गुरुवार, 3 नवंबर 2022
श्यामा काली सिद्धि
मंगलवार, 1 नवंबर 2022
घर की शांति
शांतिकर्म के कर्म में गृहशांति के प्रयोग दिये गये हैं। यह प्रयोग नवग्रहों वाली शांति से भिन्न है।
इसमें घर के अंदर विभिन्न प्रकार के दैवीय कारणों से उत्पन्न होने वाली आपत्तियों-विपत्तियों के लिए ये प्रयोग दिया गया है।
घर के शांत-सुखद वातावरण को कलुषित और अशांत करने के बहुत से कारण होते हैं।
उनमें से चार कारणों को प्रमुखता से देखा जा सकता है। गृह अशांति के चार प्रमुख कारण भौतिक, दैविक, अभिचारिक और पित-प्रेत दोष हैं।
व्यक्ति के दुराग्रह, स्वभाव की कटुता और हठधर्मिता से उत्पन्न विवादास्पद परिस्थितियों से होने वाली अशांति तथा अनावश्यक रूप से वाद-विवाद के प्रकरण खड़े कर देने में गृह की शांति भंग हो जाती है।
जब व्यक्ति स्वयं को दूसरों की अपेक्षा उच्च, श्रेष्ठ और ज्ञानी मानकर दूसरों को उपेक्षा और लघुता की दृष्टि से देखता है, तब भी जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर किसी व्
इस प्रकार कहा जा सकता है कि गृह अशांति के भौतिक कारण व्यक्ति द्वारा स्वयं ही उत्पन्न किए हुए होते हैं। गृह-शांति को प्रभावित करने में इस जन्म और पूर्व जन्म के पाप-कर्म अधिक प्रभावी होते हैं और इन्हीं को गृह-अशांति के लिए दैविक कारण माना जाता है।
काफी लग्न, श्रम और योग्यता के बाद भी किसी व्यक्ति को उसके क्षेत्र में निरंतर असफलता मिलते जाने को दैविक कारण के अलावा और भला कहा भी क्या जा सकता है।
दुरैव की दिशा में कभी-कभी आनुष्ठानिक व्यवस्थाएं भी निष्फल ही सिद्ध होती हैं किंतु ऐसी विषम परिस्थिति में शाबर मन्त्र साधना बड़ी प्रभावी होती है।
अभिचारिक कर्मों द्वारा जब किसी के गृह की शांति को अशांति में बदल दिया जाता है तो उस व्यक्ति और उसके परिवार की स्थिति विक्षिप्तों के समान हो जाता है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है. जब तक कि अभिचार कमों के प्रतिकार स्वरूप कुछ उपाय न किए जाएं। ऐसे उपायों का शाबर मंत्रों में महत्वपूर्ण स्थान है।
पित्रात्माएं सभसे अधिक अपना प्रभाव संतति और व्यवसाय पर कुप्रभाव डालती है। पितृत्माओं के रुष्ट हो जाने पर बिना कोई कारण सामने आए आय के स्रोत अवरुद्ध होते प्रति हीने लगते हैं। और बने बनाए काम भी बिगड़ते दिखाई देते हैं। व्यक्ति करना और कहना ती कुछ चाहता है, जबकि स्वतः होता कुछ और कहा कुछ और। ऐसे व्यक्ति को रात की नींद और दिन का चैन उड़ जाता है।
पितत्माओं के समान ही प्रेत भी वायवीय प्राणी होते हैं। उनके पास भौतिक देह नहीं होती। यही कारण है कि वे किसा भी प्रकार की कामना और वासना आदि से वंचित होते हैं।
जब उन्हें अपनी अतृप्त कामना या वासना की पूर्ति करनी होती है तो ये किसी माध्यम (स्त्री-पुरुष, बालक आदि) के द्वारा ही ऐसा करते हैं।
प्रेतों में परकाया प्रवेश की सामर्थ्य होती है। वे प्रायः इस प्रकार के लोगों की अपना माध्यम बनाते हैं, जो दुराचारी, अपवित्र, अभक्षी और दुष्ट प्रकृति के जोकि इस प्रकार के स्त्री-पुरुषों को भी अपना शिकार बना लेते हैं, जिनसे कभी उनकी शत्रुता रही हो अथवा जिनके कारण उन्हें मृत्यु का ग्रास बनना पड़ा हो।
किसी भी व्यक्ति को प्रेतग्रस्त स्थिति दो प्रकार की होती है। पहली स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति प्रेत के आवेश से कांपने लगता है और उसका स्वर-भंग होकर बदल जाता है। उस व्यक्ति की आँख लाल होने लगती हैं और वह अपने सामान्य बन सामय की अपेक्षा कई गुना अधिक शक्तिशाली प्रतीत होने लगता है। प्रेत आवेशित व्यक्ति यदि कुछ खाने पीने की वस्तुओं को ग्रहण करता है तो वह वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि उस प्रेत द्वारा ग्रहण की जाती है। दूसरी स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति के ऊपर प्रेत का आवेश स्पष्ट रूप दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि ऐसा व्यक्ति कुछ विचित्र प्रकार के कार्य करने लगता है। कभी-कभी प्रेत-पीड़ा में व्यक्ति पर न तो किसी प्रकार का आवेश ही दृष्टिगत होता है और न ही उसके कार्यों में किसी प्रकार की विचित्रता प्रकट होता है। प्रेतग्रस्त दशा को इस स्थिति का आभास एकाएक ही उस व्यक्ति अथवा उसके परिवार पर आने वाले अकल्पित संकटों और परिस्थितियों से होता है।
प्राय: प्रेतात्माएं चार प्रमुख कारणों से व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। इन कारणों में पहला कारण तो यह है कि स्वयं प्रेत अपनी वासनापूर्ति के कारण स्त्री पुरुष की ओर आकर्षित होती है।
दूसरा कारण किसी व्यक्ति द्वारा प्रेत के जीवनकाल से जुड़े प्रतिशोध को माना जाता है।
तीसरा कारण व्यक्ति का अपवित्र वातावरण में रहना अथवा अपवित्रता को ग्रहण करना है। प्राय: प्रेतात्माए अपवित्रता को पसंद करती हैं;
अतः वे स्वभावतः इस प्रकार के व्यक्ति को अपना शिकार बना लेती हैं।
ओझा-तांत्रिक के द्वारा प्रेतात्मा को आहूत करके किसी व्यक्ति विशेष को शिकार बनाने के लिए प्रेरित करना होता है।
इस लेख में विभिन्न प्रकार के शांति-पष्टि कर्म हेतु एक विशेष शाबर में को प्रस्तुत किया गया है।
इस मंत्र की नियमानुसार सिंद्धि कर लने पर ये अपना यथोचित प्रभाव प्रकट करने लगते हैं।
ग्रहशांति हेतु विशिष्ट शाबर मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु को!
घर बांधू घर-कोने बांधू और बांधू सब द्वारा,
जगह-जमीन को संकट बांधू बांधू मैं चौबारा।
फिर बांधू मैली मुसाण को और कीलं पिछवाड़ा,
आगे-पीछे डाकन कीलू आंगन और पनाड़ा।
कोप करत कुलदेवी कीलू पितरों का पतराड़ा।
कीलू भूत भवन की भंगन,
कीलूं कील कील नरसिंग।
जय बोलो ओम नमो नरसिंह भगवान करो सहाई,
या घर को रोग-शोक,
दुःख-दलिहर, भूत-परेत,
शाकिनी-डाकिनी,
मैली मशाण नजर-टोना,
न भगाओ-तो लाख-लाख आन खाओ।
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र सांचा,
ईश्वरोवाचा ॐ नमो गुरु को।
यह विशिष्ट शाबर मंत्र किसी पर्व सूर्य चन्द्र ग्रहण दीपावली व होलिका दहन की रात्रि में भी सिद्ध किया जाता है।
इस रात्रि में एक एकांत कमरे में गो-घृत का दीप प्रज्वलित करके एक चौकी पर रखा जाए। उस चौकी पर नया लाल अथवा गुलाबी रंग का रेशमी कपडा बिछा दिया जाए। चौकी के बीचों-बीच पुओं का ढेर स्थापित करके उसमें ईश्वरीय रूप-भाव की आस्था करें। फिर उसका हल्दी, गुड़ और धूपादि से पूजन करें। तत्पश्चात् उपरोक्त मंत्र की एक माला का जप करके मंत्र को सिद्ध कर लें। और पुओं के ढेर को किसी तालाव अथवा नदी में विसर्जित कर दें।
जब गृह शांति के लिए इस मंत्र की आवश्यकता हो तो रात्रिकाल में नागफनी का कील लें। बाधा-पीडित ग्रह के किसी साफ-स्वच्छ कमरे में एक नए गुलाबी के कपड़े को काष्ठ की एक चौकी पर बिछा दें। चौकी पर सात अन्न की ढेरिया और चौकी के चारों कोनों पर सात-सात पूडी रख दें। प्रत्येक पूड़ी के ढेर पर हलवे कुछ मात्रा रखें।
चौकी पर पंचमेवा, फल और प्रसाद भी रखें। चौकी के नीचे या चावल के छोटे-से ढेर पर एक दीपक जलाकर रखें। धूप-आरबत्ती से वातावरण को सुगंधित बनाते हुए नौ कीलें तथा नौ नींबुओं पर इक्यावन बार सिद्ध कीए गए मंत्र का जप करें तत्पश्चात् नौ कोलों को नौ नौबुओं में गाड़ दें।
इन कीलित नींबुओं में से चार नींबुओं को गृह के चारों कोनों में गाड़ दें।
एक कोलित नींबू गृह के प्रवेश द्वार पर,
एक जल रखने के स्थान पर,
एक गृह के आगे,
एक पीछे और
एक नींबू पतनाले के नीचे गाड़ देना चाहिए।
इन कीलित नींबुओं को गाढ़ते समय बराबर मंत्र जाप करते रहना चाहिए।
यह सम्पूर्ण उपाय करने के उपरांत चौकी तथा चौकी के नीचे रखे सभी उन पदार्थों को, जो इस उपाय में प्रयुक्त किए गए थे, उन्हें किसी एकांत स्थान पर रख आएं। उपरोक्त प्रक्रिया करने से गृह बाधा से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी को करने पर विशेष लाभ मिलता है। इस प्रयोग के अगले दिन गृह स्वामी प्रातः यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन, गाय को चारा-पानी तथा दान-पुण्य करें।
माता मैदानन को खुद शांत करें।
माता मैदानन जोकि जो कि पूरे उत्तर भारत में पूजी जाती हैं ये देवी हर एक घर में पूजी जाती है और सभी की मनोकामना पूरी होती हैं। एक समय की बात है जब सबल सिंह बावरी पीर जंग में मुगलों के साथ लड़ रहे थे तो माता शाम कोर को उन्होंने मुगलों से बचाया और अपने साथ ले आए ।और उसके बाद वह और जंगल में शिकार करने चले गए जब माता मैदानन ने माता शाम कोर को अपनी चुनरी उड़ा दी उतने में बाबा सबल सिंह बावरी वापस लौटे तो क्या देखते हैं माता मैदानन अपनी खटिया पर बैठी हुई है जब माता मैदानन को उन्होंने तीन बार बहन संबोधन किया लेकिन जब देखा तो वह माता श्याम कौर थी तब सबल सिंह बावरी ने यह वचन दिया कि आज के बाद आप मेरी बहन हो और मैं आपकी हर तरह से रक्षा करूंगा। कुछ देर बार बाबा बावड़ी को कुछ दिनों बाद बाहर शिकार पर जाना पड़ा और उतने में मुगल श्याम कौर को ढूंढते ढूंढते वहां पर आ पहुंचे।और माता श्याम कौर को उठाकर के अपहरण करके ले जाने लगे इतने में मैदानन ने अपना इलम चलाया और इल्म से माता श्याम कौरके शीश को धड़ से अलग कर दिया देख कर के मुगल हक़के-बक्के रह गए और कुछ बनता ना देख कर के मुगल भागने लगे उनके धड़ को लेकर के लेकिन शीश उनसे छूट गया जब आगे जाकर कि उन्होंने देखा कि शाम कौर का शीश हमसे छूट गया है तो उन्होंने उनका संस्कार करना उचित समझा उतने से बाबा बावड़ी शिकार करके जब लौटते हैं तो माता मदानन उनको सभी वृतांत बताती है तो बाबा एक श्मशान में काम चांडाल का वेश धारण करके मुगलों के पहले शमशान में जाकर बैठ जाते हैं और इतने में मुगल आते हैं और उन्हें श्मशान में शाम कोर का संस्कार करने को कहते हैं बाबा बावड़ी इतने में बोलते हैं कि रात्रि में शव का अंतिम संस्कार इस धर्म में नहीं किया जाता यह सुनकर के सभी मुगल हक्के बक्के रह गए और धन देकर के बाबा को मनाने की कोशिश करने लगे काम बनता ना देख लो और सोना देने का प्रस्ताव रखा और बावरी पीर ने बोल दिया कि मैं सबका संस्कार कर दूंगा मुगलों के जाने के बाद बाबा बावरी ने मैदानन को बुलाया और माता मदानण ने अपने ईल्म से श्याम कौर का शीश छोड़ दिया । बाबा सबल सिंह बावरी माता मदानण से बहुत खुश हुए और बोले आज के बाद दोनों बहने थी रहोगी बाबा सबल सिंह बावरी ने माता मदानण को माता श्याम कौर की रक्षा करने के लिए भविष्य में रक्षा करने के लिए कहा और समय निकल जाने के बाद जब माता मैदानन की आयु पूरी हुई तो उनका देहांत हो गया अब वहां से नागा गुरु निकल रहे थे तो उन्होंने देखा कि प्रसिद्ध सबल सिंह की बहन का संस्कार हो रहा है जो कि श्मशान क्रिया उनका नित्य प्रति का कार्य था माता मदानण संस्कार हो रहा था तो उन्होंने उनकी चिता जगा ली जब उनको चिता को जगाया गया तो बाबा ने सवाल पूछे तो माता मदान वाली ने उत्तर में जवाब दिया कि मैं कच्चे में पक्के में छिले में मरगत में सूतक में पातक में छोटे के बड़े के नीच का भेद किए बिना सभी कार्य आपके करूंगी लेकिन हे गुरु जो आप देख लेते हो वही भेंट लूंगी तो दोस्तों वह भी बची की होती है।
***********।शांत करने के तरीके ।*****1.कच्चे दूध में गंगा जल साधारण जल और थोड़े से बतासे और कुछ कच्चे चावल मिला करके माता को सींचने से माता शांत होती हैं ।
2. माता के थानों पर प्रतिदिन झाड़ू लगाने से माता की प्रकोप भी शांत हो जाती है।
3.गुरु गोरखनाथ की पूजा करने से माता का क्रोध शांत हो जाता है ।
4.नगर खेड़ा महाराज की सेवा करने से माता की ग्रुप शांत हो जाती है ।
5.प्रतिदिन कच्ची कड़ाही देने से माता की कॉपी शांत हो जाती है ।
6.घर में प्रातः काल सुबह उठकर के कच्ची लस्सी का छीटा मारने से माता शांत हो जाती है ।
7. 5 या 11 ईंटे लेकरके उनका (वादा गेहना)उठाने से माता शांत हो जाती है।
8.शीतला माता को सींचने से माता मदानण की कृति शांत हो जाती है ।
9.दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाने से माता शांत हो जाती है । 10.देवी भागवत करने से या पढ़ने से घर में माता शांत हो जाती है।
11.दहलीज साफ रखने से माता की कृति शांत हो जाती है 12.उतारा करने से माता शांत हो जाती है ।
*****शीतला माता मैदानन मशानी माता का शांति मन्त्र*****
(माई शीतला गधे सवारी नाल मदानण रानी।,
शीतल हो जा थाना वाली रोज़ चढ़ावां पानी।,
बाबा फरीद दीआन इस्माइल जोगी दी आन।,
आन तेनु तेरे गुरु गोरखनाथ दी।)
अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप 8194951381 पर संदेश भेज सम्पर्क करें। आपकी पात्रता आपकी सोच पर आधारित होगी।
मदानन माता की साधना
सभी आदरणीय साधकसाधिकाओं एवं सभी बुद्धिजीवी और विद्वान जितने भी इस ब्लॉग को मेरे पढ़ रहे हैं उन सभी को मैं प्रणाम करता हूं।
सभी साधक भाई बहनों यह साधना एक इतनी उग्र भयंकर एवं तीव्र साधना है जिसकी शुरुआत तो बहुत सौम्यता से होती है लेकिन बाद में यह शक्ति बहुत उग्र हो जाती है और सिद्ध होने के बाद साधक को किसी भी आए हुए याचक की हर समस्या का निदान करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है यह मंत्र गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत है लेकिन मैं आपको यह प्रसंग वश मंत्र दे रहा हूं सबसे पहले एक बात मैं बताता हूं आप कितनी भी उग्र साधना कीजिए लेकिन उस उग्र साधना को कंट्रोल करने के लिए उस एनर्जी को कंट्रोल करने के लिए आपको शिव की शक्ति या गुरु की शक्ति की आवश्यकता होती है जो साधक अपने गुरु अपने इष्ट एवं अपने मंत्र पर भरोसा रख कर के चलेगा वह अवश्य में सफल होगा लेकिन यह आप कभी न सोचो कि आप इंटरनेट से या किसी पुस्तक से कोई मंत्र और विधि ले लोगे और आप सफल हो जाओगे क्योंकि अगर कोई भी व्यक्ति लोकी कोई बुक ले ले या मेडिकल की कोई बुक ले ले तो भी उसे टीचर की आवश्यकता पढ़नी है और वह मात्र उस पुस्तक को देख कर के व्यवहारिक ज्ञान नहीं सीख सकता क्यों की उस पुस्तक में जिस किसी ने भी कोई भी थ्योरी लिखी होगी तो वह उसके निजी अनुभव होंगे और यह साधना का ऐसा मार्ग है जिसमें सब के साथ एक जैसे अनुभव नहीं होते सब की जीवनी शक्ति अलग होती है एवं सभी का परिवेश अलग होता है संस्कार अलग होते हैं इष्ट देवता अलग होता है कुलदेवता अलग होता है इसीलिए शक्ति सिद्ध होने में कठिन हो जाती है अब आपको मैं इस प्रयोग की विधि और मंत्र देने जा रहा हूं कृपया इस पोस्ट को देखने के बाद इसका व्यवसायीकरण ना करें एवं इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंचाना ऐसा मन में भी ना सोचे यह साधना प्राय अमावस्या से या कृष्ण पक्ष में शुरू की जाती है और इस साधना से पहले खेड़ा पीर एवं ख्वाजा पीर की साधना की जाती है उसके बाद पुरुष साधक इसे 41 दिन और स्त्री साधक इसे 21 दिन के प्रयोग के रूप में साधना कर सकते हैं साधना में बुरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करना है भूमि पर सोना है एक समय खाना है और कम बोलना है साधना के दौरान किसी से झगड़ा लड़ाई झूठ कपट छल फरेब नहीं बोलना और ना ही करना आपको मनसा वाचा और करवाना कर्म से किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना ना ही काम का चिंतन करना है बस सुबह आपने खेड़े पर जाकर के और उन्हें स्नान कराने के उपरांत 5 वाला उनके मंत्र की करनी है
मन्त्र ये है
ॐ नमो आदेष गुरु जी जाग रे जाग 2200 ख्वाज़ा 2300 कुतब शिव गौरां की आन जाग जा दादा भूमिया मेरे गोरख गुरु का रख मान दुहाई तेरी माता की ।
और उसके बाद आपने अपने घर चला जाना है फिर रात्रि में साईं काल को अपने ख्वाजा पीर की कड़ाही और हाजरी तैयार करनी है और वहां जाकर के तीन माला ख्वाजा पीर के कलाम का जाप करना है
कलाम ये है।
बिस्मिल्लाहरेहनेरहीम 2200 ख्वाज़ा पांचों पीर उठ मेरे जिन्दा पीर दुहाई मौला अली की बीबी फात्मा की।दुहाई मेरे उसताद की।
उसके बाद घर आकर के रात्रि में 10:00 बजे से जाप शुरू करना है और 11 माला जाप करना है इसका मंत्र ऐसे हैं
माता गदहे सुल्लखनी मत्थे लायी रखदी मेहन्दड चारों कुंठा झुक रहियां झुक रिहा सारा देश मट जागे मसान जागे जागे थड़े दा पीर मेरी जगाई जाग माता मेरे गुरुआ दी जगाई जाग ऐसे काज सँवारो जैसे जोगी इस्माइल के कार्य सवारे चले मंत्र फुरो वाचा देखा माई मदान वाली महारानी मसानी इल्म का तमाशा।
इस मंत्र को आपने प्रतिदिन 11 माला जपना है और कोई भी वस्त्र पहन सकते हो और अपने सामने माता की तस्वीर रखनी है दीप धूप लगाना है फल फूल पान मिठाई रखनी है यह साधना संपन्न करके आप किसी का कोई काम कर सकते हो और आपको कोई रुकावट नहीं आएगी कोई भी आज तक आपके पास आएगा तो आपको किसी चीज की दिक्कत उसका काम मिनटों में हो जाएगा आपको करना क्या है आपको सुबह उठना है सुबह उठकर आपने नगर खेड़े के मंदिर पर जाना है भूमिया जैसे बोलते हैं और वहां उन को स्नान कराने के उपरांत आपको पांच माला उनका मंत्र जाप करना है उसके बाद आप को घर आ जाना है घर आने के उपरांत फिर आप घर में और कोई काम कर सकते हो लेकिन घर से बाहर नहीं जा सकते आपको फिर शाम को ख्वाजा पीर की हाजिरी तैयार करनी है उस हाजरी में मीठे चावल 4 मुंह वाला दीवा पांच बतासे 5 लोग 5 लाची 5 गुलाब के फूल 5 अगरबत्ती और दो मीठे पान लेने हैं और अगर चाहो तो आप दो पीस बर्फी के ले सकते हो वह आपको चलते पानी जहां पानी चलता हो साहब वहां जाना है और ख्वाजा साहब को हरदास करके आपको यह हाजिरी उनको दे देनी है और वहां बैठकर हाजिरी देने के बाद आपको पांच माला ख्वाजा पीर की जपनी है उसके बाद आप को घर आ जाना है फिर रात्रि में माता की फोटो के सामने बैठकर जहां आपने नारियल रखकर संकल्प किया था वहां आपने बैठकर माता की पूजन करनी है फल फूल पान मिठाई उसमें मुख्यतः यह आपने पूजा 10:00 बजे के करीब शुरू करनी है और आपको पांच बूंदी वाले लड्डू, पांच बतासे,पांच गुलाब के फूल, दो सेंट, 2 मीठे पान ,5-5 लौंग इलायची ,सभी को एक एक काजल का टीका लगाना है धूप दीप और 2 दिए चलेंगे एक देसी घी का और एक सरसों के तेल का आपको वहां बैठकर 11 माला जाप करनी है मां की जो मंत्र पहले दिया गया है उसको करने के बाद आपने यह सारा सामान ले जाना है किसी खाली ग्राउंड में वहां 4 मुंह वाला दिया लगाकर मां को अगरबत्ती लगाने के बाद यह सारा सामान खाली ग्राउंड या चौक में रख देना है और माता को अरदास करके घर वापस चलाना है हाथ पैर धो के घर में घुसने है और फिर आराम से भूमि पर सो जाना है इसी दौरान आपको विचित्र विचित्र अनुभूतियां होंगी क्योंकि यह प्रयोग मेरे चार लोग जो जानकार हैं उन द्वारा किया गया है।
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022
क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र साधना।
दीपक से मनोकामना पूर्ति।
रविवार, 23 अक्टूबर 2022
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