सोमवार, 17 जून 2024

कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।  

यहाँ मैं स्पष्ट रूप से कह देता हूँ कि मैं वशीकरण के मन्त्र और प्रयोग के वाल विषय पूर्ति के लिए ही देता हूँ।और व्यक्तिगत रूप से ऐसे प्रयोग का समर्थन नहीं करता।

तंत्र अपने आप में समग्र औषध है लेकिन इसका अनुचित प्रयोग करना अक्सर बहुत भारी पड़ जाता है एक कहावत आपने सुनी ही होगी 
"पहले मज़ा फिर सजा"
लेकीन जब आप तंत्र का गलत प्रयोग करते हैं तो ये कहवात इस तरह हो जाती है 

"ना मज़ा फिर भी सारा जीवन सज़ा"।

अनैतिक कार्य करने में पहले पहले आपको अच्छा लगेगा लेकिन आपके ऊपर से शुद्ध दैविक ऊर्जा का आशीर्वाद सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाएगा ये मैने अपने जीवन में बहुत सारे तांत्रिकों के जीवन में होता हुआ देख है और अनेकों बार देखा है।

मूलतः कोई भी साधक किसी भी साधना को केवल फल प्राप्ति हेतु करता है इसमें कोई संदेह नही किन्तु कब आपको किस शक्ति /प्रयोग को किसी के ऊपर प्रयोग करना है अथवा कब नही ये निर्धारित करना उस समय बहुत मुश्किल होता है अगर बुराई वाला काम करना हो तो उससे पहले 100 बार सोचना चाहिए लेकिन अगर किसी का भला करना हो तो आपको 1 बार भी सोचना नही चाहिए।

तंत्र विद्या में षट कर्म बहुत उग्र कर्म होता है केवल अपने प्राण और अस्तित्व को संकट में जान पड़ने पर ही इनका प्रयोग करना उचित है अन्यथा नही।

आज कल मनुष्यों के मन में स्वर्थ एवं स्वयं के लिए महत्वाकांक्षा ही भरी पड़ी है।

और संबंधों का कोई स्तर नही बचा मानो एक ही समय में चारों युगों झलक दिखायी देती है जब कोई परोपकार की घटना देखते हैं तो ये लगता है कि चारों तरफ़ धर्म स्थापित है लेकिन अक्सर स्वार्थ चपलता और क्रूरता के दर्शन लगातार देखते रहते हैं।

एक प्रयोग मैं आपको यहां पर बता रहा हूँ यदि कोई वशीकरण का काम फंस जाए और आपको किसी का घर बचाना है तो निम्नलिखित प्रयोग को करें।

शनिवार रात को जिसका वशीकरण आपने करना है उस के पहने हुए कपड़े का टुकड़ा चुपचाप प्राप्त कर लें ।

चौदस/ अमावस /शनिवार की अर्ध रात्रि में कलवावीर को शमशान भूमि में देशी शराब, नारियल, पान, 7 प्रकार की मिठाई, बकरे की कलेजी, लौंग,इलायची,11 नींबूओं का भोग दें और फिर उस कपड़े से एक गुड़िया का निर्माण करें:-

ॐ नमो आदेश गुरु को
काला कलवा काली रात
मैं बुलवां आधी रात
जाग जाग रे *****
भन्न सुट्ट
( फलाने)की हड्डियां 
दिल कलेजा चीर
मुठ्ठी भरी **** दी 
चौसठ चलन जोगन 
चल्लन बावन वीर
दुहाई काली कंकाली की
दुहाई गुरु गोरखनाथ की
आदेश आदेश आदेश।

जिसका वशीकरण करना चाहते हैं उसके पहने हुए कपड़े से निर्मित गुड़िया की 501 मन्त्र से अभिमंत्रित करें फिर कपड़े सिलने वाली तीन सुइयां ले ले और उन प्रत्येक सूई की 11 बार मन्त्र से अभिमंत्रित करें जिसका वशीकरण करना है उसका ध्यान करें पहली सूई को दिमाग और  दूसरी सूई को दिल तथा तीसरी सूई की नाभि पर मंत्र पढ़ते हुए प्रवेश करवा और उसे पुतले को चुपचाप किसी मिट्ठी के पात्र में डालकर श्मशान भूमि  में गाड़ दे।

यह प्रयोग मैंने आपको उचित कार्यों में प्रयोग करने के लिए दिया है इसके लिए किंचित मात्र भी किसी को अपने स्वार्थ के लिए या किसी ऐसी अनुचित कार्य के हेतु दूसरे को कष्ट पहुंचाने का कोई भी हक नहीं है इस प्रयोग को प्रयोग करने वाले व्यक्ति  की स्वयं की जिम्मेदारी होगी।

इस मंत्र के कुछ अंश सुरक्षित रखे गए हैं ताकि किसी प्रकार से किसी का कोई अहित न हो। 
जो इसका प्रयोग करना चाहते हैं वह सीधा मुझे मेरे व्हाट्सएप नंबर 8194951381 के ऊपर व्हाट्सएप   संदेश के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

श्री झूलेलाल चालीसा।


                   "झूलेलाल चालीसा" 

मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥ 

श्री झूलेलाल चालीसा 
दोहा :-जय जय जय जल देवता,   जय जय ज्योति स्वरूप। अमर उडेरो लाल जय,जय जय श्री झूले लाल अनूप।। 

चौपाई 
रतनलाल रतनाणी नंदन । 
जयति देवकीसुत जगवंदन ॥1।। 

दरियाशाह वरुण अवतारी । 
जय जय लाल साईं सुखकारी ॥2।। 

जय जय होय धर्म की भीरा । 
जिंदा पीर हरे जन पीरा ॥3।। 

संवत दस सौ सात मंझारा ।
चैत्र शुक्ल द्वितिया के वारा ॥4॥ 

ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा । 
प्रभु अवतरे सब मिटे क्लेशा ॥5।। 

सिन्धु वीर ठट्ठा रजधानी । 
मिरखशाह नृप अति अभिमानी ॥6।। 

कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी । 
यवन मलिन मन अत्याचारी ॥7।। 

धर्मान्तरण करे सब केरा । 
दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ॥8॥ 

पिटवाया हाकिम ढिंढोरा । 
हो इस्लाम धर्म चहुँओरा ॥9।। 

सिन्धी प्रजा बहुत घबराई । 
इष्ट देव को टेर लगाई ॥10।। 

वरुण देव पूजे बहुभांति । 
बिन जल अन्न गए दिन राती ॥11।। 

सिंधु तीर तब दिन चालीसा । 
सब घर ध्यान लगाये ईशा ॥12॥ 

गरज उठा नद सिंधू सहसा । 
चारों और उठा नव हरषा ॥13।। 

वरुणदेव ने सुनी पुकारा । 
प्रकटे वरुण मीन असवारा ॥14।। 

दिव्य पुरुष जल ब्रह्म स्वरुपा । 
कर पुस्तक नवरूप अनूपा ॥15।। 

हर्षित हुए सकल नर नारी । 
वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥16॥ 

जय जय कार उठी चहुँओरा । 
गई रात       आई नव भोरा ॥17।। 

मिरख नृपौ जो अत्याचारी । 
नष्ट करूँगा शक्ति सारी ॥18।।
 
दूर अधर्म करन भू भारा । 
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥19।। 

रतनराय रतनाणी आँगन । 
आऊँगा उनका शिशु बनकर ॥20॥

रतनराय घर खुशियां आई ।
अवतारे सब देय बधाई ॥21।। 

घर घर मंगल गीत सुहाए । 
झुलेलाल हरन दुःख आए ॥22।।

मिरखशाह तक चर्चा आई । 
भेजा मंत्रि क्रोध अधिकाई ॥23।। 

मंत्री ने जब बाल निहारा । 
धीरज गया हृदय का सारा ॥24॥ 

देखि मंत्री साईं की लीला । 
अति विचित्र मनमोहनशीला ॥25।। 

बालक दिखा युवा सेनानी ।
 देख मंत्री बुद्धि चकरानी ॥26।।
 
योद्धा रूप दिखे भगवाना । 
मंत्री हुआ विगत अभिमाना ॥27।। 

झुलेलाल तब दिया आदेशा । 
जा तव नऊपति कह संदेशा ॥28॥ 

मिरखशाह कह तजे गुमाना । 
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥29।।

बंद करो नित अत्याचारा ।
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥30।। 

लेकिन मिरखशाह अभिमानी । 
वरुणदेव की बात न मानी ॥31।। 

एक दिवस हो अश्व सवारा । 
झुलेलाल गए दरबारा ॥32॥ 

मिरखशाह ने आज्ञा दे दी । 
झुलेलाल बनाओ बन्दी ॥33।। 

किया स्वरुप वरुण का धारण । 
चारो और हुआ जल प्रलय ॥34।। 

दरबारी तब डूबे उतराये । 
नृप के होश ठिकाने आये ॥35।। 

मिरख शाह तब शरणन आई । 
बोला धन्य धन्य जय साईं ॥36॥ 

वापिस लिया नृप निज आदेशा । 
दूर हुआ सब जन का क्लेशा ॥37।। 

संवत दस सौ बीस मंझारी । 
भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ॥38।। 

भक्तों की हर विपदा व्याधि । 
जल में ली जलदेव समाधि ॥39।। 

जो जन धरे आज भी ध्याना । 
श्रीझूलेलाल करें कल्याणा ॥40॥ 

॥ दोहा ॥ 
यह चालीसा पढ़े जो कोई उसका जीवन सुखमय होई। 
दिन चालीस करे व्रत जोई मनवांछित फल पावै सोई।। ॥ 

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

सिद्ध सुलेमानी जंजीरा मन्त्र

सुलेमानी जंजीरा मन्त्र।

जहां सभी तंत्रों में सुलेमानी तंत्र को बहुत तीव्र और शक्तिशाली माना जाता है। क्योंकि इसमें सिद्धि शीघ्र और तेज होती है। ऐसा नहीं है कि बाकी प्रणाली प्रभावी नहीं है, क्यों कि तंत्र का अर्थ क्रिया है। जहां प्रार्थना का जाप किया जाता है। और व्यवस्था एक क्रिया, समस्या का निवारण करती है। क्योंकि क्रिया का अर्थ काम हुआ। इसलिए तन्त्र समस्या के लिए झुकना नहीं चाहिए। जहाँ मैं एक बहुत ही प्रभावी सुलेमानी मन्त्र आपको दे रहा हूँ जो बहुत आसान भी है।लेकिन धैर्य के साथ किया गया अनुष्ठान आपको 101% लाभ देगा।

सुलेमानी तंत्र साधना – 
क्या आपको भी निम्नलिखित परेशनिया है?
क्या आप पूरी तरह से गुरवत से घिरे हुए हैं?
क्या आप कर्ज में डूब रहे हैं?
क्या दुश्मन की साजिश के शिकार लोगों को शिकार बनाया जा रहा है?
क्या सभी रोजगार के रास्ते बंद हैं?

इसलिए इस साधना को एक बार करें और फिर देखें कि आपके जीवन में कितना बदलाव आता है। यह एक बहुत ही ज़बरदस्त पंजतन पाक कलाम है। इसे पूरी पवित्रता के साथ करें।

जिस कमरे में आप साधना कर रहे हैं, उसे साफ करें, इसे पोचा वगैरह लगाके निश्चित रूप में धोएं, फिर इस साधना को शुक्ल पक्ष के पहले जुमेरात से शुरू करें और इसे 21 दिनों तक करना है।

सुलेमन जंजीरा:-
स्नान इत्यादि से निवर्त होकर सेंट लगाये
सफेद कपड़े पहनें और आसन भी सफेद रंग का प्रयोग करें। 
इस साधना के दौरान पश्चिम दिशा की ओर रुख कर के जैसे वज्रासन में बैठते हैं । 
सिर की टोपी को सफेद रूमाल से ढककर बैठना चाहिए और खुशबूदार अगरवती / या लोहबान सुलगाना चाहिए और इसे जाप के दौरान जलते रहना चाहिए। 
सफेद रंग की मिठाई जाप के समय थोड़ी सी सामने रखे फिर उसे दूसरे दिन बच्चों में बांट दें/नदी या दरिया में प्रवाहित करें अथवा गाय या कुत्ते को डाल दें।
अगर आप लगाना चाहते हैं तो तेल का दीपक लगा सकते हैं। 
सभी पहले गुरु और गणेश की पूजा करने के बाद आज्ञा लें और 
फिर एक माला गुरु मंत्र की और एक माला गणेश मन्त्र की करें बाद में सफेद हकीक माला के साथ निम्न मंत्र की पांच माला का जप करें,
साधना में बहुत अनुभव हो सकता है। मन को नियंत्रण में रखते हुए जप पूरा करें। 
जिस कमरे में आप साधना कर रहे हैं उसमें किसी को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे शराब पीकर न आएं। 
यदि आप माला के साथ जाप नहीं करते तो इसे एक घंटे के लिए करें।

सुलेमानी जंजीरा:-
बिसिमिल्ला रहमान रहीम,
उदम बीबी फातमा,
मदद शेर खुदा ,
चड़े मोहमंद मुस्तफा,
 मूजी कीते जेर ,
वरकत हसन हुसैन दी,
रूह असा वल फेर।

आपका कल्याण हो।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

नाहर सिंह वीर की साधना।

नाहर सिंह वीर की साधना।


नाहर सिंह वीर की एक ऐसी जबरदस्त और खतरनाक मन्त्र साधना है जिसमें साधक को बहुत ही अधिक शक्तिशाली एवं रोमांचकारी अनुभवों से होकर गुजरना पड़ता है।

लेकिन इस साधना को सफलतापूर्वक संपन्न कर लेने के बाद आप कट्टर से कट्टर भूत प्रेत को जिन जिन्नाद शैतान या ख़बीस को भगाने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं जिन नवयुवक बच्चों के साथ रात्रि में विपरीत लिंगी ऊर्जाओं द्वारा जबरन बलात्कार होता है उन बच्चों के लिए ये मन्त्र बहुत ही अत्यंत उपयोगी हैं।

किसी भी प्रकार की मनोकामना की पूर्ति इस मंत्र की साधना कर लेने के बाद आपको प्राप्त हो जाती है तथा आपके जीवन में आने वाली सभी भूत प्रेत जनित बढ़ाएं स्वत संपूर्ण रूप से समाप्त हो जाती हैं 

अगर आप किसी इस प्रकार की शक्ति से बाधित हैं और आपको पता है कि वह शक्ति एक शुद्ध बड़ा है और आपको बहुत अधिक संत्रास कष्ट दे रही है आपका शोषण हो रहा है तो उसे स्थिति में यह मंत्र आपकी बहुत अधिक सहायता कर सकता है विशेष तौर पर युवक और नव युवतियों को विपरीत लिंगी भूत प्रेत अक्सर बहुत अधिक पीड़ा देते हैं यहां तक की जबरन मजबूर होना पड़ता है ऐसी नीचे वृद्धि वाली शक्तियों को निवारण के लिए या मंत्र उसकी साधना बहुत अधिक कारगर है इस मंत्र को कई बार आजमाया जा चुका है यह मंत्र एक बहुत अच्छे महात्मा से प्राप्त हुआ था विपरीत लिंगी भूत प्रेत द्वारा युवक और नवयुवतियों के साथ होने वाले जबरन सहवास करने वाली शक्तियों को नष्ट करने के लिए मात्र 51 बार पढ़ लेना ही काफी रहता है 

हां अगर कोई व्यक्ति 108 बार प्रतिदिन जाप करें पास मछली अंडा शराब इत्यादि वस्तुओं से दूर रहे तो यह मंत्र अपनी पूर्ण प्रचंड वेग के साथ साधक की सभी समस्याओं का निवारण करता है।

इस साधना में रक्षा के लिए रुद्रअवतार श्री हनुमान जी के चालीसा का पाठ आपको प्रत्येक मंगलवार वाले दिन सात बार करना चाहिए ये लगातार पांच मंगलवार करें ,तो इस साधना से जो गरमाइश पैदा होगी वह गरमाइश शांत रहेंगी और ऊर्जा के सक्रिय होने पर आपको किसी प्रकार की मानसिक और शारीरिक हानि नहीं होगी।

सभी भूत प्रेत ग्रसित रोगियों के उपचार के लिए नाहर सिंह हनुमान और भैरव की शक्तियां अचूक मानी जाती हैं यही तीन शक्तियों है जिसे बड़े से बड़ा भूत प्रेत भी चिल्लाने लग जाता है और रोगी को छोड़ देने पर मजबूर हो जाता है।

बाकी सब बात होती है विश्वास की।

आप कोई भी छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी साधना करें आपके गुरु या उस्ताद का आपके सिर पर हाथ होना परम आवश्यक है ऐसा न होने पर आप कितने भी स्तर की ऊर्जा को प्राप्त कर लें या किसी भी प्रकार की सिद्धि हासिल कर ले तब भी आपको खतरा ही रहेगा। क्योंकि साधनाओं में भारी किया होती हैं और गुरु उस्ताद को वह बारीकियां पता होती हैं।

अपने गुरु और उस्ताद के अलावा दूसरा कहीं से मंत्र लेकर के साधना अथवा सिद्धि के लिए नहीं बैठना चाहिए क्योंकि सभी साधकों के  अपनी अपनी शैलियां और अपनी-अपनी अलग अलग पद्धतियां होती हैं।

यह मंत्र सिद्ध और सक्रिय है 108 बार इस मंत्र को जब करने पर इसकी शक्ति का अनुभव आपको हो जाएगा।

मत्थे टिक्का
हत्थ विच कड़ा
जिथे सिमरां नाहर सिंह वीर 
हज़ार खड़ा 
सवा मण का सोटा चलाओ
लड्डू पेड़े का भोग लगाओ
भूतां प्रेतां नु मार लगाओ
माता नाहरी दी आन
दूहाई सोढ़ी सरकार दी
दुहाई गुरु उस्ताद दी

इस मंत्र की साधना साधक के सभी समस्याओं का निवारण करती है । किंतु आपके ऊपर आपके गुरु जी के आशीर्वाद का होना परम आवश्यक है। अपने से गुरु से आज्ञा लेकर ही इस मंत्र का अनुष्ठान शुरू करें।

लगातार 40 दिन तक एक माला प्रतिदिन जाप करने के बाद सड़क के ऊपर वीर नाहर सिंह की विशेष कृपा होती है। एवं दर्शन प्राप्त होते हैं।

इस साधना में नाहर सिंह वीर को दिए जाने वाला भोग लड्डू पेड़ा बर्फी लौंग इलायची और शुद्ध देशी घी के हलवे की कड़ाही है।

जिन लोगों के घरों में नरसिंह वीर की जोत चलती है उन घरों में ये मन्त्र बहुत कारगर होता है।



लोना चमारी का मन्त्र।

लोना चमारी का मन्त्र।

विशेष:- यह चित्र केवल प्रतीकात्मक रूप से लगाया गया है।*

( यह लोना चमारी का मंत्र अधिकतर रूप से बहुतायत में सिद्ध हो जाता है किसी किसी स्थिर मन वाले और स्थिर ध्यान वाले साधकों को ही इनके दर्शन प्राप्त होते हैं वरना मंत्र 100% सिद्ध हो जाता है और कार्य करता है )।

माता लोना चमारी को तंत्र के क्षेत्र में कौन नही जानता  गुरु गोरखनाथ जी की शिष्या अपार शक्तियों की मालिक अगर किसी पर एक नज़र कृपा की कर दें तो साधक यन्त्र मन्त्र तन्त्र में पारंगत हो जाता है।

ये मन्त्र यहाँ पर बताने का कोई विचार नही था लेकिन बार बार शिष्यों के आग्रह करने पे ये मन्त्र यहां बता रहा हूँ इस लिए की समाज का कुछ भला हो सके और जो वास्तव में इस मंत्र के पात्र हैं उन्हें ये मन्त्र मिल सके।

जिस प्रकार श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की साधना से साधक आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार ये साधना सम्पन्न कर लेने पर अज्ञानी से अज्ञानी साधन भी यन्त्र मन्त्र तन्त्र में पारंगत हो जाता है।

इस मंत्र के सिद्ध हो जाने के बाद मनुष्य को बड़े बड़े मन्त्र और स्तोत्र कंठ और सिद्ध हो जाते है और तंत्र जगत के गुप्त रहस्यमयी विषयों के बारे में प्रकाश/ ज्ञान हो जाता है और सभी कठिन से कठिन साधनाओं में आने वाली समस्याओं का निवारण गुप्त रूप से चल जाता है और आध्यामिक दृष्टि से साधक आगे बढ़ जाता है ।

इस साधना को करने के बाद साधक की छठी इंद्रिय शक्ति इस प्रकार जागृत होती है कि उससे होने वाली सभी घटनाओं का पूर्व में ही ज्ञान हो जाता है और संकेतिक रुप से सभी होने वाली बातें उसके सामने दृष्टांत बनकर आंखों के सामने दिखने लग जाती है ।

इस साधना को करने के उपरांत साधन में साधक में अजीब से जीवनी शक्ति का संचार हो जाता है वह हर साधना को चाहे वह कितनी भी कठिन या जटिल क्यों ना हो सफलतापूर्वक संपन्न करने में सक्षम हो जाता है चाहे झाड़-फूंक हो या टोना टोटका यंत्र मंत्र तंत्र या कोई भी कठिन से कठिन साधना साधक आसानी से उनको कर लेता है।

साधक का वचन वांचा इतना पक्का हो जाता है जिस प्रकार उसे वचन सिद्धि प्राप्त हो जाए एवं साधक मजाक में भी कोई बात कह देगा तो वह वाक्य सत्य होगी इसलिए इस साधना को करने के बाद साधक को बोलने में संयम का प्रयोग करना चाहिए ताकि आपके द्वारा किसी जीव मात्र का बुरा ना हो।

जो लोग दूसरों का इलाज करते हैं झाड़-फूंक का कार्य करते हैं उनको अपने मंत्रों के प्रयोगों में इस लक्ष्य प्राप्त होने लग जाता है और दीन दुखी जो उसके पास आते हैं वह सब ठीक होने लग जाते हैं। झाड़ फूंक में बहुत असर आ जाता है।

इस मंत्र की साधना 41 दिनों की है और उसे संयम से किया जाना चाहिए लाल वस्त्र पहनकर लाल ही आसन पर और मूंगे की माला से इस मंत्र को किया जाता है पूजन सामग्री में धूप दीप फल फूल पांच मिठाई और नैवेद्य दिए जाते हैं इसका रात्रि में संपर्क किया जाता है जिसमें प्रतिदिन आपको पांच माला जाप करना होता है जाप करते समय पूर्व दिशा की तरफ अपना मुंह रखें सिरको और माला को ढक कर रखें एक गाय के गोबर के उपले के आग बना ले उस पर थोड़ा देसी घी बताशा और एक जोड़ा लॉन्ग प्रति मंत्र को पढ़ने के बाद आहुति दें ब्रम्हचर्य से रहें और भूमि पर शयन करें इस प्रकार 41 दिन करने से यह साधना संपन्न हो जाएगी शुरुआती दिनों में शक्तियां आप से चल कर सकती हैं इसलिए आपको सजग रहना चाहिए और किसी भ्रांति में नहीं पड़ना चाहिए इस साधना में कोई भरे इत्यादि नहीं होता है लेकिन देवी अन्यान रूप बनाकर के साद साधक को भ्रमित कर सकती हैं।

इसका मंत्र और विधि मैं आपको दे रहा हूं ऊपर बताई गई विधि के अनुसार निम्न मंत्र का जाप किया जाता है।

ॐ नमो लोना चमारी ,मात हमारी,भेंट तुम्हारी लौंग सुपारी,श्री सतगुर दीन्हा वाक, ठाड़ी खड़ो अब आय भवानी,मन्त्र विद्या सिद्ध कराओ,कामरू कामाक्षा देवी का वचन छूटे तो गुरु उस्ताद की दुहाई इस्माईल योगी की दुहाई। सतगुरु गोरक्षनाथ की आन।
 

शनिवार, 2 दिसंबर 2023

सप्रयोग महाविद्यास्तोत्रम्।

महाविद्यास्तोत्रम्-सप्रयोग

श्री गणेशाय नमः ।
महाविद्यां प्रवक्ष्यामि महादेवेन निर्मिताम् ।
उत्तमां सर्वविद्यानां सर्वभूताघशङ्करीम् ॥

सङ्कल्पः - ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे
अमुकगोत्रः - अमुकशर्माऽहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य)
गृहे उत्पन्न भूत-प्रेत-पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये ।

विनियोगः - ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्याऽर्यमा ऋषिः,
कालिका देवता, गायत्री छन्दः, श्रीसदाशिवदेवताप्रीत्यर्थे
मनोवाञ्छितसिद्ध्यर्थे च जपे (पाठे) विनियोगः ।

भगवान् शङ्कर द्वारा निर्मित उस महाविद्या को मैं कहता
हूं, जो सब विद्याओं में श्रेष्ठ तथा सब जीवों को वश में
करनेवाली हैं । पाठकर्ता दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत,
जल लेकर - ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ
अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकशर्माहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य)
गृहे उत्पन्न भूत-प्रेत-पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये
इति पाठ का सङ्कल्प करे ।

ध्यानम्
उद्यच्छीतांशु-रश्मि-द्युतिचय-सदृशीं फुल्लपद्मोपविष्टां
वीणा-नागेन्द्र-शङ्खायुध-परशुधरां दोर्भिरीड्यैश्चतुर्भिः ।
मुक्ताहारांशु-नानामणियुतहृदयां सीधुपात्रं वहन्तीं
वन्देऽभीज्यां भवानीं प्रहसितवदनां साधकेष्टप्रदात्रीम् ॥

पश्चात् ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्य - से विनियोगः तक
पढकर भूमि पर जल छोड दे ।

उसके बाद उद्यच्छीतांशु से साधकेष्टप्रदात्रीं  तक श्लोक
पढकर महाविद्या का ध्यान कर,  ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं से आरम्भ कर,
प्रेतशान्तिर्विशेषतः तक स्तोत्र का पाठ करे ।

ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं धनकरीं पुष्टिकरीं वृद्धिकरीं हलाकरीं
सर्वशत्रुक्षयकरीं उत्साहकरीं बलवर्धिनीं सर्ववज्रकायाचितां
सर्वग्रहोत्पाटिनीं पुत्र-पौत्राभिवर्द्धिनीमायुरारोग्यैश्वर्याभिवर्द्धिनीं
सर्वभूतस्तम्भिनीं द्राविणीं मोहिनीं सर्वाकर्षिणीं सर्वलोकवशङ्करीं
सर्वराजवश्ङ्करीं सर्वयन्त्र-मन्त्र-प्रभेदिनीमेकाहिकं
द्व्याहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पाञ्चाहिकं
साप्ताहिकमार्द्धमासिकं मासिकं चातुर्मासिकं षाण्मासिकं
सांवत्सरिकं वैजयन्तिकं पैत्तिकं वातिकं श्लैष्मिकं सान्निपातिकं
कुष्ठरोगजठररोगमुखरोगगण्डरोगप्रमेहरोगशुल्काविशिक्षयकरीं
विस्फोटकादिविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ वेतालादिज्वर-रात्रिज्वर-दिवसज्वराग्निज्वर-प्रत्यग्निज्वर-
राक्षसज्वर-पिशाचज्वर-ब्रह्मराक्षसज्वर-प्रस्वेदज्वर-
विषमज्वर-त्रिपुरज्वर-मायाज्वर-आभिचारिकज्वर-वष्टिअज्वर-
स्मरादिज्वर-दृष्टिज्वर-प्रोगादिविनाशनाय
स्वाहा । सर्वव्याधिविनाशनाय स्वाहा । सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ अक्षिशूल-कुक्षिशूल-कर्णशूल-घ्राणशूलोदरशूल-गलशूल-
गण्डशूल-पादशूल-पादार्धशूल-सर्वशूलविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाहा ।
सर्वस्फोटक-सर्वक्लेशविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ आत्मरक्षा ॐ परमात्मरक्षा मित्ररक्षा अग्निरक्षा प्रत्यग्निरक्षा
परगतिवातोरक्षा तेषां सकलबन्धाय स्वाहा । ॐ हरदेहिनी स्वाहा ।
ॐ इन्द्रदेहिनी स्वाहा । ॐ स्वस्य ब्रह्मदण्डं विश्रामय । ॐ विश्रामय
विष्णुदण्डम् । ॐ ज्वर-ज्वरेश्वर-कुमारदण्डम् । ॐ हिलि मिलि
मायादण्डम् । ॐ नित्यं नित्यं विश्रामय विश्रामय वारुणी  शूलिनी
गारुडी रक्षा स्वाहा ।

गंगादिपुलिने जाता पर्वते च वनान्तरे ।
रुद्रस्य हृदये जाता विद्याऽहं कामरूपिणी ॥

ॐ ज्वल ज्वल देहस्य देहेन सकललोहपिङ्गिलि कटि मपुरी
किलि किलि किलि महादण्ड कुमारदण्ड नृत्य नृत्य विष्णुवन्दितहंसिनी
शङ्खिनी चक्रिणी गदिनी शूलिनी रक्ष रक्ष स्वाहा ।

अथ बीजमन्त्राः

ॐ ह्राँ स्वाहा । ॐ ह्राँ ह्राँ स्वाहा ।
ॐ ह्रीँ स्वाहा । ॐ ह्रीँ ह्रीँ स्वाहा ।
ॐ ह्रूँ स्वाहा । ॐ ह्रूँ ह्रूँ स्वाहा ।
ॐ ह्रेँ स्वाहा । ॐ ह्रेँ ह्रेँ स्वाहा ।
ॐ ह्रैँ स्वाहा । ॐ ह्रैँ ह्रैँ स्वाहा ।
ॐ ह्रोँ स्वाहा । ॐ ह्रोँ ह्रोँ स्वाहा ।
ॐ ह्रौँ स्वाहा । ॐ ह्रौँ ह्रौँ स्वाहा ।
ॐ ह्रँ स्वाहा । ॐ ह्रँ ह्रँ स्वाहा ।
ॐ ह्रः स्वाहा । ॐ ह्रः ह्रः स्वाहा  ।
ॐ क्राँ स्वाहा । ॐ क्राँ क्राँ स्वाहा ।
ॐ क्रीँ स्वाहा । ॐ क्रीँ क्रीँ स्वाहा ।
ॐ क्रूँ स्वाहा । ॐ क्रूँ क्रूँ स्वाहा ।
ॐ क्रेँ स्वाहा । ॐ क्रेँ क्रेँ स्वाहा ।
ॐ क्रैँ स्वाहा । ॐ क्रैँ क्रैँ स्वाहा  ।
ॐ क्रोँ स्वाहा । ॐ क्रोँ क्रोँ स्वाहा ।
ॐ क्रौँ स्वाहा । ॐ क्रौँ क्रौँ स्वाहा ।
ॐ क्रँ स्वाहा । ॐ क्रँ क्रँ स्वाहा ।
ॐ क्रः स्वाहा । ॐ क्रः क्रः स्वाहा ।
ॐ कँ स्वाहा । ॐ कँ कँ स्वाहा ।
ॐ खँ स्वाहा । ॐ खँ खँ स्वाहा ।
ॐ गँ स्वाहा । ॐ गँ गँ स्वाहा ।
ॐ घँ स्वाहा । ॐ घँ घँ स्वाहा  ।
ॐ ङँ स्वाहा  । ॐ ङँ ङँ स्वाहा ।
ॐ चँ स्वाहा । ॐ चँ चँ स्वाहा ।
ॐ छँ स्वाहा । ॐ छँ छँ स्वाहा ।
ॐ जँ स्वाहा । ॐ जँ जँ स्वाहा  ।
ॐ झँ स्वाहा । ॐ झँ झँ स्वाहा ।
ॐ ञँ स्वाहा । ॐ ञँ ञँ स्वाहा ।
ॐ टँ स्वाहा । ॐ टँ टँ स्वाहा ।
ॐ ठँ स्वाहा । ॐ ठँ ठँ स्वाहा  ।
ॐ डँ स्वाहा । ॐ डँ डँ स्वाहा ।
ॐ ढँ स्वाहा । ॐ ढँ ढँ स्वाहा ।
ॐ णँ स्वाहा । ॐ णँ णँ स्वाहा ।
ॐ तँ स्वाहा । ॐ तँ तँ स्वाहा  ।
ॐ थँ स्वाहा । ॐ थँ थँ स्वाहा ।
ॐ दँ स्वाहा । ॐ दँ दँ स्वाहा ।
ॐ धँ स्वाहा । ॐ धँ धँ स्वाहा ।
ॐ नँ स्वाहा । ॐ नँ नँ स्वाहा  ।
ॐ पँ स्वाहा । ॐ पँ पँ स्वाहा ।
ॐ फँ स्वाहा । ॐ फँ फँ स्वाहा ।
ॐ बँ स्वाहा । ॐ बँ बँ स्वाहा ।
ॐ भँ स्वाहा । ॐ भँ भँ स्वाहा  ।
ॐ मँ स्वाहा । ॐ मँ मँ स्वाहा ।
ॐ यँ स्वाहा । ॐ यँ यँ स्वाहा ।
ॐ रँ स्वाहा । ॐ रँ रँ स्वाहा ।
ॐ लँ स्वाहा । ॐ लँ लँ स्वाहा  ।
ॐ वँ स्वाहा । ॐ वँ वँ स्वाहा ।
ॐ शँ स्वाहा । ॐ शँ शँ स्वाहा ।
ॐ षँ स्वाहा । ॐ षँ षँ स्वाहा  ।
ॐ सँ स्वाहा । ॐ सँ सँ स्वाहा ।
ॐ हँ स्वाहा । ॐ हँ हँ स्वाहा ।
ॐ क्षँ स्वाहा । ॐ क्षँ क्षँ स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ लेषाय स्वाहा । ॐ गणेश्वराय स्वाहा  ।
ॐ दुर्गे महाशक्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षस-
सर्ववेताल-वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा  ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ ब्रं ब्रह्मणे स्वाहा । ॐ विं विष्णवे स्वाहा ।
ॐ शिं शिवाय स्वाहा  । ॐ सूं सूर्याय स्वाहा ।
ॐ सों सोमाय स्वाहा ।
ॐ विं विष्णवे स्वाहा । ॐ शिं शिवाय स्वाहा ।
ॐ सूं सूर्याय स्वाहा  । ॐ सों सोमाय स्वाहा  ।
ॐ मं मंगलाय स्वाहा । ॐ बुं बुधाय स्वाहा ।
ॐ बृं बृहस्पतये स्वाहा । ॐ शुं शुक्राय  स्वाहा ।
ॐ शं शनैश्चराय स्वाहा । ॐ रां राहवे स्वाहा ।
ॐ कें केतवे  स्वाहा । ॐ महाशान्तिक-भूत प्रेत-पिशाच-राक्षस-
ब्रह्मराक्षस-वेताल-वृश्चिकभयविनाशनाय  स्वाहा ।
ॐ सिंह-शार्दूल-गजेन्द्र-ग्राह-व्याघ्रादिमृगान् बध्नामि स्वाहा ।
ॐ शस्त्रं बध्नामि स्वाहा । ॐ अस्त्रं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ  आशां बध्नामि स्वाहा । ॐ सर्वं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ सर्वजन्तून् बध्नामि स्वाहा ।
ॐ बन्ध बन्ध मोचनं कुरु कुरु स्वाहा ।

दिग्बन्धनम्

ॐ नमो भगवते रुद्राय
महेन्द्रदिशायामैरावतारूढं हेमवर्णं वज्रहस्तं
परिवारसहितं इन्द्रदेवताधिपतिमैन्द्रमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ ऐन्द्रमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय
अग्निदिशायां मार्जारारूढं शक्तिहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिमग्निमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अग्निमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ  नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय
दक्षिणदिशायां महिषारूढं कृष्णवर्णं दण्डहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं यममण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ यममण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।

ॐ नैरृत्यदिशायां प्रेतारूढं खड्गहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं नैरृत्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नैरृत्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्रां क्रीं क्रूं क्रैं क्रौं क्रः स्वाहा ।

ॐ पश्चिमदिशायां मकरारूढं पाशहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वरुणमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वरुणमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा  ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ वायव्यदिशायां मृगारूढं धनुर्हस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वायव्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वायव्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ उत्तरदिशायां यक्षारुढं मदाहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं कुबेरमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ कुबेरमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ अग्निदिशायां कूर्मारूढं लोष्ठभागं कुपरिघहस्तं
स्वपरिवारसहितं दिग्देवतधिपतिं पातालमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ पातालमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ दुर्गे महाशान्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-
ब्रह्मराक्षस-वेताल-वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ पूर्वदिशायां व्रजको नाम राक्षसस्तस्य
व्रजकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ अग्निदिशायामग्निज्वालो नाम राक्षसस्तस्याग्निज्वालस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां वध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ दक्षिणदिशायामेकपिङ्गलिको नाम राक्षसस्तस्यैकपिङ्गलिकस्याष्टा-
दशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ नैरृत्यदिशायां मरीचिको नाम राक्षसस्तस्य
मरीचिकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ पश्चिमदिशायां मकरो नाम राक्षसस्तस्य
मकरस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ वायव्यदिशायां तक्षको नाम राक्षसस्तस्य
तक्षकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ उत्तरदिशायां महाभीमो नाम राक्षसस्तस्य
भीमस्याष्टादसकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ ईशानदिशायां भैरवो नाम राक्षसस्तस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ अधः दिशायां पातालनिवासिनो नाम राक्षसस्तस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य तस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।

ॐ ब्रह्मदिशायां ब्रह्मरूपो नाम राक्षसस्तस्य
ब्रह्मरूपस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ नमो भगवते भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।
ॐ नमो महाशान्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षस-
वेताल-वृश्चिकभयविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ शिखायां मे क्लीं ब्रह्माणी रक्षतु ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ शिरो मे रक्षतु माहेश्वरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ भुजौ रक्षतु सर्वाणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ उदरे रक्षतु रुद्राणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ जङ्घे रक्षतु नारसिंही ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ पादौ रक्षतु महालक्ष्मी  ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ सर्वाङ्गे रक्षतु सुन्दरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।

परिणामे महाविद्या महादेवस्य सन्निधौ ।
एकविंशतिवारं च पठित्वा सिद्धिमाप्नुयात् ॥ १॥

स्त्रियो वा पुरुषो वापि पापं भस्म समाचरेत् ।
दुष्टानां मारणं चैव सर्वग्रहनिवारणम् ।
सर्वकार्येषु सिद्धिः स्यात् प्रेतशान्तिर्विशेषतः  ॥ २॥

इति श्रीभैरवीतन्त्रे शिवप्रोक्ता महाविद्या समाप्ता ।

अथाऽस्य स्तोत्रस्योत्कीलनमन्त्रः -

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्  ॥

अष्टोत्तरशतमभिमन्त्र्य जलं पाययेत् अथवा कुशैर्मार्जयेत् ।

इति सप्रयोगमहाविद्यास्तोत्रं समाप्तम् ।

महादेव के समीप में इस महाविद्यास्तोत्र के इक्कीस बार पाठ करने
से सिद्धि प्राप्त होती है ॥ १॥

चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।
दुष्टों का मारण तथा सब ग्रहों की शान्ति भी होती है ।
और सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है । विशेष करके
प्रेतबाधा की शान्ति निश्चित रूप से होती है  ॥ २॥

इस प्रकार श्रीभैरवी तन्त्र में भगवान शंकर से कही गयी
महाविद्या समाप्त हुई ।

इस स्तोत्र का उत्कीलन मन्त्र है - ॐ उग्रं वीरं से - नमाम्यहम्
तक । इस मन्त्र से एकसौ आठ बार जल को अभिमन्त्रित कर पिलाना
चाहिये अथवा कुश से मार्जन करे ।

गुरुवार, 23 नवंबर 2023

बगलामुखी देवी मंत्र के नुकसान

           माता बगलामुखी मन्त्र के नुकसान।
आद्य शक्ति भगवती माता बगलामुखी देवी सनातन धर्म में एक प्रमुख पूजनीय देवी हैं, दसमहाविद्या तन्त्र के अंतर्गत दुश्मनों को हराने और अपने भक्तों को नुकसान से बचाने के लिए उनकी पूजा की जाती है। 

माँ बगलामुखी या पीताम्बरा देवी के रूप मे भी जाना जाता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । दस महाविद्याओं में से एक हैं – महान ज्ञान देवी। बंगलामुखी देवी की पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है, और उन्हें शक्ति या दिव्य स्त्री ऊर्जा का एक उग्र रूप माना जाता है।

वैसे यदि हम बंगलामुखी नाम की बात करें तो इसका मतलब होता है , दुश्मनों को दूर भगाने वाली और नकारात्मकता को नष्ट करने वाली देवी । 

उनकी प्रतिमा एक हाथ में गदा पकड़े हुए और दूसरे के साथ एक राक्षस रूपी शत्रु की जीभ खींचती है, यह दर्शाता है कि वह नकारात्मक भाषण को दबा सकती है। उसे अक्सर खोपड़ियों से बने सिंहासन पर बैठे हुए भी चित्रित किया जाता है, जो मृत्यु पर विजय के प्रतीक के रूप मे देखा जा सकता है।

बगलामुखी के मंत्र का प्रयोग आमतौर पर शत्रु जैसी समस्याओं के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसे कि आपको शत्रु काफी अधिक परेशान कर रहे हैं। तो बगलामुखी विधान का प्रयोग किया जाता है।

यदि आप बगलामुखी साधना करना चाहते हैं , तो आपको पहले ही बतादें कि यह एक प्रकार की उग्र देवी होती है। इसलिए बिना गुरू के आपको इनकी साधना नहीं करनी चाहिए । यदि आप बिना गुरू के साधना करते हैं तो आपको भयंकर नुकसान हो सकते है। बगलामुखी मंत्र के नुकसान के बारे मे इस लेख में हम आपको यहां पर बताने वाले हैं।

जब हम बिना गुरू को धारण किये हुए कोई भी बगलामुखी की साधना करते हैं , तो वह साधना बिगड़ जाती है। और खास कर उग्र शक्तियों की साधना आप बिना जानकार के करते हैं तो इसके भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं। बगलामुखी मंत्र के नुकसान प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है 

बगलामुखी मंत्र के नुकसान 
 यदि आप बिना गुरू के या बिना किसी तरीके के बगलामुखी की साधना करते हैं , तो सबसे पहली बात आप देवी को देख नहीं सकते हैं। और देख नहीं सकते हैं , तो फिर आपको पता ही नहीं चलता है , कि आपने देवी की साधना की है या फिर किसी और की साधना की है। तो आपको यदि देवी सिद्ध हो गई है , तो फिर आपको दिखना चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं होता है।

चुड़ैले इत्यादि सिद्ध हो सकती हैं
वैसे यदि आप सही तरह से बगलामुखी की साधना करते हैं ,तो कोई समस्या नहीं होगी । परंतु कई बार क्या होता है , कि जब आप मंत्र की उर्जा पैदा करते हैं , तो इसकी वजह से आस पास की जो नगेटिव उर्जा होती है , वह आपकी ओर आकर्षित हो जाती है। और उसकी वजह से चुड़ैलें इत्यादि सिद्ध हो जाती हैं। और यह आपकी पूरी व्यवस्था को बरबाद कर देती हैं। आप तो जानते ही हैं कि ये किसी का भला क्या कर सकती हैं।

और एक बार यदि आपके पीछे कोई ऐसी निम्न स्तरीय शक्ति लग जाती है , तो फिर उस से आपका पीछा छूटाना काफी अधिक क​ठिन हो जाता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । इसलिए सोच और समझ कर ही साधना करें ।

बगलामुखी साधना के नुकसान आप मनोविक्षिप्त अर्थात पागल हो सकते हैं यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं और कोई और शक्ति उसकी जगह पर आ जाती है। तो इसका असर आपके दिमाग पर सीधा पड़ता है। और यह शक्ति आपके दिमाग को घूमा देती है। और आपको पता नहीं चल पाता है कि आप के साथ क्या हो रहा है।

और एक बार आपके दिमाग के उपर असर हो जाता है तो आप पागल हो सकते हैं।बहुत समय पहले चंडीगढ़ से एक लड़के का केस आया था, जोकि इसी तरह की साधना कर रहा था । उसको देवी तो सिद्ध हुई नहीं लेकिन एक निम्नस्तरीय शक्ति सिद्ध हो गई और उसकी वजह से उसको काफी परेशानी हुई ।

बहुत अधिक गर्मी का महसूस होना और भ्रम का होना 
दोस्तों यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं , तो आपको बहुत अधिक गर्मी लग सकती है। और आपको अचानक से आपको ठंड लग सकती है। ऐसा एहसास हो सकता है , कि आप सारे कपड़े उतारकर फेंक दें । 

इसके अलावा आपको यह भी एहसास हो सकता है , कि आपके कमरे के अंदर कोई चल रहा है। इस तरह के अजीब अजीब अनुभव हो सकते हैं। और अधिकतर यह सब चीजें भूत प्रेत की वजह से हो सकता है। उस समय ये आपको पता नहीं चलेगा ।

हमेशा ये याद रखें देवी किसी का बुरा नहीं करती है। मगर देवी के नाम पर जब आप साधना के अंदर कमी करते हैं तो कुछ डाकिनी शाकिनी इत्यादि निम्नस्तरीय शक्तियां आ सकती हैं। और वह आपकी मंत्र उर्जा को चुरा लेंगी । और यह उस उर्जा का प्रयोग करने लग जाएंगी । ताकि यह खुद उस उर्जा की मदद से काफी ताकतवर हो जाएं ।

आपको यह पता भी नहीं चलेगा कि आपके साथ क्या हो सकता है? इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।

इसके अलावा यदि आप देवी बगलामुखी साधना करते हैं। और उसके अंदर गलती करते हैं , तो एक यह नुकसान भी हो सकता है , कि क्षुद्र शक्तियां आपकी उर्जा को चुरा लेंगी । इसके अलावा वे कई बार साधक की मौत का भी कारण बन सकती हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । इसलिए आपको जो कोई भी साधना करनी है , सब कुछ सोच समझकर ही करना होगा । नहीं तो नुकसान होने का खतरा काफी अधिक बढ़ जाता है।

असल मे इस तरह की साधना करने से क्षुद्र शक्तियां आपके पीछे लग जाएंगी । और वे आपको एहसास ही नहीं होने देंगी कि वे क्षुद्र शक्तियां हैं या फिर देवी हैं ? आपको लगेगा कि देवी है। लेकिन देवी कभी किसी के पीछे नहीं घूमती है। और इसी चक्कर मे आप अपने प्राण गवा सकते हैं। इसलिए कोई भी साधना सोच समझकर ही करें । इसलिए साधना करने से पहले आपको चीजों के बारे मे ठीक तरह से जान लेना चाहिए ।

 जब आप किसी देवी या देवता का मंत्र का जाप करते हैं , तो उसकी वजह से क्षुद्र शक्तियां female lower energy आपकी तरफ आकर्षित हो जाती हैं। और उसके बाद वे आपके साथ संबंध भी बना सकती हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि ऐसा होगा तो आपको पता चलेगा कि आप काफी अधिक कमजोर महसूस करेंगे । और आपको लगेगा कि आपके साथ रात मे कोई दुष्कर्म कर रहा था ।

और यह जो समस्याएं होती हैं वे अक्सर तब होती हैं , जब आप किसी बिना गुरू के साधना करने बैठ जाते हैं। तो इस बात को आपको अच्छी तरह से समझ लेना है। और आपको गुरू के बताए मार्ग पर चलकर ही साधना करनी होगी ।

 यदि आप बगलामुखी की साधना सही तरह से नहीं करते हैं तो इसका नुकसान होना तय होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि आप बिजनेस कर रहे हैं या फिर कोई काम कर रहे हैं , तो उस काम के अंदर आपको अचानक घाटा होना हो जाएगा । और आपको इसके बारे मे कुछ भी पता ही नहीं चल पाएगा । तो यह सब नुकसान इस साधना से हो सकते है।

दोस्तों यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं , तो इसका एक नुकसान यह भी होता है। इसकी इसकी वजह से आस पास की जो बुरी शक्तियां होती हैं , वे आपके उपर आक्रमण कर देती हैं। और वे आपको हमेशा परेशान करती रहती हैं। और जब आदमी काफी अधिक परेशान हो जाता है , तो फिर वह solution के लिए भागता है। आप इस बात को समझ सकते हैं , तो चीजों को सोच समझकर ही करें ।

दूसरी अन्य निम्न स्तरीय और शुद्र शक्तियों की साधनाओं में साधक को प्रत्यक्षीकरण नही होता बगलामुखी माता के मंत्र अनुष्ठान के बाद साधक के आस पास बहुत प्रचंड ऊर्जा का संचरण होता रहता है जिसके कारण अगर साधक कभी किसी अन्य भूत प्रेत जिन्न बेताल की साधना करता है तो उस में साधक को कभी  प्रत्यक्षीकरण नही हो पाता।

बगलामुखी साधना के बारे मे संक्षिप्त जानकारी।

​ सतयुग के अंदर एक बार समुद्र के अंदर काफी भीषण तूफान उठा तो फिर भगवान विष्णू ने तप करने की ठानी ।उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ था । 

इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।आपको बतादें कि बगलामुखी के वस्त्र और पूजन सामग्री पीले रंग की होती है , और इसके अंदर साधना के लिए हल्दी की माला का प्रयोग किया जाता है।

अब हम आपको यहां पर बताने वाले हैं कि बगलामुखी की साधना किस तरह से की जाती है । और इसके बारे मे विस्तार से बताएंगे ।

इसके लिए आपको पीले वस्त्र को धारण करना होगा । बाल भी नहीं कटवाना होगा । मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें। और दीपक की बाती को हल्दी के रंग से रंगकर सूखा लेना होगा । उसके बाद साधना के अंदर कौनसा मंत्र best होता है ।

 इसके बारे मे आप अपने गुरू से परामर्श करें ।

साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है।और इसको चांदी के पात्र या फिर तांबे के पात्र पर अंकित करवाया जाना चाहिए ।

 इसकी सही साधना के बारे मे अपने गुरू से परामर्श करें । और आपका गुरू आपको जो निर्देश देता है। आपको उसका पालन करना चाहिए । 

प्रभावशाली मंत्र मां बगलामुखी विनियोग मंत्र के बारे मे जानकारी

अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। 
श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। 
स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।

ॐ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

आवाहन
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

मंत्र
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।

आपको बतादें कि मां बगलामुखी के मंत्र का आपको ठीक तरह से जाप करना चाहिए । और यदि आप ठीक तरह से नहीं करते हैं , तो आपके लिए नुकसान हो सकता है। आप इस मंत्र को 5 लाख बार जाप करें । 

ऐसा करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा ।

बगलामुखी देवी की साधना के फायदे
इस लेख में हम आपको संक्षिप्त रूप में बगलामुखी देवी की साधना के फायदे के बारे मे बताने वाले हैं। यदि आप यह साधना करते हैं । तो इसके कई सारे फायदे आपको मिलते हैं। जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं बगलामुखी साधना के फायदे ।

बगलामुखी की साधना से जातक के जीवन मे समृद्धि आती है।
यदि आपके घर के अंदर धन की काफी अधिक कमी है , तो आप यह उपाय कर सकते हैं। 

लेकिन हमेशा याद रखें कि यदि आप गलत तरीके से साधना करते हैं । तो इसकी वजह से बड़ा नुकसान भी हो सकता है। 

आपकी मनोकामना पूर्ण होती है।

यदि आप बगलामुखी साधना को करते हैं जिसकी वजह से आपकी मनोकामना पूर्ण होती है। यदि आप अपने मन मे कोई इच्छा लिए बैठें हैं तो उसके पूरे होने के चांस काफी अधिक बढ़ जाते हैं। यह एक तरह से काफी अच्छी साधना है।

नौकरी और व्यापार से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं।

दोस्तों आपको बतादें कि यदि आप बगलामुखी देवी की साधना करते हैं , तो इसका एक बड़ा फायदा यह भी होता है । कि यह आपकी नौकरी और व्यापार से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं। यदि आपका नौकरी या फिर काम अच्छा नहीं चल रहा है , तो इस साधना से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी और आपका बिजनेस भी काफी तेजी से ग्रो होता है। कुल मिलाकर यह आपके काम के लिए काफी बेहतर साधना होती है। आप इस बात को समझ सकते हैं।

ग़ैब से खबरें हासिल करना।

.             ग़ैब से खबरें हासिल करना।

क्या आप कभी सर्कस देखने गए हैं अगर नही गए तो आपको मेरे कहने से एक बार अवश्य ही जाना चाहिए और वहाँ पर दिखाए गए हुए करतबों को और उनको करने वाले माहिर लोगों को अवश्य देखें और फिर अपने मन में एकाग्रता से विचार चिंतन करना चाहिए 

कि ये जो लोग सर्कस में करतब दिखाते हैं वो सामान्य रूप से आपके ही जैसे हैं लेकिन जिन व्यक्तियों के करतबों को देखकर आप अपनी दांतो ठाले उंगली दबा लेते हो उनमें और आप में क्या अंतर है।

वो आसामान्य करतब कर सकते हैं लेकिन आप नही कर सकते आखिर क्यों ?

आप और सर्कस के उस्तादों में ये अंतर है कि उन्होंने अपने काम पर 100% focus किया और अपने आपको perfect बनाया उन्होंने दिनों और समय की गिनती किये बगैर अपने काम को ईमानदारी से किया और वो Mr..perfect बन गए 

लेकिन आपका मन diverted रहता है । comfort zone की तलाश में रहता है miracles की तलाश में में रहता है luxurious life चाहिये लेकिन कभी ये नही सोचा  की आपका परिश्र्म कम है अभी और करना है आपको और भी perfect होना है आपको अपने software को upgrade करते रहो।

उस बच्चे के बारे में सोचो जो बच्चा अभी अभी साइकिल चलाना सीख रहा हो बीस बार गिरेगया गुटने टूटेंगे हाथ पाँव छिल जाएंगे सिर भी कई बार फूटेगा लेकिन साइकिल चलाना तब तक बंद नही करेगा कि जब तक वो साईकल चलाना  perfectly ना सीख जाए।

ग़ैब की खबरें हासिल करने के लिए ये मुस्लिम नूरी अमल बहुत ज्यादा ज़बरदस्त है। 

अपने ध्यान में किसी  विषय वस्तु पर इतना ज्यादा focus
करने के बाद  एक स्तर पर जाकर मनुष्य के मस्तिष्क में एक ऐसी परालौकिक ऊर्जा का संचार होने लगता है कि जिस विषय पर सोचना शुरू करता है उसे उस विषय वस्तु के भविष्य के बारे में सभ कुछ 100% accurately पता चल जाता है। 

अवचेतन मन की शक्ति जब संचारित होती है तो बड़े बड़े लोग भी अचंभित रह जाते हैं। ऐसी ही एक साधना मैं आपके लिए लेकर आया हूँ।

निम्न मन्त्र का लगातार 21 दिन प्रतिदिन 475 बार जाप आधी रात को तनहाई में करें। उस से पहले अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लें 7 बार आयतल कुर्सी पढ़कर अपनी छाती पर 3 बार फूंक मारलें।

 खुशबूदार इत्र अपने बदन पर लगाएं 

 कपड़े साफ सुथरे पहने।

सिर को ढक कर रखें

दोजनु वीरासन में बैठना चाहिए

अपने शरीर को साफ सुथरा रखें जहाँ पर जाप करें वहीं पर चुपचाप सो जाना चाहिए।

जाप के दौरान आने वाली आवाज़ों की तरफ ध्यान देने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है प्रतिदिन जाप एक ही समय और एक ही स्थान पर करें।

अपने सामने एक सरसों के तेल का दीया जलाएं और कुछ अगरबत्तियां जलवे  तथा कुछ मीठा बतासे इत्यादि भोग रखें और दूसरे दिन छोटे छोटे बच्चों में बांट दें।
रिजालूलगैब का ध्यान रखें। 

"सुबहान रब्बिअल आला"।

अव्वल और आखिर सौ सौ बार दरूद इब्राहीमी जरूर पढ़ें। 

इस अमल को काबू में रखने के लिए इस मन्त्र को प्रतिदिन 70 बार रोज़ाना पढ़ें।

इससे इसके आमिल को जीवन भर के लिए ग़ैब की खबर मालूम होनें लग जाती हैं ।

सोमवार, 10 जुलाई 2023

राम नाम



मनोकामना पूर्ण करने के लिए क्या करें ? 

इसके लिए हमारे धर्म शास्त्रों में बहुत सारे यन्त्र मंत्र तन्त्र और जप विधियां बताई गई हैं पर इन सब में सबसे सरल राम नाम लेखन बताया गया है। जिसे हर कोई आसानी से कर सकता है। तो आइये आज जानते है कैसे राम नाम जाप और राम नाम को लिखने की विधि।

महत्व तारक मन्त्र राम और श्री राम के नाम में एक महान शक्ति  है।  राम नाम की महिमा और शक्ति को जानने वाला आपको कोई नहीं मिलेगा,  यह मन को शांत और स्थिर करने वाला राम नाम का एक बहुत बढ़िया उपाय हैं। मन को शांति मिलेगी लग्न पूरी हो तो राम को भी पा सकोगे राम नाम का लेखन का कार्य एक महान यज्ञ समान हैं।

चमत्कार तथा लाभ - 

इस युग से आप राम नाम के लेखन को एक-एक आहुति समझ कर देखें राम नाम से राम को सदा हृदय में विराजमान भावना से लिखना चाहिए। 

राम नाम लिखने की विधि- 
राम नाम जाप की अनेक विधियां हैं उनमें से सबसे ज्यादा विधि राम नाम लेखन की सर्वोत्तम विधि है। 
राम नाम के लेखन से राम राम सुंदर सुंदर लिखे एक सफेद कागज पर लाल सही या लाल पैन से लिखिए। कागज पर लाइन नही होनी चाहिए वह एकदम पलेन होना चाहिए।  
लाल रगं  के पैन से लिखे कयोंकि लाल रंग प्रेम का प्रतिक है और प्रभु नारायण का लाल रंग से गहरा नाता है। सबसे पहले राम को प्रणाम करके धूप दीप जलाकर प्रणाम करें। 
यह भी पढ़े- मनोकामना पूरी करने के लिए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
राम नाम लेखन में जाप की अपेक्षा 100 गुना अधिक पुण्य फल मिलता है। ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा गया है। राम लेखन स्वयं जाप है। राम नाम लेखन मौन के साथ लिखना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। 
प्रतिदिन एक पृष्ठ कम से कम या इससे अधिक लेख लिखें। 
राम नाम का लेखन कभी भी कहीं पर भी जितना भी लिख सकते हो। इसके लिखने की कोई नियम यह समय नहीं है ,लेकिन शुद्धता का ध्यान जरूर रखना है।  

राम लेखन लिखते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि यह नियम 90 दिन तक इसका क्रम टूटने ना पाए तभी आपकी मनोकामना पूरी होती है। जब भी लिखना शुरू करें एक भी दिन बीच में ना छूटे पूरे लगातार 90 दिन तक लिखने से ही इंसान की हर मनोकामना पूरी होती है ।

जिस मनोकामना आप लिखते समय मन में धारण किया हुआ है वह हर हाल में पुरी होती है। इसमें किसी भी प्रकार का शक नहीं है। यह मेरा खुद का निजी अनुभव है।

अगर आप गलती से लिखना  भूल जाते हो तो उसे आप  सोने से पहले किसी भी टाइम जब आपको  याद आ जाए तब भी आप इसको लिखना शुरु कर सकते हो। 

राम लेखन के लाभ -
84 लाख योनिया भोगने के बाद राम नाम जाप लिखने वालों को इस संसार चक्र से जीवन मरण से मुक्ति मिल जाती हैं। पापों का नाश हो जाता है क्योंकि मनुष्य जन्म 84 लाख योनियों भोगकर प्राप्त होता है। राम नाम लेखन निष्काम या सकाम दोनों तरह से किया जा सकता है। 

राम नाम का लेखन  प्रत्येक दिन जरूर करें एवं दूसरों को भी लिखने के लिए प्रेरणा अवश्य प्रदान करें। ऐसा मनुष्य श्री भगवान को बहुत प्रिय होता है। राम नाम लिखने का कार्य यदि नियम पूर्वक शुद्ध हृदय से आपका शुरू करेंगे तो शुरू करने से कुछ ही दिनों में आप इसके आश्चर्यजनक परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे । 

आपके मन को शांति मिलेगी आत्मबल बढ़ेगा आप के कष्ट कटने शुरू हो जाएंगे। इसका पूर्ण  लाभ लेने के लिए 90 दिन तक लगातार  हर रोज लिखे।  ऐसा करने से आपकी मनोकामना जल्दी पुरी होती है। 

श्री गणेश जी नारद जी के सुझाव के अनुसार पृथ्वी पर राम का नाम लिखकर उस राम के नाम की सिर्फ तीन बार परिक्रमा करके विजय प्राप्त कर ली और सारे संसार और देवताओं को सबसे पहले पूजा स्थान प्राप्त कर लिया था।

 इस राम नाम में एक अद्भुत और बहुत बड़ी शक्ति है। अपने सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए धन, सुख शांति , और  नित्य वृद्धि  के लिए राम नाम लिखना शुरु करके देखो। आपके कष्ट अवश्य कट जाएंगे 

बस ध्यान रहे राम नाम लिखते समय कापी  बिना लाईन के हो और पेज  एक ही तरफ लिखना है, दूसरी तरफ नहीं लिखना होता। और लाल रंग से लिखना है।
राम नाम एक महान पारस मणि है।
 
राम नाम एक अद्भुत शक्ति है। राम को मंत्र जपने से थोड़े ही समय में सुख ,आनंद, सर्व सिद्धि और प्रभु नारायण राम के दर्शन भी हो सकते हैं। राम के नाम से सारी इच्छाएं कामनाये  पूरी हो सकती हैं। प्रभु नारायण के किसी भी एक नाम भजो, तपो यह  सभी महान शक्तियां  हैं। भगवान बुद्ध ने भगवान की भक्ति और ध्यान लगाकर ही भगवान से दिव्य शक्ति और मुक्ति प्राप्त की और इस संसार में अमर हो गए। भगवान  ईसा ने भी  प्रार्थना के द्वारा दिव्य शक्ति,  मुक्ति प्राप्त की और वह भी अमर हो गए।

राम नाम लेखन के अनुभव -
 महात्मा गांधी जी राम नाम के बहुत बड़े भक्त थे इसी नाम से उन्होंने सारे कार्य सिद्धि प्राप्त की और वह अमर हो गए।
 भगवान की प्रार्थना ध्यान जब भगवान को प्राप्त करने से अनेक रास्ते हैं जो भी रास्ता आपको अच्छा लगे उसी रास्ते  पर जा सकते हो।  
 
जिस पर भगवत कृपा होती है उन्ही को कथा सुंनने  का और संत पुरुषों का सानिध्य प्राप्त होने का सौभाग्य प्राप्त होता है। भगवान की कथा सुनने से प्रेम का भाव होता है और यह ज्ञान होता है।

कण-कण में भगवान व्याप्त हैं और मानव  मे एक्य भावना का उदय होता है । जो व्यक्ति सबके हित के लिए सोचते हैं और उसके कार्य मानव मात्र की भलाई के लिए होते हैं। उसे कभी दुख नहीं होता जिसके हाथ में पारस मणी आ गई हो ।वह कभी निर्धन नही हो सकता।

 भगवान का नाम पारस मणि के समान है। कबीर जी कहते हैं राम नाम एक ऐसी चीज है जिसे पाने के बाद और कुछ  पाना बाकी नहीं रह सकता। जिसे जानने के बाद कुछ और जानना बाकी नहीं रहता है। जहां पहुंचना के बाद  मां के गर्भ में नहीं आना पड़ता । यह ऐसा दिव्य भगवान का नाम है।  राम का नाम दीन दुखियों का दुख मिटा सकता है, रोगियों को रोग मिटा सकता है, पापियों का पाप हर सकता है, भक्तों से भक्त बना सकता है, मुर्दे में प्राण का संचार कर सकता है ,अर्थात भगवान असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
संसार में जो वस्तु अपने को सबसे प्रिय हो उस वस्तु पर सर्वाधिक स्नेह  हो वह प्रभु को समर्पित कर दें। ऐसा करने वाले के लिए है अनंत फल देने वाली हो जाती है।

इस कलयुग में सिर्फ मनुष्य श्री राम के नाम जाप समरण से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। अन्य कोई साधन उपलब्ध करने की जरूरत नहीं है। भगवान श्री राम  कहते जो मनुष्य अपना मस्तक मेरे चरणों में रखकर और अपने दोनों हाथों से दाएं से दाहिने और बाएं से  बाएं चरण पकड़ कर कहे हे भगवान इस संसार सागर में डूब रहा हूं मृत्यु रूप ग्रह  मेरा पीछा कर रहे हैं।  मैं बहुत ही भयभीत हूँ।   हे प्रभू आप की शरण में पड़ा हूं ,आप मेरी रक्षा करो। ऐसे कहने वाले जीव आत्मा को मैं हमेशा  के लिए आप अभय कर देता हूं।

राम  नाम लिखते लिखते आदमी राम को ही लिख लेता है,  जान लेता है,पहचान लेता है, राम नाम लिखने से कर्म भी होता है और ञकर्म शुद्धि भी होती हैं  और इसमें मन भी लगता है, और मन की शुद्धि भी होती है। राम नाम लेखन में यह विशेषता है कि अपनी पूरी चेतना लिखते समय उसमें में रहती है। क्रिया भी वही, विचार भी वही, भावना भी हुई, और इस प्रकार क्रिया शक्ति विचार शक्ति एवं ये तीनों  शक्तियां सर्वात्मन इसमें लगती है । जप के  समय ध्यान इधर-उधर हो सकता है, पर लेखन के समय पूरा ध्यान उन्ही  में लग जाता है।  

यह पूर्ण मनोयोग से इसमें लग सकते हैं। राम नाम के सभी विधानों का बड़ा महत्व है। लेकिन विधान विशेष इसलिए होता है जब लिखेंगे तो स्वभाविक ही आंख ,मन और हाथ में तीनों एकाकार करने होंगे। अतः मन इंद्रिय दोनों का सहयोग होता है । मानसिक एकाग्रता और शांति के लिए लिखित मंत्र जप बहुत प्रभावशाली होता है। किसी साफ , हवादार, एकांत जगह पर बैठकर धैर्य और गंभीरता पूर्वक अवश्य लिखें तो तभी बहुत लाभ होगा। मानसिक एवं शारीरिक रूप से शांति मिलती है। यह एक अनुभव किया हुआ प्रयोग है। धरती पर जितने भी महान संत हुए हैं उन सब ने राम नाम को  जप , तप और लिखा है ।ऐसा हमारे शास्त्रों में धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है।

अगर आप की भी कोई मनोकामना अधुरी हो तो  राम लेखन लिखना शुरू करें।  राम लेखन को तन मन धन से समर्पित होकर लिखें। लिखते  समय किसी भी प्रकार की शंका  मन में ना लाएं तभी यह राम नाम आपका बेड़ा पार लगा सकता है। 

सोमवार, 5 जून 2023

वशीकरण की काट।

                 वशीकरण को काटना।

वशीकरण एक ऐसी क्रिया होती है जिससे प्रभावित व्यक्ति अपनी स्थिर मानसिकता खो देता है अर्थात मानसिक स्वतंत्रता खो देता है और हमेशा वशीकरण प्रयोग करता के विषय में ही सोचता रहता है उसी के ख्यालों में खोया रहता है।

चाह कर भी प्रयोग करता के विषय में सोचना बंद नही कर पाता हालात ये हो जाते हैं कि वशीकरण की शक्ति धीरे धीरे पीड़ित व्यक्ति में उच्चाटन के हालात पैदा कर देती है और वशीकरण से पीड़ित व्यक्ति अपने कर्तव्य अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को भूलकर नीच कार्य करने पर मजबूर हो जाता है।

तथा व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा भंग हो जाती है बहुत बार ये शक्ति किसी शारीरिक रोग जैसे सिर दर्द आंखों के आसपास काले घेरे पड़ जाना ,कलेजे में दर्द अथवा बहुत सारे विकृत मनोरोगों जैसे लक्षण पैदा कर देती है यदि समय रहते इसे ना काटा जाए तो ये पीड़ित व्यक्ति जीवन के लिए प्राणघाती साबित होती है।

यदि आपके किसी अपने पर यंत्र मंत्र तंत्र द्वारा किसी ने कोई वशीकरण डाल दिया है और वशीभूत कर लिया है एवं उसके द्वारा कोई अनैतिक संबंध अथवा अनैतिक रिश्ता बनाने की कोशिश करने लगे और आपका कोई अपना वशीकरण के प्रभाव में आकर गलत मार्ग पर चले तो क्योंकि सामाजिक प्रतिष्ठा एक बहुत बड़ी बात है इस लिए उस वशीकरण को काट देना उत्तम कार्य है। 

वैसे तो ऐसी परिस्थिति में आदमी पीछे हट जाता है किंतु कई बार हालात ऐसे होते है कि पीछे भी नही हटा जा सकता। मान लो आपकी अपनी ही संतान की के बहकावे में आकर गलत संगत में पड़ जाए और आपके घर के हालात खराब हो जाएं तो इस अवस्था में आपके पास क्या विकल्प बचेगा बस यही कि वशिकरण को काट दिया जाए।

अगर आप किसी भी तांत्रिक इत्यादि के पास जाते हैं तो ये काम हो ना हो इसकी शंका रह जाती है और धन का जो अपव्यय हो वो अलग आज मैं आपको एक ऐसी युक्ति बताने जा रहा हूँ जिससे वशीकरण का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

इस प्रयोग की सफलता दर 99.9% है लेकिन 0.1% हालात समय एवम परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर ये प्रयोग कभी खाली नही जाता अगर लगातार इस के द्वारा बनाया हुआ( तैयार किया हुआ अभिमंत्रित) जल उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार साबुन से मैल उतरती है।

इसकी विधि आसान है (कोई रॉकेट साइंस जैसे जटिल नहीं) लेकिन जब आप इस उपाय को करें तो गुप्त रूप से ही करें। गोपनीयता सफलता की सूत्र है ये हमेशा याद रखें।

प्रयोग में प्रयुक्त सामग्री :-एक लकड़ी के दस्ते वाला चाकू,उसे तपाने के लिए आग, और पानी का एक पात्र तांकि गर्म और सुर्ख चाकू को पानी में बुझाया जा सके।

विधि :- एक लकड़ी के दस्ते वाले चाकू को आग में तपाकर सुर्ख कर लें और जब चाकू सुर्ख हो जाये तो 
निम्नलिखित मन्त्र (जोकि पहले से ही याद कर लिया जाना चाहिए) पढ़ते हुए पानी में भुझा लें इसी प्रकार 108 बार भुझावें।

फिर जो पानी तैयार हो जाये उसका प्रयोग वशीकरण के प्रभाव से पीड़ित को पिलाने में करें ये पानी पीड़ित को 21 दिन लगातार पिलावें 101% वशीकरण का प्रभाव जाता रहेगा।

ये मन्त्र सिद्ध है इसलिए इसे याद करने की ही आवश्यकता है हां अगर आप चाहें तो इसे ग्रहण,पर्व अथवा अमावस्या पूर्णिमा पर 108 बार पढ़कर और शक्तिशाली कर सकते हैं। ये प्रयोग मेरे द्वारा सफलता पूर्वक लगभग 50 से 55  लोगों पर किया जा चुका जिसके परिणाम हमेशा ही सकारात्मक मिले।

मन मोहे मनमोहिनी      गढ़ फोड़े हनुमान।
माया तोड़े नार सिंह नाहरी का वीर जवान।

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शनिवार, 3 जून 2023

तांत्रिक क्रिया की काट और उसको पलटना

      तांत्रिक क्रिया की काट और उसको पलटना

जब कभी किसी समय ऐसा हो जाए कि आपकी साधनाओं द्वारा प्राप्त शक्तियां और मन्त्र काम करना बंद कर दें आउर नज़र भी बंद हो जाए विद्या ना चले कोई काम ना चले हर एक काम में असफलता हाथ लगे और बार बार प्रयास करने के बाद भी आप असफल रहें एव कोई मार्ग आपके सामने ना बचे तो एक असाधारण मंत्र और उनका उसका अनुष्ठान में आपको बता रहा हूं।

यह प्रयोग आजमाया हुआ है और हर बार सफलता मिली जब इस क्रिया को लगातार किया गया और निष्ठापूर्वक किया गया। तो इसके द्वारा निराश नही हुए।
यहाँ मैं आपको मन्त्र और इसका प्रयोग तो बता दे रहा हूँ 

लेकिन एक बात याद रखना कि साधक का आत्म विश्वास ही सभ कुछ होता है वही साधक को सफलता प्राप्त करवाता है यहां मैं आपको ये प्रयोग बताने के कोई रुपये पैसे आप से नही ले रहा हूँ फिर जिस के मन मे विश्वास हो वो इसे इस्तेमाल कर के देख सकता है। बराबर काम करेगा।

इस प्रयोग को आप रविवार से मंगलवार तक करें। और प्रयोग को सर्वथा गुप्त ही रखें। 

जब आप इसे सभी को बता कर करेंगे तो हो सकता है कि जिसने आपका बंधन किया है वो इसी दौरान आपका अमंगल भी करने से ना चूके।

(कॉपी पेस्ट वाले भाई सावधान चोरी चण्डली की विद्या आपको फलीभूत नही होगी।)

इस बात को किसी भी शुभ समय पर 108 बार जप करके होम करने और जब-जब अमावस पूर्णिमा या कोई भी त्यौहार अथवा कोई ग्रहण आए तो दोबारा 108 बार जप करने कर ले एवं भगवान शिव की आराधना भक्ति में ही तत्पर रहें  (ॐ नमः शिवाय) का लगातार जाप करते रहें आपकी अध्यात्मिकता पराकाष्ठा पर रहेगी।प्रति सोमवार और त्रयोदशी को भगवान शिव के मंदिर में जाने का नियम बना लें। इससे अवश्य ही आपको लगातार परामनोवैज्ञानिक अनुभूतियाँ होंगी।

मन्त्र:-
ॐ गुरु जी को आदेश ।
घोरी घोरी महाघोरी।।
घोरी तूं  महाकाल ।
ढाई घड़ी में खेल पलट दे,
देखूं तेरा कमाल।।

इस प्रयोग को 3 दिन लगातार किया जाता है सफलता अवश्य मिलेगी। इस प्रयोग की सफलता के लिए प्रयोग को सर्वप्रथम सबसे गुप्त रखा जाता है। सवा किलो नींबू लेकर अपने सिर से उल्टा सात बार उतार लें ।

अगर आपके घर या गद्दी पर भी बंधन है या किसी कारोबार पर भी बंधन है तो उसके चारों कोनों में एक एक नींबू रखें और उन्हें काटकर माता काली को समर्पित करें उस पर थोड़ा-थोड़ा रखकर कपूर जलाएं इसके उपरांत चुपचाप सभी नींबू को इकट्ठा कर ले।

इसी मंत्र का जाप करते हुए जो नींबू सवा किलो आपने आपमे सिर से उतारे थे उन्हें भी दो हिस्सों में प्रत्येक नींबू को काट लें इसके उपरांत उक्त मंत्र का एक माला जाप करें अपने इष्ट देव और पित्र से बंधन मुक्ति हेतु प्रार्थना करें प्रार्थना करें।

चुपचाप यह नींबू ले ले और किसी पुराने मदार के पेड़ की जड़ में इन्हें रख दें वहां पर एक सरसों के तेल का 4 मुंह वाला दिया जलाएं तथा चुपचाप इस प्रयोग को करने के उपरांत वापस आ जाएं ।

वापिस घर में प्रवेश करने से पहले आपमे हाथ पावँ अच्छी तरह से धो लें फिर ही घर में प्रवेश करें तथा वापिस घर में लौट कर फिर से एक माला जाप करें।

(ये प्रयोग पीड़ितों की समस्या निवारण के लिए है।)
तीन दिनों में आपके ऊपर पड़े हुए सभी बंधन और सभी तांत्रिक क्रियाओं की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।

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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

श्री बगलामुखी मन्त्र प्रयोग।

बगलामुखी मन्त्र प्रयोग।
माता की आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रुस्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण, व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।

क्योंकि देखा जाता है कि लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि दूसरों की सफलता से अधिक दुखी हैं। ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए माताओं में माता बगलामुखी मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। आज इन्हीं माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। अशुभ समय का निवारण कर नई चेतना और शुभ समय का संर करती हैं। ऐसी माता के बारे में मैं अपनी अल्प बुद्धि से आपकी प्रसन्नता के लिए इनकी सेवा आराधना पर कुछ कहने का साहस कर रहा हूं। 

मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं माता बगलामुखी की जो बातें आपसे कह रहा हूं अगर आप उसका तनिक भी अनुसरण करते हैं तो माता आप पर कृपा जरूर करेंगी, लेकिन पाठक भाइयों ध्यान रहे। इनकी साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और विश्वास असीम हो तभी मां की शुभ दृष्टि आप पर पड़ेगी।

इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्ट पहुंच सकता है। 

जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी, लेकिन ध्यान रहे इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।

गृहस्थों  के लिये माता की आराधना का सरल उपाय बता रहा हूं। आप इसे करके शीघ्र फल प्राप्त कर सकते हैं। माता  का अनुष्ठान (साधना) आरम्भ करने बैठे तो सर्वप्रथम शुभ मुर्हूत, शुभ दिन, शुभ तथा एकांत स्थान, स्वच्छ वस्त्र पहनकर आम की लकड़ी से निर्मित जिस पर पीला रंग किया जा सकता है उसपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर माता की की प्रतिमा चित्र अथवा यन्त्र स्थापित करें नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शांत चित्त, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। 

अगर आप अति निर्धन हो तो केवल पीले पुष्प, पीले वस्त्र, हल्दी की 108 दाने की माला और दीप जलाकर माता की प्रतिमा, यंत्र आदि रखकर शुद्ध आसन कम्बल, कुशा या मृगचर्य जो भी हो उस पर बैठकर माता की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

माता बगलामुखी की आराधना के लिये जब सामग्री आदि इकट्ठा करके शुद्ध आसन पर बैठें (उत्तर मुख) तो दो बातों का ध्यान रखें, पहला तो यह कि सिद्धासन या पद्मासन हो, जप करते समय विशेष बात का ध्यान रखें कि पैर के तलुओं और गुह्य स्थानों को न छुएं शरीर गला तथा आपके सिर सम स्थित होना चाहिए। जाप करते समय माला को गोमुखी में रखकर ही जाप करें अथवा गोमुखी के अभाव में आप पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग माला ढांकने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

इसके पश्चात गंगाजल से छिड़काव कर (स्वयं पर) यह मंत्र पढें :- अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपिवा, य: स्मरेत, पुण्डरी काक्षं स बाह्य अभ्यांतर: शुचि:। 

उसके बाद इस मंत्र से दाहिने हाथ से आचमन करें :-ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:। अन्त में ऊं हृषीकेशाय नम: कहके हाथ धो लेना चाहिये।

इसके बाद गायत्री मंत्र पढ़ते हुए तीन बार प्राणायाम करें। चोटी बांधे और तिलक लगायें। 

अब पूजा दीप प्रज्जवलित करें। फिर विघ्नविनाशक गणपति का ध्यान करें। 

मंत्र शुद्ध पढऩा चाहिये। मंत्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा। इसीलिए उच्चारण पर विशेष ध्यान रखें। 

अब आप गणेश जी के बाद सभी देवी-देवादि कुल, वास्तु, नवग्रह और ईष्ट देवी-देवतादि को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए कष्ट का निवारण कर शत्रुओं का संहार करने वाली बगलामुखी का विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें-

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि: त्रिष्टुप्छन्द: बगलामुखी देवता, ह्लींबीजम् स्वाहा शक्ति: ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: 

(जल नीचे गिरा दें)। 

फिर माता का ध्यान करें, 
याद रहे सारी पूजा में हल्दी और पीला पुष्प अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

ध्यान-
मध्ये सुधाब्धिमणि मण्डप रत्न वेद्यां,
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं,
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥

अपने हाथ में पीले पुष्प लेकर उपरोक्त ध्यान का शुद्ध उच्चारण करते हुए माता का ध्यान करें। उसके बाद यह मंत्र जाप करें। साधक ध्यान दें, अगर पूजा मैं विस्तार से कहूंगा तो आप भ्रमित हो सकते हैं। परंतु श्रद्धा-विश्वास से इतना ही करेंगे जितना कहा जा रहा है तो भी उतना ही लाभ मिलेगा। जैसे विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने से जो फल मिलता है वही ऊं नमोऽभगवते वासुदेवाय से, यहां मैं इसलिये इसका जिक्र कर रहा हूं ताकि आपके मन में कोई संशय न रहे। राम कहना भी उतना ही फल देगा। अत: थोड़े मंत्रो के दिये जाने से कोई संशय न करें। अब जिसका आपको इंतजार था उन माता बगलामुखी के मंत्र को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। 

मंत्र है :- ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा। 

इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माता से करें। आप चाहें तो इसी मंत्र से माता की पंचौपचार या  षोड्शोपचार विधि से पूजा भी कर सकते हैं। 

इस अनुष्ठान के दौरान आपको कम से कम पांच बातें पूजा में अवश्य ध्यान रखनी है-

1. ब्रह्मचर्य, 
2. शुद्घ और स्वच्छ आसन 
3. गणेश नमस्कार और घी का दीपक 
4. ध्यान और शुद्ध मंत्र का उच्चारण 
5. पीले वस्त्र पहनना,हल्दी की माला से जाप करना। 

आप कहेंगे मैं बार-बार यही सावधानी बता रहा हूं। तो मैं कहूंगा इससे गलती करोगे तो माता शायद ही क्षमा करें। इसलिये जो आपके वश में है, उसमें आप फेल न हों। बाकी का काम मां पर छोड़ दें। इतनी सी बातें आपकी कामयाबी के लिये काफी हैं।

अधिकारियों को वश में करने अथवा शत्रुओं द्वारा अपने पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए यह अनुष्ठान पर्याप्त है। 

इस प्रकार आपको इस मंत्र का एक लाख पच्चीस हज़ार जाप करना है और उसका दसवां हिसा हवन हवन का दसवां तर्पण तर्पण का दशांश मार्जन ब्राह्मण भोजन करवाकर इस अनुष्ठान को संपन्न करना चाहिए।

पुरश्चरण के उपरांत निम्न प्रयोग इच्छा की पूर्ति के लिए किअए जा सकते हैं।

अगर इस को भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर सवा लाख जाप फिर दशांश हवन करें तो सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। 

तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती हैै और दरिद्रता दूर भागती है। 

गूगल और तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। अगर वशीकरण करना हो तो उत्तर की ओर मुख करके और धन प्राप्ति के लिए पश्चिम की ओर मुख करके हवन करना चाहिए। अनुभूत प्रयोग कुछ इस प्रकार है। 

मधु, शहद, चीनी, दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने से समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। 

गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रु तबाह हो जाते हैं। 

मधु घी, शक्कर और नमक से हवन आकर्षण (वशीकरण) के लिए प्रयोग कर सकते हैं। 

अत: आप स्वयं के कल्याण के लिए माता की आराधना कर लाभ उठा सकते हैं। 

यहां संक्षिप्त विधि इसलिये दी गई है कि सामान्य प्राणी भी माता की आराधना कर लाभान्वित हो सकें। 

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

पीर मैदानी का मन्त्र।

                पीर मैदानी का मन्त्र।
जब कहीं माता मैदानन का जिक्र आता है तो पीर मैदानी के विषय में भी बात होती है कहीं न कहीं आपने पीर मैदानी के विषय में अवश्य सुना होगा सिर्फ कुछ एक जानकारों को ही पीर मैदानी के विषय में विस्तृत जानकारी है।
जब भी इनका का जिक्र आता है तो अधिकतर साधक इस कश्मकश में पड़ जाते है कि पीर मैदानी हैं कौन यही सवाल उनके दिमाग में चलता रहता है। क्षेत्र और मत के अनुसार ये अलग अलग है कुछ एक सबल सिंह बावरी को पीर मैदानी मानते है और कुछ एक अस्तबली पीर को मैदानी पीर मान कर चलते हैं।

मेरी जानकारी और मत के अनुसार मैदानी पीर बाबा शेख  फरीद है और इनके कलाम और क्रिया से के प्रयोग से माता मैदानन और मसानी शांत हो जातीं है।

जिस घर परिवार में माता मैदानन और मसानी का बहुत ज्यादा तीव्र प्रकोप हो तो पाँच मंगलवार लगातार बाबा शेख़ फ़रीद के नाम का ख़त्म फ़ातिहा जर्द पुलाव पर किसी जानकार या मौलवी से दिलवाएं तो उक्त प्रकोप बिलकुल शांत हो जाता है तथा घर में चिर स्थायी शांति का वातावरण निर्मित हो जाता है।

यह बात हमेशा ध्यान देने वाली होती है कि एक तो आपके अंदर इच्छा शक्ति होनी चाहिए इन समस्याओं से निकलने की और दूसरी बात ये है कि किसी हालात को बदलने से पहले अपने आपको और अपनी आदतों को बदलना चाहिए। जो अपने आप पर काबू कर सकता है वो सभी पर काबू कर सकता है और जो शख्स अपने आप को बदल सकता है वो पूरी दुनियां को बदल सकता है क्योंकि दुसरो को बदलने की शुरुआत खुद से करनी पड़ती है।

लेकिन विडंबना देखिए आज के इस समय में यह गुप्त विद्या लुप्त होने की कगार पर आ गई है ऐसी विद्या जो थोड़े से प्रयास में ही साधक को सफल बना देती है।

यहां मैं आपको मैदानी पीर के विषय में बताने जा रहा हूँ ये बहुत जबरदस्त शक्ति है और इसकी साधना कभी भी असफल नही जाती विधि भी बहुत आसान है दूसरी साधनाओं में भी इस साधना को करने से मदद मिलती है और माता मैदानन के बेड़े की जितनी शक्तियां है इस मंत्र द्वारा कंट्रोल हो जाती है बाकी सभी साधको का अपना अपना ज्ञान और काम करने का तरीका होता है

इस मंत्र को याद करने के बाद आप होली दीपावली ग्रहण या किसी अन्य पर्व पर 1008 बार जाप करके अनुकूल कर सकते हैं।

अगर बिना किसी पर्व या ग्रहण के समान्य दिनों में सिद्ध करना हो तो प्रति दिन घर के की शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्वाभिमुख होकर सुख आसन में बैठें तथा शांत चित्त होकर अपना सुरक्षा मन्त्र पढ़कर अपनी सुरक्षा करें फिर 108 बार प्रतिदिन जाप करें।

माला कोई भी ले सकते हैं वस्त्र और आसन कोई भी चलेगा अपने सामने दिया सरसों के तेल का चलायें  अगरबत्ती जलाएं भोग अपने सामने धरे फूल गुलाब,बतासा,सेंट,एक जोड़ा सिगरेट,लड्डू या कोई भी अन्य मिठाई रख सकते हैं अगर हो सके तो कोयले की आग पर लोहबान सुलगायें बहुत बार बाबा जी ख्वाब में पहले ही दिन दर्शन दे देते है और कई बार कुछ दिन लगते है लेकिन आप धैर्य से साधना सम्पन्न करें कोई दिक्कत वाली बात नही है आपको सफलता अवश्य मिलेगी इस साधना को अगर सही तरिके से किया जाए तो 41 से 42 दिन लगते ही है और अगर कुछ इसे 21 या 11 दिन भी करते है लेकिन उसमें इस मंत्र के सिद्ध होने में संदेह रहता है 

मैदानी पीर का मंत्र निम्न है।

बिस्मिल्लाह रहमान रहीम
पंज़पीर रोजे बरसे नूर    
पाक जलाली 
पीर मदानी 
गंजे शक्कर 
फरीदुद्दीन  
डंका चले मैदान में 
माई मैदानन नाल
जोड़े हत्थ नवावे शीश
पीर मैदानी 
हाथी चढ़ आओ
घोड़ा चढ़ आओ 
नज़र घुमावे 
डोली चलावे 
नज़री  देंदा  रोक
फकीरों की मौज 
मैदान में फौज 
सवा लख सैय्यद 
मदद नुं खड़े
चमकी तेरी शमशीर मैदान में 
मदद को गौंस पाक पीर दस्तगीर।

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बुधवार, 30 नवंबर 2022

कार्य बाधा नाशक टोटका


जीवन में कई बार इस तरह की बाधाओं मनुष्य का पाला पड़ता है जब मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है आप इस टोटके का प्रयोग करें आपको अवश्य लाभ प्राप्त होगा और इसको करने के बाद आपकी समस्या तुरंत गायब हो जाएगी और आपको आराम महसूस होगा।

बुरे समय में संकटों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए ये टोटका बहुत महत्वपूर्ण एवं विशेष शक्तिशाली टोटका है इसे सैंकड़ो बार अलग अलग लोगों को करवाया गया है और बिल्कुल सही साबित हुआ है इस प्रयोग को अगर सही तरह से किया जाय तो 24 घंटे में ही काम हो जाता है।

इस टोटके में प्रयोग होने वाली सामग्री इस प्रकार है :-
7 अरबी या अरिंड के पत्ते।
7 गुड़+आटे+सरसो के तेल के पूड़े। 
थोड़े से पके हुए मीठे चावल।,
7 मदार (आक) के फूल।,
7 गेंदे के फूल।,
7 लाल सबूत मिर्ची डंडी समेत।,
7 लाल चूड़ियां।,
1 रिबन काला।,
1 चार मुँह वाला आटे का दिया सरसों के तेल का।,
11 अगरबत्तियां।
1 कलावा।,
7 लौंग।,
7 ईलायची छोटी।,
7 सुपारियां।
7 पीस मिक्स मिठाई।,
7 कच्चे कोयले के टुकड़े।,
1 काजल की डिब्बी।,
5 ₹ का पीला सिन्दूर।,
1 मुट्ठी सबूत उरद ।

स्थान :-खाली मैदान में कच्चे चावलों का चौंक बना कर या किसी चौराहे पर पूर्वाभिमुख होकर करना है।

समय:-शाम को 7 बजे से रात्रि 11:45 तक करना है।

वार रवि मंगल अथवा शनिवार

सभी सामान को चुपचाप इकट्ठा करना है चुपचाप ही प्रयोग करना है ज्यादा हल्ला गुल्ला नहीं मचाना और ना ही किसी से फालतू कोई बात करनी है चुपचाप जाना है चुपचाप आना है।

((यह सब ले करके चुपचाप चौक पर जाना है और वहां जाकर सभी सामान पत्ते के ऊपर सजा देना है मध्य में दीपक जलाना और अगरबत्तियां लगाना है और सिन्दूर से पूड़ों पर 7 टिक्के लगाना है पूर्वाभिमुख होकर के आपको बोलना है

 "हे मेरे दुर्भाग्य मैं तुम्हें यही छोड़ा जा रहा हूं मेरा पीछा मत करना"

इतना बोल कर के आपको वहां से चल देना है और कितनी भी कोई आवाज आए या ना आए आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना हाथ पाँव धोकर के घर में आ जाना।


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शिव के मंत्र की विस्तृत जानकारी और साधना।

                महेश्वर का पंचाक्षर मंत्र 

(व्याधिमुक्त, दीर्घायु, बाधित धन अभीष्टों की प्राप्ति हेतु)

मंत्र: ॐ नमः शिवाय।

देवाधिदेव महादेव शिवशंकर का पूजन करना चाहिए। 

उपरांकित मंत्र का 24 लाख जप पूरे हो जाने पर भगवान शंकर समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं अतः सर्वविधि षोडशोपचार से मनोयोग, श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था के साथ करने के उपरान्त 24 हजार मंत्रों द्वारा हवन सम्पन्न करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। 

एक बार मंत्र सिद्ध हो जाए, तो सभी अभीष्टों की संसिद्धि अत्यन्त सुगमता से हो जाती है।

इस मंत्र की सिद्धि के विषय में किये जाने वाले पुरश्चरण की व्याख्या करते हुए विशेष निर्देश दिए गए हैं जो अग्रांकित हैं जिसके लिए मंत्र महेश्वर तंत्र का विस्तृत अध्ययन तथा अनुसरण आवश्यक है। यहाँ हम मंत्र महेश्वर की कतिपय चमत्कारी साधनाओं का उल्लेख करना भी उपयुक्त समझते हैं।

अथ वक्ष्ये महेशस्य मंत्रान् सर्वसमृद्धिदान् यैः पूर्वमृषयः प्राप्ताः शिवसायुज्यमञ्जसा ।।1।।

इसके उपरान्त बाद सम्पूर्ण सिद्धियों के देने वाले महेश्वर के मंत्र को कहता हूँ, जिसका अनुष्ठान करके पूर्वकाल में अनेक महर्षियों ने अनायास ही शिव सायुज्य प्राप्त किया। शिवमंत्रः । ऋष्यादिकथनम्

हृदयं वपरं साक्षि लान्तोऽनन्तान्वितो मरुत् । पञ्चाक्षरो मनुः प्रोक्तस्ताराद्योऽयं षडक्षरः ।। 2 ।।

हृदय (नमः), वपर (श), साक्षि (उसे इकार से संयुक्त करें), लान्त (व) अनन्त (उसे आकार से संयुक्त करें), तदनन्तर मरुत् (य)। इस प्रकार 'नमः शिवाय' यह पञ्चाक्षर शिव का मंत्र निष्पन्न हुआ। यदि इस के आदि में प्रणव (ॐ) का योग कर दें तो 'ॐ नमः शिवाय' यह षडक्षर शिव मंत्र निष्पन्न हुआ है।

षडङ्गन्यासः

वामदेवो मुनिश्छन्दः पंक्तिरीशोऽस्य देवता । षड्भिर्वर्णैः षडङ्गानि कुर्यान्मन्त्रस्य देशिकः ।।3।।

इस महामंत्र के वामदेव ऋषि हैं, पंक्ति छन्द है और ईश्वर देवता हैं। साधक इस मंत्र के छः अक्षरों से षडङ्गन्यास करें।

पशमूर्तिन्यासः मन्त्रवर्णादिका न्यस्येत् पञ्चमूर्त्तीर्यथाक्रमम् तर्जनीमध्ययोरन्त्यानामिकांगुष्ठ के पुनः ।।4।।

पुनः इस मंत्र के आदि वर्णों के क्रम से क्रमानुसार पञ्चमूर्तियों द्वारा हाथों की दोनों तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठा, अनामिका तथा अंगुष्ठों में न्यास करें।

ताः स्युस्तत्पुरुषाघोरसद्योवामेशसंज्ञकाः ।
वक्त्रहृत्पदगुह्येषु निजमूर्धनि ताः पुनः ।5।।

ये पञ्चमूर्तियाँ क्रमशः तत्पुरुष- अघोर सद्योजात वामदेव तथा ईशान संज्ञक हैं। चारों अंगुलियों में न्यास का प्रयोग क्रमशः 'शिं तत्पुरुषमूर्त्यै तर्जनीभ्यां नमः', 'वां अघोरमूर्त्यं मध्यामाभ्यां नमः' इत्यादि प्रकार से करें। इसी प्रकार पञ्चाक्षर मंत्र के एक-एक अक्षर से संयुक्त एक-एक मूर्ति का न्यास मुख, हृदय, पाद गुह्य, तथा सिर प्रदेश में करें।

पञ्चसु ।

प्राग्याम्यवारुणोदीच्यमध्यवक्त्रेषु मन्त्राङ्गानि न्यसेत् पश्चाज्जातियुक्तानि षट् क्रमात् ।। 6 ।।

इसके पश्चात् अपने सिरः प्रदेश में पंचवक्त्रत्व की भावना करते हुए पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तथा मध्य इस प्रकार पाँच मुखों में पूर्वोक्त विधि से न्यास करें। पुनः मंत्र के अंग से तत्तदञ्जलि युक्त षडङ्गन्यास करें। यथा 'ॐ हृत् नं शिर' इत्यादि

कुर्वीत          गोलकन्यासं रक्षायै तदनन्तरम् ।
हृदि वक्त्रेऽसयोऽर्वोः कण्ठे नाभौ द्विपार्श्वयोः ।।7।।

पृष्ठे हृदि ततो मूर्ध्नि वदने नेत्रयोर्नसोः । 
दो: पत्सन्धिषु साग्रेषु विन्यसेत्तदनन्तरम् ।।8।।

शिरोवदनहत्कुक्षिसोरुपादद्वये         पुनः।
हृदि वक्त्राम्बुजे टङ्के मृगाभयवरेष्वथ ।।9।।

इस प्रकार तत्त्वन्यास करने के बाद अपनी रक्षा के लिए दशावृत्ति में किए जाने वाले गोल तथा हृदय में द्वितीयावृत्ति, मूध, मुख, दोनों नेत्र तथा दोनों नासिका में तृतीयावृत्तिः इसके चाट न्यास करें। हृदय, मुख, दो कन्धे और दोनों ऊरु में प्रथमावृत्ति, कण्ठ, नाभि दोनों पाश्व बाहु तथा पैरों में चतुर्थावृत्ति; उनकी सन्धियों में पंचम आवृत्ति; अंगुलियों के मध्य सन्धि में षष्ठावृत्ति; उनके अग्रभाग में सप्तम आवृत्ति से न्यास करें।

वक्त्रांसहत्सपादोरुजठरेषु क्रमान् न्यसेत्
मूलमन्त्रस्य षड्वर्णान् यथावद्देशिकोत्तमः । ।10।।

पुनः सिर, मुख, हृदय, कुक्षि, ऊरु तथा दोनों पैरों में अष्टम आवृत्ति, हृदय, मुख, परशु मृग, अभय तथा वर में नवम आवृत्ति; इसके पश्चात् मुख, कन्धा, हृदय, पाद, ऊरु और जठर में दशमावृत्ति के क्रम से न्यास करें। उत्तम आचार्य इस प्रकार मूल मंत्र मे छः अक्षरों के प्रत्येक वर्ष से उक्त स्थानों में दशावृत्ति युक्त न्यास करें।

मूर्ध्नि भालोदरांसेषु हृदये ताः पुनर्न्यसेत्
पश्चादनेन मन्त्रेण कुर्वीत व्यापकं सुधी ।।11।। 
नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गामृतात्मने। चतुर्मूर्त्तिवपुच्छायाभासिताङ्गाय। शम्भवे
 एवं न्यस्तशरीरोऽसौ चिन्तयेत्पार्वतीपतिम् । ।12 ।

पुनः सिर, भाल, उदर दोनों कन्धे तथा हृदय में पंचमूर्तियों के द्वारा पुनः न्यास करें, आगे

कहे जाने वाले मन्त्र से बुद्धिमान् साधक व्यापक न्यास करें। मन्त्र है- 
'नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गात्मने चतुर्मूर्त्तिवपुच्छाया भासिताङ्गाय शभ्भवे'। 

इस मन्त्र से व्यापक न्यास करके पार्वतीपति शंकर का इस रूप में ध्यान करें। दशावृत्तिमयं गोलकन्यासमाह । तदनन्तरं तत्त्वन्यासानन्तरमित्यर्थः ।

तत्त्वन्यासो यथा-

वक्ष्यतेऽथो शैवतत्त्वन्यासः प्रसादतः परम् ।
पचाक्षरी परायेति तत्त्वनामात्मने नमः ।। 
आवृत्त्या शिवपञ्चाक्षर्यर्णयुक्तं पृथक् सह।
द्वितीयादि क्षादिवर्णैरान्तैराद्यं ध्रवादिकैः (कम्) ।। 
शिवः शक्तिः सदापूर्वः शिव ईश्वर एव च ।


शुद्धविद्या च माया च कालश्च नियतिः कला ।। 
स्मृतोपरागः पुरुषः प्रकृतिर्बुद्ध्यहंकृती । 
मन एतान् हृदि न्यस्येत् श्रोत्रादिषु स्थले तथा । वागाद्यप्यथशब्दादि मूर्धास्योरौ गुदे पदे ।। 
आकाशादीन् न्यसेदेषु वक्ष्यमाणं च पञ्चकम् ।
सदाशिवाद्या आकाशाद्याधिपत्यन्तकाः सङेः । शान्त्यतीताकलाद्यन्ता निवृत्त्याद्याः स्वबीजतः । 
न्यसेत् पादादिशीर्षान्त मूर्धादिचरणान्तिके ।। शान्त्यात्मेशानमूर्धा च ङेयुतश्च सदाशिवः । 
सत्यात्मा तत्त्पुरुषवक्त्रो ङेयुतश्च ईश्वरः ।। नादात्माऽघोरहृदयो डेयुतश्च महेश्वरः । 
बिन्द्वात्माऽथो वामदेवगुह्यो विष्णुश्च ङेयुतश्चः । 
बीजात्मा च सद्योजातपादो ब्रह्मा च ङेयुतश्चः । ईशानाद्यानूर्ध्ववक्त्राद्यान् सदाशिवपूर्वकान् ।। ऊर्ध्वादिपञ्चवक्त्रेषु ङेतानक्षरपूर्वकान् इति ।।

पञ्चमुखशिवध्यानम्

ध्यायेत्रित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् । पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वरूपं निलिखभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।

रजत पर्वत के समान जिनके शरीर का वर्ण सर्वथा श्वेत है, जिनके भाल प्रदेश में द्वितीया का चन्द्रमा आभूषण रूप में विभूषित है, जिनका समस्त अंग रत्न के समान उज्ज्वल है, जिनके हाथ में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा हैं, जो सर्वथा प्रसन्न रहने वाले हैं जो श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवता लोग जिनकी चारों ओर से स्तति कर रहे हैं, व्याघ्र चर्म को धारण किए उन विश्व के आदि, विश्वरूप, निखिल भयहर्ता, पंचमुख तथा त्रिनेत्र महेश्वर का ध्यान करना चाहिए।

उच्छ्रितं दक्षिणाङ्गुष्ठं वामाङ्गुलीर्दक्षिणाभिरङ्गुलीभिश्च
वामाङ्गुष्ठेन बन्धयेत्वेष्टयेत् ।लिङ्गमुद्रेयमाख्याता  शिवसात्रिध्यकारिणी ।। इयं सर्वशेवमन्त्रसाधारणीति ज्ञेयम् ।।  पुरश्चरणादिकथनम्

तत्त्वलक्षं जपेन्मन्त्रं दीक्षितः शैववर्त्मना।
तावत्संख्यासहस्राणि जुहुयात् पायसैः शुभैः।
ततः सिद्धो भवेन्मन्त्रः साधकाभीष्टसिद्धिदः।।

शैव मार्ग के अनुसार दीक्षा लेने के पश्चात् इस मंत्र का 24 लाख जप करें। फिर पायस से च हजार होम करें। तब यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को अभीष्ट सिद्धि प्रदान करता है।

देवं सम्पूज्येतपीठे वामादिनवशक्तिके । 
वामा ज्येष्ठा ततो रौद्री काली कलपदादिका ।।
विकारिण्याह्वया   प्रोक्ता बलाद्या विकरिण्यथ।
बलप्रमथनी            पश्चात्सर्वभूतदमन्यथ ।।

आसनमन्त्र

मनोन्मनीति संप्रोक्ताः शैवपीठस्य शक्तयः ।
नमो भगवते पश्चात्सकलादि वदेत् पुनः ।।
गुणात्मशक्तियुक्तायततोऽनन्तायतत्परम्
योगपीठात्मने भूयोनमस्तारादिको मनुः ।।

तत्पश्चात् वामादि नव शक्तियों से युक्त पीठ पर सदाशिव का पूजन करें। 
1. वामा, 
2. ज्येष्ठा, 
3. रौद्री, 
4. कलपदा, 
5. विकरिणी 
6.छबलविकरिणी, 
7. बलप्रमथिनी, 
8. सर्वभूतदमनी और, 
9. मनोन्मयी- ये शैव पीठ की नवशक्तियाँ हैं। 

'ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनन्ताय योगपीठात्मने नमः' यह कहें।
अमुना मनुना दद्यादासनंगिरिजापतेः । 
मूर्ति मूलेन सङ्कल्प्या तत्राऽऽवाह्य यजेच्छिवम् ।।

ऊपर कहे गए मन्त्र से गिरिजापति को आसन प्रदान करें, मूल मन्त्र पढ़कर मूर्ति की कल्पना करें, तदन्तर उसी में शिव का आवाहन कर पूजा करें।

आवरणदेवताध्यानम्-
कर्णिकायां यजेन्मूर्तीरीशमीशानदिग्गतम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशं दिक्षु तत्पुरुषादिकाः ।।
 
पश्वात् ईशान कोण में शुद्ध स्फटिक के समान ईशान मूर्त्ति की पूजा करें। कर्णिका में चारों दिशाओं में तत्पुरुष, अघोर, सद्योजात और वामदेव की मूर्तियों की पूजा करें।

पीताञ्जनश्वेतरक्ताः प्रधानसदृशायुधाः ।
चतुर्वक्त्रसमायुक्ता यथावत् संप्रपूजयेत् ।।

ऊपर ईशान का रूप शुद्ध स्फटिक समान कह दिया गया है। अब शेष चार मूर्तियों के वर्ण कहते हैं ये मूर्तियाँ क्रमशः पीत, अञ्जन, श्वेत तथा रक्त वर्ण की हैं। सभी के आयुध प्रधान के सदृश हैं। सभी चार मुखों से युक्त हैं, उनकी प्रणव से युक्त मन्त्र वर्णों से यथाविधि पूजा करें।

कोणेष्वर्च्याः निवृत्त्याद्यास्तेजोरूपाः कलाः क्रमात् । 
अङ्गानि केसरस्थान विद्येशान् पत्रगान् यजेत् । ।

इसके उपरांत कर्णिकाओं के चारों कोणों में तेजःस्वरूप चार कलाओं की निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या और शान्ति की पूजा करें। ईशान में शान्त्यतीता की पूजा करें। केशरों पर अंगों की तथा पत्रों पर विद्येश्वरों की पूजा करें।

अनन्तं     सूक्ष्मनामानं शिवोत्तममनन्तरम् ।
एक नेत्रमेकरुद्रं  त्रिनेत्रं         तदनन्तरम् ।।
पश्चाच्छ्रीकण्ठनामानं  शिखण्डिनमनन्तरम्
रक्तपीतसितारक्तकृष्ण रक्ताञ्जनासितान्

अनन्त, सूक्ष्म, शिवोत्तम, एकनेत्र, एकरुद्र, त्रिनेत्र, श्रीकण्ठ एवं शिखण्डी ये विद्येशों के नाम हैं। इनका वर्ण क्रमशः रक्त, पीत, सित, रक्त, कृष्ण रक्त, अंजन एवं श्वेत है।

किरीटार्पितबालेन्दून् पद्मस्थिातान् भूषणान्वितान् ।
त्रिनेत्रान्        शूलवज्रास्त्रचापहस्तान् मनोहरान् ।।

इन सभी की किरीट में बालेन्दु विराजमान हैं, सभी पद्म पर आसीन हैं और भूषणों से भूषित एवं त्रिनेत्र हैं। सभी अपने हाथों में शूल, वज्र, बाण और धनुष लिए हुए हैं और समस्त की आकृतियाँ मनोहर हैं।

उत्तरादि यजेत्पश्चादुमां          चण्डेश्वरं पुनः।
ततो        नन्दिमहाकालौ गणेशवृषभौ पुनः ।।
अथ भृङ्गरीटिं स्कन्दमेतान् पद्मासनस्थितान् । स्वर्णतोयारुणश्याममुक्तेन्दुसितपाटलान् ।।। 

इसके उपरान्त उत्तर के क्रम से उमा, चण्डेश्वर नन्दी, महाकाल, गणेश, वृषभ, भृङ्गरीटि और स्कन्द इन आठों विद्येश्वरों की आठों दिशाओं में पूजा करें। ये सभी पद्मासन पर स्थित हैं इनके शरीर के वर्ण सुवर्ण, जल, अरुण, श्याम, मुक्ता, चन्द्रमा श्वेत और पाटल (रक्त) हैं।

इन्द्रादयस्ततः पूज्याः वज्राद्यायुधसंयुताः ।
इत्थं संपूजयेद्देवं सहस्रं नित्यशो जपेत् ।।

तत्पश्चात् वज्रादि आयुधों से संयुक्त इन्द्रादि इस दिग्पाला की पूजा करें। इस प्रकार आवरण सहित देवाधिदेव की पूजा करें और नित्य प्रति इच्छित उक्त मन्त्र का जप करें। 

सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नुयाद्वाञ्छितां श्रियम् ।
द्विसहस्रं     जपेद्रोगान् मुच्यते नात्र संशयः ।।

फलश्रुति-

ऐसा करने से सुधी साधक सभी पापों से मुक्त हो जाता है, इच्छित श्री प्राप्त करता है। 

यदि उपरोक्त विधि से पूजा कर दो सहस्र नित्य जप करे तो साधक रोगमुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।

त्रिसहस्रं     जपेन्मन्त्रं दीर्घमायुरवाप्नुयात् ।
सहस्रवृद्ध्या प्रजपन् सर्वान् कामानवाप्नुयात् ।।
आज्यान्वितैस्तिलैः शुद्धैर्जुहुयाल्लक्षमादरात् ।
उत्पातजनितान् क्लेशान्नाशयेन्त्राऽत्र संशयः ।
शतलक्षं जपेत्साक्षाच्छिवो भवति मानवः   ।।

यदि तीन सहस्र नित्य जप करे तो दीर्घ आयु प्राप्त करता है। चार सहस्र जप करे तो सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध कर लेता है। यदि इस मन्त्र से घृत मिश्रित शुद्ध तिलों द्वारा भक्तिपूर्वक एक लाख जप करे तो साधक दिव्य भौम अन्तरिक्षजन्य उत्पातों को विनष्ट कर देता है, इसमें संशय नहीं है। यदि इस मन्त्र का एक करोड़ जप करें तो वह मनुष्य साक्षात् शिव हो जाता है।

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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

बगलामुखी मन्त्र साधना।

 बगुलामुखी मन्त्र से करें शत्रुओं का नाश।
आज का समय भौतिक वाद का समय है और इस में अपने सुख संसाधनों का दिखावा करने वाले अधिक है उसी कारण से आज के युग में लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि दूसरे की सफलता से दुखी हैं। 

ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए दसमहाविद्याओ में प्रमुख माता बगलामुखी  महाविद्या देवी मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। आज इन्हीं माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। 

ये देवी अपने भगतों के अशुभ समय का निवारण कर नई चेतनता का संचार करती हैं। ऐसी माता के बारे में मैं आपको माता बगलामुखी की प्रसन्नता के लिए इनकी मन्त्र साधना बता रहा हूं। 

मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मैं माता बगलामुखी की जो साधना आपसे बताने जा रहा हूं अगर आप उसका तनिक भी अनुसरण करते हैं तो माता आप पर कृपा जरूर करेंगी।

लेकिन पाठक भाइयों ध्यान रहे। 
इनकी साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और विश्वास असीम हो तभी मां की कृपा दृष्टि आप पर पड़ेगी। इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। 

सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्ट भी पहुंचा सकता है। 

माता की यही आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में निश्चित सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रु स्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। 

साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी, लेकिन ध्यान रहे इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।

गृहस्थ भाइयों के लिये मैं माता की साधना का सरल उपाय बता रहा हूं। आप इसे करके शीघ्र फल प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी देवी-देवता का अनुष्ठान (साधना) आरम्भ करने बैठे तो सर्वप्रथम शुभ मुर्हूत, शुभ दिन, शुभ स्थान, स्वच्छ वस्त्र, नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शांत चित्त, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। 

याद रहे अगर आप अति निर्धन हो तो केवल पीले पुष्प, पीले वस्त्र, हल्दी की 108 दाने की माला और दीप जलाकर माता की प्रतिमा, यंत्र आदि रखकर शुद्ध आसन कम्बल, कुशा या मृगचर्य जो भी हो उस पर बैठकर माता की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। 

माता बगलामुखी की आराधना के लिये जब सामग्री आदि इकट्ठा करके शुद्ध आसन पर बैठें उत्तराभिमुख और दो बातों का ध्यान रखें, पहला तो यह कि सिद्धासन या पद्मासन हो, जप करते समय पैर के तलुओं और गुह्य स्थानों को न छुएं शरीर गला और सिर सम स्थित होना चाहिए। 

इसके पश्चात गंगाजल से छिड़काव कर (स्वयं पर) यह मंत्र पढें- 

अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपिवा, य: स्मरेत, पुण्डरी काक्षं स बाह्य अभ्यांतर: शुचि:। 

उसके बाद इस मंत्र से दाहिने हाथ से आचमन करें-
ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:। अन्त में ऊं हृषीकेशाय नम: कहके हाथ धो लेना चाहिये। 

इसके बाद गायत्री मंत्र पढ़ते हुए तीन बार प्राणायाम करें। फिर अपनी चोटी बांधे और तिलक लगायें। 

अब पूजा दीप प्रज्जवलित करें। फिर विघ्नविनाशक गणपति का ध्यान करें।

 याद रहे ध्यान अथवा मंत्र सम्बंधित देवी-देवता का टेलीफोन नंबर है। जैसे अलग अलग व्यक्ति का फोन नम्बर होता है वैसे ही हर शक्ति का आह्वान करने के लिए ध्यान मन्त्र होता है। जैसे ही आप मंत्र का उच्चारण करेंगे, उस देवी-देवता के पास आपकी पुकार तुरंत पहुंच जायेगी। इसलिये मंत्र शुद्ध पढऩा चाहिये। मंत्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा। इसीलिए उच्चारण पर विशेष ध्यान रखें। 


अब आप गणेश जी के बाद सभी देवी-देवादि कुल, वास्तु, नवग्रह और ईष्ट देवी-देवतादि को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए कष्ट का निवारण कर शत्रुओं का संहार करने वाली बगलामुखी का विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें-

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि: त्रिष्टुप्छन्द: बगलामुखी देवता, ह्लींबीजम् स्वाहा शक्ति: ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: 

(अब जल भूमि पर नीचे गिरा दें)। 

अब माता का ध्यान करें, याद रहे सारी पूजा में हल्दी और पीला पुष्प अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
ध्यान-
मध्ये सुधाब्धि मणि मण्डप रत्न वेद्यां,
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं,
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥

अपने हाथ में पीले पुष्प लेकर उपरोक्त ध्यान का शुद्ध उच्चारण करते हुए माता का ध्यान करें। 

उसके बाद यह मंत्र जाप करें। साधक ध्यान दें, अगर पूजा मैं ज्यादा विस्तार से बताऊंगा तो आप भ्रमित हो सकते हैं। परंतु श्रद्धा-विश्वास से इतना ही करेंगे जितना कहा जा रहा है तो भी उतना ही लाभ मिलेगा। 

जैसे विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने से जो फल मिलता है वही ऊं नमोऽभगवते वासुदेवाय से, यहां मैं इसलिये इसका जिक्र कर रहा हूं ताकि आपके मन में कोई संशय न रहे। राम कहना भी उतना ही फल देगा। अत: थोड़े मंत्रो के दिये जाने से कोई संशय न करें। अब जिसका आपको इंतजार था उन माता बगलामुखी के मंत्र को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।

 मंत्र है :-

ॐ ह्लीं बगलामुखि! सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा। 

इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माता से करें। 

यदि आप चाहें तो इसी मंत्र से माता की षोड्शोपचार विधि से पूजा भी कर सकते हैं। 

आपको कम से कम पांच बातें पूजा में अवश्य ध्यान रखनी है-
1. ब्रह्मचर्य, 
2. शुद्घ और स्वच्छ आसन 
3. गणेश नमस्कार और घी का दीपक 
4. ध्यान और शुद्ध मंत्र का उच्चारण 
5. पीले वस्त्र पहनना और पीली हल्दी की माला से जाप करना। 

आप कहेंगे मैं बार-बार यही सावधानी बता रहा हूं। 
तो मैं कहूंगा इससे गलती करोगे तो माता शायद ही क्षमा करें। इसलिये जो आपके वश में है, उसमें आप फेल न हों। बाकी का काम मां पर छोड़ दें। इतनी सी बातें आपकी कामयाबी के लिये काफी हैं।

अधिकारियों को वश में करने अथवा शत्रुओं द्वारा अपने पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए यह अनुष्ठान पर्याप्त है। 

तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती हैै और दरिद्रता दूर भागती है। 

गूगल और तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। 

अगर वशीकरण करना हो तो उत्तर की ओर मुख करके और धन प्राप्ति के लिए पश्चिम की ओर मुख करके हवन करना चाहिए। 

अनुभूत प्रयोग कुछ इस प्रकार है। 

मधु, शहद, चीनी, दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने से समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। 

गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रु तबाह हो जाते हैं। 

भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर सवा लाख जाप फिर दशांश हवन करें तो सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। 

मधु घी, शक्कर और नमक से हवन आकर्षण (वशीकरण) के लिए प्रयोग कर सकते हैं। 

इसके अतिरिक्त भी बड़े प्रयोग हैं किन्तु इसका कहीं गलत प्रयोग न कर दिया जाए जो समाज के लिए हितकारी न हो इसलिये देना उचित नहीं है। 

अत: आप अपने स्वयं के कल्याण के लिए माता की आराधना कर लाभ उठा सकते हैं। 

यहां पर मैनें आपको पूजा की संक्षिप्त विधि इसलिये दी गई है कि सामान्य प्राणी भी माता की आराधना कर लाभान्वित हो सकें। यह गृहस्थ भाइयों के लिए भी पर्याप्त है।

मेरी शुभकामनाएं आपका कल्याण हो।


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