गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

अस्तबली पीर की साधना।

   ****।।अस्तबली पीर बाबा की साधना का मंत्र ।।****
यह बाबा अस्तबली पीर की कलाम है जो कि सिर्फ उस्ताद अपने पक्के शागिर्दों को ही देते हैं और यह कलाम बहुत चमत्कारी है
○ये साधना है 41 दिन की और उस 41 दिन में आपने ग्यारह माला पीर जी के नाम की इस मंत्र की प्रतिदिन करनी है ।
○किसी महीने की शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार ये साधना शुरू करनी चाहिए।
○ब्रह्मचर्य का पूर्णतयः पालन करें।
○साधना काल में भूमि पर सोना चाहिए
○एक चद्दर हरे रंग की और 501₹ मुर्गे के साधना शुरू होने से पहले आपको पीर बाबा के लिए ऊंची और साफ जगह पर रखनी पड़ेगी। फिर साधना के सफल होने के बाद आपको वो बाबा जी के धाम जाकर चढ़ाना है।
○प्रतिदिन अन्य भोग के साथ ही मीठे चावल बनाकर आपको पीर बाबा को चढ़ाने होंगे।
○चढ़े हुए भोग को प्रतिदिन बदलना है चढ़े हुए भोग को जल प्रवाहित कर देना है।
○पश्चिम की ओर आपका मुंह रहेगा । आपमे सामने एक लकड़ी का पटरा रख कर उस पर स्वामीटर हरे रंग का कपड़ा बिछा देना है। उस दो सरसों के तेल के दीये जलाने है।
○आसन सफेद रंग का वस्त्र भी आपके सफेद ही होंगे
○कमरा साफ सुथरा और एकांत होगा।
○अगरबत्ती फूल सामने रखने हैं अगरबत्ती चलानी है और किसी पात्र में कुछ कोयले जल कर लोबान को सुरगा लेना है।
○प्रतिदिन रात्रि साढ़े दस बजे के समय ग्यारह माला मन्त्र का जाप काले हक़ीक़ की माला से करना है ।
○भोग में जोड़ा सिगरेट,जोड़ा पान मीठा, सात लौंग,सात इलायची, सेट,जोड़ा सफेद बर्फी ,ग्यारह बतासे,पांच बूंदी के लड्डू, जोड़ा मौली (कलावा) ये सभकुछ प्रतिदिन रखना है।
○इसमें बाबा की झलक आपको हफ्ते में ही दिखने लगेगी कई बार पीरजी सामने तो आते हैं कई बार सपने में भी आपकी बातचीत होने लगती है।
○इस साधना में आपको हिसार या घेरे की जरूरत पड़ेगी जो लगाकर आपको लगा करके बैठना है।
○आप अपने गुरुजी से या हमसे संपर्क करके हम से प्राप्त कर सकते हो और
○आप के जितने फंसे हुए काम है इस साधना में होते चले जाएंगे जैसे-जैसे आप साधना करोगे आपको वैसे वैसे अनुभव होंगे
○डायरी में लिख कर के रखने का कोई लाभ नहीं होता अतः इस मंत्र को डायरी में लिख कर ना रखें जिसमें दम हो वह यह साधना करके देखें उसे अवश्य लाभ होगा
○जब आपका कोई भी काम फस जाए आप पीर बाबा के मीठे चावल बना कर पांच बतासे पाँच लड्डू और जोड़ा बर्फी एक सिगरेट पांच अगरबत्ती एक सेंट सात गुलाब के फूल देसी घी की होम अस्तबली पीर के निमित्त दें और उनसे प्रार्थना करें तो कुछ दिनों में ही अवश्य आपकी प्रार्थना कबूल होगी।आपकी अर्जी सवीकार होगी इसकी साधना धैर्य वाले व्यक्ति ही कर सकते हैं ।
○ इस साधना को सोच-समझकर करें बीच में छोड़ने वाले को भारी हानि हो सकती है इसलिए इस साधना को एक बार अगर शुरू कर लिया तो बीच में नहीं छोड़ना।
○ बिना गुरु आज्ञा के या बिना उस्ताद की अनुमति के इस साधना को करने वाला लाभ के स्थान पर हानि ही उठाएगा।
○ इस साधना में प्रयोग होने वाला कड़ा या हिसार पात्रता के अनुसार ही दिया जाएगा।
○ कई बार इसमें पीर बाबा सट्टे के नंबर देते हैं साधक को लेकिन उसे प्राप्त हुए धन को जनकल्याण में लगा दीजिएगा।
○ इस साधना को संपन्न करने वाले साधक को धन दौलत की कमी नहीं रहती भूत प्रेत का भय सदा के लिए समाप्त हो जाता है विघ्न बाधा नहीं रहती कोर्ट कचहरी के केस लंबित पड़े हुए वह समाप्त हो जाते हैं साधक समाज में प्रतिष्ठित हो जाता है और यश प्रतिष्ठा को पाता है। इस साधना में केवल गुरु कृपा और मन के स्थिरीकरण की आवश्यकता होती है। तभी साधक कुछ प्राप्त कर पाता है।
○ मन्त्र:-बिस्मिल्लाह रहमानरहीम।
      अस्तबली पीरों का पीर , मुश्किल पड़ी होजा मददगीर।लोहे का कोट तांबे का कड़ा घोड़े की पीठ हाज़िर खड़ा।सिर पे पगड़ी हत्थ तसबी। चार कुंठ की खबर बतावे।पाँच बावरी संग लियावे। ऊपरी पराई की मार भगाए।ना आवे पीर तो ख्वाज़ा ख़िज़्र की आन,मौला अली की।आन मेरे गुरु की आन मदद मेरे पीर की हाज़िर शु हाज़िर।चले मन्त्र फुरो वांचा देखूं अस्तबली पीर तेरी हाज़िरी का तमाशा।

○ अधिक जानकारी के लिए आप हमारे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर व्हाट्सएप द्वारा संदेश भेजकर संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

अस्तबली बाबा के मंत्र से झाड़ा

***।।अस्तबली बाबा के मंत्र से झाड़ा।।***
बिस्मिल्लाहरहमान रहीम
अस्तबली पीर तू पीरों का पीर
भूत को बांध।
प्रेत को बांध।
जिन्न को बांध।
डायन को बांध।
खबीस को बांध।
मरी को बांध
परी को बांध।
चुड़ैल को बांध
जादू टोना बांध।
किया कराया बांध।
नजर को बांध ।
जंतर बांध
मंत्र बांध
तंत्र बांध
माया को बांध।
छल और छाया को बांध।
मरघट को बांध।
मसान को बांध ।
ब्रह्मराक्षस को बांध।
भैंसासुर को बांध।
ओपरी पराई को बांध ।
चोटी पकड़ पताल भेजो ।
उस पर ठोको ताला।
अपनी गद्दी का बाबा अस्तबली पीर रखवाला।
चले मन्त्र फुरो वांचा देखूं अस्तबली पीर तेरी कलाम का तमाशा।

अगर आप की गद्दी पर कोई भूत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति आये तो इस मंत्र को  31 बार पढ़कर झाड़ा लगा दे तो वह ऊपरी बाधा दूर हो जाएगी।
और रोगी स्वस्थ हो जाएगा यह झाड़ा लगातार तीन दिन लगाएं और फिर एक काले धागे के ऊपर तीन बार मंत्र पढ़कर एक गांठ लगाएं ऐसे ग्यारह गांठों वाला एक तागा तैयार करें ।
उसे लोबान की धूनी देकर यदि भूत प्रेत ग्रस्त या ऊपरी बाधा वाले किसी भी व्यक्ति को पहनाया जाए तो वह भला चंगा हो जाता है यह मंत्र हमारा प्रयोगिक मंत्र है और हम इसे काम में लाते हैं और इस मंत्र से हमने कभी भी खता नहीं खाई इस मंत्र ने कभी धोखा नहीं दिया ।
जब भी कभी दीपावली दशहरा या होली है इस मंत्र को पांच माला जप के लोबान की धूनी देना आपने और मंत्र का जाप करना है तो यह मंत्र आपका चलता रहेगा और पूरी तरह काम करता रहेगा आप इसका लाभ कभी भी कहीं भी उठा सकोगे लेकिन इसमें एक ध्यान ध्यान देने वाली बात यह है कि आप जब भी गद्दी पर बैठे तो स्नान करके शुद्ध होकर  ही गद्दी पर जाएं सबसे पहले आप ज्योत बत्ती करें फिर भी कोई कार्य आरंभ करें जिनकी गद्दी के मुख्य इष्ट देवता अस्तबली पीर हैं वह लोग इस से बहुत अधिक लाभ उठा सकते हैं ।
सिर्फ एक बात ध्यान में रखिएगा जिसका भी आप काम करो तो उसके काम होने के बाद बाबा को ₹11 के बताशे और बाबा का भोग दिलवाना ना भूलें ऐसा होने पर साधकों को अलग-अलग तरह की दिक्कतें आएंगी।मैं अपने अनुभवों के आधार पर ये साधना और मन्त्र आपको दे रहा हूँ। आशा करता हूं आप इससे लाभ उठाएंगे अधिक जानकारी के लिए कृपया मेरे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर संदेश भेज कर संपर्क कर सकते हैं।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

।।आकाश कामिनी की सिद्धि।।

।।आकाश कामिनी की सिद्धि।।
आकाश कामिनी आकाश मोहिनी आकाश भवानी इस नाम को आप साधकों ने शायद कम ही सुना होगा।आपके ज्ञान के लिए बतादूँ ये देवी वर्ग की शक्ति है बहुत ही ज्यादा खतरनाक और शक्तिशाली देवी है ये इनकी साधना बहुत ही गुप्त ये देवी आकाश में ही वास करती है और इसका भोग भी आकाश में ही देना होता है। मेरे साधनाकाल के लंबे अनुभव में मुझे इस देवी नही मील किस्मत से उत्तरप्रदेश के रहने वाले एक सज्जन पुरुष के माध्यम से उनके एक ओझा मित्र से मुलाकात करने का अवसर मिला तो पता चला कि उनको माता आकाश भवानी का आशीर्वाद प्राप्त है और माता उनके द्वारा हर प्रार्थना को कुछ ही समय में पूरा कर देतीं है।तो मेरे मन में उन साधकों के विषय में विचार आया जिनके पास आकाश कामिनी का मंत्र नही है उनमें से कुछ सज्जनो की इष्ट या कुलदेवी ही आकाश कामिनी है मेरे पास एक मंत्र माता का पड़ा हुआ था उससे मैंने पांच सात बार काम भी लिया लेकिन अधिक नही।
विधि और मन्त्र पहले वाली वीडियो में नही था लेकिन अपनी कमी को सुधारते हुए मैं आपको एक मंत्र और उसकी विधि इस वीडियो में डाल रहा हु दीवाली से 11 दिन पहले ही इसका जाप शुरू कर दें इस देवी का रूप अद्भुत मनोहारी है लेकिन इनकी शक्ति बहुत भयंकर  इस मंत्र की पांच माला रोज़ाना जाप रुद्राक्ष की माला से करना है और इसका भोग बहुत ही अद्भुत तरीके से दिया जाता है पहले बांस की तीन खपच्चियों या लकड़ी से एक तिपाये का निर्माण किया जाता है फिर उस तिपाये पर एक मिट्टी का कोसा टिकाया जाता है उसमें गाय के गोबर की आग जलाकर (हवन सामग्री+पांच मेवा+शक्कर मिलाकर) हवन 108 आहुति इसी मन्त्र से देना होता है आकाश कामिनी माता का दीपक भी उपरोक्तानुसार ही जलाया जाता है और
पक्की धार पहले डीह देवता फिर काली माई को और फिर आकाश कामिनी माई को दी जाती है यहां एक चीज़ स्पष्ट कर देता हूं कि धार क्या होती है दुर्गा सप्तसती में देवी के निमित होम बलि और अर्घ इन तीन चीज़ों का विशेष महत्व है।अर्घ को देवी के प्रति उसी प्रकार से समर्पित किया जाता है जिस प्रकार सूर्यनारायण को अर्घ दिया जाता है। उस अर्घ को ही धार या ढ़रकोणा क्षेत्रीय भाषा में बोला जाता है फिर ये अर्घ भी दो प्रकार का होता है।
1.कच्ची धार ।
2.पक्की धार।
कच्ची धार :-एक लोटे में साफ जल में कुछ गंगा जल मिलाकर सबूत कच्चे चावल,गुड़ या शक्कर,2,5,7 या 9 लौंग,दो फूल अड़हुल के या गुड़हल के ना मिले को गुलाब या कनेर भी चलेगा। इसको आपने कार्य के निमित देवता के नाम पर अर्पित करने सी अद्भुत एक ताबड़तोड़ फल की प्राप्ति होती है।
पक्की धार:-देवता के निमित्त विशेष फल की प्राप्ति के लिए
पांच मेवा को जौकुट करके कच्ची हल्दी की जौकुट करके एक लोटा बढ़िया साफ तरीके से माँज कर गंगाजल मिश्रित जल से भरना है फिर पांच मेवा और हल्दी थोडासा सिन्दूर,गुड़ शक्कर या चीनी,अक्षत 2, 5, 7 या 9 लौंग और अंत में जोड़ा अड़हुल अथवा गुड़हल के फूल डाल कर अर्घ देवता के प्रति समर्पित करना है अगर रोगी है तो रोगी के सिर के ऊपर से उतारकर देवता को सच्चे मन से याद करते हुवे समर्पित करना है। यह तो था धार देने का तरीका अब इस मंत्र के बारे में बात करते हैं जोकि अकाश कामनी माता की साधना का मंत्र है इस साधना को करने वाले साधक के ऊपर माता आकाश कामनी की कृपा होती है अगर किसी साधक की कुलदेवी या इष्ट देवी आकाश कामनी माता है तो उसके ऊपर विशेष कृपा होती है देवी की और सभी कार्यों को माता निर्विघ्न संपन्न करती है अपने कार्य के निमित्त जब साधक माता को याचना करेगा तो उसके कार्यों की पूर्ति होगी यह एक अद्भुत गुप्त और असाधारण साधना है।
यह आकाश कामनी माता का गुप्त मंत्र है और शक्तिशाली मंत्र है इतना शक्तिशाली कि इसको 108 बार करने से ही इसकी शक्ति का पता चलने लग जाता है यह मुझे अकाश कामिनी माता के एक साधक से मिला है जोकि उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं और उनके पास अकाश कामिनी माता साक्षात रहती हैं और उनके सभी कार्यों को पूरा करते हैं आकाश कामनी माता की यह लक्षण होते हैं कि जब इन का आवाहन किया जाता है। इस साधना के कुछ नियम में आपसे बता रहा हूं उन नियमों को ध्यान में रखते हुए दिवाली से 11 दिन पूर्व से यह साधना शुरू की जानी चाहिए आर माता का भोग बांस की खपचीयों द्वारा बनाए गए त्रिपाई के ऊपर टिकाए हुए मिट्टी के कोसे में आग जलाकर ही देनी चाहिए।
उसी प्रकार वैसे ही टिपाई पर्कोसा रखकर उसने देसी घी का दीपक माताजी के निमित्त आपको देना है।
लोंग इलायची सुपारी जायफल कपूर नींबू जो कुछ भी आपको माता को भेंट चढ़ा नहीं है वह उसने तिपाई पर ही दी जाएगी।
5 माला प्रतिदिन जाप के बाद 108 आहुति इस मंत्र से देकर पूजा सम्पन्न करें।
पीला रंग का आसन वस्त्र ।
पूर्व की ओर मुख ।
रुद्राक्ष की माला।
ब्रह्मचर्य का व्रत धारण करना क्योंकि इस साधना में साधक खुद ही द्रवित होता है उससे बचने के लिए माता के चरणों का ध्यान करें।
और माता के चरणों में ध्यान रखना।
आपको सिद्धि दिलवाएगा ।
जब तक यह साधना करें इस साधना के विषय में किसी को भी कुछ ना बताएं ।
सिर्फ गुरु आज्ञा से ही यह साधना करें।
इसकी देवी रुष्ट होने पर साधक के प्राण तक ले लेती है। इसलिए बिना गुरु की आज्ञा के या बिना गुरु के अनुमति के इस साधना को ना करें।
प्रतिदिन पहले डीह, फिर काली माई ,फिर आकाश कामनी, के निमित्त आपको प्रतिदिन सुबह-शाम अर्घ देना है।

**।।आकाश कामिनी का मंत्र।।**
ॐ नमो कंस के हाथ से छूट भवानी।।जा आकाश विराजे,
दसों दिशा को बांध भवानी।।नमो आकाश कामिनी,
अष्टभुजी तेरा स्वरूप ।।सरर से आये सट्ट से जाये,
देश-विदेश की खबर बताये।भगत जनों के काज बनाये
ना आये माता तो सातों डाली शीलता की आन,
माता बिंध्याचलवासिनी माता काली की आन,
लोना चमारी की विद्या फुरै छू। कनक कामिनी फूलों का हार,आकाश कामिनी करे शिंगार। तन मोहे मन मोह मोहे सारा देश,सात जात की विद्या मोहे। सभ जन को ना मोहे आकाश कामिनी तो दुहाई माता काली की चौसठ योगिनीयों की आन,लोना चमारी की विद्या फुरै छू।
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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

प्रेतत्व से मुक्ति

                      प्रेतत्व से मुक्ति।
अगर आपका कोई अपना प्रेत योनि को हुआ है तो इस लेख को पूरा पढ़े।
मेरा ये दावा है कि अगर आप मेरे इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे तो आपको अपनी समस्या का समाधान अवश्य मिलेगा।
पितृपक्ष के बहुत दिन बीत चुके है लेकिन ये लेख आपके बहुत काम आएगा।
किसी भी जीव के पूर्व कर्म ही उसकी वर्तमान दशा का निर्धारिकर्ण करते हैं।पूर्व के संचित कर्म से मनुष्य अपनी वर्तमान दशा को भोगता है ये बात तो स्पष्ट है।
पूरे जीवन में जो लोग धर्म और राम को कोसते है लेकिन कभी वो अपने मनसा वांचा कर्म गत कार्यों को अनदेखा करते रहते हैं और जिस राम को वे लोग जीवित रहते हुए कोसते है अन्तोगत्वा वही श्री राम का नाम उनके लिए इस संसार रूपी सागर से पार करने का साधन बनता है मनुष्य इतना कृतघ्न है कि अपने अहम के सामने अपने अंत को भी भूल जाता है।
  (मुख्य दो कारणों के कारण ही जीव प्राप्त होता है)
1.जब किसी जीव का कोई संकल्प अधूरा या इच्छा अधूरी  रह जाए।
2.जिस आदमी का अंतिम संस्कार अधूरी विधि से हो या ना हो तो वो भी प्रेतयोनि को प्राप्त करता है।
धर्म की दृष्टि से अगर देखा जयें तो ये एक कटुसत्य है एक आधुनिकीकरण से मनुष्यों को जितना लाभ प्राप्त हुआ है तो उतना ही संस्कृति का विनाश भी हुआ है आज का दौर ऐसा है कि आज तो आदमी को बिजली के यंत्र में जलाया जाने लगा है पर्यावरण की दृष्टि से ये एक अच्छी बात हो सकती है लेकिन अगर शास्त्र मर्यादा की बात की जायें तो
कपालक्रिया ना होने के कारण मृतक का प्रेतयोनि में जाना लगभग तय होता है और ये जो अंतिम संस्कार की विधि है वह किसी भी तरीके से पूरी नहीं मानी जा सकती आप फिर प्रेत बनना तो शत प्रतिशत तय हो जाता है।
कुछ महीनों पहले मुझे आसाम जाने का मौका मिला अंतिम संस्कार क्रिया का भयानक रूप  देखने को मिला यहां रात्रि में भी चिता जला दी जाती है आधी रात को भी ये सभ कुछ मैन अपनी आँखों से देखा कोई मर्यादा नही जो व्यक्ति एक परिवार का एक अभिन्न हिस्सा था आज परिवार जन उसको बिना शास्त्रिक मर्यादा के एक नदी के किनारे आधे जले हुए शव को लाठियों से पीट पीट कर उसकी जली हुई राख को झाड़ रहे थे उसे 2 से 3 बार ऐसे ही लाठी मार मार कर झाड़ा गया अंत में तेज पानी के प्रेशर से नदी में प्रवाहित कर दिया गया  अब जिस मृतक की क्रिया ही गलत हुई वो कैसे प्रेत योनि से मुक्त होगा ।
यह जीव तब तक इस संसार में प्रेतयोनि धारण करके अपने परिवार और घर में ही विचरण करते रहते हैं और परिवार को नाना प्रकार से पीड़ित करते रहते हैं जब तक इनकी आयु पूरी नहीं होती क्योंकि गरुड़ पुराण के मत अनुसार कलयुग में मनुष्य का जीवन काल 120 वर्ष का है लेकिन आजकल के जीवन शैली के अनुरूप मनुष्य का जीवन मात्र 50-60 सालों तक ही सिमट गया है बड़ी विडंबना की बात है तो आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार यह प्रेत तत्व को मृतक जीव प्राप्त होता है
और किस प्रकार से इस का निदान संभव है । और इस विषय के ऊपर विस्तृत जानकारी दी जाएगी अंत में आपको इसके निराकरण और कुछ उपाय भी बताए जाएंगे कि किस प्रकार  प्रेतत्व से जीव को निवृत्त कराया जा सकता है
*(प्रेत पीड़ा के कारण ये समस्याएं होने लगती हैं)***
1.जब स्त्रियों का ऋतुकाल निष्फ़ल हो जाता है.
2.कितनी भी दवा इलाज से वंश की वृद्धि नहीं होती,
3.अल्पायु में किसी परिजन की अकास्मिक मृत्यु हो जाती है.
4.अच्छे भले में विचित्र सी कोई मानसिक या शारिरिक परेशानी महसूस होने लगे तो उसे प्रेत पीडा मानना चाहिए.
5.पीड़ित की अचानक ही आजीविका छिन जाती है,
6.पीड़ित व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है.
7.एकाएक घर में आग लग जाए,बार बार घर में सांप निकलने लगे।
8.घर में नित्य प्रति कलह रहने लगे,
9.बहुत समय से जमा-जमाया व्यापार एकदम नष्ट हो जाय,
10.हर तरफ़ से हानि हो,
11.अच्छी वर्षा होने पर भी कृषि नष्ट हो जाय,या झाड़ खत्म हो जयें फसल में रोग हो जाए।
12.स्त्री अनुकूल न रहे कलेशी हो या बिना किसी बात के मुकदमा कर दे।
13.घर की मुख्य या जवान स्त्री का जिस्म अक्सर भारी रहना खासकर कंधे,या पीठ पर दर्द या वज़न का रहना कईबार सवारी जैसे हालात हो जाते है और बहुत ही ज्यादा गंदे सपने लगातार आना।
14.घर के बच्चों का अक्सर बीमार रहने लगे उनकी शिक्षा और संस्कार बाधित हो तो ये सामान्य लक्षण हैं प्रेत बाधा के।यदि ऐसी पीड़ा घर में होने लगे तो पितरों को प्रेतत्व से मुक्ति कराने के विशेष प्रयास करने चाहिए.
मृतक का मृत्यु के समय दशगात्र पिंडदान और वृषोत्सर्ग कराना परम आवश्यक होता है.
यह कार्य कार्तिक की पूर्णिमा या आश्विन मास के मध्यकाल में करते हैं. यह संस्कार रेवती नक्षत्र से युक्त पुण्य तिथि में भी कर सकते हैं।
अब बात करेंगे इस समस्या के उपचार की रोग के अनुपात में औषधि देनी होगी है तब ही किए गए उपचार से लाभ मिलता है वरना नही सामान्य बात है कि तराज़ू के एक पलड़े मैं यदि 1 किलोग्राम वज़न है तो दूसरे में भी 1 किलोग्राम ही रखना पड़ेगा जब हम लोग कोई पाप करते है तो हमारी बुद्धि काम नहीं करती और एक बहुत छोटे से पाप से भी मनुष्य को पूरे जीवन भरकष्ट भोगना पड़ सकता है आप चाहे लाखो रूपए लगाकर कितना भी बड़ा अनुष्ठान करवा लो तो भी बिना श्रद्धा के सभ कुछ बेकार है ।
***।उपचार।***
1.माता पिता की सेवा करें और उन्हें हमेशा खुश रखें।
2.पित्र संहिता का पाठ करवाएं।
3.पित्र गायित्री से भी बहुत आराम मिलता है।
4.पित्र पक्ष में श्राद्ध कर्म जरूर करें।और पितृपक्ष में संयम से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और मांसाहार से दूर रहें।
5.किसी भी जानकर या संबधी की मृत्यु होने पर पिंडदान और गरुड़पुराण का पाठ वअवश्य करवाएं।
6.नारायण बलि का यज्ञ विधिवत रूप से करवाने से 7.पितृदोष दूर होता है और मृतक जनों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है।
8.शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्रीमद्भागवत पुराण कथा करवाने से पित्र दोष प्रेतबाधा से सदा सर्वदा के लिए मुक्ति मिलती है।
9.जिस घर में भगवद्गीता का पाठ होता है उस घर में प्रेतदोष नही रहता और गर्भगीता के पाठ से प्रेतयोनि से मुक्ति होती है।
10.घर में नित्यप्रति गाय के गोबर के कंडे पर देसी घी की गूगल और बतासे या गुड़ मिलाकर होम देने से पित्र खुश होते है।
11.गाय माता की सेवा या गोदान करने से साधक के सात कुल तर जाते है।
12.ब्राह्मण को या  कुलप्रोहित को दान देने से पित्र प्रसन्न  
होते है। कभी भी अपना कुलप्रोहित ना बदलें।
13.गायित्री यज्ञ और अनुष्ठान भी करवाया जा सकता है।
14.कुलप्रोहित कभी नही बदलना चाहिए। और उनका यथायोग्य दक्षिणा देकर सम्मान करें।
15.भगवान विष्णु की आराधना करने से और एकादशी, त्रयोदसी, या पूर्णिमा का आजीवन व्रत करने से भी पित्र खुश होते हैं।
16.दान करना धर्म संगत है लेकिन उससे पहले आपमे दान से अधिक श्रद्धा होनी चाहिए।
17.प्रति रविवार को या प्रति रात्रि सोने से पहले घर के मुख्य सदस्य द्वारा घर की दक्षिणी दीवार में तिल्ली के तेल का दीपक पितरो की शांति हेतु लगाने से बहुत लाभ मिलता है।
यहां पर मैं आप लोगों से एक साबर मन्त्र की साधना दे रहा हु मैं आशा करता हूँ कि इस साधना से आप को बहुत लाभ होगा इसको मैने बहुत लोगों से ये अनुष्ठान संपन्न करवाया है इससे उनको लाभ भी हुआ है।
जब भी साल में पित्र पक्ष आए या जब भी जरूरत हो तो किसी भी कृष्णपक्ष में प्रथम तिथि से पूर्व ही सभी तैयारियां कर लेनी है और इस साधना को करना है और इससे आपको 15 दिन की की गई साधना से आपको पित्र दोष प्रेतदोष से मुक्ति मिल जाएगी।
मन्त्र:-पित्र ब्रह्मा पित्र विष्णु पित्र देव महेश।पित्र देव कृपा करें काटे सभी क्लेश। धन दौलत बरखा को करू तेरी होम अग्यारी।मेरे कारज सिद्ध करो जै जै कर तुम्हारी।दुहाई सती माता अनसूया की।
ये मन्त्र सरल सक्षम ,जाग्रत और सिद्ध है।
जब भी कभी पितृपक्ष आये तो ब्रह्मचर्य से युक्त हो संयम रखें और प्रतिदिन रात्रि में पूर्वाभिमुख होकर अपने सामने आम के एक पटरे पर सफेद कपडा बिछाकर भगवान विष्णु  का चित्र स्थापित करें और चंदन की माला उनको पहनाएं शुद्ध देसी का दीपक प्रज्वलित करके गणेश और गुरु के सामान्य पूजनोउपरांत पित्र देव का एक पानी वाले नारियल पर सफेद कपड़े लपेटकर उस पर आवाहन करें और उनका पूजन करें पूजन में सफ़ेद रंग की वस्तुओं की प्रधानता होगी कुशा के आसन का ही प्रयोग करें। उपरोक्त मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से 11 माला सुबह 11 माला शाम को जाप करें।सुद्धता का पूर्ण रूप से ध्यान रखें।और लाभ  देखें अमावस्या वाले दिन से एक दिन पहले ब्राह्मण को निमंत्रण दे और अमावस्या की सुबह प्रीति युक्त भोजन बनाएं और ब्राह्मण को भोजन करवाएं साथ में वस्त्र और कुछ धन जितना आपकी समर्थ हो दे और ब्राह्मण को विदा करें फिर जिस चित्र का आपने पूजन किया था उसे अगर आपका व्यापार नही चलता तो उसे कार्यस्थल पर लगा दें और अगर घर में क्लेश होता हो तो घर में लगादें।और लाभ प्राप्त करें।
ये जानकारी मैं अपने वर्षों के अनुभवों के आधार पर इस पोस्ट पे डाल रहा हु ताकि इस विषय के बारे में जन साधारण को लाभ हो।
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श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...