बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

कोख बन्धन और उस्का निदान

            
  ****।।। सन्तान प्राप्ति।।।****
जैसे बिना पानी के सागर नहीं हो सकता,बिना जल के मेघ नहीं हो सकता, जैसे राजहंस के बिना मानसरोवर की कल्पना अधूरी है, जैसे नेत्र बिना ज्योति के अर्थहीन है वैसे ही शिशु की किलकारीयों से वंचित आंगन शापित स्थान का आभास करवाता है । इकट्ठा किया गया धन और संसार की सभी खुशियां जब तक आपके संतान ना हो तब तक व्यर्थ है संसार के सभी सुख बिना शिशु के बड़े से बड़े महल को भी सुना कर देता है यह ईश्वर की तरफ से दिया गया एक अमूल्य धन है जिसकी कोई कीमत नहीं।

ये विषय बहुत जटिल है एक लेख के माध्यम से इस विषय को समझा पाना बहुत कठिन है फिर भी इस लेख में मैं आपको बताऊंगा कि अगर किसी स्त्री की कोख बांध दी जाए तो कैसे लक्षण सामान्यतः दिखते हैं उसका निदान क्या है और संतान प्राप्ति के उपाय के हैं ।
       
                          ।।लक्षण।।

○वर्षो योग्य तक दवा करवाने पर भी संतान सुख की प्राप्ति ना होना।
○दवा करवाने के बाद भी स्त्री का गर्भ धारण न होना।
○पैथोलॉजी रिपोर्ट्स का नार्मल आना। लेकिन फिर भी संतान का ना होना।
○दवा करवाने पर भी मासिक धर्म की अनियमितता ठीक ना होना।
○पति और पत्नी दोनों के स्वस्थ होने पर भी सन्तान का ना प्राप्त होना।
○स्त्री को बार बार एक ही सपना आना और गर्भपात हो जाना।
○स्त्री के अंगों पर भारीपन रहना। पेडू और पेट में बिना किसी कारण के दर्द रहना।

                        ।।।कारण।।।

बहुत से कारन हो सकते है हर केस की अलग कहानी और अलग कारण होते है और उसके इलाज भी अलग अलग जिसके कारण इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लिखकर समझा देना बहुत कठिन है। कुछ मुख्यकारण मैं आपको यहां बताने की कोशिश करता हु।

○शारिरिक अयोग्यता।
○श्राप का दोष।
○ ग्रह की बाधा।
○तंत्र की बाधा।
○ऊपरी बाधा।
○कोख का बन्धन।
      
      शारिरिक बाधा :- जब कोई पीड़ित शारिरिक रूप से इस तरह अस्वस्थ हो जिसके केस को चिकित्सक के लिए एक अलग दृष्टिकोण से देखने की जरूरत हो शारिरिक अयोग्यता की श्रेणी में आता है।

      श्राप का दोष:- सभसे ज्यादा केसों में संतान ना होने का कारण यही दोष होता है जब किसी के देवी,देवता, पीर, पितृ रुष्ट हों या किसी भी कारण से इनकी बाधा आये तो इस दोष का निवारण हेतु यत्न करने चाहिए।

      ग्रह बाधा:- जब इस दोष से पीड़ित पति पत्नी की 
      जन्मकुंडली में ग्रह के कारण बनने वाले योग के  
      कारण संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो   
      ग्रह बाधा की संज्ञा दी जति है।

      तंत्र बाधा:-इस बाधा का सीधा सीधा ये मतलब नही        कि पीड़िता को कोख को बांध दिया गया है इसका  
      तातपर्य ये कि कई बार लापरवाही से चलते हुए 
      किसी टोने टोटके को लांघ जाने से भी ये बाधा              उत्पन्न हो जाती है।

      ऊपरी बाधा:- जब कोई विवाहित या अविवाहित 
      नवयुवती अधिक सुंदर हो तो कुछ नकारात्मक  
      शक्तियां उनकी ओर आकर्षित हो जाती है और 
      संतान बाधा उत्पन्न कर देती है जैसे कि जिन्न शैतान        ख़बीस भूत प्रेत पिचास चुड़ैल डाकिनी इत्यादि।
     
     कोख बंधन:-तंत्र के षट कर्मो मैं बहुत ही भयानक         प्रयोग है लेकिन सारी तंत्र विद्या में ये सबसे घटिया         काम है लेकिन षड्यंत्रों से भरे इस संसार में बहुत           घटिया से घटिया सोच के लोग मौजूद हैं कोख को         बांध देना जितना आसान है उतना ही मुश्किल है 
     उसे खोलना।इसमें काले जादू द्वारा स्त्री की जनन           शक्ति को बांध दिया जाता हैलेकिन परिश्र्मी साधक       के लिए कुछ भी असंभव नहीं हो सकता।

                              ।।।उपचार।।।

○शास्त्रिक विधियों से
○तांत्रिक विधियों से

शास्त्रिक विधियों से :- जब उपरोक्त दोषों को हटाया जाता है जैसे कि पुत्रयेष्ठि यज्ञ,संतान गोपाल ,हरिवंश पुराण,दुर्गा सप्तशती या कोई भी पूर्ण शास्त्रिक मर्यादा से किया गया अनुष्ठान जिसमें यजमान ब्राह्मण का पूरा साथ और समय श्रद्धा से दे।फल की प्राप्ति में कोई किंचित मात्र संदेह नहीं रहता।

तांत्रिक विधियों से:-हमारा प्राचीन तंत्र बहुत बृहद और विशाल है वामाचार से सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है लेकिन तंत्र की गहराईयों को समझना बहुत कठिन है इसमेंसे  प्रयोग तब सफल होते है जब उन्हें गुप्त रखा जाए। कुछ तांत्रिक ग्रामीण श्रेणी के होते है उनको इस लेख में लिख पाना संभव नहीं है।

विभिन्न विभिन्न कारणों से हुए कुक्षि बन्धनों का अलग अलग प्रकार से इलाज होता जो लंबे समय तक चलता है। सभसे पहले कारण का निवारण किया जाता है तभी ऐसे केसों में संतान सुख संभव हो सकता है।

संतान प्राप्ति का प्रयोग।

अलग अलग केसों में अलग अलग दोषों का उपचार किया जाता है एवं उपचार की पद्धतियां भी विभिन्न होती है। कई केसों में एक बार में ही एक छोटा सा टोटका ही काम कर जाता है और कुछ केसों में एक से अधिक अनुष्ठानों का कई बार भी प्रयोग करने पड़ते है।देश काल और नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत और उसका बल ही निर्धारित करता है कि एक प्रयोग ही काफी है या एक से अधिक बार प्रयत्न करना होगा पहले से सभ कुछ निर्धारित नही होता।

यहां मैं आपके लिए एक षष्ठी देवी माता देवसेना का एक प्रमाणिक दे रहा हूं। निष्ठा एवं श्रद्धा से किया गया प्रयोग एक वर्ष में निःसंतान को संतान की प्राप्ति करवाता है।

****।।।पुत्रदायक षष्ठी देवी की साधना।।।*****

साधक अपने मन के केंद्रीकरण के लिए षष्ठी देवी के चित्र को अपने सामने रखे या किसी वटवृक्ष के नीचे किसी शालिग्राम रखकर या दीवार पर कुंकुम की पुत्तलिका बनाकर उसे देवी मान कर उसका उचित विधि से आवाहन करे फिर विधिवत पूजन पूर्ण निष्ठा और भगति के साथ करें।

फिर देवी का आहवान निम्न मंत्र से करे।
           ।।आवाह्न मन्त्र।।
श्वेत चम्पक वर्णभा,रत्न भूषण भूषिताम।
पवित्र रूपा परमां, देव सेना परां भजे।।।

ध्यान करने के बाद देवी के मन्त्र का यथासंभव जाप करें ये बात याद रहे जितना जाप आप पहले दिन कर रहे हैं दूसरे दिन उससे कम नही होना चाहिए।


देवी मूल अष्ठक्षरी मन्त्र   :- "ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा।" 

इस मंत्र के पुरश्चरण की संख्या एक जाप है उसके उपरांत दशांश हवन उसका दशांश तर्पण का दशांश मार्जन और उसका दशांश कुमारी भोजन करवाएं।

और प्रतिदिन निश्चित समय पर संस्कारित रुद्राक्ष की माला से देवी पूजनोउपरांत 11-21-51 बार स्तोत्र का जाप करें।

              ।।।।षष्ठी देवी स्तोत्र।।।
।।नारायण उवाच।।
स्तोत्रं श्रुणु मुनि श्रेष्ठ।सर्व काम शुभवह्यम् ।
वांछा प्रदं च सर्वेषां,        गूढं वेदेशु  नारद।।
नमो दैव्यै महा देव्यै सिद्धये शान्ते नमो नमः।
शुभाये देव सेनाये,   षष्ठये देवयै नमो नमः।।
वरदायै पुत्रदायै ,          धनदायै नमो नमः।
सुखदायै   मोक्ष दायै  षष्ठी देव्यै नमो नमः।।
षष्ठयै षठाँश रूपायै   सिद्धायै च नमो नमः।
मायायै सिद्धयोगिनियै  षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
तारायै शारदायै च,       परा देव्यै नमो नमः।
बालाधिष्ठातृ देव्यै च  षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रतक्षायै स्व भक्तानां,षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
पूज्यायै स्कन्द कांतायै सर्वेषां सर्व कर्मसु।
देव रक्षण कारिणे षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
सिद्ध तत्व स्वरूपयै वन्दितायै नृणां सदा।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः।।
धनँ देहि प्रिया देहि      पुत्र देहि सुरेश्वरि।
मानं देहि जयं देहि द्विषो जाहि महेश्वरी।।
धर्म देहि यशो देहि षष्ठीये देव्यै नमो नमः।
देहि भूमि प्रजा देहि विद्या देहि सु पूजिते।।
कल्याङ्म च जयं देहि,षष्ठीयै देव्यै नमो नमः।
।।फ़लश्रुति।।
इति देवि च संस्तुत्य, लेभे पुत्रं प्रिय व्रत।
यशस्विनं च राजेन्द्र:,षष्ठी देव्या प्रसादतः।।
षष्ठी स्तोत्रमिदं ब्राह्मण यः श्रुनोति तु वत्सरम।
अपुत्रो लभते पुत्रं,वरं सुचिर जीवनम् ।।
वर्षमेकं च यो भक्त्या, सम्पूज्दं श्रुनोति च।
सर्वपापद विनिर्मुक्तो महा वंध्या प्रसूयते।।
वीरं पुत्रं सु गुणींन विद्या वंत यशस्विनम।
सु चिरायुष्य वन्त च सुते देवी प्रसादतः।।
काक वंध्या च या नारी मृत वत्स्या च या भवेत।
वर्ष श्रुत्वा लभेत पुत्रं षष्ठी देवी प्रसादतः।।
रोग युक्ते च बाले च पिता माता श्रुनोति चेत।
मासेन मुच्यते बाल:षष्ठी देव्या प्रसादतः।।

।।इति श्री मद्ददेवीभागवते नारद नारायण संवादे षष्ठी स्तोत्रं।।

श्री छठी देवी की कथा 
श्रीमद् श्रीमद् देवी भागवत पुराण। नवम स्कंध। अध्याय। 46। 
देवऋषि नारद जी ने भगवान नारायण से कहा हे प्रभु भगवती छठी मूल प्रकृति की कला है। मैं इनके अवतार की कथा सुनना चाहता हूं। 
भगवान नारायण ने कहा हे मुनि मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण छठी देवी कहलाती हैं। बालकों की यह अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें विष्णु माया और बाल्दा भी कहा जाता है मातृका ओं में यह देवसेना नाम से प्रसिद्ध है।
इन देवी को स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त है। बालकों को दीर्घायु बनाना और उनका पालन पोषण तथा रक्षण करना इनका स्वभाव है। यह सिद्ध योगिनी देवी अपने योग के प्रभाव से बच्चों के पास सदा विराजमान रहती हैं।
हे ब्राह्मण इनका उत्तम इतिहास सुनो पुत्र प्रदान करने वाला यह उपाख्यान मैंने धर्मदेव से सुना है। प्रियव्रत नाम का एक राजा थे उनके पिता का नाम था स्वयंभू मनु के पुत्र थे अतः विवाह नहीं करना चाहते थे तपस्या में। उनकी विशेष रूचि थी किंतु ब्रह्माजी की आज्ञा से उन्होंने विवाह कर लिया विवाह के बाद बहुत समय तक जब उन्हें संतान नहीं हुई तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेष्ठि यज्ञ करवाया राजा की प्रिय व्रत की पत्नी का नाम मालिनी था यज्ञ के बाद मुनि ने उन्हें यज्ञ का प्रसाद खाने को दिया उसके खाने के बाद रानी मालिनी गर्भवती हुई गर्व को 12 वर्षों तक अपने कोख में धारण करें तब स्वर्ण के समान तेजस्वी एक पुत्र का जन्म हुआ परंतु संपूर्ण से संपन्न कुमार मरा हुआ था उसकी आंखें उलट चुकी थी उसे देखकर सारे अंग प्रत्यंग बहुत सुंदर से मरे हुए पुत्र के अशोक के कारण माता मूर्छित हो गई तब हे मुनि राजा प्रियव्रत उस मरे हुए पुत्र को लेकर के श्मशान में गए और उसे एकांत भूमि में पुत्र को छाती से लगाकर के आंखों से आंसू बहाने लगे उस मरे हुए पुत्र को त्यागे बिना ही राजा स्वयं भी मरने को तैयार हो गए क्योंकि घर पुत्र शोक के कारण उन्हें कुछ ज्ञात नहीं रहा। इसी समय एक दिव्य विमान दिखाई पड़ा स्फटिकमणि के समान चमकता हुआ वह विमान मूल्यवान रत्नों से जुड़ा हुआ था उसी पर विराजमान एक अत्यंत सुंदर देवी के दर्शन राजा प्राप्त किए श्वेत चंपा पुष्प के समान उस देवी के वर्ण उज्जवल था। 
सदाशिव तरुणाई से शोभा पाने वाली देवी मुस्कुरा रही थी उनके मुख पर प्रसन्नता छाई हुई थी रत्न में आभूषणों से उनकी बड़ी शोभा थी ऐसा जान पड़ता था कि वह मानो मूर्ति माई कृपा ही हूं। देवी के समान विराजमान सामने विराजमान देखकर के राजा ने बालक को भूमि पर रख दिया और बड़े भक्ति भाव से। उसका पूजन और स्तुति की है। 
नारद उस समय इस कांड की प्रिय देवी थी अपने तेज से देदीप्यमान थी उनका शांत विग्रह सूर्य के समान चमचमा रहा था उन्हें प्रसन्न देखकर राजा प्रियव्रत ने कहा हे देवी आप कौन हैं? 
भगवती ने काहे राजन में ब्रह्मा की मानस कन्या हूं। जगत पर शासन करने वाली देवी का नाम देवसेना है। मैं संपूर्ण मात्र भगवती मूल प्रकृति के प्रकट होने के कारण विश्व में छठी देवी के नाम से प्रसिद्ध है। मेरे पुत्र पुत्र प्रिय पत्नी तथा कर्मशील पुरुषों में उत्तम फल को प्राप्त करते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से पुरुष अनेक पुत्रों का पिता होता है और कुछ लोग पुत्रहीन भी होते है।किसी को मर हुआ पुत्र पैदा होता है और किसी को दीर्घ जीवी यह सब कर्म का ही फल है।
है मुने इस प्रकार कहकर षष्ठी देवी ने बालक को उठ लिया और अपने प्रभाव से उसे पूर्ण जीवित कर दिया।देवी देवसेना उस बालक को लेकर आकाश में ज्ञे को तैयार हो गयी उन्होंने राजा से कहा तुम स्वयंभू मनु के पुत्र हो त्रि लोक में तुम्हारा शासन चलता है तुम सर्वत्र मेरी पूजा करवाओ और स्वयं भी करो तब मैं तुम्हारे कमल के समान मुख वाला मनोहर पुत्र प्रदान करूंगी उसका नाम सुव्रत होगा उसमे सभी हुन होंगे और विवेक शक्ति होगी वह भगवान नारायण का कलावतार और योग होगा तथा उसे पूर्व जन्म की बातें स्मरण होंगी सभी उसका सम्मान करेंगे त्रि लोक में उसके8 कीर्ति फैलेगी इस प्रकार राजा प्रिय व्रत से कह कर भगवती देवसेना ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया राजा ने भी पूजा करने करवाने की बात स्वीकार कर ली और प्रसन्न मन होकर अपने घर लौट आये।
राजा ने सर्वत्र पुत्रप्राप्ति के लिए मांगलिक कार्य आरंभ कर दिए भगवती षष्ठी की पूजा की तब से प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन भगवती षष्ठी का महायोत्सव मनाया जाने लगा।बलको के प्रसव ग्रह मैं  छठे दिन इक्कीसवें दिन तथा अन्न प्राशन्न के समय पर यत्नपूर्वक षष्ठीदेवी की पूजा होने लगी सर्वत्र इसका प्रचार हो गया।
हे सुव्रत भगवती षष्ठीदेवी देवसेना का ध्यान पूजन स्तोत्र कौथुम शाखा में कहा गया हूं।शालिग्राम की प्रतिमा कलश या वट वृक्ष मूल या दीवार पर पुत्तलिका बनाकर प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने वाली शुद्ध स्वरूपा षष्ठी देवी का ध्यान कर पाद्य, अर्घ, आचमनीय,गंध,पुष्प, धूफ, दीप, नैवेद्य, इत्यादि उपचारों से उनका पूजन करें फिर भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति और प्रणाम करें।

मन्त्र जाप और इसी प्रकार ध्यान पूजा स्तुति कर महाराज प्रिय व्रत ने षष्ठी देवी की कृपा से यशश्वी पुत्र प्राप्त किया हे ब्राह्मण जो भगवतीषष्ठीदेव्यै के स्तोत्र को एक वर्ष तक पढ़ता या सुनाता है वह यदि अपुत्र है तो दीर्घायु एवं सुंदर पुत्र प्राप्त करता है ।अतीव बंध्या भी माता की कृपा से सुंदर संतान को जन्म देती है और बालकों के सभी रोगों का शमन माँ की कृपा से होता है।






गुरुवार, 2 जनवरी 2020

तीसरी आँख को खोलने की साधना।

    
  *।।। तीसरी आँख खोलने का अनुष्ठान ।।।*

○तीसरी आंख को खोलने का एक नायाब और आजमाया हुआ अनुष्ठान में आपको बताने जा रहा हूं साधना के क्षेत्र में यह बहुत ही कीमती अमल है। इसका प्रयोग कभी भी खाली नहीं जाता सादर की अध्यात्मिक शक्ति के आधार पर किसी की तीन, किसी की दस, किसी की पन्द्रह, यह किसी भी कम आध्यात्मिक शक्ति वाले साधक की भी तीसरी आंख ज्यादा से ज्यादा 21 दिन में इससे खुल जाती है।

○आपने इष्ट मंत्र और देवता पर पूरा विश्वास रखें अपने गुरु पर पूरा विश्वास रखें और फिर ही इस प्रयोग को करें इस प्रयोग के लिए गुरु की आज्ञा लेनी परम आवश्यक है बिना गुरु की आज्ञा को आज्ञा से यह करने वाले को गंभीर परिणामों को भुगतना पड़ सकता है उसके लिए हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा।

○अपने गुरुदेव को उचित दक्षिणा देकर संतुष्ट करें फिर ये अनुष्ठान संपन्न करें।

○ यह प्रयोग 21 दिन का है प्रति मध्यरात्रि  2:00 बजे से शुरू करके इस अनुष्ठान को प्रतिरात्रि डेढ़ घंटा किया जाना चाहिए।

○मध्य रात्रि में स्नान के उपरांत स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आपको किसी भी सुलभ आसन में बैठ जाना है रीड की हड्डी को सीधा रखते हुए बैठना है मन को शांत करते हुए आंखों को बंद कर लेना है तीसरा नेत्र तब खुलता है जब दोनों नेत्र बंद हो जाते हैं तब तीसरे नेत्र का प्रकाश होता है।

○साफ़ रुई से आपको दो गोलियां (swab)तैयार करनी है जिनमें पिसी हुई काली मिर्च का छिड़काव करना है और हल्का सा पानी मिलाकर जो गोलियां तैयार कर लेनी है दोनों को दोनों कानों में रख लेना है।

○ अब भगवती महामाया का ध्यान करके रुद्राक्ष की  
        माला से आपको ,
       "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॐ ग्लौं हुँ क्लीं जूं सः    
        ज्वालय-ज्वालय, ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं 
        क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं षं फट् स्वाहा"।
        मन्त्र का प्रतिरात्रि 1100 बार जाप करना है।

○ इस मंत्र के लाभ स्वरूप आपको आपके जीवन में घटित होने वाली हर घटना का पहले से ही ज्ञान होना शुरू हो जाता है तथा साधक जिस-जिस वस्तु का चिंतन करता है उसके विषय में सब कुछ जानकारी होने लग जाती है और कोई भी चीज साधक से छिपी नहीं रहती।

○ जाप करते हुए अपने नेत्रों को बंद रखना है और मन को शांत रखकर भगवती के चरणों में समर्पित कर देना है ऐसा करने से आपका तीसरा नेत्र  शीघ्र ही खुल जाएगा और साधक को जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना का और उसके उपाय का पूर्व में ही ज्ञान हो जाएगा।

○साधक के सामने दाएं तरफ दीपक देसी घी का जलता रहना चाहिए साधक के बाई तरफ जल का एक पात्र अवश्य रहना चाहिए।

○साधना करते हुए साधक का समय और स्थान एक ही होना चाहिए तथा उसमें पूरे 21 दिन में कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहिए साधक को संयम से नियम पूर्वक देना चाहिए भूमि पर शयन कम खाना और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।

○इस साधना से प्राप्त हुई शक्ति को अवरोधित कर पाना कठिन है और इससे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह किसी भी पैशाचिक शक्ति से बहुत ही ज्यादा अधिक है। तथा पिशाच इत्यादि सिद्ध कर लेने पर साधक फस जाता है लेकिन इसमें साधक फंसता नहीं है। और साधक को कोई दोष भी नहीं लगता।

○अंत में साधक को नवार्ण मन्त्र से उत्तम औषधियों द्वारा हवन भी करना चाहिए।

○इस साधना से प्राप्त हुई किसी भी शक्ति का प्रकाट्य साधना काल के दौरान नहीं करना चाहिए। और ना ही किसी को बताना चाहिए इसमें साधना काल के दौरान भगवती महामाया आदिशक्ति अलग-अलग रूपों में साधक को दर्शन देती है।

○इस साधना काल में किसी प्रकार के घेरे या सुरक्षा चक्र की आवश्यकता नहीं होती साधना की सफलता के लिए नित्य प्रति दान इत्यादि करना चाहिए।

○ इस साधना काल इस साधना के बाद साधक तीनों कालों का ज्ञाता हो जाता है और भगवती साधक को तीनों कालों का ज्ञान देतीं हैं।

○ देवी संबंधित यह साधना कोई पैसाचिक साधना नहीं है और कोई दोष भी नहीं लगता तो फिर पैसाचिक साधना करने की क्या आवश्यकता है जब देवी के आशीर्वाद से ही आपके सबको काम हो सकते हैं तो कोई भी नीच योनि के देवता की साधना करने की आवश्यकता नहीं है हां शास्त्र मर्यादा के अनुसार आपको देवी या देवता की साधना करने में कुछ समय अवश्य लग सकता है।

○इस साधना में आसन और वस्त्र यदि लाल रंग के हो तो बहुत उत्तम माने जाते हैं।

○इस साधना को करने से पहले सामान्य विधि द्वारा गणेश गुरू और क्षेत्रपाल का पूजन कर लेना चाहिए तथा उनके निमित्त कुछ बली भोग भी दे देना चाहिए।

○यह साधना अब तक गुप्त साधना थी और उत्तम साधकों द्वारा इस साधना को किया गया और इसके परिणाम सकारात्मक निकले कभी भी यह साधना निष्फल नहीं गई इसलिए श्रद्धा और भाव से इस साधना को करने वाले को अभीष्ट की अवश्य ही प्राप्ति होगी।

○ अधिक जानकारी के लिए हमारे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर व्हाट्सएप द्वारा सुबह 11 बजे से दोपहर1 बजे तक संदेश भेजकर संपर्क किया जा सकता है।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

माता मदानण की सेवा

              
           ।।माता मदानण की सेवा।।

○ हर अभिलाषा को पूरी करने के लिए आज मैं आपको एक सेवा बताने जा रहा हूं जो माता मदानण की सेवा है और उससे हर एक मनो अभिलाषा पूरी होती है।

○ अगर आपकी कोई ऐसी मनोकामना है जो पूरी नहीं हो रही और आप कठिन साधना नहीं कर सकते तो माता मदानन की एक साधना मैं आपको बताने जा रहा हूं जो कि बहुत ज्यादा सरल है और कोई भी इसे कर सकता है।

○ जो मिट्टी के दिए हम दिवाली पर जलाते हैं उसमें सरसों का तेल डालकर एक निश्चित समय पर माता शीतला या मदानण के स्थान पर लगा देना है दो लड्डू बूंदी वाले,पांच बतासे, जोड़ा लौंग,जोड़ा इलायची, जोड़ा मौली, एक मिट्टी के पात्र में शक्कर आटा और सरसों का तेल भूल कर कच्ची कड़ाही तैयार कर लेनी है वह भी माता को चढ़ा देनी है धूप अवश्य चढ़ाएं इससे आपके सभी रुके हुए कार्य वापस अपनी गति में चलना गति में चलना  शुरू हो जाएगे।

○ आप पर कितना भी कष्ट हो लगातार 41 दिन तक सरसों का दिया माता के स्थान पर लगातार जलाने से आपको अवश्य लाभ प्राप्त होगा यह बात आपके हालातों पर भी निर्भर करती है।

○ अगर कष्ट ज्यादा है तो उपरोक्त दिए गए सामान जैसे माता की कच्ची कड़ाही धूप दीप अवश्य माता को अर्पित करना चाहिए और लगातार 41 दिन तक घर में सरसों के तेल की होम करनी चाहिए मंगलवार बृहस्पतिवार और शनिवार को माता के प्रति सरसों के तेल की होम करने से घर में सुख शांति होती है और प्रत्येक कार्य में बरकत होती हैं।

○ कच्ची लस्सी से माता को प्रतिदिन स्नान करवाना बहुत अच्छा माना जाता है और इससे कारोबार में आने वाली रुकावटें खत्म हो जाती हैं प्रतिदिन उपले के ऊपर एक चम्मच गाय का घी या सरसों का तेल, थोड़ा सा गूगल और दो बतासे डालकर घर में चारों ओर धूनी देने से सभी प्रकार के उपद्रवों को घर में आने से रोकती है और कोई भी नकारात्मक शक्ति आपके घर में प्रवेश नहीं करती।

○ अगर इनमें से कोई भी उपाय आप नहीं कर सकते तो लगातार 41 दिन सरसों के तेल का दिया माता मदानन के या माता शीतला के मंदिर में लगातार प्रतिदिन जलाएं इससे भी आपकी मनो बिलासिया पूरी हो जाएगी। उसके लिए प्रतिदिन नए दिए का इस्तेमाल करें और जुड़ा गुलाब का फूल जो की ताजा को अवश्य ही चढ़ाएं।

○ अगर कारोबार में बहुत अधिक बंदिश आ जाए और बिल्कुल ठप पड़ जाए तो थोड़े से कच्चे चावलों को जो कि साबुत हो हल्दी लगाकर माता के थान पर ले जाएंगे वहां ले जाकर के माता को निवेदन करें और वह चावल वापस अपने साथ ले आए उसमें से 11 चावल लेकर प्रतिदिन घर या दुकान के अंदर खड़े होकर दरवाजे की तरफ मुंह करने और वह चावल आपने बाहर की तरफ मारने हैं ताकि आपके दहलीज वह चावल लांघ जाए। सिर्फ 11 रोज तक ऐसा करने से आपके घर और आपके किसी भी काम के ऊपर लगा हुआ प्रतिबंध है खुल जाएगा।

○ यदि आपके घर के ऊपर कोई तांत्रिक प्रयोग हो गया है और उसका कोई हल आपको नहीं प्राप्त हो रहा तो उसके लिए मैं माता मैदान वाली को पांच अनार जो कि फटे हुए ना हो या कटे हुए ना हो मंगलवार को अपने सिर से उल्टा 7 बार उतारकर अर्पित करें।

○अपने खुद पर माता पर और क्रिया पर पूर्ण भरोसा रखें फिर ही किसी क्रिया को करें विश्वास और श्रद्धा ही देवता का मूल होता है।

○ साधना में प्राप्त हुए किसी भी अनुभव को किसी भी व्यक्ति विशेष के साथ सांझा नहीं करना चाहिए ऐसा करने से आपकी शक्ति जाती रहेगी और आपको फिर से सेवा करनी होगी दोबारा सेवा करने पर यह शक्ति आपको प्राप्त हो या ना हो इस विषय में कुछ कहना कठिन है इसलिए पहले से ही आपको किसी से कुछ नहीं कहना ना ही बताना है।

         ।। जटिल रोग होने पर मसानी का उतारा।।

○अगर लाख जतन करने पर भी आपके घर के किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर से कोई बीमारी नहीं हट रही तो मां का मैदान वाली को प्रार्थना करके निम्नलिखित सामान रोगी के ऊपर से सात बार उल्टा उतार कर चुपचाप चौक पर रख कर घर आ जाना चाहिए इससे पुरानी से पुरानी बीमारी भी हट जाएगी और रोगी को शीघ्र अति शीघ्र आराम होना शुरू हो जाएगा उस हालात में भी औषधीय प्रयोग जारी रखना चाहिए एवं अच्छे चिकित्सक से अच्छी औषधि करवानी चाहिए।

○ ((( पांच गुलाब के फूल देसी, एक शराब का पव्वा, सात रंग की मिठाई ,सात लौंग, सात इलायची,सात पीस बकरे की कलेजी के,एक मुर्गी का देसी अंडा काजल से सात टीके लगाकर,जोड़ा बूंदी वाले लड्डू ,सात गुलगुले,सात बतासे,एक जोड़ा मौली का चार मुँह वाला सरसो के तेल का दीया, एक गत्ते के डिब्बे या अखबार में रखकर।  चुपचाप चौक पर रख देना है और वापस मुड़कर आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखना हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करना है अगर पीछे से कोई आवाज पड़े या कोई बुलाए या कोई चिल्लाए तो आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना है ना ही किसी से बात करनी है। लगातार तीन मंगलवार ऐसा करने से मरीज ठीक होना शुरू हो जाएगा क्योंकि भूत बाधा या ऐसी दूसरी बाधा होने के कारण औषधियों का प्रभाव नहीं हो पाता जब यह नकारात्मक ऊर्जा मनुष्य की देह से और मन से हट जाता है उसके बाद मनुष्य के सामान्य हो जाने के बाद ही औषधियों का प्रभाव होता है।

○ 41 दिन बीतने के बाद भी आप इस इस सेवा को लगातार चालू रख सकते हैं इससे आपके घर में धन-धान्य की वृद्धि होगी।

○ आपकी आस्था और विश्वास से ही किसी भी फल की प्राप्ति होती हैं गुरु, मंत्र ,ईष्ट, गो ,ब्राह्मण और साधुजनों के प्रति आस्था रखें।

○ अधिक जानकारी के लिए आप हमारे व्हाट्सएप नंबर 81949 51381 के ऊपर सुबह 11:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक संदेश भेज कर संपर्क कर सकते हैं।

     

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

गेहूं देखना

गेहूं या जौं देखकर मरीज के दोष का पता लगाना।

○मित्रों पिछले जितने भी वीडियो मैंने गेहूं या जौं देखने को ऊपर डाले हैं । वह वीडियो अधूरे रहे इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं । लेकिन भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से अलग-अलग साधकों द्वारा बार-बार ऐसा आग्रह किया जा रहा है कि इस वीडियो को पूरा बनाकर डालिए ताकि हम लोग लाभ प्राप्त करें आते आपकी बातों का सम्मान रखते हुए मैं आपके लिए यह वीडियो पूरा बनाकर डाल रहा हू।

○उन साधकों के लिए जिनको अभी तक कोई सिद्धि प्राप्त नहीं हुई और वह किसी भी याचक के दोष का पता नहीं लगा सकते उनके लिए यह प्रयोग अमृततुल्य है और इस प्रयोग को करने से आपको पीड़ित व्यक्ति के ऊपर के दोष का सही सही अनुमान हो जाएगा उसके बाद उसका उपचार करने से पीड़ित बिल्कुल ठीक हो जाएगा।

○ इस प्रक्रिया की विशेषता यह है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह ज्योतिष पर आधारित है और किसी सिद्धि की इसमें आवश्यकता नहीं होती बिना सिद्धि के यह प्रयोग किया जा सकता है इसके लिए आपको शेष बचे दानों का फल कथन याद करना होगा।

○गेहूं या जो देखने की पद्धति यह पूर्णतया ज्योतिष शास्त्र के ऊपर आधारित है और लगन के भावों को देखते हुए ही इसका फल कथन होता है।

○जब कोई बीमारी समझ ना आए किसी मरीज की बहुत अधिक लंबे समय तक दीर्घकालीन दवाइयों का सेवन करते हुए भी आराम ना आए अच्छे चिकित्सक से चिकित्सा कराने पर जब आराम ना आए तब गेहूं देख कर  मरीज के ऊपर जनित दोष का पता लगाया जाता है कि यह दोस्त वास्तव में है क्या बहुत-बहुत क्षेत्रों में अलग-अलग शैलियों से इसे देखा जाता है सबकी साधकों की अलग-अलग पद्धतियां होती हैं अलग अलग तरीके और ढंग होते हैं लेकिन जो यह ढंग में आपको बताने जा रहा हूं यह ज्योतिष शास्त्र के नियमों के ऊपर चलता है।

○मैं खुद इस पद्धति को अपनाता हूं और 10 साल बाद भी मेरे कहे अनुसार ही होता है दस-दस पंद्रह-पंद्रह साल पुराने मरीज जिनको जो बोला गया था वही उनके साथ होता है और वापस वह आते हैं और इस पद्धति द्वारा देखे गए गेहूं के फल कथन कभी असत्य नहीं होते 101% यह फल कथन स्पष्ट हैं। देखने में व्यावहारिक तौर पर यह भी आया है इस फल फल कथन को चाहे आप 10 बार भी देख ले तो उसका फल कथन एक जैसा रहेगा।

○ यहां मैं आपको इस प्रयोग में इस वीडियो में संक्षिप्त रूप से गेहूं देखने की विधि बता रहा हूं जिससे आप सभी को इस विधि को प्राप्त करके लाभ होगा और आने वाले मरीज के ऊपर के  दोष को आप देख पाएंगे फिर उस मरीज का इलाज भी संभव हो पाएगा।

○ सवा किलो गेहूं या जौं लेकर उसमें अपने इष्ट देव के नाम से एक सौ एक रुपए आप को रखना है और मरीज के सिरहाने पहले दिन रखना है अगर घर में है तो घर के चारों कोनों को स्पर्श करवा देना चाहिए। दूसरे दिन सुबह प्रातः काल स्नान इत्यादि करके अपने देवता को दीप धूप अर्पण करें फिर उसके बाद सच्चे मन से शांतिपूर्वक पूर्वाभिमुख हो कर भूमि पर बैठ जाएं। ईष्ट देव का स्मरण करें तदोपरांत अंगूठे समेत तीन उंगली से गेहूं उठाएं जितने दाने आ जाएं ऊतने दाने 12 की संख्या से आपको अलग निकालते जाना है।अंत में जो दाने शेष बचे उनकी संख्या से फल का कथन होता है और पूछने वाले को फल कहना चाहिए।

○(इसी दौरान आए हुए गेहूं के टुकड़ों को संख्या से अलग रखना चाहिए और उनको बीच में गिनना नहीं चाहिए।)

○ इसमें शेष बचे दानों की संख्या से ही फल कथन होता है। 


○एक शेष बचे तो पितृदोष जानना चाहिए।
इसके लक्षण यह है कि पितृदोष होने से कुटुंब का नाश आपस में झगड़े क्लेश बीमारी और भूत बाधा सामान्य बात है धन का नाश संतान बाधा होना ऐसे लक्षण जानने चाहिए इससे धन का इतना अधिक नाश होता है कि लाखों करोड़ों की संपत्ति का मालिक भी भिखारी बनने के हालात में आ जाता है।

○2 दाने शेष बचे तो देवी का दोष समझो।
 यह दोष दो दाने शेष बचने पर इसका फल बताया जाता है देवी के प्रति कोई संकल्प करके भूल जाना मनौती मान कर भूल जाना और उसे पूरा ना करना कुलदेवी के प्रति उदासीन हो जाना और उनका उचित पूजन ना करना उससे इस दोस्त का प्रकार के होता है और इससे क्लेश मनोकामना की पूर्ति ना होना बाधाएं धन का नाश ग्रह का नाच कुटुंब का नाश स्वाभाविक होता है

○3 दाने शेष बचे तो देवी का दोष।
 3 दाने शेष रह जाने पर भी देविका ही जोश होता है दोष होता है और इससे पारिवारिक कलह चरम तक पहुंच जाता है धन का नाश आम सी बात हो जाती है और धन की आय के स्रोत बंद हो जाते हैं आदमी की आर्थिक स्थिति डांवाडोल होते हुए बहुत ज्यादा दयनीय परिस्थिति तक पहुंच जाती है  इसमें कुटुंब के मुख्य सदस्य के ऊपर ज्यादा कष्ट रहता है और दांपत्य जीवन कष्टप्रद हो जाता है संतान को कष्ट रहता है और संतान निकम्मी हो जाती है 3 दाने शेष बचने पर ऐसा फल जानना चाहिए।

○4 दाने शेष बचे बाहर की हवा।
चार दाने शेष बचने पर सीधा सीधा मसान से ग्रसित होता है व्यक्ति भूत बाधा प्रेत बाधा राक्षस या डायन की बाधा व्यवहारिक रूप से इस फल का तन में 12 से 15 साल के अनुभव के आधार पर मैं आपको यह बता रहा हूं यह बाधा आकस्मिक रूप से घाटे करवाती है नुकसान  सड़क दुर्घटना भूत प्रेत ग्रसित व्यक्ति को दौरे पड़ना क्लेश का हद से ज्यादा बढ़ जाना अकाल मृत्यु इत्यादि यह सब इसके लक्षण जाना चाहिए।

○5 दाने शेष बचे तो पीर की हवा।
 पांच दाने शेष होने पर खानदान में पूजने वाले किसी पीर किसी फकीर किसी संत खासकर सुखी सिलसिले से संबंधित वकीलों के रुष्ट हो जाने पर फकीरों के रुष्ट हो जाने पर कार्य के कार्य का नाश होता है और काम बनते बनते अंत में मना हो जाता। साधारण भाषा में इसे जल देवता का दोष भी माना जाता है।

○6 दाने शेष बचे तो ग्रह बाधा।
 छह दाने शेष रहने पर  सीधा सीधा ग्रह बाधा की तरफ इशारा होता है हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा और बुरा समय आता है कर्मों के अनुसार मनुष्य को फल भुगतना पड़ता है सुख कम समय का और दुख ज्यादा समय का मनुष्य को प्रतीत होता है जब किसी व्यक्ति के ऊपर से उतारे गए दानों में संख्या 6 हो तो उसके ऊपर से यथासंभव यथोचित दान करवाना चाहिए पुरानी बीमारी मकान का ना बनना नौकरी ना मिलना कारोबार में घाटा फैक्ट्री व्यापार दुकान का ना चलना और बार-बार काम बदलने पर भी काम सही तरीके से ना चल पाना यह सामान्य लक्षण माने जाते हैं।

○7 दाने शेष बचे खेत्रपाल दोष।
गेहूं देखने के समय जब 7 दाने बाकी बचे तो संतान बाधा जानी चाहिए दांपत्य कला पारिवारिक क्लेश कुटुंब का क्लेश और संतान का बिगड़ जाना संतान की पढ़ाई छूट जाना संतान की चिंता में मनुष्य लगा रहता है इसका यह लक्षण जाना चाहिए।

○8 दाने शेष बचने पर नाग देवता का दोष।
8 दाने शेष बचने पर बुद्धिमान मनुष्य को नाग देवता का दोष मानना चाहिए। कुलदेवता और नाग देवता से उत्पन्न यह बाधा उत्पन्न होने पर मनुष्य के उसके उचित परीक्षण का फल प्राप्त नहीं होने देती और यश और कीर्ति भंग होते हैं और धन का स्रोत बंद हो जाता है।

○9 दाने शेष बचने पर सब कुछ सामान्य है।
अगर गेहूं देखने में 9 दाने शेष रहे तो यह सब कुछ सामान्य जाना चाहिए आपको किसी योग्य चिकित्सक के पास जाकर के उसका उपचार करना चाहिए आपके घर की यदि कोई समस्या है तो यथोचित किसी बुद्धिमान व्यक्ति से परामर्श करके उस समस्या का हल करना चाहिए।

○10 दाने शेष बचने पर देवी का दोष। 
गाने देखने के उपरांत जब 10 दाने शेष रहे तब जातक को जाना चाहिए कि उसके घर में शीतला का वास है और कुपथ के कारण वह भगवती विकृत हो गई है इसलिए इसका यही परिणाम जानना चाहिए। हलका ज्वर रहना गंदे सपने आना यह इसकी निशानी जानी चाहिए।

○11 दाने शेष बचने पर मलिन प्रेत का दोष।
अगर दाने देखने के बाद 11 दाने शेष बचे तो घर या मरीज पर मलिन प्रेत का दोस्त जाना चाहिए इसकी निशानियां ऐसी होती हैं बहुत जगह पर दिखाने पर भी यह प्रेत नहीं हटते और विशेष क्रियाओं से ही इस प्रेत से छुटकारा मिलता है।

○12 दाने बचने पर चंडी देवी का दोष जाना चाहिए।
12 दाने अगर शेष बचे तो चंडी का दोष मानना चाहिए इससे घरमें कलेश और अंगपीड़ा बहुत होती है मंदज्वर घर में किसी ना किसी को रहता है और क्लेश लड़ाई झगड़ा कारोबार में बरकत का ना होना यह आम सी बातें हैं।

(यहां पर मैं आपको संक्षेप में यह सभी समझा रहा हूं क्योंकि  वर्षों के तजुर्बे को एक दिन में या किसी लेख में बता देना संभव नहीं है।)


इन उपरोक्त दोषों के हो जाने पर ही मनुष्य की देह में कलेश उत्पन्न होता है और भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों और बाधाओं से मनुष्य ग्रसित हो जाता है। उचित उपचार करा लेने पर भी दूर से जनित पीड़ा का निवारण ना हो तब ऊपर दिए गए गेहूं को देखने के बाद सोच को जानकर उसका उपचार करवाया जाना चाहिए जिससे कि रोग बाधा सदा सर्वदा के लिए आपके जीवन से चली जाए।

संख्या लक्षण और उसके उपचार।

○आपको दानों की संख्या और लक्षण से मैंने बताया कि किस मरीज के ऊपर कौन सी बाधा हो सकती है। इन सब का निर्धारण शेष बचे दानों की संख्या से होता है और कोई जरूरी नहीं कि 100% वही लक्षण मिले उसमें कुछ ऊपर नीचे हो सकता है कुछ लोगों के साथ कोई ऊपरी हवा होती है उससे दानों की संख्या में हेरफेर हो जाता है इस बात का अपने विशेष ध्यान रखना है। यदि इन सब बातों को समझ गए तो दानों की संख्या देखकर आप किसी भी व्यक्ति के ऊपरी बाधा के दोष के विषय में सही-सही बता सकेंगे।

○बाकी सब कुछ आपके के अनुभव पर निर्भर करता है आप कितनी मेहनत करते हो और कितना किसी विद्वान के पास रहे हैं  तो आपको सब कुछ समझ आ जाता है इन चीजों को गहराई से समझना पड़ता है और बहुत टेक्निकल पेच होते हैं इसमें एक दिन में यह कुछ समझना संभव नहीं है लेकिन मुझे इतना भरोसा है कि आपको 60% का सही-सही अनुमान इससे हो जाएगा।

○इस विषय पर जितनी मेरी जानकारी थी और इस लेख में उचित तौर पर उतनी जानकारी मैंने डाली है इस विषय का कोई थाह नहीं है अधिक जानकारी के लिए दिन में 11:00 बजे से लेकर 3:00 बजे तक मुझ से परामर्श किया जा सकता है मेरा व्हाट्सएप नंबर 8194951381.


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गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

दृष्टि पिसाच सिद्धि


सामान्य तौर पर सिद्ध साधको द्वारा भूत भविष्य वर्तमान जानने के लिए कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना कि जाती है लेकिन बहुत सी और भी शक्तियों की या योग की साधना द्वारा ये सभी कुछ संभव है।उसी श्रेणी में वर्तली देवी की साधना शहज़ाद साधना हमज़ाद साधना हाज़िरात की साधनायें बहुत सी साधनायें है उन्हीं में से एक साधना है जिस तरह कर्णपिशाचिनी साधक के सभी प्रश्नो के उत्तर कान में बोल कर देती है उसी तरह ये पिसाच साधक के सभी प्रश्नों के उत्तर में दृश्य दिख देता है

******।(दृष्टि पिसाच की साधना)।*******
कोट कोट पे खेले डाल डाल पर झूले ताल ताल को सुखाये भूत भविष्य को बताए तीर पे तीर चलाये चलाये के पूर्व जन्म को ना बताये तो दृष्टि पिसाच ना कहाये बंद खुली आँखन से बताये सही गाँव संवत जाट धर्म गैल को नेत्रन से न बताये तो अपनी माँ की सैय्या तोड़े वा के चीर पे चोट करे आन कालिका की बंदगी महाकाल शंकर की मेरी भगती गुरु की शक्ति मन्त्र साँचा फूलो मन्त्र ईश्वरी वांचा।।

*******।विधि।******

चंद्र या सूर्य ग्रहण से 10 रोज पहले पाकड़ के पेड़ या बरगद के पेड़ के नीचे जाकर गुरु गणेश शिव जी की पूजा करें और प्रतिदिन एक हज़ार की संख्या में जाप करना शुरू कर दें फिर जब ग्रहण वाला दिन आये तो आपको उपवास रखना होगा और प्रतिदिन की भांति उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे जाकर विधि पूर्वक बैठ कर साथ में कोई शस्त्र रख ले और उसदिन लगातार 51 माला जाप करें अनुभव के लिए तैयार रहें सामने आने पर उससे वचन ले लें।पूर्णत्या ब्रह्मचारी रहें गाय और कुत्ते की सेवा करें भूमिशयन और ईष्ट की तरफ ही ध्यान केंद्रित करें । झूठ कपट क्रोध हिंसा काम की तरफ ध्यान नहीं दे साधना काल में एक समय रात्रि को ही सात्विक भोजन जोकि खुद तैयार किया गया हो वही ग्रहण करें।ये साधना सिर्फ गुरु निर्देशन में ही करें।बिना गुरु के अगर कोई बुद्धि मान ये साधना करेगा तो अपने आशुभ फल का उसका स्वय ही उत्तरदायी होगा।
और बहुत सारी साधनाओं के लिए आप हमारे ब्लॉग https://tantarvriksha.blogspot.com जा सकते है। या व्हाट्सएप 8194951381 पर संदेश भेज कर सम्पर्क कर सकते है।

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रविवार, 10 नवंबर 2019

बटुक भैरव संपुट अष्टोत्तर शतनामावली।


श्री बटुक भैरव  भगवान शिव के पंचम अवतार हैं और इनकी पूजा से सभी अभीष्ट कार्यों की पूर्ति होती है साधन के छठ कर्म महाराणा मोहन स्तंभन त्यागी सब कर्म सिद्ध हो जाते हैं और जब कभी बहुत अधिक संकट या आर्थिक संकट  आ जाए तो भैरव की शरण में जाएं बटुक भैरव की नित्य पूजा करें और इस स्तोत्र के 11 पाठ प्रतिदिन 11 दिन तक लगातार करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।


            💐***।।भैरव संपुट मन्त्र ।।***💐
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं भैरवाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।1।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवे भवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं भूतनाथाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।2।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !! ॐ ह्रीं भूतात्मने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।3।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं भूतभावनाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।4।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।5।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।6।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !!ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।7।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !! ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।8।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः !! ॐ ह्रीं विराजे नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।9।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।10।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।ॐ ह्रीं मांसाशिने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।11।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ।ॐ ह्रीं खर्वपराशिने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।12।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।ॐ ह्रीं स्मरांतकाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।13।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः। ॐ ह्रीं रक्तपाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।14।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः। ॐ ह्रीं पानपाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।15।।

नमः भवोद्भवाय माम् भवस्व भवेनाति भवेभवे  नमः नमो वै सद्योजाताय प्रपद्यामि सद्योजातं ॐ।ॐ ह्रीं सिद्दाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।16।।

नमः भवोद्भवाय माम् भवस्व भवेनाति भवेभवे  नमः नमो वै सद्योजाताय प्रपद्यामि सद्योजातं ॐ ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नमः नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।17।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।18।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं कंकालाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।19।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं कालशमनाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।20।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं कलाकाष्ठाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।21।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे ॐ ह्रीं तनये नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।22।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं कविये नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।23।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शूलपाणये नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।24।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं खडगपाणियै नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।25।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ कंकालियै नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।26।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ धूम्रलोचने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।27।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं अभीरवे नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।28।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं भैरवीनाथय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।29।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं भूतपे नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।30।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं योगिनिपतये नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।31।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं धनधाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।32।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं धनहारिणे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।33।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं धनवते नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।34।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं प्रीतीवर्धनाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।35।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं नागहाराय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।36।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं नागपाशाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।37।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं व्योमकेशाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।38।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कपालभर्ते नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।39।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कालाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।40।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कपालमालिने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।41।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमोनमः भवे भवे नाति भवेभवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कमनीयाय नमः
ॐ ह्रीं कलानिधये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।42।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कलनिधिये नमः
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।43।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं त्रिलोचनाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।44।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं ज्वलनेन्राय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।45।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं त्रिशिखने नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।46।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं त्रिलोकेषाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।47।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं त्रिनेत्रे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।48।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं तनयो नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।49।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं डिम्भाय नमः ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।50।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शान्ताय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।51।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शांतजनप्रियाय नमः।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।52।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं बटुकाय नम:ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।53।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं बहुवेशाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।54।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं खट्वांगधारकाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।55।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं भूताध्यक्षाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।56।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं पशुपतये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।57।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं भिक्षुकाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।58।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं परिचारकाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।59।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं धूर्ताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।60।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं दिगम्बराय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।61।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शराय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।62।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं हरिणे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।63।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं पांडुलोचनाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।64।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।ॐ ह्रीं प्रशांताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।65।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शांतिदाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।66।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं सिद्दाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।67।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शंकर प्रिय बांधवाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।68।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं अष्टमूर्तये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।69।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं निधीशाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।70।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं ज्ञानचक्षुये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।71।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं तपोमदाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।72।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं अष्टाधाराय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।73।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं षडाधाराय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।74।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं सर्पयुक्ताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।75।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं शिखिसखाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।76।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं भूधराय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।77।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं भूधराधीशाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।78।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं भूपतये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।79।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं भुधरात्मज्ञाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।80।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं कंकालधारिणे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।81।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं मुण्डिने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।82।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं नागयज्ञो पवीतवते नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।83।।ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं ज्रम्भणाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।84।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं मोहनाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।85।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं स्तंभिने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।86।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं मारणाय नमः
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।87।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं क्षोभणाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।88।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं शुद्धनीलांजन प्रख्याय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।89।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं दैत्यघ्ने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।90।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं मुंडभूषिताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।91।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं बलिभूजे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।92।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं बलिभूतनाथाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।93।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं बालाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।94।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं बालपराक्रमाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।95।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं सर्वपत्तारणाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।96।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं दुर्गाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।97।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं दुष्ट भूषिताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।98।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कामिने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।99।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कलानिधये नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।100।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कांताय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।101।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं कामिनीवश कृद्वशिने नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।102।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं सर्वसिद्धिप्रदाय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।103।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं अनंताय नम:ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।104।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ सर्वमन्त्रमयि ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।105।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं वैद्याय नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।106।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः ॐ ह्रीं प्रभवे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।107।।

ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमःॐ ह्रीं विष्णवे नमःॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः भवेभवे नातिभवे भवस्व माम् भवोद्भवाय नमः।।108।।

।इति श्रीबटुकभैरव अष्टोत्तरशतनामावलि संपुटस्तोत्रमन्त्र।

शनिवार, 9 नवंबर 2019

पूतना शांति

         

  

              *।।।बाल ग्रह पूतना।।*
बहुत सालों के अनुभव के बाद एक बात मैं आपके सामने आज जनकल्याण हेतु खोलने जा रहा हूँ ये कोई साधारण बात नहीं है हम लोगों के जीवन में जरूर ये समस्या आती है वो है 0 से 12 साल के बच्चों का अक्सर बीमार हो जाना सधारण तयः चिकित्सा करवाने से ठीक हो जाता है लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि बहुत ज्यादा इलाज होने पर भी बच्चा ठीक नहीं होता या दवा असर नहीं करती। ऐसे असंख्य बच्चों का इलाज मैंने किया है और उनकी परिणाम बहुत ही अधिक संतोषजनक आया जो अधिक दवा लेने पर और बहुत बड़े डॉक्टरों से भी ठीक नहीं हुए वह बच्चे भी इस उपाय से स्वस्थ हो गए।
मेरा उद्देश्य चिकित्सा प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह उठाना नहीं है हमारे भी बच्चे जब बीमार होते हैं तो हम भी अपने बच्चों को डॉक्टरों के पास लेकर जाते हैं और उनका इलाज करवाते हैं लेकिन उसके बावजूद जब दवा ना लगे तो उपाय बिना देर किए करना चाहिए ताकि किसी बच्चे के प्राणों की रक्षा हो सके इसी लक्ष्य को सामने रखकर मैं आपके लिए यह कुछ उपाय लेकर आया हूं।
ये उपाय विद्वान ब्राह्मणो द्वारा तब से करवाये जा रहे हैं जब चिकित्सा पद्धति इतनी विस्तृत नही थी और आज भी अगर किसी द्वारा ये उपाय किये जाते हैं तो इनका प्रभाव उतना ही है।
           ।।कारण और लक्षण एवम् उपचार ।।
अब बात यह है इसका कारण बताओ आपको यह पूतना 12 वर्ष के कम बच्चों को धरती है ग्रसित करती है उसका कारण यह हैं बहुत मैले बिछोने पर अकेली जगह में छोटे बच्चे को सुला देने से पूतना नाम की राक्षसी उसमें प्रवेश होने पर बच्चा बीमार हो जाता है तब पूतना की बलि देने से अच्छा होता है।

○जब कभी बच्चा बैठे-बैठे गिर पड़े या यूं मालूम हो किसी ने बच्चे को गिराया है और मूर्छा आ गई है अथवा एका एक कोई रोग हो गया है तब जानू उसे महा पूतना ने ग्रसा है।

○यदि कोई लोभ आदि के वश में आकर वनदेवता या नाग देवता का तिरस्कार कर दे तो उसके बालक को मैं ऊध्र्व प्रवेश कर लेती है।

○यदि कोई मनुष्य अपनी ऋतु स्त्रावित स्त्री का गमन करें और उसके बाद में स्नान किए बिना बच्चे को छू ले या माता अथवा पिता दोनों में से कोई भी उसके साथ सो जाए तो बालक्रांता नाम की राक्षसी का दोष होता है।

○बच्चे को इत्र फुलेल और फूल माला पहना कर बाहर जाने से रेवती ग्रह दोष करता है।

○ सिर खुले जूठे वालों को संध्या के समय सोने से रेवती का आवेश होता है संध्या के समय जमीन पर सोने से अथवा खेलने से बालक को पुष्प रेवती का दोष होता है

○ कदाचित बालक खेलता खेलता गिर जाए अथवा उसे उल्टी हो या नहीं भूले हो उसे शुष्क रेवती का आवेश होता है।

○झूठा खाने और देवता के स्थान पर मल मूत्र करने से शकुनी ग्रही नामक राक्षसी बालक को पकड़ लेती है ।

○जो नित्य कर्म संध्या वंदना आदि कर्म नहीं करते जो लोग पक्षियों को पालते हैं जन्मांतर में उनके बालकों को शिशु मुनी का राक्षसी का दोष होता है।

○ फिर उसका पूजन और बलि धूप आदि दान करने से शांति होती है।

○ अब कुछ लक्षण मै आपको बताऊंगा जिस बालक के नाखून और दांतो में विकार हो,दांत पीसे,नींद ना आवे,डर लगता रहे,शरीर से दुर्गंध उठे,आंख मीचना, शरीर को ऐंठे, रुदन करे,अनेक प्रकार की चेष्टा करें अधिक हो जावे उसे ग्रहाविष्ट जाना चाहिए।

○ उबटन:- इस उबटन से बालक के ग्रह शांत होते है। अब इसका उबटन बताता हूं दुर्वा,कुटकी, नीम के पत्ते, तज, का उबटन बनाकर के शरीर में मलकर पीछे पीपल के पत्ते और लिसोड़े के पत्ते का काढ़ा बनाकर स्नान कराने तो यह दूर होता है।

○ सर्व बाल ग्रह शांति हेतु और देवालय में जाकर ज्योति दर्शन बालक को करवावे
○मन्त्र बताता हूं आपको 'ॐ हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वंनेनापूर्य या जगत । सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव।।' इसका जाप करें दीप जला कर मंदिर में दही और उड़द के आटे से बने हुए वड़े की बलि दें मंदिर में पीतल की घंटी देवता के स्थान पर बांधे तो बच्चों को लाभ होता है।

○अब मैं आपको बताता हूं कि किस मास किस दिन और किस वर्ष में किस पूतना से बालक ग्रसित होता है।

○पहले दिन,मास,वर्ष को बालक योगिनी नामक पूतना से ग्रस्त होता है इसमें बालक को हीनज्वर गात्रशोथ अनाआहार वमन मूर्च्छा कांपना उदरपीड़ा सभी बीमारियों से पूतना के कारण ग्रस्त होता है।
○इस पूतना शांति में बली के लिए जिस मूर्ति की पूजा की जाती है वह नदी की मिट्टी निकाल कर तैयार की जाती है।
○ और बलि में सफेद चावल, सफेद फूल, सफेद चंदन का लेप, 5 पुड़े, 5 दीपक , 5 ध्वजा सफेद रंग, की प्रातः काल के समय घर से पूर्व दिशा में जाकर चौराहे पर या खाली उजाड़ जगह में लगातार तीन दिन बलि देवें।

○ जो धूप आपने बनानी है उसके लिए सरसों, बालछड़, आंक, बिल्वपत्र, काले तिल मनुष्य के केस नीम और घी इनको मिलाकर धूप तैयार करें और गाय के गोबर के कंड़े को  सुलगाकर के बालक के कमरे में इसकी धूनी देने प्रति दिन लगातार तीन दिन और इसको धूनी देने से बहुत ज्यादा लाभ होता है।

○मंत्र है ॐ नमो भक्त वत्सले मोचिनी स्वाहा।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान मन्त्र:- ॐ ब्रह्माविष्णुश्च रुद्रश्च सकन्दो वै श्रवण स्थता।राक्षन्तु त्वरितंबालं मुन्च मुन्च कुमार्कम्।

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○दूसरे दिन मास वर्ष में बालक को सुनंदना नामक पूतना ग्रस्त करती है इसके लक्षण मंद ज्वर,हाथ पाँव सँकोच करना दांतो को पीसना आंखों को मीचना आंखों में दर्द और बहुत ज्यादा लगातार रुदन करना ये लक्षण हों तो बालक को सुनंदना पूतना से ग्रसित जानना चाहिए।

○पुतला सवा सेर चावल के आटे का स्त्री के पुतले का निर्माण करना चाहिए। और पश्चिम दिशा में सायं काल को लगातार तीन दिन तक पूतना के निमित्त बलि दे।

○बलि में सवा सेर भात,आटे के पूड़े,भुनी हुई मछली ,
       बकरे का मांस 13 दीपक,सफेद रंग के13 झंडे  पूतना    
       के निमित्त बलि दे।

○इसकी धूनी के लिए सरसों, बालछड़, आंक, बिल्वपत्र, काले तिल मनुष्य के केस नीम और घी इनको मिलाकर धूप तैयार करें और गाय के गोबर के कंड़े को  सुलगाकर के बालक के कमरे में इसकी धूनी देने प्रति दिन लगातार तीन दिन और इसको धूनी देने से बहुत ज्यादा लाभ होता है।

○मन्त्र ॐ नमो भगवती स्वाहा।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र ॐ नमसच्चामुंडायै विच्चे ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं स्थानाद्र आज्ञया स्वाहा।

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○ तीसरे दिन मांस वर्ष में पूतना नामक पूतना बालक को ग्रस्त करती है  इसके लक्षण बहुत अधिक तेज़ ज्वर आना, बच्चे का रुदन करना, बच्चों को भूख ना लगना, बच्चे का शरीर का कांपना,बार बार उल्टी आना, रोमांच यानी रोये खड़े हो जाना, बच्चे का नींद में चौक जाना उदर पीड़ा।
○इसकी बली के लिए जो पुतला बनाया जाता है उसको स्त्री के स्वरूप का सवा से चावल के आटे का पुतला बनाना है और 3 दिन तक पश्चिम दिशा में संध्याकाल को बलि देनी है।

○बलि के लिए सवा सेर लाल रंग डालकर चावल बनाए, 10 लाल ध्वजा, लाल चंदन का लेप,10 गेंहू के आटे के पूड़े,5 पूरन पौली, 10 दीपक,पश्चिम दिशा में शाम को लगातार तीन दिन किसी वृक्ष के नीचे रखना है।

○ मंत्र है:- ॐ नमो भगवती स्वाहा।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान मन्त्र ॐ नमसच्चामुंडायै विच्चे ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं स्थानाद्र आज्ञया स्वाहा।

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○चौथे दिन मांस और वर्ष को मुखमुंडिका नामक पूतना बालक को ग्रस्त करती है। इसके लक्षण ज्वर, आंख मीचना, सिर को गिरा लेना आगे या पीछे, सिर को झुकाना ,भोजन ना करना ,बच्चे को नींद ना आना, नींद से उठ जाना ,नींद में चिल्लाते हुए बच्चे का उठना, यह मुकहमुंडिका नामक पूतना से ग्रसित होने के लक्षण है।

○ इस पूतना को बलि देने के लिए सवा सेर तिल के चूर्ण की पीठी बनाकर उससे स्त्री की प्रतिमा बनाई जानी चाहिए।
○ जो बलि इसमें दी जाती है उसमें 5 सफेद फूल 5 सफेद ध्वजा,5 दीपक, सवा सेर भात,एक सेर आटे के पूड़े,आधा शेर पूरन पौली शाम को पश्चिम दिशा में वृक्ष के नीचे तीन दिन लगातार यह बलि दी जानी चाहिए।

○ इसमें दी जाने वाली धूनी लहसुन, गाय का सींग, सांप की केंचुली,नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल और घी यह मिलाकर इसकी धूनी तैयार की जाती है। इसे बालक के कमरे में लगातार दिया जाना चाहिए।

○मन्त्र:- ॐ नमो पूतने मातवीर्रलि भक्ष सुशोभने बलकमुंच सुयोगेन बलिदाने महर्षयेत।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र ॐ नमसच्चामुंडायै विच्चे ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं स्थानाद्र आज्ञया स्वाहा।

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○पांचवें दिन मास या वर्ष में विडालिका नामक पूतना बालक को ग्रस्त करती है।उसके लक्षण ज्वार, देह पीड़ा,उदर पीड़ा, अरुचि,आंखों का मीचना, बालक का गर्दन को झुकाना अगर  यह लक्षण हों तो बालक को विडालिका नामक पूतना से ग्रस्त मानना चाहिए ।

○ सवा सेर चावल के आटे का पुतला बनाकर साईं काल में पश्चिम दिशा में जाकर वृक्ष के नीचे 3 दिन लगातार यह बलि देनी होती है।

○ बलि में सवा सेर भात,पांच पूरियां,सफेद चंदन का लेप,5 श्वेत पुष्प, 5 दीपक,5 श्वेत झंडे,5 गेहूं के आटे के पूड़े, पश्चिम दिशा में सायं काल में वृक्ष के नीचे लगातार तीन दिन मंत्र उच्चारण करते हुए रखने हैं।

○इसमें भी दी जाने वाली धूनी लहसुन, गाय का सींग, सांप की केंचुली,नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल और घी यह मिलाकर इसकी धूनी तैयार की जाती है। इसे बालक के कमरे में लगातार दिया जाना चाहिए।

○मन्त्र:-ॐ  सुभगे सुभलेदेवि सर्व शत्रुनिवारिणी वुलरू शांति शिशो: स्वथ्यं जीव दानेन राक्षसि।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र  ॐ भगवती ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं मुन्च रक्षां कुरु कुरु बलिं गृहाण अस्त्र ठ: ठ: चामुण्डे सर्वारि चण्डिके ठ:ठ: स्वाहा।

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○छठे दिन मास यह वर्ष में शकुनि या / षटकारिका नामक पूतना बालक को ग्रस्त करती है और इसके मुख्य लक्षण यह है ज्वर,अरुचि,उदर पीड़ा, शरीर का कांपना,बार-बार रुदन करना, रोते हुए बच्चे का उठ जाना, ऐसे महसूस होना जैसे बच्चे को किसी ने धक्का देकर गिरा दिया हो या खड़े हुए बच्चे का गिर जाना अचानक गिर जाना यह लक्षण होने पर बच्चे को शकुनि षटकारीका नामक पूतना से ग्रस्त जाना चाहिए।

○इस पूतना की शांति में पूजा करने के लिए जो पुतला बनाया जाता है वह स्त्री का पुतला नदी या नहर के दोनों किनारों की मिट्टी लेकर बनाया जाता है।

○ इसमें काले रंग के पांच ध्वजा, पांच दीपक, पांच काले फूल, मच्छी का मांस,बकरे का मांस,खीर, सवा सेर आटे के पूऐ, पश्चिम दिशा में दोपहर के समय 3 दिन तक लगातार बली देवें।

○ जो धूप इसमें दी जाती है उस धूनी को तैयार करने के लिए आपको कुठ, गूगल, राई,हाथी दांत,देसी घी,सरसो सफेद चंदन मिलाकर गाय के गोबर के कंडे पर आपको बालक के कमरे में यह धूनी देनी है।

○मन्त्र:-ॐ राक्षसि त्व महाभागे बालमुंच शुभानने क्षेमं कुरु जगत्थयासिमन शोभावान शिशूं कुरू।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र:- ॐ ब्रह्माविष्णुश्च रुद्रश्च सकन्दो वै श्रवण स्थता।राक्षन्तु त्वरितंबालं मुन्च मुन्च कुमार्कम्।
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○छठे दिन मास वर्ष में बालक को छठकारिका या शकुनि पूतना बालक को ग्रसित करती है  इसके लक्षण बालकों में ज्वार अरुचि शरीर का कांपना बार बार रोना अचानक खड़े-खड़े बच्चे का चिल्लाने लग जाना जैसा कि मानो उसको किसी ने थप्पड़ मार दिया हो सोए हुए बालक का डर कर बार-बार उठ जाना ऐसे लक्षणों को जानकर विद्वान को शकुनी या छठकारिका पूतना से ग्रसित हुआ बालक को जानना चाहिए।

○ ऐसे पुतला की शांति के लिए सवा सेर चावल का आटा भूत कर स्त्री की आकृति की मूर्ति बनाएं और पश्चिम दिशा में 3 दिन तक बलि देवें।

○पूजन द्रव्य सफेद चंदन का लेप,5 सफेद फूल,5 दीपक और 5 सफेद रंग के झंडे, सवा सेर उबले हुए चावल, पांच प्रकार की मिठाई,7 आटे के पूड़े 3 दिन तक चौरास्ते पर पूर्व दिशा में सायं काल को दें।

○ धूप देने के लिए गूगल, कुठ, सफेद चंदन,सरसों, हाथी दांत का चूर्ण, गाय का घी यह सब मिलाकर बालक के कमरे में 3 दिन तक धूनी दें।
○बलि और धूफ देने का मन्त्र:- ॐ राक्षीसि त्वं महाभागे बालं मुन्च शुभानने।क्षेम कुरु  जगतास्मिन शोभवान वरं कुरु।
○स्नान मन्त्र  ॐ भगवती ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं मुन्च रक्षां कुरु कुरु बलिं गृहाण अस्त्र ठ: ठ: चामुण्डे सर्वारि चण्डिके ठ:ठ: स्वाहा।
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○सातवें दिन मांस या वर्ष में बच्चे को शुष्क रेवती नामक पूतना ग्रस्त करती है जिसके मुख्य लक्षण मैं आपको बता रहा हूं जो आंखें में चना रोना सिर पीड़ा होने बच्चे का खड़े-खड़े गिर जाना आरुषि और सूखा रोग यह लक्षण अगर बालक में हो तो उसको शुष्क रेवती से पीड़ित जाना चाहिए।

○इस पूतना की बलि देने के लिए सवा सेर चावलों के आटे का पुतला बनाये और इसके बलिद्रव्य में सफेद चंदन का लेप,5 सफेद फूल, 5 दिए सफेद ध्वजा,इससे इस पूतना की पूजा करनी चाहिए और बलि द्रव्य जो आपको मैं बता रहा हूं वह है सवा सेर भात, या उबले हुए, पांच मिठाई, सात पूरियां साईं काल को पश्चिम दिशा में किसी खाली जगह या चार रास्ते की एक साइड में मौन रहकर के यह बलि देनी चाहिए।

○इसमें भी दी जाने वाली धूनी लहसुन, गाय का सींग, सांप की केंचुली,नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल और घी यह मिलाकर इसकी धूनी तैयार की जाती है। इसे बालक के कमरे में दिया जाना चाहिए।

○मन्त्र:-ॐ नमो पत्रक्षि विशालाक्षि बन शिव सग्रहा बलि मासांस्च बाले मुंन्च सुशोभने।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान मन्त्र  ॐ भगवती ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं मुन्च रक्षां कुरु कुरु बलिं गृहाण अस्त्र ठ: ठ: चामुण्डे सर्वारि चण्डिके ठ:ठ: स्वाहा।
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○आठवें दिन मास अथवा वर्ष में बालक को विडालिका नामक पूतना ग्रस्त करती है। इससे बालक को उदर पीड़ा ,शिरोशूल, अफारा देह पीड़ा उल्टी दस्त इत्यादि लक्षण जब मिलते हैं तो बालक को विडालिका पूतना से ग्रस्त माना जाए

○सवा सेर चावल के आटे की स्त्री आकार में मूर्ति बनाकर दक्षिण दिशा में सायंकाल को 3 दिन लगातार बलि देवें।

○ रक्त चंदन का लेप, पांच रंग की मिठाई, पांच रंग की झंडी, 5 दीपक देसी घी के यह पूजन द्रव्य है गेहूं की रोटी,मसूर की दाल, हरा साग, बकरे का मांस शाम को
       3 दिन लगातार चौराहे पर देना है।

○ इस पूतना की शांति के लिए जो धोनी जी जाती है उसके लिए गाय के सींग का बुरादा, लहसुन, सांप की केचुली, नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल, राई और देशी घी की धूनी देनी चाहिए।

○मन्त्र :- ॐ नमो सर्व भूतेशी शोभने त्वम पिशाचिनी।बलिचैवा सुरी वर्कलत्यत्वरितं मुन्च बालकम।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान मन्त्र  ॐ भगवती ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं मुन्च रक्षां कुरु कुरु बलिं गृहाण अस्त्र ठ: ठ: चामुण्डे सर्वारि चण्डिके ठ:ठ: स्वाहा।
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○नवमें दिन मास वर्ष में मदना नामक पूतना बालक को ग्रस्त करती है और बालक को ज्वर,अरुचि, कंपन, बार बार रोना,मुट्ठी बंद करके जोर से रोना, और खड़े-खड़े गिर,जाना यह मदना नामक व्यक्ति से ग्रस्त हुआ जानो।

○ एक शेर गेहूं के आटे का स्त्री आकार में पुतला बनाएं और प्रातः काल भोर में उत्तर दिशा में यह है बलि देनी है

○ 25 रक्त पुष्प 25 लाल रंग की झंडी या 25 दिए और 25 आटे के पूरे से पूजन करने के उपरांत सवा शेर भात मछली का मांस पापड़ी और 25 गन्ने के टुकड़े  उत्तर दिशा में प्रातः काल 3 दिन यह बलि देनी है।

○ जो धूप आपने देनी है उस में गाय के सींग का बुरादा, लहसुन, सांप की केचुली, नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल, राई, सरसों , घी इनकी धूनी आपको प्रतिदिन बालक के कमरे में देनी है तो ग्रह और अरिष्ट शांत हो।

○मन्त्र:-ॐ नमो भगवते वासुदेवाय हुँ फट्।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र:-ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कृष्णाय मंडल बलिमादाय हन हन हूं फट् स्वाहा।

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○दसवें दिन मास वर्ष में रेवती नामक पूतना बालकों को ग्रस्त करती है और निम्नलिखित रोग उत्पन्न करती है जिनमें ज्वर, वमन,श्वास रोग,सिर पीड़ा,उदर पीड़ा,यदि यह लक्षण बालक में मिले तो रेवती पुतला से बच्चे को ग्रस्त माना जाए।

○सवा सेर गेहूं के आटे की स्त्री आकार की मूर्ति बनाकर प्रतिदिन सायं काल को चौरसते पर दक्षिण दिशा में यह बलि रेवती नामक पूतना के निमित्त दी जानी चाहिए।

○ इस पूतना के निमित्त 25 रक्त पुष्प, 25 लाल रंग की झंडियां, 25 दीपक और 25 पुड़े यह पूजन द्रव्य है और गुड़ घी में भुने हुए चावल,गौ घृत घर के दक्षिण दिशा में चौरास्ते पर सायंकाल को बलि के निमित रखने हैं।

○जो धूप आपने देनी है उस में गाय के सींग का बुरादा, लहसुन, सांप की केचुली, नीम के पत्ते, मनुष्य और बिल्ली के बाल, राई, सरसों , घी इनकी धूनी आपको प्रतिदिन बालक के कमरे में देनी है तो ग्रह और अरिष्ट शांत हो।

○मन्त्र:- ॐ नमो भगवते वैश्वदेवाय हन हुँ फट स्वाहा।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र ॐ नमो भगवते वैश्वदेवाय हन हुं फट् स्वाहा।

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○एकादश दिन मास वर्ष में सुदर्शना नामक पूतना बालकों को ग्रस्त करती है और लक्षण ज्वर,अरूचि मुख शोथ गात्र पीड़ा और रोधन  बालक कि जब यह लक्षण दिखे तो उसे सुदर्शना पूतना से ग्रस्त हुआ माना जाए।

○ सवा सेर काले उड़द के आटे से इस पूतना की स्त्री आकार में मूर्ति बनाई जाती है।

○उबले हुए चावल सवा सेर, सफेद चंदन का लेप, सफेद फूल 25, सफेद ध्वजा 25, 25 दीपक, 25 पुड़े इस बलि को संध्या काल के समय घर से दक्षिण दिशा में प्रतिदिन 3 दिन तक सुदर्शना नामक पूतना के निमित्त बलि देनी चाहिए।

○इस पूतना की शांति में इस्तेमाल की जाने वाली धूप का निर्माण गोमूत्र,लहसुन, नीम के पत्ते,सांप की केंचुली,बिल्ली और मनुष्य के बाल, राई और गौ घृत इन सब को मिलाकर धूप तैयार की जानी चाहिए और उसे बालक के कमरे में प्रतिदिन 3 से 4 दिन तक लेना चाहिए इससे पितरों की शांति होती है।

○मन्त्र:- ॐ नमो भगवते  रावनाय चंद्रहास वज्रहस्ताय ॐ हूँ फट स्वाहा।
○ पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मंत्र:-ॐ नमो भगवते रावणाय चन्द्रहास वज्रहस्ताय ज्वल ज्वल दुष्ट गृहादीन् ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।
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○बारहवे दिन मास वर्ष में अदभुता नामक पूतने बालकों को ग्रसित करती है। और बहुत ज्यादा कष्ट देती है ज्वर, रुदन,पसीना,आंख दुखना,सन्ताप,रोमांच, शरीर पीड़ा के लक्ष्णों को देखकर विद्धवान लोग अदभुता नामक पूतना से बालक को ग्रसित जानो।

○एक शेर चावल के आटे की बेटी से इस पूतना की सुंदर मूर्ति तैयार करनी चाहिए आर दक्षिण दिशा में साईं काल को इस की बलि दी जानी चाहिए बली द्रव्य 13 दीपक,13 सफेद झंडी,13 आटे के पूड़े, मछली का मांस, बकरे का मांस और पापड़ी अदभुता नामक पूतने के निमित बलिदान करें।

○ॐ नमो नारायण प्रज्वल प्रज्वल ताल हर हर शोषय शोषय मर्दय मर्दय हन हन दुष्टआत्मान हुँ फट् स्वाहा।
○पुतना की शांति हेतु बलि धूफ और पूजन इसी मंत्र से किया जाना चाहिए।
○स्नान करने का मन्त्र:-ॐ नमो नारायणया जवलद्वसताय  हन हन शोषय शोषय मर्दय मर्दय तापय तापय हुँ हुँ हुँ हन हन दुष्टाना ह्म ह्रूं स्वाहा।

यहां जिस प्रकार बाल कष्ट आवली चित्र दिया गया है हाल हर बलिदान के पीछे जल द्वारा छींटे दिए जाने का विधान है जब पूतना का बलिदान दिया जाता है तो बलिदान विधि 3 दिन तक निरंतर करें उसके बाद चौथे दिन पलाश पीपल विल्व गुलर मिल सके तो खैर के पत्ते इन के पत्तों को उबालकर बालक को स्नान मंत्र द्वारा स्नान कराते हुए बच्चे के ऊपर से उतारकर भिखारी और कुत्ते आदि जीवो को मीठा भोजन कराना चाहिए और शांति मंत्रों का जाप करके कुशा से बच्चे को जल के छींटे देना चाहिए।
निम्नलिखित मंत्र को पढ़ना चाहिए जो स्नान के मंत्र हैं उनसे स्नान करवाया जाए और फिर शुद्ध जल लेकर के जिसमें गंगाजल हो और कुछ ऐसे बच्चे को छीटे मारते हुए इस मंत्र का उच्चारण करना है
मन्त्र:-ॐ रक्ष रक्ष महादेव नीलग्रीव जटाधर गृहासतु सहितो रक्ष मुन्च मुन्च कुमारकम  ॐ सर्व मातर इमं ग्रहं संहरंतु हुँ रोदय रोदय स्फ़ोटय स्फ़ोटय स्वहा।गर्ज गर्ज सः गृहाण गृहाण आमर्दय आमर्दय ह्रीं ह्रीं हन हन एवं सिद्धि रुद्रो ज्ञापय स्वाहा।इति रक्षा मन्त्र।

अपनी तरफ से मैंने कोई कमी नहीं छोड़ी इस विषय पर इस विषय में मैंने सैकड़ों बार लाभ उठाया है इस ज्ञान से तो मैं यह चाहता हूं कि ज्ञान आपको मिले और इसे आप लाभ उठाएं लेख लंबा है लेकिन रुचिकर है जिसको ज्ञान की प्यास होती है उसके लिए लेख की लंबाई का महीना नहीं होता अगर कुछ आपको समझ ना आए तो मेरे व्हाट्सएप नंबर 8194951381 के ऊपर सुबह 11:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक व्हाट्सएप द्वारा संदेश भेजकर मुझसे आप संपर्क कर सकते हैं।



कलवा वशीकरण।

जीवन में कभी कभी ऐसा समय आ जाता है कि जब न चाहते हुए भी आपको कुछ ऐसे काम करने पड़ जाते है जो आप कभी करना नही चाहते।   यहाँ मैं स्...