गुरुवार, 3 नवंबर 2022

श्यामा काली सिद्धि

श्यामा काली साधना।

भगवती 'श्यामा अर्थात् काली के अनेक स्वरूप तथा अनेक नाम हैं । यह पर हम श्यामा काली की साधना का उल्लेख कर रहे हैं। भगवती श्यामा का साधना मूल मन्त्र यह है

"हूं हूं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं

स्वाहा साधन विधि - सर्वप्रथम भोजपत्र पर अष्टगन्ध से भगवती श्यामा के यन्त्र का निर्माण करें। भगवती श्यामा के पूजन यन्त्र के भेद हैं यहाँ पर आपको एक यन्त्र चित्र में दिया जा रहा है
उक्त भिन्न प्रणाली के पूजन-यन्त्र को नीचे प्रदर्शित किया जा रहा है।

यन्त्र - लेखन से पूर्व स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत हो लेना आवश्यक है । 

प्रात: कृत्यादि के पश्चात् सर्वप्रथम 'श्रीं' इस मन्त्र से तीन बार आचमनीय जल का पान करके “ॐ काल्यै नमः' तथा 'ॐ कपालन्यैि नमः' । 
इन मन्त्रों का उच्चारण करते हुए दोनों होठों का दो बार मार्जन करना चाहिए। 

तत्पश्चात् 'ॐ कुल्वायै नमः' इस मन्त्र से हम प्रक्षालन करें। 
फिर ॐ कुरु कुरु कुल्वाये नमः' - इस मन्त्र से मुख का 
ॐ विरोधिन्यं नमः - इस मन्त्र से दक्षिण नासिका का 
'ॐ विप्रचित्रायै नमः" - इस मन्त्र से वाम-नासिका का 
ॐ उग्राय नमः - इस मन्त्र से दायें नेत्र का, 
'ॐ उग्रप्रभायै नमः'- हम मन्त्र से बायें नेत्र का, 
ॐ दीप्तायै नमः - इस मन्त्र से दायें कान का, 
'ॐ नीलायै नमः' -इस मन्त्र से बायें कान का, 
ॐ धनाय नमः' – इस मन्त्र से नाभिका का, 
ॐबलाकायै नमः' - इस मन्त्र से छाती का, 
ॐ मात्राय नम:' इस मन्त्र से मस्तक का,
 ‘ॐ मुद्रियं नमः - इस मन्त्र से दायें कन्धे का, 
तथा 'ॐ नित्यायै नमः ' - इस मन्त्र से बायें कन्धे का स्पर्श करना चाहिए।"

उक्त प्रकार से आचमन करने के उपरांत सामान्य पूजा पद्धति के नियमानुसार भूत-शुद्धि तक सब कार्य करके मायबीज – 'ह्रीं' इस मन्त्र से यथाविधि प्राणायाम करें। तत्पश्चात् ऋष्यादि न्यास करें। फिर कराङ्गन्यास, वर्णन्यास, पोढान्यास, तत्त्वन्यास तथा बाजन्यास करके भगवती श्यामा का ध्यान करना चाहिए ।
ध्यान का स्वरूप - काली तन्त्र में भगवती श्यामा के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है।

"करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् । कालिका दक्षिणां दिव्यां सुण्डमाला विभूषिताम् ।। सदाश्छिन्न शिरः खङ्ग वामाधोऽर्ध्व करांषुजाम् । श्रभयं वरदं चैव दक्षिणाधोर्ध्व पारिणाम् ॥ महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् । कण्ठावसक्त मुण्डलीं गलद्दृधिर चचिताम् ॥ करवंत सतानीत युग्मभयान काम् । घोरदंष्ट्रा करालास्यां पीनोन्नतपयोधराम् ॥ शवानां कर संघातः कृत काञ्चीं हसन्मुखीम् । सृक्कद्वय गलाद्रक्त धाराविस्फुरिताननाम् ॥ घोर रावां महारौद्री श्मशानालयवासिनीम् । बालार्क मण्डलाकार लोचन त्रितयारिवताम् ॥वन्तुरांदक्षिण शवरूप महादेव
व्यापि मुक्तालम्बिक चोच्चयाम् ।हृदयोपरि सस्थिताम् ॥शिवाभिर्घोरिरावाभिश्चतु दिक्षसमन्विताम् ।महाकालेन च •
शुभविपरीतरतातुराम् ॥सुखप्रसन्नवदनांस्मेराननसरोरुहाम्
एवं संचिन्तयेत्काल सर्वकाम समृद्धिबाम् ॥” '

स्वतन्त्र तन्त्र' में देवी के ध्यान का स्वरूप निम्नानुसार कहा गया है
" श्रञ्जन्नाद्विनिभां देवी करालवदनां शिवाम् |
मुण्डमालावलीकीरणी मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ॥
महाकालहृदम्भोजस्थितां पीनपयोधराम् ।
विपरीतरतासक्तां घोर दंष्ट्रांशिवः सह ॥ 
नागयज्ञपवीताढयया चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।
सर्वलङ्कार संयुक्तां मुण्डमाला विभूषितम् ॥
तहस्त सहस्रस्तु बद्धकाञ्चीं दिगंशुकाम् ॥
शिवाकोटि सहस्रं स्तु योगिनीभिविराजिताम् ।
रक्तपूर्ण मुखाभोजां मद्यपान प्रमत्तिकाम् ।
विर्क शशिनेत्रां च रक्तविस्फुरिताननाम् ॥
विगतासु किशोराभ्यांकृत कर्णवतंसिनोम् |
कर्णावसक्तमुण्डाली गलद्र घिर चत्रिताम् ॥
श्मशान वह्निमध्यस्यां ब्रह्म केशव वन्दिताम् । 
सद्यः कृत शिरः खङ्गवराभीतिकराम्बुजाम् ॥

पूर्वोक्त प्रकार से ध्यान करने के पश्चात् अर्ध्य स्थापित करना चाहिए । अयं स्थापनोपरांत पीठ-पूजा तथा प्रावरण- पूजा करके भैरव पूजन करे। भैरव पूजन का ध्यान निम्नानुसार है
भैरव पूजन के बाद देवी भस्म पूजन करके विसर्जन करना चाहिए। 'स्वतन्त्र तन्त्र' में लिखा है कि मुद्रा, तर्पणादि द्वारा देवी की पूजा, यन्त्र जप तथा नमस्कार करके अपने हृदय में देवों को विसर्जित करना चाहिए।

जिस समय किसी कार्य की सिद्धि के लिए जप किया जाय, उस समय मुंह में कपूर रख कर, कपूरमुक्त जिहवा से जप करना चाहिए। फिर देवी की स्तुति करके प्रदक्षिणा सहित साष्टाङ्ग प्रणाम करें तथा 'जन्गमङ्गल कवच का पाठ करें। ‘जगन्मङ्गल - कवच' 'स्तोत्र ग्रन्थों' में देख लें । 'जगन्मङ्गल कवच' का पाठ करने के बाद देवी के भङ्ग में समस्त आवरण देवताओं को विलीन करके सहार मुद्रा द्वारा 'काल्यै क्षमस्व:' यह कहकर विसर्जन करना चाहिए।

'काली तन्त्र' में इस मन्त्र के पुरश्चरण में २००००० की संख्या में जप करने का निर्देश किया गया है । उसमें कहा गया है कि साधक पवित्र तथा हविष्याशी होकर १००००० की संख्या में, दिन में जप करे तथा रात्रि के समय मुँह में ताम्बूल रखकर तथा शय्या पर बैठकर इतनी ही संख्या में जप करे । जप के बाद दशांश घृत-होम करना चाहिए। 'नील सारस्वत' के मता होम के बाद तर्पण तथा अभिषेक भी करना चाहिए ।
रात्रिजप का विशेष नियम यह है कि रात्रि के दूसरे प्रहर से तीसरे प्रहर तक मन्त्र का जप करना चाहिए। परन्तु रात्रि के शेष प्रहर में जप नहीं करना चाहिए।
उक्त प्रकार से पुरश्चरण करने से भगवती श्यामा देवी साधक पर प्रसन्नहोकर उसे अभीप्सित फल देती हैं।

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

घर की शांति

 शांतिकर्म के कर्म में गृहशांति के प्रयोग दिये गये हैं। यह प्रयोग नवग्रहों वाली शांति से भिन्न है।

इसमें घर के अंदर विभिन्न प्रकार के दैवीय कारणों से उत्पन्न होने वाली आपत्तियों-विपत्तियों के लिए ये प्रयोग दिया गया है।
घर के शांत-सुखद वातावरण को कलुषित और अशांत करने के बहुत से कारण होते हैं।
उनमें से चार कारणों को प्रमुखता से देखा जा सकता है। गृह अशांति के चार प्रमुख कारण भौतिक, दैविक, अभिचारिक और पित-प्रेत दोष हैं।
व्यक्ति के दुराग्रह, स्वभाव की कटुता और हठधर्मिता से उत्पन्न विवादास्पद परिस्थितियों से होने वाली अशांति तथा अनावश्यक रूप से वाद-विवाद के प्रकरण खड़े कर देने में गृह की शांति भंग हो जाती है।
जब व्यक्ति स्वयं को दूसरों की अपेक्षा उच्च, श्रेष्ठ और ज्ञानी मानकर दूसरों को उपेक्षा और लघुता की दृष्टि से देखता है, तब भी जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर किसी व्

यक्ति के अहम् को ठेस लगती है और यही ठेस अंतत: उसकी और फिर सम्पूर्ण गृह-परिवार की अशांति में बदल जाती है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि गृह अशांति के भौतिक कारण व्यक्ति द्वारा स्वयं ही उत्पन्न किए हुए होते हैं। गृह-शांति को प्रभावित करने में इस जन्म और पूर्व जन्म के पाप-कर्म अधिक प्रभावी होते हैं और इन्हीं को गृह-अशांति के लिए दैविक कारण माना जाता है।
काफी लग्न, श्रम और योग्यता के बाद भी किसी व्यक्ति को उसके क्षेत्र में निरंतर असफलता मिलते जाने को दैविक कारण के अलावा और भला कहा भी क्या जा सकता है।
दुरैव की दिशा में कभी-कभी आनुष्ठानिक व्यवस्थाएं भी निष्फल ही सिद्ध होती हैं किंतु ऐसी विषम परिस्थिति में शाबर मन्त्र साधना बड़ी प्रभावी होती है।

अभिचारिक कर्मों द्वारा जब किसी के गृह की शांति को अशांति में बदल दिया जाता है तो उस व्यक्ति और उसके परिवार की स्थिति विक्षिप्तों के समान हो जाता है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है. जब तक कि अभिचार कमों के प्रतिकार स्वरूप कुछ उपाय न किए जाएं। ऐसे उपायों का शाबर मंत्रों में महत्वपूर्ण स्थान है।

पित्रात्माएं सभसे अधिक अपना प्रभाव संतति और व्यवसाय पर कुप्रभाव डालती है। पितृत्माओं के रुष्ट हो जाने पर बिना कोई कारण सामने आए आय के स्रोत अवरुद्ध होते प्रति हीने लगते हैं। और बने बनाए काम भी बिगड़ते दिखाई देते हैं। व्यक्ति करना और कहना ती कुछ चाहता है, जबकि स्वतः होता कुछ और कहा कुछ और। ऐसे व्यक्ति को रात की नींद और दिन का चैन उड़ जाता है।
पितत्माओं के समान ही प्रेत भी वायवीय प्राणी होते हैं। उनके पास भौतिक देह नहीं होती। यही कारण है कि वे किसा भी प्रकार की कामना और वासना आदि से वंचित होते हैं।
जब उन्हें अपनी अतृप्त कामना या वासना की पूर्ति करनी होती है तो ये किसी माध्यम (स्त्री-पुरुष, बालक आदि) के द्वारा ही ऐसा करते हैं।
प्रेतों में परकाया प्रवेश की सामर्थ्य होती है। वे प्रायः इस प्रकार के लोगों की अपना माध्यम बनाते हैं, जो दुराचारी, अपवित्र, अभक्षी और दुष्ट प्रकृति के जोकि इस प्रकार के स्त्री-पुरुषों को भी अपना शिकार बना लेते हैं, जिनसे कभी उनकी शत्रुता रही हो अथवा जिनके कारण उन्हें मृत्यु का ग्रास बनना पड़ा हो।
किसी भी व्यक्ति को प्रेतग्रस्त स्थिति दो प्रकार की होती है। पहली स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति प्रेत के आवेश से कांपने लगता है और उसका स्वर-भंग होकर बदल जाता है। उस व्यक्ति की आँख लाल होने लगती हैं और वह अपने सामान्य बन सामय की अपेक्षा कई गुना अधिक शक्तिशाली प्रतीत होने लगता है। प्रेत आवेशित व्यक्ति यदि कुछ खाने पीने की वस्तुओं को ग्रहण करता है तो वह वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि उस प्रेत द्वारा ग्रहण की जाती है। दूसरी स्थिति में प्रेतग्रस्त होने पर व्यक्ति के ऊपर प्रेत का आवेश स्पष्ट रूप दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि ऐसा व्यक्ति कुछ विचित्र प्रकार के कार्य करने लगता है। कभी-कभी प्रेत-पीड़ा में व्यक्ति पर न तो किसी प्रकार का आवेश ही दृष्टिगत होता है और न ही उसके कार्यों में किसी प्रकार की विचित्रता प्रकट होता है। प्रेतग्रस्त दशा को इस स्थिति का आभास एकाएक ही उस व्यक्ति अथवा उसके परिवार पर आने वाले अकल्पित संकटों और परिस्थितियों से होता है।
प्राय: प्रेतात्माएं चार प्रमुख कारणों से व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। इन कारणों में पहला कारण तो यह है कि स्वयं प्रेत अपनी वासनापूर्ति के कारण स्त्री पुरुष की ओर आकर्षित होती है।
दूसरा कारण किसी व्यक्ति द्वारा प्रेत के जीवनकाल से जुड़े प्रतिशोध को माना जाता है।
तीसरा कारण व्यक्ति का अपवित्र वातावरण में रहना अथवा अपवित्रता को ग्रहण करना है। प्राय: प्रेतात्माए अपवित्रता को पसंद करती हैं;
अतः वे स्वभावतः इस प्रकार के व्यक्ति को अपना शिकार बना लेती हैं।
ओझा-तांत्रिक के द्वारा प्रेतात्मा को आहूत करके किसी व्यक्ति विशेष को शिकार बनाने के लिए प्रेरित करना होता है।
इस लेख में विभिन्न प्रकार के शांति-पष्टि कर्म हेतु एक विशेष शाबर में को प्रस्तुत किया गया है।
इस मंत्र की नियमानुसार सिंद्धि कर लने पर ये अपना यथोचित प्रभाव प्रकट करने लगते हैं।

ग्रहशांति हेतु विशिष्ट शाबर मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु को!
घर बांधू घर-कोने बांधू और बांधू सब द्वारा,
जगह-जमीन को संकट बांधू बांधू मैं चौबारा।
फिर बांधू मैली मुसाण को और कीलं पिछवाड़ा,
आगे-पीछे डाकन कीलू आंगन और पनाड़ा।
कोप करत कुलदेवी कीलू पितरों का पतराड़ा।
कीलू भूत भवन की भंगन,
कीलूं कील कील नरसिंग।
जय बोलो ओम नमो नरसिंह भगवान करो सहाई,
या घर को रोग-शोक,
दुःख-दलिहर, भूत-परेत,
शाकिनी-डाकिनी,
मैली मशाण नजर-टोना,
न भगाओ-तो लाख-लाख आन खाओ।
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र सांचा,
ईश्वरोवाचा ॐ नमो गुरु को।

यह विशिष्ट शाबर मंत्र किसी पर्व सूर्य चन्द्र ग्रहण दीपावली व होलिका दहन की रात्रि में भी सिद्ध किया जाता है।
इस रात्रि में एक एकांत कमरे में गो-घृत का दीप प्रज्वलित करके एक चौकी पर रखा जाए। उस चौकी पर नया लाल अथवा गुलाबी रंग का रेशमी कपडा बिछा दिया जाए। चौकी के बीचों-बीच पुओं का ढेर स्थापित करके उसमें ईश्वरीय रूप-भाव की आस्था करें। फिर उसका हल्दी, गुड़ और धूपादि से पूजन करें। तत्पश्चात् उपरोक्त मंत्र की एक माला का जप करके मंत्र को सिद्ध कर लें। और पुओं के ढेर को किसी तालाव अथवा नदी में विसर्जित कर दें।
जब गृह शांति के लिए इस मंत्र की आवश्यकता हो तो रात्रिकाल में नागफनी का कील लें। बाधा-पीडित ग्रह के किसी साफ-स्वच्छ कमरे में एक नए गुलाबी के कपड़े को काष्ठ की एक चौकी पर बिछा दें। चौकी पर सात अन्न की ढेरिया और चौकी के चारों कोनों पर सात-सात पूडी रख दें। प्रत्येक पूड़ी के ढेर पर हलवे कुछ मात्रा रखें।
चौकी पर पंचमेवा, फल और प्रसाद भी रखें। चौकी के नीचे या चावल के छोटे-से ढेर पर एक दीपक जलाकर रखें। धूप-आरबत्ती से वातावरण को सुगंधित बनाते हुए नौ कीलें तथा नौ नींबुओं पर इक्यावन बार सिद्ध कीए गए मंत्र का जप करें तत्पश्चात् नौ कोलों को नौ नौबुओं में गाड़ दें।
इन कीलित नींबुओं में से चार नींबुओं को गृह के चारों कोनों में गाड़ दें।
एक कोलित नींबू गृह के प्रवेश द्वार पर,
एक जल रखने के स्थान पर,
एक गृह के आगे,
एक पीछे और
एक नींबू पतनाले के नीचे गाड़ देना चाहिए।
इन कीलित नींबुओं को गाढ़ते समय बराबर मंत्र जाप करते रहना चाहिए।
यह सम्पूर्ण उपाय करने के उपरांत चौकी तथा चौकी के नीचे रखे सभी उन पदार्थों को, जो इस उपाय में प्रयुक्त किए गए थे, उन्हें किसी एकांत स्थान पर रख आएं। उपरोक्त प्रक्रिया करने से गृह बाधा से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी को करने पर विशेष लाभ मिलता है। इस प्रयोग के अगले दिन गृह स्वामी प्रातः यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन, गाय को चारा-पानी तथा दान-पुण्य करें।

माता मैदानन को खुद शांत करें।

 माता मैदानन जोकि जो कि पूरे उत्तर भारत में पूजी जाती हैं ये देवी हर एक घर में पूजी जाती है और सभी की मनोकामना पूरी होती हैं। एक समय की बात है जब सबल सिंह बावरी पीर जंग में मुगलों के साथ लड़ रहे थे तो माता शाम कोर को उन्होंने मुगलों से बचाया और अपने साथ ले आए ।और उसके बाद वह और जंगल में शिकार करने चले गए जब माता मैदानन ने माता शाम कोर को अपनी चुनरी उड़ा दी उतने में बाबा सबल सिंह बावरी वापस लौटे तो क्या देखते हैं माता मैदानन अपनी खटिया पर बैठी हुई है जब माता मैदानन को उन्होंने तीन बार बहन संबोधन किया लेकिन जब देखा तो वह माता श्याम कौर थी तब सबल सिंह बावरी ने यह वचन दिया कि आज के बाद आप मेरी बहन हो और मैं आपकी हर तरह से रक्षा करूंगा। कुछ देर बार बाबा बावड़ी को कुछ दिनों बाद बाहर शिकार पर जाना पड़ा और उतने में मुगल श्याम कौर को ढूंढते ढूंढते वहां पर आ पहुंचे।और माता श्याम कौर को उठाकर के अपहरण करके ले जाने लगे इतने में मैदानन ने अपना इलम चलाया और इल्म से माता श्याम कौरके शीश को धड़ से अलग कर दिया देख कर के मुगल हक़के-बक्के रह गए और कुछ बनता ना देख कर के मुगल भागने लगे उनके धड़ को लेकर के लेकिन शीश उनसे छूट गया जब आगे जाकर कि उन्होंने देखा कि शाम कौर का शीश हमसे छूट गया है तो उन्होंने उनका संस्कार करना उचित समझा उतने से बाबा बावड़ी शिकार करके जब लौटते हैं तो माता मदानन उनको सभी वृतांत बताती है तो बाबा एक श्मशान में काम चांडाल का वेश धारण करके मुगलों के पहले शमशान में जाकर बैठ जाते हैं और इतने में मुगल आते हैं और उन्हें श्मशान में शाम कोर का संस्कार करने को कहते हैं बाबा बावड़ी इतने में बोलते हैं कि रात्रि में शव का अंतिम संस्कार इस धर्म में नहीं किया जाता यह सुनकर के सभी मुगल हक्के बक्के रह गए और धन देकर के बाबा को मनाने की कोशिश करने लगे काम बनता ना देख लो और सोना देने का प्रस्ताव रखा और बावरी पीर ने बोल दिया कि मैं सबका संस्कार कर दूंगा मुगलों के जाने के बाद बाबा बावरी ने मैदानन को बुलाया और माता मदानण ने अपने ईल्म से श्याम कौर का शीश छोड़ दिया । बाबा सबल सिंह बावरी माता मदानण से बहुत खुश हुए और बोले आज के बाद दोनों बहने थी रहोगी बाबा सबल सिंह बावरी ने माता मदानण को माता श्याम कौर की रक्षा करने के लिए भविष्य में रक्षा करने के लिए कहा और समय निकल जाने के बाद जब माता मैदानन की आयु पूरी हुई तो उनका देहांत हो गया अब वहां से नागा गुरु निकल रहे थे तो उन्होंने देखा कि प्रसिद्ध सबल सिंह की बहन का संस्कार हो रहा है जो कि श्मशान क्रिया उनका नित्य प्रति का कार्य था माता मदानण संस्कार हो रहा था तो उन्होंने उनकी चिता जगा ली जब उनको चिता को जगाया गया तो बाबा ने सवाल पूछे तो माता मदान वाली ने उत्तर में जवाब दिया कि मैं कच्चे में पक्के में छिले में मरगत में सूतक में पातक में छोटे के बड़े के नीच का भेद किए बिना सभी कार्य आपके करूंगी लेकिन हे गुरु जो आप देख लेते हो वही भेंट लूंगी तो दोस्तों वह भी बची की होती है।

***********।शांत करने के तरीके ।*****
1.कच्चे दूध में गंगा जल साधारण जल और थोड़े से बतासे और कुछ कच्चे चावल मिला करके माता को सींचने से माता शांत होती हैं ।
2. माता के थानों पर प्रतिदिन झाड़ू लगाने से माता की प्रकोप भी शांत हो जाती है।
3.गुरु गोरखनाथ की पूजा करने से माता का क्रोध शांत हो जाता है ।
4.नगर खेड़ा महाराज की सेवा करने से माता की ग्रुप शांत हो जाती है ।
5.प्रतिदिन कच्ची कड़ाही देने से माता की कॉपी शांत हो जाती है ।
6.घर में प्रातः काल सुबह उठकर के कच्ची लस्सी का छीटा मारने से माता शांत हो जाती है ।
7. 5 या 11 ईंटे लेकरके उनका (वादा गेहना)उठाने से माता शांत हो जाती है।
8.शीतला माता को सींचने से माता मदानण की कृति शांत हो जाती है ।
9.दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाने से माता शांत हो जाती है । 10.देवी भागवत करने से या पढ़ने से घर में माता शांत हो जाती है।
11.दहलीज साफ रखने से माता की कृति शांत हो जाती है 12.उतारा करने से माता शांत हो जाती है ।
*****शीतला माता मैदानन मशानी माता का शांति मन्त्र*****
(माई शीतला गधे सवारी नाल मदानण रानी।,
शीतल हो जा थाना वाली रोज़ चढ़ावां पानी।,
बाबा फरीद दीआन इस्माइल जोगी दी आन।,
आन तेनु तेरे गुरु गोरखनाथ दी।)
अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप 8194951381 पर संदेश भेज सम्पर्क करें। आपकी पात्रता आपकी सोच पर आधारित होगी।

मदानन माता की साधना

 सभी आदरणीय साधकसाधिकाओं एवं सभी बुद्धिजीवी और विद्वान जितने भी इस ब्लॉग को मेरे पढ़ रहे हैं उन सभी को मैं प्रणाम करता हूं।

सभी साधक भाई बहनों यह साधना एक इतनी उग्र भयंकर एवं तीव्र साधना है जिसकी शुरुआत तो बहुत सौम्यता से होती है लेकिन बाद में यह शक्ति बहुत उग्र हो जाती है और सिद्ध होने के बाद साधक को किसी भी आए हुए याचक की हर समस्या का निदान करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है यह मंत्र गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत है लेकिन मैं आपको यह प्रसंग वश मंत्र दे रहा हूं सबसे पहले एक बात मैं बताता हूं आप कितनी भी उग्र साधना कीजिए लेकिन उस उग्र साधना को कंट्रोल करने के लिए उस एनर्जी को कंट्रोल करने के लिए आपको शिव की शक्ति या गुरु की शक्ति की आवश्यकता होती है जो साधक अपने गुरु अपने इष्ट एवं अपने मंत्र पर भरोसा रख कर के चलेगा वह अवश्य में सफल होगा लेकिन यह आप कभी न सोचो कि आप इंटरनेट से या किसी पुस्तक से कोई मंत्र और विधि ले लोगे और आप सफल हो जाओगे क्योंकि अगर कोई भी व्यक्ति लोकी कोई बुक ले ले या मेडिकल की कोई बुक ले ले तो भी उसे टीचर की आवश्यकता पढ़नी है और वह मात्र उस पुस्तक को देख कर के व्यवहारिक ज्ञान नहीं सीख सकता क्यों की उस पुस्तक में जिस किसी ने भी कोई भी थ्योरी लिखी होगी तो वह उसके निजी अनुभव होंगे और यह साधना का ऐसा मार्ग है जिसमें सब के साथ एक जैसे अनुभव नहीं होते सब की जीवनी शक्ति अलग होती है एवं सभी का परिवेश अलग होता है संस्कार अलग होते हैं इष्ट देवता अलग होता है कुलदेवता अलग होता है इसीलिए शक्ति सिद्ध होने में कठिन हो जाती है अब आपको मैं इस प्रयोग की विधि और मंत्र देने जा रहा हूं कृपया इस पोस्ट को देखने के बाद इसका व्यवसायीकरण ना करें एवं इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंचाना ऐसा मन में भी ना सोचे यह साधना प्राय अमावस्या से या कृष्ण पक्ष में शुरू की जाती है और इस साधना से पहले खेड़ा पीर एवं ख्वाजा पीर की साधना की जाती है उसके बाद पुरुष साधक इसे 41 दिन और स्त्री साधक इसे 21 दिन के प्रयोग के रूप में साधना कर सकते हैं साधना में बुरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करना है भूमि पर सोना है एक समय खाना है और कम बोलना है साधना के दौरान किसी से झगड़ा लड़ाई झूठ कपट छल फरेब नहीं बोलना और ना ही करना आपको मनसा वाचा और करवाना कर्म से किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना ना ही काम का चिंतन करना है बस सुबह आपने खेड़े पर जाकर के और उन्हें स्नान कराने के उपरांत 5 वाला उनके मंत्र की करनी है

मन्त्र ये है

ॐ नमो आदेष गुरु जी जाग रे जाग 2200 ख्वाज़ा 2300 कुतब शिव गौरां की आन जाग जा दादा भूमिया मेरे गोरख गुरु का रख मान दुहाई तेरी माता की ।

और उसके बाद आपने अपने घर चला जाना है फिर रात्रि में साईं काल को अपने ख्वाजा पीर की कड़ाही और हाजरी तैयार करनी है और वहां जाकर के तीन माला ख्वाजा पीर के कलाम का जाप करना है

कलाम ये है।

बिस्मिल्लाहरेहनेरहीम 2200 ख्वाज़ा पांचों पीर उठ मेरे जिन्दा पीर दुहाई मौला अली की बीबी फात्मा की।दुहाई मेरे उसताद की।

उसके बाद घर आकर के रात्रि में 10:00 बजे से जाप शुरू करना है और 11 माला जाप करना है इसका मंत्र ऐसे हैं

माता गदहे सुल्लखनी मत्थे लायी रखदी मेहन्दड चारों कुंठा झुक रहियां झुक रिहा सारा देश मट जागे मसान जागे जागे थड़े दा पीर मेरी जगाई जाग माता मेरे गुरुआ दी जगाई जाग ऐसे काज सँवारो जैसे जोगी इस्माइल के कार्य सवारे चले मंत्र फुरो वाचा देखा माई मदान वाली महारानी मसानी इल्म का तमाशा।

इस मंत्र को आपने प्रतिदिन 11 माला जपना है और कोई भी वस्त्र पहन सकते हो और अपने सामने माता की तस्वीर रखनी है दीप धूप लगाना है फल फूल पान मिठाई रखनी है यह साधना संपन्न करके आप किसी का कोई काम कर सकते हो और आपको कोई रुकावट नहीं आएगी कोई भी आज तक आपके पास आएगा तो आपको किसी चीज की दिक्कत उसका काम मिनटों में हो जाएगा आपको करना क्या है आपको सुबह उठना है सुबह उठकर आपने नगर खेड़े के मंदिर पर जाना है भूमिया जैसे बोलते हैं और वहां उन को स्नान कराने के उपरांत आपको पांच माला उनका मंत्र जाप करना है उसके बाद आप को घर आ जाना है घर आने के उपरांत फिर आप घर में और कोई काम कर सकते हो लेकिन घर से बाहर नहीं जा सकते आपको फिर शाम को ख्वाजा पीर की हाजिरी तैयार करनी है उस हाजरी में मीठे चावल 4 मुंह वाला दीवा पांच बतासे 5 लोग 5 लाची 5 गुलाब के फूल 5 अगरबत्ती और दो मीठे पान लेने हैं और अगर चाहो तो आप दो पीस बर्फी के ले सकते हो वह आपको चलते पानी जहां पानी चलता हो साहब वहां जाना है और ख्वाजा साहब को हरदास करके आपको यह हाजिरी उनको दे देनी है और वहां बैठकर हाजिरी देने के बाद आपको पांच माला ख्वाजा पीर की जपनी है उसके बाद आप को घर आ जाना है फिर रात्रि में माता की फोटो के सामने बैठकर जहां आपने नारियल रखकर संकल्प किया था वहां आपने बैठकर माता की पूजन करनी है फल फूल पान मिठाई उसमें मुख्यतः यह आपने पूजा 10:00 बजे के करीब शुरू करनी है और आपको पांच बूंदी वाले लड्डू, पांच बतासे,पांच गुलाब के फूल, दो सेंट, 2 मीठे पान ,5-5 लौंग इलायची ,सभी को एक एक काजल का टीका लगाना है धूप दीप और 2 दिए चलेंगे एक देसी घी का और एक सरसों के तेल का आपको वहां बैठकर 11 माला जाप करनी है मां की जो मंत्र पहले दिया गया है उसको करने के बाद आपने यह सारा सामान ले जाना है किसी खाली ग्राउंड में वहां 4 मुंह वाला दिया लगाकर मां को अगरबत्ती लगाने के बाद यह सारा सामान खाली ग्राउंड या चौक में रख देना है और माता को अरदास करके घर वापस चलाना है हाथ पैर धो के घर में घुसने है और फिर आराम से भूमि पर सो जाना है इसी दौरान आपको विचित्र विचित्र अनुभूतियां होंगी क्योंकि यह प्रयोग मेरे चार लोग जो जानकार हैं उन द्वारा किया गया है।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र साधना।

                क्षेत्रपाल भैरव मन्त्र सिद्धि। 

इस मंत्र की विधि पूर्वक सिद्धि कर लेने पर आपको धन लाभ ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है और आपके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है अक्षय कीर्ति की प्राप्ति होती है धनधान्य राज्य भोग क्षेत्रपाल भैरव जी की कृपा से प्राप्त होता है बुरी आत्माओं के साए आपके घर से हट जाते हैं और जातक और उसका पूरा परिवार सुखी हो जाता है
              (शास्त्रिक मन्त्र विधान)
सबसे पहले क्षेत्रपालमन्त्र का प्रयोग बताया जा रहा है। 

इसका नवाक्षर मन्त्र इस प्रकार है 'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति नवाक्षरो मन्त्रः ।

               ।क्षेत्रपाल पूजन यन्त्र।।

अस्य विधानम्:-विनियोग अस्य क्षेत्रपालमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः। क्षेत्रपालो देवता क्षं बीजम् लः शक्तिः । सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास 
ॐ ब्रह्मऋषये नमः शिरसि ।। १।। 
ॐ गायत्रीछन्दसे नमः मुखे ।। २।। 
ॐ क्षेत्रपालदेवतायै नमः हृदि ।। ३।। 
ॐ क्षं बीजाय नमः गुह्ये ।। ४।। 
ॐ लः शक्तये नमः पादयोः । । ५ । 
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।। ६ ।। 
इति ऋष्यादिन्यासः 

करन्यास 
ॐ क्षां अंगुष्ठाभ्यां नमः || १ || 
ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः || २ || 
ॐ क्षू मध्यमाभ्यां नमः || ३ || 
ॐ क्षै अनामिकाभ्यां नमः || ४ || 
ॐ क्षौ कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।।५।।
ॐ क्षः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।। ६ ।। 
इति करन्यासः । 

हृदयादिषडङ्गन्यास : 
ॐ क्षां हृदयाय नमः || १|| 
ॐ क्षीं शिरसे स्वाहा ।। २।। 
ॐ क्षं शिखायै वषट् ।। ३।। 
ॐ क्षै कवचाय हुम् ।। ४।। 
ॐ क्षी नेत्रत्रयाय वौषट् ।। ५ ।।
ॐ क्षः अस्त्राय फट् ।। ६ ।। 

इति हृदयादिषडङ्गन्यासः

इस प्रकार न्यास करके ध्यान करे।

अथ ध्यानम् :- ॐ नीलाञ्जनादिनिभूमूर्द्धपिशङ्गकेशं वृत्तोग्रलोचनमुदान्तगदाकपालम् । आशाम्बरं भुजङ्गभूषणमुग्रदंष्ट्रं क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् ।। १।।

इति ध्यात्वा मानसोपचारैः सम्पूजयेत्। 
ततः पीठादा रचिते सर्वतोभद्रमण्डलेमण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताः संस्थाप्य ॐ मं मण्डूकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवताभ्यो नमः।' इति सम्पूजयेत् । अस्य पीठशक्त्यादेरभावः। 

ततः स्वर्णादिनिर्मितं यन्त्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोष्य पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनर्ध्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावहनादिपुष्पान्तैरुपचारैः सम्पूज्यावरण पूजां कुर्यात् तद्यथा।

इससे ध्यान करके मानसोपचारों से पूजा करके पीठादि पर रचित सर्वतोभद्रमण्डल में मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताओं की स्थापना करके ॐ मं मण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठदेवताभ्यो नमः इससे पूजा करे। इसकी पीठशक्तियों आदि का अभाव है। इसके बादस्वर्णादि से निर्मित यन्त्र या मूर्ति को ताम्रपात्र में रखकर घी से उसका अभ्यन करके उस पर दुग्धधारा और जलधारा देकर स्वच्छ वस्त्र से उसे सुखाकर पीठ के बीच संस्थापित करके और प्राणप्रतिष्ठा करके, पुनः ध्यान करके, मूलमन्त्र से मूर्ति की कल्पना करके आवाहनादि से लेकर पुष्पान्त उपचारों से पूजन करके इस प्रकार आवरण पूजा करे 

षट्कोण केसरों में आग्नेयादि चारों दिशाओं में और मध्य दिशा में ॐ क्षां हृदयाय नमः । हृदयश्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः। 
इति सर्वत्र || १|| 
श्री शिरसे स्वाहा'। शिरः श्रीपा० ।। २।। 
ॐ क्षू शिखायै वषट्। शिखा श्रीपा० || ३ || 
ॐ क्षै कवचाय हुम्। कवच श्रीपा० ।। ४ ।। 
ॐ क्षीं नेत्रत्रयाय वौषट् । नेत्रत्रय श्रीपा० ।। ५ ।। 
ॐ क्षः अस्त्राय फट् । अस्त्र श्रीपा० ।। ६ ।।

इससे षडङ्गों की पूजा करे। इसके बाद पुष्पाञ्जलि लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण करके :

'ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् || १|| यह पढ़कर और पुष्पाञ्जलि देकर पूजितास्तर्पिताः सन्तु यह कहे। इति

प्रथमावरण ||१||

इसके बाद अष्टदलों में पूज्य और पूजक के अन्तराल में प्राची तथा तदनुसार अन्य दिशाओं की कल्पना करके प्राची क्रम से : 

ॐ अग्निलाख्याय नमः। अग्निलाख्यश्रीपा० ।। १।। 
ॐ अग्निकेशाय नमः । अग्निकेश श्रीपा०|| २ || 
ॐ करालाय नमः' । करालश्रीपा० ।। ३ ।। 
ॐ घण्टारवाय नमः । घण्टारवश्रीपा०|| ४ || 
ॐ महाकोपाय नमः। महाकोप श्रीपा०|| ५|| 
ॐ पिशिताशनाय नमः पिशिताशन श्रीपा०|| ६ || 
ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः। पिङ्गलाक्ष श्रीपा० ।।७।।
ॐ ऊर्ध्वकेशाय नमः ऊर्ध्वकेशश्रीपा०|८|

इससे आठों की पूजा करके पुष्पा अलि देवे। इसके बाद भूपुर में पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि दश दिक्पालों और वज्रादि आयुधों की पूजा करके बलि दे ।

'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इति मन्त्रेण माषभक्तवलिं दत्त्वार्धरात्रे पुनर्बलिं दद्यात् । अस्य पुरश्चरणं लक्षजपः। तत्तदशांशेन होमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनं कुर्यात्। एवं कृते क्षेत्रपालः प्रसन्नो भवति । 

तथा च 'लक्षमेकं जपेन्मन्त्रं जुहुयात्तद्दशांशतः। चरुणा घृतसिक्तेन ततः क्षेत्रे समर्चयेत् ।। १।। बलिनानेन सन्तुष्टः क्षेत्रापालः प्रयच्छति। कान्तिमेघाबलारोग्यतेजः पुष्टियशःश्रियः इति क्षेत्रपालनवाक्षरमन्त्रप्रयोगः ।। १।।

'ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः' इस मन्त्र से उड़द और भात की बलि देकर आधी रात को पुनः बलि देवे। 
इसका पुरवरण एक लाख जप है। फिर तत्तदशांश से क्रमश: होम, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन करवावें। ऐसा करने पर क्षेत्रपाल प्रसन्न होते हैं। कहा भी गया हैकि एक लाख मन्त्र का जप करे और उसका दशांश चरु और घी से होम करे। इसके बाद पूजन करे। इस बलि से सन्तुष्ट क्षेत्रपाल साधक को अक्षय कान्ति उत्कृष्ट मेधा अतुल बल,आरोग्य, प्रचंड तेज,पुष्टि अत्यंत यश और अक्षय लक्ष्मी देता है।

        इति क्षेत्रपाल नवाक्षर मन्त्र सिद्धि प्रयोग समाप्त।


दीपक से मनोकामना पूर्ति।

दीपक के तंत्र प्रयोग
दीपक का सम्बंध प्रकाश से है सूर्य की उपासना इसीलिए की जाती है कि वही हमें प्रकाश देता है। चंद्रमा की पूजा इसीलिए की जाती है। क्योंकि वह प्रकाश देता है। भले ही उसका प्रकाश सूर्य का ही प्रकाश है, किंतु दिखाई तो हमें चंद्रमा से आता प्रकाश है।
जब प्रकाश नही था तब कुछ नहीं था, बस अंधकार ही अंधकार था और यदि कुछ रहा भी होगा तो वह अंधकार के गर्त में गुप्तावस्था, सुप्तावस्था में था। प्रकाश ही वस्तुओं का पदार्थों का जगत का ज्ञान कराता है। अतः प्रकाश ही हमारा ज्ञान है, विवेक है, बुद्धि है, प्रज्ञा है, कुंडलिनी है, जागृत अवस्था है, तेज है | यानी प्रकाश ही सब कुछ है हमारे लिए | इसीलिए हम मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए अपनी उस प्रकाशमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं –
असते मां सद्गमय, तमसो मां ज्योतिर्गमय ।
असत्य से सत्य की ओर और तम (अंधकार) से प्रकाश की ओर जाने की इच्छा प्रत्येक प्राणी को होती है। अंधकार के लिए कोई प्रार्थना नहीं करता। सभी प्रकाश चाहते है इसका का महत्व हमारे जीवन में प्रत्येक क्षण है
निर्गुण निराकार की साधना उपासना करने वाले मात्र इतना ही कहते है - "वह ईश्वर, परमात्मा हमें स्पष्ट रूप से कदापि नहीं दिखता। फिर भी एक प्रकाश हमें त्रिकुटी दिखाई पड़ता है। (पाठक जान लें कि त्रिकुटी व़ह स्थान है जहां दोनों भौहों और नासिका के ऊपर माथे पर टीका लगाया जाता है।) कुछ लोग कहते हैं कि वह ब्रह्म हमारी आत्मा में एक प्रकाश पुंज की तरह दिखता है। अर्थात् ईश्वर प्रकाश रूप में हमारी आत्मा में ही परमात्मा रूप में स्थित है।“
दीपक तंत्र से देवी का आह्वान
शक्ति की उपासना करनेवाले दीपक की ज्योति में ही देवी मां का आह्वान करते हैं। दीपक की ज्योति में ही वह मां भगवती के दर्शन भी करते हैं। इसीलिए मां भगवती को जोतां वाली कहकर पुकारते हैं।
दीपक तंत्र का महत्व
मानव जीवन में जन्म से मृत्यु तक दीपक ज्योति का महत्व है। इसी दीपक ज्योति के विभिन्न आयामों के प्रयोग को तांत्रिक “दीपक तंत्र” के नाम से मान्यता देते हैं। दीपक तंत्र का आशय है कि दीपक की ज्योति का विभिन्न समस्याओं के निवार्णार्थ प्रयोग या स्वयं की मनोकामना पूर्ति के लिए दीपक तंत्र का प्रयोग।
जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक हमारे समाज में, हमारे धर्म में दीपक का प्रयोग होता रहा है और होता रहेगा। घर में कोई भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान या मांगलिक कार्य होते हैं, उन सभी में सर्वप्रथम दीपक की ज्योति को ही प्रज्वलित किया जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त संस्कारों में दीपक जलाया जाता है। दीपक के प्रयोग एवं महत्व को हम सभी जानते हैं।
दीपक का जन्म से संबंध
शिशु के जन्म समय में घी का दीपक प्रसंव गृह में जलता रहना चाहिए। आज बिजली के बल्ब, राड जलते रहते हैं। इनका प्रभाव शिशु के ऊपर अच्छा नहीं पड़ता। शिशु के कक्ष में देशी घी, हो सके तो गाय का घी के दीपक को जलाना चाहिए। दीपक ऐसी जगह रखना चाहिए ताकि शिशु अपनी नन्ही-नन्ही आंखों से दीपक के प्रकाश को देखता रहे। तेज प्रकाश शिशु की आंखों को हानि पहुंचाता है। इतना ही नहीं तेज प्रकाश मनोमस्तिष्क पर भी कुप्रभाव डालता है। यह हानि ज्यों-ज्यों बच्चा बड़ा होगा त्यों-त्यों उसमें स्पष्ट होगी। इस युग में कितने ही बच्चे १० वर्ष से १६ वर्ष की अवस्था में ही नेत्र विकार तथा कम नेत्र ज्योति के शिकार होकर चश्मों का सहारा लेने लगते हैं। गाय के घी का महत्व अन्य पशुओं के घी से अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। क्योकि सनातन मान्यता है कि गाय के रोम-रोम में देवी, देवताओं, तीर्थों, नदियों, पवित्र सरोवरों, सागरों का वास होता है। हिंदू धर्म के अनुसार गाय के शरीर में तैंतीस करोड़ देवता एवं तीर्थ निवास करते हैं। इसीलिए गौ पूजन का विधान है। गौ पूजन करके हम समस्त देवी-देवताओं का पूजन कर लेते हैं।
दीपक का मृत्यु से संबंध
मृत्यु के पूर्व यदि कोई शरीर अचेतावस्था में मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहता है, तो एक दीपक उसके सिरहाने जला देना चाहिए। इससे उसकी आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है और मरनेवाले को मृत्यु का दुःख नहीं होता । मृत्यु के बाद जिस स्थान पर शव रखा जाता या जहां मरनेवाला स्थाई रूप से नित्य निवास करता रहा है वहां फर्श को धोकर गोबर से लीपकर एक दीपक जला देना चाहिए। ऐसा १३ दिनों तक या एक वर्ष तक करना चाहिए। इस प्रकाश का लाभ मरनेवाले के जीव को मिलता है।
जीव शरीर छोड़ने के बाद शीघ्र किसी लोक में नहीं जाता, वह अपने निवास में चारों ओर शून्य में विचरण करता रहता है। १३ दिनों में कई बार वह अपने घर में, अपने कक्ष में अवश्य जाता है। वहां रखा दीपक उसे नयी यात्रा के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, प्रकाश देता है। दीपक का प्रकाश उसकी मोह माया को क्षीणकर आकाश में जाने एवं निरंतर ऊपर उठते रहने की दिशा प्रकाशित करता है। जीव को ईश्वरी ज्योति मिलती है।
श्मशान से लौटकर पीपल के वृक्ष पर एक पात्र में नित्य १० दिनों तक दीपक जलाया जाता है। इसका आशय भी वही है कि जीवात्मा को स्वर्गारोहण में प्रकाश मिलता रहे और वह मृत्यु के बाद की अपनी यात्रा प्रकाश पथ से कर सके। आप कह सकते हैं, सोच सकते हैं कि इतनी शक्तिशाली आत्मा को एक छोटा-सा दीपक अपनी टिमटिमाती ज्योति से कैसे प्रकाश दिखा सकता है। जबकि जीवात्मा को आकाश में निरंतर ऊपर उठने के लिए लाखों-करोड़ों कि०मी० की यात्रा करनी होती है। ऐसा सोचनेवालों को प्रकाश की गति भी जान लेनी चाहिए |
बुरी नजर हटाने में दीपक का उपयोग
किसी शिशु को यदि नजर लग गयी हो तो, सरसों के तेल या देशी घी की चार ज्योति वाले दीपक को थाली में रखकर बालक के सर से उतारें । दाएं से बाएं पांच बार दीपक की थाली को घुमायें और प्रत्येक बार बालक के सामने लाकर उसे दीपक देखने को कहें। ५ बार के बाद दो बार बाएं से दाएं की ओर उसी तरह सर से उतारकर, दिखाकर घर से बाहर चले जायें। दीपक को चौराहे पर रख दें या किसी बाग या सूनसान स्थान पर रख दें। वहीं खड़े रहकर थाली को दीपक के ऊपर उल्टा कुछ दूर से ऐसा करीए कि काजल लग जाये। तब तक मन में कहते रहे – “जो भी नजर, टोना-टोटका लगा हो या जो भी किसी ने किया कराया हो, वह यहीं से विदा हो जाये और अमूक के खुश रहने के लिए प्रसाद रूप में यह काजल दिये जाये “ पीछे घूमे बिना पुनः दीपक की ओर देखें वापस घर आ जाये। थाली में लगा हुआ काजल बालक के बाएं माथे पर हथेली में तथा तलुओं में जरा-जरा लगा दें। ऐसा करने से बालक पर लगी नजर आदि का कष्ट दूर हो जाता है और फिर कभी उस व्यक्ति की नजर नहीं लगती जिसने इस बार लगाया है। इस क्रिया को यदि नज़र लगे रोगी का कोई अपना करें तो उचित होगा एवं शीघ्र लाभ होगा |
रोग को ठीक करने में दीपक का उपयोग
आपके परिवार का कोई भी प्राणी गंभीर रूप से बीमार हो, तो दीपक तंत्र का प्रयोग एक दो बार अवश्य करें। लंबी बीमारी हो तो प्रत्येक रविवार तथा मंगलवार को यह प्रयोग अवश्य करें। बीमार व्यक्ति के पहने हुए कपड़ों में से कुछ धागे निकालकर अलग कर लें। इन्हीं धागों की एक बत्ती बनाकर दीपक में रखकर गाय के घी को डालकर दीपक तैयार करें। दीपक को जलाएं, फिर रोगी व्यक्ति के चारों ओर घुमायें। कुछ देर तक आरती की तरह रोगी की आरती उतारते रहें और अत्यंत दैन्य भाव से देव-देवियों से प्रार्थना करते रहें कि आपके दीपक की ज्योति से तैंतीस कोटिक देवता प्रसन्न होकर आपके प्रिय जन को रोग मुक्त करें। जो लोग अपने रोगी या प्रियजन के प्रति जितनी करूणा श्रद्धा से देवताओं से प्रार्थना करेगा, उसे उतनी ही शीघ्रता से दीपक तंत्र सहायता करेगा। जब रोगी ठीक हो जाये तो जितनी वार, जितने दिन, जितने दीपकों का प्रयोग आपने किया हो उतने ही देशी घी के दीपक किसी शिव मंदिर या दुर्गाजी के मंदिर में अवश्य जलावें ।
धन सम्पन्न होने के लिए दीपक का उपयोग
गाय के घी में फूल बत्ती बनाकर नित्य पूजन स्थल, देवालय एवं धन स्थान पर रखने से सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। दीपक स्थापित करते समय प्रार्थना करनी चाहिए - "हे दीपराज ! आपकी ज्योति जिस प्रकार अंधकार को दूर करती है उसी प्रकार हमारी गरीबी, हमारा अज्ञान दूर करके आप हमें धन-धान्य से परिपूर्ण करें। हमें धन और विद्या दें। हे दीपेश्वर ! जिस प्रकार आपकी ज्योति ऊपर की ओर उठती हुई प्रकाशमान है, उसी प्रकार हमारा जीवन, हमारा परिवार हमारे पुत्र-पौत्र भी निरंतर उन्नति करते रहें। हे दीपेश ! जिस प्रकार आपका प्रकाश सतगामी एवं कल्याणकारी है, उसी प्रकार हमारा जीवन, हमारा परिवार भी सदमार्ग पर चले और हमारा कल्याण हो। हे दीप देवता ! जिस प्रकार ३३ कोटि देवी देवताओं को आप प्रसन्न करते हैं उसी प्रकार हम पर हमारे ईष्ट एवं देवी-देवताओं को अनुकूल बनाकर आनंदित करें ”
दीपक स्थापना के बाद दीपक की पूजा विधिवत चंदन, अक्षत, पुष्प तथा धूप से करनी चाहिए। इससे व्यक्तिगत एवं पारिवारिक लाभ मिलता है। परदेश जाते हुए व्यक्ति की आरती चौमुखे दीपक से करने पर उसे मार्ग की चारों दिशाओं से रक्षा होती है और मार्ग प्रशस्त होता है । युद्ध या किसी विशिष्ट कार्य के लिए जानेवाले की आरती एक ही कपास की बत्ती से करना चाहिए। इससे वह एक लक्ष्य की प्राप्ति में पूर्ण सफलता प्राप्त करता
ग्रह भूत-प्रेत निवारण के लिए।
यह प्रयोग अत्यंत सफल एवं सिद्ध माना गया है। किसी भी शनिवार को आक के पौधे के पास जाकर उससे प्रार्थना करें कि मैं अपने कल्याणार्थ आपके पत्तों को ले जाना चाहता हूँ। आक पौधा मुझे कुछ पत्तियां देने का कष्ट करें। फिर हाथ जोड़कर प्रणाम करें और ११ पत्ते तोड़ लें। चलने से पूर्व फिर प्रणाम करें। इन पत्तों को छाया मे सुखा फिर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का कपास एवं घी मिलाकर कई बत्तियां बनाकर रख लें। दूसरे शनिवार को इस बत्ती का दीपक घर के देवस्थल, पूजा घर या आंगन में जलावें । आप घी में भी आक के पत्ते का चूर्ण डाल सकते हैं और दीपक कर सकते हैं। घर के अन्य प्रकाश बंद कर दें, यानी बिजली के बल्ब, राइ न जलते रहे । इसी दीपक के समक्ष हनुमानजी की स्तुति करें, हनुमान चालीसा, हनुमत् स्तोत्र, हनुमानाष्टक, बजरंग वाण का पाठ करें तथा ११ माला “ॐ हनु हनुमंते नमः” का जाप करें।
आकर्षण में दीपक का महत्व
किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए दीपक तंत्रम का प्रयोग उत्तम होता है। यदि आप स्त्री हैं तो घी का दीपक जलाकर किसी खिड़की या झरोखे में रखे उसकी पूजा करें और मनोरथ कहें। आंचल की ओढ़ ऐसे ढंग से बनाये रहे कि दीपक बुझे नही साथ ही आपका वक्षस्थल भी प्रकाशित होता रहे। बार-बार उस व्यक्ति का नाम लेकर मन-ही-मन पुकारें, जिसे आप आकर्षित करना चाहती हैं। ४१ दिनों तक दीपक तंत्रम् का सहारा लेने पर आपको अनुकूल फल दिखाई पड़ेगा।
यदि आप पुरुष हैं तो माथे पर कोई कपड़ा बांध लें और दीपक की सीध में चेहरा करके अपलक ज्योति को देखते हुए अभीष्ट नर या नारी को बुलावें। मन में ऐसा विश्वास भी रखें वह चाहे जितनी दूर हो लेकिन वह आपकी मानसिक पुकार को सुन रही है। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि जिसका आकर्षण करना है, वह जिस दिशा में रहता है उसी दिशा में दीपक रखा जाये। साथ ही दीपक में फूल बत्ती जलती रहे।
मोहनी मे दीपक का महत्व
आकर्षण की भांति मोहन क्रिया भी की जा सकती है। तीव्र प्रभावशाली मोहन क्रिया के लिये साध्य का नाम फूलों को रखकर एक खुले स्थान पर लिखे, बनाये प्रत्येक फूल के ऊपर छोटे-छोटे चमेली के तेल के दीपक रखें और उनकी पूजा करके उनसे निवेदन करें कि अमुक... को मोहित करा दें।
यदि साध्य का चित्र हो तो उसे सादर से प्रतिष्ठित करके उसके समक्ष एक चमेली के तेल का दीपक जलाकर पूजा करें फिर दीपक से प्रार्थना करें। फिर साध्य व्यक्ति के चित्र को निरन्तर देखते हुये बातें करते रहें, उसे सम्मोहित करें। ११ या २१ दिनों तक नित्य दीपक का सहारा लेने पर अनुकूल फल मिलेगा ।
वशीकरण में दीपक का महत्व
वशीकरण के लिए कई प्रयोग है, किन्तु सबसे अच्छा प्रयोग यह है कि एक तीन इंच लम्बा दो ईंच चौड़ा सफेद भोज पत्र ले लें, उसमें अष्ट गंध की स्याही और चमेली की कलम से साध्य नर या नारी का नाम लिखें। उस नाम के नीचे यह वाक्य लिखें – “इमम् मम वश्यम् कुरु” फिर इसके नीचे अपना नाम लिखें। पहले से शुद्ध कपास से पांच फीट या दो गज का सूत कात लें। सूत मजबूत रहे। उसे चमेली के तेल में भिगोकर रख लें। भोजपत्र पर लिखावट की पूजा करें फिर उसे गोल-गोल बत्ती बना लें। लम्बाई में गोल भोजपत्र की बत्ती पर सूत को ठीक से लपेटते हुये साध्य व्यक्ति का नाम लेकर – “में 'वश्यम् कुरु” जपते रहें। सूत पास-पास ऐसा लपेटें कि पूरी बत्ती सूत से ढक जाय । इस बत्ती को चमेली के सुगंधित तेल में डुबोकर दीपक जलावें। दीपक की पूजा करें और साध्य का नाम लेकर “में वश्यं कुरु” का जाप १०६ बार करें। यह क्रिया गुरु पुष्प से प्रारम्भ करके अगले माह के पुण्य नक्षत्र तक करें। निश्चित है। आपका वशीकरण प्रयोग दीपक के माध्यम से सफल जायगा।
उच्चाटन या विद्वेषण मे दीपक का महत्व
यदि किसी पर दीपक के द्वारा उच्चाटन का प्रयोग करना हो तो भोजपत्र पर गंधक या सिंदूर (पीला असली सिंदूर जो पारे से बनता है) से साध्य का नाम लिखें, उसमें कपास लपेटकर बत्ती बनायें। पूजा करते समय उसके मन को प्रत्येक कार्य से या किसी विशेष कार्य से उच्चाटन करने की प्रार्थना करें। फिर उस बत्ती को नीम के तेल या भंगरा के तेल में डुबोकर दीपक जलावें। ऐसे दीपक को उसी दिशा की ओर रखें, जिधर साध्य व्यक्ति रहता हो । दीपक जलाकर पांच बार मन की बात कहकर तालियां बजाते रहें फिर पीठ दिखाकर लौट आवे। यदि छत पर सुरक्षित स्थान हो, तो ऊपर जाकर यह क्रिया करें और नीचे आ जायें। एक माह निरन्तर करने पर उस व्यक्ति का मानसिक उच्चाटन हो जायेगा ।
स्तम्भन मे दीपक का महत्व
एक फिट व्यास का एक गड़ढा बना लें अथवा एक बड़े मुंह का डिब्बा लें। डिब्बा लोहे का हो, उस पर काला पेण्ट चढ़ा हो। गडढा बना सकें तो ठीक। तीन इंच चौड़ा पांच इंच लम्बा लाल भोजपत्र लें उस पर काली स्याही या धतूरे के रस से एक मानव आकृति बनायें यानि साध्य का चित्र बनायें। उस पर साध्य का नाम, पिता का नाम, गोत्र, निवास स्थान का नाम पता आदि लिखें। उस भोज पत्र पर चित्र पर काले रंग के चावलों या धतूरे के बीजों या राई से मारने जैसे भाव से छिड़कते हुये कहें “अमुकस्य... स्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा” चावल मारने की क्रिया १३ बार करें फिर नीम के तेल में, उस भोजपत्र पर काला कपड़ा लपेट कर बाती बनायें। बाती को तेल में डुबोकर किसी शीशी में खड़ा करें फिर उसे जलाकर ऊपर वाला वाक्य बारम्बार दोहराते हुये दीपक को गड्ढे में रख दें फिर उस पर एक ढक्कन रख दें। सारी क्रिया करते समय“अमुकस्य... स्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा” का जाप करते रहें। ढक्कन लगाकर वापस आ जाय और हाथ-पैर, मुंह ठीक से धो लें। यह क्रिया आर्द्रा नक्षत्र से अगले नक्षत्र तक करें। एक माह में साध्य व्यक्ति की क्रियाओं, गतिविधियों का स्तम्भनं हो जायेगा ।

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

दीपावली के टोटके

         दिवाली पर धन प्राप्ति के सरल टोटके।

दिपावली खुशियों और दीपों का महापर्व है। मान्यता है कि ग्रहों की इस दिन स्थिति कुछ इस प्रकार होती है तथा ऐसी ऊर्जाएं सक्रिय होती जिसके कारण दीपों के इस महापर्व में मां लक्ष्मी स्वयं धन प्राप्ति का वरदान देती है। 

इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए जो उपाय किए जाते हैं उसका प्रभाव आपको सालभर दिखाई देता है। सालभर सुख समृद्धि बनी रहती है। 
आज आपको 11 ऐसे ही प्राचीन उपाय बताने जा रहे हैं जिन्हें करने से आपकी कमाई में खूब वृद्धि होगी।

:- दिपावली पूजन करने के बाद शंख की ध्वनि बजानी चाहिए। ऐसा करने से घर में दरिद्रता का वास नहीं होता है और घर में मां लक्ष्मी का वास रहता है।

:- दीपावली पूजन के बाद अभिमंत्रित हकीक रत्न का पूजन कर उसे धारण करना चाहिए। ऐसा करने से अगर आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। इस बात का ख्याल रखें कि जिन लोगों की कुंडली में शनि और मंगल का योग हैं उन्हें इस मंत्र को धारण नहीं करना चाहिए।

:- इसी के साथ अगर आप धन संपत्ति की प्राप्ति कराना चाहते हैं तो दीपावली वाले दिन अपने घर या फिर व्यवसायिक स्थान पर अपना पूजा स्थल पर लक्ष्मी गणेश यंत्र की स्थापना जरूर करें।
:- यदि कोई व्यक्ति अपार धन संपत्ति पाना चाहते हैं तो उसे दीवाली के दिन श्री यंत्र, गणेश लक्ष्मी यंत्र, कनकधारा यंत्र और कुबेर यंत्र का पूजन जरुर करना चाहिए। मान्यताएं हैं कि इन यंत्रों का पूजन करने से व्यक्ति को धन से संबंधित परेशानियों का कम सामना करना पड़ता है।

:- दीपावली पूजन में मां लक्ष्मी को पूजा में 11 अभिमंत्रित पीली कौड़ियां अर्पण करें, उसके अगले दिन लाल कपड़े में बांधकर अपने गल्ले या तिजोरी रखना चाहिए। ऐसा करने से धन की वृद्धि होती है।

:- दीपावली के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंदिर जाएं और मां लक्ष्मी को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति पहले से अधिक मजबूत होगी। इतना ही नहीं आप पर धन का किसी भी तरह का अभाव भी नहीं रहता है।

:- यदि कोई व्यक्ति अपने पुराने कर्ज से परेशान है तो दीवाली के दिन मां लक्ष्मी को सफेद रंग की मिठाई को भाग लगाएं और फिर उसे गरीबों में बांट दें। ऐसा करने से आपको पुराने कर्ज से जल्द राहत मिल जाएगी।

:- दीपावली के दिन शाम के समय सूर्यास्त होने से थोड़ा पहले बरगद की जटा में एक गांठ बांध देते हैं तो आपको अचानक धन प्राप्ति के योग बनते हैं, धन प्राप्ति के बाद उस बांधी हुई गांठ को खोलना न भूलें।

:- अगर आप आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं तो दीपावली के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सात दीप प्रज्वलित करके पीपल के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें ऐसा करने से आप आर्थिक संकटों से मुक्ति पा सकते हैं।

:-इसके अलावा भी एक सरल उपाय है जो आपको सभी आर्थिक संकटों से मुक्ति दिला सकता है। इसके लिए दीपावली के दिन मिट्टी के बर्तन में शहद भरकर उसे ऊपर से ढक दें इसके बाद उसे किसी सुनसान स्थान पर गाड़ दें ऐसा करने से व्यक्ति सभी प्रकार के आर्थिक संकटों से मुक्ति पा जाता है।

:-दीपावली वाले से सुबह जल्द उठकर स्नान आदि करने के बाद मां लक्ष्मी को तुलसी के पत्तों से बनी माला अर्पित करें ऐसा करे से व्यक्ति के धन में वृद्धि होती है।

दीपावली पर्व की बहुत सारी शुभकामनाएं आपका कल्याण हो 🙌







 


श्री झूलेलाल चालीसा।

                   "झूलेलाल चालीसा"  मन्त्र :-ॐ श्री वरुण देवाय नमः ॥   श्री झूलेलाल चालीसा  दोहा :-जय जय जय जल देवता,...