सोमवार, 10 जुलाई 2023

राम नाम



मनोकामना पूर्ण करने के लिए क्या करें ? 

इसके लिए हमारे धर्म शास्त्रों में बहुत सारे यन्त्र मंत्र तन्त्र और जप विधियां बताई गई हैं पर इन सब में सबसे सरल राम नाम लेखन बताया गया है। जिसे हर कोई आसानी से कर सकता है। तो आइये आज जानते है कैसे राम नाम जाप और राम नाम को लिखने की विधि।

महत्व तारक मन्त्र राम और श्री राम के नाम में एक महान शक्ति  है।  राम नाम की महिमा और शक्ति को जानने वाला आपको कोई नहीं मिलेगा,  यह मन को शांत और स्थिर करने वाला राम नाम का एक बहुत बढ़िया उपाय हैं। मन को शांति मिलेगी लग्न पूरी हो तो राम को भी पा सकोगे राम नाम का लेखन का कार्य एक महान यज्ञ समान हैं।

चमत्कार तथा लाभ - 

इस युग से आप राम नाम के लेखन को एक-एक आहुति समझ कर देखें राम नाम से राम को सदा हृदय में विराजमान भावना से लिखना चाहिए। 

राम नाम लिखने की विधि- 
राम नाम जाप की अनेक विधियां हैं उनमें से सबसे ज्यादा विधि राम नाम लेखन की सर्वोत्तम विधि है। 
राम नाम के लेखन से राम राम सुंदर सुंदर लिखे एक सफेद कागज पर लाल सही या लाल पैन से लिखिए। कागज पर लाइन नही होनी चाहिए वह एकदम पलेन होना चाहिए।  
लाल रगं  के पैन से लिखे कयोंकि लाल रंग प्रेम का प्रतिक है और प्रभु नारायण का लाल रंग से गहरा नाता है। सबसे पहले राम को प्रणाम करके धूप दीप जलाकर प्रणाम करें। 
यह भी पढ़े- मनोकामना पूरी करने के लिए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
राम नाम लेखन में जाप की अपेक्षा 100 गुना अधिक पुण्य फल मिलता है। ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा गया है। राम लेखन स्वयं जाप है। राम नाम लेखन मौन के साथ लिखना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। 
प्रतिदिन एक पृष्ठ कम से कम या इससे अधिक लेख लिखें। 
राम नाम का लेखन कभी भी कहीं पर भी जितना भी लिख सकते हो। इसके लिखने की कोई नियम यह समय नहीं है ,लेकिन शुद्धता का ध्यान जरूर रखना है।  

राम लेखन लिखते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि यह नियम 90 दिन तक इसका क्रम टूटने ना पाए तभी आपकी मनोकामना पूरी होती है। जब भी लिखना शुरू करें एक भी दिन बीच में ना छूटे पूरे लगातार 90 दिन तक लिखने से ही इंसान की हर मनोकामना पूरी होती है ।

जिस मनोकामना आप लिखते समय मन में धारण किया हुआ है वह हर हाल में पुरी होती है। इसमें किसी भी प्रकार का शक नहीं है। यह मेरा खुद का निजी अनुभव है।

अगर आप गलती से लिखना  भूल जाते हो तो उसे आप  सोने से पहले किसी भी टाइम जब आपको  याद आ जाए तब भी आप इसको लिखना शुरु कर सकते हो। 

राम लेखन के लाभ -
84 लाख योनिया भोगने के बाद राम नाम जाप लिखने वालों को इस संसार चक्र से जीवन मरण से मुक्ति मिल जाती हैं। पापों का नाश हो जाता है क्योंकि मनुष्य जन्म 84 लाख योनियों भोगकर प्राप्त होता है। राम नाम लेखन निष्काम या सकाम दोनों तरह से किया जा सकता है। 

राम नाम का लेखन  प्रत्येक दिन जरूर करें एवं दूसरों को भी लिखने के लिए प्रेरणा अवश्य प्रदान करें। ऐसा मनुष्य श्री भगवान को बहुत प्रिय होता है। राम नाम लिखने का कार्य यदि नियम पूर्वक शुद्ध हृदय से आपका शुरू करेंगे तो शुरू करने से कुछ ही दिनों में आप इसके आश्चर्यजनक परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे । 

आपके मन को शांति मिलेगी आत्मबल बढ़ेगा आप के कष्ट कटने शुरू हो जाएंगे। इसका पूर्ण  लाभ लेने के लिए 90 दिन तक लगातार  हर रोज लिखे।  ऐसा करने से आपकी मनोकामना जल्दी पुरी होती है। 

श्री गणेश जी नारद जी के सुझाव के अनुसार पृथ्वी पर राम का नाम लिखकर उस राम के नाम की सिर्फ तीन बार परिक्रमा करके विजय प्राप्त कर ली और सारे संसार और देवताओं को सबसे पहले पूजा स्थान प्राप्त कर लिया था।

 इस राम नाम में एक अद्भुत और बहुत बड़ी शक्ति है। अपने सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए धन, सुख शांति , और  नित्य वृद्धि  के लिए राम नाम लिखना शुरु करके देखो। आपके कष्ट अवश्य कट जाएंगे 

बस ध्यान रहे राम नाम लिखते समय कापी  बिना लाईन के हो और पेज  एक ही तरफ लिखना है, दूसरी तरफ नहीं लिखना होता। और लाल रंग से लिखना है।
राम नाम एक महान पारस मणि है।
 
राम नाम एक अद्भुत शक्ति है। राम को मंत्र जपने से थोड़े ही समय में सुख ,आनंद, सर्व सिद्धि और प्रभु नारायण राम के दर्शन भी हो सकते हैं। राम के नाम से सारी इच्छाएं कामनाये  पूरी हो सकती हैं। प्रभु नारायण के किसी भी एक नाम भजो, तपो यह  सभी महान शक्तियां  हैं। भगवान बुद्ध ने भगवान की भक्ति और ध्यान लगाकर ही भगवान से दिव्य शक्ति और मुक्ति प्राप्त की और इस संसार में अमर हो गए। भगवान  ईसा ने भी  प्रार्थना के द्वारा दिव्य शक्ति,  मुक्ति प्राप्त की और वह भी अमर हो गए।

राम नाम लेखन के अनुभव -
 महात्मा गांधी जी राम नाम के बहुत बड़े भक्त थे इसी नाम से उन्होंने सारे कार्य सिद्धि प्राप्त की और वह अमर हो गए।
 भगवान की प्रार्थना ध्यान जब भगवान को प्राप्त करने से अनेक रास्ते हैं जो भी रास्ता आपको अच्छा लगे उसी रास्ते  पर जा सकते हो।  
 
जिस पर भगवत कृपा होती है उन्ही को कथा सुंनने  का और संत पुरुषों का सानिध्य प्राप्त होने का सौभाग्य प्राप्त होता है। भगवान की कथा सुनने से प्रेम का भाव होता है और यह ज्ञान होता है।

कण-कण में भगवान व्याप्त हैं और मानव  मे एक्य भावना का उदय होता है । जो व्यक्ति सबके हित के लिए सोचते हैं और उसके कार्य मानव मात्र की भलाई के लिए होते हैं। उसे कभी दुख नहीं होता जिसके हाथ में पारस मणी आ गई हो ।वह कभी निर्धन नही हो सकता।

 भगवान का नाम पारस मणि के समान है। कबीर जी कहते हैं राम नाम एक ऐसी चीज है जिसे पाने के बाद और कुछ  पाना बाकी नहीं रह सकता। जिसे जानने के बाद कुछ और जानना बाकी नहीं रहता है। जहां पहुंचना के बाद  मां के गर्भ में नहीं आना पड़ता । यह ऐसा दिव्य भगवान का नाम है।  राम का नाम दीन दुखियों का दुख मिटा सकता है, रोगियों को रोग मिटा सकता है, पापियों का पाप हर सकता है, भक्तों से भक्त बना सकता है, मुर्दे में प्राण का संचार कर सकता है ,अर्थात भगवान असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
संसार में जो वस्तु अपने को सबसे प्रिय हो उस वस्तु पर सर्वाधिक स्नेह  हो वह प्रभु को समर्पित कर दें। ऐसा करने वाले के लिए है अनंत फल देने वाली हो जाती है।

इस कलयुग में सिर्फ मनुष्य श्री राम के नाम जाप समरण से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। अन्य कोई साधन उपलब्ध करने की जरूरत नहीं है। भगवान श्री राम  कहते जो मनुष्य अपना मस्तक मेरे चरणों में रखकर और अपने दोनों हाथों से दाएं से दाहिने और बाएं से  बाएं चरण पकड़ कर कहे हे भगवान इस संसार सागर में डूब रहा हूं मृत्यु रूप ग्रह  मेरा पीछा कर रहे हैं।  मैं बहुत ही भयभीत हूँ।   हे प्रभू आप की शरण में पड़ा हूं ,आप मेरी रक्षा करो। ऐसे कहने वाले जीव आत्मा को मैं हमेशा  के लिए आप अभय कर देता हूं।

राम  नाम लिखते लिखते आदमी राम को ही लिख लेता है,  जान लेता है,पहचान लेता है, राम नाम लिखने से कर्म भी होता है और ञकर्म शुद्धि भी होती हैं  और इसमें मन भी लगता है, और मन की शुद्धि भी होती है। राम नाम लेखन में यह विशेषता है कि अपनी पूरी चेतना लिखते समय उसमें में रहती है। क्रिया भी वही, विचार भी वही, भावना भी हुई, और इस प्रकार क्रिया शक्ति विचार शक्ति एवं ये तीनों  शक्तियां सर्वात्मन इसमें लगती है । जप के  समय ध्यान इधर-उधर हो सकता है, पर लेखन के समय पूरा ध्यान उन्ही  में लग जाता है।  

यह पूर्ण मनोयोग से इसमें लग सकते हैं। राम नाम के सभी विधानों का बड़ा महत्व है। लेकिन विधान विशेष इसलिए होता है जब लिखेंगे तो स्वभाविक ही आंख ,मन और हाथ में तीनों एकाकार करने होंगे। अतः मन इंद्रिय दोनों का सहयोग होता है । मानसिक एकाग्रता और शांति के लिए लिखित मंत्र जप बहुत प्रभावशाली होता है। किसी साफ , हवादार, एकांत जगह पर बैठकर धैर्य और गंभीरता पूर्वक अवश्य लिखें तो तभी बहुत लाभ होगा। मानसिक एवं शारीरिक रूप से शांति मिलती है। यह एक अनुभव किया हुआ प्रयोग है। धरती पर जितने भी महान संत हुए हैं उन सब ने राम नाम को  जप , तप और लिखा है ।ऐसा हमारे शास्त्रों में धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है।

अगर आप की भी कोई मनोकामना अधुरी हो तो  राम लेखन लिखना शुरू करें।  राम लेखन को तन मन धन से समर्पित होकर लिखें। लिखते  समय किसी भी प्रकार की शंका  मन में ना लाएं तभी यह राम नाम आपका बेड़ा पार लगा सकता है। 

सोमवार, 5 जून 2023

वशीकरण की काट।

                 वशीकरण को काटना।

वशीकरण एक ऐसी क्रिया होती है जिससे प्रभावित व्यक्ति अपनी स्थिर मानसिकता खो देता है अर्थात मानसिक स्वतंत्रता खो देता है और हमेशा वशीकरण प्रयोग करता के विषय में ही सोचता रहता है उसी के ख्यालों में खोया रहता है।

चाह कर भी प्रयोग करता के विषय में सोचना बंद नही कर पाता हालात ये हो जाते हैं कि वशीकरण की शक्ति धीरे धीरे पीड़ित व्यक्ति में उच्चाटन के हालात पैदा कर देती है और वशीकरण से पीड़ित व्यक्ति अपने कर्तव्य अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को भूलकर नीच कार्य करने पर मजबूर हो जाता है।

तथा व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा भंग हो जाती है बहुत बार ये शक्ति किसी शारीरिक रोग जैसे सिर दर्द आंखों के आसपास काले घेरे पड़ जाना ,कलेजे में दर्द अथवा बहुत सारे विकृत मनोरोगों जैसे लक्षण पैदा कर देती है यदि समय रहते इसे ना काटा जाए तो ये पीड़ित व्यक्ति जीवन के लिए प्राणघाती साबित होती है।

यदि आपके किसी अपने पर यंत्र मंत्र तंत्र द्वारा किसी ने कोई वशीकरण डाल दिया है और वशीभूत कर लिया है एवं उसके द्वारा कोई अनैतिक संबंध अथवा अनैतिक रिश्ता बनाने की कोशिश करने लगे और आपका कोई अपना वशीकरण के प्रभाव में आकर गलत मार्ग पर चले तो क्योंकि सामाजिक प्रतिष्ठा एक बहुत बड़ी बात है इस लिए उस वशीकरण को काट देना उत्तम कार्य है। 

वैसे तो ऐसी परिस्थिति में आदमी पीछे हट जाता है किंतु कई बार हालात ऐसे होते है कि पीछे भी नही हटा जा सकता। मान लो आपकी अपनी ही संतान की के बहकावे में आकर गलत संगत में पड़ जाए और आपके घर के हालात खराब हो जाएं तो इस अवस्था में आपके पास क्या विकल्प बचेगा बस यही कि वशिकरण को काट दिया जाए।

अगर आप किसी भी तांत्रिक इत्यादि के पास जाते हैं तो ये काम हो ना हो इसकी शंका रह जाती है और धन का जो अपव्यय हो वो अलग आज मैं आपको एक ऐसी युक्ति बताने जा रहा हूँ जिससे वशीकरण का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

इस प्रयोग की सफलता दर 99.9% है लेकिन 0.1% हालात समय एवम परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर ये प्रयोग कभी खाली नही जाता अगर लगातार इस के द्वारा बनाया हुआ( तैयार किया हुआ अभिमंत्रित) जल उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार साबुन से मैल उतरती है।

इसकी विधि आसान है (कोई रॉकेट साइंस जैसे जटिल नहीं) लेकिन जब आप इस उपाय को करें तो गुप्त रूप से ही करें। गोपनीयता सफलता की सूत्र है ये हमेशा याद रखें।

प्रयोग में प्रयुक्त सामग्री :-एक लकड़ी के दस्ते वाला चाकू,उसे तपाने के लिए आग, और पानी का एक पात्र तांकि गर्म और सुर्ख चाकू को पानी में बुझाया जा सके।

विधि :- एक लकड़ी के दस्ते वाले चाकू को आग में तपाकर सुर्ख कर लें और जब चाकू सुर्ख हो जाये तो 
निम्नलिखित मन्त्र (जोकि पहले से ही याद कर लिया जाना चाहिए) पढ़ते हुए पानी में भुझा लें इसी प्रकार 108 बार भुझावें।

फिर जो पानी तैयार हो जाये उसका प्रयोग वशीकरण के प्रभाव से पीड़ित को पिलाने में करें ये पानी पीड़ित को 21 दिन लगातार पिलावें 101% वशीकरण का प्रभाव जाता रहेगा।

ये मन्त्र सिद्ध है इसलिए इसे याद करने की ही आवश्यकता है हां अगर आप चाहें तो इसे ग्रहण,पर्व अथवा अमावस्या पूर्णिमा पर 108 बार पढ़कर और शक्तिशाली कर सकते हैं। ये प्रयोग मेरे द्वारा सफलता पूर्वक लगभग 50 से 55  लोगों पर किया जा चुका जिसके परिणाम हमेशा ही सकारात्मक मिले।

मन मोहे मनमोहिनी      गढ़ फोड़े हनुमान।
माया तोड़े नार सिंह नाहरी का वीर जवान।

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शनिवार, 3 जून 2023

तांत्रिक क्रिया की काट और उसको पलटना

      तांत्रिक क्रिया की काट और उसको पलटना

जब कभी किसी समय ऐसा हो जाए कि आपकी साधनाओं द्वारा प्राप्त शक्तियां और मन्त्र काम करना बंद कर दें आउर नज़र भी बंद हो जाए विद्या ना चले कोई काम ना चले हर एक काम में असफलता हाथ लगे और बार बार प्रयास करने के बाद भी आप असफल रहें एव कोई मार्ग आपके सामने ना बचे तो एक असाधारण मंत्र और उनका उसका अनुष्ठान में आपको बता रहा हूं।

यह प्रयोग आजमाया हुआ है और हर बार सफलता मिली जब इस क्रिया को लगातार किया गया और निष्ठापूर्वक किया गया। तो इसके द्वारा निराश नही हुए।
यहाँ मैं आपको मन्त्र और इसका प्रयोग तो बता दे रहा हूँ 

लेकिन एक बात याद रखना कि साधक का आत्म विश्वास ही सभ कुछ होता है वही साधक को सफलता प्राप्त करवाता है यहां मैं आपको ये प्रयोग बताने के कोई रुपये पैसे आप से नही ले रहा हूँ फिर जिस के मन मे विश्वास हो वो इसे इस्तेमाल कर के देख सकता है। बराबर काम करेगा।

इस प्रयोग को आप रविवार से मंगलवार तक करें। और प्रयोग को सर्वथा गुप्त ही रखें। 

जब आप इसे सभी को बता कर करेंगे तो हो सकता है कि जिसने आपका बंधन किया है वो इसी दौरान आपका अमंगल भी करने से ना चूके।

(कॉपी पेस्ट वाले भाई सावधान चोरी चण्डली की विद्या आपको फलीभूत नही होगी।)

इस बात को किसी भी शुभ समय पर 108 बार जप करके होम करने और जब-जब अमावस पूर्णिमा या कोई भी त्यौहार अथवा कोई ग्रहण आए तो दोबारा 108 बार जप करने कर ले एवं भगवान शिव की आराधना भक्ति में ही तत्पर रहें  (ॐ नमः शिवाय) का लगातार जाप करते रहें आपकी अध्यात्मिकता पराकाष्ठा पर रहेगी।प्रति सोमवार और त्रयोदशी को भगवान शिव के मंदिर में जाने का नियम बना लें। इससे अवश्य ही आपको लगातार परामनोवैज्ञानिक अनुभूतियाँ होंगी।

मन्त्र:-
ॐ गुरु जी को आदेश ।
घोरी घोरी महाघोरी।।
घोरी तूं  महाकाल ।
ढाई घड़ी में खेल पलट दे,
देखूं तेरा कमाल।।

इस प्रयोग को 3 दिन लगातार किया जाता है सफलता अवश्य मिलेगी। इस प्रयोग की सफलता के लिए प्रयोग को सर्वप्रथम सबसे गुप्त रखा जाता है। सवा किलो नींबू लेकर अपने सिर से उल्टा सात बार उतार लें ।

अगर आपके घर या गद्दी पर भी बंधन है या किसी कारोबार पर भी बंधन है तो उसके चारों कोनों में एक एक नींबू रखें और उन्हें काटकर माता काली को समर्पित करें उस पर थोड़ा-थोड़ा रखकर कपूर जलाएं इसके उपरांत चुपचाप सभी नींबू को इकट्ठा कर ले।

इसी मंत्र का जाप करते हुए जो नींबू सवा किलो आपने आपमे सिर से उतारे थे उन्हें भी दो हिस्सों में प्रत्येक नींबू को काट लें इसके उपरांत उक्त मंत्र का एक माला जाप करें अपने इष्ट देव और पित्र से बंधन मुक्ति हेतु प्रार्थना करें प्रार्थना करें।

चुपचाप यह नींबू ले ले और किसी पुराने मदार के पेड़ की जड़ में इन्हें रख दें वहां पर एक सरसों के तेल का 4 मुंह वाला दिया जलाएं तथा चुपचाप इस प्रयोग को करने के उपरांत वापस आ जाएं ।

वापिस घर में प्रवेश करने से पहले आपमे हाथ पावँ अच्छी तरह से धो लें फिर ही घर में प्रवेश करें तथा वापिस घर में लौट कर फिर से एक माला जाप करें।

(ये प्रयोग पीड़ितों की समस्या निवारण के लिए है।)
तीन दिनों में आपके ऊपर पड़े हुए सभी बंधन और सभी तांत्रिक क्रियाओं की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।

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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

श्री बगलामुखी मन्त्र प्रयोग।

बगलामुखी मन्त्र प्रयोग।
माता की आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रुस्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण, व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।

क्योंकि देखा जाता है कि लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि दूसरों की सफलता से अधिक दुखी हैं। ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए माताओं में माता बगलामुखी मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। आज इन्हीं माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। अशुभ समय का निवारण कर नई चेतना और शुभ समय का संर करती हैं। ऐसी माता के बारे में मैं अपनी अल्प बुद्धि से आपकी प्रसन्नता के लिए इनकी सेवा आराधना पर कुछ कहने का साहस कर रहा हूं। 

मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं माता बगलामुखी की जो बातें आपसे कह रहा हूं अगर आप उसका तनिक भी अनुसरण करते हैं तो माता आप पर कृपा जरूर करेंगी, लेकिन पाठक भाइयों ध्यान रहे। इनकी साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और विश्वास असीम हो तभी मां की शुभ दृष्टि आप पर पड़ेगी।

इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्ट पहुंच सकता है। 

जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी, लेकिन ध्यान रहे इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।

गृहस्थों  के लिये माता की आराधना का सरल उपाय बता रहा हूं। आप इसे करके शीघ्र फल प्राप्त कर सकते हैं। माता  का अनुष्ठान (साधना) आरम्भ करने बैठे तो सर्वप्रथम शुभ मुर्हूत, शुभ दिन, शुभ तथा एकांत स्थान, स्वच्छ वस्त्र पहनकर आम की लकड़ी से निर्मित जिस पर पीला रंग किया जा सकता है उसपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर माता की की प्रतिमा चित्र अथवा यन्त्र स्थापित करें नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शांत चित्त, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। 

अगर आप अति निर्धन हो तो केवल पीले पुष्प, पीले वस्त्र, हल्दी की 108 दाने की माला और दीप जलाकर माता की प्रतिमा, यंत्र आदि रखकर शुद्ध आसन कम्बल, कुशा या मृगचर्य जो भी हो उस पर बैठकर माता की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

माता बगलामुखी की आराधना के लिये जब सामग्री आदि इकट्ठा करके शुद्ध आसन पर बैठें (उत्तर मुख) तो दो बातों का ध्यान रखें, पहला तो यह कि सिद्धासन या पद्मासन हो, जप करते समय विशेष बात का ध्यान रखें कि पैर के तलुओं और गुह्य स्थानों को न छुएं शरीर गला तथा आपके सिर सम स्थित होना चाहिए। जाप करते समय माला को गोमुखी में रखकर ही जाप करें अथवा गोमुखी के अभाव में आप पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग माला ढांकने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

इसके पश्चात गंगाजल से छिड़काव कर (स्वयं पर) यह मंत्र पढें :- अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपिवा, य: स्मरेत, पुण्डरी काक्षं स बाह्य अभ्यांतर: शुचि:। 

उसके बाद इस मंत्र से दाहिने हाथ से आचमन करें :-ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:। अन्त में ऊं हृषीकेशाय नम: कहके हाथ धो लेना चाहिये।

इसके बाद गायत्री मंत्र पढ़ते हुए तीन बार प्राणायाम करें। चोटी बांधे और तिलक लगायें। 

अब पूजा दीप प्रज्जवलित करें। फिर विघ्नविनाशक गणपति का ध्यान करें। 

मंत्र शुद्ध पढऩा चाहिये। मंत्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा। इसीलिए उच्चारण पर विशेष ध्यान रखें। 

अब आप गणेश जी के बाद सभी देवी-देवादि कुल, वास्तु, नवग्रह और ईष्ट देवी-देवतादि को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए कष्ट का निवारण कर शत्रुओं का संहार करने वाली बगलामुखी का विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें-

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि: त्रिष्टुप्छन्द: बगलामुखी देवता, ह्लींबीजम् स्वाहा शक्ति: ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: 

(जल नीचे गिरा दें)। 

फिर माता का ध्यान करें, 
याद रहे सारी पूजा में हल्दी और पीला पुष्प अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

ध्यान-
मध्ये सुधाब्धिमणि मण्डप रत्न वेद्यां,
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं,
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥

अपने हाथ में पीले पुष्प लेकर उपरोक्त ध्यान का शुद्ध उच्चारण करते हुए माता का ध्यान करें। उसके बाद यह मंत्र जाप करें। साधक ध्यान दें, अगर पूजा मैं विस्तार से कहूंगा तो आप भ्रमित हो सकते हैं। परंतु श्रद्धा-विश्वास से इतना ही करेंगे जितना कहा जा रहा है तो भी उतना ही लाभ मिलेगा। जैसे विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने से जो फल मिलता है वही ऊं नमोऽभगवते वासुदेवाय से, यहां मैं इसलिये इसका जिक्र कर रहा हूं ताकि आपके मन में कोई संशय न रहे। राम कहना भी उतना ही फल देगा। अत: थोड़े मंत्रो के दिये जाने से कोई संशय न करें। अब जिसका आपको इंतजार था उन माता बगलामुखी के मंत्र को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। 

मंत्र है :- ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा। 

इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माता से करें। आप चाहें तो इसी मंत्र से माता की पंचौपचार या  षोड्शोपचार विधि से पूजा भी कर सकते हैं। 

इस अनुष्ठान के दौरान आपको कम से कम पांच बातें पूजा में अवश्य ध्यान रखनी है-

1. ब्रह्मचर्य, 
2. शुद्घ और स्वच्छ आसन 
3. गणेश नमस्कार और घी का दीपक 
4. ध्यान और शुद्ध मंत्र का उच्चारण 
5. पीले वस्त्र पहनना,हल्दी की माला से जाप करना। 

आप कहेंगे मैं बार-बार यही सावधानी बता रहा हूं। तो मैं कहूंगा इससे गलती करोगे तो माता शायद ही क्षमा करें। इसलिये जो आपके वश में है, उसमें आप फेल न हों। बाकी का काम मां पर छोड़ दें। इतनी सी बातें आपकी कामयाबी के लिये काफी हैं।

अधिकारियों को वश में करने अथवा शत्रुओं द्वारा अपने पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए यह अनुष्ठान पर्याप्त है। 

इस प्रकार आपको इस मंत्र का एक लाख पच्चीस हज़ार जाप करना है और उसका दसवां हिसा हवन हवन का दसवां तर्पण तर्पण का दशांश मार्जन ब्राह्मण भोजन करवाकर इस अनुष्ठान को संपन्न करना चाहिए।

पुरश्चरण के उपरांत निम्न प्रयोग इच्छा की पूर्ति के लिए किअए जा सकते हैं।

अगर इस को भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर सवा लाख जाप फिर दशांश हवन करें तो सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। 

तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती हैै और दरिद्रता दूर भागती है। 

गूगल और तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। अगर वशीकरण करना हो तो उत्तर की ओर मुख करके और धन प्राप्ति के लिए पश्चिम की ओर मुख करके हवन करना चाहिए। अनुभूत प्रयोग कुछ इस प्रकार है। 

मधु, शहद, चीनी, दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने से समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। 

गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रु तबाह हो जाते हैं। 

मधु घी, शक्कर और नमक से हवन आकर्षण (वशीकरण) के लिए प्रयोग कर सकते हैं। 

अत: आप स्वयं के कल्याण के लिए माता की आराधना कर लाभ उठा सकते हैं। 

यहां संक्षिप्त विधि इसलिये दी गई है कि सामान्य प्राणी भी माता की आराधना कर लाभान्वित हो सकें। 

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

पीर मैदानी का मन्त्र।

                पीर मैदानी का मन्त्र।
जब कहीं माता मैदानन का जिक्र आता है तो पीर मैदानी के विषय में भी बात होती है कहीं न कहीं आपने पीर मैदानी के विषय में अवश्य सुना होगा सिर्फ कुछ एक जानकारों को ही पीर मैदानी के विषय में विस्तृत जानकारी है।
जब भी इनका का जिक्र आता है तो अधिकतर साधक इस कश्मकश में पड़ जाते है कि पीर मैदानी हैं कौन यही सवाल उनके दिमाग में चलता रहता है। क्षेत्र और मत के अनुसार ये अलग अलग है कुछ एक सबल सिंह बावरी को पीर मैदानी मानते है और कुछ एक अस्तबली पीर को मैदानी पीर मान कर चलते हैं।

मेरी जानकारी और मत के अनुसार मैदानी पीर बाबा शेख  फरीद है और इनके कलाम और क्रिया से के प्रयोग से माता मैदानन और मसानी शांत हो जातीं है।

जिस घर परिवार में माता मैदानन और मसानी का बहुत ज्यादा तीव्र प्रकोप हो तो पाँच मंगलवार लगातार बाबा शेख़ फ़रीद के नाम का ख़त्म फ़ातिहा जर्द पुलाव पर किसी जानकार या मौलवी से दिलवाएं तो उक्त प्रकोप बिलकुल शांत हो जाता है तथा घर में चिर स्थायी शांति का वातावरण निर्मित हो जाता है।

यह बात हमेशा ध्यान देने वाली होती है कि एक तो आपके अंदर इच्छा शक्ति होनी चाहिए इन समस्याओं से निकलने की और दूसरी बात ये है कि किसी हालात को बदलने से पहले अपने आपको और अपनी आदतों को बदलना चाहिए। जो अपने आप पर काबू कर सकता है वो सभी पर काबू कर सकता है और जो शख्स अपने आप को बदल सकता है वो पूरी दुनियां को बदल सकता है क्योंकि दुसरो को बदलने की शुरुआत खुद से करनी पड़ती है।

लेकिन विडंबना देखिए आज के इस समय में यह गुप्त विद्या लुप्त होने की कगार पर आ गई है ऐसी विद्या जो थोड़े से प्रयास में ही साधक को सफल बना देती है।

यहां मैं आपको मैदानी पीर के विषय में बताने जा रहा हूँ ये बहुत जबरदस्त शक्ति है और इसकी साधना कभी भी असफल नही जाती विधि भी बहुत आसान है दूसरी साधनाओं में भी इस साधना को करने से मदद मिलती है और माता मैदानन के बेड़े की जितनी शक्तियां है इस मंत्र द्वारा कंट्रोल हो जाती है बाकी सभी साधको का अपना अपना ज्ञान और काम करने का तरीका होता है

इस मंत्र को याद करने के बाद आप होली दीपावली ग्रहण या किसी अन्य पर्व पर 1008 बार जाप करके अनुकूल कर सकते हैं।

अगर बिना किसी पर्व या ग्रहण के समान्य दिनों में सिद्ध करना हो तो प्रति दिन घर के की शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्वाभिमुख होकर सुख आसन में बैठें तथा शांत चित्त होकर अपना सुरक्षा मन्त्र पढ़कर अपनी सुरक्षा करें फिर 108 बार प्रतिदिन जाप करें।

माला कोई भी ले सकते हैं वस्त्र और आसन कोई भी चलेगा अपने सामने दिया सरसों के तेल का चलायें  अगरबत्ती जलाएं भोग अपने सामने धरे फूल गुलाब,बतासा,सेंट,एक जोड़ा सिगरेट,लड्डू या कोई भी अन्य मिठाई रख सकते हैं अगर हो सके तो कोयले की आग पर लोहबान सुलगायें बहुत बार बाबा जी ख्वाब में पहले ही दिन दर्शन दे देते है और कई बार कुछ दिन लगते है लेकिन आप धैर्य से साधना सम्पन्न करें कोई दिक्कत वाली बात नही है आपको सफलता अवश्य मिलेगी इस साधना को अगर सही तरिके से किया जाए तो 41 से 42 दिन लगते ही है और अगर कुछ इसे 21 या 11 दिन भी करते है लेकिन उसमें इस मंत्र के सिद्ध होने में संदेह रहता है 

मैदानी पीर का मंत्र निम्न है।

बिस्मिल्लाह रहमान रहीम
पंज़पीर रोजे बरसे नूर    
पाक जलाली 
पीर मदानी 
गंजे शक्कर 
फरीदुद्दीन  
डंका चले मैदान में 
माई मैदानन नाल
जोड़े हत्थ नवावे शीश
पीर मैदानी 
हाथी चढ़ आओ
घोड़ा चढ़ आओ 
नज़र घुमावे 
डोली चलावे 
नज़री  देंदा  रोक
फकीरों की मौज 
मैदान में फौज 
सवा लख सैय्यद 
मदद नुं खड़े
चमकी तेरी शमशीर मैदान में 
मदद को गौंस पाक पीर दस्तगीर।

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बुधवार, 30 नवंबर 2022

कार्य बाधा नाशक टोटका


जीवन में कई बार इस तरह की बाधाओं मनुष्य का पाला पड़ता है जब मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है आप इस टोटके का प्रयोग करें आपको अवश्य लाभ प्राप्त होगा और इसको करने के बाद आपकी समस्या तुरंत गायब हो जाएगी और आपको आराम महसूस होगा।

बुरे समय में संकटों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए ये टोटका बहुत महत्वपूर्ण एवं विशेष शक्तिशाली टोटका है इसे सैंकड़ो बार अलग अलग लोगों को करवाया गया है और बिल्कुल सही साबित हुआ है इस प्रयोग को अगर सही तरह से किया जाय तो 24 घंटे में ही काम हो जाता है।

इस टोटके में प्रयोग होने वाली सामग्री इस प्रकार है :-
7 अरबी या अरिंड के पत्ते।
7 गुड़+आटे+सरसो के तेल के पूड़े। 
थोड़े से पके हुए मीठे चावल।,
7 मदार (आक) के फूल।,
7 गेंदे के फूल।,
7 लाल सबूत मिर्ची डंडी समेत।,
7 लाल चूड़ियां।,
1 रिबन काला।,
1 चार मुँह वाला आटे का दिया सरसों के तेल का।,
11 अगरबत्तियां।
1 कलावा।,
7 लौंग।,
7 ईलायची छोटी।,
7 सुपारियां।
7 पीस मिक्स मिठाई।,
7 कच्चे कोयले के टुकड़े।,
1 काजल की डिब्बी।,
5 ₹ का पीला सिन्दूर।,
1 मुट्ठी सबूत उरद ।

स्थान :-खाली मैदान में कच्चे चावलों का चौंक बना कर या किसी चौराहे पर पूर्वाभिमुख होकर करना है।

समय:-शाम को 7 बजे से रात्रि 11:45 तक करना है।

वार रवि मंगल अथवा शनिवार

सभी सामान को चुपचाप इकट्ठा करना है चुपचाप ही प्रयोग करना है ज्यादा हल्ला गुल्ला नहीं मचाना और ना ही किसी से फालतू कोई बात करनी है चुपचाप जाना है चुपचाप आना है।

((यह सब ले करके चुपचाप चौक पर जाना है और वहां जाकर सभी सामान पत्ते के ऊपर सजा देना है मध्य में दीपक जलाना और अगरबत्तियां लगाना है और सिन्दूर से पूड़ों पर 7 टिक्के लगाना है पूर्वाभिमुख होकर के आपको बोलना है

 "हे मेरे दुर्भाग्य मैं तुम्हें यही छोड़ा जा रहा हूं मेरा पीछा मत करना"

इतना बोल कर के आपको वहां से चल देना है और कितनी भी कोई आवाज आए या ना आए आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना हाथ पाँव धोकर के घर में आ जाना।


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शिव के मंत्र की विस्तृत जानकारी और साधना।

                महेश्वर का पंचाक्षर मंत्र 

(व्याधिमुक्त, दीर्घायु, बाधित धन अभीष्टों की प्राप्ति हेतु)

मंत्र: ॐ नमः शिवाय।

देवाधिदेव महादेव शिवशंकर का पूजन करना चाहिए। 

उपरांकित मंत्र का 24 लाख जप पूरे हो जाने पर भगवान शंकर समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं अतः सर्वविधि षोडशोपचार से मनोयोग, श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था के साथ करने के उपरान्त 24 हजार मंत्रों द्वारा हवन सम्पन्न करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। 

एक बार मंत्र सिद्ध हो जाए, तो सभी अभीष्टों की संसिद्धि अत्यन्त सुगमता से हो जाती है।

इस मंत्र की सिद्धि के विषय में किये जाने वाले पुरश्चरण की व्याख्या करते हुए विशेष निर्देश दिए गए हैं जो अग्रांकित हैं जिसके लिए मंत्र महेश्वर तंत्र का विस्तृत अध्ययन तथा अनुसरण आवश्यक है। यहाँ हम मंत्र महेश्वर की कतिपय चमत्कारी साधनाओं का उल्लेख करना भी उपयुक्त समझते हैं।

अथ वक्ष्ये महेशस्य मंत्रान् सर्वसमृद्धिदान् यैः पूर्वमृषयः प्राप्ताः शिवसायुज्यमञ्जसा ।।1।।

इसके उपरान्त बाद सम्पूर्ण सिद्धियों के देने वाले महेश्वर के मंत्र को कहता हूँ, जिसका अनुष्ठान करके पूर्वकाल में अनेक महर्षियों ने अनायास ही शिव सायुज्य प्राप्त किया। शिवमंत्रः । ऋष्यादिकथनम्

हृदयं वपरं साक्षि लान्तोऽनन्तान्वितो मरुत् । पञ्चाक्षरो मनुः प्रोक्तस्ताराद्योऽयं षडक्षरः ।। 2 ।।

हृदय (नमः), वपर (श), साक्षि (उसे इकार से संयुक्त करें), लान्त (व) अनन्त (उसे आकार से संयुक्त करें), तदनन्तर मरुत् (य)। इस प्रकार 'नमः शिवाय' यह पञ्चाक्षर शिव का मंत्र निष्पन्न हुआ। यदि इस के आदि में प्रणव (ॐ) का योग कर दें तो 'ॐ नमः शिवाय' यह षडक्षर शिव मंत्र निष्पन्न हुआ है।

षडङ्गन्यासः

वामदेवो मुनिश्छन्दः पंक्तिरीशोऽस्य देवता । षड्भिर्वर्णैः षडङ्गानि कुर्यान्मन्त्रस्य देशिकः ।।3।।

इस महामंत्र के वामदेव ऋषि हैं, पंक्ति छन्द है और ईश्वर देवता हैं। साधक इस मंत्र के छः अक्षरों से षडङ्गन्यास करें।

पशमूर्तिन्यासः मन्त्रवर्णादिका न्यस्येत् पञ्चमूर्त्तीर्यथाक्रमम् तर्जनीमध्ययोरन्त्यानामिकांगुष्ठ के पुनः ।।4।।

पुनः इस मंत्र के आदि वर्णों के क्रम से क्रमानुसार पञ्चमूर्तियों द्वारा हाथों की दोनों तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठा, अनामिका तथा अंगुष्ठों में न्यास करें।

ताः स्युस्तत्पुरुषाघोरसद्योवामेशसंज्ञकाः ।
वक्त्रहृत्पदगुह्येषु निजमूर्धनि ताः पुनः ।5।।

ये पञ्चमूर्तियाँ क्रमशः तत्पुरुष- अघोर सद्योजात वामदेव तथा ईशान संज्ञक हैं। चारों अंगुलियों में न्यास का प्रयोग क्रमशः 'शिं तत्पुरुषमूर्त्यै तर्जनीभ्यां नमः', 'वां अघोरमूर्त्यं मध्यामाभ्यां नमः' इत्यादि प्रकार से करें। इसी प्रकार पञ्चाक्षर मंत्र के एक-एक अक्षर से संयुक्त एक-एक मूर्ति का न्यास मुख, हृदय, पाद गुह्य, तथा सिर प्रदेश में करें।

पञ्चसु ।

प्राग्याम्यवारुणोदीच्यमध्यवक्त्रेषु मन्त्राङ्गानि न्यसेत् पश्चाज्जातियुक्तानि षट् क्रमात् ।। 6 ।।

इसके पश्चात् अपने सिरः प्रदेश में पंचवक्त्रत्व की भावना करते हुए पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तथा मध्य इस प्रकार पाँच मुखों में पूर्वोक्त विधि से न्यास करें। पुनः मंत्र के अंग से तत्तदञ्जलि युक्त षडङ्गन्यास करें। यथा 'ॐ हृत् नं शिर' इत्यादि

कुर्वीत          गोलकन्यासं रक्षायै तदनन्तरम् ।
हृदि वक्त्रेऽसयोऽर्वोः कण्ठे नाभौ द्विपार्श्वयोः ।।7।।

पृष्ठे हृदि ततो मूर्ध्नि वदने नेत्रयोर्नसोः । 
दो: पत्सन्धिषु साग्रेषु विन्यसेत्तदनन्तरम् ।।8।।

शिरोवदनहत्कुक्षिसोरुपादद्वये         पुनः।
हृदि वक्त्राम्बुजे टङ्के मृगाभयवरेष्वथ ।।9।।

इस प्रकार तत्त्वन्यास करने के बाद अपनी रक्षा के लिए दशावृत्ति में किए जाने वाले गोल तथा हृदय में द्वितीयावृत्ति, मूध, मुख, दोनों नेत्र तथा दोनों नासिका में तृतीयावृत्तिः इसके चाट न्यास करें। हृदय, मुख, दो कन्धे और दोनों ऊरु में प्रथमावृत्ति, कण्ठ, नाभि दोनों पाश्व बाहु तथा पैरों में चतुर्थावृत्ति; उनकी सन्धियों में पंचम आवृत्ति; अंगुलियों के मध्य सन्धि में षष्ठावृत्ति; उनके अग्रभाग में सप्तम आवृत्ति से न्यास करें।

वक्त्रांसहत्सपादोरुजठरेषु क्रमान् न्यसेत्
मूलमन्त्रस्य षड्वर्णान् यथावद्देशिकोत्तमः । ।10।।

पुनः सिर, मुख, हृदय, कुक्षि, ऊरु तथा दोनों पैरों में अष्टम आवृत्ति, हृदय, मुख, परशु मृग, अभय तथा वर में नवम आवृत्ति; इसके पश्चात् मुख, कन्धा, हृदय, पाद, ऊरु और जठर में दशमावृत्ति के क्रम से न्यास करें। उत्तम आचार्य इस प्रकार मूल मंत्र मे छः अक्षरों के प्रत्येक वर्ष से उक्त स्थानों में दशावृत्ति युक्त न्यास करें।

मूर्ध्नि भालोदरांसेषु हृदये ताः पुनर्न्यसेत्
पश्चादनेन मन्त्रेण कुर्वीत व्यापकं सुधी ।।11।। 
नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गामृतात्मने। चतुर्मूर्त्तिवपुच्छायाभासिताङ्गाय। शम्भवे
 एवं न्यस्तशरीरोऽसौ चिन्तयेत्पार्वतीपतिम् । ।12 ।

पुनः सिर, भाल, उदर दोनों कन्धे तथा हृदय में पंचमूर्तियों के द्वारा पुनः न्यास करें, आगे

कहे जाने वाले मन्त्र से बुद्धिमान् साधक व्यापक न्यास करें। मन्त्र है- 
'नमोऽस्तु स्थाणुरूपाय ज्योतिर्लिङ्गात्मने चतुर्मूर्त्तिवपुच्छाया भासिताङ्गाय शभ्भवे'। 

इस मन्त्र से व्यापक न्यास करके पार्वतीपति शंकर का इस रूप में ध्यान करें। दशावृत्तिमयं गोलकन्यासमाह । तदनन्तरं तत्त्वन्यासानन्तरमित्यर्थः ।

तत्त्वन्यासो यथा-

वक्ष्यतेऽथो शैवतत्त्वन्यासः प्रसादतः परम् ।
पचाक्षरी परायेति तत्त्वनामात्मने नमः ।। 
आवृत्त्या शिवपञ्चाक्षर्यर्णयुक्तं पृथक् सह।
द्वितीयादि क्षादिवर्णैरान्तैराद्यं ध्रवादिकैः (कम्) ।। 
शिवः शक्तिः सदापूर्वः शिव ईश्वर एव च ।


शुद्धविद्या च माया च कालश्च नियतिः कला ।। 
स्मृतोपरागः पुरुषः प्रकृतिर्बुद्ध्यहंकृती । 
मन एतान् हृदि न्यस्येत् श्रोत्रादिषु स्थले तथा । वागाद्यप्यथशब्दादि मूर्धास्योरौ गुदे पदे ।। 
आकाशादीन् न्यसेदेषु वक्ष्यमाणं च पञ्चकम् ।
सदाशिवाद्या आकाशाद्याधिपत्यन्तकाः सङेः । शान्त्यतीताकलाद्यन्ता निवृत्त्याद्याः स्वबीजतः । 
न्यसेत् पादादिशीर्षान्त मूर्धादिचरणान्तिके ।। शान्त्यात्मेशानमूर्धा च ङेयुतश्च सदाशिवः । 
सत्यात्मा तत्त्पुरुषवक्त्रो ङेयुतश्च ईश्वरः ।। नादात्माऽघोरहृदयो डेयुतश्च महेश्वरः । 
बिन्द्वात्माऽथो वामदेवगुह्यो विष्णुश्च ङेयुतश्चः । 
बीजात्मा च सद्योजातपादो ब्रह्मा च ङेयुतश्चः । ईशानाद्यानूर्ध्ववक्त्राद्यान् सदाशिवपूर्वकान् ।। ऊर्ध्वादिपञ्चवक्त्रेषु ङेतानक्षरपूर्वकान् इति ।।

पञ्चमुखशिवध्यानम्

ध्यायेत्रित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् । पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वरूपं निलिखभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।

रजत पर्वत के समान जिनके शरीर का वर्ण सर्वथा श्वेत है, जिनके भाल प्रदेश में द्वितीया का चन्द्रमा आभूषण रूप में विभूषित है, जिनका समस्त अंग रत्न के समान उज्ज्वल है, जिनके हाथ में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा हैं, जो सर्वथा प्रसन्न रहने वाले हैं जो श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवता लोग जिनकी चारों ओर से स्तति कर रहे हैं, व्याघ्र चर्म को धारण किए उन विश्व के आदि, विश्वरूप, निखिल भयहर्ता, पंचमुख तथा त्रिनेत्र महेश्वर का ध्यान करना चाहिए।

उच्छ्रितं दक्षिणाङ्गुष्ठं वामाङ्गुलीर्दक्षिणाभिरङ्गुलीभिश्च
वामाङ्गुष्ठेन बन्धयेत्वेष्टयेत् ।लिङ्गमुद्रेयमाख्याता  शिवसात्रिध्यकारिणी ।। इयं सर्वशेवमन्त्रसाधारणीति ज्ञेयम् ।।  पुरश्चरणादिकथनम्

तत्त्वलक्षं जपेन्मन्त्रं दीक्षितः शैववर्त्मना।
तावत्संख्यासहस्राणि जुहुयात् पायसैः शुभैः।
ततः सिद्धो भवेन्मन्त्रः साधकाभीष्टसिद्धिदः।।

शैव मार्ग के अनुसार दीक्षा लेने के पश्चात् इस मंत्र का 24 लाख जप करें। फिर पायस से च हजार होम करें। तब यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को अभीष्ट सिद्धि प्रदान करता है।

देवं सम्पूज्येतपीठे वामादिनवशक्तिके । 
वामा ज्येष्ठा ततो रौद्री काली कलपदादिका ।।
विकारिण्याह्वया   प्रोक्ता बलाद्या विकरिण्यथ।
बलप्रमथनी            पश्चात्सर्वभूतदमन्यथ ।।

आसनमन्त्र

मनोन्मनीति संप्रोक्ताः शैवपीठस्य शक्तयः ।
नमो भगवते पश्चात्सकलादि वदेत् पुनः ।।
गुणात्मशक्तियुक्तायततोऽनन्तायतत्परम्
योगपीठात्मने भूयोनमस्तारादिको मनुः ।।

तत्पश्चात् वामादि नव शक्तियों से युक्त पीठ पर सदाशिव का पूजन करें। 
1. वामा, 
2. ज्येष्ठा, 
3. रौद्री, 
4. कलपदा, 
5. विकरिणी 
6.छबलविकरिणी, 
7. बलप्रमथिनी, 
8. सर्वभूतदमनी और, 
9. मनोन्मयी- ये शैव पीठ की नवशक्तियाँ हैं। 

'ॐ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्तियुक्ताय अनन्ताय योगपीठात्मने नमः' यह कहें।
अमुना मनुना दद्यादासनंगिरिजापतेः । 
मूर्ति मूलेन सङ्कल्प्या तत्राऽऽवाह्य यजेच्छिवम् ।।

ऊपर कहे गए मन्त्र से गिरिजापति को आसन प्रदान करें, मूल मन्त्र पढ़कर मूर्ति की कल्पना करें, तदन्तर उसी में शिव का आवाहन कर पूजा करें।

आवरणदेवताध्यानम्-
कर्णिकायां यजेन्मूर्तीरीशमीशानदिग्गतम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशं दिक्षु तत्पुरुषादिकाः ।।
 
पश्वात् ईशान कोण में शुद्ध स्फटिक के समान ईशान मूर्त्ति की पूजा करें। कर्णिका में चारों दिशाओं में तत्पुरुष, अघोर, सद्योजात और वामदेव की मूर्तियों की पूजा करें।

पीताञ्जनश्वेतरक्ताः प्रधानसदृशायुधाः ।
चतुर्वक्त्रसमायुक्ता यथावत् संप्रपूजयेत् ।।

ऊपर ईशान का रूप शुद्ध स्फटिक समान कह दिया गया है। अब शेष चार मूर्तियों के वर्ण कहते हैं ये मूर्तियाँ क्रमशः पीत, अञ्जन, श्वेत तथा रक्त वर्ण की हैं। सभी के आयुध प्रधान के सदृश हैं। सभी चार मुखों से युक्त हैं, उनकी प्रणव से युक्त मन्त्र वर्णों से यथाविधि पूजा करें।

कोणेष्वर्च्याः निवृत्त्याद्यास्तेजोरूपाः कलाः क्रमात् । 
अङ्गानि केसरस्थान विद्येशान् पत्रगान् यजेत् । ।

इसके उपरांत कर्णिकाओं के चारों कोणों में तेजःस्वरूप चार कलाओं की निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या और शान्ति की पूजा करें। ईशान में शान्त्यतीता की पूजा करें। केशरों पर अंगों की तथा पत्रों पर विद्येश्वरों की पूजा करें।

अनन्तं     सूक्ष्मनामानं शिवोत्तममनन्तरम् ।
एक नेत्रमेकरुद्रं  त्रिनेत्रं         तदनन्तरम् ।।
पश्चाच्छ्रीकण्ठनामानं  शिखण्डिनमनन्तरम्
रक्तपीतसितारक्तकृष्ण रक्ताञ्जनासितान्

अनन्त, सूक्ष्म, शिवोत्तम, एकनेत्र, एकरुद्र, त्रिनेत्र, श्रीकण्ठ एवं शिखण्डी ये विद्येशों के नाम हैं। इनका वर्ण क्रमशः रक्त, पीत, सित, रक्त, कृष्ण रक्त, अंजन एवं श्वेत है।

किरीटार्पितबालेन्दून् पद्मस्थिातान् भूषणान्वितान् ।
त्रिनेत्रान्        शूलवज्रास्त्रचापहस्तान् मनोहरान् ।।

इन सभी की किरीट में बालेन्दु विराजमान हैं, सभी पद्म पर आसीन हैं और भूषणों से भूषित एवं त्रिनेत्र हैं। सभी अपने हाथों में शूल, वज्र, बाण और धनुष लिए हुए हैं और समस्त की आकृतियाँ मनोहर हैं।

उत्तरादि यजेत्पश्चादुमां          चण्डेश्वरं पुनः।
ततो        नन्दिमहाकालौ गणेशवृषभौ पुनः ।।
अथ भृङ्गरीटिं स्कन्दमेतान् पद्मासनस्थितान् । स्वर्णतोयारुणश्याममुक्तेन्दुसितपाटलान् ।।। 

इसके उपरान्त उत्तर के क्रम से उमा, चण्डेश्वर नन्दी, महाकाल, गणेश, वृषभ, भृङ्गरीटि और स्कन्द इन आठों विद्येश्वरों की आठों दिशाओं में पूजा करें। ये सभी पद्मासन पर स्थित हैं इनके शरीर के वर्ण सुवर्ण, जल, अरुण, श्याम, मुक्ता, चन्द्रमा श्वेत और पाटल (रक्त) हैं।

इन्द्रादयस्ततः पूज्याः वज्राद्यायुधसंयुताः ।
इत्थं संपूजयेद्देवं सहस्रं नित्यशो जपेत् ।।

तत्पश्चात् वज्रादि आयुधों से संयुक्त इन्द्रादि इस दिग्पाला की पूजा करें। इस प्रकार आवरण सहित देवाधिदेव की पूजा करें और नित्य प्रति इच्छित उक्त मन्त्र का जप करें। 

सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नुयाद्वाञ्छितां श्रियम् ।
द्विसहस्रं     जपेद्रोगान् मुच्यते नात्र संशयः ।।

फलश्रुति-

ऐसा करने से सुधी साधक सभी पापों से मुक्त हो जाता है, इच्छित श्री प्राप्त करता है। 

यदि उपरोक्त विधि से पूजा कर दो सहस्र नित्य जप करे तो साधक रोगमुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।

त्रिसहस्रं     जपेन्मन्त्रं दीर्घमायुरवाप्नुयात् ।
सहस्रवृद्ध्या प्रजपन् सर्वान् कामानवाप्नुयात् ।।
आज्यान्वितैस्तिलैः शुद्धैर्जुहुयाल्लक्षमादरात् ।
उत्पातजनितान् क्लेशान्नाशयेन्त्राऽत्र संशयः ।
शतलक्षं जपेत्साक्षाच्छिवो भवति मानवः   ।।

यदि तीन सहस्र नित्य जप करे तो दीर्घ आयु प्राप्त करता है। चार सहस्र जप करे तो सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध कर लेता है। यदि इस मन्त्र से घृत मिश्रित शुद्ध तिलों द्वारा भक्तिपूर्वक एक लाख जप करे तो साधक दिव्य भौम अन्तरिक्षजन्य उत्पातों को विनष्ट कर देता है, इसमें संशय नहीं है। यदि इस मन्त्र का एक करोड़ जप करें तो वह मनुष्य साक्षात् शिव हो जाता है।

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श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...