सोमवार, 17 जून 2024

कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।  

यहाँ मैं स्पष्ट रूप से कह देता हूँ कि मैं वशीकरण के मन्त्र और प्रयोग के वाल विषय पूर्ति के लिए ही देता हूँ।और व्यक्तिगत रूप से ऐसे प्रयोग का समर्थन नहीं करता।

तंत्र अपने आप में समग्र औषध है लेकिन इसका अनुचित प्रयोग करना अक्सर बहुत भारी पड़ जाता है एक कहावत आपने सुनी ही होगी 
"पहले मज़ा फिर सजा"
लेकीन जब आप तंत्र का गलत प्रयोग करते हैं तो ये कहवात इस तरह हो जाती है 

"ना मज़ा फिर भी सारा जीवन सज़ा"।

अनैतिक कार्य करने में पहले पहले आपको अच्छा लगेगा लेकिन आपके ऊपर से शुद्ध दैविक ऊर्जा का आशीर्वाद सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाएगा ये मैने अपने जीवन में बहुत सारे तांत्रिकों के जीवन में होता हुआ देख है और अनेकों बार देखा है।

मूलतः कोई भी साधक किसी भी साधना को केवल फल प्राप्ति हेतु करता है इसमें कोई संदेह नही किन्तु कब आपको किस शक्ति /प्रयोग को किसी के ऊपर प्रयोग करना है अथवा कब नही ये निर्धारित करना उस समय बहुत मुश्किल होता है अगर बुराई वाला काम करना हो तो उससे पहले 100 बार सोचना चाहिए लेकिन अगर किसी का भला करना हो तो आपको 1 बार भी सोचना नही चाहिए।

तंत्र विद्या में षट कर्म बहुत उग्र कर्म होता है केवल अपने प्राण और अस्तित्व को संकट में जान पड़ने पर ही इनका प्रयोग करना उचित है अन्यथा नही।

आज कल मनुष्यों के मन में स्वर्थ एवं स्वयं के लिए महत्वाकांक्षा ही भरी पड़ी है।

और संबंधों का कोई स्तर नही बचा मानो एक ही समय में चारों युगों झलक दिखायी देती है जब कोई परोपकार की घटना देखते हैं तो ये लगता है कि चारों तरफ़ धर्म स्थापित है लेकिन अक्सर स्वार्थ चपलता और क्रूरता के दर्शन लगातार देखते रहते हैं।

एक प्रयोग मैं आपको यहां पर बता रहा हूँ यदि कोई वशीकरण का काम फंस जाए और आपको किसी का घर बचाना है तो निम्नलिखित प्रयोग को करें।

शनिवार रात को जिसका वशीकरण आपने करना है उस के पहने हुए कपड़े का टुकड़ा चुपचाप प्राप्त कर लें ।

चौदस/ अमावस /शनिवार की अर्ध रात्रि में कलवावीर को शमशान भूमि में देशी शराब, नारियल, पान, 7 प्रकार की मिठाई, बकरे की कलेजी, लौंग,इलायची,11 नींबूओं का भोग दें और फिर उस कपड़े से एक गुड़िया का निर्माण करें:-

ॐ नमो आदेश गुरु को
काला कलवा काली रात
मैं बुलवां आधी रात
जाग जाग रे *****
भन्न सुट्ट
( फलाने)की हड्डियां 
दिल कलेजा चीर
मुठ्ठी भरी **** दी 
चौसठ चलन जोगन 
चल्लन बावन वीर
दुहाई काली कंकाली की
दुहाई गुरु गोरखनाथ की
आदेश आदेश आदेश।

जिसका वशीकरण करना चाहते हैं उसके पहने हुए कपड़े से निर्मित गुड़िया की 501 मन्त्र से अभिमंत्रित करें फिर कपड़े सिलने वाली तीन सुइयां ले ले और उन प्रत्येक सूई की 11 बार मन्त्र से अभिमंत्रित करें जिसका वशीकरण करना है उसका ध्यान करें पहली सूई को दिमाग और  दूसरी सूई को दिल तथा तीसरी सूई की नाभि पर मंत्र पढ़ते हुए प्रवेश करवा और उसे पुतले को चुपचाप किसी मिट्ठी के पात्र में डालकर श्मशान भूमि  में गाड़ दे।

यह प्रयोग मैंने आपको उचित कार्यों में प्रयोग करने के लिए दिया है इसके लिए किंचित मात्र भी किसी को अपने स्वार्थ के लिए या किसी ऐसी अनुचित कार्य के हेतु दूसरे को कष्ट पहुंचाने का कोई भी हक नहीं है इस प्रयोग को प्रयोग करने वाले व्यक्ति  की स्वयं की जिम्मेदारी होगी।

इस मंत्र के कुछ अंश सुरक्षित रखे गए हैं ताकि किसी प्रकार से किसी का कोई अहित न हो। 
जो इसका प्रयोग करना चाहते हैं वह सीधा मुझे मेरे व्हाट्सएप नंबर 8194951381 के ऊपर व्हाट्सएप   संदेश के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

श्री झूलेलाल चालीसा।


                   "झूलेलाल चालीसा" 

मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥ 

श्री झूलेलाल चालीसा 
दोहा :-जय जय जय जल देवता,   जय जय ज्योति स्वरूप। अमर उडेरो लाल जय,जय जय श्री झूले लाल अनूप।। 

चौपाई 
रतनलाल रतनाणी नंदन । 
जयति देवकीसुत जगवंदन ॥1।। 

दरियाशाह वरुण अवतारी । 
जय जय लाल साईं सुखकारी ॥2।। 

जय जय होय धर्म की भीरा । 
जिंदा पीर हरे जन पीरा ॥3।। 

संवत दस सौ सात मंझारा ।
चैत्र शुक्ल द्वितिया के वारा ॥4॥ 

ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा । 
प्रभु अवतरे सब मिटे क्लेशा ॥5।। 

सिन्धु वीर ठट्ठा रजधानी । 
मिरखशाह नृप अति अभिमानी ॥6।। 

कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी । 
यवन मलिन मन अत्याचारी ॥7।। 

धर्मान्तरण करे सब केरा । 
दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ॥8॥ 

पिटवाया हाकिम ढिंढोरा । 
हो इस्लाम धर्म चहुँओरा ॥9।। 

सिन्धी प्रजा बहुत घबराई । 
इष्ट देव को टेर लगाई ॥10।। 

वरुण देव पूजे बहुभांति । 
बिन जल अन्न गए दिन राती ॥11।। 

सिंधु तीर तब दिन चालीसा । 
सब घर ध्यान लगाये ईशा ॥12॥ 

गरज उठा नद सिंधू सहसा । 
चारों और उठा नव हरषा ॥13।। 

वरुणदेव ने सुनी पुकारा । 
प्रकटे वरुण मीन असवारा ॥14।। 

दिव्य पुरुष जल ब्रह्म स्वरुपा । 
कर पुस्तक नवरूप अनूपा ॥15।। 

हर्षित हुए सकल नर नारी । 
वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥16॥ 

जय जय कार उठी चहुँओरा । 
गई रात       आई नव भोरा ॥17।। 

मिरख नृपौ जो अत्याचारी । 
नष्ट करूँगा शक्ति सारी ॥18।।
 
दूर अधर्म करन भू भारा । 
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥19।। 

रतनराय रतनाणी आँगन । 
आऊँगा उनका शिशु बनकर ॥20॥

रतनराय घर खुशियां आई ।
अवतारे सब देय बधाई ॥21।। 

घर घर मंगल गीत सुहाए । 
झुलेलाल हरन दुःख आए ॥22।।

मिरखशाह तक चर्चा आई । 
भेजा मंत्रि क्रोध अधिकाई ॥23।। 

मंत्री ने जब बाल निहारा । 
धीरज गया हृदय का सारा ॥24॥ 

देखि मंत्री साईं की लीला । 
अति विचित्र मनमोहनशीला ॥25।। 

बालक दिखा युवा सेनानी ।
 देख मंत्री बुद्धि चकरानी ॥26।।
 
योद्धा रूप दिखे भगवाना । 
मंत्री हुआ विगत अभिमाना ॥27।। 

झुलेलाल तब दिया आदेशा । 
जा तव नऊपति कह संदेशा ॥28॥ 

मिरखशाह कह तजे गुमाना । 
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥29।।

बंद करो नित अत्याचारा ।
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥30।। 

लेकिन मिरखशाह अभिमानी । 
वरुणदेव की बात न मानी ॥31।। 

एक दिवस हो अश्व सवारा । 
झुलेलाल गए दरबारा ॥32॥ 

मिरखशाह ने आज्ञा दे दी । 
झुलेलाल बनाओ बन्दी ॥33।। 

किया स्वरुप वरुण का धारण । 
चारो और हुआ जल प्रलय ॥34।। 

दरबारी तब डूबे उतराये । 
नृप के होश ठिकाने आये ॥35।। 

मिरख शाह तब शरणन आई । 
बोला धन्य धन्य जय साईं ॥36॥ 

वापिस लिया नृप निज आदेशा । 
दूर हुआ सब जन का क्लेशा ॥37।। 

संवत दस सौ बीस मंझारी । 
भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ॥38।। 

भक्तों की हर विपदा व्याधि । 
जल में ली जलदेव समाधि ॥39।। 

जो जन धरे आज भी ध्याना । 
श्रीझूलेलाल करें कल्याणा ॥40॥ 

॥ दोहा ॥ 
यह चालीसा पढ़े जो कोई उसका जीवन सुखमय होई। 
दिन चालीस करे व्रत जोई मनवांछित फल पावै सोई।। ॥ 

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

सिद्ध सुलेमानी जंजीरा मन्त्र

सुलेमानी जंजीरा मन्त्र।

जहां सभी तंत्रों में सुलेमानी तंत्र को बहुत तीव्र और शक्तिशाली माना जाता है। क्योंकि इसमें सिद्धि शीघ्र और तेज होती है। ऐसा नहीं है कि बाकी प्रणाली प्रभावी नहीं है, क्यों कि तंत्र का अर्थ क्रिया है। जहां प्रार्थना का जाप किया जाता है। और व्यवस्था एक क्रिया, समस्या का निवारण करती है। क्योंकि क्रिया का अर्थ काम हुआ। इसलिए तन्त्र समस्या के लिए झुकना नहीं चाहिए। जहाँ मैं एक बहुत ही प्रभावी सुलेमानी मन्त्र आपको दे रहा हूँ जो बहुत आसान भी है।लेकिन धैर्य के साथ किया गया अनुष्ठान आपको 101% लाभ देगा।

सुलेमानी तंत्र साधना – 
क्या आपको भी निम्नलिखित परेशनिया है?
क्या आप पूरी तरह से गुरवत से घिरे हुए हैं?
क्या आप कर्ज में डूब रहे हैं?
क्या दुश्मन की साजिश के शिकार लोगों को शिकार बनाया जा रहा है?
क्या सभी रोजगार के रास्ते बंद हैं?

इसलिए इस साधना को एक बार करें और फिर देखें कि आपके जीवन में कितना बदलाव आता है। यह एक बहुत ही ज़बरदस्त पंजतन पाक कलाम है। इसे पूरी पवित्रता के साथ करें।

जिस कमरे में आप साधना कर रहे हैं, उसे साफ करें, इसे पोचा वगैरह लगाके निश्चित रूप में धोएं, फिर इस साधना को शुक्ल पक्ष के पहले जुमेरात से शुरू करें और इसे 21 दिनों तक करना है।

सुलेमन जंजीरा:-
स्नान इत्यादि से निवर्त होकर सेंट लगाये
सफेद कपड़े पहनें और आसन भी सफेद रंग का प्रयोग करें। 
इस साधना के दौरान पश्चिम दिशा की ओर रुख कर के जैसे वज्रासन में बैठते हैं । 
सिर की टोपी को सफेद रूमाल से ढककर बैठना चाहिए और खुशबूदार अगरवती / या लोहबान सुलगाना चाहिए और इसे जाप के दौरान जलते रहना चाहिए। 
सफेद रंग की मिठाई जाप के समय थोड़ी सी सामने रखे फिर उसे दूसरे दिन बच्चों में बांट दें/नदी या दरिया में प्रवाहित करें अथवा गाय या कुत्ते को डाल दें।
अगर आप लगाना चाहते हैं तो तेल का दीपक लगा सकते हैं। 
सभी पहले गुरु और गणेश की पूजा करने के बाद आज्ञा लें और 
फिर एक माला गुरु मंत्र की और एक माला गणेश मन्त्र की करें बाद में सफेद हकीक माला के साथ निम्न मंत्र की पांच माला का जप करें,
साधना में बहुत अनुभव हो सकता है। मन को नियंत्रण में रखते हुए जप पूरा करें। 
जिस कमरे में आप साधना कर रहे हैं उसमें किसी को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे शराब पीकर न आएं। 
यदि आप माला के साथ जाप नहीं करते तो इसे एक घंटे के लिए करें।

सुलेमानी जंजीरा:-
बिसिमिल्ला रहमान रहीम,
उदम बीबी फातमा,
मदद शेर खुदा ,
चड़े मोहमंद मुस्तफा,
 मूजी कीते जेर ,
वरकत हसन हुसैन दी,
रूह असा वल फेर।

आपका कल्याण हो।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

नाहर सिंह वीर की साधना।

नाहर सिंह वीर की साधना।


नाहर सिंह वीर की एक ऐसी जबरदस्त और खतरनाक मन्त्र साधना है जिसमें साधक को बहुत ही अधिक शक्तिशाली एवं रोमांचकारी अनुभवों से होकर गुजरना पड़ता है।

लेकिन इस साधना को सफलतापूर्वक संपन्न कर लेने के बाद आप कट्टर से कट्टर भूत प्रेत को जिन जिन्नाद शैतान या ख़बीस को भगाने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं जिन नवयुवक बच्चों के साथ रात्रि में विपरीत लिंगी ऊर्जाओं द्वारा जबरन बलात्कार होता है उन बच्चों के लिए ये मन्त्र बहुत ही अत्यंत उपयोगी हैं।

किसी भी प्रकार की मनोकामना की पूर्ति इस मंत्र की साधना कर लेने के बाद आपको प्राप्त हो जाती है तथा आपके जीवन में आने वाली सभी भूत प्रेत जनित बढ़ाएं स्वत संपूर्ण रूप से समाप्त हो जाती हैं 

अगर आप किसी इस प्रकार की शक्ति से बाधित हैं और आपको पता है कि वह शक्ति एक शुद्ध बड़ा है और आपको बहुत अधिक संत्रास कष्ट दे रही है आपका शोषण हो रहा है तो उसे स्थिति में यह मंत्र आपकी बहुत अधिक सहायता कर सकता है विशेष तौर पर युवक और नव युवतियों को विपरीत लिंगी भूत प्रेत अक्सर बहुत अधिक पीड़ा देते हैं यहां तक की जबरन मजबूर होना पड़ता है ऐसी नीचे वृद्धि वाली शक्तियों को निवारण के लिए या मंत्र उसकी साधना बहुत अधिक कारगर है इस मंत्र को कई बार आजमाया जा चुका है यह मंत्र एक बहुत अच्छे महात्मा से प्राप्त हुआ था विपरीत लिंगी भूत प्रेत द्वारा युवक और नवयुवतियों के साथ होने वाले जबरन सहवास करने वाली शक्तियों को नष्ट करने के लिए मात्र 51 बार पढ़ लेना ही काफी रहता है 

हां अगर कोई व्यक्ति 108 बार प्रतिदिन जाप करें पास मछली अंडा शराब इत्यादि वस्तुओं से दूर रहे तो यह मंत्र अपनी पूर्ण प्रचंड वेग के साथ साधक की सभी समस्याओं का निवारण करता है।

इस साधना में रक्षा के लिए रुद्रअवतार श्री हनुमान जी के चालीसा का पाठ आपको प्रत्येक मंगलवार वाले दिन सात बार करना चाहिए ये लगातार पांच मंगलवार करें ,तो इस साधना से जो गरमाइश पैदा होगी वह गरमाइश शांत रहेंगी और ऊर्जा के सक्रिय होने पर आपको किसी प्रकार की मानसिक और शारीरिक हानि नहीं होगी।

सभी भूत प्रेत ग्रसित रोगियों के उपचार के लिए नाहर सिंह हनुमान और भैरव की शक्तियां अचूक मानी जाती हैं यही तीन शक्तियों है जिसे बड़े से बड़ा भूत प्रेत भी चिल्लाने लग जाता है और रोगी को छोड़ देने पर मजबूर हो जाता है।

बाकी सब बात होती है विश्वास की।

आप कोई भी छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी साधना करें आपके गुरु या उस्ताद का आपके सिर पर हाथ होना परम आवश्यक है ऐसा न होने पर आप कितने भी स्तर की ऊर्जा को प्राप्त कर लें या किसी भी प्रकार की सिद्धि हासिल कर ले तब भी आपको खतरा ही रहेगा। क्योंकि साधनाओं में भारी किया होती हैं और गुरु उस्ताद को वह बारीकियां पता होती हैं।

अपने गुरु और उस्ताद के अलावा दूसरा कहीं से मंत्र लेकर के साधना अथवा सिद्धि के लिए नहीं बैठना चाहिए क्योंकि सभी साधकों के  अपनी अपनी शैलियां और अपनी-अपनी अलग अलग पद्धतियां होती हैं।

यह मंत्र सिद्ध और सक्रिय है 108 बार इस मंत्र को जब करने पर इसकी शक्ति का अनुभव आपको हो जाएगा।

मत्थे टिक्का
हत्थ विच कड़ा
जिथे सिमरां नाहर सिंह वीर 
हज़ार खड़ा 
सवा मण का सोटा चलाओ
लड्डू पेड़े का भोग लगाओ
भूतां प्रेतां नु मार लगाओ
माता नाहरी दी आन
दूहाई सोढ़ी सरकार दी
दुहाई गुरु उस्ताद दी

इस मंत्र की साधना साधक के सभी समस्याओं का निवारण करती है । किंतु आपके ऊपर आपके गुरु जी के आशीर्वाद का होना परम आवश्यक है। अपने से गुरु से आज्ञा लेकर ही इस मंत्र का अनुष्ठान शुरू करें।

लगातार 40 दिन तक एक माला प्रतिदिन जाप करने के बाद सड़क के ऊपर वीर नाहर सिंह की विशेष कृपा होती है। एवं दर्शन प्राप्त होते हैं।

इस साधना में नाहर सिंह वीर को दिए जाने वाला भोग लड्डू पेड़ा बर्फी लौंग इलायची और शुद्ध देशी घी के हलवे की कड़ाही है।

जिन लोगों के घरों में नरसिंह वीर की जोत चलती है उन घरों में ये मन्त्र बहुत कारगर होता है।



लोना चमारी का मन्त्र।

लोना चमारी का मन्त्र।

विशेष:- यह चित्र केवल प्रतीकात्मक रूप से लगाया गया है।*

( यह लोना चमारी का मंत्र अधिकतर रूप से बहुतायत में सिद्ध हो जाता है किसी किसी स्थिर मन वाले और स्थिर ध्यान वाले साधकों को ही इनके दर्शन प्राप्त होते हैं वरना मंत्र 100% सिद्ध हो जाता है और कार्य करता है )।

माता लोना चमारी को तंत्र के क्षेत्र में कौन नही जानता  गुरु गोरखनाथ जी की शिष्या अपार शक्तियों की मालिक अगर किसी पर एक नज़र कृपा की कर दें तो साधक यन्त्र मन्त्र तन्त्र में पारंगत हो जाता है।

ये मन्त्र यहाँ पर बताने का कोई विचार नही था लेकिन बार बार शिष्यों के आग्रह करने पे ये मन्त्र यहां बता रहा हूँ इस लिए की समाज का कुछ भला हो सके और जो वास्तव में इस मंत्र के पात्र हैं उन्हें ये मन्त्र मिल सके।

जिस प्रकार श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की साधना से साधक आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार ये साधना सम्पन्न कर लेने पर अज्ञानी से अज्ञानी साधन भी यन्त्र मन्त्र तन्त्र में पारंगत हो जाता है।

इस मंत्र के सिद्ध हो जाने के बाद मनुष्य को बड़े बड़े मन्त्र और स्तोत्र कंठ और सिद्ध हो जाते है और तंत्र जगत के गुप्त रहस्यमयी विषयों के बारे में प्रकाश/ ज्ञान हो जाता है और सभी कठिन से कठिन साधनाओं में आने वाली समस्याओं का निवारण गुप्त रूप से चल जाता है और आध्यामिक दृष्टि से साधक आगे बढ़ जाता है ।

इस साधना को करने के बाद साधक की छठी इंद्रिय शक्ति इस प्रकार जागृत होती है कि उससे होने वाली सभी घटनाओं का पूर्व में ही ज्ञान हो जाता है और संकेतिक रुप से सभी होने वाली बातें उसके सामने दृष्टांत बनकर आंखों के सामने दिखने लग जाती है ।

इस साधना को करने के उपरांत साधन में साधक में अजीब से जीवनी शक्ति का संचार हो जाता है वह हर साधना को चाहे वह कितनी भी कठिन या जटिल क्यों ना हो सफलतापूर्वक संपन्न करने में सक्षम हो जाता है चाहे झाड़-फूंक हो या टोना टोटका यंत्र मंत्र तंत्र या कोई भी कठिन से कठिन साधना साधक आसानी से उनको कर लेता है।

साधक का वचन वांचा इतना पक्का हो जाता है जिस प्रकार उसे वचन सिद्धि प्राप्त हो जाए एवं साधक मजाक में भी कोई बात कह देगा तो वह वाक्य सत्य होगी इसलिए इस साधना को करने के बाद साधक को बोलने में संयम का प्रयोग करना चाहिए ताकि आपके द्वारा किसी जीव मात्र का बुरा ना हो।

जो लोग दूसरों का इलाज करते हैं झाड़-फूंक का कार्य करते हैं उनको अपने मंत्रों के प्रयोगों में इस लक्ष्य प्राप्त होने लग जाता है और दीन दुखी जो उसके पास आते हैं वह सब ठीक होने लग जाते हैं। झाड़ फूंक में बहुत असर आ जाता है।

इस मंत्र की साधना 41 दिनों की है और उसे संयम से किया जाना चाहिए लाल वस्त्र पहनकर लाल ही आसन पर और मूंगे की माला से इस मंत्र को किया जाता है पूजन सामग्री में धूप दीप फल फूल पांच मिठाई और नैवेद्य दिए जाते हैं इसका रात्रि में संपर्क किया जाता है जिसमें प्रतिदिन आपको पांच माला जाप करना होता है जाप करते समय पूर्व दिशा की तरफ अपना मुंह रखें सिरको और माला को ढक कर रखें एक गाय के गोबर के उपले के आग बना ले उस पर थोड़ा देसी घी बताशा और एक जोड़ा लॉन्ग प्रति मंत्र को पढ़ने के बाद आहुति दें ब्रम्हचर्य से रहें और भूमि पर शयन करें इस प्रकार 41 दिन करने से यह साधना संपन्न हो जाएगी शुरुआती दिनों में शक्तियां आप से चल कर सकती हैं इसलिए आपको सजग रहना चाहिए और किसी भ्रांति में नहीं पड़ना चाहिए इस साधना में कोई भरे इत्यादि नहीं होता है लेकिन देवी अन्यान रूप बनाकर के साद साधक को भ्रमित कर सकती हैं।

इसका मंत्र और विधि मैं आपको दे रहा हूं ऊपर बताई गई विधि के अनुसार निम्न मंत्र का जाप किया जाता है।

ॐ नमो लोना चमारी ,मात हमारी,भेंट तुम्हारी लौंग सुपारी,श्री सतगुर दीन्हा वाक, ठाड़ी खड़ो अब आय भवानी,मन्त्र विद्या सिद्ध कराओ,कामरू कामाक्षा देवी का वचन छूटे तो गुरु उस्ताद की दुहाई इस्माईल योगी की दुहाई। सतगुरु गोरक्षनाथ की आन।
 

शनिवार, 2 दिसंबर 2023

सप्रयोग महाविद्यास्तोत्रम्।

महाविद्यास्तोत्रम्-सप्रयोग

श्री गणेशाय नमः ।
महाविद्यां प्रवक्ष्यामि महादेवेन निर्मिताम् ।
उत्तमां सर्वविद्यानां सर्वभूताघशङ्करीम् ॥

सङ्कल्पः - ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे
अमुकगोत्रः - अमुकशर्माऽहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य)
गृहे उत्पन्न भूत-प्रेत-पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये ।

विनियोगः - ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्याऽर्यमा ऋषिः,
कालिका देवता, गायत्री छन्दः, श्रीसदाशिवदेवताप्रीत्यर्थे
मनोवाञ्छितसिद्ध्यर्थे च जपे (पाठे) विनियोगः ।

भगवान् शङ्कर द्वारा निर्मित उस महाविद्या को मैं कहता
हूं, जो सब विद्याओं में श्रेष्ठ तथा सब जीवों को वश में
करनेवाली हैं । पाठकर्ता दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत,
जल लेकर - ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ
अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकशर्माहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य)
गृहे उत्पन्न भूत-प्रेत-पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये
इति पाठ का सङ्कल्प करे ।

ध्यानम्
उद्यच्छीतांशु-रश्मि-द्युतिचय-सदृशीं फुल्लपद्मोपविष्टां
वीणा-नागेन्द्र-शङ्खायुध-परशुधरां दोर्भिरीड्यैश्चतुर्भिः ।
मुक्ताहारांशु-नानामणियुतहृदयां सीधुपात्रं वहन्तीं
वन्देऽभीज्यां भवानीं प्रहसितवदनां साधकेष्टप्रदात्रीम् ॥

पश्चात् ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्य - से विनियोगः तक
पढकर भूमि पर जल छोड दे ।

उसके बाद उद्यच्छीतांशु से साधकेष्टप्रदात्रीं  तक श्लोक
पढकर महाविद्या का ध्यान कर,  ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं से आरम्भ कर,
प्रेतशान्तिर्विशेषतः तक स्तोत्र का पाठ करे ।

ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं धनकरीं पुष्टिकरीं वृद्धिकरीं हलाकरीं
सर्वशत्रुक्षयकरीं उत्साहकरीं बलवर्धिनीं सर्ववज्रकायाचितां
सर्वग्रहोत्पाटिनीं पुत्र-पौत्राभिवर्द्धिनीमायुरारोग्यैश्वर्याभिवर्द्धिनीं
सर्वभूतस्तम्भिनीं द्राविणीं मोहिनीं सर्वाकर्षिणीं सर्वलोकवशङ्करीं
सर्वराजवश्ङ्करीं सर्वयन्त्र-मन्त्र-प्रभेदिनीमेकाहिकं
द्व्याहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पाञ्चाहिकं
साप्ताहिकमार्द्धमासिकं मासिकं चातुर्मासिकं षाण्मासिकं
सांवत्सरिकं वैजयन्तिकं पैत्तिकं वातिकं श्लैष्मिकं सान्निपातिकं
कुष्ठरोगजठररोगमुखरोगगण्डरोगप्रमेहरोगशुल्काविशिक्षयकरीं
विस्फोटकादिविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ वेतालादिज्वर-रात्रिज्वर-दिवसज्वराग्निज्वर-प्रत्यग्निज्वर-
राक्षसज्वर-पिशाचज्वर-ब्रह्मराक्षसज्वर-प्रस्वेदज्वर-
विषमज्वर-त्रिपुरज्वर-मायाज्वर-आभिचारिकज्वर-वष्टिअज्वर-
स्मरादिज्वर-दृष्टिज्वर-प्रोगादिविनाशनाय
स्वाहा । सर्वव्याधिविनाशनाय स्वाहा । सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ अक्षिशूल-कुक्षिशूल-कर्णशूल-घ्राणशूलोदरशूल-गलशूल-
गण्डशूल-पादशूल-पादार्धशूल-सर्वशूलविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाहा ।
सर्वस्फोटक-सर्वक्लेशविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ आत्मरक्षा ॐ परमात्मरक्षा मित्ररक्षा अग्निरक्षा प्रत्यग्निरक्षा
परगतिवातोरक्षा तेषां सकलबन्धाय स्वाहा । ॐ हरदेहिनी स्वाहा ।
ॐ इन्द्रदेहिनी स्वाहा । ॐ स्वस्य ब्रह्मदण्डं विश्रामय । ॐ विश्रामय
विष्णुदण्डम् । ॐ ज्वर-ज्वरेश्वर-कुमारदण्डम् । ॐ हिलि मिलि
मायादण्डम् । ॐ नित्यं नित्यं विश्रामय विश्रामय वारुणी  शूलिनी
गारुडी रक्षा स्वाहा ।

गंगादिपुलिने जाता पर्वते च वनान्तरे ।
रुद्रस्य हृदये जाता विद्याऽहं कामरूपिणी ॥

ॐ ज्वल ज्वल देहस्य देहेन सकललोहपिङ्गिलि कटि मपुरी
किलि किलि किलि महादण्ड कुमारदण्ड नृत्य नृत्य विष्णुवन्दितहंसिनी
शङ्खिनी चक्रिणी गदिनी शूलिनी रक्ष रक्ष स्वाहा ।

अथ बीजमन्त्राः

ॐ ह्राँ स्वाहा । ॐ ह्राँ ह्राँ स्वाहा ।
ॐ ह्रीँ स्वाहा । ॐ ह्रीँ ह्रीँ स्वाहा ।
ॐ ह्रूँ स्वाहा । ॐ ह्रूँ ह्रूँ स्वाहा ।
ॐ ह्रेँ स्वाहा । ॐ ह्रेँ ह्रेँ स्वाहा ।
ॐ ह्रैँ स्वाहा । ॐ ह्रैँ ह्रैँ स्वाहा ।
ॐ ह्रोँ स्वाहा । ॐ ह्रोँ ह्रोँ स्वाहा ।
ॐ ह्रौँ स्वाहा । ॐ ह्रौँ ह्रौँ स्वाहा ।
ॐ ह्रँ स्वाहा । ॐ ह्रँ ह्रँ स्वाहा ।
ॐ ह्रः स्वाहा । ॐ ह्रः ह्रः स्वाहा  ।
ॐ क्राँ स्वाहा । ॐ क्राँ क्राँ स्वाहा ।
ॐ क्रीँ स्वाहा । ॐ क्रीँ क्रीँ स्वाहा ।
ॐ क्रूँ स्वाहा । ॐ क्रूँ क्रूँ स्वाहा ।
ॐ क्रेँ स्वाहा । ॐ क्रेँ क्रेँ स्वाहा ।
ॐ क्रैँ स्वाहा । ॐ क्रैँ क्रैँ स्वाहा  ।
ॐ क्रोँ स्वाहा । ॐ क्रोँ क्रोँ स्वाहा ।
ॐ क्रौँ स्वाहा । ॐ क्रौँ क्रौँ स्वाहा ।
ॐ क्रँ स्वाहा । ॐ क्रँ क्रँ स्वाहा ।
ॐ क्रः स्वाहा । ॐ क्रः क्रः स्वाहा ।
ॐ कँ स्वाहा । ॐ कँ कँ स्वाहा ।
ॐ खँ स्वाहा । ॐ खँ खँ स्वाहा ।
ॐ गँ स्वाहा । ॐ गँ गँ स्वाहा ।
ॐ घँ स्वाहा । ॐ घँ घँ स्वाहा  ।
ॐ ङँ स्वाहा  । ॐ ङँ ङँ स्वाहा ।
ॐ चँ स्वाहा । ॐ चँ चँ स्वाहा ।
ॐ छँ स्वाहा । ॐ छँ छँ स्वाहा ।
ॐ जँ स्वाहा । ॐ जँ जँ स्वाहा  ।
ॐ झँ स्वाहा । ॐ झँ झँ स्वाहा ।
ॐ ञँ स्वाहा । ॐ ञँ ञँ स्वाहा ।
ॐ टँ स्वाहा । ॐ टँ टँ स्वाहा ।
ॐ ठँ स्वाहा । ॐ ठँ ठँ स्वाहा  ।
ॐ डँ स्वाहा । ॐ डँ डँ स्वाहा ।
ॐ ढँ स्वाहा । ॐ ढँ ढँ स्वाहा ।
ॐ णँ स्वाहा । ॐ णँ णँ स्वाहा ।
ॐ तँ स्वाहा । ॐ तँ तँ स्वाहा  ।
ॐ थँ स्वाहा । ॐ थँ थँ स्वाहा ।
ॐ दँ स्वाहा । ॐ दँ दँ स्वाहा ।
ॐ धँ स्वाहा । ॐ धँ धँ स्वाहा ।
ॐ नँ स्वाहा । ॐ नँ नँ स्वाहा  ।
ॐ पँ स्वाहा । ॐ पँ पँ स्वाहा ।
ॐ फँ स्वाहा । ॐ फँ फँ स्वाहा ।
ॐ बँ स्वाहा । ॐ बँ बँ स्वाहा ।
ॐ भँ स्वाहा । ॐ भँ भँ स्वाहा  ।
ॐ मँ स्वाहा । ॐ मँ मँ स्वाहा ।
ॐ यँ स्वाहा । ॐ यँ यँ स्वाहा ।
ॐ रँ स्वाहा । ॐ रँ रँ स्वाहा ।
ॐ लँ स्वाहा । ॐ लँ लँ स्वाहा  ।
ॐ वँ स्वाहा । ॐ वँ वँ स्वाहा ।
ॐ शँ स्वाहा । ॐ शँ शँ स्वाहा ।
ॐ षँ स्वाहा । ॐ षँ षँ स्वाहा  ।
ॐ सँ स्वाहा । ॐ सँ सँ स्वाहा ।
ॐ हँ स्वाहा । ॐ हँ हँ स्वाहा ।
ॐ क्षँ स्वाहा । ॐ क्षँ क्षँ स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ लेषाय स्वाहा । ॐ गणेश्वराय स्वाहा  ।
ॐ दुर्गे महाशक्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षस-
सर्ववेताल-वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा  ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ ब्रं ब्रह्मणे स्वाहा । ॐ विं विष्णवे स्वाहा ।
ॐ शिं शिवाय स्वाहा  । ॐ सूं सूर्याय स्वाहा ।
ॐ सों सोमाय स्वाहा ।
ॐ विं विष्णवे स्वाहा । ॐ शिं शिवाय स्वाहा ।
ॐ सूं सूर्याय स्वाहा  । ॐ सों सोमाय स्वाहा  ।
ॐ मं मंगलाय स्वाहा । ॐ बुं बुधाय स्वाहा ।
ॐ बृं बृहस्पतये स्वाहा । ॐ शुं शुक्राय  स्वाहा ।
ॐ शं शनैश्चराय स्वाहा । ॐ रां राहवे स्वाहा ।
ॐ कें केतवे  स्वाहा । ॐ महाशान्तिक-भूत प्रेत-पिशाच-राक्षस-
ब्रह्मराक्षस-वेताल-वृश्चिकभयविनाशनाय  स्वाहा ।
ॐ सिंह-शार्दूल-गजेन्द्र-ग्राह-व्याघ्रादिमृगान् बध्नामि स्वाहा ।
ॐ शस्त्रं बध्नामि स्वाहा । ॐ अस्त्रं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ  आशां बध्नामि स्वाहा । ॐ सर्वं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ सर्वजन्तून् बध्नामि स्वाहा ।
ॐ बन्ध बन्ध मोचनं कुरु कुरु स्वाहा ।

दिग्बन्धनम्

ॐ नमो भगवते रुद्राय
महेन्द्रदिशायामैरावतारूढं हेमवर्णं वज्रहस्तं
परिवारसहितं इन्द्रदेवताधिपतिमैन्द्रमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ ऐन्द्रमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय
अग्निदिशायां मार्जारारूढं शक्तिहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिमग्निमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अग्निमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ  नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते रुद्राय
दक्षिणदिशायां महिषारूढं कृष्णवर्णं दण्डहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं यममण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ यममण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।

ॐ नैरृत्यदिशायां प्रेतारूढं खड्गहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं नैरृत्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नैरृत्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्रां क्रीं क्रूं क्रैं क्रौं क्रः स्वाहा ।

ॐ पश्चिमदिशायां मकरारूढं पाशहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वरुणमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वरुणमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा  ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ वायव्यदिशायां मृगारूढं धनुर्हस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वायव्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वायव्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ उत्तरदिशायां यक्षारुढं मदाहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं कुबेरमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ कुबेरमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।

ॐ अग्निदिशायां कूर्मारूढं लोष्ठभागं कुपरिघहस्तं
स्वपरिवारसहितं दिग्देवतधिपतिं पातालमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ पातालमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा।
ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रूँ ह्रैँ ह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँ क्रीँ क्रूँ क्रैँ क्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ दुर्गे महाशान्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-
ब्रह्मराक्षस-वेताल-वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ पूर्वदिशायां व्रजको नाम राक्षसस्तस्य
व्रजकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ अग्निदिशायामग्निज्वालो नाम राक्षसस्तस्याग्निज्वालस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां वध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ दक्षिणदिशायामेकपिङ्गलिको नाम राक्षसस्तस्यैकपिङ्गलिकस्याष्टा-
दशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ नैरृत्यदिशायां मरीचिको नाम राक्षसस्तस्य
मरीचिकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ पश्चिमदिशायां मकरो नाम राक्षसस्तस्य
मकरस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ वायव्यदिशायां तक्षको नाम राक्षसस्तस्य
तक्षकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ उत्तरदिशायां महाभीमो नाम राक्षसस्तस्य
भीमस्याष्टादसकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ ईशानदिशायां भैरवो नाम राक्षसस्तस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।

ॐ अधः दिशायां पातालनिवासिनो नाम राक्षसस्तस्या-
ष्टादशकोटिसहस्रस्य तस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।

ॐ ब्रह्मदिशायां ब्रह्मरूपो नाम राक्षसस्तस्य
ब्रह्मरूपस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ नमो भगवते भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।
ॐ नमो महाशान्तिक-भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षस-
वेताल-वृश्चिकभयविनाशनाय स्वाहा ।

ॐ शिखायां मे क्लीं ब्रह्माणी रक्षतु ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ शिरो मे रक्षतु माहेश्वरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ भुजौ रक्षतु सर्वाणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ उदरे रक्षतु रुद्राणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ जङ्घे रक्षतु नारसिंही ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ पादौ रक्षतु महालक्ष्मी  ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ सर्वाङ्गे रक्षतु सुन्दरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।

परिणामे महाविद्या महादेवस्य सन्निधौ ।
एकविंशतिवारं च पठित्वा सिद्धिमाप्नुयात् ॥ १॥

स्त्रियो वा पुरुषो वापि पापं भस्म समाचरेत् ।
दुष्टानां मारणं चैव सर्वग्रहनिवारणम् ।
सर्वकार्येषु सिद्धिः स्यात् प्रेतशान्तिर्विशेषतः  ॥ २॥

इति श्रीभैरवीतन्त्रे शिवप्रोक्ता महाविद्या समाप्ता ।

अथाऽस्य स्तोत्रस्योत्कीलनमन्त्रः -

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्  ॥

अष्टोत्तरशतमभिमन्त्र्य जलं पाययेत् अथवा कुशैर्मार्जयेत् ।

इति सप्रयोगमहाविद्यास्तोत्रं समाप्तम् ।

महादेव के समीप में इस महाविद्यास्तोत्र के इक्कीस बार पाठ करने
से सिद्धि प्राप्त होती है ॥ १॥

चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।
दुष्टों का मारण तथा सब ग्रहों की शान्ति भी होती है ।
और सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है । विशेष करके
प्रेतबाधा की शान्ति निश्चित रूप से होती है  ॥ २॥

इस प्रकार श्रीभैरवी तन्त्र में भगवान शंकर से कही गयी
महाविद्या समाप्त हुई ।

इस स्तोत्र का उत्कीलन मन्त्र है - ॐ उग्रं वीरं से - नमाम्यहम्
तक । इस मन्त्र से एकसौ आठ बार जल को अभिमन्त्रित कर पिलाना
चाहिये अथवा कुश से मार्जन करे ।

गुरुवार, 23 नवंबर 2023

बगलामुखी देवी मंत्र के नुकसान

           माता बगलामुखी मन्त्र के नुकसान।
आद्य शक्ति भगवती माता बगलामुखी देवी सनातन धर्म में एक प्रमुख पूजनीय देवी हैं, दसमहाविद्या तन्त्र के अंतर्गत दुश्मनों को हराने और अपने भक्तों को नुकसान से बचाने के लिए उनकी पूजा की जाती है। 

माँ बगलामुखी या पीताम्बरा देवी के रूप मे भी जाना जाता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । दस महाविद्याओं में से एक हैं – महान ज्ञान देवी। बंगलामुखी देवी की पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है, और उन्हें शक्ति या दिव्य स्त्री ऊर्जा का एक उग्र रूप माना जाता है।

वैसे यदि हम बंगलामुखी नाम की बात करें तो इसका मतलब होता है , दुश्मनों को दूर भगाने वाली और नकारात्मकता को नष्ट करने वाली देवी । 

उनकी प्रतिमा एक हाथ में गदा पकड़े हुए और दूसरे के साथ एक राक्षस रूपी शत्रु की जीभ खींचती है, यह दर्शाता है कि वह नकारात्मक भाषण को दबा सकती है। उसे अक्सर खोपड़ियों से बने सिंहासन पर बैठे हुए भी चित्रित किया जाता है, जो मृत्यु पर विजय के प्रतीक के रूप मे देखा जा सकता है।

बगलामुखी के मंत्र का प्रयोग आमतौर पर शत्रु जैसी समस्याओं के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसे कि आपको शत्रु काफी अधिक परेशान कर रहे हैं। तो बगलामुखी विधान का प्रयोग किया जाता है।

यदि आप बगलामुखी साधना करना चाहते हैं , तो आपको पहले ही बतादें कि यह एक प्रकार की उग्र देवी होती है। इसलिए बिना गुरू के आपको इनकी साधना नहीं करनी चाहिए । यदि आप बिना गुरू के साधना करते हैं तो आपको भयंकर नुकसान हो सकते है। बगलामुखी मंत्र के नुकसान के बारे मे इस लेख में हम आपको यहां पर बताने वाले हैं।

जब हम बिना गुरू को धारण किये हुए कोई भी बगलामुखी की साधना करते हैं , तो वह साधना बिगड़ जाती है। और खास कर उग्र शक्तियों की साधना आप बिना जानकार के करते हैं तो इसके भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं। बगलामुखी मंत्र के नुकसान प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है 

बगलामुखी मंत्र के नुकसान 
 यदि आप बिना गुरू के या बिना किसी तरीके के बगलामुखी की साधना करते हैं , तो सबसे पहली बात आप देवी को देख नहीं सकते हैं। और देख नहीं सकते हैं , तो फिर आपको पता ही नहीं चलता है , कि आपने देवी की साधना की है या फिर किसी और की साधना की है। तो आपको यदि देवी सिद्ध हो गई है , तो फिर आपको दिखना चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं होता है।

चुड़ैले इत्यादि सिद्ध हो सकती हैं
वैसे यदि आप सही तरह से बगलामुखी की साधना करते हैं ,तो कोई समस्या नहीं होगी । परंतु कई बार क्या होता है , कि जब आप मंत्र की उर्जा पैदा करते हैं , तो इसकी वजह से आस पास की जो नगेटिव उर्जा होती है , वह आपकी ओर आकर्षित हो जाती है। और उसकी वजह से चुड़ैलें इत्यादि सिद्ध हो जाती हैं। और यह आपकी पूरी व्यवस्था को बरबाद कर देती हैं। आप तो जानते ही हैं कि ये किसी का भला क्या कर सकती हैं।

और एक बार यदि आपके पीछे कोई ऐसी निम्न स्तरीय शक्ति लग जाती है , तो फिर उस से आपका पीछा छूटाना काफी अधिक क​ठिन हो जाता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । इसलिए सोच और समझ कर ही साधना करें ।

बगलामुखी साधना के नुकसान आप मनोविक्षिप्त अर्थात पागल हो सकते हैं यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं और कोई और शक्ति उसकी जगह पर आ जाती है। तो इसका असर आपके दिमाग पर सीधा पड़ता है। और यह शक्ति आपके दिमाग को घूमा देती है। और आपको पता नहीं चल पाता है कि आप के साथ क्या हो रहा है।

और एक बार आपके दिमाग के उपर असर हो जाता है तो आप पागल हो सकते हैं।बहुत समय पहले चंडीगढ़ से एक लड़के का केस आया था, जोकि इसी तरह की साधना कर रहा था । उसको देवी तो सिद्ध हुई नहीं लेकिन एक निम्नस्तरीय शक्ति सिद्ध हो गई और उसकी वजह से उसको काफी परेशानी हुई ।

बहुत अधिक गर्मी का महसूस होना और भ्रम का होना 
दोस्तों यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं , तो आपको बहुत अधिक गर्मी लग सकती है। और आपको अचानक से आपको ठंड लग सकती है। ऐसा एहसास हो सकता है , कि आप सारे कपड़े उतारकर फेंक दें । 

इसके अलावा आपको यह भी एहसास हो सकता है , कि आपके कमरे के अंदर कोई चल रहा है। इस तरह के अजीब अजीब अनुभव हो सकते हैं। और अधिकतर यह सब चीजें भूत प्रेत की वजह से हो सकता है। उस समय ये आपको पता नहीं चलेगा ।

हमेशा ये याद रखें देवी किसी का बुरा नहीं करती है। मगर देवी के नाम पर जब आप साधना के अंदर कमी करते हैं तो कुछ डाकिनी शाकिनी इत्यादि निम्नस्तरीय शक्तियां आ सकती हैं। और वह आपकी मंत्र उर्जा को चुरा लेंगी । और यह उस उर्जा का प्रयोग करने लग जाएंगी । ताकि यह खुद उस उर्जा की मदद से काफी ताकतवर हो जाएं ।

आपको यह पता भी नहीं चलेगा कि आपके साथ क्या हो सकता है? इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।

इसके अलावा यदि आप देवी बगलामुखी साधना करते हैं। और उसके अंदर गलती करते हैं , तो एक यह नुकसान भी हो सकता है , कि क्षुद्र शक्तियां आपकी उर्जा को चुरा लेंगी । इसके अलावा वे कई बार साधक की मौत का भी कारण बन सकती हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । इसलिए आपको जो कोई भी साधना करनी है , सब कुछ सोच समझकर ही करना होगा । नहीं तो नुकसान होने का खतरा काफी अधिक बढ़ जाता है।

असल मे इस तरह की साधना करने से क्षुद्र शक्तियां आपके पीछे लग जाएंगी । और वे आपको एहसास ही नहीं होने देंगी कि वे क्षुद्र शक्तियां हैं या फिर देवी हैं ? आपको लगेगा कि देवी है। लेकिन देवी कभी किसी के पीछे नहीं घूमती है। और इसी चक्कर मे आप अपने प्राण गवा सकते हैं। इसलिए कोई भी साधना सोच समझकर ही करें । इसलिए साधना करने से पहले आपको चीजों के बारे मे ठीक तरह से जान लेना चाहिए ।

 जब आप किसी देवी या देवता का मंत्र का जाप करते हैं , तो उसकी वजह से क्षुद्र शक्तियां female lower energy आपकी तरफ आकर्षित हो जाती हैं। और उसके बाद वे आपके साथ संबंध भी बना सकती हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि ऐसा होगा तो आपको पता चलेगा कि आप काफी अधिक कमजोर महसूस करेंगे । और आपको लगेगा कि आपके साथ रात मे कोई दुष्कर्म कर रहा था ।

और यह जो समस्याएं होती हैं वे अक्सर तब होती हैं , जब आप किसी बिना गुरू के साधना करने बैठ जाते हैं। तो इस बात को आपको अच्छी तरह से समझ लेना है। और आपको गुरू के बताए मार्ग पर चलकर ही साधना करनी होगी ।

 यदि आप बगलामुखी की साधना सही तरह से नहीं करते हैं तो इसका नुकसान होना तय होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि आप बिजनेस कर रहे हैं या फिर कोई काम कर रहे हैं , तो उस काम के अंदर आपको अचानक घाटा होना हो जाएगा । और आपको इसके बारे मे कुछ भी पता ही नहीं चल पाएगा । तो यह सब नुकसान इस साधना से हो सकते है।

दोस्तों यदि आप बगलामुखी की साधना करते हैं , तो इसका एक नुकसान यह भी होता है। इसकी इसकी वजह से आस पास की जो बुरी शक्तियां होती हैं , वे आपके उपर आक्रमण कर देती हैं। और वे आपको हमेशा परेशान करती रहती हैं। और जब आदमी काफी अधिक परेशान हो जाता है , तो फिर वह solution के लिए भागता है। आप इस बात को समझ सकते हैं , तो चीजों को सोच समझकर ही करें ।

दूसरी अन्य निम्न स्तरीय और शुद्र शक्तियों की साधनाओं में साधक को प्रत्यक्षीकरण नही होता बगलामुखी माता के मंत्र अनुष्ठान के बाद साधक के आस पास बहुत प्रचंड ऊर्जा का संचरण होता रहता है जिसके कारण अगर साधक कभी किसी अन्य भूत प्रेत जिन्न बेताल की साधना करता है तो उस में साधक को कभी  प्रत्यक्षीकरण नही हो पाता।

बगलामुखी साधना के बारे मे संक्षिप्त जानकारी।

​ सतयुग के अंदर एक बार समुद्र के अंदर काफी भीषण तूफान उठा तो फिर भगवान विष्णू ने तप करने की ठानी ।उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ था । 

इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।आपको बतादें कि बगलामुखी के वस्त्र और पूजन सामग्री पीले रंग की होती है , और इसके अंदर साधना के लिए हल्दी की माला का प्रयोग किया जाता है।

अब हम आपको यहां पर बताने वाले हैं कि बगलामुखी की साधना किस तरह से की जाती है । और इसके बारे मे विस्तार से बताएंगे ।

इसके लिए आपको पीले वस्त्र को धारण करना होगा । बाल भी नहीं कटवाना होगा । मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें। और दीपक की बाती को हल्दी के रंग से रंगकर सूखा लेना होगा । उसके बाद साधना के अंदर कौनसा मंत्र best होता है ।

 इसके बारे मे आप अपने गुरू से परामर्श करें ।

साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है।और इसको चांदी के पात्र या फिर तांबे के पात्र पर अंकित करवाया जाना चाहिए ।

 इसकी सही साधना के बारे मे अपने गुरू से परामर्श करें । और आपका गुरू आपको जो निर्देश देता है। आपको उसका पालन करना चाहिए । 

प्रभावशाली मंत्र मां बगलामुखी विनियोग मंत्र के बारे मे जानकारी

अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। 
श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। 
स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।

ॐ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

आवाहन
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

मंत्र
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।

आपको बतादें कि मां बगलामुखी के मंत्र का आपको ठीक तरह से जाप करना चाहिए । और यदि आप ठीक तरह से नहीं करते हैं , तो आपके लिए नुकसान हो सकता है। आप इस मंत्र को 5 लाख बार जाप करें । 

ऐसा करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा ।

बगलामुखी देवी की साधना के फायदे
इस लेख में हम आपको संक्षिप्त रूप में बगलामुखी देवी की साधना के फायदे के बारे मे बताने वाले हैं। यदि आप यह साधना करते हैं । तो इसके कई सारे फायदे आपको मिलते हैं। जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं बगलामुखी साधना के फायदे ।

बगलामुखी की साधना से जातक के जीवन मे समृद्धि आती है।
यदि आपके घर के अंदर धन की काफी अधिक कमी है , तो आप यह उपाय कर सकते हैं। 

लेकिन हमेशा याद रखें कि यदि आप गलत तरीके से साधना करते हैं । तो इसकी वजह से बड़ा नुकसान भी हो सकता है। 

आपकी मनोकामना पूर्ण होती है।

यदि आप बगलामुखी साधना को करते हैं जिसकी वजह से आपकी मनोकामना पूर्ण होती है। यदि आप अपने मन मे कोई इच्छा लिए बैठें हैं तो उसके पूरे होने के चांस काफी अधिक बढ़ जाते हैं। यह एक तरह से काफी अच्छी साधना है।

नौकरी और व्यापार से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं।

दोस्तों आपको बतादें कि यदि आप बगलामुखी देवी की साधना करते हैं , तो इसका एक बड़ा फायदा यह भी होता है । कि यह आपकी नौकरी और व्यापार से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं। यदि आपका नौकरी या फिर काम अच्छा नहीं चल रहा है , तो इस साधना से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी और आपका बिजनेस भी काफी तेजी से ग्रो होता है। कुल मिलाकर यह आपके काम के लिए काफी बेहतर साधना होती है। आप इस बात को समझ सकते हैं।

कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।   यहाँ मैं स्...