पितरों का झूंड लगाना।
मनुष्य जाति का जीवन वनस्पति के बिना संभव नहीं है प्राणिजगत का आधार ही पेड़ पौदे और वनस्पति है यद्यपि वनस्पति प्राणियों के भोजन का आधार है तथापि वनस्पति खाद्य औषधि और तन्त्र विद्या के लिए विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है।
धार्मिक महत्व को देखा जाए तो भी वनस्पतियों का विशेष महत्व है बिना वनस्पतियों के कुछ भी संभव नहीं हो सकता।
आज मैं आपको पितृदोष के निवारण के लिए एक ऐसा प्रयोग बताने जा रहा हूँ जो कि अगर श्रद्धा और विश्वास से किया जाए तो मनुष्य की फूटी किस्मत को बदलने में सक्षम है।
भौतिक सुखों की कमी मुख्यतः पितृ दोष के अंतर्गत ही आती है किसी की भौतिक परिस्थितियों को देखकर जातक के पितृ दोष का सरलता से अंदाजा लगाया जा सकता है। जरूरत होती है तुज़रबे कि।
सामान्यतः बहुत अधिक खर्चे वाले प्रयोग करवाने से पहले एक बार ये उपाय इस विषय के किसी जानकार से सलाह लेकर श्रद्धा पूर्वक करें जीवन में धन की कमी का मुख्य कारण पितृदोष ही माना जाता है उसके निवारण हेतु यह प्रयोग उपयोग में लाएं।
सभसे पहले आपको मैं ये स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं कि इस प्रयोग का यहा पर संक्षिप्त रूप से वर्णन किया जा रहा है।
इस प्रयोग के करने से अपार स्थिर धन आपके जीवन में आने के योग बनते है और जीवन पितरों की कृपादृष्टि से समृद्धि की ओर अग्रसर होता है।
ये पितृ शांति का उपाय सरल प्रभावी और परंपरागत रूप प्रयोग होता है।
सरकण्डा नामक फूस,( जिससे झुग्गी-झोपड़ी इत्यादि बनती हैं) जी हां सरकण्डे का प्रयोग होता है इस प्रयोग में इस प्रयोग को झूंड लगवाना बोला जाता है।
सभसे पहले प्रयोग वाले दिन स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर कच्ची लस्सी धूफ दीप डीह/भोमिया/नगर खेड़े के स्थान पर जाकर उनके ऊपर कलावा लपेटकर धूफ दीप प्रज्वलित कर पित्रों के लिए प्रार्थना की जाती है ताकि प्रयोग निर्विघ्न हो सके ये सारा काम चुपचाप किया जाता है उसके उपरांत सूर्यास्त होने के बाद गांव खेड़े की हद से बाहर जाकर सरकण्डे के फूस का झाड़ देखकर वहाँ धूफ दीप प्रज्वलित कर के योग्य भेंट पुजारी देकर उसे खूब सारे पानी से सींचे और न्योता दें और बोलें कि कल सुबह मैं मेरे रुष्ट पितृ पूर्वजों की शांति के लिए आपको आपने साथ अपने घर लेकर जाऊँगा कृपया तैयार रहें इतना बोलकर प्रणाम करें घर वापिस प्रस्थान करें फिर आपको दूसरे दिन भोर में ही जाकर सावधानी पूर्वक उखाड़ लें और अपने घर में कोई साफ सुथरा कोना देखकर रोपित करें और फिर उसमें पितृ देवों का आव्हान पूजन करें तथा प्रतिदिन सुबह कच्ची लस्सी से सिंचाई करें इस 41 दिन यानी सवा महीना करें ।
मांस मदिरा इत्यादि के सेवन से पूर्णतया बचे रहें।
जब आपकी से2आ पूरी हो जाये तब कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को या अमावस्या अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार ब्राह्मण को भोजन दान दक्षिणा देकर विदा करें।