगवते वासुदेवाय से, यहां मैं इसलिये इसका जिक्र कर रहा हूं ताकि आपके मन में कोई संशय न रहे। राम कहना भी उतना ही फल देगा। अत: थोड़े मंत्रो के दिये जाने से कोई संशय न करें। अब जिसका आपको इंतजार था उन माता बगलामुखी के मंत्र को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।

 मंत्र है :-

ॐ ह्लीं बगलामुखि! सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा। 

इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माता से करें। 

यदि आप चाहें तो इसी मंत्र से माता की षोड्शोपचार विधि से पूजा भी कर सकते हैं। 

आपको कम से कम पांच बातें पूजा में अवश्य ध्यान रखनी है-
1. ब्रह्मचर्य, 
2. शुद्घ और स्वच्छ आसन 
3. गणेश नमस्कार और घी का दीपक 
4. ध्यान और शुद्ध मंत्र का उच्चारण 
5. पीले वस्त्र पहनना और पीली हल्दी की माला से जाप करना। 

आप कहेंगे मैं बार-बार यही सावधानी बता रहा हूं। 
तो मैं कहूंगा इससे गलती करोगे तो माता शायद ही क्षमा करें। इसलिये जो आपके वश में है, उसमें आप फेल न हों। बाकी का काम मां पर छोड़ दें। इतनी सी बातें आपकी कामयाबी के लिये काफी हैं।

अधिकारियों को वश में करने अथवा शत्रुओं द्वारा अपने पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए यह अनुष्ठान पर्याप्त है। 

तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती हैै और दरिद्रता दूर भागती है। 

गूगल और तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। 

अगर वशीकरण करना हो तो उत्तर की ओर मुख करके और धन प्राप्ति के लिए पश्चिम की ओर मुख करके हवन करना चाहिए। 

अनुभूत प्रयोग कुछ इस प्रकार है। 

मधु, शहद, चीनी, दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने से समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। 

गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रु तबाह हो जाते हैं। 

भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर सवा लाख जाप फिर दशांश हवन करें तो सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। 

मधु घी, शक्कर और नमक से हवन आकर्षण (वशीकरण) के लिए प्रयोग कर सकते हैं। 

इसके अतिरिक्त भी बड़े प्रयोग हैं किन्तु इसका कहीं गलत प्रयोग न कर दिया जाए जो समाज के लिए हितकारी न हो इसलिये देना उचित नहीं है। 

अत: आप अपने स्वयं के कल्याण के लिए माता की आराधना कर लाभ उठा सकते हैं। 

यहां पर मैनें आपको पूजा की संक्षिप्त विधि इसलिये दी गई है कि सामान्य प्राणी भी माता की आराधना कर लाभान्वित हो सकें। यह गृहस्थ भाइयों के लिए भी पर्याप्त है।

मेरी शुभकामनाएं आपका कल्याण हो।


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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

नगर खेड़े का मंत्र और उसका सिद्धि प्रयोग

 

नगर खेड़े का मंत्र और उसका सिद्धि प्रयोग

सभी साधक और साधकों को प्रणाम और सभी विद्वान जनों को भी प्रणाम यह प्रयोग नगर खेड़े का प्रयोग है जोकि ग्राम देवता भोमिया और डीह बाबा के नाम से प्रसिद्ध है।

यह देवता एक जागृत और प्राचीन देवता है इसका संबंध भैरव से भी है क्षेत्रपाल भैरव भी इसी की एक संज्ञा है।

इसे सिद्ध कर लेने के पश्चात साधक को भूत प्रेत इत्यादि का किसी तरह का भय नहीं रहता साधक स्वयं सिद्ध पुरुष बन जाता है

और उसकी मनोवांछित इच्छा को बाबा पूरा करते हैं यह स्वयं शिव का रूप है रूद्र का अवतार है रूद्र का गाना है उसी का प्रतिरूप है और वैसे ही शक्ति एवं वैसी ही भोली फितरत के मालिक हैं भगत को मुंह मांगा विश्ड प्रदान करते हैं तथा किसी तरह की कोई कमी नहीं आती नगर खेड़े को उत्तर प्रदेश में डी बोला जाता है और पंजाब में नगर खेड़ा हरियाणा और राजस्थान में भोमिया और दक्षिण भारत में से ग्राम देवता बोला जाता है कुछ क्षेत्रों में इसे ग्रामदेवता बोला जाता है यह एक ऐसी शक्ति है कि जिसकी इजाजत के बिना उस क्षेत्र में कोई भी दूसरी शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती चाहे वह कितनी भी बड़ी हो तांत्रिकों की सिद्धियों का शुरुआत यही से होता है और जितनी भी भूत विद्या का संचालन है वह इसी देवता के दिन हुआ करता है अगर कोई तांत्रिक है इनकी सेवा या सिद्धि नहीं करता तो उसे पूर्ण तांत्रिक नहीं माना जाता आज मैं आपको इनका एक अलग मंत्र दे रहा हूं जिससे आसानी से आप इसे सिद्ध कर लेंगे आपको करना क्या है दो नए सफेद रंग के कुर्ते पजामे और पढ़ना से लाना है और लगाना है आपने वह वस्त्र तभी पहने हैं खड़े पर जाना है जाप करने के लिए सुबह आपने 3:04 बजे उठना है उसके उपरांत आप को कच्चा दूध और उसमें ढेर सारा पानी मिला देना उसको आपने ले जाना है नगर खेड़े को स्नान कराना है नमस्कार कर के अंदर घोषणा है स्नान कराने के उपरांत आपने वहां पर धूप दीप जो भी आप कर सकते हो वह करना है उसके बाद आप को नमस्कार करके वापस अपने पूजा स्थल पर घर पर आ जाना है वह कमरा पूर्णतया एकांत का हो और उसमें कोई आता-जाता ना हो पूरा साफ-सुथरा कमरा होना चाहिए आसन पूर्व की तरफ लगा के r11 अगरबत्ती जो सामने लोंग इलाइची पान लड्डू और दिया धूप ऐसा होना चाहिए खिलाड़ी के नाम का आपने एक जल पात्र भी रखना है वहां पर और सिद्धि के लिए संकल्प करके वहां कल स्थापित करें और नगर खेड़ा बाबा से अपनी साधना कर रहे हैं उसके लिए इजाजत ले ले उससे पहले आप अपने घर के देवता को मना ले फिर आपने संडे को स्नान करवाने के बाद जब घर आना है तो बैठकर के डेढ़ से 2 घंटे जाप करना है उनका आपको तीसरे ही दिन रूहानी अनुभव होने शुरू हो जाएंगे एवं चमत्कार भरे आश्चर्य होंगे इस दौरान आपने कोई भी अश्लील साहित्य ना पढ़ना है ना देखना है कुछ ऐसा पूर्णतया ब्रह्मचर्य भूमि से रखना है ना तो बोतल बोलना है आपने और ना ही किसी से झगड़ा लड़ाई झूठ क्लेश करना है आपने सिर्फ नगर खेड़ा भगवान के चरणों में ध्यान रखना अब मैं उनका मंत्र आपको बता रहा हूं यह

मंत्र इस प्रकार है

बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम बाईस सौ ख्वाजा तेईस सौ पीर रामचंद्र चलावे तीर हाजिर हो जा मेरे नगर खेड़ा पीर मेरी आन मेरे गुरु की आन ईश्वर गोरा महादेव पार्वती की दहाई गुरु गोरखनाथ की आन चले आदेश आदेश आदेश

यह ग्रामीण भाषा का बहुत अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है और मुझे 3 साल तक विनती कर वह करके किसी महापुरुष से यह मैं हासिल कर सका और बहुत ही कठिन परिश्रम से यह मंत्र मेरे को मिला आज भी यह मंत्र मेरे पास पूरी तरह काम करता है जो कोई इसे जमाना चाहे आजमा के देख सकता है हां जब भी आपने यह सेवा शुरू करनी है नगर खेड़े महाराज की तो बीच में नागा नहीं डालना भूमि पर सोना है अपने विचारों को शुद्ध रखना है और शाम को ख्वाजा पीर की हाजिरी सभा मुट्ठी कच्चे चावल शक्कर घी और नो लोंगर 11 लोंग डालकर चलते पानी में जल प्रवाह करने हैं इसमें बहुत राह के सपने आते हैं अगर हम ख्वाजा पीर की हाजिरी नहीं डालते तो रात्रि को सपन दोष होने का डर रहता है किसी भी गर्म वस्तु का प्रयोग ना करें मांस मछली शराब अंडा और नशे इत्यादि सब वर्जित है किसी भी चीज का प्रयोग ना करें वरना अगर स्वपन दोष हो गया तो उसे ठीक नहीं माना जाता हालांकि स्वपनदोष से डर कर कभी भी आदमी को पाठ पूजा नहीं छोड़ना चाहिए और लगातार उसको करना चाहिए तभी जाकर के सादा को सिद्धि मिलती है कोई भाइयों को इनको इसको दो तीन बार करना पड़ता है तब जाकर इसकी सिद्धि मिलती है।

मेरा शुभ आशीर्वाद आपका कल्याण हो 🙌

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बंधी हुई दुकान खोलने का मंत्र।

            बंधी हुई दुकान खोलने का मन्त्र।

अगर आप की कोई दुकानदारी है और आप बहुत समय से किसी स्थान पर दुकानदारी कर रहे हैं और अब आपको लगता है कि द्वेषवश किसी व्यक्ति ने आपकी दुकान को बांध दिया है और आपका व्यापार ठंडा हो गया है या ठप्प पड़ गया है आपको मानसिक और आर्थिक रूप से परेशानी आ रही है जिस के कारण आपका दूभर हो गया है तो आपको बताता हूं एक ऐसा मंत्र और उसके चलाने की विधि जो आपके जीवन को सुखी कर देगी और आप दूसरों का भी भला कर सकेंगे।

सभसे पहले ये समझ लें कि किसी व्यापार को तांत्रिक ओझा गुनिया कैसे बांधते हैं।

किसी व्यापार को ठप करने के लिए तांत्रिक मुख्य रूप से तकरीबन इसी ढंग से करते है ।

○दुकान की दहलीज को बांधना।
○दुकान के मापने वाले यंत्रो की बांधना।
○दुकानदार का उच्चाटन कर देना।
○दुकान चलाने वाले व्यक्ति विशेष को बांधना।
○दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र भवानी बांधना।
○ व्यापार स्थल पर किसी ओपरी शक्ति का होना।
○कोई नकारात्मक बाधा ग्रसित व्यक्ति कार्यस्थल पर होना।

ये श्राप युक्त ऊर्जा होती है जिसका माध्यम कोई भी हो सकता है crual intention का खेल है सारा।

अपनी ऊर्जा को बांधने वाला व्यक्ति किसी न किसी माध्यम से ही fix करेगा जब तक उस नकारात्मक ऊर्जा वो स्रोत उस दुकान,मकान,फैक्ट्री,शो रूम में रहेगा उक्त व्यापार बाधित ही रहेगा।

उस समय उस नकारात्मक ऊर्जा के स्रोत को पहचान कर उसे हटाने की आवश्यकता होती है जब तक वो माध्यम उस स्थली पर रहेगा अपनी नकारात्मकता प्रसारित करता रहेगा।

दुकान की दहलीज की बांधना।

ध्यान दीजिए अगर आपके कार्य स्थल पर किसी व्यक्ति ने कोई ऐसी तरल चीज़ गिरा दी है  और आप उसे साफ भी कर दोगे तो उसका प्रभाव नही जाएगा और मैंने अपने अनुभव में ये देखा है कि जिस व्यक्ति ने उस समान को हटाया वो किसी ना किसी बीमारी से ग्रसित हो गए मैं निजी रूप से ऐसे 10 15 लोगों को जनता हूं जिनको बाद ठीक होने के लिए खुद का इलाज करवाना पड़ा।

अगर कोई तरल या गंदी वस्तु आपको अपने आंगन प्रांगण  दर दहलीज पर मिले तो खुद साहस दिखाने की कोशिश नही करनी चाहिए आपको किसी जानकार व्यक्ति से परामर्श और मदद लेनी चाहिए।

सूदूर स्थान से भी मन्त्र द्वारा किसी भी व्यक्ति स्थान कार्य और क्रिया को प्रभावित किया जा सकता है।

तांत्रिक अगर दुकान की बंधेगा तो सभसे पहले दहलीज पर अभिमंत्रित करने के उपरांत कोई भी वस्तु फेंकेगा उस क्रिया के कुछ समय में ही दुकान बंद हो जाएगी ग्राहक आपको और आपकी दुकान को बिना देखे ही किसी दूसरी दुकान पर चला जायेगा।

मेरा कहने का अभिप्राय है कि उन ग्राहकों का मानसिक रूप से उच्चाटन हो जाएगा और आपके पास आने तो दूर आपकी दुकान की शक्ल नही देखेगा। चाहे आपकी दुकान में दूसरे दुकानदार के मुकाबले कितनी भी अच्छी वस्तुएं हो 
फिर भी ग्राहक आपके पास नही आएगा।


दुकान के मापने वाले यंत्रो की बांधना।
यदि किसी दुकान के तोलने वाले मापने वाले यंत्रो को बांध दिया जाता है तो वो नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आ जाते हैं और जब उक्त दुकानदार उन यंत्रो का प्रयोग करेगा उसको उन यन्त्रो से भयंकर अरुचि होगी और तो वो सुन्न हो जाएगा उसका दिमाग काम नही करेगा माप अप्रमाणित होगा और धीरे धीरे व्यापारी को बहुत बड़ा घाटा पड़ जाता है।

दुकानदार का उच्चाटन कर देना।

जब किसी तांत्रिक का किसी कार्य स्थल या दहलीज अथवा उसके यन्त्रो को प्रभावित कर पाना संभव नहीं होता तो सीधे दुकानदार का उच्चाटन कर दिया जाता है उसके द्वारा प्रयोग की हुई उसकी किसी वस्तु को प्रभावित करके वापिस प्रयोग हेतु रख दिया जाता है उदहारण के लिए आपकी कोई वस्तु कुछ समय के लिए गायब करवा दिया गया और कुछ दिनों में वो चीज़ आपको फिर वापिस मिल गयी आपने उसे प्रयोग कर लिया धीरे धीरे आप को वो ऊर्जा आपना शिकार बना लेगी और आप का उच्चाटन अर्थात एक बार यदि आपका मुखमोड हो गया तो आप "नीरो बन जाओगे, रोम जलेगा और आप बासुरी बजाते रहोगे"।
बाकी फिर आदमी को बर्बाद हो चुकने के बाद खुद ही समझ आ जाता है।

दुकान चलाने वाले व्यक्ति विशेष को बांधना।

दुकानदार या दुकान चलाने वाले मुख्य व्यक्ति जो की गद्दी पर बैठता है उसके और उसके देवता पित्र को नकारात्मक मन्त्रो द्वारा बांधा जा सकता है और ये बहुत ताकतवर होता है इसे खोलने में कोई गारेंटी नही होती और धन समय बर्बाद होते है।

व्यक्ति विशेष के पहने हुए कपड़े कंघा जूते चप्पल उसके पांव की मिट्टी सिर के बाल उसका इस्तेमाल किया हुआ दांत साफ करने वाला ब्रश या कोई भी ऐसी वस्तु जो उसके शरीर से स्पर्श हुई हो उस वस्तु को नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित कर दिया जाता है 

फिर उसे आपने कार्य के लिए नकारात्मक ऊर्जा का माध्यम बना लिया जाता है जब तक वह वस्तु उक्त व्यक्ति के पास रहती है उस व्यक्ति के ऊपर से बंधन नहीं हटता और इससे उसके व्यापार उसके धन समय और भविष्य की बर्बादी होती है।

दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र को बांधना।

ऊपर के सभी प्रयोगों से ज्यादा खतरनाक यह प्रयोग होता है क्योंकि यह प्रयोग विशेषज्ञ तांत्रिक जो कि अपने कार्य को करने में दक्ष होते हैं ऐसे व्यवहारिक कारीगर ही ऐसे काम को किया करते हैं वो अपनी क्रियाओं और मन्त्र तन्त्र द्वारा दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र को बंधन में डाल देते है और उस बंधन को उनके बराबर तक ताकत और समझ रखने वाला कारीगर ही तोड़ सकता है।

दुकान पर किसी ओपरी शक्ति का होना

शुरू से ही मनुष्य की महत्वाकांक्षा बहुत अधिक रही है जिसके चलते हुए बहुत सारी संपत्तियों के विवाद और झगड़े चलते रहते हैं और बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो नाजायज तरीके से किसी धार्मिक स्थल श्मशान कब्र मंदिर समाधि को तोड़ कर वहां कार्य स्थल बना देते हैं उसके ऊपर से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कभी नहीं हटता।

ऐसे में पीड़ित के पास दो ही रास्ते बचते हैं सबसे पहले कि वह अपनी कार्यस्थल वहां से हटा ले और दूसरा रास्ता यही होता है कि वह उस स्थान की उस शक्ति के लिए कुछ ना कुछ offring चढ़ावा चढ़ाता रहे या उसकी पूजा करता रहे। लेकिन यह तभी संभव हो पाता है जब कोई भगत अपनी जुबानवांचा उस शक्ति के ऊपर लगा दे और उसे ऐसा करने के लिए मेरा कहने का तात्पर्य यह है भोग लेने के लिए वचनबद्ध करें।

कोई नकारात्मक बाधा ग्रसित व्यक्ति कार्यस्थल पर होना।
कई बार ऐसा भी हो जाता है कि कोई बहुत तीव्र नकारात्मक बाधा से प्रभावित व्यक्ति आपकी कार्यशैली पर आकर लगातार आपके पास बैठता हो और वह नकारात्मकशक्ति आपके कार्य के ऊपर मनहूसियत डालती हो।

इन सब का इलाज निदान उपचार

जैसा कि मैंने उपरोक्त उल्लेख किया है कि बहुत सारे कारण होते हैं किसी कार्य स्थली के बंधन होने पर किसी व्यापार के ठप होने के लिए बहुत सारे घटक उत्तरदाई होते हैं सिर्फ कोई एक कारण नहीं होता कई बार एक से अधिक कारण भी हो सकते हैं। 

यदि बाजार में सब कुछ सामान्य है यानि अगर मार्कीट में कस्ट्मर का फ्लो है और मार्कीट सामान्य रूप से चल रही है। यदि आप आपने कामकाज को चलाने के लिए प्रयास भी कर रहे हो और आपके लाख प्रयास करने के बाद आपका व्यापार धंधा ठप्प है तो उक्त बातें विचारणीय है।

ये उक्त बातें तब व्यर्थ है यदि:-
आप आलसी हैं और समय पर अपनी कार्यस्थली को नहीं खोलते।
यदि वर्तमान के व्यापार की तरफ ध्यान ना देकर आपका का मन किसी और conscept की तरफ केंद्रित हैं।
यदि ग्राहकों के बेचने के लिए पर्याप्त सामान नहीं है।
यदि आपके पास outdated  समान है।
यदि आपका व्यवहार रूखा है।
यदि आप अपने ग्राहक को मांगी गई चीज देने बजाए खुद की मर्ज़ी चलते हो।
आप की चीज़ों की गुणवत्ता और माप परिमाप कम है।

यह कुछ ऐसी सामान्य व्यवहारिक बातें हैं यदि इसका ध्यान रखा जाए तो आपका व्यापार ठप्प नहीं होगा क्योंकि हर जगह दो ऊपरी बाधा नहीं होती बहुत सारे लोग अपने व्यवहारिक कमियों के चलते अपने व्यापार का बेड़ा गर्क कर देते हैं और उसका दोष वह दूसरों को देते हैं।

अब मैं आपको ऐसा साबर मंत्र बताने जा रहा हूं जिसके ऊपर सभी पुराने तांत्रिक लोग आंख बंद करके भरोसा करते हैं मंत्र के क्रिया के प्रभाव द्वारा बांधी गई दुकान झटके से खुल जाती है और वापस ग्राहक आने चालू हो जाते हैं ऊपर लेख में दिए गए अनुसार कारणों को अपनी बुद्धि के अनुसार खोजने की कोशिश करें तो आपको पूरी बात समझ में आ जाएगी।

एक पुराना साबर मंत्र है जोकि बहुत सारे वर्षों से यह इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके प्रयोग किए जाने के बाद दुकान के ऊपर कैसा भी बंधन लगा हो वह खुल जाता है इसको सिद्ध करने की विधि यह है की होली दीपावली पर इस मंत्र की 108 माला यानी कि 10800 जाप करके सिद्ध कर लें इसको चंद्र या सूर्य ग्रहण में भी सिद्ध किया जा सकता है उसके बाद यह मंत्र पूर्ण प्रभावी हो जाएगा बहुत सारे लोग इसे सिद्ध मंत्र बोलते हैं लेकिन व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो एक सच बात यह भी है किसी मंत्र के साथ आप की आत्मिक शक्ति की ट्यूनिंग करनी होती है जब आप किसी मंत्र का लगातार जाप करते हैं अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध कर लेते हैं तो वह मंत्र क्रिया करते ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है और पहली बार में ही आपके अभीष्ट को सिद्ध कर देता है उसके लिए बहुत प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती सिर्फ एक बार किसी ग्रहण कालिया पर्व पर आप इसे सिद्ध करें तब इसका प्रभाव देखें आप खुद का और पूरे समाज का भला कर सकते हैं

मंत्र इस प्रकार 

ॐ नमो आदेश गुरु को
भंवर वीर तू चेला मेरा।
खोल दुकान कहा कर मेरा।।
उठे जो डंडी बिके जो माल।
भवंर वीर सोखेकर जाए।।
शब्द सांचा पिंड काचा।
चलो मन्त्र ईश्वरो वांचा।।

इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद शनिवार की रात्रि को 108 बार एक मुट्ठी साबुत उड़द ले और उसे इस मंत्र से अभिमंत्रित करने आपके सामने धूप दीप जलता रहना चाहिए हो सके तो गूगल की धूनी चला कर रखें जब यह उर्द अभिमंत्रित हो जाए तो शनिवार को शाम को दुकान बंद करने से ठीक पहले जब आपने दुकान के किवाड़ और शटर को बंद करना होता है तो यह उड़दी अपने इष्ट देव का ध्यान करके अपनी दुकान के अंदर बिखेर दें और चुपचाप अपने घर चले जाए। 

दूसरे दिन यानी रविवार को प्रातः काल सामान्य से जल्दी उठकर अपनी दुकान पर जाएं और सबसे पहले वह उर्दी इकट्ठी करें झाड़ू लगाकर जितनी भी उर्दी करती हो वह सभी उर्दी इकट्ठे कर ले और इस इकट्ठी की गई उर्दी को किसी काले कपड़े के टुकड़े में डाललें और उसमें एक नींबू एक लोहे का कील रखें कपड़े की को गांठ मार दे और सुबह सुबह जल्दी किसी चौराहे पर जाकर इसे फेंक दे अगर आपके पास कोई चौराहा ना हो तो आप उक्त पोटली को चुपचाप किसी निर्जन स्थान पर भी फेंक सकते हैं और बिना मुड़े चुपचाप अपनी दुकान पर वापस आ जाए ये सभी काम करते हुए आपको कोई टोक ना दे इस बात का ध्यान रखें।

ऊपर मैंने आपको दुकान जोकि मंत्र और क्रिया द्वारा बांधी गई हो उसको खोलने की पूरी विधि बता दी है। 

आप सभी को इस लेख आर्टिकल वीडियो द्वारा इस प्रयोग को करने की अनुमति है हां इस प्रयोग सफल होंगे और उसके के सफल होने पर आप हनुमान जी को सवा किलो लड्डू का भोग जरूर लगवाएं।

जैसा कि मैंने ऊपर के लेख में आपको बताया कि ऐसे बहुत सारे कारण हो जाते हैं जो आपके व्यापार के बंद होने की दुकान के बंद होने के लिए उत्तरदाई होते हैं और यदि आप उन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपका व्यापार कभी बंद नहीं होगा और आपके बच्चों का भरण पोषण लगातार होता रहे।
आप का कल्याण हो बहुत-बहुत आशीर्वाद।

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गुरुवार, 3 नवंबर 2022

श्री गणेश सिद्धि।

गणेश-साधना।


श्रीगणेश सभी देवतानों में प्रथम पूज्य हैं। आपके जीवन परिवार कुटुंब परिवार में किसी भी प्रकार की कोई कमी नही होती और जीवन की सभी कमियां दूर होकर समृद्ध जीवन प्राप्त होता है यहां आपको शास्त्रिक साधना दी जा रही है।

श्री गणेश जी का मन्त्र यह है 
'ॐ श्रीं ह्रीं क्ली ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनमेवश मानय ठः ठः ।' 

साधना विधि - सर्वप्रथम शौच स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत होकर प्राणायाम, सन्ध्यावन्दन यादि की क्रियायें करें। तत्पश्चात् अष्टगन्ध द्वारा भोजपत्र पर गणेश यन्त्र का निर्माण करें। 
             गणेश यन्त्र का स्वरूप यह है।
अन यन्त्रस्थ केशर में पीठ शक्तियों का पूजन नीचे लिखे अनुसार करना चाहिए ।
'ॐ तीव्रायै नमः ।'
ॐ ज्वालिन्यै नमः ।'
ॐ नन्दाय कमः ।'
'ॐ भोगदाये नमः ।'
'ॐ कामरूपिण्यै नमः ।
'ॐ उग्रायै नमः ।'
ॐ तेजोवत्यैः नमः ।'
'ॐ सत्यायै नमः ।'
ॐ विघ्नाशिन्यै नमः ।' 
मध्य में— 'सर्वशक्तिकमलासनाय नमः ।'

                     दूसरा स्वरूप ये है।
इसके पश्चात् 'ऋष्यादिन्यास' करना चाहिए ।  

ऋष्यादिन्यास इस प्रकार करें
'शिरसि गरणक ऋषये नमः ।' 
'मुखे निवद्गायत्री च्छन्दसे नमः ।
' हृदिगणपतये देवतायै नमः ।'

इसके पश्चात् कराङ्गन्यास करें ।
करन्यास और अङ्गन्यास निम्नानुसार करना चाहिए।
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लों गं गां प्रङ्गष्ठाभ्यां नमः ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लं यं गीं तज्जंनीम्यां स्वाहा ।'
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं मध्यमाभ्यां वषट्
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं में अनामिकाभ्यां हुम् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं कनिष्ठाभ्यांव्वषट् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौ गं गः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।' 

इसी प्रकार हृदयादिये में भी न्यास करना चाहिए। इसके उपरान्त षोडशो पचार क्रम से गणेशजी का पूजन करें।
ध्यान का मन्त्र - 

श्री गणेश जी के ध्यान का मन्त्र इस प्रकार है

"एकवन्तं शूर्पकर्णङ्गजवक्त्रञ्च तुर्भुजम् । पाशांकुशधरन्देवम्भोदकाजिव भ्रतङ्करः ॥ रक्तपुष्पमंयामालाकण्ठे हस्ते परांशुभाम् । 
भक्तानांव्वरदं सिद्धि बुद्धिभ्यां सेवितं सदा ।। 
सिद्धि बुद्धि प्रदन्नृणान्धर्मार्थकाममोक्षदम् । 
ब्रह्मरुद्र हरीन्द्राद्यैस्मंस्तुतम्परमषिभिः ।।

ध्यानोपरांत क्रमशः आवाहन करें फिर आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, तेल, दुग्ध स्नान, दधि स्नान, घृत-स्नान, मधु-स्नान, शर्करा स्नान, गुड़-स्नान, मधुपर्क शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य, आचमनीय, फल, साचमनीय का उद्धर्त्तनादि, सिन्दूर, ताम्बूल, दक्षिणा माला, दूर्वा, प्रदक्षिणा एवं अरात्र्तिक के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए षोड़सोपचार की पूजन विधि समाप्त करें ।

पुरश्चरण — इस मन्त्र के पुश्चरण में १,२५,००० की संख्या में जप तथा जप का दशांश होम करना चाहिए।
ग्रहण काल में एमन्त्र सिर्फ 110 माला जप ही आपके ली उपयुक्त होगा आपको कुछ ही दिनों में इस का प्रभाव पता चल जाएगा।

उक्त प्रकार से पूजन, आराधन तथा जप करने पर गणेश जी साधक पर प्रसन्न होकर उसे अभिमत प्रदान करते हैं तथा उसके सभी विघ्नों का नाश करते हुए, हर प्रकार से बुद्धिमान, विद्वान एवं ऐश्वर्यशाली बनाते हैं ।


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श्यामा काली सिद्धि

श्यामा काली साधना।

भगवती 'श्यामा अर्थात् काली के अनेक स्वरूप तथा अनेक नाम हैं । यह पर हम श्यामा काली की साधना का उल्लेख कर रहे हैं। भगवती श्यामा का साधना मूल मन्त्र यह है

"हूं हूं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं

स्वाहा साधन विधि - सर्वप्रथम भोजपत्र पर अष्टगन्ध से भगवती श्यामा के यन्त्र का निर्माण करें। भगवती श्यामा के पूजन यन्त्र के भेद हैं यहाँ पर आपको एक यन्त्र चित्र में दिया जा रहा है
उक्त भिन्न प्रणाली के पूजन-यन्त्र को नीचे प्रदर्शित किया जा रहा है।

यन्त्र - लेखन से पूर्व स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत हो लेना आवश्यक है । 

प्रात: कृत्यादि के पश्चात् सर्वप्रथम 'श्रीं' इस मन्त्र से तीन बार आचमनीय जल का पान करके “ॐ काल्यै नमः' तथा 'ॐ कपालन्यैि नमः' । 
इन मन्त्रों का उच्चारण करते हुए दोनों होठों का दो बार मार्जन करना चाहिए। 

तत्पश्चात् 'ॐ कुल्वायै नमः' इस मन्त्र से हम प्रक्षालन करें। 
फिर ॐ कुरु कुरु कुल्वाये नमः' - इस मन्त्र से मुख का 
ॐ विरोधिन्यं नमः - इस मन्त्र से दक्षिण नासिका का 
'ॐ विप्रचित्रायै नमः" - इस मन्त्र से वाम-नासिका का 
ॐ उग्राय नमः - इस मन्त्र से दायें नेत्र का, 
'ॐ उग्रप्रभायै नमः'- हम मन्त्र से बायें नेत्र का, 
ॐ दीप्तायै नमः - इस मन्त्र से दायें कान का, 
'ॐ नीलायै नमः' -इस मन्त्र से बायें कान का, 
ॐ धनाय नमः' – इस मन्त्र से नाभिका का, 
ॐबलाकायै नमः' - इस मन्त्र से छाती का, 
ॐ मात्राय नम:' इस मन्त्र से मस्तक का,
 ‘ॐ मुद्रियं नमः - इस मन्त्र से दायें कन्धे का, 
तथा 'ॐ नित्यायै नमः ' - इस मन्त्र से बायें कन्धे का स्पर्श करना चाहिए।"

उक्त प्रकार से आचमन करने के उपरांत सामान्य पूजा पद्धति के नियमानुसार भूत-शुद्धि तक सब कार्य करके मायबीज – 'ह्रीं' इस मन्त्र से यथाविधि प्राणायाम करें। तत्पश्चात् ऋष्यादि न्यास करें। फिर कराङ्गन्यास, वर्णन्यास, पोढान्यास, तत्त्वन्यास तथा बाजन्यास करके भगवती श्यामा का ध्यान करना चाहिए ।
ध्यान का स्वरूप - काली तन्त्र में भगवती श्यामा के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है।

"करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् । कालिका दक्षिणां दिव्यां सुण्डमाला विभूषिताम् ।। सदाश्छिन्न शिरः खङ्ग वामाधोऽर्ध्व करांषुजाम् । श्रभयं वरदं चैव दक्षिणाधोर्ध्व पारिणाम् ॥ महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् । कण्ठावसक्त मुण्डलीं गलद्दृधिर चचिताम् ॥ करवंत सतानीत युग्मभयान काम् । घोरदंष्ट्रा करालास्यां पीनोन्नतपयोधराम् ॥ शवानां कर संघातः कृत काञ्चीं हसन्मुखीम् । सृक्कद्वय गलाद्रक्त धाराविस्फुरिताननाम् ॥ घोर रावां महारौद्री श्मशानालयवासिनीम् । बालार्क मण्डलाकार लोचन त्रितयारिवताम् ॥वन्तुरांदक्षिण शवरूप महादेव
व्यापि मुक्तालम्बिक चोच्चयाम् ।हृदयोपरि सस्थिताम् ॥शिवाभिर्घोरिरावाभिश्चतु दिक्षसमन्विताम् ।महाकालेन च •
शुभविपरीतरतातुराम् ॥सुखप्रसन्नवदनांस्मेराननसरोरुहाम्
एवं संचिन्तयेत्काल सर्वकाम समृद्धिबाम् ॥” '

स्वतन्त्र तन्त्र' में देवी के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है
" श्रञ्जन्नाद्विनिभां देवी करालवदनां शिवाम् |
मुण्डमालावलीकीरणी मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ॥
महाकालहृदम्भोजस्थितां पीनपयोधराम् ।
विपरीतरतासक्तां घोर दंष्ट्रांशिवः सह ॥ 
नागयज्ञपवीताढयया चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।
सर्वलङ्कार संयुक्तां मुण्डमाला विभूषितम् ॥
तहस्त सहस्रस्तु बद्धकाञ्चीं दिगंशुकाम् ॥
शिवाकोटि सहस्रं स्तु योगिनीभिविराजिताम् ।
रक्तपूर्ण मुखाभोजां मद्यपान प्रमत्तिकाम् ।
विर्क शशिनेत्रां च रक्तविस्फुरिताननाम् ॥
विगतासु किशोराभ्यांकृत कर्णवतंसिनोम् |
कर्णावसक्तमुण्डाली गलद्र घिर चत्रिताम् ॥
श्मशान वह्निमध्यस्यां ब्रह्म केशव वन्दिताम् । 
सद्यः कृत शिरः खङ्गवराभीतिकराम्बुजाम् ॥

पूर्वोक्त प्रकार से ध्यान करने के पश्चात् अर्ध्य स्थापित करना चाहिए । अयं स्थापनोपरांत पीठ-पूजा तथा प्रावरण- पूजा करके भैरव पूजन करे। भैरव पूजन का ध्यान निम्नानुसार है
भैरव पूजन के बाद देवी भस्म पूजन करके विसर्जन करना चाहिए। 'स्वतन्त्र तन्त्र' में लिखा है कि मुद्रा, तर्पणादि द्वारा देवी की पूजा, यन्त्र जप तथा नमस्कार करके अपने हृदय में देवों को विसर्जित करना चाहिए।

जिस समय किसी कार्य की सिद्धि के लिए जप किया जाय, उस समय मुंह में कपूर रख कर, कपूरमुक्त जिहवा से जप करना चाहिए। फिर देवी की स्तुति करके प्रदक्षिणा सहित साष्टाङ्ग प्रणाम करें तथा 'जन्गमङ्गल कवच का पाठ करें। ‘जगन्मङ्गल - कवच' 'स्तोत्र ग्रन्थों' में देख लें । 'जगन्मङ्गल कवच' का पाठ करने के बाद देवी के भङ्ग में समस्त आवरण देवताओं को विलीन करके सहार मुद्रा द्वारा 'काल्यै क्षमस्व:' यह कहकर विसर्जन करना चाहिए।

'काली तन्त्र' में इस मन्त्र के पुरश्चरण में २००००० की संख्या में जप करने का निर्देश किया गया है । उसमें कहा गया है कि साधक पवित्र तथा हविष्याशी होकर १००००० की संख्या में, दिन में जप करे तथा रात्रि के समय मुँह में ताम्बूल रखकर तथा शय्या पर बैठकर इतनी ही संख्या में जप करे । जप के बाद दशांश घृत-होम करना चाहिए। 'नील सारस्वत' के मता होम के बाद तर्पण तथा अभिषेक भी करना चाहिए ।
रात्रिजप का विशेष नियम यह है कि रात्रि के दूसरे प्रहर से तीसरे प्रहर तक मन्त्र का जप करना चाहिए। परन्तु रात्रि के शेष प्रहर में जप नहीं करना चाहिए।
उक्त प्रकार से पुरश्चरण करने से भगवती श्यामा देवी साधक पर प्रसन्नहोकर उसे अभीप्सित फल देती हैं।

श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...