शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

बंधी हुई दुकान खोलने का मंत्र।

            बंधी हुई दुकान खोलने का मन्त्र।

अगर आप की कोई दुकानदारी है और आप बहुत समय से किसी स्थान पर दुकानदारी कर रहे हैं और अब आपको लगता है कि द्वेषवश किसी व्यक्ति ने आपकी दुकान को बांध दिया है और आपका व्यापार ठंडा हो गया है या ठप्प पड़ गया है आपको मानसिक और आर्थिक रूप से परेशानी आ रही है जिस के कारण आपका दूभर हो गया है तो आपको बताता हूं एक ऐसा मंत्र और उसके चलाने की विधि जो आपके जीवन को सुखी कर देगी और आप दूसरों का भी भला कर सकेंगे।

सभसे पहले ये समझ लें कि किसी व्यापार को तांत्रिक ओझा गुनिया कैसे बांधते हैं।

किसी व्यापार को ठप करने के लिए तांत्रिक मुख्य रूप से तकरीबन इसी ढंग से करते है ।

○दुकान की दहलीज को बांधना।
○दुकान के मापने वाले यंत्रो की बांधना।
○दुकानदार का उच्चाटन कर देना।
○दुकान चलाने वाले व्यक्ति विशेष को बांधना।
○दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र भवानी बांधना।
○ व्यापार स्थल पर किसी ओपरी शक्ति का होना।
○कोई नकारात्मक बाधा ग्रसित व्यक्ति कार्यस्थल पर होना।

ये श्राप युक्त ऊर्जा होती है जिसका माध्यम कोई भी हो सकता है crual intention का खेल है सारा।

अपनी ऊर्जा को बांधने वाला व्यक्ति किसी न किसी माध्यम से ही fix करेगा जब तक उस नकारात्मक ऊर्जा वो स्रोत उस दुकान,मकान,फैक्ट्री,शो रूम में रहेगा उक्त व्यापार बाधित ही रहेगा।

उस समय उस नकारात्मक ऊर्जा के स्रोत को पहचान कर उसे हटाने की आवश्यकता होती है जब तक वो माध्यम उस स्थली पर रहेगा अपनी नकारात्मकता प्रसारित करता रहेगा।

दुकान की दहलीज की बांधना।

ध्यान दीजिए अगर आपके कार्य स्थल पर किसी व्यक्ति ने कोई ऐसी तरल चीज़ गिरा दी है  और आप उसे साफ भी कर दोगे तो उसका प्रभाव नही जाएगा और मैंने अपने अनुभव में ये देखा है कि जिस व्यक्ति ने उस समान को हटाया वो किसी ना किसी बीमारी से ग्रसित हो गए मैं निजी रूप से ऐसे 10 15 लोगों को जनता हूं जिनको बाद ठीक होने के लिए खुद का इलाज करवाना पड़ा।

अगर कोई तरल या गंदी वस्तु आपको अपने आंगन प्रांगण  दर दहलीज पर मिले तो खुद साहस दिखाने की कोशिश नही करनी चाहिए आपको किसी जानकार व्यक्ति से परामर्श और मदद लेनी चाहिए।

सूदूर स्थान से भी मन्त्र द्वारा किसी भी व्यक्ति स्थान कार्य और क्रिया को प्रभावित किया जा सकता है।

तांत्रिक अगर दुकान की बंधेगा तो सभसे पहले दहलीज पर अभिमंत्रित करने के उपरांत कोई भी वस्तु फेंकेगा उस क्रिया के कुछ समय में ही दुकान बंद हो जाएगी ग्राहक आपको और आपकी दुकान को बिना देखे ही किसी दूसरी दुकान पर चला जायेगा।

मेरा कहने का अभिप्राय है कि उन ग्राहकों का मानसिक रूप से उच्चाटन हो जाएगा और आपके पास आने तो दूर आपकी दुकान की शक्ल नही देखेगा। चाहे आपकी दुकान में दूसरे दुकानदार के मुकाबले कितनी भी अच्छी वस्तुएं हो 
फिर भी ग्राहक आपके पास नही आएगा।


दुकान के मापने वाले यंत्रो की बांधना।
यदि किसी दुकान के तोलने वाले मापने वाले यंत्रो को बांध दिया जाता है तो वो नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आ जाते हैं और जब उक्त दुकानदार उन यंत्रो का प्रयोग करेगा उसको उन यन्त्रो से भयंकर अरुचि होगी और तो वो सुन्न हो जाएगा उसका दिमाग काम नही करेगा माप अप्रमाणित होगा और धीरे धीरे व्यापारी को बहुत बड़ा घाटा पड़ जाता है।

दुकानदार का उच्चाटन कर देना।

जब किसी तांत्रिक का किसी कार्य स्थल या दहलीज अथवा उसके यन्त्रो को प्रभावित कर पाना संभव नहीं होता तो सीधे दुकानदार का उच्चाटन कर दिया जाता है उसके द्वारा प्रयोग की हुई उसकी किसी वस्तु को प्रभावित करके वापिस प्रयोग हेतु रख दिया जाता है उदहारण के लिए आपकी कोई वस्तु कुछ समय के लिए गायब करवा दिया गया और कुछ दिनों में वो चीज़ आपको फिर वापिस मिल गयी आपने उसे प्रयोग कर लिया धीरे धीरे आप को वो ऊर्जा आपना शिकार बना लेगी और आप का उच्चाटन अर्थात एक बार यदि आपका मुखमोड हो गया तो आप "नीरो बन जाओगे, रोम जलेगा और आप बासुरी बजाते रहोगे"।
बाकी फिर आदमी को बर्बाद हो चुकने के बाद खुद ही समझ आ जाता है।

दुकान चलाने वाले व्यक्ति विशेष को बांधना।

दुकानदार या दुकान चलाने वाले मुख्य व्यक्ति जो की गद्दी पर बैठता है उसके और उसके देवता पित्र को नकारात्मक मन्त्रो द्वारा बांधा जा सकता है और ये बहुत ताकतवर होता है इसे खोलने में कोई गारेंटी नही होती और धन समय बर्बाद होते है।

व्यक्ति विशेष के पहने हुए कपड़े कंघा जूते चप्पल उसके पांव की मिट्टी सिर के बाल उसका इस्तेमाल किया हुआ दांत साफ करने वाला ब्रश या कोई भी ऐसी वस्तु जो उसके शरीर से स्पर्श हुई हो उस वस्तु को नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित कर दिया जाता है 

फिर उसे आपने कार्य के लिए नकारात्मक ऊर्जा का माध्यम बना लिया जाता है जब तक वह वस्तु उक्त व्यक्ति के पास रहती है उस व्यक्ति के ऊपर से बंधन नहीं हटता और इससे उसके व्यापार उसके धन समय और भविष्य की बर्बादी होती है।

दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र को बांधना।

ऊपर के सभी प्रयोगों से ज्यादा खतरनाक यह प्रयोग होता है क्योंकि यह प्रयोग विशेषज्ञ तांत्रिक जो कि अपने कार्य को करने में दक्ष होते हैं ऐसे व्यवहारिक कारीगर ही ऐसे काम को किया करते हैं वो अपनी क्रियाओं और मन्त्र तन्त्र द्वारा दुकान चलाने वाले व्यक्ति के देव पित्र को बंधन में डाल देते है और उस बंधन को उनके बराबर तक ताकत और समझ रखने वाला कारीगर ही तोड़ सकता है।

दुकान पर किसी ओपरी शक्ति का होना

शुरू से ही मनुष्य की महत्वाकांक्षा बहुत अधिक रही है जिसके चलते हुए बहुत सारी संपत्तियों के विवाद और झगड़े चलते रहते हैं और बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो नाजायज तरीके से किसी धार्मिक स्थल श्मशान कब्र मंदिर समाधि को तोड़ कर वहां कार्य स्थल बना देते हैं उसके ऊपर से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कभी नहीं हटता।

ऐसे में पीड़ित के पास दो ही रास्ते बचते हैं सबसे पहले कि वह अपनी कार्यस्थल वहां से हटा ले और दूसरा रास्ता यही होता है कि वह उस स्थान की उस शक्ति के लिए कुछ ना कुछ offring चढ़ावा चढ़ाता रहे या उसकी पूजा करता रहे। लेकिन यह तभी संभव हो पाता है जब कोई भगत अपनी जुबानवांचा उस शक्ति के ऊपर लगा दे और उसे ऐसा करने के लिए मेरा कहने का तात्पर्य यह है भोग लेने के लिए वचनबद्ध करें।

कोई नकारात्मक बाधा ग्रसित व्यक्ति कार्यस्थल पर होना।
कई बार ऐसा भी हो जाता है कि कोई बहुत तीव्र नकारात्मक बाधा से प्रभावित व्यक्ति आपकी कार्यशैली पर आकर लगातार आपके पास बैठता हो और वह नकारात्मकशक्ति आपके कार्य के ऊपर मनहूसियत डालती हो।

इन सब का इलाज निदान उपचार

जैसा कि मैंने उपरोक्त उल्लेख किया है कि बहुत सारे कारण होते हैं किसी कार्य स्थली के बंधन होने पर किसी व्यापार के ठप होने के लिए बहुत सारे घटक उत्तरदाई होते हैं सिर्फ कोई एक कारण नहीं होता कई बार एक से अधिक कारण भी हो सकते हैं। 

यदि बाजार में सब कुछ सामान्य है यानि अगर मार्कीट में कस्ट्मर का फ्लो है और मार्कीट सामान्य रूप से चल रही है। यदि आप आपने कामकाज को चलाने के लिए प्रयास भी कर रहे हो और आपके लाख प्रयास करने के बाद आपका व्यापार धंधा ठप्प है तो उक्त बातें विचारणीय है।

ये उक्त बातें तब व्यर्थ है यदि:-
आप आलसी हैं और समय पर अपनी कार्यस्थली को नहीं खोलते।
यदि वर्तमान के व्यापार की तरफ ध्यान ना देकर आपका का मन किसी और conscept की तरफ केंद्रित हैं।
यदि ग्राहकों के बेचने के लिए पर्याप्त सामान नहीं है।
यदि आपके पास outdated  समान है।
यदि आपका व्यवहार रूखा है।
यदि आप अपने ग्राहक को मांगी गई चीज देने बजाए खुद की मर्ज़ी चलते हो।
आप की चीज़ों की गुणवत्ता और माप परिमाप कम है।

यह कुछ ऐसी सामान्य व्यवहारिक बातें हैं यदि इसका ध्यान रखा जाए तो आपका व्यापार ठप्प नहीं होगा क्योंकि हर जगह दो ऊपरी बाधा नहीं होती बहुत सारे लोग अपने व्यवहारिक कमियों के चलते अपने व्यापार का बेड़ा गर्क कर देते हैं और उसका दोष वह दूसरों को देते हैं।

अब मैं आपको ऐसा साबर मंत्र बताने जा रहा हूं जिसके ऊपर सभी पुराने तांत्रिक लोग आंख बंद करके भरोसा करते हैं मंत्र के क्रिया के प्रभाव द्वारा बांधी गई दुकान झटके से खुल जाती है और वापस ग्राहक आने चालू हो जाते हैं ऊपर लेख में दिए गए अनुसार कारणों को अपनी बुद्धि के अनुसार खोजने की कोशिश करें तो आपको पूरी बात समझ में आ जाएगी।

एक पुराना साबर मंत्र है जोकि बहुत सारे वर्षों से यह इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके प्रयोग किए जाने के बाद दुकान के ऊपर कैसा भी बंधन लगा हो वह खुल जाता है इसको सिद्ध करने की विधि यह है की होली दीपावली पर इस मंत्र की 108 माला यानी कि 10800 जाप करके सिद्ध कर लें इसको चंद्र या सूर्य ग्रहण में भी सिद्ध किया जा सकता है उसके बाद यह मंत्र पूर्ण प्रभावी हो जाएगा बहुत सारे लोग इसे सिद्ध मंत्र बोलते हैं लेकिन व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो एक सच बात यह भी है किसी मंत्र के साथ आप की आत्मिक शक्ति की ट्यूनिंग करनी होती है जब आप किसी मंत्र का लगातार जाप करते हैं अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध कर लेते हैं तो वह मंत्र क्रिया करते ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है और पहली बार में ही आपके अभीष्ट को सिद्ध कर देता है उसके लिए बहुत प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती सिर्फ एक बार किसी ग्रहण कालिया पर्व पर आप इसे सिद्ध करें तब इसका प्रभाव देखें आप खुद का और पूरे समाज का भला कर सकते हैं

मंत्र इस प्रकार 

ॐ नमो आदेश गुरु को
भंवर वीर तू चेला मेरा।
खोल दुकान कहा कर मेरा।।
उठे जो डंडी बिके जो माल।
भवंर वीर सोखेकर जाए।।
शब्द सांचा पिंड काचा।
चलो मन्त्र ईश्वरो वांचा।।

इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद शनिवार की रात्रि को 108 बार एक मुट्ठी साबुत उड़द ले और उसे इस मंत्र से अभिमंत्रित करने आपके सामने धूप दीप जलता रहना चाहिए हो सके तो गूगल की धूनी चला कर रखें जब यह उर्द अभिमंत्रित हो जाए तो शनिवार को शाम को दुकान बंद करने से ठीक पहले जब आपने दुकान के किवाड़ और शटर को बंद करना होता है तो यह उड़दी अपने इष्ट देव का ध्यान करके अपनी दुकान के अंदर बिखेर दें और चुपचाप अपने घर चले जाए। 

दूसरे दिन यानी रविवार को प्रातः काल सामान्य से जल्दी उठकर अपनी दुकान पर जाएं और सबसे पहले वह उर्दी इकट्ठी करें झाड़ू लगाकर जितनी भी उर्दी करती हो वह सभी उर्दी इकट्ठे कर ले और इस इकट्ठी की गई उर्दी को किसी काले कपड़े के टुकड़े में डाललें और उसमें एक नींबू एक लोहे का कील रखें कपड़े की को गांठ मार दे और सुबह सुबह जल्दी किसी चौराहे पर जाकर इसे फेंक दे अगर आपके पास कोई चौराहा ना हो तो आप उक्त पोटली को चुपचाप किसी निर्जन स्थान पर भी फेंक सकते हैं और बिना मुड़े चुपचाप अपनी दुकान पर वापस आ जाए ये सभी काम करते हुए आपको कोई टोक ना दे इस बात का ध्यान रखें।

ऊपर मैंने आपको दुकान जोकि मंत्र और क्रिया द्वारा बांधी गई हो उसको खोलने की पूरी विधि बता दी है। 

आप सभी को इस लेख आर्टिकल वीडियो द्वारा इस प्रयोग को करने की अनुमति है हां इस प्रयोग सफल होंगे और उसके के सफल होने पर आप हनुमान जी को सवा किलो लड्डू का भोग जरूर लगवाएं।

जैसा कि मैंने ऊपर के लेख में आपको बताया कि ऐसे बहुत सारे कारण हो जाते हैं जो आपके व्यापार के बंद होने की दुकान के बंद होने के लिए उत्तरदाई होते हैं और यदि आप उन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपका व्यापार कभी बंद नहीं होगा और आपके बच्चों का भरण पोषण लगातार होता रहे।
आप का कल्याण हो बहुत-बहुत आशीर्वाद।

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गुरुवार, 3 नवंबर 2022

श्री गणेश सिद्धि।

गणेश-साधना।


श्रीगणेश सभी देवतानों में प्रथम पूज्य हैं। आपके जीवन परिवार कुटुंब परिवार में किसी भी प्रकार की कोई कमी नही होती और जीवन की सभी कमियां दूर होकर समृद्ध जीवन प्राप्त होता है यहां आपको शास्त्रिक साधना दी जा रही है।

श्री गणेश जी का मन्त्र यह है 
'ॐ श्रीं ह्रीं क्ली ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनमेवश मानय ठः ठः ।' 

साधना विधि - सर्वप्रथम शौच स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत होकर प्राणायाम, सन्ध्यावन्दन यादि की क्रियायें करें। तत्पश्चात् अष्टगन्ध द्वारा भोजपत्र पर गणेश यन्त्र का निर्माण करें। 
             गणेश यन्त्र का स्वरूप यह है।
अन यन्त्रस्थ केशर में पीठ शक्तियों का पूजन नीचे लिखे अनुसार करना चाहिए ।
'ॐ तीव्रायै नमः ।'
ॐ ज्वालिन्यै नमः ।'
ॐ नन्दाय कमः ।'
'ॐ भोगदाये नमः ।'
'ॐ कामरूपिण्यै नमः ।
'ॐ उग्रायै नमः ।'
ॐ तेजोवत्यैः नमः ।'
'ॐ सत्यायै नमः ।'
ॐ विघ्नाशिन्यै नमः ।' 
मध्य में— 'सर्वशक्तिकमलासनाय नमः ।'

                     दूसरा स्वरूप ये है।
इसके पश्चात् 'ऋष्यादिन्यास' करना चाहिए ।  

ऋष्यादिन्यास इस प्रकार करें
'शिरसि गरणक ऋषये नमः ।' 
'मुखे निवद्गायत्री च्छन्दसे नमः ।
' हृदिगणपतये देवतायै नमः ।'

इसके पश्चात् कराङ्गन्यास करें ।
करन्यास और अङ्गन्यास निम्नानुसार करना चाहिए।
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लों गं गां प्रङ्गष्ठाभ्यां नमः ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लं यं गीं तज्जंनीम्यां स्वाहा ।'
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं मध्यमाभ्यां वषट्
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं में अनामिकाभ्यां हुम् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं कनिष्ठाभ्यांव्वषट् ।'
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौ गं गः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।' 

इसी प्रकार हृदयादिये में भी न्यास करना चाहिए। इसके उपरान्त षोडशो पचार क्रम से गणेशजी का पूजन करें।
ध्यान का मन्त्र - 

श्री गणेश जी के ध्यान का मन्त्र इस प्रकार है

"एकवन्तं शूर्पकर्णङ्गजवक्त्रञ्च तुर्भुजम् । पाशांकुशधरन्देवम्भोदकाजिव भ्रतङ्करः ॥ रक्तपुष्पमंयामालाकण्ठे हस्ते परांशुभाम् । 
भक्तानांव्वरदं सिद्धि बुद्धिभ्यां सेवितं सदा ।। 
सिद्धि बुद्धि प्रदन्नृणान्धर्मार्थकाममोक्षदम् । 
ब्रह्मरुद्र हरीन्द्राद्यैस्मंस्तुतम्परमषिभिः ।।

ध्यानोपरांत क्रमशः आवाहन करें फिर आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, तेल, दुग्ध स्नान, दधि स्नान, घृत-स्नान, मधु-स्नान, शर्करा स्नान, गुड़-स्नान, मधुपर्क शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य, आचमनीय, फल, साचमनीय का उद्धर्त्तनादि, सिन्दूर, ताम्बूल, दक्षिणा माला, दूर्वा, प्रदक्षिणा एवं अरात्र्तिक के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए षोड़सोपचार की पूजन विधि समाप्त करें ।

पुरश्चरण — इस मन्त्र के पुश्चरण में १,२५,००० की संख्या में जप तथा जप का दशांश होम करना चाहिए।
ग्रहण काल में एमन्त्र सिर्फ 110 माला जप ही आपके ली उपयुक्त होगा आपको कुछ ही दिनों में इस का प्रभाव पता चल जाएगा।

उक्त प्रकार से पूजन, आराधन तथा जप करने पर गणेश जी साधक पर प्रसन्न होकर उसे अभिमत प्रदान करते हैं तथा उसके सभी विघ्नों का नाश करते हुए, हर प्रकार से बुद्धिमान, विद्वान एवं ऐश्वर्यशाली बनाते हैं ।


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श्यामा काली सिद्धि

श्यामा काली साधना।

भगवती 'श्यामा अर्थात् काली के अनेक स्वरूप तथा अनेक नाम हैं । यह पर हम श्यामा काली की साधना का उल्लेख कर रहे हैं। भगवती श्यामा का साधना मूल मन्त्र यह है

"हूं हूं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं

स्वाहा साधन विधि - सर्वप्रथम भोजपत्र पर अष्टगन्ध से भगवती श्यामा के यन्त्र का निर्माण करें। भगवती श्यामा के पूजन यन्त्र के भेद हैं यहाँ पर आपको एक यन्त्र चित्र में दिया जा रहा है
उक्त भिन्न प्रणाली के पूजन-यन्त्र को नीचे प्रदर्शित किया जा रहा है।

यन्त्र - लेखन से पूर्व स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत हो लेना आवश्यक है । 

प्रात: कृत्यादि के पश्चात् सर्वप्रथम 'श्रीं' इस मन्त्र से तीन बार आचमनीय जल का पान करके “ॐ काल्यै नमः' तथा 'ॐ कपालन्यैि नमः' । 
इन मन्त्रों का उच्चारण करते हुए दोनों होठों का दो बार मार्जन करना चाहिए। 

तत्पश्चात् 'ॐ कुल्वायै नमः' इस मन्त्र से हम प्रक्षालन करें। 
फिर ॐ कुरु कुरु कुल्वाये नमः' - इस मन्त्र से मुख का 
ॐ विरोधिन्यं नमः - इस मन्त्र से दक्षिण नासिका का 
'ॐ विप्रचित्रायै नमः" - इस मन्त्र से वाम-नासिका का 
ॐ उग्राय नमः - इस मन्त्र से दायें नेत्र का, 
'ॐ उग्रप्रभायै नमः'- हम मन्त्र से बायें नेत्र का, 
ॐ दीप्तायै नमः - इस मन्त्र से दायें कान का, 
'ॐ नीलायै नमः' -इस मन्त्र से बायें कान का, 
ॐ धनाय नमः' – इस मन्त्र से नाभिका का, 
ॐबलाकायै नमः' - इस मन्त्र से छाती का, 
ॐ मात्राय नम:' इस मन्त्र से मस्तक का,
 ‘ॐ मुद्रियं नमः - इस मन्त्र से दायें कन्धे का, 
तथा 'ॐ नित्यायै नमः ' - इस मन्त्र से बायें कन्धे का स्पर्श करना चाहिए।"

उक्त प्रकार से आचमन करने के उपरांत सामान्य पूजा पद्धति के नियमानुसार भूत-शुद्धि तक सब कार्य करके मायबीज – 'ह्रीं' इस मन्त्र से यथाविधि प्राणायाम करें। तत्पश्चात् ऋष्यादि न्यास करें। फिर कराङ्गन्यास, वर्णन्यास, पोढान्यास, तत्त्वन्यास तथा बाजन्यास करके भगवती श्यामा का ध्यान करना चाहिए ।
ध्यान का स्वरूप - काली तन्त्र में भगवती श्यामा के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है।

"करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् । कालिका दक्षिणां दिव्यां सुण्डमाला विभूषिताम् ।। सदाश्छिन्न शिरः खङ्ग वामाधोऽर्ध्व करांषुजाम् । श्रभयं वरदं चैव दक्षिणाधोर्ध्व पारिणाम् ॥ महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् । कण्ठावसक्त मुण्डलीं गलद्दृधिर चचिताम् ॥ करवंत सतानीत युग्मभयान काम् । घोरदंष्ट्रा करालास्यां पीनोन्नतपयोधराम् ॥ शवानां कर संघातः कृत काञ्चीं हसन्मुखीम् । सृक्कद्वय गलाद्रक्त धाराविस्फुरिताननाम् ॥ घोर रावां महारौद्री श्मशानालयवासिनीम् । बालार्क मण्डलाकार लोचन त्रितयारिवताम् ॥वन्तुरांदक्षिण शवरूप महादेव
व्यापि मुक्तालम्बिक चोच्चयाम् ।हृदयोपरि सस्थिताम् ॥शिवाभिर्घोरिरावाभिश्चतु दिक्षसमन्विताम् ।महाकालेन च •
शुभविपरीतरतातुराम् ॥सुखप्रसन्नवदनांस्मेराननसरोरुहाम्
एवं संचिन्तयेत्काल सर्वकाम समृद्धिबाम् ॥” '

स्वतन्त्र तन्त्र' में देवी के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है
" श्रञ्जन्नाद्विनिभां देवी करालवदनां शिवाम् |
मुण्डमालावलीकीरणी मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ॥
महाकालहृदम्भोजस्थितां पीनपयोधराम् ।
विपरीतरतासक्तां घोर दंष्ट्रांशिवः सह ॥ 
नागयज्ञपवीताढयया चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।
सर्वलङ्कार संयुक्तां मुण्डमाला विभूषितम् ॥
तहस्त सहस्रस्तु बद्धकाञ्चीं दिगंशुकाम् ॥
शिवाकोटि सहस्रं स्तु योगिनीभिविराजिताम् ।
रक्तपूर्ण मुखाभोजां मद्यपान प्रमत्तिकाम् ।
विर्क शशिनेत्रां च रक्तविस्फुरिताननाम् ॥
विगतासु किशोराभ्यांकृत कर्णवतंसिनोम् |
कर्णावसक्तमुण्डाली गलद्र घिर चत्रिताम् ॥
श्मशान वह्निमध्यस्यां ब्रह्म केशव वन्दिताम् । 
सद्यः कृत शिरः खङ्गवराभीतिकराम्बुजाम् ॥

पूर्वोक्त प्रकार से ध्यान करने के पश्चात् अर्ध्य स्थापित करना चाहिए । अयं स्थापनोपरांत पीठ-पूजा तथा प्रावरण- पूजा करके भैरव पूजन करे। भैरव पूजन का ध्यान निम्नानुसार है
भैरव पूजन के बाद देवी भस्म पूजन करके विसर्जन करना चाहिए। 'स्वतन्त्र तन्त्र' में लिखा है कि मुद्रा, तर्पणादि द्वारा देवी की पूजा, यन्त्र जप तथा नमस्कार करके अपने हृदय में देवों को विसर्जित करना चाहिए।

जिस समय किसी कार्य की सिद्धि के लिए जप किया जाय, उस समय मुंह में कपूर रख कर, कपूरमुक्त जिहवा से जप करना चाहिए। फिर देवी की स्तुति करके प्रदक्षिणा सहित साष्टाङ्ग प्रणाम करें तथा 'जन्गमङ्गल कवच का पाठ करें। ‘जगन्मङ्गल - कवच' 'स्तोत्र ग्रन्थों' में देख लें । 'जगन्मङ्गल कवच' का पाठ करने के बाद देवी के भङ्ग में समस्त आवरण देवताओं को विलीन करके सहार मुद्रा द्वारा 'काल्यै क्षमस्व:' यह कहकर विसर्जन करना चाहिए।

'काली तन्त्र' में इस मन्त्र के पुरश्चरण में २००००० की संख्या में जप करने का निर्देश किया गया है । उसमें कहा गया है कि साधक पवित्र तथा हविष्याशी होकर १००००० की संख्या में, दिन में जप करे तथा रात्रि के समय मुँह में ताम्बूल रखकर तथा शय्या पर बैठकर इतनी ही संख्या में जप करे । जप के बाद दशांश घृत-होम करना चाहिए। 'नील सारस्वत' के मता होम के बाद तर्पण तथा अभिषेक भी करना चाहिए ।
रात्रिजप का विशेष नियम यह है कि रात्रि के दूसरे प्रहर से तीसरे प्रहर तक मन्त्र का जप करना चाहिए। परन्तु रात्रि के शेष प्रहर में जप नहीं करना चाहिए।
उक्त प्रकार से पुरश्चरण करने से भगवती श्यामा देवी साधक पर प्रसन्नहोकर उसे अभीप्सित फल देती हैं।

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

घर की शांति

 शांतिकर्म के कर्म में गृहशांति के प्रयोग दिये गये हैं। यह प्रयोग नवग्रहों वाली शांति से भिन्न है।

इसमें घर के अंदर विभिन्न प्रकार के दैवीय कारणों से उत्पन्न होने वाली आपत्तियों-विपत्तियों के लिए ये प्रयोग दिया गया है।
घर के शांत-सुखद वातावरण को कलुषित और अशांत करने के बहुत से कारण होते हैं।
उनमें से चार कारणों को प्रमुखता से देखा जा सकता है। गृह अशांति के चार प्रमुख कारण भौतिक, दैविक, अभिचारिक और पित-प्रेत दोष हैं।
व्यक्ति के दुराग्रह, स्वभाव की कटुता और हठधर्मिता से उत्पन्न विवादास्पद परिस्थितियों से होने वाली अशांति तथा अनावश्यक रूप से वाद-विवाद के प्रकरण खड़े कर देने में गृह की शांति भंग हो जाती है।
जब व्यक्ति स्वयं को दूसरों की अपेक्षा उच्च, श्रेष्ठ और ज्ञानी मानकर दूसरों को उपेक्षा और लघुता की दृष्टि से देखता है, तब भी जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर किसी व्

यक्ति के अहम् को ठेस लगती है और यही ठेस अंतत: उसकी और फिर सम्पूर्ण गृह-परिवार की अशांति में बदल जाती है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि गृह अशांति के भौतिक कारण व्यक्ति द्वारा स्वयं ही उत्पन्न किए हुए होते हैं। गृह-शांति को प्रभावित करने में इस जन्म और पूर्व जन्म के पाप-कर्म अधिक प्रभावी होते हैं और इन्हीं को गृह-अशांति के लिए दैविक कारण माना जाता है।
काफी लग्न, श्रम और योग्यता के बाद भी किसी व्यक्ति को उसके क्षेत्र में निरंतर असफलता मिलते जाने को दैविक कारण के अलावा और भला कहा भी क्या जा सकता है।
दुरैव की दिशा में कभी-कभी आनुष्ठानिक व्यवस्थाएं भी निष्फल ही सिद्ध होती हैं किंतु ऐसी विषम परिस्थिति में शाबर मन्त्र साधना बड़ी प्रभावी होती है।

अभिचारिक कर्मों द्वारा जब किसी के गृह की शांति को अशांति में बदल दिया जाता है तो उस व्यक्ति और उसके परिवार की स्थिति विक्षिप्तों के समान हो जाता है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है. जब तक कि अभिचार कमों के प्रतिकार स्वरूप कुछ उपाय न किए जाएं। ऐसे उपायों का शाबर मंत्रों में महत्वपूर्ण स्थान है।

पित्रात्माएं सभसे अधिक अपना प्रभाव संतति और व्यवसाय पर कुप्रभाव डालती है। पितृत्माओं के रुष्ट हो जाने पर बिना कोई कारण सामने आए आय के स्रोत अवरुद्ध होते प्रति हीने लगते हैं। और बने बनाए काम भी बिगड़ते दिखाई देते हैं। व्यक्ति करना और कहना ती कुछ चाहता है, जबकि स्वतः होता कुछ और कहा कुछ और। ऐसे व्यक्ति को रात की नींद और दिन का चैन उड़ जाता है।
पितत्माओं के समान ही प्रेत भी वायवीय प्राणी होते हैं। उनके पास भौतिक देह नहीं होती। यही कारण है कि वे किसा भी प्रकार की कामना और वासना आदि से वंचित होते हैं।
जब उन्हें अपनी अतृप्त कामना या वासना की पूर्ति करनी होती है तो ये किसी माध्यम (स्त्री-पुरुष, बालक आदि) के द्वारा ही ऐसा करते हैं।
प्रेतों में परकाया प्रवेश की सामर्थ्य होती है। वे प्रायः इस प्रकार के लोगों की अपना माध्यम बनाते हैं, जो दुराचारी, अपवित्र, अभक्षी और दुष्ट प्रकृति के जोकि इस प्रकार के स्त्री-पुरुषों को भी अपना शिकार बना लेते हैं, जिनसे कभी उनकी शत्रुता रही हो अथवा जिनके कारण उन्हें मृत्यु का ग्रास बनना पड़ा हो।
किसी भी व्यक्ति को प्रेतग्रस्त स्थिति दो प्रकार की होती है। पहली स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति प्रेत के आवेश से कांपने लगता है और उसका स्वर-भंग होकर बदल जाता है। उस व्यक्ति की आँख लाल होने लगती हैं और वह अपने सामान्य बन सामय की अपेक्षा कई गुना अधिक शक्तिशाली प्रतीत होने लगता है। प्रेत आवेशित व्यक्ति यदि कुछ खाने पीने की वस्तुओं को ग्रहण करता है तो वह वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि उस प्रेत द्वारा ग्रहण की जाती है। दूसरी स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति के ऊपर प्रेत का आवेश स्पष्ट रूप दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि ऐसा व्यक्ति कुछ विचित्र प्रकार के कार्य करने लगता है। कभी-कभी प्रेत-पीड़ा में व्यक्ति पर न तो किसी प्रकार का आवेश ही दृष्टिगत होता है और न ही उसके कार्यों में किसी प्रकार की विचित्रता प्रकट होता है। प्रेतग्रस्त दशा को इस स्थिति का आभास एकाएक ही उस व्यक्ति अथवा उसके परिवार पर आने वाले अकल्पित संकटों और परिस्थितियों से होता है।
प्राय: प्रेतात्माएं चार प्रमुख कारणों से व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। इन कारणों में पहला कारण तो यह है कि स्वयं प्रेत अपनी वासनापूर्ति के कारण स्त्री पुरुष की ओर आकर्षित होती है।
दूसरा कारण किसी व्यक्ति द्वारा प्रेत के जीवनकाल से जुड़े प्रतिशोध को माना जाता है।
तीसरा कारण व्यक्ति का अपवित्र वातावरण में रहना अथवा अपवित्रता को ग्रहण करना है। प्राय: प्रेतात्माए अपवित्रता को पसंद करती हैं;
अतः वे स्वभावतः इस प्रकार के व्यक्ति को अपना शिकार बना लेती हैं।
ओझा-तांत्रिक के द्वारा प्रेतात्मा को आहूत करके किसी व्यक्ति विशेष को शिकार बनाने के लिए प्रेरित करना होता है।
इस लेख में विभिन्न प्रकार के शांति-पष्टि कर्म हेतु एक विशेष शाबर में को प्रस्तुत किया गया है।
इस मंत्र की नियमानुसार सिंद्धि कर लने पर ये अपना यथोचित प्रभाव प्रकट करने लगते हैं।

ग्रहशांति हेतु विशिष्ट शाबर मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु को!
घर बांधू घर-कोने बांधू और बांधू सब द्वारा,
जगह-जमीन को संकट बांधू बांधू मैं चौबारा।
फिर बांधू मैली मुसाण को और कीलं पिछवाड़ा,
आगे-पीछे डाकन कीलू आंगन और पनाड़ा।
कोप करत कुलदेवी कीलू पितरों का पतराड़ा।
कीलू भूत भवन की भंगन,
कीलूं कील कील नरसिंग।
जय बोलो ओम नमो नरसिंह भगवान करो सहाई,
या घर को रोग-शोक,
दुःख-दलिहर, भूत-परेत,
शाकिनी-डाकिनी,
मैली मशाण नजर-टोना,
न भगाओ-तो लाख-लाख आन खाओ।
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र सांचा,
ईश्वरोवाचा ॐ नमो गुरु को।

यह विशिष्ट शाबर मंत्र किसी पर्व सूर्य चन्द्र ग्रहण दीपावली व होलिका दहन की रात्रि में भी सिद्ध किया जाता है।
इस रात्रि में एक एकांत कमरे में गो-घृत का दीप प्रज्वलित करके एक चौकी पर रखा जाए। उस चौकी पर नया लाल अथवा गुलाबी रंग का रेशमी कपडा बिछा दिया जाए। चौकी के बीचों-बीच पुओं का ढेर स्थापित करके उसमें ईश्वरीय रूप-भाव की आस्था करें। फिर उसका हल्दी, गुड़ और धूपादि से पूजन करें। तत्पश्चात् उपरोक्त मंत्र की एक माला का जप करके मंत्र को सिद्ध कर लें। और पुओं के ढेर को किसी तालाव अथवा नदी में विसर्जित कर दें।
जब गृह शांति के लिए इस मंत्र की आवश्यकता हो तो रात्रिकाल में नागफनी का कील लें। बाधा-पीडित ग्रह के किसी साफ-स्वच्छ कमरे में एक नए गुलाबी के कपड़े को काष्ठ की एक चौकी पर बिछा दें। चौकी पर सात अन्न की ढेरिया और चौकी के चारों कोनों पर सात-सात पूडी रख दें। प्रत्येक पूड़ी के ढेर पर हलवे कुछ मात्रा रखें।
चौकी पर पंचमेवा, फल और प्रसाद भी रखें। चौकी के नीचे या चावल के छोटे-से ढेर पर एक दीपक जलाकर रखें। धूप-आरबत्ती से वातावरण को सुगंधित बनाते हुए नौ कीलें तथा नौ नींबुओं पर इक्यावन बार सिद्ध कीए गए मंत्र का जप करें तत्पश्चात् नौ कोलों को नौ नौबुओं में गाड़ दें।
इन कीलित नींबुओं में से चार नींबुओं को गृह के चारों कोनों में गाड़ दें।
एक कोलित नींबू गृह के प्रवेश द्वार पर,
एक जल रखने के स्थान पर,
एक गृह के आगे,
एक पीछे और
एक नींबू पतनाले के नीचे गाड़ देना चाहिए।
इन कीलित नींबुओं को गाढ़ते समय बराबर मंत्र जाप करते रहना चाहिए।
यह सम्पूर्ण उपाय करने के उपरांत चौकी तथा चौकी के नीचे रखे सभी उन पदार्थों को, जो इस उपाय में प्रयुक्त किए गए थे, उन्हें किसी एकांत स्थान पर रख आएं। उपरोक्त प्रक्रिया करने से गृह बाधा से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी को करने पर विशेष लाभ मिलता है। इस प्रयोग के अगले दिन गृह स्वामी प्रातः यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन, गाय को चारा-पानी तथा दान-पुण्य करें।

माता मैदानन को खुद शांत करें।

 माता मैदानन जोकि जो कि पूरे उत्तर भारत में पूजी जाती हैं ये देवी हर एक घर में पूजी जाती है और सभी की मनोकामना पूरी होती हैं। एक समय की बात है जब सबल सिंह बावरी पीर जंग में मुगलों के साथ लड़ रहे थे तो माता शाम कोर को उन्होंने मुगलों से बचाया और अपने साथ ले आए ।और उसके बाद वह और जंगल में शिकार करने चले गए जब माता मैदानन ने माता शाम कोर को अपनी चुनरी उड़ा दी उतने में बाबा सबल सिंह बावरी वापस लौटे तो क्या देखते हैं माता मैदानन अपनी खटिया पर बैठी हुई है जब माता मैदानन को उन्होंने तीन बार बहन संबोधन किया लेकिन जब देखा तो वह माता श्याम कौर थी तब सबल सिंह बावरी ने यह वचन दिया कि आज के बाद आप मेरी बहन हो और मैं आपकी हर तरह से रक्षा करूंगा। कुछ देर बार बाबा बावड़ी को कुछ दिनों बाद बाहर शिकार पर जाना पड़ा और उतने में मुगल श्याम कौर को ढूंढते ढूंढते वहां पर आ पहुंचे।और माता श्याम कौर को उठाकर के अपहरण करके ले जाने लगे इतने में मैदानन ने अपना इलम चलाया और इल्म से माता श्याम कौरके शीश को धड़ से अलग कर दिया देख कर के मुगल हक़के-बक्के रह गए और कुछ बनता ना देख कर के मुगल भागने लगे उनके धड़ को लेकर के लेकिन शीश उनसे छूट गया जब आगे जाकर कि उन्होंने देखा कि शाम कौर का शीश हमसे छूट गया है तो उन्होंने उनका संस्कार करना उचित समझा उतने से बाबा बावड़ी शिकार करके जब लौटते हैं तो माता मदानन उनको सभी वृतांत बताती है तो बाबा एक श्मशान में काम चांडाल का वेश धारण करके मुगलों के पहले शमशान में जाकर बैठ जाते हैं और इतने में मुगल आते हैं और उन्हें श्मशान में शाम कोर का संस्कार करने को कहते हैं बाबा बावड़ी इतने में बोलते हैं कि रात्रि में शव का अंतिम संस्कार इस धर्म में नहीं किया जाता यह सुनकर के सभी मुगल हक्के बक्के रह गए और धन देकर के बाबा को मनाने की कोशिश करने लगे काम बनता ना देख लो और सोना देने का प्रस्ताव रखा और बावरी पीर ने बोल दिया कि मैं सबका संस्कार कर दूंगा मुगलों के जाने के बाद बाबा बावरी ने मैदानन को बुलाया और माता मदानण ने अपने ईल्म से श्याम कौर का शीश छोड़ दिया । बाबा सबल सिंह बावरी माता मदानण से बहुत खुश हुए और बोले आज के बाद दोनों बहने थी रहोगी बाबा सबल सिंह बावरी ने माता मदानण को माता श्याम कौर की रक्षा करने के लिए भविष्य में रक्षा करने के लिए कहा और समय निकल जाने के बाद जब माता मैदानन की आयु पूरी हुई तो उनका देहांत हो गया अब वहां से नागा गुरु निकल रहे थे तो उन्होंने देखा कि प्रसिद्ध सबल सिंह की बहन का संस्कार हो रहा है जो कि श्मशान क्रिया उनका नित्य प्रति का कार्य था माता मदानण संस्कार हो रहा था तो उन्होंने उनकी चिता जगा ली जब उनको चिता को जगाया गया तो बाबा ने सवाल पूछे तो माता मदान वाली ने उत्तर में जवाब दिया कि मैं कच्चे में पक्के में छिले में मरगत में सूतक में पातक में छोटे के बड़े के नीच का भेद किए बिना सभी कार्य आपके करूंगी लेकिन हे गुरु जो आप देख लेते हो वही भेंट लूंगी तो दोस्तों वह भी बची की होती है।

***********।शांत करने के तरीके ।*****
1.कच्चे दूध में गंगा जल साधारण जल और थोड़े से बतासे और कुछ कच्चे चावल मिला करके माता को सींचने से माता शांत होती हैं ।
2. माता के थानों पर प्रतिदिन झाड़ू लगाने से माता की प्रकोप भी शांत हो जाती है।
3.गुरु गोरखनाथ की पूजा करने से माता का क्रोध शांत हो जाता है ।
4.नगर खेड़ा महाराज की सेवा करने से माता की ग्रुप शांत हो जाती है ।
5.प्रतिदिन कच्ची कड़ाही देने से माता की कॉपी शांत हो जाती है ।
6.घर में प्रातः काल सुबह उठकर के कच्ची लस्सी का छीटा मारने से माता शांत हो जाती है ।
7. 5 या 11 ईंटे लेकरके उनका (वादा गेहना)उठाने से माता शांत हो जाती है।
8.शीतला माता को सींचने से माता मदानण की कृति शांत हो जाती है ।
9.दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाने से माता शांत हो जाती है । 10.देवी भागवत करने से या पढ़ने से घर में माता शांत हो जाती है।
11.दहलीज साफ रखने से माता की कृति शांत हो जाती है 12.उतारा करने से माता शांत हो जाती है ।
*****शीतला माता मैदानन मशानी माता का शांति मन्त्र*****
(माई शीतला गधे सवारी नाल मदानण रानी।,
शीतल हो जा थाना वाली रोज़ चढ़ावां पानी।,
बाबा फरीद दीआन इस्माइल जोगी दी आन।,
आन तेनु तेरे गुरु गोरखनाथ दी।)
अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप 8194951381 पर संदेश भेज सम्पर्क करें। आपकी पात्रता आपकी सोच पर आधारित होगी।

मदानन माता की साधना

 सभी आदरणीय साधकसाधिकाओं एवं सभी बुद्धिजीवी और विद्वान जितने भी इस ब्लॉग को मेरे पढ़ रहे हैं उन सभी को मैं प्रणाम करता हूं।

सभी साधक भाई बहनों यह साधना एक इतनी उग्र भयंकर एवं तीव्र साधना है जिसकी शुरुआत तो बहुत सौम्यता से होती है लेकिन बाद में यह शक्ति बहुत उग्र हो जाती है और सिद्ध होने के बाद साधक को किसी भी आए हुए याचक की हर समस्या का निदान करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है यह मंत्र गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत है लेकिन मैं आपको यह प्रसंग वश मंत्र दे रहा हूं सबसे पहले एक बात मैं बताता हूं आप कितनी भी उग्र साधना कीजिए लेकिन उस उग्र साधना को कंट्रोल करने के लिए उस एनर्जी को कंट्रोल करने के लिए आपको शिव की शक्ति या गुरु की शक्ति की आवश्यकता होती है जो साधक अपने गुरु अपने इष्ट एवं अपने मंत्र पर भरोसा रख कर के चलेगा वह अवश्य में सफल होगा लेकिन यह आप कभी न सोचो कि आप इंटरनेट से या किसी पुस्तक से कोई मंत्र और विधि ले लोगे और आप सफल हो जाओगे क्योंकि अगर कोई भी व्यक्ति लोकी कोई बुक ले ले या मेडिकल की कोई बुक ले ले तो भी उसे टीचर की आवश्यकता पढ़नी है और वह मात्र उस पुस्तक को देख कर के व्यवहारिक ज्ञान नहीं सीख सकता क्यों की उस पुस्तक में जिस किसी ने भी कोई भी थ्योरी लिखी होगी तो वह उसके निजी अनुभव होंगे और यह साधना का ऐसा मार्ग है जिसमें सब के साथ एक जैसे अनुभव नहीं होते सब की जीवनी शक्ति अलग होती है एवं सभी का परिवेश अलग होता है संस्कार अलग होते हैं इष्ट देवता अलग होता है कुलदेवता अलग होता है इसीलिए शक्ति सिद्ध होने में कठिन हो जाती है अब आपको मैं इस प्रयोग की विधि और मंत्र देने जा रहा हूं कृपया इस पोस्ट को देखने के बाद इसका व्यवसायीकरण ना करें एवं इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंचाना ऐसा मन में भी ना सोचे यह साधना प्राय अमावस्या से या कृष्ण पक्ष में शुरू की जाती है और इस साधना से पहले खेड़ा पीर एवं ख्वाजा पीर की साधना की जाती है उसके बाद पुरुष साधक इसे 41 दिन और स्त्री साधक इसे 21 दिन के प्रयोग के रूप में साधना कर सकते हैं साधना में बुरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करना है भूमि पर सोना है एक समय खाना है और कम बोलना है साधना के दौरान किसी से झगड़ा लड़ाई झूठ कपट छल फरेब नहीं बोलना और ना ही करना आपको मनसा वाचा और करवाना कर्म से किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना ना ही काम का चिंतन करना है बस सुबह आपने खेड़े पर जाकर के और उन्हें स्नान कराने के उपरांत 5 वाला उनके मंत्र की करनी है

मन्त्र ये है

ॐ नमो आदेष गुरु जी जाग रे जाग 2200 ख्वाज़ा 2300 कुतब शिव गौरां की आन जाग जा दादा भूमिया मेरे गोरख गुरु का रख मान दुहाई तेरी माता की ।

और उसके बाद आपने अपने घर चला जाना है फिर रात्रि में साईं काल को अपने ख्वाजा पीर की कड़ाही और हाजरी तैयार करनी है और वहां जाकर के तीन माला ख्वाजा पीर के कलाम का जाप करना है

कलाम ये है।

बिस्मिल्लाहरेहनेरहीम 2200 ख्वाज़ा पांचों पीर उठ मेरे जिन्दा पीर दुहाई मौला अली की बीबी फात्मा की।दुहाई मेरे उसताद की।

उसके बाद घर आकर के रात्रि में 10:00 बजे से जाप शुरू करना है और 11 माला जाप करना है इसका मंत्र ऐसे हैं

माता गदहे सुल्लखनी मत्थे लायी रखदी मेहन्दड चारों कुंठा झुक रहियां झुक रिहा सारा देश मट जागे मसान जागे जागे थड़े दा पीर मेरी जगाई जाग माता मेरे गुरुआ दी जगाई जाग ऐसे काज सँवारो जैसे जोगी इस्माइल के कार्य सवारे चले मंत्र फुरो वाचा देखा माई मदान वाली महारानी मसानी इल्म का तमाशा।

इस मंत्र को आपने प्रतिदिन 11 माला जपना है और कोई भी वस्त्र पहन सकते हो और अपने सामने माता की तस्वीर रखनी है दीप धूप लगाना है फल फूल पान मिठाई रखनी है यह साधना संपन्न करके आप किसी का कोई काम कर सकते हो और आपको कोई रुकावट नहीं आएगी कोई भी आज तक आपके पास आएगा तो आपको किसी चीज की दिक्कत उसका काम मिनटों में हो जाएगा आपको करना क्या है आपको सुबह उठना है सुबह उठकर आपने नगर खेड़े के मंदिर पर जाना है भूमिया जैसे बोलते हैं और वहां उन को स्नान कराने के उपरांत आपको पांच माला उनका मंत्र जाप करना है उसके बाद आप को घर आ जाना है घर आने के उपरांत फिर आप घर में और कोई काम कर सकते हो लेकिन घर से बाहर नहीं जा सकते आपको फिर शाम को ख्वाजा पीर की हाजिरी तैयार करनी है उस हाजरी में मीठे चावल 4 मुंह वाला दीवा पांच बतासे 5 लोग 5 लाची 5 गुलाब के फूल 5 अगरबत्ती और दो मीठे पान लेने हैं और अगर चाहो तो आप दो पीस बर्फी के ले सकते हो वह आपको चलते पानी जहां पानी चलता हो साहब वहां जाना है और ख्वाजा साहब को हरदास करके आपको यह हाजिरी उनको दे देनी है और वहां बैठकर हाजिरी देने के बाद आपको पांच माला ख्वाजा पीर की जपनी है उसके बाद आप को घर आ जाना है फिर रात्रि में माता की फोटो के सामने बैठकर जहां आपने नारियल रखकर संकल्प किया था वहां आपने बैठकर माता की पूजन करनी है फल फूल पान मिठाई उसमें मुख्यतः यह आपने पूजा 10:00 बजे के करीब शुरू करनी है और आपको पांच बूंदी वाले लड्डू, पांच बतासे,पांच गुलाब के फूल, दो सेंट, 2 मीठे पान ,5-5 लौंग इलायची ,सभी को एक एक काजल का टीका लगाना है धूप दीप और 2 दिए चलेंगे एक देसी घी का और एक सरसों के तेल का आपको वहां बैठकर 11 माला जाप करनी है मां की जो मंत्र पहले दिया गया है उसको करने के बाद आपने यह सारा सामान ले जाना है किसी खाली ग्राउंड में वहां 4 मुंह वाला दिया लगाकर मां को अगरबत्ती लगाने के बाद यह सारा सामान खाली ग्राउंड या चौक में रख देना है और माता को अरदास करके घर वापस चलाना है हाथ पैर धो के घर में घुसने है और फिर आराम से भूमि पर सो जाना है इसी दौरान आपको विचित्र विचित्र अनुभूतियां होंगी क्योंकि यह प्रयोग मेरे चार लोग जो जानकार हैं उन द्वारा किया गया है।

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र साधना।

                क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र सिद्धि। 

इस मंत्र की विधि पूर्वक सिद्धि कर लेने पर आपको धन लाभ ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है और आपके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है अक्षय कीर्ति की प्राप्ति होती है धनधान्य राज्य भोग क्षेत्रपाल भैरव जी की कृपा से प्राप्त होता है बुरी आत्माओं के साए आपके घर से हट जाते हैं और जातक और उसका पूरा परिवार सुखी हो जाता है
              (शास्त्रिक मन्त्र विधान)
सबसे पहले क्षेत्रपालमन्त्र का प्रयोग बताया जा रहा है। 

इसका नवाक्षर मन्त्र इस प्रकार है 'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति नवाक्षरो मन्त्रः ।

               ।क्षेत्रपाल पूजन यन्त्र।।

अस्य विधानम्:-विनियोग अस्य क्षेत्रपालमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः। क्षेत्रपालो देवता क्षं बीजम् लः शक्तिः । सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास 
ॐ ब्रह्मऋषये नमः शिरसि ।। १।। 
ॐ गायत्रीछन्दसे नमः मुखे ।। २।। 
ॐ क्षेत्रपालदेवतायै नमः हृदि ।। ३।। 
ॐ क्षं बीजाय नमः गुह्ये ।। ४।। 
ॐ लः शक्तये नमः पादयोः । । ५ । 
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।। ६ ।। 
इति ऋष्यादिन्यासः 

करन्यास 
ॐ क्षां अंगुष्ठाभ्यां नमः || १ || 
ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः || २ || 
ॐ क्षू मध्यमाभ्यां नमः || ३ || 
ॐ क्षै अनामिकाभ्यां नमः || ४ || 
ॐ क्षौ कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।।५।।
ॐ क्षः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।। ६ ।। 
इति करन्यासः । 

हृदयादिषडङ्गन्यास : 
ॐ क्षां हृदयाय नमः || १|| 
ॐ क्षीं शिरसे स्वाहा ।। २।। 
ॐ क्षं शिखायै वषट् ।। ३।। 
ॐ क्षै कवचाय हुम् ।। ४।। 
ॐ क्षी नेत्रत्रयाय वौषट् ।। ५ ।।
ॐ क्षः अस्त्राय फट् ।। ६ ।। 

इति हृदयादिषडङ्गन्यासः

इस प्रकार न्यास करके ध्यान करे।

अथ ध्यानम् :- ॐ नीलाञ्जनादिनिभूमूर्द्धपिशङ्गकेशं वृत्तोग्रलोचनमुदान्तगदाकपालम् । आशाम्बरं भुजङ्गभूषणमुग्रदंष्ट्रं क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् ।। १।।

इति ध्यात्वा मानसोपचारैः सम्पूजयेत्। 
ततः पीठादा रचिते सर्वतोभद्रमण्डलेमण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताः संस्थाप्य ॐ मं मण्डूकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवताभ्यो नमः।' इति सम्पूजयेत् । अस्य पीठशक्त्यादेरभावः। 

ततः स्वर्णादिनिर्मितं यन्त्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्ध्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावहनादिपुष्पान्तैरुपचारैः सम्पूज्यावरण पूजां कुर्यात् तद्यथा।

इससे ध्यान करके मानसोपचारों से पूजा करके पीठादि पर रचित सर्वतोभद्रमण्डल में मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताओं की स्थापना करके ॐ मं मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताभ्यो नमः इससे पूजा करे। इसकी पीठशक्तियों आदि का अभाव है। इसके बादस्वर्णादि से निर्मित यन्त्र या मूर्ति को ताम्रपात्र में रखकर घी से उसका अभ्यन करके उस पर दुग्धधारा और जलधारा देकर स्वच्छ वस्त्र से उसे सुखाकर पीठ के बीच संस्थापित करके और प्राणप्रतिष्ठा करके, पुनः ध्यान करके, मूलमन्त्र से मूर्ति की कल्पना करके आवाहनादि से लेकर पुष्पान्त उपचारों से पूजन करके इस प्रकार आवरण पूजा करे 

षट्कोण केसरों में आग्नेयादि चारों दिशाओं में और मध्य दिशा में ॐ क्षां हृदयाय नमः । हृदयश्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः। 
इति सर्वत्र || १|| 
श्री शिरसे स्वाहा'। शिरः श्रीपा० ।। २।। 
ॐ क्षू शिखायै वषट्। शिखा श्रीपा० || ३ || 
ॐ क्षै कवचाय हुम्। कवच श्रीपा० ।। ४ ।। 
ॐ क्षीं नेत्रत्रयाय वौषट् । नेत्रत्रय श्रीपा० ।। ५ ।। 
ॐ क्षः अस्त्राय फट् । अस्त्र श्रीपा० ।। ६ ।।

इससे षडङ्गों की पूजा करे। इसके बाद पुष्पाञ्जलि लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण करके :

'ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् || १|| यह पढ़कर और पुष्पाञ्जलि देकर पूजितास्तर्पिताः सन्तु यह कहे। इति

प्रथमावरण ||१||

इसके बाद अष्टदलों में पूज्य और पूजक के अन्तराल में प्राची तथा तदनुसार अन्य दिशाओं की कल्पना करके प्राची क्रम से : 

ॐ अग्निलाख्याय नमः। अग्निलाख्यश्रीपा० ।। १।। 
ॐ अग्निकेशाय नमः । अग्निकेश श्रीपा०|| २ || 
ॐ करालाय नमः' । करालश्रीपा० ।। ३ ।। 
ॐ घण्टारवाय नमः । घण्टारवश्रीपा०|| ४ || 
ॐ महाकोपाय नमः। महाकोप श्रीपा०|| ५|| 
ॐ पिशिताशनाय नमः पिशिताशन श्रीपा०|| ६ || 
ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः। पिङ्गलाक्ष श्रीपा० ।।७।।
ॐ ऊर्ध्वकेशाय नमः ऊर्ध्वकेशश्रीपा०|८|

इससे आठों की पूजा करके पुष्पा अलि देवे। इसके बाद भूपुर में पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि दश दिक्पालों और वज्रादि आयुधों की पूजा करके बलि दे ।

'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति मन्त्रेण माषभक्तवलिं दत्त्वार्धरात्रे पुनर्बलिं दद्यात् । अस्य पुरश्चरणं लक्षजपः। तत्तदशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं कुर्यात्। एवं कृते क्षेत्रपालः प्रसन्नो भवति । 

तथा च 'लक्षमेकं जपेन्मन्त्रं जुहुयात्तद्दशांशतः। चरुणा घृतसिक्तेन ततः क्षेत्रे समर्चयेत् ।। १।। बलिनानेन सन्तुष्टः क्षेत्रापालः प्रयच्छति। कान्तिमेघाबलारोग्यतेजः पुष्टियशःश्रियः इति क्षेत्रपालनवाक्षरमन्त्रप्रयोगः ।। १।।

'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इस मन्त्र से उड़द और भात की बलि देकर आधी रात को पुनः बलि देवे। 
इसका पुरवरण एक लाख जप है। फिर तत्तदशांश से क्रमश: होम, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन करवावें। ऐसा करने पर क्षेत्रपाल प्रसन्न होते हैं। कहा भी गया हैकि एक लाख मन्त्र का जप करे और उसका दशांश चरु और घी से होम करे। इसके बाद पूजन करे। इस बलि से सन्तुष्ट क्षेत्रपाल साधक को अक्षय कान्ति उत्कृष्ट मेधा अतुल बल,आरोग्य, प्रचंड तेज,पुष्टि अत्यंत यश और अक्षय लक्ष्मी देता है।

        इति क्षेत्रपाल नवाक्षर मन्त्र सिद्धि प्रयोग समाप्त।


कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।   यहाँ मैं स्...