सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

रक्षा मन्त्र

साधना में प्रयोग होने वाला सर्व सिद्ध रक्षा मंत्र

ओम गुरु जी 
भय कीलूँ 
भंडासुर कीलूँ 
कीलूँ अपनी गात
जलता मसाण कीलूँ
कीलूँ भूत की जात 
चार कुंठ की विद्या कीलूँ 
गुरु गोरख मेरे साथ 
आसन बैठूं करूँ तेरा ध्यान
जो कोई हम पर करे करावे 
उसकी विद्या खुद बन्ध जावे 
शब्द मेरा न खाली जावै
दोहाई चौसठ जोगियों की दुहाई 
दहाई बावन वीरों की
नौ नाथ चौरासी सिद्धों की 
दुहाई मरघटी काली की
दुहाई मेरे गुरु उस्ताद की 
चले मंत्र फुरो वाचा 
देखा गुरु उस्ताद 
तेरी कील का तमाशा।

यह मंत्र अस्सी कोस की मैली विद्या को बांध देता है जिनके घरों में गद्दी चलती हैं और वह दूसरों को देखने का काम करते हैं या जो जानकार लोग हैं और समाज कल्याण हेतु दूसरों को देखने का काम करते हैं 
उनके लिए यह एक बहुत कल्याणकारी मंत्र है जब आप  जाप पाठ पूजा कुछ भी करते हैं तो बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो आपके ऊपर आंखें गड़ाए रहते हैं और मौका पाते ही अपनी बुरी शक्तियों द्वारा आपकी विद्या को बांधने की  कोशिश करते हैं
या फिर आप के ऊपर कोई तंत्र शक्ति द्वारा प्रहार करने की कोशिश करते हैं 
ऐसे में यह मंत्र बहुत कारगर साबित होता है  
इस मंत्र का किसी होली दिपावली दशहरे के समय एक हजार आठ बार जाप करके सिद्ध करें 

इस मंत्र को सिद्ध करने की विधि इस प्रकार है कि शुभ समय पर अच्छे मुहूर्त में घर के किसी एकांत कोने में या कमरे में सवा हाथ जमीन पर आपको गाय के गोबर से लीपकर एक गोल चौंका लगाना है उसके ऊपर एक जल का पात्र धरें कुछ फूल पान मिठाई एक नारियल एक ध्वजा गुरु गोरखनाथ जी के लिए एक सवा 7 मीटर की पगड़ी उसमें 101 रुपये धरें 
फिर सरसों के तेल का एक दीपक जला दे धूफ दें वहीं पर बैठकर मन्त्र  का 1008 बार जाप करें और वहीं बैठकर 108 बार जौ तिल हवन सामग्री देसी घी मिलाकर हवन करें।
इतना होने के बाद उक्त पगड़ी और दक्षिणा गुरु गोरखनाथ जी के नाम से उनके स्थान पर दें इस तरह ये मन्त्र सिद्ध हो जाता है
उसके उपरांत आपको जब गद्दी पर बैठना हो तो सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करके फिर गुरु गोरक्षनाथ का ध्यान करके इस मंत्र का 108 बार जाप कर के चारों दिशाओं में फूक मार दे तो किसी का भी वार आपके ऊपर और आपकी गद्दी पर नही चलेगा जो आपकी गद्दी बांधने या आप पर वार करने की कोशिश करेगा उसकी सारी विद्या खुद ही बंद हो जाएगी 
चाहे वह किसी भी शक्ति के माध्यम से आपके ऊपर वार करेगा वह वार उसी पर पलट जाएगा
धीरे धीरे उसका किया कराया उसी के ऊपर चढ़ जाएगा।

रविवार, 19 सितंबर 2021

पित्र दोष कारण लक्षण और सामान्य उपाय

सितंबर 2021 में 21 तारीक से पित्र पक्ष प्रारंभ होने जा रहे हैं।
(पितृ पक्ष)
15 दिनों का एक पक्ष होता है दो पक्षों से महीना और सामान्यतः 12 महीनों के एक वर्ष होता है 
इसमें क्रमशः एक से लेकर पंद्रह  तिथियां होते हैं पूरे साल में यही 15 तिथियां  बार-बार आती रहती हैं
इसीलिए जो कोई मृतक जिस तिथि को मृत्यु को प्राप्त हो उसी तिथि को उसका श्राद्ध होता है।
इस प्रकार इन पंद्रह तिथियों में पूरे वर्षभर में होने वाले ददेहावसानों का श्राद्ध इन पंद्रह दिनों में ही किया जाता है।

भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में खास तौर पर गरूड़ पुराण में  मृत्यु और पुर्नजन्म की व्याख्या बहुत ही विस्तृत रूप से बताई गई है।

जिसके अनुसार मृत्यु के बाद केवल अधिभौतिक देह नष्ट होती है,लेकिन आत्मा अमर रहती है। जो मृत्यु के बाद फिर से जीवन चक्र में और जन्म लेती है जिसे पुर्नजन्म कहा जाता है। 

हमारे शास्त्रों में जीवित लोगों के साथ-साथ मृत व्यक्तियों को भी भोजन और तर्पण के जरिए मुक्ति दिलाने के बारे में बताया गया है। 

आज हम आपको पितृदोष के लक्षण, कारण और उपचार के बारे में बताते हैं जिससे आप इसके असर से समय रहते ही बच सकें या कम कर सकें। 

प्रेत दोष से कैसे बनता है पितृ दोष ?
पितृदोष क्या होता है ?

दरअसल अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विधि विधान से अंतिम संस्कार न किया जाए या किसी की अकाल मृत्यु हो जाए तो  वो प्रेत बनता है  

उस मनुष्य की आत्मा मुक्ति के लिए विधिवत नारायण बलि करवानी चाहिए ताकि जो आकाल मृत्यु वाले मनुष्य की नारायण बलि नहीं करवाते वो व्यक्ति प्रेत बनता है 

उक्त व्यक्ति से जुड़े परिवार की कई पीढ़ियों को तक प्रेत पीड़ा की वजह से पितृदोष का दंश झेलना पड़ता है। और हर प्रकार से  कारोबार में नुकसान होता रहता है और वंश वृद्धि में भी रूकावट ,परिवार में अशांति होती है इसके लक्षणों से मुक्ति के लिए जीवन भर उपाय करने की जरूरत होती है।

पितृ दोष के पैदा होने वाले कुछ लक्षण आपको बता रहा हूँ
 
1. संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना।

2. नौकरी, व्यापार में हानि, बरकत न हो बार बार नुकसान होना ।

3. परिवार में एकता न होना, लड़ाई झगड़े हर समय बनी रहना  अशांति रहना ।

4. घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना।

5. घर के युवक-यु‍वतियों का विवाह न होना या विवाह में विलंब होना।

6. अपनों के जरिए धोखा मिलना।

7. दुर्घटनादि होना, उनकी पुनरावृ‍त्ति होना।

8. मांगलिक कार्यों में विघ्न होना।

9. परिवार के सदस्यों में किसी को मानसिक-बाधा होना इ‍त्यादि।

10. घर में हमेशा तनाव और कलेश रहना।

अगर आपको अपने घर में कुछ ऐसे ही लक्षण दिखाई दें तो की विद्वान ब्राह्मण से मिलकर उपाय अवश्य करवाएं

पितृ दोष लगने के कुछ सामान्य कारण आपको बता रहा हूँ

1.पितरों का विधिवत् संस्कार, श्राद्ध न होना।

2. पितरों की विस्मृति या अपमान।

3. धर्म विरुद्ध आचरण।

4. वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि कटवाना।

5. नाग की हत्या करना, कराना या उसकी मृत्यु का कारण बनना।
6. गौहत्या या गौ का अपमान करना।

7. नदी, कूप,तड़ाग या पवित्र स्थान पर मल-मूत्र विसर्जन।

8. कुल देवता,देवी, इत्यादि का अपमान करना।

9. पवि‍त्र स्थल पर गलत कार्य करना।


पितृ दोष निवारण के उपाय :-

1.पितरो के लिए सवा लाख पितृ गायत्री मंत्र जप, श्रीमद्वभागवत का मुल पाठ तर्पण ओर पितरो के लिए  पिडं दान  करे योग्य ब्राह्मण से करवाऐ !

2. अगर किसी के घर में प्रेत बाधा हो तो नारायण बलि और त्रिपिंडी  करवाने से वो प्रेत जीव अकाल मृत्यु प्रेत योनि  से छुट जाता है और भगवान नारायण के द्वारा मोक्ष  को पाता है 

3.यदि व अपने परिवार से प्रेत से मुक्ति करके पित्रो में मिलाया जाता है सपिंडी करके  उसके बाद उस परिवार की सभी प्रेत बाधाएँ खतम हो जाती हैं आगे जीवन में सुख  शांति ओर तरकी का रास्ता साफ हो जाता है।

1. श्राद्ध पक्ष में  पितृ तर्पण अवश्य करें।

2. पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के निमित्त दान इत्यादि करें।

3. घर में भगवत गीता पाठ विशेषकर 11वें अध्याय का पाठ नित्य करें।

4. पीपल की पूजा, उसमें मीठा , गंगाजल जल ,दूध ओर  दीपक नित्य लगाएं। परिक्रमा करें।

5. हनुमान बाहुक का पाठ, रुद्राभिषेक, देवी पाठ नित्य करें।

6. श्रीमद् भागवत के मूल पाठ घर में श्राद्धपक्ष में  या ब्रहम गायत्री या पितृ गायत्री का सवा लाख पाठ  सुविधानुसार करवाएं।

7. गाय को हरा चारा, पक्षियों को सप्त धान्य, कुत्तों को रोटी, चींटियों को चारा नित्य डालें।

8. ब्राह्मण-भोज करवाएं।

9. सूर्य को नियमित रूप से तांबे के पात्र से जल चढ़ाएं

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

पित्र साधना

दुनिया में ऐसा कोई घर नहीं है जिस घर में पित्र का पूजन ना होता ये एक ऐसी शक्ति है अगर प्रसन्न हो तो खुशियों के ढेर लग जाते हैं अगर नाराज हो जाये तो आदमी का इतना बुरा हाल होता है कि एक समय का भोजन भी नही मिलता आदमी दर दर की ठोकरें खाता है कोई सहारा नहीं बनता चमत्कार जो आप अपने जीवन में होते हुए देखते हैं वह सभी किसी न किसी शक्ति के माध्यम से हमारे जीवन में होते हैं ऐसे ही चमत्कार नहीं होते उनके पीछे शक्तियों का हाथ होता है बिना परिश्र्म किए कुछ नहीं मिलता और बिना शक्तियों के कोई चमत्कार नहीं होता एक दो बार होगा तो हो सकता है कि वह एकमात्र संयोग हो लेकिन बार-बार संयोग नहीं हुआ करते इसीलिए आपको मैं एक ऐसे मंत्र से अवगत कराने जा रहा हूं जिससे आपको आपके पित्र की कृपा प्राप्त होगी एवं आपके जीवन में आर्थिक पक्ष मजबूत हो जाएगा और जीवन उत्थान की तरफ बढ़ेगा यहां इसलिए के रूप में मंत्र ही नहीं अपना आशीर्वाद भी आपको दे रहा हूं


ॐ गुरु जी
पित्तर चले पौन 
तेरे संग कौन-कौन 
चिट्टा काला भैरों चले 
बावनवीर चले 
चौसठ योगिनी चले 
अस्सी मसान चलें 
चौरासी कलवे में चलें 
थड़े का पीर चलें 
काशी का कोतवाल चलें 
कलकत्ते खेड़े की रानी चलें 
शीतला मसानी चले
वीर हनुमान चले
नरसिंह बलवान चले
गुरु गोरख की आन चले
ना चले तो अपनी माता के सेज़ पर पैर धरे।
आन आन आन माता लोना चमारी की आन।

इस मंत्र की सेवा अर्थात साधना 40 दिनों की है 

इसमें आपको घर में एकांत स्थान पर सवा हाथ जमीन गाय के गोबर से लीप कर गोल चौका लगाना है 

चौका लगाने के बाद वहां पर आपको आम की एक पटरी लेकर उस पर सवा मीटर सफेद कपड़ा बिछा देना है 

उस बिछे हुए सफेद कपड़े के ऊपर चावल की एक ढेरी लगानी है 

उस के ऊपर आपको सरसों के तेल का एक दिया जलाना है 

एक अन्य दिया तिल के तेल का चलेगा 

वहां पर पित्र के निमित्त पांच मर्दाना कपड़े और पांच स्त्री के कपड़े मिठाई फल फूल पान 11 कौड़िया 4 पीस मौली के यह सभी भोग सामने धरे खीर पूरी हलवा अपनी शक्ति के अनुसार धरें अगर किसी के पित्तर शराब पीने के शौकीन रहे हों या कुछ खाते पीते रहे हो तो वो समान धरें।

सफेद फूलों की माला भेंट करें गूगल की धूनी दें लौंग और बतासे  का देसी घी से होम करें 

घेरा लगा कर कंबल के आसन पर पूर्वाविमुख होकर 

इस मंत्र का दो माला प्रतिदिन जाप करें।

अंत में यह वस्त्र अपने पास एक साल के लिए संभाल कर रख लें ।इन वस्त्रों को एक बार जहां रख दिया वहीं पड़ा रहने दें छेड़ छाड़ ना करें एक साल बाद ये वस्त्र किसी वृद्ध को भोजन करवा कर दे दें और उसके स्थान पर नये वस्त्र उक्त विधि के अनुसार रख दें आपके पित्तर शूक्ष्म रूप से आपके साथ चलने लगेंगे 

अगर कोई भगत हो और अपने पित्र की पौन अर्थात सवारी लेना चाहें तो उसे भी यही कार्य इसी प्रकार करना होगा।
आपके जीवन में यह साधना करने के बाद हर कार्य का संतोष जनक परिणाम प्राप्त होगा।

बुधवार, 8 सितंबर 2021

सूखे पेड़ से जिन्न हासिल करना।

सूखे हुए पेड़ से जिन्न हासिल करना।

जी हां सूखे हुए पेड़ से आप अपनी किस्मत बदल सकते हैं आप यकीन नहीं करेंगे यह एक ऐसा अमल है जबरदस्त और शानदार अमल है जो साधक ऐसा अमल नहीं कर सकते जिसमें बहुत सारा पैसा लगे तो आप थोड़ी मेहनत करें और कामयाब हो ऐसी मेरी ईश्वर से प्रार्थना है आज मैं आपको बताने जा रहा हूं एक ऐसा अमल जो कि सूखे हुए पेड़ पर होता है ।
इस अमल को 41 दिन लगातार किया जाता है हो सकता है कि इसमें कई बार 41 दिनों से अधिक बस 15 दिन लग सकते हैं लेकिन यह कामयाब अमल है और कई बार किया गया है इससे एक जिन्न हासिल होता है जो आपकी हर इच्छा को पूरा करता है  हर  कहना मानता है जो आप चाहते हैं ये जिन्न उसे हकीकत कर देता है।

सबसे पहले यह जान लें कि इस अमल को कोई हृदय रोगी या कोई कमजोर हृदय वाला व्यक्ति करने की कोशिश ना करें और बिना कि गुरु के मार्गदर्शन के इस अमल को ना करें सबसे पहले गुरु से मार्गदर्शन ने उनसे वार्तालाप करें फिर ही इस विषय की किसी साधना के बारे में सोचें।

अमल को शुरू करने से पहले आप अपने गुरु से वार्तालाप कर सकते हैं इस विषय पर अगर अमल शुरू कर लिया बिना पूछे तो आप फस जाओगे और फिर उस समय आपकी कोई मदद भी नहीं कर पाएगा।

ऐसे अमल के लिए बिना आबादी वाला ही इलाका चुने आबादी वाले इलाके में यह सभी अमल नहीं किए जा सकते क्योंकि उसमें अमल के दौरान टोक टाक होने का खतरा रहता है जिसके कारण अमल बेकार हो जाता है और आपकी सारी मेहनत बर्बाद हो सकती है।

इस अमल में अपने शरीर को मंत्र द्वारा बांध लेने के उपरांत ही यह प्रयोग किया जाना चाहिए इस प्रयोग में इस अमल में हमबिस्तरी वर्जित है बाकी और कोई परहेज नहीं है जब आप साधना करें सिद्धि प्राप्त होने तक इसे गुप्त रखें और इस अमल को लगातार करते रहें इसमें इसे बीच में ना छोड़े

○ यह अमल पूरे 40 दिन का अमल है कई बार हालात के हिसाब से 40 दिन से अधिक समय भी लग सकता है उस हालात में घबराए नहीं इसे करते रहे।
○ अमल करने के दौरान पूरी तरह ब्रह्मचार्य का पालन करें मांस मछली शराब अंडा वर्जित है।
○ एक ऐसे पुराने सूखे हुए पेड़ की तलाश करें जो विराने में अकेला हो।
○ किसी चौराहे से किसी कब्रिस्तान से या शमशान से 40 कम कर बीन लें। तब इस अमल को शुरू करें।
○ जब तक आपको सिद्धि प्राप्त ना हो जाए कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक आप को इस अमल में कामयाबी ना मिले तब तक अपने गुरु के अलावा किसी के साथ इस विषय में बातचीत नहीं करनी चाहिए।
○ पूरे अमल के दौरान अपने शरीर को मंत्रों से बांधकर सुरक्षित रखें जिस जगह आपने पढ़ाई करनी हो उस जगह घेरा लगाकर ही पढ़ाई की जानी चाहिए पढ़ाई के वक्त अगरबत्ती या लोबान और एक सरसों का तेल का दिया जलता रहना चाहिए।
○ पढ़ाई के लिए तनहाई में अकेले में ऐसी जगह का चुनाव करें जहां पर कोई आता-जाता ना हो ताकि आपको किसी प्रकार की टोक टाक ना हो।
○ इस अमल में सफेद कपड़े ही पहने जाते हैं खुशबूदार इत्र हमेशा अपने कपड़ों में लगा कर रखें पेशाब करने के बाद इस्तंजा अवश्य करें।
○ इस अमल को गृहस्थ वाले ना करें क्योंकि इस अमल के दौरान आपके परिवार के लोगों के साथ रूहानी खलल हो सकता है ।
○जिस आदमी को अकेलापन पसंद हो वही इस अमल को करें जब तक जिन्न आकर आपको कलाम ना करें आपसे बातचीत ना करें आप को बिल्कुल बिल्कुल भी बातचीत नहीं करनी है क्योंकि इससे आपका अमल बेकार हो जाएगा।
○ तस्वी या माला काले हकीक  की ले उसी पर जाप करें।
○ एक कंकर पर प्रतिदिन आपको 11 सौ बार नीचे दिया गया मंत्र पढ़ना है और अर्ध रात्रि में चुपचाप उस पेड़ के पास जाकर उस पेड़ के तने के ऊपर मारना है और चुपचाप वापस आ जाना है कुछ दिन बीतने के बाद आपको इस प्रकार के अनुभव आने शुरू हो जाएंगे जैसे कोई बहुत बड़ा व्यक्ति या बहुत बड़ा काला साया आपके आसपास घूम रहा है इस प्रकार आपको भरम लगने लगेगा लेकिन वास्तव में वह पेड़ वाला जिन्न ही होगा।
○ पढ़ाई शाम को की जाएगी और एक कंकर के ऊपर जैसे बताया गया है 1100 बार मंत्र पढ़ा जाएगा।
○ 1 दिन में सिर्फ एक ही कंकर तैयार करें कंकर का आकार काबुली चने बराबर रहेगा।
○आसन कोई भी प्रयोग किया जा सकता है 
○पढ़ाई करते समय आपका मुख पश्चिम की ओर होगा घेरा लगाने के बाद ही पढ़ाई करें।
○ किसी भी व्यक्ति की शक्ल लेकर वह आपके साथ सबसे पहले स्वप्न में संपर्क करेगा और आपसे यही कहेगा कि भाई तो मेरे पत्थर क्यों मार रहा है अगर ऐसा हो जाए तो आपकी किस्मत खुली  ही समझो।
○ समझ लेना कि आपका अमल सही दिशा में जा रहा है और आप कामयाबी की तरफ बढ़ गए हैं प्रतिदिन निश्चित समय पर पढ़ाई पूरी कर ले और निश्चित समय पर जाकर ही वह कंकर पेड़ पर मारे और चुपचाप वापस अपने घर आकर सो जाएं किसी से बोले नहीं और कोई आपको टोके नहीं इस प्रकार की व्यवस्था करके रखें।
○ कई बार यह भी देखा गया है कि कई बार परिणाम मिलने में देर हो जाती है कई बार 15 या 20 दिन के बाद ऐसे अनुभव होते हैं लेकिन इसमें कोई लागत नहीं है कोई पैसा नहीं लगेगा।
○ नियम यही रखना है कि आपका शरीर बंधा होना चाहिए अगर आप अपने शरीर को मंत्र द्वारा बांधकर नहीं रखोगे तो आप को खतरा हो सकता है क्योंकि अगर आप चाहते हैं कि जिन आपसे कलाम करें और आपको वचन दे तो आपको भी कुछ दायरा ऐसा बना कर रखना होगा कि वह मजबूर हो जाए आपको वचन देने के लिए।
○ शरीर बांधने का मंत्र हिसार लगाने का मंत्र एक ही है वह नीचे दिया जा रहा है।
○ शरीर बांधने का और घेरा हिसार लगाने का मंत्र :-आयतल कुर्सी कक्ष कुरान आगे पीछे तू रहमान धड़ रखे खुदा से रखे सुलेमान अली की दुहाई अली की दुहाई अली की दुहाई। इस मंत्र को 101 बार पढ़कर आपनी छाती पर 3 बार फूंक मारनी है। घेरा लगाने के लिए एक नए चाकू पर 101 बार पढ़कर 11 बार फूंक मारकर साधना के समय अपने चारों ओर बड़ा  घेरा जमीन पर खींचना है।
○ कंकर पर पढा जाने वाला मंत्र :- अल्लम मुल्लम कुलमुल्ला।



शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

मैदानन माता जी के व्रत


माता मैदानन के व्रत।

अलग अलग स्थानों पर माता मैदानन की किसी न किसी रूप में पूजा अवश्य ही होती है हमारे  समाज में  देवी के अलग अलग स्वरूपों के व्रत रखे जाते है। सामान्य रूप से आपने देखा होगा कि नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत रखे जाते है वस्तुतः वो एक देवी के निमित नही बल्कि देवी दुर्गा के अलग अलग नौ स्वरूपों के निमित्त रखें जाते है अलग अलग वारों को अलग अलग तिथियों को व्रत धारण करने का अपना अपना अलग महत्व होता है जैसे हनुमानजी और अलग अलग देवताओं और ग्रहों को शांत करने और अपना मनोभिलाषित कार्य सिद्धि के लिए व्रत धारण किये जाते है।

उसी प्रकार से बावन रूपी माता मैदानन की प्रसन्नता हेतु और अपनी मनोभिलाषा पूरी करने की लिए माता जी के भगत माता जी के निमित व्रत धारण करते हैं।

○बावन रूपी माता मैदानन के व्रत को शनिवार या मङ्गलवार को धारण करें।
○व्रत में मन और तन की पवित्रता धारण करें। और हिंसा काम क्रोध त्यागकर माता जी के चरणों में ध्यान रखें।
○सुबह सौच स्नान इत्यादि से निवर्त होकर साफ वस्त्र धारण करें अगर हो सके तो लाल रंग के वस्त्रों का चुनाव करें।
○थोड़ा सा कच्चा ढूध+थोड़ा सा मीठा डालकर (जो आपके पास शुद्ध उप्लब्ध हो) कुछ कच्चे चावल  और एक लीटर जल मिलादें,एक लाल चुन्नी,एक पानी वाला नारियल ,सोलह श्रृंगार,एक लाल ध्वजा, धूफ, दीप,कुछ फूल ,फल ,एक जोड़ा मीठे पान, सात पीस मिठाई के,सात लौंग,सात इलायची, गुड़ की दो भेली,मौली(कलावा) का जोड़ा,अपने साथ ले लें। माता जी के थान पर जाकर सभसे पहले वहां सफाई करें फिर माता जी के थान को कच्ची लस्सी उपरोक्त जो आपने बनाई है से स्नान करवा कर चुनरी ओढ़ा दें फिर ध्वजा नारियल सृंगार चढ़ा दें,दूफ दीप प्रज्वलित कर के फल फूल पान मिठाई और बाकी सामान चढ़ा देंने के उपरांत  हाथ में जल लेकर अपने गुरु और गणेश का ध्यान करते हुए माता जी से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु प्रार्थना करें (यानि माता जी के सामने बोलें की आप किस लिए यह व्रत धारण कर रहे है बोलकर जल भूमि पर गिरा दें इस प्रकार आप व्रत धारण कर लेंगे 
○अपना झूठा न तो किसी को दें ना ही किसी का झूठा खुद खाएं।
○किसी की भी निंदा चुगली ना करें।

○शाम को सायंकाल अगर माता जी के स्थान पर जा सकें तो बहुत उत्तम होगा जाकर माता जी को धूफ दीप अर्पित करें फिर लड्डू बूँदी वाले, हलवा, बतासा, जो भी आपकी शक्ति के अनुसार मिले चढ़ा दें अगर ना जा सकें तो अपने घर पर ही सवा हाथ ज़मीन पर गे के गोबर से लीप पोत कर सफाई करने के बाद सरसों या तिल के तेल का दीया जलाएं गाय के गोबर के कंडे/उपली/चिपरी/पाथी जलाकर आग तैयार करें फिर उसपर सरसों के तेल से होम दें जब होम पर अग्नि चढ़े तो एक लोटा जल लेकर अग्नि के ऊपर से फटाफट 7 बार उल्टा उतार कर घर से बाहर डालकर लोटा वहीं उल्टा रकह दे। फिर अन्य लोटे में जल लेकर 7 बार सीधा उतारें और बहुत थोड़ा सा जल अग्नि पर छिड़क दें अग्नि शुद्ध हो जाने के उपरांत होम में बतासा,लौंग,हवन सामग्री,गुग्गल, मिठाई,शक्कर, चीनी, जो भी शुद्ध अवस्था में आपके पास मौजूद है उसी से तन्मयता से होम करें। फिर रात्रि में थोड़ा सा शुद्ध सात्विक भोजन लें और विश्राम करें। दुसरे दिन सुबह जल्दी उठकर पहले दिन वाली राख जो होम की होगी उसे समेट कर जल प्रवाहित करें फिर दूसरे दिन सामन्य भोजन लें।

○इसी प्रकार 7 ,11,21,31,41,51 व्रत रखे जा सकते है आपकी आस्था रंग लायेगी और आपकी मनोकामना पूरी होगी जब आपके व्रत पूरे हो जाएँ तो अंतिम दिन किसी ब्राह्मण को बुलाकर हवन करवावै  बहुत प्रकार के पकवान बनाएं होम अग्यार के उपरांत हर्ष के साथ माता जी का ध्यान में में धारण किये हुए सात क्वारी कन्याओं का पूजन करें उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन करावै ब्राह्मण और कन्याओं को वस्त्र और दक्षिणा देकर सम्मानित करें और आशीर्वाद लें।

○इसी बीच आपकी जो मनोअभिलाषित इच्छा होगी माता मैदानन की कृपा से अवश्य पूरी होगी।

○व्रत के दौरान आप माता जी के भजन कीर्तन सुने चालीसा दुर्गा सप्तशती का पाठ या माता जी का जो भी पाठ आप करना चाहो कर सकते हो 
○आप दुर्गा नवार्ण मन्त्र ,कुंजिकास्तोत्र का भी पाठ भी कर सकते हैं  नवार्ण मन्त्र:-(ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे )।

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बुधवार, 28 जुलाई 2021

रेकी ध्यान योग।

                            रेकी ध्यान।

मन को पूर्ण मौन मिलना कठिन है। हमारी शोर भरी दुनिया ने हमें सरल और सूक्ष्म अनुभवों से वंचित कर दिया है।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक प्राचीन जापानी प्रथा है जो आपको अपने शरीर में सार्वभौमिक ऊर्जा का एहसास करा सकती है।
इस विधि को रेकी ध्यान कहा जाता हैं। 
                          रेकी क्या है?
1920 के दशक में, मिकाओ उसुई नाम के एक जापानी बौद्ध भिक्षु ने रेकी नामक प्राकृतिक उपचार की एक प्रणाली तैयार की।  

उपचार के प्रति रेकी का दृष्टिकोण अद्वितीय है।  इसमें शरीर में जीवन ऊर्जा को बहाल करने, उसे शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक करने के लिए अपने हाथों का उपयोग करना शामिल है।

'रेकी' शब्द का अर्थ है 'आध्यात्मिक रूप से निर्देशित जीवन शक्ति ऊर्जा।' यह तकनीक चिकित्सक को रेकी प्रक्रिया के बारे में जागरूक और जिम्मेदार होने का आग्रह करती है।

क्योंकि परंपरा दृढ़ता से मानती है कि चिकित्सा के साथ शामिल होने पर उपचार तेज होता है।जिसका कोई यकीन नही कर सकता।

 कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र, मन और शरीर की क्षमताओं के बावजूद रेकी आजमा सकता है।  रेकी की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक रेकी ध्यान है। 


 रेकी ध्यान क्या है?
 रेकी ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आप मौन और शांत मन का अनुभव कर सकते हैं।  रेकी ध्यान ऊर्जा उपचार और प्रेमपूर्ण है।  इसमें आपके ध्यान के अनुभव को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतीक और मंत्र शामिल हैं।  यह पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में उच्च स्थान पर है।


इसके अभ्यास के तरीके को जानने के लिए नीचे देखें।
रेकी ध्यान तकनीक
सिस्टम की सफाई
चक्र बल
हाथों से उपचार
अंतिम विचार

1. सिस्टम की सफाई

 एकांत शांत स्थान पर किसी आसनपर अपनी पीठ सीधी करके आराम से बैठ जाएं या लेट जाएं। 
शांत, रचित और तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।  गहरी साँस लें।  कल्पना करें कि आप सभी खुशियों और अच्छाइयों को अंदर ले रहे हैं, और इस विचार के साथ गहराई से बाहर निकलते हैं कि नकारात्मक भावनाएं, जैसे कि अवसाद, भय और चिंता, आपके सिस्टम से बाहर निकल रहे हैं।  इस तरह से एक-दो बार सांस लें, और देखें कि आपका दिमाग और शरीर किस तरह से इसमें ट्यून करते हैं और आराम करते हैं।


2. चक्र बल
आपके शरीर में सात चक्र हैं, आपकी रीढ़ की हड्डी के आधार से लेकर आपके सिर के शीर्ष तक, जो शरीर के ऊर्जा केंद्र हैं।  प्रत्येक चक्र क्षेत्र में अपना हाथ अपने शरीर के सामने रखें और प्रत्येक स्थिति में कुछ मिनट के लिए अपने शरीर की आवश्यकता के आधार पर पकड़ें।  यदि आपको लगता है कि आपका शरीर हाथ को अधिक समय तक रहने के लिए कह रहा है, तो उसे रहने दें।  अगर आपके शरीर में पर्याप्त हो गया है तो इसे हटा दें।  हाथों से महसूस करना आपके शरीर को जोड़ने और सुनने का सबसे अच्छा तरीका है।जब आप अपने हाथों से अपने शरीर में धुन लगाते हैं, तो कल्पना करें कि ब्रह्मांड की जीवन शक्ति आपके हाथों से आपके शरीर में प्रवेश कर रही है, चक्रों के माध्यम के रूप में।  अपने शरीर को इस ऊर्जा प्रवाह से गूंजते हुए महसूस करें, और गहरी विश्राम और कायाकल्प की स्थिति में जाएं।


 3.हीलिंग-थ्रू-हैंड्स

सबसे पहले अपनी हथेलियों को अपने सिर के ऊपर एक साथ रखें। हाथों को वहीं पकड़ें और अपने शरीर को ध्यान और ध्यान से सुनने की कोशिश करें।  

ऐसा करते समय, गहरी और धीरे-धीरे सांस लें, नकारात्मक को हटा दें और अपने सिस्टम में सकारात्मकता को आत्मसात  करें।आराम करना।  अपने हाथों को माथे पर और फिर अपने सिर के पीछे रखें।  इसके बाद गले के नीचे जाएं और एक हाथ धीरे से उस पर और दूसरा अपनी गर्दन के पीछे रखें।  इसे कुछ देर रुकें और आराम करें।  अब, नीचे जाएं और अपने हाथों को अपने कंधों के पीछे, उंगलियों को नीचे की ओर रखते हुए, अपनी छाती पर अपने दिल को ढँक लें, छाती के निचले हिस्से को पसलियों के पास, अपने पेट पर और फिर पेट के निचले हिस्से पर रखें।  सुनिश्चित करें कि प्रत्येक स्थिति में आप अपने स्पर्श से कोमल हों। 
हाथ तब तक पकड़ें जब तक आपका शरीर इसके लिए न कहे, आराम करें और अगले भाग पर जाएँ। सिर और धड़ के साथ हो जाने के बाद, अपने कूल्हों पर नीचे जाएं और अपने हाथों को अपने दोनों कूल्हों, घुटनों और पैरों पर रखें।  पैरों के लिए, अपनी सुविधा के आधार पर अपने हाथों को या तो उनके ऊपर या नीचे रखें।  प्रत्येक मोड़ पर, अपने शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करें।अनुभव का आनंद लें।

4. अंतिम विचार
अपने हाथों को वापस प्रार्थना की स्थिति में लाएं और उन्हें अपनी छाती के सामने रखें।  अपनी रीढ़ को सीधा करके बैठें और आपका शरीर थोड़ा तना हुआ हो।  सामान्य रूप से सांस लें और अपने शरीर में चल रही ऊर्जा को महसूस करें।  इसे लगभग 3 से 5 मिनट तक करें या जब तक आप इसे करने की आवश्यकता महसूस न करें।  जब आप प्रज्वलित और ऊर्जावान महसूस करते हैं तो उपचार प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
रेकी ध्यान के लाभ
दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने के लिए ये ध्यान रेकी बहुत अधिक लाभ दायक है।
रेकी ध्यान आपके दिमाग को आराम देगा 
आपके तनाव कम करेगा
यह आप के विचारों को स्पष्टता देगा
ध्यान आपकी धारणा और दृश्यता को बढ़ाता है
यह आपकी चेतना को बढ़ाता है और समस्याओं को हल करने की आपकी क्षमता को बेहतर बनाता है
इस तकनीक को व्यापक रूप से कई विकृतियों को ठीक करने के लिए जाना जाता है
यह सर्जरी के बाद के उपचार के लिए आदर्श है
यह अच्छी नींद में मदद करता है
रेकी ध्यान अन्य उपचार/चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ अच्छा काम करता है
यह तकनीक आपके शरीर में ऊर्जा अवरोधों को दूर करती है, जिससे मुक्त ऊर्जा प्रवाह सक्षम होता है, जिससे आपको एक स्वस्थ शरीर मिलता है
यह एक आत्म-विकास और परिवर्तन उपकरण है

रेकी ध्यान प्रक्रिया में छात्र को अभ्यस्त करने के लिए गुरु को कम से कम 2 से 3 घंटे की आवश्यकता होती है।
याद रखें कि रेकी प्राकृतिक ब्रह्मांडीय उर्जाओं की साधना है ना कि कोई धर्म या सम्प्रदाय है।  

किसी भी धर्म के लोग या जो धर्म को नहीं मानते वे रेकी का अभ्यास कर सकते हैं।  
रेकी चिकित्सक दुनिया भर से हैं और विभिन्न संप्रदायों और प्रथाओं से आते हैं।
 ((रेकी एक जापानी शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है और इसका उच्चारण 'रे की' के रूप में किया जाता है।))

रेकी ध्यान आपके शरीर में ऊर्जा तत्वों को पुनर्स्थापित और संरक्षित करता है।

जिससे आप स्थिर, रचित और स्वस्थ बनते हैं।  यह आपके शरीर में सभी अप्रकाशित तनाव को तोड़ता है और आपके जीवन को खुशहाल और आसान बनाता है। आगे बढ़ें और स्वयं को जानने के लिए ध्यान का प्रयास करें

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

अन्नपूर्णा माता मन्त्र सिद्धि

अन्नपूर्णा भैरवी-मन्त्र प्रयोग


भगवती अन्नपूर्णा को 'अन्नपूर्णेश्वरी देवी' भी कहा जाता है। 

इनका मन्त्र निम्नलिखित हैं

 १.ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्ण स्वाहा । 

उक्त मन्त्रों के जप तथा देवता के पूजन से धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की वृद्धि होती है ।

पूजा विधि

इनका पूजा-क्रम यह है कि सर्वप्रथम सामान्य पूजा-पद्धति के अनुसार

प्रातःकृत्य से पीठ-न्यास तक के कर्म करके, पूर्वादि केशरों में

ॐ वामायै नमः ।
ॐ ज्येष्ठायै नमः ।
ॐ रौद्र्यै नमः ।
ॐ काल्यै नमः ।
ॐ कल-विकरण्यं नमः ।
ॐ बल-विकरण्यै नमः ।
ॐ बल-प्रमथन्यै नमः । 
ॐ सर्व-भूत-दमन्यै नमः ।

मध्य में

ॐ मनोन्मन्यै नमः । 

उक्त प्रकार से न्यास करें फिर इन्हीं के समीप क्रमशः

ॐ जयायै नमः ।
ॐ विजयाय नमः ।
ॐ अजिताय नमः ।
ॐ अपराजिताय नमः । 
ॐ नित्याय नमः ।
ॐ विलासिन्यै नमः ।
ॐ द्रोग्यं नमः ।
ॐ अघोराय नमः ।

मध्य में - ॐ मङ्गलाय नमः । से न्यास करें।

फिर उनके ऊपर

"ह सौः सदाशिव महाप्रेत- पद्मासनाय नमः'

का न्यास करे। फिर निम्नानुसार 'ऋष्यादि न्यास' आदि करें।,

ऋष्यादि न्यास

शिरसि ब्रह्मणे ऋषये नमः ।
मुखे पंक्तिश्छन्दसे नमः । 
हृदि अन्नपूर्णेश्वय भैरव्यं देवताय नमः ।
गुह्यं ह्रीं बीजाय नमः ।
पादयोः श्रीं शक्तये नमः । 
सर्वाङ्ग क्लीं कीलकाय नमः ।

करायास

ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
हं मध्यमाभ्यां नमः ।
ह्रौं अनामिकाभ्यां नमः ।
ह्रौं कनिष्ठाभ्यां नमः ।
हः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।
ह्रां हृदयाय नमः ।
ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ह्र शिखायै वषट् ।
ह्रौं कवचाय हुं ।
ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ह्रः अस्त्राय फट् ।

पद-न्यास

मूर्ध्नि
ॐ नमः ।

नेत्रयोः
ह्रीं नमः, श्रीं नमः ।

कर्णयोः
क्लीं नमः, नमो नमः ।

नसो
भगवति नमः माहेश्वरि नमः ।

मुखे
अन्नपूर्णे नमः ।गुह्य स्वाहा नमः ।

फिर गुह्य से मुध्नि तक क्रमशः इन्हीं मन्त्रों से क्रमशः न्यास करे । इसके पश्चात् प्रारम्भ के चार बीजों का ब्रह्मरन्ध्र, मुख, हृदय तथा मूलाधार में क्रमशः न्यास कर, शेव पाँच बीजों का मध्य, नासिका, कण्ठ, नाभि तथा लिङ्ग में न्यास करें। फिर मूल मन्त्र से 'व्यापक न्यास कर, निम्नानुसार करें ध्यान

ध्यान

"तप्त कांचनवर्णाभां बालेन्दु कृत शेखराम्। नवरत्न प्रभादीप्त मुकुटां कु कुमारुणां ॥ चित्रवस्त्र परीधानां मकराक्षीं त्रिलोचनाम् । सुवर्ण कलाशाकार पीनोन्नत पयोधरां ॥ गो क्षीर धाम धवलं पञ्चवक्त्रं त्रिलोचनाम् । प्रसन्नवदनं शम्भु नीलकण्ठ विराजितम् ।। कपर्दिन्म स्फुरत्सर्पभूषणं कुन्दसन्निभम् । नृत्यन्तमनिशं हृष्टं द्रष्ट्वानन्दमयीं परां ॥ सानन्द मुख लोलाक्षी मेखलाढ्य नितम्बिनीम् । अन्नदानरतां नित्यां भूमि श्रीभ्यामलंकृताम् ॥"

भावार्थ - "भगवती अन्नपूर्णेश्वरी भैरवी के शरीर की कान्ति तप्त-स्वर्ण जैसी है। उनके मस्तक पर बाल-चन्द्र सुशोभित है। उनका मुकुट नवीन रत्नों की चमक से दीप्तिमान है। उनके शरीर का वर्ण कुटुंकुम के समान अरुण है। वे विलक्षण वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके मकर जैसे सुन्दर तीन नेत्र हैं। उनके दोनों स्तन स्वर्ण कलश की भाँति स्थूल तथा उन्नत हैं। ऐसे स्वरूप वाली भगवती भैरवी श्वेतवर्णं वाले, पाँच मुखों वाले, तीन नेत्रों वाले, प्रसन्नामुख, नीलकण्ठ, सर्पों से विभूषित शरीर वाले एवं कुन्द-पुष्प जैसी कान्ति मुक्त शरीर वाले शिवजी को नृत्य करते हुए देख कर अत्यन्त आनन्दित हो रही हैं। देवी के आनन्दित मुख मण्डल में चञ्चल नेत्र सुशोभित हैं। कटि में बंधी मेखला (करधनी) सुशो भित है। वे पृथ्वी तथा लक्ष्मी से अलंकृत नित्य अन्न-दान करने में संलग्न हैं।

करें।

उक्त प्रकार से ध्यान कर, मानसोपचार पूजा करें तथा शंख स्थापित

पूजा-यन्त्र


देवी का पूजा-यन्त्र इस प्रकार तैयार करें

पहले त्रिकोण, उसके बाहर चतुर्दल पद्म, उसके बाहर अष्टदल पद्म, बाहर षोडशदल पद्म तथा अन्त में चतुर्द्वार युक्त भूपुर का निर्माण करें। उसके

उक्त विधि से निर्मित यन्त्र का स्वरूप नीचे प्रदर्शित किया गया है

(अन्नपूर्णा भैरवी पूजन-यन्त्र)

यन्त्रलेखनोपरान्त पीठ-पूजा कर, पुनः ध्यान-आवाहनादि से पञ्च-पुष्पां जलि प्रदान पर्यन्त कर्म कर, आवरण-पूजा आरम्भ करें। यथा

आवरण पूजा

कणिका में, अग्नि, ईशान, नैऋत्व, वायु कोणों में तथा मध्य एवं चारों दिशाओं में क्रमशः "हां हृदयाय नमः" इत्यादि से षडङ्ग-पूजा करें। फिर, त्रिकोण के अग्रभाग में "ॐ हीं नमः शिवाय नमः' - इस मन्त्र द्वारा पूजाकर, वायुकोण में "ॐ नमो भगवते वराह रुपाय भूर्भुवः स्वः पतये भू-पतित्व मे देहि बदापय स्वाहा" - इस मन्त्र से बराहदेव की पूजा करें ।

फिर दक्षिण कोण में नारायण की पूजा कर, दक्षिण तथा वाम भाग में"ॐ ग्लौं श्रीं अन्नं मे देह्यन्नाधिपतये मनान प्रदापय स्वाहा श्रीं ग्लो" - इससे

भूमि तथा श्री की पूजा करें। फिर चतुर्दल पद्म के पूर्व-दल में -

ॐ पर विद्यायै नमः ।
दक्षिण-दल में -

"ह्रीं भुवनेश्वय नमः ।
पश्चिम-दल में -

"श्रीं कमलाय नमः ।
उत्तर-दल में -

"क्लीं सुभगाय नमः ।

से पूजा करें।

फिर अष्टदल पद्म के आठों दलों में पश्चिम दिशा के क्रम से 'ब्राह्म यैनमः' आदि मन्त्रों द्वारा अष्ट मातृकाओं का पूजन करें।

इसके पश्चात् षोडशदल पद्म के पूर्व-दल से आरम्भ कर क्रमश: निम्न लिखित मन्त्रों द्वारा पूजन करें

नं अमृतार्य अन्नपूर्णाय नमः ।
मों मानदाय अन्नपूर्णाय नमः ।
भं तुष्टयं अन्नपूर्णाय नमः ।
गं पुष्ट्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
वं प्रीत्य अन्नपूर्णाय नमः । 
ति रत्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
मां क्रियाय अन्नपूर्णाय नमः ।
हें श्रियं अन्नपूर्णाय नमः ।
एवं सुधाय अन्नपूर्णाय नमः ।
र रात्र्यं अन्नपूर्णाय नमः । 
न्नं ज्योत्स्नायं अन्नपूर्णाय नमः ।
लं हेमवत्यं अन्नपूर्णाय नमः ।
पूं. छायाय अन्नपूर्णाय नमः ।
पूर्णे पूर्णिमाय अन्नपूर्णाय नमः ।
स्वां नित्याय अन्नपूर्णाय नमः ।
हां अमावस्याय अन्नपूर्णाय नमः |

इसके अनन्तर चतुरस्र में दश दिक्पालों की पूजा कर, धूपादि से विसर्जन तक के कर्म कर, पूजन समाप्त करें।

पुरश्चरण इस मन्त्र के पुरश्चरण में एक लाख जप तथा अन्न से जप का दशांश होम करना चाहिए।

कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।   यहाँ मैं स्...